Saturday 16 December 2017

ब्राह्मण का एकादश परिचय (भाग-३) पूर्ण

#ब्राम्हण -- #शेष_भाग

संयम, संतोष, ज्ञान और करुणा की जीवन-साधना के द्वारा कोई भी मानव-मानवी व्यापक अर्थों वाला गुणवाचक ब्राह्मण बन सकता है।।

#चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता की थी एक अखण्ड भारत की स्थापना करने में। भारत का सम्राट बनने के बाद, चन्द्रगुप्त ,चाणक्य के चरणों में गिर गया और उसने उसे अपना राजगुरु बनकर महलों की सुविधाएँ भोगते हुए, अपने पास बने रहने को कहा। चाणक्य का उत्तर था: ‘मैं तो ब्राह्मण हूँ, मेरा कर्म है शिष्यों को शिक्षा देना और भिक्षा से जीवनयापन करना , ये होता है ब्राम्हण ।।

‘मन की निर्मलता, आत्मसंयम, तप यानी कठिन परिस्थितियों को स्वीकारते हुए जीना, आचरण और विचार की शुद्धता, धैर्य या सहनशीलता, सरलता, निष्कपटता या ईमानदारी, ज्ञान-विज्ञान और जीवन-धर्म में श्रद्धा ये सब ‘ब्राह्मण’ होने की शर्तें या पहचान हैं’ (गीता, 18/42)।।

पिछली 2 पोस्ट में आप सभी को ब्राम्हण एकादश परिचय में गोत्र,  प्रवर, वेद, उपवेद, शाखा, सूत्र और छन्द के विषय मे हरसंभव विस्तार से जानकारी देने की पूरी कोशिश की शेष की जानकारी निम्न दे रहा हूँ ।।

#शिखा --
अपनी कुल परम्परा के अनुरूप शिखा को दक्षिणावर्त अथवा वामावार्त्त रूप से बांधने  की परम्परा शिखा कहलाती है ।शिखा में जो ग्रंथि देता वह बाईं तरफ घुमा कर और कोई दाहिनी तरफ। प्राय: यही नियम था कि सामवेदियों की बाईं शिखा और यजुर्वेदियों की दाहिनी शिखा कही कही इसमे भी भेद मिलता है ।।
परम्परागत रूप से हर ब्राम्हण को शिखा धारण करनी चाहिए ( इसका अपना वैज्ञानिक लाभ है) लेकिन आज कल इसे धारण करने वाले को सिर्फ कर्मकांडी ही माना जाता है ना तो अमूमन किसी को इसका लाभ पता है ना कोई रखना चाहता है ।।

#पाद -
अपने-अपने गोत्रानुसार लोग अपना पाद प्रक्षालन करते हैं । ये भी अपनी एक पहचान बनाने के लिए ही, बनाया गया एक नियम है । अपने -अपने गोत्र के अनुसार ब्राह्मण लोग पहले अपना बायाँ पैर धोते, तो किसी गोत्र के लोग पहले अपना दायाँ पैर धोते, इसे ही पाद कहते हैं ।सामवेदियों का बायाँ पाद और  इसी प्रकार यजुर्वेदियों की दाहिना पाद माना जाता है ।।

#देवता -
प्रत्येक वेद या शाखा का पठन, पाठन करने वाले किसी विशेष देव की आराधना करते है वही उनका कुल देवता (गणेश , विष्णु, शिव , दुर्गा ,सूर्य इत्यादि पञ्च देवों में से कोई एक) उनके आराध्‍य देव है । इसी प्रकार कुल के भी  संरक्षक  देवता या कुलदेवी होती हें । इनका ज्ञान कुल के वयोवृद्ध  अग्रजों (माता-पिता आदि ) के द्वारा अगली पीड़ी को दिया जाता  है । एक कुलीन ब्राह्मण को अपने तीनों प्रकार के देवताओं का बोध  तो अवश्य ही  होना चाहिए -

(1) इष्ट देवता अथवा इष्ट देवी ।
(2) कुल देवता अथवा कुल देवी ।
(2) ग्राम देवता अथवा ग्राम देवी ।

#द्वार -
यज्ञ मण्डप में अध्वर्यु (यज्ञकर्त्ता )  जिस दिशा अथवा द्वार से प्रवेश करता है अथवा जिस दिशा में बैठता है, वही उस गोत्र वालों की द्वार होता है।
यज्ञ मंडप तैयार करने की कुल 39 विधाएं है और हर गोत्र के ब्राम्हण के प्रवेश के लिए अलग द्वार होता है

#विशेष - पिछली 2 पोस्ट और आज की पोस्ट मिलाकर ब्राम्हण का पूर्ण एकादश परिचय बनाती है जो हर ब्राम्हण को जानकारी रखनी चाहिए ही चाहिए ।।

हर सनातनी के जेनेटिक मेटेरियल बहोत खास है क्योंकि पीढ़ी दर पीढ़ी उनका जेनेटिक सेपरेशन किया गया है  , भारत के किसी भी व्यक्ति को आप विश्व के किसी भी परिस्थितिक तंत्र में रख दीजिए वो सर्वाइव कर लेगा अन्य के साथ ऐसा नही है ।।आप आंकड़े निकाल के देख सकते है आपको सनातनियों में वंशानुगत बीमारियों का नाम भी नही मिलेगा ।।

#नोट - 
गोत्र के अनुसार आप अपने बच्चों का कैरियर निर्धारित कीजिये यकीन मानिए बच्चा नई ऊंचाई को छूएगा कैसे करे गोत्र के अनुसार कैरियर के निर्धारण ये आगे बताऊंगा ।।

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=341947272938351&id=100013692425716

ब्राह्मण का एकादश परिचय (भाग-२)

#ब्राम्हण - #गतांक_से_आगे --

ब्राम्हण जन्म से श्रेष्ठ या कर्म से ये सवाल जब भी करो एक बहस शुरू हो जाती है , मैं हमेसा कर्म को प्रधान मानता हूँ जन्म को नही आप मे से कुछ लोग जन्म को वरीयता देते है लेकिन कल का मेरा सवाल की आपका एकादश परिचय क्या है बहोत से जन्म प्रधान को वरीयता देने वालो को अनुत्तरित कर गया , यदि आप जन्म को वरीयता देते है तो आपको खुद के जन्म कुल का पूरा भान होना चाहिए यदि नही है तो आप खुद को श्रेष्ठ जन्म के आधार पर बोलना बन्द कीजिये ।।

गोत्र , प्रवर और वेद इसके बारे मे आपको कल बताया था बाकी अन्य के बारे में आइये देखते है --

#उपवेद --
प्रत्येक वेद  से  सम्बद्ध ब्राम्हण को  विशिष्ट  उपवेद  का  भी  ज्ञान  होना  चाहिये  । वेदों की सहायता के लिए कलाकौशल का प्रचार कर संसार की सामाजिक उन्‍नति का मार्ग बतलाने वाले शास्‍त्र का नाम उपवेद है।उपवेद उन सब विद्याओं को कहा जाता है, जो वेद के ही अन्तर्गत हों। यह वेद के ही आश्रित तथा वेदों से ही निकले होते हैं। जैसे-

#धनुर्वेद - विश्वामित्र ने इसे यजुर्वेद से निकला था।
#गन्धर्ववेद - भरतमुनि ने इसे सामवेद से निकाला था।
#आयुर्वेद - धन्वंतरि ने इसे ऋग्वेद से इसे निकाला था।
#स्थापत्य - विश्वकर्मा ने अथर्ववेद से इसे निकला था।

हर गोत्र का अलग अलग उपवेद होता है

#शाखा --
वेदो के विस्तार के साथ ऋषियों ने प्रत्येक एक गोत्र के लिए एक वेद के अध्ययन की परंपरा डाली है , कालान्तर में जब एक व्यक्ति उसके गोत्र के लिए निर्धारित वेद पढने में असमर्थ हो जाता था तो ऋषियों ने वैदिक परम्परा को जीवित रखने के लिए शाखाओं का निर्माण किया। इस प्रकार से प्रत्येक गोत्र के लिए अपने वेद की उस शाखा का पूर्ण अध्ययन करना आवश्यक कर दिया। इस प्रकार से उन्‍होने जिसका अध्‍ययन किया, वह उस वेद की शाखा के नाम से पहचाना गया।

प्रत्‍येक वेद में कई शाखायें होती हैं। जैसे --

#ऋग्‍वेद की 21 शाखा (प्रयोग में 5 शाकल, वाष्कल,आश्वलायन, शांखायन और माण्डूकायन)  ,

#यजुर्वेद की 101 शाखा( प्रयोग में 5काठक,
कपिष्ठल,मैत्रियाणी,तैतीरीय,वाजसनेय)

#सामवेद की 1000 शाखा( सभी गायन , मन्त्र यांत्रिक प्रचलित विधान)

#अथर्ववेद की 9 शाखा (पैपल, दान्त, प्रदान्त,  स्नात, सौल, ब्रह्मदाबल, शौनक, देवदर्शत और चरणविद्या)
है।

इस प्रकार चारों वेदों की 1131 शाखा होती है। प्रत्‍येक वेद की अथवा अपने ही वेद की समस्‍त शाखाओं को अल्‍पायु मानव नहीं पढ़ सकता, इसलिए महर्षियों ने 1 शाखा अवश्‍य पढ़ने का पूर्व में नियम बनाया था और अपने गौत्र में उत्‍पन्‍न होने वालों को आज्ञा दी कि वे अपने वेद की अमूक शाखा को अवश्‍य पढ़ा करें, इसलिए जिस गौत्र वालों को जिस शाखा के पढ़ने का आदेश दिया, उस गौत्र की वही शाखा हो गई। जैसे पराशर गौत्र का शुक्‍ल यजुर्वेद है और यजुर्वेद की 101 शाखा है। वेद की इन सब शाखाओं को कोई भी व्‍यक्ति नहीं पढ़ सकता, इसलिए उसकी एक शाखा (माध्‍यन्दिनी) को प्रत्‍येक व्‍यक्ति 1-2 साल में पढ़ कर अपने ब्राम्हण होने का कर्तव्य पूर्ण कर सकता है ।।

#सूत्र  --
व्यक्ति शाखा के अध्ययन में असमर्थ न हो , अतः उस गोत्र के परवर्ती ऋषियों ने उन शाखाओं को सूत्र रूप में विभाजित किया है, जिसके माध्यम से उस शाखा में प्रवाहमान ज्ञान व संस्कृति को कोई क्षति न हो और कुल के लोग संस्कारी हों !
वेदानुकूल स्‍मृतियों में ब्राह्मणों के कर्मो का वर्णन किया है, उन कर्मो की विधि बतलाने वाले ग्रन्‍थ ऋषियों ने सूत्र रूप में लिखे हैं और वे ग्रन्‍थ भिन्‍न-भिन्‍न गौत्रों के लिए निर्धारित वेदों के भिन्‍न-भिन्‍न सूत्र ग्रन्‍थ हैं। 
ऋषियों की शिक्षाओं को सूत्र कहा जाता है। प्रत्येक वेद का अपना सूत्र है। सामाजिक, नैतिक तथा शास्त्रानुकूल नियमों वाले सूत्रों को धर्म सूत्र कहते हैं, आनुष्ठानिक वालों को श्रौत सूत्र तथा घरेलू विधिशास्त्रों की व्याख्या करने वालों को गॄह् सूत्र कहा जाता है। सूत्र सामान्यतः पद्य या मिश्रित गद्य-पद्य में लिखे हुए हैं।

#छन्द - 
प्रत्येक ब्राह्मण का अपना परम्परासम्मत छन्द होता है जिसका ज्ञान हर ब्राम्हण को होना चाहिए   ।
छंद वेदों के मंत्रों में प्रयुक्त कवित्त मापों को कहा जाता है। श्लोकों में मात्राओं की संख्या और उनके लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों के समूहों को छंद कहते हैं - वेदों में कम से कम 15 प्रकार के छंद प्रयुक्त हुए हैं, और हर गोत्र का एक परम्परागत छंद है ।

अत्यष्टि (ऋग्वेद 9.111.9)
अतिजगती(ऋग्वेद 5.87.1)
अतिशक्वरी
अनुष्टुप
अष्टि
उष्णिक्
एकपदा विराट (दशाक्षरा भी कहते हैं)
गायत्री(प्रसिद्ध गायत्री मंत्र)
जगती
त्रिषटुप
द्विपदा विराट
धृति
पंक्ति
प्रगाथ
प्रस्तार पंक्ति
बृहती
महाबृहती
विराट
शक्वरी

#विशेष -- वेद प्राचीन ज्ञान विज्ञान से युक्त ग्रन्थ है जिन्हें अपौरुषेय (किसी मानव/देवता ने नहीं लिखे) तथा अनादि माना जाता हैं, बल्कि अनादि सत्य का प्राकट्य है जिनकी वैधता शाश्वत है। वेदों को श्रुति माना जाता है (श्रवण हेतु, जो मौखिक परंपरा का द्योतक है) लिखे हुए में मिलावट की जा सकती है लेकिन जो कंठस्थ है उसमें कोई कैसे मिलावट कर सकता है इसलिए ब्राम्हणो ने वेदों को श्रुति के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया जो ज्ञान शदियों से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होता रहा , हर ब्राम्हण अपने बच्चों को ये जिम्मेदारी देता था कि वो अपने पूर्वजों की इस धरोहर का इस ज्ञान का वाहक बने और समाज और आने वाली पीढ़ी को ये ज्ञान दे लेकिन हम इस पश्चिमीकरण के दौड़ में इस कदर अंधे हुए की हम अपनी जिम्मेदारियों को विस्मृत कर बैठे , वेदों में वो सब कुछ है जो आज भी विज्ञान के लिए आश्चर्य का विषय है जरूरत है तो बस उन कंधों की जो इस जिम्मेदारी का भार उठा सके ।।

#शेष_क्रमशः

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=341647756301636&id=100013692425716

Friday 15 December 2017

गीताप्रेस भी खूब लड़ा है अंग्रेजों से

गीताप्रेस भी खूब लड़ा है अंग्रेजों से
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#BBC_को_जवाब

आज से लगभग छः महीना पहले मैंने BBC में गीताप्रेस पर एक लेख पढ़ा था।लेख में यह कुतर्क गढ़ा गया था कि  किस तरह गीताप्रेस नामक छापाखाना हिंदू भारत बनाने के मिशन पर काम कर रहा है। उसके बाद मैंने एक और -"गीताप्रेस का महिलाओं पर तालिबानी सोंच"- शीर्षक से एक लेख पढ़ा । दोनों लेख पढ़कर मेरे दिमाग की घंटी बज उठी थी। आखिर BBC गीताप्रेस जैसे विशुद्ध धार्मिक प्रेस का विरोध क्यों कर रही है। अवश्य ही इसके पीछे कोई न कोई रहस्य छिपा हुआ है क्योंकि BBC भारत में उसी का विरोध करता आया है जो अंग्रेजी सत्ता के विरोधी थे । तभी मेरे दिमाग ने कहा अवश्य ही गीताप्रेस भी अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध रहा होगा।

.....तब से मैं खोज करता रहा। कल मेरी खोज पूरी  हुई और आज BBC के उस पुराने लेख को काउंटर कर रहा हूं । आगे बढ़ने से पहले गीताप्रेस के विरुद्ध कम्युनिस्टों का अलग षडयंत्र चल रहा है। गीताप्रेस पर एक वामपंथी पत्रकार ने भी किताब लिखी है जिसका नाम --Gita Press And The Making Of Hindu India है।

....ऐसे तो गीताप्रेस की स्थापना 1924 में हुई है उसके पहले कलकत्ता में 1920 में "गोविंद भवन कार्यालय" की स्थापना हुई और उससे पहले 'कल्याण' पत्रिका शुरू हुई थी। बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि गीताप्रेस के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार एक क्रांतिकारी थे और उनके क्रांतिकारी संगठन का नाम था-अनुशीलन समिति।कलकत्ता में बंदूक, पिस्तौल और कारतूस की शस्त्र कंपनी थी जिसका नाम "रोडा आर.बी. एण्ड कम्पनी" था। यह कंपनी जर्मनी, इंग्लैण्ड आदि देशों से बंदरगाहों से शस्त्र पेटियां मंगाती थी।

.....देशभक्त क्रांतिकारियों को अंग्रेजों से लड़ने के लिए पिस्तौल और कारतूस की जरूरत थी लेकिन उनके पास धन नहीं था कि वे खरीद सकें। तब अनुशीलन समिति के क्रांतिकारियों ने शस्त्र पेटियों को चुराने की योजना बनाई और इस काम को हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को सौंप दिया गया। हनुमान प्रसाद जी ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस रोडा बी.आर.डी. कंपनी में एक शिरीष चंद्र मित्र नाम के बंगाली कलर्क था जो अध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे और हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को बहुत आदर करते थे । पोद्दार जी ने इसका फायदा उठाकर उस क्लर्क को अपने पक्ष में कर लिया।

.......एक दिन कंपनी ने शिरीष चंद्र मित्र को कहा समुद्र चुंगी से जिन बिल्टिओं का माल छुड़ाना है वह छुड़ा कर ले आएं। उसने यह सूचना तत्काल हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को दे दिया। सूचना पाते ही पोद्दार जी कलकत्ता बंदरगाह पर पहुंच गये। यह बात है 26 अगस्त 1914 बुधवार के दिन की । बंदरगाह पर रोडा कम्पनी की 202 शस्त्र पेटियां  आयी हुई थी । जिसमें 80 माउजर पिस्तौल और 46 हजार कारतूस थे जिसे कंपनी के क्लर्क शिरीषचंद्र मित्र ने समुंद्री चुंगी जमा कर छुड़ा लिया।

.....इधर बंदरगाह के बाहर हनुमान प्रसाद पोद्दार जी शिरीष चंद्र का इंतजार कर रहे थे। इसमें से 192 शस्त्र पेटियां  कंपनी में पहुंचा दी गई और बाकी 10 शस्त्र पेटियां हनुमान प्रसाद पोद्दार के घर पर पहुंच गईं। आनन-फानन में पोद्दार जी ने अपने संगठन के क्रांतिकारी साथियों को बुलाया और सारे शस्त्र  सौंप दिया।उस पेटी में  300 बड़े आकार की पिस्तौल थी। इनमें से 41 पिस्तौल बंगाल के क्रांतिकारियों के बीच बांट दिया गया बाकी 39 पिस्तौल बंगाल के बाहर अन्य प्रांत में भेज दी गई। काशी गई, इलाहाबाद गयी, बिहार, पंजाब, राजस्थान भी गयी।

...आगे जब अगस्त 1914 के बाद क्रांतिकारियों ने इन माउजर पिस्तौलों से सरकारी अफसरों , अंग्रेज  को मारने जैसे 45 काण्ड इन्हीं पिस्तौल से सम्पन्न किये गये थे। क्रांतिकारियों ने बंगाल के मामूराबाद में जो डाका डाला था उसमें भी पुलिस को पता चला की रोडा कम्पनी से गायब माउजर पिस्तौल से किया गया है। थोड़ा आगे बढ़ गये थे खैर पीछे लौटते हैं।

.......हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को पेटियों के ठौर-ठिकाने पहुंचाने-छिपाने में पंडित विष्णु पराड़कर (बाद में कल्याण के संपादक ) और सफाई कर्मचारी सुखलाल ने भी मदद की थी। बाद में मामले का खुलासा होने के बाद हनुमान प्रसाद पोद्दार, क्लर्क शिरीष चंद्र मित्र , प्रभुदयाल , हिम्मत सिंह , कन्हैयालाल चितलानिया, फूलचंद चौधरी , ज्वालाप्रसाद, ओंकारमल सर्राफ के विरुद्ध गिरफ्तारी के वारंट निकाले गये।16 जुलाई 1914 को छापा मारकर क्लाइव स्ट्रीव स्थित कोलकाता के बिरला क्राफ्ट एंड कंपनी से हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को गिरफ्तार कर लिया गया। शेष लोग भी पकड़ लिये गये। सभी को कलकता के डुरान्डा हाउस जेल में रखा गया। पुलिस ने 15 दिनों तक सभी को फांसी चढ़ाने, काला पानी आदि की धमकी देकर शेष साथियों का नाम बताने और माल पहुंचाने की बात उगलवाना चाहा लेकिन किसी ने नहीं उगला। पोद्दार जी के गिरफ्तार होते ही माड़वाड़ी समाज में भय व्याप्त हो गया। पकड़े जाने के भय से इनके लिखे साहित्य को लोगों ने जला दिया।

.....पर्याप्त सबूत नहीं मिलने के बाद हनुमान प्रसाद पोद्दार जी छूट गये। इसका दो कारण था । पहला कि शस्त्र कंपनी के कलर्क शिरीष चंद्र मित्र बंगाल छोड़ चुके थे इसलिए गिरफ्तार नहीं किये जा सके। दूसरा कारण- तमाम अत्याचार के बाद भी किसी ने भेद नहीं उगला था।

.... इस घटना से छः साल पूर्व 1908 में जो बंगाल के मानिकतला और अलीपुर में बम कांड हुआ उसमें भी अप्रत्यक्ष रूप से गीताप्रेस गोरखपुर के संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार शामिल रहे। उन्होंने बम कांड के अभियुक्त क्रांतिकारियों की पैरवी की। पोद्दार जी का भुपेन्द्रनाथ दत्त, श्याम सुंदर चक्रवर्ती , ब्रह्मवान्धव उपाध्याय , अनुशीलन समिति के प्रमुख पुलिन बिहारी दास, रास बिहारी बोस, विपिन चंद्र गांगुली, अमित चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारियों से सदस्य होने के कारण निकट संबध था। अपनी धार्मिक कल्याण पत्रिका बेचकर क्रांतिकारियों  की पैरवी करते थे। बाद में कोलकता में गोविंद भवन कार्यालय की स्थापना हुई तो पुस्तक और कल्याण पत्रिका के बंडल के नीचे क्रांतिकारियों के शस्त्र छुपाये जाते थे।

....इतना ही नहीं, खुदीराम बोस, कन्हाई लाल , वारीन्द्र घोष, अरबिंद घोष, प्रफुल्ल चक्रवर्ती के मुकदमे में भी अनुशीलन समिति की ओर से हनुमान प्रसाद पोद्दार ने पैरवी की थी। उन दिनों क्रांतिकारियों की पैरवी करना कोई साधारण बात नहीं थी ।

.....भारत विभाजन की मांग पर कांग्रेसी नेता जिन्ना के सामने चुप रहते थे तो गीताप्रेस की कल्याण पत्रिका पुरजोर आवाज में कहती थी--
"जिन्ना चाहे दे दे जान, नहीं मिलेगा पाकिस्तान"
कहकर ललकारता था। यह पंक्ति कल्याण के आवरण पृष्ठ पर छपता था।पाकिस्तान निर्माण के विरोध में कल्याण महीनों तक लिखता रहा।

......गीता प्रेस की कल्याण पत्रिका ऐसी निडर पत्रिका थी कि उसने अपने एक अंक में प्रधानमंत्री नेहरू को हिंदू विरोधी तक बता दिया था। इसने महात्मा गांधी को भी एक बार खरी-खोटी सुनाते हुए कह डाला था--
"महात्मा गांधी के प्रति मेरी चिरकाल से श्रद्धा है पर इधर वे जो कुछ कर रहे हैं और गीता का हवाला देकर हिंसा-अहिंसा की मनमानी व्याख्या वे कर रहे हैं उससे हिंदुओं की निश्चित हानि हो रही है और गीता का भी दुरपयोग हो रहा है।"

......जब मालवीय जी हिंदुओं पर अमानवीय अत्याचारों की दिल दहला देने वाली गाथाएं सुनकर द्रवित होकर 1946 में स्वर्ग सिधार गये तब गीता प्रेस ने मालवीय जी की स्मृति में कल्याण का श्रद्धांजली अंक निकाला। इसमें नोआखली, खुलना तथा पंजाब सिंध में हो रहे अत्याचारों पर मालवीय जी की ह्रदय विदारक टिप्पणी प्रकाशित की गई थी। जिसे उत्तर प्रदेश और बिहार के कांग्रेसी सरकार ने श्रद्धांजली अंक को आपतिजनक घोषित करते हुए जब्त कर लिया था।

...जब भारत विभाजन के समय दंगा शुरू हो गया था और पाकिस्तान से हिंदुओ पर अत्याचार की खबर आ रही थी तब भी गीताप्रेस ने कांग्रेस नेताओं पर खूब स्याही बर्बाद की थी। तब कल्याण ने अपने सितम्बर-अक्टूबर 1947 के अंक में यह लिखना शुरू कर दिया था- "हिंदू क्या करें' इन अंको में हिंदूओं को आत्मरक्षा के उपाय बताया जाता था।

मित्र Sanjeet Singh की लेखनी
Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1858321994480558&id=100009083273155

ब्राम्हण का एकादश परिचय (भाग-१)

#ब्राम्हण --

यदि अपने अतीत के बारे में जानना , ये जानना की उसके पूर्वज कौन थे, ये ढूंढना की आप कहाँ से आये है आपकी परम्परा क्या रही है ये जातिवादिता है तो हाँ मैं जातिवादी हुँ ।।

#कल कुछ लोगो ने शिकायत की , कि मैं इस तरह लोगो मे एक गलत संदेश दूँगा जो मुझे नही करना चाहिए तो मेरा सवाल ये है कि क्या आप अपने पिता के नाम का इस्तेमाल नही करते खुद की पहचान के लिए के लिए की आप अमुक के पुत्र है ठीक उसी तरह यही आप उपनाम का इस्तेमाल करते है तो ये उपनाम क्यों इस्तेमाल कर रहे है इसका आपको पता होना ही चाहिए यदि आपको नही पता तो आप उपनाम (गोत्र नाम) लगाने का अधिकार नही रखते ।। यही आपको नही पता कि आप किस ब्राम्हण कुल और किस ऋषि परम्परा के वाहक है तो माफ कीजिये आप इस योग्य नही की आप ब्राम्हण कहे जाए ।।

#अब सवाल ये उठता है कि ब्राम्हण की पहचान कैसे क्योंकि आजकल चोरो की संख्या ज्यादा है जो उपनाम तक चुरा के ब्राम्हण बने हुए है उनकी पहचान के लिए आप एकादश परिचय को माध्यम बना सकते है हर ब्राम्हण का एक एकादश परिचय होता है बिना एकादश परिचय के वो अस्तित्वहीन है या आप ये कह सकते है कि वो चोर है उपनाम का जो ब्राम्हण बना तो है लेकिन ब्राम्हण है नही ।।

आइये आपको इसके विषय मे विस्तार से बताता हूँ --

1 - #गोत्र --

गोत्र का अर्थ है कि वह कौन से ऋषिकुल का है या उसका जन्म किस ऋषिकुल से सम्बन्धित है । किसी व्यक्ति की वंश-परम्परा जहां से प्रारम्भ होती है, उस वंश का गोत्र भी वहीं से प्रचलित होता गया है। हम सभी जानते हें की हम किसी न किसी ऋषि की ही संतान है, इस प्रकार से जो जिस ऋषि से प्रारम्भ हुआ वह उस ऋषि का वंशज कहा गया ।

विश्‍वामित्रो जमदग्निर्भरद्वाजोऽथ गौतम:।
अत्रिवर्सष्ठि: कश्यपइत्येतेसप्तर्षय:॥
सप्तानामृषी-णामगस्त्याष्टमानां
यदपत्यं तदोत्रामित्युच्यते॥

विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्त्य की संतान गोत्र कहलाती है।
इस तरह आठ ऋषियों की वंश-परम्परा में जितने ऋषि (वेदमन्त्र द्रष्टा) आ गए वे सभी गोत्र कहलाते हैं। और आजकल ब्राह्मणों में जितने गोत्र मिलते हैं वह उन्हीं के अन्तर्गत है। सिर्फ भृगु, अंगिरा के वंशवाले ही उनके सिवाय और हैं जिन ऋषियों के नाम से भी गोत्र व्यवहार होता है। इस प्रकार कुल दस ऋषि मूल में है। इस प्रकार देखा जाता है कि इन दसों के वंशज ऋषि लाखों हो गए होंगे और उतने ही गोत्र भी होने चाहिए।

गोत्र शब्द  एक अर्थ  में  गो अर्थात्  पृथ्वी का पर्याय भी है ओर 'त्र' का अर्थ रक्षा करने वाला भी हे। यहाँ गोत्र का अर्थ पृथ्वी की रक्षा करें वाले ऋषि से ही है। गो शब्द इन्द्रियों का वाचक भी है, ऋषि- मुनि अपनी इन्द्रियों को वश में कर अन्य प्रजाजनों का मार्ग दर्शन करते थे, इसलिए वे गोत्रकारक कहलाए। ऋषियों के गुरुकुल में जो शिष्य शिक्षा प्राप्त कर जहा कहीं भी जाते थे , वे अपने गुरु या आश्रम प्रमुख ऋषि का नाम बतलाते थे, जो बाद में उनके वंशधरो में स्वयं को उनके वही गोत्र कहने की परम्परा आविर्भूत हुई । जाति की तरह गोत्रों का भी अपना महत्‍व है ।।

2 - #प्रवर --

प्रवर का अर्थ हे 'श्रेष्ठ" । अपनी कुल परम्परा के पूर्वजों एवं महान ऋषियों को प्रवर कहते हें । अपने कर्मो द्वारा ऋषिकुल में प्राप्‍त की गई श्रेष्‍ठता के अनुसार उन गोत्र प्रवर्तक मूल ऋषि के बाद होने वाले व्यक्ति, जो महान हो गए वे उस गोत्र के प्रवर कहलाते हें। इसका अर्थ है कि आपके कुल में आपके गोत्रप्रवर्त्तक मूल ऋषि के अनन्तर तीन अथवा पाँच आदि अन्य ऋषि भी विशेष महान हुए थे ।
प्रवर का अर्थ हुआ कि उन मन्त्रद्रष्टा ऋषियों में जो श्रेष्ठ हो। प्रवर का एक और भी अर्थ है। यज्ञ के समय अधवर्यु या होता के द्वारा ऋषियों का नाम ले कर अग्नि की प्रार्थना की जाती है। उस प्रार्थना का अभिप्राय यह है कि जैसे अमुक-अमुक ऋषि लोग बड़े ही प्रतापी और योग्य थे। अतएव उनके हवन को देवताओं ने स्वीकार किया। उसी प्रकार, हे अग्निदेव, यह यजमान भी उन्हीं का वंशज होने के नाते हवन करने योग्य है। इस प्रकार जिन ऋषियों का नाम लिया जाता है वही प्रवर कहलाते हैं। यह प्रवर किसी गोत्र के एक, किसी के दो, किसी के तीन और किसी के पाँच तक होते हैं न तो चार प्रवर किसी गोत्र के होते हैं और न पाँच से अधिक। यही परम्परा चली आती हैं। पर, मालूम नहीं कि ऐसा नियम क्यों हैं? ऐसा ही आपस्तंब आदि का वचन लिखा है। हाँ, यह अवश्य है कि किसी ऋषि के मत से सभी गोत्रों के तीन प्रवर होते हैं। जैसा कि :
त्रीन्वृणीते मंत्राकृतोवृणीते॥ 7॥
अथैकेषामेकं वृणीते द्वौवृणीते त्रीन्वृणीते न चतुरोवृणीते न
पंचातिवृणीते॥ 8॥

और अधिक जानकारी और सभी के प्रवर मेरे ब्लॉग -ajesth.blogspot.com पर उपलब्ध है ।।

3 - #वेद --

वेदों का साक्षात्कार ऋषियों ने सभी के लाभ के लिए किया है , इनको सुनकर याद किया जाता है , इन वेदों के उपदेशक गोत्रकार ऋषियों के जिस भाग का अध्ययन, अध्यापन, प्रचार प्रसार, आदि किया, उसकी रक्षा का भार उसकी संतान पर पड़ता गया इससे उनके पूर्व पुरूष जिस वेद ज्ञाता थे तदनुसार वेदाभ्‍यासी कहलाते हैं। प्रत्येक ब्राह्मण का अपना एक विशिष्ट वेद होता है , जिसे वह अध्ययन -अध्यापन करता है । आसान शब्दो मे गौत्र प्रवर्तक ऋषि जिस वेद को चिन्‍तन, व्‍याख्‍यादि के अध्‍ययन एवं वंशानुगत निरन्‍तरता पढ़ने की आज्ञा अपने वंशजों को देता है, उस ब्राम्हण वंश (गोत्र) का वही वेद माना जाता है।
वेद का अभिप्राय यह है कि उस गोत्र का ऋषि ने उसी वेद के पठन-पाठन या प्रचार में विशेष ध्यान दिया और उस गोत्रवाले प्रधानतया उसी वेद का अध्ययन और उसमें कहे गए कर्मों का अनुष्ठान करते आए। इसीलिए किसी का गोत्र यजुर्वेद है तो किसी का सामवेद और किसी का ऋग्वेद है, तो किसी का अथर्ववेद। उत्तर के देशों में प्राय: साम और यजुर्वेद का ही प्रचार था। किसी-किसी का ही अथर्ववेद मिलता है।

#विशेष --
शेष कल लिखूंगा कोशिश करूँगा कल पूर्ण कर दूँ ।। इसको बताने का तात्पर्य ये नही है कि ये सिर्फ कर्मकांडी ब्राम्हण को जानना चाहिए जानना सभी को चाहिए क्योंकि अतीत ही स्वर्णिम भविष्य की नींव रखता है ।। इसके लाभ व अन्य वर्गीकरण कमशः वैसे आप मेरे ब्लॉग पे इसके विषय मे पढ़ सकते है ।।

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=341203456346066&id=100013692425716

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