Wednesday, 10 January 2018

अंगदान_धर्म_की_नजर_से

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--------------- #अंगदान_धर्म_की_नजर_से ----------------

देवबंद की वेबसाइट पर हलाल और हराम संबंधी फतवों की श्रेणी के सवाल क्रमांक 27466 में पूछा गया है कि रक्तदान शिविरों में रक्तदान करना इस्लाम के हिसाब से सही है या गलत? इसके जवाब में देवबंद ने कहा है कि अपने शरीर के अंगों के हम मालिक नहीं हैं, जो अंगों का मनमाना उपयोग कर सकें, इसलिए रक्तदान या अंगदान करना अवैध है। और इस तरह इस्लाम मे अंगदान तो छोड़ो रक्तदान भी हराम हो गया ।।

AIIMS की 1 रिपोर्ट के अनुसार पिछले 3 सालों में दिल्ली में 39 मुस्लिमो को अंगदान किए गए
लेकिन अंग देने वाले 231 डोनर में एक भी मुस्लिम नहीं।। बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ भारत मे ही नही पूरे विश्व मे इस्लामिक डोनर मिलना एक टेढ़ी खीर है।।

आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल लगभग 95 लाख लोगों की मौत होती है और इनमें से तकरीबन एक लाख लोग ऐसे होते हैं जो अंगदान के लिए सक्षम होते हैं। इसके बावजूद भारत में रोजाना 300 लोग अलग-अलग अंगों के खराब होने की वजह से दम तोड़ देते हैं। इसका मतलब है एक साल में एक लाख से ज्यादा मौतें। डॉक्टरों के मुताबिक मौत के बाद अंगदान करके एक व्यक्ति 50 जिंदगियां तक बचा सकता है।

विज्ञान की नजर में अंगदान सबसे बड़ा कर्म है जबकी इस्लाम ,ईसाई समुदाय में इसे हराम माना गया है जबकि अभी हाल में मेरा कोई मित्र इन धर्मो में परोपकार शांति और सहयोग का धर्म है का ज्ञान दे रहा था । मेरे मित्रो ने काफी दिनों से लिखने को कहा कि सनातन धर्म क्या कहता है अंगदान के विषय मे , तो आइए देखते है सनातन धर्म क्या मत रखता है अंगदान के विषय मे ---

1 -- #श्रीमद्भागवत_गीता_के_अनुसार --
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति नवानि देही॥
अर्थात --
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है। इसका मतलब यह है कि शरीर का आत्मा से कोई मतलब नही है वो नए शरीर को जब धारण करती है तो न तो उसे उसके पुराने शरीर से मतलब होता है ना उसका प्रभाव । अर्थात अंग दान करने से नए शरीर पर (अगले जन्म ) पुराने शरीर का कोई प्रभाव नही पड़ेगा ।।

2-- #वैदिक शास्त्रों में एक कथानुसार  महर्षि दधिचि ने संसार के हित में अपने अस्थियों का दान दिया। देव शिल्पी विश्वकर्मा ने इनकी हड्डियों से इंद्र के लिए वज्र नामक अस्त्र का निर्माण किया और दूसरे देवताओं के लिए भी अस्त्र शस्त्र बनाए। यानी कि परोपकार के लिए अंगदान को गलत नही अपितु श्रेष्ठ कर्म बताया गया है ।।

3 -- #कर्ण ने अपनी त्वचा का , शिवि ने अपने मांस का, जीमूतवाहन ने अपने जीवन का तथा दधीचि ने अपनी अस्थियों का दान कर दिया था।ययाति पुत्र पुरु की दानशीलता जगविख्यात है ही। यानी शास्‍त्रों और पुराणों में कई ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जो बताते हैं क‌ि अंग दान महादान है। अंग दान से दोष नहीं महापुण्य म‌िलता और परलोक में उत्तम स्‍थान और अगले जन्म में उत्तम कुल प्राप्त होता है।

ये तो बात हुई पौराणिक अब कुछ प्राचीन वैदिक भारत के उदाहरण देखते है जो निश्चित ही धर्म के विषय मे आज के धर्माचार्यो से अधिक ज्ञानी थे तो क्या उस काल मे अंगप्रत्यारोपण होते थे आइये देखते है --

#ऋग्वेद_के_अनुसार --
रोगों के समवायिकारण (दोष) तथा निमित्त कारण (क्रिमि) औरी दोष प्रयत्नपूर्वक चिकित्सा का स्पष्ट संकेत है और अंग प्रत्यारोपण का भी -
साकं यक्ष्म प्रपत चाषेण किकिदीविना ।।
साकं वातस्य साकं नश्य निहाकया॥ -(ऋ० १०- १७)

इसके अतिरिक्त अथर्ववेद में कई जगह इसका उल्लेख मिलता है ।।

#वेदों में रुद्र, अग्नि, वरुण, इन्द्र, मरुत् आदि दैव भीषण कहे गये हैं, किन्तु इनमें सर्वाधिक प्रसिद्धि अश्विनी कुमारों की है जो ''देवानां भिषजौ'' के रूप में स्वीकृत हैं ।।
ऋग्वेद में इनके जो चमत्कार वर्णित हैं उनसे अनुमान किया जा सकता है कि उस काल में अंगप्रत्यारोपण की स्थिति उन्नत थी ।।अश्विनीकुमार आरोग्य, दीर्घायु शक्ति प्रजा वनस्पति तथा समृद्धि शक्ति के प्रदाता कहे गये हैं उनके चिकित्सा चमत्कारों का वर्णन ऋग्वेद में विस्तार से किया गया है ।।
अश्विनौ द्वारा अंग प्रत्यारोपण का सपष्ट उल्लेख मिलना यह सिद्ध करता है कि अंग दान कही से भी गलत नही है ना तो इसका कोई दुष्प्रभाव पड़ता है ।।

#Surgical Procedures के बारे में जब दुनिया कुछ नहीं जानती थी, तब भी भारत में सुश्रुत शल्य चिकित्सा किया करते थे. 1200BC में ही उन्होंने 184 अध्यायों का Medical Encyclopaedia लिख दिया था. आयुर्वेद में जड़ी-बूटियों से Anesthesia भी बनाया जाता था, और इसमे शालक्य शास्त्र में अंग प्रत्यारोपण इस बात की पुष्टि करता है कि उस समय भी अंग प्रत्यारोपण को एक अच्छा कर्म माना जाता था जिसके लिए कोई मनाही नही थी।।

#चरक संहिता तथा सुश्रुत संहिता में वर्णित इतिहास एवं आयुर्वेद के अवतरण के क्रम में अंग प्रत्यारोपण सर्जरी करके अंगों को ठीक करने का बार बार उल्लेख इस बात पर मुहर लगा देता है कि सनातन धर्म में परोपकार से बड़ा कोई पुण्य नही है और इसके लिए ईश्वर भी अनुमति देते है , और अंग दान करके किसी के जीवन मे खुसी भर देने से बड़ा परोपकार क्या हो सकता है ।।

#निष्कर्ष -- सनातन संस्कृति में कही भी अंगदान के लिए मना नही किया गया है एक भी उदाहरण ऐसा नही मिलता जो अंगदान के लिए मना करता हो अपितु मनुस्मृति में धन गौ भूमि के  अलावा शरीर दान करने के लिए भी बताया गया है , वेदों में परोपकार के लिए शरीर दान (अंगदान) की अनुमति दी गयी है इसके अतिरिक्त सभी धार्मिक शास्त्रों में अनुमति है ।।
हम अंग दान कर सकते है हमारे धर्म शास्त्र इसकी अनुमति देते है कोई मनाही नही है ।।

#विशेष -- दो तरह के अंगदान होते है एक होता है अंगदान और दूसरा होता है टिशू का दान। अंगदान के तहत आता है किडनी, लंग्स, लिवर, हार्ट, इंटेस्टाइन, पैनक्रियाज आदि तमाम अंदरूनी अंगों का दान। टिशू दान के तहत मुख्यत: आंखों, हड्डी और स्किन का दान आता है।ज्यादातर अंगदान तब होते हैं, जब इंसान की मौत हो जाती है लेकिन कुछ अंग और टिशू इंसान के जिंदा रहते भी दान किए जा सकते हैं।
मरने के बाद हमे जला दिया जाना है। कितना अच्छा हो कि मरने के बाद ये अंग किसी को जीवनदान दे सकें। अगर धार्मिक अंधविश्वास आपको ऐसा करने से रोकते हैं तो महान ऋषि दधीचि को याद कीजिए, जिन्होंने समाज की भलाई के लिए अपनी हड्ड़ियां तक दान कर दी थीं। उन जैसा धर्मज्ञ अगर ऐसा कर चुका है तो आम लोगों को तो डरने की जरूरत ही नहीं है। सामने आइए और खुलकर अंगदान कीजिए, इससे किसी को नई जिंदगी मिल सकती है।

#चित्र -- सुश्रुतसंहिता में वर्णित मानव अंग जिनका इलाज और अधिकांश का प्रत्यारोपण किया जा सकता था ।।

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=351859688613776&id=100013692425716

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