Wednesday, 9 August 2017

Eclipse and Darbha/Durva grass

At the time of Grahana (Eclipse) be it Surya (Solar) or Chandra (Lunar) my Amma used to drop a piece of Darbha grass in the pickle jar, curds and milk container, rice wheat flour and cereals boxes. I did not know why she was doing it, when asked she used to tell me that the grass prevents the food from getting stale during the eclipse time.   

When I started reading Bhagavad-Gita, I came across the mention of Darbha grass by Sri Krishna in Chapter 6 titled “Atma Samyama Yoga” (Dhyana Yoga). In the verse 11 Sri Krishna while explaining Arjuna the process of meditation says, a layer of Kusha (Darbha) grass should be spread and the seeker should sit on it to meditate. 

The interest on knowing more about this grass swelled in me. So I got to know from Puranas that this grass came into existence at the time of Samudra Manthan (Churning of Ocean). During the churning, the hairs of the Kurma (Tortoise) shedded due to the friction of the Mandara Parvatha on its back. The hair which washed away to the shore became Darbha grass. Further when Garuda fetched the pot of Ambrosia to get his mother released from bondage he had placed the pot on the Darbha grass for his cousins, the nagas to take it. Indra hurriedly wished away the pot depriving the nagas the nectar of immortality. In the melee a few drops of the Amritha fell on the grass hence it is also called “Pavithra” (Auspicious).    

Botanically called Desmotachya bipinnata this tropical grass is considered a sacred material in Vedic scriptures; it is used as a purifier of the offerings made during rituals. It was important to validate scientifically for our younger generation who seldom have faith in our scripture and hence the Centre for Nanotechnology and Advanced Biomaterials (CeNTAB) and the Centre for Advanced Research in Indian System of Medicine (CARISM) of the SASTRA University, Thanjavur, under the supervision of Dr. P. Meera and Dr. P. Brindha took up the responsibility to list the importance of this unique grass. In their research they observed that this grass had the ability to block X-Ray radiation.

Electron microscopy of the surface of this grass revealed stunning nano-patterns and hierarchical nano or micro structures which can attract enormous number of bacteria into the hierarchical surface and hence it could find applications in health care where sterile conditions is a must. 

At the time of eclipse the wavelength and intensity of light radiations available on the earth’s surface gets altered. The blue and ultraviolet radiations, which are known for their natural disinfecting properties are not available in sufficient quantities during eclipse. This leads to uncontrolled growth of micro-organisms in food products during eclipse and such food products are not suitable for consumption. Darbha is thus used as a natural disinfectant on specific occasions. This grass could be used as a natural food preservative in place of harmful chemical preservatives.

Courtesy: Sreeram Manoj Kumar, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1652147334804420&id=100000275079859

Lioness's of Jaipur, महामहिम राजमाता गायत्री देवी

Lioness's of Jaipur
महामहिम राजमाता गायत्री देवी....

जयपुर के भूतपूर्व राजघराने की राजमाता गायत्री देवी का जन्म २३ मई  1919 को लंदन में हुआ था। राजकुमारी गायत्री देवी के पिता राजकुमार जितेन्द्र नारायण कूचबिहार (बंगाल) के युवराज के छोटे भाई थे, वहीं माता बड़ौदा की राजकुमारी इंदिरा राजे थीं। पहले शांतिनिकेतन, फिर लंदन और स्विट्ज़रलैंड में शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात इनका इनका विवाह जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह (द्वितीय) से हुआ। वॉग पत्रिका द्वारा कभी दुनिया की दस महान महिलाओं में गिनी गईं राजमाता गायत्री देवी राजनीति में भी सक्रिय थीं। इन्होंने सन् १९६२ में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी द्वारा स्थापित स्वतंत्र पार्टी की उम्मीदवार के रूप में जयपुर संसदीय क्षेत्र से समूचे देश में सर्वोच्च बहुमत से चुनाव में विजयी होने का गौरव प्राप्त किया। इसके बाद १९६७ और १९७१ के चुनावों में विजयी होकर लोकसभा सदस्य चुनी गईं। लेकिन राजनीतिक सफर में कष्ट भी सहने पड़े, जब आपातकाल के दौरान वे दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद रही। गायत्री देवी पर (ए प्रिंसेस रिमेम्बर्स) तथा (ए गवर्नमेंट्स गेट वे) नामक पुस्तकें अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुकी हैं। 90 वर्ष की आयु में २९ जुलाई 2009को इनका जयपुर में निधन हो गया।

ख़जाने के लालच में  इंदिरा गांधी ने राजमाता गायत्री देवी का किला तक खुदवा दिया था!

इंदिरा गांधी की सरकार ने 1975 में देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया। इसी दौरान दिल्ली के आदेश पर राजस्थान की एक रियासत में सेना भेजी गया. उनका काम था महल में और दूसरी रॉयल प्रॉपर्टीज़ की पड़ताल करके रखे गए ख़जाने को चोरी करना।

इस बारे में कई कहानियाँ हैं...

किंवदंती 1. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जयपुर के पास आमेर में रिसायत में फौज भेजी. उन्हें आदेश था कि सोने के सिक्के, चांदी का माल और हीरे-जवाहरात जो रॉयल फैमिली ने छुपाकर रखे हुए हैं उनको खोदकर वापस लाना है. तब जयपुर की महारानी गायत्री देवी को जेल में डाल दिया गया था. तीन महीने में उनकी कई प्रॉपर्टी खोद दी गईं. लेकिन वहां उनको कुछ नहीं मिला. तीन महीने बाद इंदिरा गांधी ने इस मिशन की स्वीकारोक्ति की और कहा कि कोई खजाना नहीं मिला. हालांकि जयपुर के कुछ गाइड सैलानियों को बताते हैं कि कई ट्रक सोना मिला था....

किंवदंती #2. ये माना जाता रहा कि अकबर के दरबार में ताकतवर सेनापति और रक्षामंत्री रहे राजा मानसिंह बादशाह के आदेश पर अफगानिस्तान गए थे. वहां उन्हें जोरदार जीत मिली. लेकिन साथ ही बड़ा खजाना भी हाथ लगा, उसे जयगढ़ के किले में कहीं गाड़कर रखा गया था. बाद में जयपुर राजघराने की पीढ़ियां आगे बढ़ती गई और खजाना वहीं रहा. ब्रिटिश काल में भी इसकी चर्चा थी लेकिन कभी इसे ढूंढ़ने की कोशिश नहीं हुई. लेकिन फिर इंदिरा गांधी के राज में जब महारानी गायत्री देवी उनकी आंख की किरकिरी बन गईं तब इंदिरा ने सेना भेजकर खुदाई करवाई. सेना अपने भारी-भरकम ट्रक और असला लेकर पहुंची थी. इतना कि तीन दिन तक जयपुर-दिल्ली हाइवे को बंद कर दिया गया. बाद में जब वो ट्रक लौटे तो किसी को नहीं पता था कि वे खाली थे या भरे हुए और आज भी राज़ कायम है.

किंवदंती #3. इंदिरा के बेटे संजय गांधी ने जयपुर के पास आमेर में सात दिन का कर्फ्यू लगा दिया था. आदेश था कि कोई भी सड़कों पर दिखा तो उसे गोली मार दी जाए. तब कोई हिंदु-मुस्लिम दंगे भी नहीं हो रहे थे लेकिन केंद्र सरकार ने पूर्वाग्रह के नाते ऐसा किया. किसी ने संजय को कहा कि आमेर में राजा मान सिंह का विशाल खजाना गड़ा है तो उसने इमरजेंसी की आड़ में सेना भेजी. खुदाई में 60 ट्रक सोना, चांदी और जवाहरात मिले. सबकी नजरों से बचाकर इसे जयपुर से दिल्ली ले जाया गया. वहां नई दिल्ली के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर इंदिरा गांधी ने दो विशाल प्लेन तैयार रखे हुए थे. वहां से संजय और इंदिरा ने उस खजाने को स्विट्जरलैंड भिजवा दिया।

किंवदंती #4. अकबर के शीर्ष सेनापतियों में एक आमेर के राजा मान सिंह एक बार बंगाल (अब बांग्लादेश) के शहर गौड़ गए. तब वहां के काली माता के प्रसिद्ध मंदिर जेसौर में दर्शन करने पहुंचे. वहां जेसौरेश्वरी काली माता की मूर्ति देखकर बहुत प्रभावित हुए और जाते हुए अपने साथ माता की मूर्ति को भी ले गए और आमेर में अपने पैलेस में मंदिर में स्थापित करवा दिया. मंदिर के पुजारी को भी वे अपने साथ ले गए जिसके पुरखे आज भी आमेर मंदिर में पूजा करते हैं. वहीं आमेर के किले के प्रांगण में, तहखाने में, जमीन में और दीवारों में बहुत विशाल मात्रा में सोना, चांदी और हीरे-जवाहरात छुपाकर रखे गए थे ताकि आपात परिस्थिति में जनता के काम आ सकें. इस खजाने को अभिशप्त किया हुआ था कि अगर किसी और कारण से इसका इस्तेमाल हुआ तो इसे रखने वाले का खानदान खत्म हो जाएगा. जब संजय गांधी ने आपातकाल के बहाने सारा खजाना ट्रकों में भरकर वहां से निकालकर अपने कब्जे में ले लिया तो उन्हें नहीं पता था कि उसमें उन्हीं काली माता के गहने भी थे. इसी के साथ गांधी परिवार की बर्बादी शुरू हो गई. पहले संजय प्लेन क्रैश में मारे गए, फिर इंदिरा गांधी की हत्या हुई और उसके बाद राजीव गांधी की.

ख़ज़ाना ढूंढ़ने की असली पोलिटिकल कहानी ये थी

खुद महारानी गायत्री देवी ने सच बताया

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी से जयपुर की पूर्व-महारानी गायत्री देवी ने 1962 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और कॉन्ग्रेस के कैंडिडेट को हरा दिया. इसे तब दुनिया में सबसे अधिक मतों के अंतर से जीता गया मुकाबला माना गया. इसके बाद 1967 और 1971 में भी गायत्री देवी चुनाव जीतती गईं. वे हमेशा से इंदिरा गांधी की मुखर आलोचक थीं. इसी वजह से वे उनकी नजरों में भी चढ़ी हुई थीं. इंदिरा ने फिर उनके साथ जो किया वो आपातकाल से जरा पहले और लागू होने के बाद देखने को मिला. गायत्री देवी की प्रॉपर्टीज पर जो छापेमारी हुई और बाद में उन्हें जेल में डाला गया. इसकी शुरुआत उनके मुताबिक बांग्लादेश युद्ध (1971-72) के बाद से हो गई थी.

प्रस्तावना ये थी इस मिशन की

गायत्री देवी ने बताया था, “बांग्लादेश युद्ध इंदिरा गांधी के लिए सबसे चमकीली घड़ी थी लेकिन भारत में उनकी ये खुशी जल्द ही फीकी पड़ गई. युद्ध की जो कीमत देनी पड़ी थी वो महसूस की जाने लगी. मानसून फेल हो गए थे. बैंक, बीमा, कोयले की खदानों और गेहूं के कारोबार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया. खाने के सामान की कीमतें आसमान छू रही थीं. लोगों के बीच असंतोष भी आसमान छू रहा था. फिर 1974 में जयप्रकाश नारायण ने बिहार में बड़ा आंदोलन शुरू कर दिया था. सांसद और रेलवे वर्कर्स यूनियन के नेता रह चुके जॉर्ज फर्नांडिस ने तीन हफ्ते तक रेल की हड़ताल कर दी थी.”

जॉर्ज फर्नांडिस

“देश का भरोसा इंदिरा के नेतृत्व पर खत्म हो चुका था. जितने जनआंदोलन हो रहे थे, इंदिरा उनको नहीं देख पाईं और उन्होंने सोचा लोग बोल रहे हैं ‘इंदिरा लाओ.’ तो उन्होंने जनआंदोलनों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए कारोबारी घरानों और विपक्ष के नेताओं के खिलाफ छापेमारी शुरू करवा दी. लेकिन इसका परिणाम उल्टा ही हुआ और उनके खिलाफ लोगों का गुस्सा और बढ़ा. वामपंथियों को छोड़कर सारा विपक्ष एकजुट हो गया. इन छापेमारियों में ग्वालियर और जयपुर के पूर्व-राजघरानों के प्रति विशेष दुराग्रह रखा गया क्योंकि ग्वालियर की राजमाता और मैं संसद में विपक्ष के सदस्य थे.”

वो 11 फरवरी 1975 का दिन था, इमरजेंसी से चार महीने पहले. वो दिन जिसे गायत्री देवी ताउम्र नहीं भूलीं. उन्होंने इसे याद करते हुए लिखा था, “फरवरी राजस्थान में एक ब्यूटीफुल महीना होता है. आसमान नीला होता है, फूल खिलना शुरू होते हैं, पंछी गाते हैं और दिन ठंडे व एकदम साफ होते हैं. इस खास दिन मैं बहुत खुश महसूस कर रही थी जितना जय (महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय) को खोने के बाद मैंने पहले नहीं किया था. दिन व्यस्तताओं भरा होने वाला था और मैं प्लानिंग कर रही थी. टैरेस पर योग करने के बाद मैं ब्रेकफास्ट करने गई. नाश्ता कर रही थी कि मेड ने आकर बताया कुछ अजनबी मुझसे मिलना चाहते हैं. मैंने उनको अंदर बुलाने के लिए कहा. वे आए और बोले, ‘हम इनकम टैक्स ऑफिसर हैं. हम आपके प्रांगण की छानबीन करने आए है.’ मैंने कहा, ‘करो फिर. लेकिन मेरे अपॉयंटमेंट्स हैं और मुझे अभी निकलना है.’ तो उन्होंने कहा कि कोई भी यहां से बाहर नहीं जा सकता.”

जयगढ़ फोर्ट में हफ्तों चली ये खोज

मोती डूंगरी में उनकी प्रॉपर्टी पर छानबीन शुरू हो गई. उसी समय उनके हरेक घर, हर ऑफिस, सिटी पैलेस, म्यूजियम, रामबाग़ पैलेस होटल, उनके बच्चों के घरों और दिल्ली में सांसद आवास पर भी छापे मारे गए थे. दो दिन बाद जयपुर में जयगढ़ फोर्ट पर भी छापा मारा गया. जब इनकम टैक्स अधिकारी फोर्ट के दरवाजे पर पहुंचे तो उसके प्रहरी मीना ट्राइबल के लोग थे. उन्होंने इनकम टैक्स अधिकारियों से कहा कि वे किले में उनकी लाश पर से गुजर कर ही घुस सकते हैं. गायत्री देवी ने याद किया कि जब से महाराजा जय सिंह ने इस किले के बनाया था तब से महाराजाओं और उनके अधिकारियों के अलावा कोई भी उसमें प्रवेश नहीं कर पाया था. लेकिन उन्हें प्रवेश दिया गया. ये छानबीन कई हफ्तों तक चलती रही. टीवी, रेडियो और अखबारों में रोज़ खबरें आ रही थीं.

जब अधिकारियों की आंखें फटी रह गईं

जयपुर में राजपरिवार के आवास सिटी पैलेस में कपाटद्वार राजकोष बना था जिसकी छत की मरम्मत की जरूरत थी. इससे कई साल पहले महाराज सवाई मान सिंह द्वितीय ने इसमें मौजूद सब कीमती चीजों को जयपुर में ही मोती डूंगरी के खास बनाए स्ट्रॉन्ग रूप में रखवा दिया. गायत्री देवी के मुताबिक वे इन चीजों को अलग-अलग केसेज़ में रखकर सिटी पैलेस में प्रदर्शन के लिए रखवाना चाहते थे ताकि वहां आने वाले सैलानी और लोग इस खजाने को देख सकें. जब इनकम टैक्स अधिकारियों ने इस खज़ाने को देखा तो उनकी आंखें चौंधिया गईं.

फिर मिला सोने के सिक्कों का विशाल भंडार
मोती डूंगरी के प्रांगण में एक दुपहरी जब गायत्री देवी सो रही थीं तो इनकम टैक्स अधिकारी नीचे बने पत्थर के आंगन से साथ मशक्कत कर रहे थे. गायत्री देवी ने इसे लेकर बताया था, “छापेमारी दल का जो इनचार्ज अधिकारी था वो उत्साह से भर गया जब उसे विशाल मात्रा में सोने के सिक्के मिले. इन सिक्कों को जय (मान सिंह द्वितीय) ही नाहरगढ़ के किले से मोती डूंगरी लाए थे जो भारतीय संघ में जयपुर रियासत के मिलने से पहले नाहरगढ़ किले के खजाने में रखे हुए थे. सौभाग्य की बात थी कि इस सोने का जिक्र जयपुर रियासत के आखिरी बजट में किया हुआ था तो एक-एक सिक्के का हिसाब था. लेकिन इसके बाद भी ये उत्पीड़न जारी रहा.”

ज़ाहिर है ये सिक्के ट्रकों में भरकर कहीं नहीं ले जाए गए थे और पूर्व-रियासत के पास इनका हिसाब था. इसके कुछ महीने बाद जून 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी घोषित करवा दी तो उसके बाद अपने विरोधियों को जेल भेजना शुरू किया।महारानी गायत्री देवी को भी तिहाड़ जेल डाल दिया गया. वहां पांच महीने उन्हें रहना पड़ा. उनके सबसे बड़े बेटे ब्रिगेडियर भवानी सिंह  को भी उनके साथ जेल कर दी गई.

इसके बाद अगस्त 1975 में रूस के वीकली न्यूजपेपर सेंट पीटर्सबर्ग टाइम्स ने जब गायत्री देवी को जेल करने की खबर पब्लिश की तो उसमें खजाने की खुदाई और उसमें मिले सामान की जानकारी भी दी गई थी. इसके मुताबिक, “बीती फरवरी सरकार ने कहा कि उसके जांचकर्ताओं को 1.70 करोड़ डॉलर कीमत की करंसी, डायमंड, एमेरल्ड और कीमती धातुएं मिलीं जो महारानी और उनके परिवार की थीं. इनमें सोने के सिक्कों और बुलियन का ज़ख़ीरा भी मिला जो एक पैलेस की जमीन के नीचे एक गुप्त तहखाने में छुपाया हुआ था जिसकी कीमत करीब 50 लाख डॉलर है.”

राजमाता एक महान देशभक्त महिला थी,वे हर युद्ध में अपने खजा़ने से एक बड़ा हिस्सा राष्ट्र को दान देती थीं।आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों को चोरी छिपे मदद भी करती थीं।जब भी राजस्थान में सूखा पड़ता तब तब वो शाही खजा़ने को जनता के लिए खुलवा देती थी।
जब आजा़दी के बाद राज्यों के एकीकरण की बात आई तो सभी राजा महाराजाओं,जमींदारों को एकत्र करने में इनका बडा़ योगदान था।
इसके बावजूद देशद्रोही कांग्रेसियों और कम्युनिष्टों ने उनके मरते दम तक उनसे रंजिश रखा,क्योंकि उन्होंने नेहरू खानदान के तलवे चाटने से इनकार कर दिया था।

नमन है ऐसी सच्चे राष्ट्रवादी नारी को हमारी तरफ़ से....
इतिहास उनके राष्ट्र के प्रति निश्वार्थ योगदान को सदैव स्मरण करेगा।

उनके अंदर छिपे कभी ना हार मानने वाले योद्धा से हम सबको प्रेरणा लेनी चाहिये....

Courtesy: Rishabh Singh, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1462386217184224&id=100002385807121

Monday, 7 August 2017

हुमायूँ_को_भेजी_राखी_का_सत्य

#हुमायूँ_को_भेजी_राखी_का_सत्य

आज रक्षाबंधन है और सेक्यूलर झूम झूमकर एक कहानी सुनाते मिल जायेंगे

और उस कहानी की बीन पर कुछ बेवकूफ किस्म के कूल ड्यूड - ड्यूडनियाँ  , #सिन्हा  टाइप के कुछ #स्त्रैण  और  #भू टाइप के ठरकी नाक सुड़कते और टसुए बहाते मिल जायेंगे -
एक कहानी के साथ और वो कहानी  कुछ यूं सुनाते हैं -

" इतिहास में एक अध्याय कर्मावती व हुमायूं के बीच प्रगाढ़ रिश्ते और राखी की लाज से जुड़ा है। कर्मावती ने हुमायूं को पत्र भेज कर सहायता मांगी थी। बादशाह हुमायूं ने राखी की लाज निभाते हुए अपनी राजपूत बहन कर्मावती की मदद की थी। अतः रक्षाबंधन हमारे लिए विजय कामना का भी पर्व है।

हमें कर्मावती और हुमायूं की वह ऐतिहासिक घटना सदैव याद रखनी चाहिए कि पवित्र रिश्ते मजहब के फ़र्क़ के बावजूद भी बनाए जा सकते हैं।पवित्र रिश्तों का सम्मान करना हम सभी का नैतिक कर्तव्य भी है। "

क्या तनिक भी शर्म आती है इन इतिहासकारों और तथाकथित सेक्यूलरों व मानवतावादियों को इतना बड़ा झूठ बोलते हुए ?

नहीं ना ??

क्योंकि तुम्हारा आत्मसम्मान तो कभी का मर चुका है ।

क्योंकि झूठ ही इनका जीवन बन चुका है और ये लोग घोर अंधकार के प्रतीक हैं ।

इन जैसे लोगों के सामने सत्य का दिया जलाना ही हम सबकी जिम्मेदारी है ।

तो सत्य क्या है ?

सत्य यह है ---
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सन 1535

चित्तौड़ , भारत की जिजीविषा का प्रतीक

खानवा के राष्ट्रीय संग्राम में हिंदुओं की दुर्भाग्यपूर्ण पराजय और राणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ दुर्भाग्यपूर्ण आंतरिक सत्ता संघर्ष में फंस गया जिसके चलते अगले राणा रतनसिंह की हत्या उनकी महत्वाकांक्षी विमाता रानी कर्मावती /कर्णावती के भाई सूर्यमल्ल के हाथों 1530 में हुई ।

कर्मावती ने अपने निहायत अयोग्य पुत्र विक्रमादित्य को सिंहासन पर बिठा दिया परंतु अधिकांश सरदार नाराज हो गये जिसका फ़ायदा उठाकर मांडू के सुल्तान बहादुरशाह खिलजी ने राणा सांगा व राणा रतनसिंह के हाथों मिली पराजयों का बदला लेने के लिये चित्तौड़ पर हमला कर दिया ।

सरदारों की बेरुखी से  घबराई  रानी कर्मावती ने चित्तौड़ की परंपरा पर कालिख पोतते हुए मेवाड़ और हिंदुओं के घोषित शत्रु विदेशी आक्रांता हुमायूं को #राखी भेजकर मदद मांगी ।

भारत में पैठ बनाने और भारत की स्वतंत्रता के प्रतीक राजपूताने की राजनीति का हिस्सा बनने को आतुर हुमायूं बंगाल मुहिम छोड़कर चित्तोड़ की ओर दौड़ा परंतु ग्वालियर तक पहुंचा था कि उसे बहादुरशाह का भी पत्र मिल जिसमें उसने कुरान के हवाले से याद दिलाया गया कि वह #काफिरों के विरुद्ध  #जेहाद कर रहे #गाजी पर हमला कर कुरान और इसलाम के विरुद्ध ना जाये वरना कयामत के रोज अल्लाह मिंयाँ और मुहम्मद को क्या मुंह दिखायेगा ।

परिणाम : हुमायूं के भीतर का #सच्चा मुसलमान जाग गया और वह राजनीति व  इंसानी रिश्तों  पर भारी पड़ा ।
कर्मावती को अन्य रानियों की धिक्कार के साथ जौहर करना पड़ा ।

सबक : 1-- एक #सच्चा #मुसलमान पहले एक एक मुसलमान है और उसके बाद वो कुछ नहीं है ।

2-- एक #सच्चे #मुसलमान के लिये एक हिंदू #काफ़िर है और उसके बाद कुछ भी नहीं ।

3-- एक मुस्लिम का दुश्मन मुसलमान हो तो वह उंसके लिये #दीनी #भाईजान पहले है दुश्मन बाद में भले ही वह उसकी #हिंदू #बहन के साथ बलात्कार करने की कोशिश कर रहा हो क्योंकि निगाह तो उसकी भी वहीं लगी होती है ।

स्त्रोत : " मध्यकालीन भारत का इतिहास " - #डॉ #आशीर्वादीलाल  #श्रीवास्तव
समीर भाई की कलम से।।
Courtesy: Jetendra Pal https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=122166428417984&id=100018738811367

मानव_का_आदि_देश_भारत, पुरानी_दुनिया_का_केंद्र – भारत

#आरम्भम - #मानव_का_आदि_देश_भारत - ------------------------------------------------------------------              #पुरानी_दुनिया_का_केंद्र...