Saturday, 20 May 2017

सोनू की सुनी नहीं, नक्सलियों की वकालत: भारतीय मीडिया

*सोनू की सुनी नहीं, नक्सलियों की वकालत*

मीडिया और पत्रकारों की विश्वसनीयता दांव पर है। चयनित विषयों पर ही इनकी जुबान हिलती है
अभी हाल छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सली हमला हुआ। देश को अपने 25 बहादुर जवानों से हाथ धोना पड़ा। जितनी त्रासद यह घटना थी, उससे भी कहीं त्रासद वे लोग हैं जो नक्सलवाद का विष बोने में लगे हैं।

*अभी हमले की पूरी जानकारी भी सामने नहीं आई थी कि चैनलों के एक तबके ने इस बर्बर घटना पर ऐसी रिपोर्टिंग शुरू कर दी, जो नहीं होनी चाहिए। इंडिया टुडे टीवी के एक वरिष्ठ पत्रकार ने दिल्ली की कुख्यात नक्सल समर्थक महिला प्रोफेसर को अपने स्टुडियो में बैठाकर समस्या पर प्रतिक्रिया लेनी शुरू कर दी।*

ये वही प्रोफेसर हैं, जिन पर नक्सलियों का समर्थन करने से इनकार करने वाले वनवासी की हत्या तक का आरोप है। अब यह कहां तक उचित है कि जिन लोगों की विचारधारा के कारण जवानों को शिकार बनाया गया, उन्हीं को बैठाकर पक्ष रखने का मौका दिया जाए।

*हिंसा के रास्ते क्रांति का सपना देख रहे इन असामाजिक तत्वों को टीवी पर बैठाना और वह भी दर्शकों को बिना बताए कि इनकी पृष्ठभूमि क्या है, पत्रकारिता की कौन-सी आचार संहिता इसे मान्यता देती है?*

ठीक इसी तरह कई नक्सल समर्थक लगभग सभी चैनलों पर बड़ी बेशर्मी के साथ नक्सली बर्बरता का औचित्य समझाते देखे गए। यह एक तरह का महिमामंडन है जो बीते कई साल से बेरोकटोक जारी है।

*जब-जब ऐसे हमले होते हैं, यह बात सामने आती है कि लगभग सभी मीडिया समूहों में नक्सली समर्थक सक्रिय हैं। ये बड़ी सफाई से माओवादी हमलों और उनके कुकृत्यों को वाजिब ठहराते हैं।*

इस मामले में #एनडीटीवी का कोई तोड़ नहीं है। चैनल के संवाददाताओं ने बड़ी सफाई से इस आरोप को तथ्य की तरह पेश किया कि सुरक्षा बल वनवासी महिलाओं के साथ बलात्कार करते हैं।

*यह आरोप एक नहीं, कई बार झूठ साबित हो चुका है। चैनल के एक रिपोर्टर ने बार-बार यह दावा किया कि नक्सलियों ने वनवासी महिलाओं के साथ हुए 'कथित' बलात्कार का बदला लेने के लिए यह हमला किया था।*

यहां सवाल उठता है कि बिना सबूत सुरक्षा बलों को बदनाम करने की यह कोशिश कब तक बर्दाश्त लायक है? अगर कुछ चैनल और अखबार इस झूठ को बार-बार इस तरह से दिखाते रहेंगे तो हो सकता है कि कुछ लोगों को यह वाकई सच लगने लगे।

*देश के जवानों को बदनाम करने वाले पत्रकार तब अचानक बहुत सक्रिय हो जाते हैं जब कोई जवान खाने-पीने या उच्चाधिकारियों के खिलाफ खुली शिकायत करता है।*

बीएसएफ के जिस जवान ने सोशल मीडिया पर खराब खाने की शिकायत की थी। उस मामले में कुछ ऐसा ही गैरजिम्मेदाराना रवैया देखने को मिला। सुरक्षा बलों के कुछ अनुशासन और नियम-कायदे होते हैं।

*आम तौर पर जिम्मेदार सरकारें इसमें कभी दखलंदाजी नहीं करतीं। बीएसएफ ने उस जवान को अपनी अंदरूनी प्रक्रिया के जरिए नौकरी से निकालने का आदेश दिया।*

इस बात को मीडिया के एक जाने-पहचाने तबके ने ऐसे दिखाया मानो उसे सरकार ने नौकरी से निकाला हो। कम से कम सुरक्षा के मामलों में मीडिया को थोड़ी संवेदनशीलता बरतने की जरूरत है।

*जरूरी नहीं कि वे दावे सही हों जो मीडिया के जरिए किए जा रहे हों। वैसे भी न्यायालय में मामला जाएगा और उम्मीद है कि सचाई सामने आएगी। लेकिन अगर कोई चैनल या अखबार इस विषय पर फैसला सुनाता दिखे तो उसकी मंशा पर शक जरूर होगा।*

यही स्थिति सहारनपुर में हुई हिंसक घटनाओं की रिपोर्टिंग में देखने को मिली। वहां आंबेडकर जयंती की शोभायात्रा पर मुसलमानों ने पथराव किया। लेकिन दिल्ली के लगभग सभी अखबारों और चैनलों ने इस पहलू को सिरे सेे गायब कर दिया।

*इसके बजाय इस घटना की प्रतिक्रिया में जो हिंसा हुई, उसको ज्यादा प्रचारित किया गया। सहारनपुर की घटना के ईद-गिर्द ही मीडिया में एक ऐसा पूरा नेटवर्क सक्रिय था जिसने यूपी में दंगे भड़काने की कोशिश की।*

कई बड़े पत्रकारों और संपादकों ने सोशल मीडिया पर ऐसे अपुष्ट वीडियो फैलाने की कोशिश की, जिनसे यह साबित होता हो कि भाजपा की सरकार बनने के बाद यूपी में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है।

*पत्रकार होने के कारण लोग उनके फैलाए इन झूठे वीडियो पर यकीन भी कर लेते हैं। यह वही वर्ग है जिसे बंगाल के बीरभूम में हनुमान भक्तों पर हुए बर्बर लाठीचार्ज की खबर तक नहीं थी।*

लेकिन बांग्लादेश में किसी दाढ़ी वाले की पिटाई के वीडियो को ये लोग उत्तर प्रदेश का बताकर नफरत फैलाने की कोशिश करते रहते हैं।

*उधर गायक सोनू निगम के खिलाफ फतवे और उन्हें नुकसान पहुंचाने के बदले पुरस्कार की घोषणाओं की बाढ़ आई हुई है। मीडिया इन सभी खबरों को सेंसर कर रहा है।*

यह बात सही है कि ऐसे गैरजिम्मेदार तत्वों को ज्यादा तवज्जो नहीं देनी चाहिए, लेकिन सोचने की बात यह है कि जब केरल या बंगाल के मुख्यमंत्री को लेकर कोई छोटा-मोटा नेता भी ऐसा कोई बयान दे देता है तो उसे आखिर चैनलों और अखबारों में इतना प्रचार कैसे मिल जाता है?

*दरअसल, सेकुलर मीडिया का बड़ा हिस्सा आज इस तरह के तमाम विरोधाभासों में घिरा दिखाई देता है। ऐसे उदाहरण आए दिन देखने को मिलते हैं।*

         ☀।। *वन्दे मातरम* ।।☀

Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1678475215782741&id=100008608351394

ऐसा अय्याश था अकबर

ऐसा अय्याश था अकबर ????

भारत के ज्ञात इतिहास में कामुक वृत्ति के दो चरित्र मिलते हैं। एक मांडव का गयासुद्दीन और दूसरा अकबर। इनमें भी अकबर ने गयासुद्दीन को बहुत पीछे छोड़ दिया। गयासुद्दीन कामुक था किंतु अपनी काम-पिपासा के लिए वह अपने मालवा राज्य की हिन्दू प्रजा को ही सताता था। जहां कहीं किसी हिन्दू के घर में सुंदर स्त्री की खबर मिली नहीं कि उसके घुड़सवार लड़की को लेने उस हिन्दू के द्वार पर जा धमकते थे। एक बार मांडव के दुर्ग में पहुंचने के बाद लड़की की मुक्ति असंभव थी। हालांकि गयासुद्दीन ने मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों को बख्श दिया।

लेकिन, अकबर ने तो मानवता की सारी मर्यादाएं तोड़ दी थीं। क्या शत्रु, क्या मित्र, क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या प्रजा, क्या दरबारी, किसी की सुंदर बहन-बेटी इस ‘कामी कीड़े’ की वासना से नहीं बच पाई थी।

सारा देश गुलाम हो चुका था। विजित राज्यों से सुंदर महिलाएं लूट लाने का सिलसिला बंद हो गया था। पूरा भारत अकबर की प्रजा बन चुकी थी। मुस्लिम प्रजा के साथ-साथ हिन्दुओं ने भी परदा प्रथा को अपना लिया था। इस कारण बुरके और घूंघट में छिपी सुंदर स्त्रियों को ढूंढ निकालना आसान नहीं था। दरबारियों के जनानखाने सुंदर हिन्दू, मुसलमान महिलाओं से भरे पड़े थे। दरबारियों की कन्याएं भी जवान हो रही थीं, किंतु परदे की ओट में थीं। धूर्त अकबर ने अपने दरबारियों और प्रजा की सुंदर महिलाओं को खोजने का एक आसान उपाय निकाला। उसने राजधानी में मीना बाजार लगाने की परंपरा डाली।

अकबर का मीना बाजार : आगरे के किले के सामने मैदान में मीना बाजार लगना प्रारंभ हुआ। शुक्रवार को पुरुष वर्ग तो पांच बार की नमाज में व्यस्त रहता था। इस दिन किले में और किले के आसपास पुरुषों का प्रवेश वर्जित था। सारे मैदान में महिलाएं दुकान सजाकर बैठती थीं और महिलाएं ही ग्राहक बनकर आ सकती थीं।

अकबर का आदेश था कि प्रत्येक दरबारी अपनी महिलाओं को दुकान लगाने के लिए भेजे। नगर के प्रत्येक दुकानदार को भी हुक्म था कि उनके परिवार की महिलाएं उनकी वस्तुओं की दुकान लगाएं। इस आदेश में चूक क्षम्य नहीं थीं। किसी सेठ और दरबारी की मीना बाजार में दुकान का न लगाना अकबर का कोपभाजन बनना था।

धीरे-धीरे मीना बाजार जमने लगा। निर्भय बेपरदा महिलाएं खरीद-फरोख्त को घूमने लगीं। अकबर की कूटनियां और स्वयं अकबर स्त्री वेश में मीना बाजार में घूमने लगे। प्रति सप्ताह किसी सेठ या दरबारी की सुंदर महिला पर गाज गिरती। वह अकबर की नजरों में चढ़ जाती अकबर की कूटनियां किसी भी प्रकार उसे किले में पहुंचा देतीं।

कुछ तो लोकलाज का भय, कुछ पति के प्राणों का मोह, लुटी-पिटी महिलाओं का मुंह बंद कर देता। साथ ही अन्य महिलाओं द्वारा यदि पुरुषों तक बात पहुंचती भी तो मौत के डर से मन-मसोसकर रह जाते। अस्मतें लुटती रही और मीना बाजार चलता रहा।

कभी-कभी कोई अत्यंत सुंदर स्त्री अकबर को भा जाती और वह उसके घर वालों के संदेश भिजवा देता कि डोला हरम में भिजवा दें। यदि स्त्री विवाहित हुई तो उसके पति को तलाक के लिए बाध्य करता। इस प्रकार कई दरबारियों की कन्याएं और विवाहिताएं आगरे के किले में लाई गईं।

अकबर का आक्रमण : इस समय अकबर की उम्र 22 वर्ष थी। नित नई स्त्रियों का भोग निरंतर उसकी वासना को बढ़ा रहा था। उच्च वंश के शाह अबुल माली और मिर्जा शर्फुद्दीन हुसैन जैसे लोगों की महिलाएं भी अकबर की वासना की शिकार बनी थीं। इन्हीं दिनों एक शेख की पत्नी अकबर की निगाह में चढ़ गई। अकबर ने शेख पर दबाव डाला कि अपनी पत्नी को तलाक दे दे ताकि मैं उसे अपने हरम में डाल सकूं। न तो शेख अपनी पत्नी को छोड़ना चाहता था, न उसकी पत्नी ही इस पशु के पास जाना चाहती थी।

आगरा के और भी 10-12 परिवारों की महिलाओं को अकबर अपने हरम में डालना चाहता था। आखिर आगरा के चुनिंदा मुसलमान दर‍बारियों की एक गुप्त बैठक हुई जिसमें अकबर की हत्या की योजना बनाई गई। शर्फुद्दीन का एक हिन्दू गुलाम था फुलाद, बाड़मेर का रहने वाला, ऊंचा-पूरा, कद्दावर जवान आबूमाली के मित्र शर्फुद्दीन ने उसे अपनी गुलामी से मुक्त किया और बदले में अकबर को मार डालने का वचन लिया।

सदा अंगरक्षकों से घिरे रहने वाले अकबर को तलवार या भाले से मारना संभव नहीं था। बंदूकें उस समय बारूद की एक नाल या दो नाल की हुआ करती थीं, जिनसे एक या दो बार ही फायर किया जा सकता था। तब निर्णय हुआ कि तीर से अकबर को मारा जाए। तीर भी अधिक दूरी से मारना था, इस कारण मजबूत कमान की जरूरत पड़ी ताकि तीर शरीर के भीतर तक पैठ सकें। फुलाद ने तीरंदाजी के अभ्यास में कई धनुष तोड़ डाले, फिर एक लोहे का बना कन्धहारी धनुष उसे दिया गया, लोहे के धनुष से अभ्यास के बाद घातक दल अवसर की ताक में रहने लगा।

आगरा में तो काम बना नहीं। पता लगा जनवरी 1564 में अकबर शेख निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर जियारत के लिए जाना चाहता है। घातक दल के लोग जनवरी के प्रथम सप्ताह में दिल्ली पहुंच गए और उपयुक्त स्थान की तलाश कर घात लगाकर बैठ गए। औलिया की दरगाह के मार्ग में माहम अनगा द्वारा निर्मित एक दुमंजिला मदरसा भी था। इसी मदरसे की छत पर फुलाद तीरों का तरकश लेकर जा बैठा। माहम अनगा के पु‍त्र आदम खां को किले की दीवार से गिराकर अकबर ने मरवाया था और पुत्र के गम में कुछ दिन बाद अनगा भी मर गई थी। अनगा का परिवार भी अकबर के खून का प्यासा था और हत्या-योजना में शामिल था।

11 जनवरी 1564 को अकबर ने औलिया की दरगाह पर जा दर्शन किए। अकबर दरगाह से लौट रहा था। उसके अंगरक्षक बिखरे हुए थे। कुछ तो साथ थे कुछ आगे बढ़ गए थे और कुछ दरगाह में प्रार्थना के लिए रुके थे। अकबर जैसे ही मदरसे के नीचे आया, एक सनसनाता तीर आकर उसका कंधा बिंध गया। अकबर जोर से चीख पड़ा। अंगरक्षकों ने उसे अपनी ढालों की ओट में ले लिया और तीर की दिशा में निगाहें दौड़ाईं। देखा तो मदरसे की छत से ए‍क विशालकाल व्यक्ति तीर बरसा रहा है। सन्नाते तीर अंगरक्षकों की ढालों से टकरा रहे थे। लोग मदरसे की ओर तलवारें सूंत दौड़ पड़े। फुलाद के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए।

अंगरक्षक घुड़सवारों ने अकबर की सवारी के मार्ग में आने वाले सभी बाजार बंद करवा दिए। प्रत्येक घर के खिड़की-दरवाजे बंद करवा दिए गए। घरों की छतों पर मुगल निशानेबाज बैठा दिए गए। इस प्रकार पूर्ण सुरक्षा के साथ अकबर दिल्ली के महल में लाया गया। तीर काफी भीतर तक धंस गया था और लगातार खून बह रहा था। कुशल जर्राहों (सर्जन) ने कंधे से तीर निकला। दस दिन तक हकीमों से इलाज करवा अकबर पालकी में बैठ आगरा लौटा। गहरे घाव के कारण वह घोड़े की सवारी के अयोग्य था और हाथी की सवारी में निशानेबाजों का खतरा था। (स्मिथ पृष्ठ 61)

मौत के भय ने अकबर को झकझोर दिया था। उसने बलात लोगों की पत्नियां छीनना तो बंद कर दिया, लेकिन मीना बाजार चलता रहा और महिलाओं की आबरू लुटती रही। फर्क इतना था कि औरतें हमेशा के लिए हरम में रोकी नहीं जाती थीं। एकआध दिन या कुछ घंटों के बाद छोड़ दी जाती थीं।

किरण देवी की कटार : मीना बाजार के प्रवेश द्वार पर दुकान लगाने वाली महिलाओं के नाम वंश दर्ज होते थे। इसी प्रकार बाजार में खरीद के लिए प्रवेश करने वाली महिलाओं के नाम-परिवार दर्ज होते थे। इसी प्रकार बाजार में खरीद के लिए प्रवेश करने वाली महिलाओं के नाम-परिवार लिखे जाते थे।

अकबर ने देखा कि बीकानेर के राव कल्याणमल की बूढ़ी पत्नी नाममात्र के लिए दुकान लगाकर बैठती है, किंतु परिवार की सुंदर जवान औरतें आज तक मीना बाजार में नहीं आईं। वैसे राव कल्याणमल ने प्राणों के भय से अपनी कन्या अकबर को ब्याह दी थी किंतु नित नई स्त्रियों को भोगने की लालसा से अकबर ने राव कल्याणमल को संदेश भेजा कि आपके परिवार की महिलाएं एक बार भी मीना बाजार में खरीदी के लिए नहीं आई हैं, यह ठीक नहीं है।

लाचार हो राव कल्याणमल ने अपनी पत्नी से परामर्श किया व शुक्रवार को अपने बड़े बेटे रायसिंह की पत्नी को ‍दासियों के साथ मीना बाजार में भेजा। अनिष्ट की आशंका से बड़ी कंवरानी कांप उठी। रोती-सिसकती जिठानी की कातर आंखें आशा की अंतिम किरण की ओर उठीं, वह थी देवरानी किरण कुंवर। रणबांकुरे, सिसौदिया शक्तिसिंह की बेटी। हिन्दू सूर्य नर-नाहर महाराणा प्रताप की भतीजी। हिन्दू गौरव पृथ्वीसिंह राठौर की पत्नी।

कंवरानी सा.! आज कौन बचाएगा मुझे? लगता है आज जीवन का अंतिम दिन आ गया है। रायसिंह की पत्नी ने किरण कुंवर से कहा।

‘ठहरो भाभी सा. अभी आती हूं।’ कहकर किरण कुंवर महल में गई और तीखी कटारी जूड़े में खोंसती बाहर आ गई। ‘आप अकेली नहीं मरेंगी भाभी सा.! यह सिसौदियों की बेटी भी आपका साथ देगी।’

मीना बाजार के प्रवेश द्वार पर जैसे ही दोनों राठौर वधुओं ने बीकानेर राजपरिवार का नाम लिखाया, द्वार पर खड़ी कूटनियों ने अकबर को सूचना भिजवा दी। पृथ्वीसिंह की पत्नी किरण कुंवर का नाम सुनते ही अकबर खुशी से उछल पड़ा। जिस सिसौदिया घराने का डोला आज तक दिल्ली-आगरा के किसी बादशाह के हरम में नहीं आया, वही सिसौदिया की बेटी मीना बाजार में आ चुकी है।

अकबर ने दूर से देखा और किरण कुंवर के रूप को मुग्ध हो देखता ही रह गया। अब किरण कुंवर को मीना बाजार की किसी बंद छोलदारी (तंबू) से किले में लाने की जुगत भिड़ाई गई। एक मुगल दासी ने जुहार अर्ज की और कहा कि बीकानेर वाली बेगम साहिबा, जो इनकी ननद हैं, अपनी भाभियों को याद कर रही हैं।

दोनों देवरानी-जिठानी एक-दूसरे की ओर प्रश्नभरी दृष्टि से देखने लगीं। तब किरण कुंवर ने कहा- ‘भाभी सा.! आप यहीं रुके, मैं अकेली जाती हूं। मेरी ओर से निश्चिंत रहें। मैं जौहर और शस्त्र से खेलने वाले परिवार की बेटी हूं। यह तुर्क मेरे जीवित शरीर को नहीं पा सकेगा’ , कहकर किरण कुंवर किले के द्वार की ओर चल दी।

किले के द्वार पर तातार औरतें पहरा दे रही थीं। आज कोई पुरुष सैनिक किले में नहीं था। शाही खानदान के पुरुष भी या तो आमोद-प्रमोद के लिए बाहर चले जाते थे या किले के भीतरी कक्षों में रहते थे। किले के द्वार से आगे बढ़ किरण सुनसान मार्ग पर पहुंची। आगे-आगे चलती मुगल दासी व किरण कक्ष में गई ही थी कि पास के द्वार से निकल अकबर ने मार्ग रोक लिया। मुगल दासी शीघ्रता से भाग गई। अकबर शराब पिये था। किरण कुंवर के सामने तीन मार्ग थे। सम्मानपूर्ण मृत्यु या प्रतिरोधरहित रहकर अपनी इज्जत लुटवा लेना या जूड़े में खुंसी कटार लेकर अकबर को समाप्त कर देना।

क्षणमात्र में किरण ने निर्णय ले लिया और भूखी शेरनी की तरह अकबर पर टूट पड़ी। अकबर के लिए यह अप्रत्याशित था। वह कुछ सोच सके, इसके पूर्व ही वीरांगना किरण ने उसे भूमि पर दे पटका और छाती पर जा बैठी और लगी अकबर के मुंह पर घूंसों का प्रहार करने। अकबर का नशा काफूर हो गया। घूंसों की बौछार थमते ही अकबर ने देखा क्रोध से फुंफकारती किरण कुंवर ने जूड़े में खुंसी कटार निकाली, एक हाथ से अकबर के बाल पकड़े और कटार वाला हाथ ऊपर उठाया। साक्षात मौत अकबर के सामने नाचने लगी। हजारों महिलाओं की सतीत्व को लूटने वाला नरपिशाच कांग्रेसियों द्वारा कहने जाने वाला तथाकथित महावीर महान अकबर दोनों हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा।

‘ओ देवी! मुझे माफ करो, मेरी जान बख्श दो, मैं तुम्हारी गाय हूं। मुझसे भारी गलती हो गई, अब कभी ऐसे पाप कर्म नहीं करूंगा।’

किरण का हाथ रुक गया। वह विचार करने लगी। अकबर तो मर जाएगा, किंतु प्रतिशोध की ज्वाला में जेल में बंद मेरे पति मारे जाएंगे। मुगल तख्त खाली नहीं रहेगा, शहजादा सलीम बादशाह बन जाएगा। बदले की आग में मुसलमान सैनिक आगरे के हजारों हिन्दुओं को तबाह कर देंगे। हजारों हिन्दू महिलाओं का अपहरण होगा। मैं अकेली तख्त तो नहीं पलट सकती, हां परिस्थिति में सुधार कर सकूंगी। उसने अकबर के गले पर कटार रख दी और कहा मैं तुझे माफ कर सकती हूं।

एक शर्त पर कि कुरान की कसम खा कि आज के बाद मीना बाजार नहीं लगेगा। अब किसी भी अबला की इज्जत पर आंच नहीं आएगी। अकबर ने कुरान की कसम खाकर सब स्वीकार‍ किया। किरण कुंवर किले से बाहर निकल आईं और उस दिन के बाद आगरा में फिर मीना बाजार नहीं लगा। (टाड राजस्थान)

हरम की बेगमों का वितरण : अपनी अनियंत्रित काम-वासनाओं के स्वभाव के कारण अकबर के प्राण दो बार संकट में पड़ चुके थे। धूर्त अकबर समझ गया कि दो बार तो जैसे-तैसे बच गया। यदि जान बचानी है तो आगे से यह सब बंद करना होगा। अत: मीना बाजार बंद होने के साथ-साथ अकबर के स्त्री-संग्रह की वृत्ति पर भी रोक लग गई। लेकिन अकबर के हरम में असंतोष के ज्वालामुखी आग उगलने को तैयार थे।

वे महिलाएं जिनके पिता-पति और भाइयों की हत्या कर अकबर उन्हें उठा लाया था, उनसे अकबर के प्राण संकट में पड़ सकते थे। हरम में आते-जाते, विलास कक्ष में रात बिताते, हरम की महिलाओं को अपनी सेवा के लिए बलात बाध्य करते अकबर को उनके तेवर देखने को मिलते रहते थे। अकबर ने तुरंत निर्णय लिया और एक दिन दरबार में अपने मुस्लिम सामंतों, दरबारियों और नवरत्नों को एकत्र कर हरम की पांच हजार औरतें उनमें वितरित कर दीं।

मोंसरात (गोवा का पादरी) कहता है कि अकबर ने मात्र एक पत्नी रखी थी, लेकिन यह सत्य नहीं है। मानसिंह की बुआ के साथ अकबर के हरम में अपने गुरु बैरम खां की पत्नी खानेजमां और उसके भाई बहादुर खां की पत्नी और आदम खां की पत्नी की उसके हरम में मौजूद थीं। बदायूंनी के अनुसार उसने हरम की 5,000 औरतों में से सिर्फ 16 औरतें चुनकर रख लीं, बाकी अपने दरबारियों में बांट दीं।

‘आईने अकबरी’ के अनुसार अकबर कहता है कि यदि मुझमें पहले बुद्धि होती, तो मैं अपने राज्य की किसी स्त्री को जबरन हरम में नहीं डालता। (स्मिथ पृष्ठ 270)

यह कैसा महान? : परिजनों की हत्या कर असहाय अबलाओं को बलात हरम में डालने वाला क्या महान हो सकता है? उनके परिवारों से छीनकर एकत्र की गईं महिलाओं को निर्जीव वस्तु या पशुओं की तरह दरबारियों में वितरित कर देने वाला क्या महान हो सकता है? इज्जत के साथ अपनी गृहस्थी में सुख-शांति से रह रहीं 5000 महिलाओं को इस वासना के कीड़े ने वेश्या बना डाला। फिर भी कहा जाता है अकबर महान।

#आर्यवर्त
Courtesy:
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Vishnu as Mohini, Halebeedu, Karnataka

Mohini Halebeedu
Imagine what Bharatha Varsha must have been like before Ashoka. Overflowing with truth, virtue and beauty. Then came Ashoka.
And then, the resurgence of Truth, Virtue and Beauty was demolished by the Moslems, followed through by the Indian Republic.
Belur is a Shiva Temple that was ransacked by the Moslems. Halebeedu is a Vishnu temples that was saved from the Moslems as it was covered with sand as camouflage. Belur is the far more exquisite and lovelier temple. It was ruined before it could be completed and consecrated. A day trip from bangalor (starting pre dawn and finishing post twilight), There is Toll Highway in a reasonable state of repiar al the way to Hassan, the old Hoysala Capital and present District HQ, which is just some 50 KMs away from the destination.
Here is Mohini at Halebeedu. An avatara of Vishnu who in the form of a bewitchingly beautful damsel fooled the Asuras (all but Rahu and Kethu) into having none while she danced her way through distributing the Amrutha,the nectar of immortality, that had been churned from the Milky Way with the Mandara Mountain as a Churn and Vasuki the principal snake of Vishnu Loka as a rope, exclusively to the Devas, here depicted at the Bangkok airport; The by product, the extremely noxious Halala which threatened to destroy all creation was swallowed by Shiva to contain it and remained locked in his throat as his consort held him by the throat to prevent the poison from descending further.
This may be the earliest known description of a Mega Project in this planet. Rest assured that India's Government and Public Works Department are not descended from Manushyas, Devas or Asuras going by their activities and creations. Which means that they must be Rakshasas?

Courtesy: S Suchindranath Aiyer

Friday, 19 May 2017

The myth of China controlling water of Brahmaputra and Indus

(1)The myth of China controlling water of Brahmaputra and Indus.

(2)Whenever there are talks of India withdrawing from Indus Water Treaty and diverting upper three rivers, or even talk of India utilizing

(3)its share fully; usual suspects in all three countries crawl out of woodwork stating that China would do same with India and dry up

(4)Indian rivers. This myth is pure fearmongering with zero facts to support it.Reasons being:

(5) A Very small proportion of water in transboundary rivers of India come from Tibet.Tibet is climatologically a barren cold plateau.

(6) It receives between 4 to 12 inches of precipitation depending on time and place. Water efflux in these rivers ,from Tibet, is very low.

(7)This is not just a theoretical point.It is supported by hydrological data.(page29)iucn.org/sites/dev/file… … (pics attached).

(8)Brahmaputra enters India just after Tsela Dzong. After this point it it goes into 16.8m/km steep fall before entering India, and creating

(9) A gorge in the process. Of the 19800 Cumecs average discharge of Brahmaputra, water from China account for less than 500 Cumecs.

(10)There is not much water for China to divert.

(b)Geography:Tibet is intermontane high altitude plateau between Himalaya and Kulun shan.

(11)Before Tibetan railway, only way to access Tibet by vehicles was Highway219 which passes through Askai Chin.

(12)Apart from that Tibet is formed by flexing of Eurasian plate upward due to bending force exerted by Indian plate on Eurasian plate.

(13)This has resulted in a topography where central Tibet has highest average elevation of the plateau. Any water diversion project,

(14) would not only have to cut through mountains or use existing rivers, but would also has to flow against gradient ie pumped.

(15)These two factor make diversion of water of Brahmaputra, inconsequential. I have not even talked about Indus,because just north of Indus

(16)Gangiste mountain, through which China has to tunnel to transfer whatever measly amount of water it could transfer.

(17)So next time any pakistani or leftie play "we/Our massa Cheen could stop Indian water",point these facts to him and shut him up.The end.

Hence India has plans to divert Chenab on a small scale, but it has no plans to divert Jhelum or Indus.
Indus could not be diverted at all because for that, we would have to tunnel through multiple mountain ranges ( Zanskar range, Great. Himalayan range, Pir Panjal, Shiwalik) of Himalayan mountain system. Neither we, nor China, could divert Indus.

@handle_anonymous

क्या आप जानते हैं कि सेक्यूलर नामक जीव कैसे तैयार किया जाता है???

क्या आप जानते हैं कि सेक्यूलर नामक जीव कैसे तैयार किया जाता है???

दरअसल हम हिन्दुओं का इतिहास काफी गौरवशाली है और, ये ईसाई तथा इस्लाम-फिस्लाम हमारे गौरवशाली हिन्दू धर्म के सामने "धूल बराबर भी नहीं" हैं। इसीलिए सेक्युलरों और देश के गद्दारों द्वारा ये महसूस किया गया कि जब तक हिन्दू अपने गौरवशाली इतिहास से अवगत रहेंगे तक तक हिन्दुओं को सेक्यूलर नामक नपुंसक बनाना नितांत असंभव है!

इसीलिए...ऐसे गद्दारों ने हमारे स्कूलों के पाठयक्रम को अपना सबसे मजबूत हथियार बनाया ताकि हम हिन्दुओं के मन में बचपन से ही हीन भावना भरी जा सके और, धीरे धीरे सेक्यूलर नामक नपुंसक हिन्दू में परिवर्तित कर दिया जाए!

इस तरह करते-करते आज स्थिति इतनी दयनीय हो गयी है कि हिन्दू संस्कारों , और धर्म की बात करने पर विधवा प्रलाप करने वाले तथा, बात-बात पर छाती कूटने वाले सेक्यूलर लोग एवं मीडिया इस बात पर कभी भी छाती कूटते नजर नहीं आते हैं ..... जब हमारे छक्का मनमोहन सिंह विदेश के कांफ्रेंस में जाकर मंच पर यह बयान देते हैं कि "हम भारतीय तो पहले जंगली थे और, हम अंग्रेजों के बहुत आभारी हैं, जिन्होंने हमें गुलाम बनाकर हमें सभ्यता सिखलाई!"

आप खुद ही देखें कि..... हरामी सेक्युलरों और देश के गद्दारों द्वारा हमारे स्कूलों में कैसी शिक्षा दी जा रही है और, कैसे धीरे-धीरे उन्हें हिंदुत्व से दूर करते हुए उनमे हीन भावना भर कर उन्हें सेकुलर नामक नपुंसक जीव बनाया जा रहा है!

क्या कोई सेक्यूलर या बुद्धिजीवी मुझे इन बातों का तर्कसंगत जबाब दे दे सकता है कि ऐसा क्यों है???

1. जो जीता वही चंद्रगुप्त ना होकर... जो जीता वही सिकन्दर "कैसे" हो गया???
(जबकि ये बात सभी जानते हैं कि सिकंदर को मौर्य ने बहुत ही बुरी तरह परास्त किया था... जिस कारण , सिकंदर ने मित्रता के तौर पर अपने सेनापति सेल्युकश कि बेटी की शादी चन्द्रगुप्त से की थी)

2. महाराणा प्रताप "महान" ना होकर अकबर "महान" कैसे हो गया??
(जबकि, अकबर अपने हरम में हजारों हिन्दू लड़कियों को रखैल के तौर पर रखता था.. जबकि.. महाराणा प्रताप ने अकेले दम पर उस अकबर के लाखों की सेना को घुटनों पर ला दिया था)

3. सवाई जय सिंह को "महान वास्तुप्रिय" राजा ना कहकर शाहजहाँ को यह उपाधि किस आधार मिली??? जबकि... साक्ष्य बताते हैं कि जयपुर के हवा महल से लेकर तेजोमहालिया {ताजमहल} तक .... महाराजा जय सिंह ने ही बनवाया था।

4. जो स्थान महान मराठा क्षत्रप वीर शिवाजी को मिलना चाहिये वो.... क्रूर और आतंकी औरंगजेब को क्यों और कैसे मिल गया ????

5. स्वामी विवेकानंद और आचार्य चाणक्य की जगह गांधी को महात्मा बोलकर .... हिंदुस्तान पर क्यों थोप दिया गया????

6. तेजोमहालय - ताजमहल, लालकोट- लाल किला, फतेहपुर सीकरी का देव महल- बुलन्द दरवाजा...एवं सुप्रसिद्घ गणितज्ञ वराह मिहिर की मिहिरावली (महरौली) स्थित वेधशाला- कुतुबमीनार क्यों और कैसे हो गया???

7. यहाँ तक कि..... राष्ट्रीय गान भी संस्कृत के वन्दे मातरम की जगह गुलामी का प्रतीक जन-गण-मन हो गया  कैसे और क्यों हो गया?????

8. और तो और हमारे अराध्य ... भगवान् राम.. कृष्ण... तो इतिहास से कहाँ और कब गायब हो गये ... पता ही नहीं चला... आखिर कैसे ????

9. हद तो यह कि हमारे अराध्य भगवान राम की जन्मभूमि पावन अयोध्या भी कब और कैसे विवादित बना दी गयी... हमें पता तक नहीं चला!

कहने का मतलब ये है कि हमारे दुश्मन सिर्फ बाबर , गजनवी , लंगड़ा तैमूरलंग या आज के दढ़ियल मुल्ले ही नहीं हैं बल्कि आज के सफेदपोश सेक्यूलर भी हमारे उतने ही बड़े दुश्मन हैं जिन्होंने हम हिन्दुओं के अन्दर हीन भावना भर  हिन्दुओं को सेक्यूलर नामक नपुंसक बनाने का बीड़ा उठा रखा है!

हमें पहचाना होगा ऐसे दुश्मनों को क्योंकि ये वही लोग है जो हर हिन्दू संस्कृति को भगवा आतंकवाद का नारा देते हैं और, नरेन्द्र मोदी जैसे देशभक्त को आगे बढ़ने से रोकना चाहते हैं ताकि उनके नापाक मंसूबे हमेशा पूरे होते रहें!

लेकिन चाहे कुछ भी हो जाए हमलोग उनके ऐसे नापाक मंसूबों पर पानी फेरते हुए हिन्दुस्थान को हिन्दुराष्ट्र बना कर ही रहेंगे!

जय हिन्दू राष्ट्र

जय महाकाल!!!

साभार: हिन्दू जागरण

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