Saturday, 29 July 2017

सेना मे अफसरों और जवानों की कमी?

★पागलतंत्र ★
सेना मे अफसरों और जवानों की कमी कोई नई बात नही है ! 2005 मे ही मैने सुना था कि सेना मे 20 हजार अफसरों की कमी है !
                 ऐसा नही है कि भारतीय नवजवान सेना मे भर्ती होने नही जाते हैं ! हर साल CDS और SSB की परीक्षा मे हजारों युवक जाते है ग्रेजुएशन के बाद पर एक हफ्ते चलने वाले इंटरव्यु के बाद एक दो हजार मे एक दो लोग चुने जाते है ! और हजारों लोग तो लिखित परीक्षा के बाद ही गणित और अंग्रेजी कम आने के कारण छाँट दिये जाते है..?
मतलब गणित का गुणनखण्ड नही साल्व कर पाते या अंग्रेजी के प्रीपोजीशन का सही इस्तेमाल नही कर पाते तों आप कमजोर है, युद्ध नही कर सकते ?
           कहते हैं अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति मलिक काफूर हिजडा था ! हजार दिनार मे गुलाम के रूप मे खरीदा गया हिन्दु था ! इस्लाम स्वीकार किया , सेनापति बना और पूरा दक्षिण के राज्यों को जीत कर खिलजी साम्राज्य मे मिला दिया !
             लेकिन आज वो होता तो सेना मे ही न भर्ती हो पाता ? मेडिकल मे ही फेल कर दिया जाता ? या भर्ती करने वाले अधिकारी उसका मजाक उडा के भगा देते ?
                 क्या आपको लगता है 30 युद्धों में 28 युद्ध जीतने वाला हेमु आज की सेना मे भर्ती हो पाता ? रेवाड़ी के बाजार मे नमक बेचा करता था हेमु ..? कैसे पास करता CDS की परीक्षा ??
                  सेना मे लडके अपना साहस और शौर्य प्रदर्शन की तमन्ना लेके भर्ती होने जाते है ...लेकिन गलती से भी आपने कभी पूर्व मे अपने शौर्य का प्रदर्शन किया तो आप सेना मे भर्ती नही हो सकते ...?
              आपने किसी को भले ही अपने बचाव  मे एक दो थप्पड मारा है अगर आपके खिलाफ थाने मे मुकद्दमा लिख गया हो तो आप भले ही दुनिया कि किसी सेना मे भर्ती हो जाये लेकिन भारतीय सेना मे नही जा सकते ? अब उस केस का फैसला आने मे ही चार छ साल लग जायेगा .....तब तक आप ओवर एज हो जायेंगे ..? हर साल हज़ारों लडके इसी कारण भर्ती नही हो पाते .?
              अभी एक दो साल पहले दो लडके बस मे जा रहे थे (सेना मे उनका चुनाव हो चुका था ) बस मे एक लडकी ने छेड-छाड का आरोप लगा दिया ! साथ चलने वाले सहयात्रियों ने भी टीवी पर आकर बताया कि आरोप झूठा है ...लेकिन सेना कि तरफ सबसे पहले नियुक्ति रद्द कर दी गई ..?? अब इस तरह की लालफीताशाही रहेगी तो सेना मे कैसे जवानों की संख्या बढेगी ...???
आप पंजाब,हरियाणा और यूपी के गाँवों का सर्वे कर लीजिये लगभग 60 से 70% इंटर पास लोग अपने युवा अवस्था मे (22 वर्ष की आयु के पूर्व ) सेना की भर्ती मे लेते हैं ! लेकिन 1 या 2 को छोडकर ज्यादा तर लोग अयोग्य घोषित कर दिये गये ....और उन्ही मे से कुछ लोग बाद मे पुलिस,CRPF और BSF मे भर्ती हो जाते है ...!
             गाँव के उन हट्टे- कट्टे दिखने वाले लोगों से पूछिये कि किन किन आधारों पर अयोग्य घोषित किये गये थे ..?
कुछ के कारण सुन के तो आश्चर्य मिश्रित हंसी आती है ...!? मसलन कान मे वैक्स होना ..बाल साफ न होना आदि ...!
मेरे एक परिचित को मेडिकल से ये कहते हुये डाक्टर ने ये कहते हुये फेल घोषित कर दिया था कि " तुम्हारा बाये पैर का अंगूठा सही नही है "
अब पाँच किलोमीटर की दौड और 16 फिट की छलाँग लगा कर फिजिकल टेस्ट पास करने वाला बाहर के डाक्टरों को दिखा दिखा के ये जानने के लिये परेशान था कि उसके अंगूठे मे हुआ क्या था ....??
आप भले ही 20 फीट छलांग लगाते हो लेकिन आपका जरा सा पैर लाईन पे छू गया तो आप फाउल ...और फिजिकल मे फेल ...?
क्या इजराईल मे भी ऐसा होता है ...?? अगर इजराईल मे भी इसी तरह से तमाम आलतू - फालतू आधारों पे सेना से लोगों को छाँटने तो हो गया फिर ..?
क्या अगर एक लडके के विरूद्ध मारपीट का मुकद्दमा दर्ज हो उसे सेना मे भर्ती कर लेने से सेना कमजोर हो जायेगी ?
सेना के अफसरों कि भर्ती के क्या नार्म है ये आज तक समझ मे नही आता !
गाँव मे पढने वाले अच्छे खासे बच्चे को जब तक ये पता चलता है कि NDA क्या है ...इसका फार्म कहाँ मिलता है, कैसे परीक्षा होती है .....तब तक उसकी NDA ज्वाईन करने की उम्र निकल जाती है ..!
और ग्रेजुएशन के बाद CDS की परीक्षा मे बैठता है ...तो इन्टरव्यु मे क्या देखा जाता है भगवान जाने ..!?
बस एक चीज सुनाई पडती है योग्य लडके नही मिलते ...?
सरकार ने सेना मे लोगों को आकर्षित करने के नाम पे विज्ञापन भी दिये ...सचिन व महेन्द्र सिंह धूनी को सेना का आनरेरी पद भी दिया ....लेकिन विज्ञापन मे किये गये खर्च का नतीजा क्या निकला ....??
अब तो सैन्य अफसर की भर्ती की तैयारी कराने के लिये कोचिंग भी चलाई जाने लगी है ....लडके हजारो रूपये खर्च करके कोचिंग ज्वाईन कर रहे है
लेकिन नतीजा .....???
बस वही रोना ...योग्य कैन्डीडेट नही मिल रहे है....?
अरे भाई ठीक आप भर्ती न करे लेकिन कम से कम ट्रेनिंग देके रिजर्व मे तो रख सकते है ....??
ये अफसर शाही और लालफीता शाही हटाये ....50 हजार लडके बिना तनख्वाह और पेंसन की मांग किये लडने के लिये मिल जायेंगे ....!?
कहना तो नही चाहिये लेकिन थोडा आतंकियो की भी सैन्य क्षमता का अध्ययन करिये ...वो कोई मिलिट्री स्कूल के अंग्रेजी माध्यम से पढे नही है ...लेकिन सैन्य विद्या मे किस तरह निपुण किये गये है ये भारतीय सेना अच्छी तरह जानती है ...!
तो थोडा ....विचार करिये ....
और याद रखिये ...दुनिया मे ऐसे बहुत से लोग हुये जिन्हे सेना के पहले सेना के अयोग्य घोषित कर दिया गया था ...नेपोलियन 5 फुट का ही था ...जिसे प्रारम्भ मे सेना के अयोग्य घोषित कर दिया गया था ....लेकिन बाद मे योग्य सेनापति साबित हुआ ....
और हाँ सैन्य योग्यता केवल अंग्रेजी माध्यम से पढ कर ही नही आती ....परमवीर चक्र से सम्मानित एल्बर्ट एक्का को किसी कान्वेंट स्कूल से नही चुना गया था ..!?
तो लालफीताशाही और अफसर शाही से हटाईये ! शार्ट सर्विस का दायरा बढाईये .. ! इच्छुक लोगों को सैन्य प्रशिक्षण दीजिये ..आपात काल मे वो भी लड़ सकते है ।
साभार : Kumar Pawan(वाया त्रिकालदर्शी)
Courtesy:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1959449434337736&id=100008180959496

The SQAY martial arts of Kashmir

Sqay Martial arts
Kashmir
#incredibleindia

Kashmir known as the valley of dreams and paradise on the earth. Kashmir has its own ancient cultural background and is famous for its cultural beauty, mountains, lakes, gardens and crafts. The history of “SQAY” can be traced in early days of Kashmir history, when man learnt to protect himself from wild animals, individually or collectively.
Before 4012 B.C Sqay Martial Art was used by kashmiri’s to protect themselves and used this art for kill animals for their food purposes. But after 3905 B.C the king “Diya Dev” give the training of this art to the soldiers for protection of Kashmir from enemies and give strict orders to follow up these rules to soldiers.
In 3889 B.C, a storm had destroyed whole Kashmir. The storm was known as (Tophani Nuh A.S). Storm of Nuh A.S, That storm had destroyed whole nation. The few people were alive in (Kohistans) forests of Kashmir.They used this art for protection themselves from wild animals and enemies, and using this art for killing animals for food purposes individually or collectively. After the storm of Nuh A.S when the Kashmir was rebuilt in the period of Kashwap Reshi then their was the democratic government.
The king of Kashmir “Puran Karan” started the training of “SQAY Martial Art for their solidiers and made it compulsory. In 3121 B.C king “Oukhand” was the king of Kashmir. In this period, a big war destroyed some parts of Kashmir. After 3121 B.C Kashmir was safe from invaders up to 1324 A.D. In 1324 A.D, Kashmir was once again attacked and this time the king “Zavel Qader Khan” Tatari defeated the king of Kashmir.
During the muslim period from 1325 A.D to 1819 A.D, the SQAY Martial Art training was compulsory for Kashmiri soldiers. These martial art were known as Kashmiri “Shamsherizen”.
After the 1819 A.D due to the poor intention of government, the ancient traditional war art of Kashmir was not developed and popularity thus vanishing this art of defense from Kashmir..
Now from the 2 decades from i.e 1987 we are working hard to develop this ancient traditional cultural martial art in world arena by conducting sports competitions of this art. We hope with in the limited period of time it will get popularity in world arena like other martial arts.
We Kashmiri’s must not forget that we have our indigenous martial art which is not below the standard of other martial arts.

ARMY ASSISTANCE TO SQAY MARTIAL ARTS ASSOCIATION, SHOPIAN BY 44 Rastriya Rifles.

Army once again came forward to lend a  helping hand in maintaining the old and rich traditions of Kashmir, pledging to revive the traditional martial art from Kashmir known as 'Sqay'. Sqay is a South Asian form of sword fighting dates back to ancient period of Kashmir.The Sqay Martial Arts Association, Shopian,J&K has vowed to revive this ancient martial  art which is steadily disappearing. Rashtriya Rifles of Indian army in coordination with Global Youth Foundation, organised a two day coaching cum adventure camp to Dubjan and adjoining areas with an aim to encourage budding players from this sport.  A group of twenty players have joined this camp,  which includes, Tajwar Tariq and Susan Zapper who have brought Gold and silver medal respectively for the country,  in recently conducted 6th Asian championship

Information credit: SQAY Federation of INDIA
Courtesy: https://m.facebook.com/rishabh007k/photos/a.1800781460240976.1073741835.1656075844711539/1853979918254463/?type=3

Thursday, 27 July 2017

जो इतिहास को भुला देता है , अक्सर इतिहास भी उन्हें भुला देता है

यह सत्य है और सत्य का साक्षात्कार चाहे  कितना भी अप्रीतिकर क्यों ना हो अंततः होता कल्याणकारी ही है । जानिए की आपके पूर्वजो ने क्या क्या देखा है ,सहा है ,जिया है । संभव है अपने इतिहास से आप प्रतिशोधात्मक उत्तेजना ना भी ग्रहण करना चाहें  लेकिन यदि आपने सबक भी नही लिया तो निश्चित ही पुनरावृत्ति की सम्भावना को ध्रुव जानिए ।

   " जो इतिहास को भुला देता है , अक्सर इतिहास भी उन्हें भुला देता है  ।"

पढिये आदरणीय Avinash जी भाई साहब के समाज का इतिहास उन्ही के शब्दों में .....

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" गणेशराम आचार्य तुम झूठे हो और यदी तुम अपनेदावे को सही साबित करना चाहते हो तो सबूत पेश करो की तुम्हारे अपने परिवार- कुटुंब के साथ शांतिप्रिय सूफी मुस्लिम समुदाय ने अत्याचार किये स्त्रियो पर बुरी नजर डाली , हत्याकांड रचे
और यदी सबूत नही हैं तो साक्ष्य के अभाव मे उनको बाइज्जत बरी किया जाता है और तुम पर झूठे आरोप लगाने और कोर्ट ऑफ कंटेम्प्ट का मुकदमा चलाने का आदेश माननीय उच्चतर न्यायालय देता है "

हमारे दद्दा (ताऊ जी) टीचर थे और पिताजी किसानी करके वृत्ति कमाई
उनके मुंह से हम अकसर सुनते थे की बेटाहम लोग द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा के वंशज हैं  हम लोगो को पौरोहित्य करके वृत्ति कमाने का निषेध है पूर्वजो द्वारा
ज्यादा पूछने पर बताते थे की करीब ढाई सौ वर्ष पूर्व हमारे पू्र्वज दिल्ली के उसपार से मतलब कुरूक्षेत्र के आसपास से यहां आये थे
कारण रहा मुस्लिम जागीरदारो और सरदारो का अत्याचार प्रसंग ऐसा था की वहां के एक ब्राह्मण बहुल गांव मे करीब साढे़ चार सौ परिवार रहते थे ब्राह्मणो के उनकी मे से एक परिवार था गणेशराम आचार्य पुत्र बुद्धी राम आचार्य का
उनके परिवार भरापूरा था पिता के इकलौते पुत्र थे
वो इलाका गजनी के आक्रमणो के समय से ही मुसलमानो के आक्रमण का शिकार रहा
सुनते ग्राम की ही  कुछ युवतियों पर मुस्लिम सरदारो के परिवार जनो की दृष्टी पड़ी और वे उनको उठा कर लेगये थे
भयवश विरोध भी नही हुआ परंतु यह सिलसिला हर माह दोमाह मे दोहराया जाने लगा
जब यही घटना दो तीन बार हुई तो गणेशराम जी ने विरोध करना शुरू किया वे उस समय युवा थे शायद तेइस चौबीस से सत्ताईस वर्ष के बीच
ग्राम के बुजुर्गो से बात की होगी शायद उस समय भी राजनाथी कड़ी निंदा संप्रदाय के लोग पाये जाते थे सो कोई हल नही निकला सो उनने अपने साथ के कुछ दोस्तो के साथ मिल कर सशस्त्र विरोध करने का निर्णय लिया
शायद कुछ हल्की झड़पे हुईं होंगी शुरूआती |
लेकिन कुछ दिनो बाद चैत के महिने में शायद नौरातो के समय पूजा उत्सव करती महिलाओ को उठाने आये पठानो के बड़े दल से उनलोगो की भिड़ंत हुई
तब तक गणेशराम जी के साथ कई युवक जुड़कर संख्याबल मे ज्यादा होचुके थे ने प्रतिकार किया
लगभग सारे मुसलमान मारे गये उनका मुखिया भी कुछ ही बच कर भागगये
लेकिन बाद मे पता पड़ा की वह मारा गया मुखिया उस समय के मुसलमान जागीरदार का रिश्ते मे दामाद या भतीजा लगता था 
और जल्दी बड़ा हमला अब ग्राम पर होगा
राजनाथी बुजुर्ग तत्काल गणेशरामजी के विरोध मे आगये और आरोप दिये की इस आदमी की वजह से पूरा गांव बरबाद हो जायेगा
बहुत वाद विवाद के बाद हल नही निकला तो गणेशराम जी ने ही गांव को त्यागने का निश्चय किया
उनका निर्णय सुनकर उनके संगी साथी जो ब्राह्मण थे या कुछ अहीर वेे भी साथ जाने को तैय्यार होगये
देखा देखी करीब तीन सौ सवा तीनसौ कुटुंब स्वनिर्वासन को प्रस्तुत हुये
बाकी बचे परिवारो के मुखियाओं ने अपने पशुधन विशेषकर किमती भैंसो और आसपास फैले पुरोहिताई के व्यवसाय को लालच मे आकर ना जाने का निर्णय लिया
चैत्र शुक्ल अष्टमी की रात को सवा तीन सौ कुटुंबो ने अपने पूर्वजो के ग्राम ,धरती ,खेती बाड़ी ,पशुधन रीती रिवाज सगे संबधीयो को त्याग कर दक्षिण को प्रस्थान किया
चलते चलते कुछ दिनो उपरांत मुसलिम सिपाहियो ने हमले किये और शायद दिल्ली से बस थोड़ा आगे की बात है ये खूब लड़े कुछ खेत भी रहे उसमे पर बच निकले
वहीं पर खबर मिली की बाकी बचे पूरे गांव के परिवारो को मारकर सब धन ,पशु औरते लूट ली गई और सारा गांवको जला दिया गया
ये सुनकर गणेश रामजी ने वहां पर सब लोगो को अपनी आन देकर सौगंध धरवाई की आज से उन लोगो मे से कोई कभी पुरोहिताई नही करेगा ना भैंस पालेगा
वे आगे चलते रहे  राजनीतीक उठापटक का काल था वह शायद शेरशाह सूरी और हुमांयु के समय का पूरा उत्तर भारत लुटेरे मुसलमानो के हाथ की लौंडिया बना हुआ था
कितने हमले हुये कितने लोग मरे कोई स्पष्ट गिनकी नही
खुद गणेशरामजी की धर्मपत्नि और संतति समाप्त हुई रास्ते के कष्टो और बीमारियों मे
आखिरकार गणेशराम जी की अगुआई मे ये लोग मालवे सेलगते वर्तमान बुंदेलखंड मे स्थित ग्राम अकाझिरी और फिर बाद मे रन्नौद मे आकर रूके
यह जगह पथरीली थी पर मुसलमानो के उच्छंखृलता से दूर थी तब
ये सारे कुटुंब वही बस गये
गणेशरामजी ने फिर विवाह नही किया
पर अपने कृतत्व के कारण  वे कुल के आद्यपुरूष  स्वीकारे गये
उनके देहधाम छोड़ने पर वहां पर स्थित कर कुल के मुख्य पुरूषो ने उनको स्ममिलित रूप से मुखाग्नि दी और उनके पिंड तिल जल काो अपना कर्तव्य स्वीकार कर लिया
कालांतर मे कई परिवार वहां से निकल कर ग्वालियर , गुना टीकमगड़ और मालवे मे चले गये
पहले राजपूत और बादमे मराठा रियासतो यथा सिंधिया होल्कर दोनो मे  नौकरी की,  सेना में भर्ती हुये
पर हर परिवार ने तीन नियम अटल रखे की पौरोहित्य से वृत्ति नही , भैंस का पालन नही और तर्पण मे देव ऋषि तर्पण के बाद परिवार का पहला तर्पण गणेशरामजी का
दद्दा और पिताजी दोनो के मुंह से पूरी कहानी दसियो बार सुनी हमने वो दोनो जब ये सुनाते तो लगता की वो सुना नही रहे हो बल्की देख कर विवरण देरहे हों
बाद मे हम जब समझदारी की उम्र मे आये तो रन्नौद मो होने वाली वार्षिकी पूजा मे पता लगा की गणेशराम जी की तलवार टीकमगढ़ चले गये परिवार के पास है और वो परिवैर बहुत बुरी स्थिती मे है मुखिया मरगये हैं कुलदीपक शराबी जुआरी निकल गये
लालची दिमाग मे कीड़ा कुलबुलाया और पारिवारीक संपर्को के माध्यम से उन कुल दीपक से  मुलाकात की कुछ पैसे और रॉयल स्टैग की चार बोतलो के बदले मे अपने कुल के नायक की तलवार वापस ले आये
जब पिताजी को वो तलवार दी तो वो घंटे भरतक उसको पकड़े बैठे रहे भाव विभोर होकर
नीचे पिक मे दी तलवारो मे सबसे नीचे की सीधी पुर्तगाली बाने की तलवार जिसे फिरंग कहाजाता है वो गणेशरामजी की है
हालांकी यह फिरंग नही है फिरंग इससे लंबी होतीहै
खैर ये सब तोपिछली बाते होगईं
लेकिन अभी जब सुप्रीम कोर्ट ने काश्मीरी ब्राह्मणो के हुये हत्याकांडो पर याचिका लेने से इंनकार करते हुये कहा की यह बात बहुत पुरानीहै और इसके कोई सबूत नही है तब लगा की जब महज तीस साल पहले के हत्याकांडो के कोई सबूत नही मान रही कोर्ट तो ढाईतीनसौ साल पहले के अत्याचारो को क्या मान्यता देगा जो मात्र किवदंतियो मे शेष है
हम ये पोस्ट लिख रहे हैं और कानो मे सुप्रीम जिल्लेइलाही के मुनादीवाले की नगाड़े की ध्वनि और मुनादी गूंज रही है

"खल्क खुदा का , मुल्क बादशाह का ,हुकुम सुप्रीम काजियत अदालत का
हर खासोआम को इत्तला के साथ खबरदार कियाजाता है की गणेशराम वल्द बुद्धिराम आचार्य को मा बदौलत झूठा करार देते हैं क्योंकी वो अपने और अपने परिवार कुटुंब के ऊपर हुये अत्याचार ,हत्याकांडो के कैसी भी सबूत शहादते पेश नही करपाया
इसलिये सुप्रीम कज़ियत इसे इसके मानस वंशजो द्वारा दिये जाने वाले पिंड तिल जल से महरूम करती है
बाद मनाहि के अगर किसी ने ऐसा किया तो वो मा बदौलत गुनैहागार होगा और उसपर खुदाई कहर नाज़िल होगा .............."

Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10208485041837984&id=1665455763

Racist States of America, the ugly west

Foreign countries like the US and Britain treat Indians the same way the Colonial-Totalitarian Indian State has done since 1947:

Here is what happened to Indian land owners in California:

According to the 1919 census of land in the state of California, Indians owned 88,000 acres of land in California. 52% of this land was in the Sacramento valley.

In the Imperial valley they owned 32,000 acres. However, most of these Indians were destined to lose their land under the 1913 California Alien Land law. The supreme court of the USA, in November 1923, upheld this law and claimed that it did not violate the fourteenth amendment.

A few months later California strengthened the law, disallowing Indians from even leasing land. Hence Sikhs and other Indians could only work as agricultural labourers. Racism could also turn violent.

On September 5, 1907 in Bellingham, a frontier town in Washington State, mob of over 500 angry racist white men kicked open the doors to the waterfront barracks. Some of them grabbed all the “hindus'” belongings and threw them onto the street. If they found any money or jewelry they pocketed it. The others went after the “rag-heads” themselves.

They dragged the Indians from their beds and punched and kicked them. The ones that jumped out of the buildings to escape injured themselves in the process or were caught and beaten outside. Other rioters attacked a tenement on Forest Street. Once they were done beating the “hindus” they burnt the bunkhouses. The police just stood and watched.

police chief turned over City Hall to the mob so the mob could collect the Indians and hold them there. He claimed it was to protect the Indians! Earlier, at the insistence of the mob, his policemen had released two youths who had been caught stoning Indians. They didn’t interfere with the mob’s rampage after that. As all the ‘Hindus’ left town nobody was prosecuted. But history repeated itself in other towns.

On November 5th, 1907, in Everett, Washington ,over five hundred armed men attacked and beat the Indians and robbed and destroyed their belongings. Most newspapers editorials in the west including the San Francisco Chronicle condemned the violence but proclaimed that they understood and supported the intentions of the mobs for a “white west coast”.

These racist aspirations coalesced into groups such as the Asiatic Exclusion League. Thousands of Indian immigrants who had been naturalised lost their citizenship as they were deemed to be ‘non-Aryan’.

For example Bhagat Singh Thind had his citizenship revoked twice, finally becoming a naturalised American only in 1935, almost 20 years after arriving in the country. This was by virtue of the fact that he had served in the military.

Courtesy:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10156452125698082&id=683703081

Wednesday, 26 July 2017

The meaning of Shiva Lingam

शिवलिंग को गुप्तांग की संज्ञा कैसे दी और अब हम  हिन्दू खुद शिवलिंग को शिव् भगवान का गुप्तांग समझने लगे हे और दूसरे हिन्दुओ को भी ये गलत जानकारी देने लगे हे।

प्रकृति से शिवलिंग का क्या संबंध है ..?
जाने शिवलिंग का वास्तविक अर्थ क्या है और कैसे इसका गलत अर्थ निकालकर हिन्दुओं को भ्रमित किया...??

कुछ लोग शिवलिंग की पूजा
की आलोचना करते हैं..।
छोटे छोटे बच्चों को बताते हैं कि हिन्दू लोग लिंग और योनी की पूजा करते हैं । मूर्खों को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता है..और अपने छोटे'छोटे बच्चों को हिन्दुओं के प्रति नफ़रत पैदा करके उनको आतंकी बना देते हैं।संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है । इसे देववाणी भी कहा जाता है।

*लिंग*
लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह, प्रतीक होता है…
जबकी जनर्नेद्रीय को संस्कृत मे शिशिन कहा जाता है।

*शिवलिंग*
>शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक….
>पुरुषलिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक और नपुंसकलिंग का अर्थ हुआ नपुंसक का प्रतीक। अब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य की जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है..तो वे बताये ”स्त्री लिंग ”’के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए ।

*शिवलिंग”’क्या है ?*
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है । स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।
शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है और ना ही शुरुआत।

शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता ।
..दरअसल यह गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और मलेच्छों यवनों  के द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने पर तथा बाद में षडयंत्रकारी अंग्रेजों के द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ है ।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं ।
उदाहरण के लिए
यदि हम हिंदी के एक शब्द “सूत्र” को ही ले लें तो
सूत्र का मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है। जैसे कि नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि ।
उसी प्रकार “अर्थ” शब्द का भावार्थ : सम्पति भी हो सकता है और मतलब (मीनिंग) भी ।
ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है । धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है।तथा कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है। जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)

ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे हैं: ऊर्जा और प्रदार्थ। हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है।
इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैं।
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा ऊर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है.

The universe is a sign of Shiva Lingam

शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी है। अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान हैं।

*अब बात करते है योनि शब्द पर-*
मनुष्ययोनि ”पशुयोनी”पेड़-पौधों की योनी’जीव-जंतु योनि
योनि का संस्कृत में प्रादुर्भाव ,प्रकटीकरण अर्थ होता है....जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है। किन्तु कुछ धर्मों में पुर्जन्म की मान्यता नहीं है नासमझ बेचारे। इसीलिए योनि शब्द के संस्कृत अर्थ को नहीं जानते हैं। जबकी हिंदू धर्म मे 84 लाख योनि बताई जाती है।यानी 84 लाख प्रकार के जन्म हैं। अब तो वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है कि धरती में 84 लाख प्रकार के जीव (पेड़, कीट,जानवर,मनुष्य आदि) है।

*मनुष्य योनि*
पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनि होता है।अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनि शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता है। तो कुल मिलकर अर्थ यह है:-

लिंग का तात्पर्य प्रतीक से है शिवलिंग का मतलब है पवित्रता का प्रतीक ।
दीपक की प्रतिमा बनाये जाने से इस की शुरुआत हुई, बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं | हवा में दीपक की ज्योति टिमटिमा जाती है और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती है। इसलिए दीपक की प्रतिमा स्वरूप शिवलिंग का निर्माण किया गया। ताकि निर्विघ्न एकाग्र होकर ध्यान लग सके | लेकिन कुछ विकृत मुग़ल काल व गंदी मानसिकता बाले गोरे अंग्रेजों के गंदे दिमागों ने इस में गुप्तांगो की कल्पना कर ली और झूठी कुत्सित कहानियां बना ली और इसके पीछे के रहस्य की जानकारी न होने के कारण अनभिज्ञ भोले हिन्दुओं को भ्रमित किया गया |
आज भी बहुतायत हिन्दू इस दिव्य ज्ञान से अनभिज्ञ है।
हिन्दू सनातन धर्म व उसके त्यौहार विज्ञान पर आधारित है।जोकि हमारे पूर्वजों ,संतों ,ऋषियों-मुनियों तपस्वीयों की देन है।आज विज्ञान भी हमारी हिन्दू संस्कृति की अदभुत हिन्दू संस्कृति व इसके रहस्यों को सराहनीय दृष्टि से देखता है व उसके ऊपर रिसर्च कर रहा है।

*नोट÷* सभी शिव-भक्तों हिन्दू सनातन प्रेमीयों से प्रार्थना है, यह जानकारी सभी को भरपूर मात्रा में इस पोस्ट को शेयर करें ताकि सभी को यह जानकारी मिल सके जो कि मुस्लिम और गोरे अंग्रेजों ने षड्यंत्र के तहत फैला दी थी।

🚩सनातन धर्म विजयते🚩
#अघोर

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Tuesday, 25 July 2017

Our Neighbours Our overlords

plus ça change, plus c'est la même chose

Our Neighbours  Our overlords:: A repeat: (I had written this in 2013):

Chinese influence in Africa, South America and elsewhere runs very deep. Unknown to India, Chinese Navy is in close training and learning arrangements with Brazil, for example. : Submerged but audible to the sensitive sonar like the Jing and the Shang.
China works to long term strategic plans that move step by step for decades towards a specified goal, China was active in Africa since the 1990s. They had an operative there in Nairobi who ran the best Chinese Restaurant in town, spoke English with his family and was point man for Chinese plans in Sub-Saharan Africa. He carried a PRC Passport and was close to the Pakistan High Commissioner. He traveled a lot and was quite open about China's intentions. The plans were ready and waiting for the money to flow from the Chinese export boom to the US. I knew him well in 1995-1999 and was often invited for his soirees, with free food and drink to discuss matters related to the Internet and Information and Communication Technology.

China's long term contracts for raw materials and so on were done quietly but went on as stated, without secrecy, beyond the preoccupation of White House and Euro Centric media with other matters.

Pakistan is a more nuanced case. Pakistan was the sword arm of Saudi Arabia which is the long term ally and funder of US opinion and decision makers. (Since Nixon, Kissinger and Sheikh Yamani forged the US-NATO-Sunni Axis). It is Pakistan that brokered the US-China entente cordiale. Nuclear weaponisation came to Pakistan from the US (not China which handed over help with missiles and subsequent evolution of Nukes into tactical (battle field) weapons to both Pakistan and North Korea later)) albeit through various routes, including Europe where Holland was an integral part of the CSIR (South Africa)-Israel Nuclear Weapons program and from where A.Q.Khan procured Pakistan's centrifuges.

I used to be a frequent visitor to the CSIR facility on Meiring Naude Road, Pretoria during the '90s and was on a Nile cruise in December (Christmas) 1996 watching Egypt's best belly dancers with Musharaf, Qaddafi and Mubarak on my way back from an Internet seminar at Oxford. I was, at that time, based in Nairobi working on bringing the Internet to Africa. Chinese plans have fructified, inexorably,including the highway from China ending with a Chinese Port on the Arabian Sea in Pakistan.

Pakistan selected Balochistan for this in order to secure Chinese help to control Baloch rebellion which is now being brutally suppressed with Chinese help. India, with characteristic stupidity, is not fishing in the troubled waters of Pakistan.

The US has shoved Russia towards China by escalating the William Lewinsky Clinton begotten Cold War with its Ukraine mischief. Which allows the China-Pakistan axis a stronger hand while weakening India even further. Pakistan has successfully locked in the US while moving closer to China than the US-NATO-Sunni Axis might wish. This is why the "Strategic" Long term plans for the People's Liberation Army that was approved by China's National People's Congress (Parliament) more than a decade ago needs to be taken very seriously. Lebensraum it is.

As for India, it is still constitutionally preoccupied in plundering hapless Indian rendered into Thrid Class citizens by India's grotesque Constitution for the benefit of its Nouveau Kleptocracy. Condemnded by it plagiarized Constitution to a perpetual state of civil war that has pushed India down to 135 out of 172 countries in Human and Social Development and 143 out of 172 countries in Internal Peace and Stability, India is easy prey. Both China and Pakistan know this. So does the rest of the World. Their actions speak louder than words.

That Nehruvianism works in India is not in doubt. The better man loses in Courts, and elsewhere to the raw power of Stalinism, but to expect countries outside India's border to succumb willingly to Nehruvian Hobby Horses might be a step too far.

If, indeed, India's ruling politicians and bureaucrats had National interest in mind rather than their own, would they have gone on public record announcing that Daulat Beg Oldi does not belong to India? The "Hon'ble" (for they are all honourable men) External Affairs Minister, Salman Khurshid  stated that possession of Daulat Beg Oldi is all about "perceptions" and the Hon'ble Home Minister, Sushil Kumar  Shinde  proclaimed Daulat Beg Oldi as "NO MAN's LAND". Well, it is China's now. Line of "ACTUAL CONTROL". Remember? And Chidambaram will deftly refocus India's hackles on the threat within: "Saffron Terror" is the existential threat to India he will say in support of Rahul Baba's whispers into the US Ambassador's ears..

"Possession is nine tenths of the law". While the Home Minister might hope that China will forget what he said,  like India's vote-fodder will forget Coal Gate and Bofors (which last, he expressed in a public speech), this is unlikely. China works out its strategies on a fifty year horizon. In International Fora, they will now claim, with considerable credibility,  that India's rulers officially gave up their claim on Daulat Beg Oldi and that it is the jingoism of isolated media and military elements that are pushing for India to grab well established Chinese territory.

Pakistan provides India's rulers with a comparatively harmless bogey man to bully for their Indian "limited bullets" audience. It is when these jackals that rule India encounter lions like China and the US, that their mettle is exposed. The World will not stand still and wait for India to catch up. India’s ruling elites have had an easy time of exploiting the starving, illiterate, defecating-in-the-open, vote fodder to pass totalitarian laws and strip the middle class through inflation or expropriation for squirreling away in their "safe haven" accounts.

They are nonplussed when they come across a foreign power that, as is their own wont, does not adhere to established rules. They do not have competence or integrity because the Indian political system does not give power to either factor. Corruption, which is high treason, as it hollows out the Nation, is the primary qualification to rule India. a few days ago, the Govt agreed further amendments to the anti-graft law to ensure that India’s corrupt extortionists are still better protected from retribution and that it will remain business as usual.

The signals on China’s intentions towards India were loud and clear long ago. In this regard, I had written in the Los Angeles Times and the Japan Times advocating an alliance between India, Japan and the US in 2006. The PLA’s recent documents presented to their "New" Rulers on the doctrine of "War Zones" and starting “limited wars” in their periphery to become militarily unchallenged are explicit.  India, though,  has always had a penchant for the ornamental and the absurd rather than any traction on National Security because the limits of the horizons of India’s ruling elites is the "Z Class" personal security that they probably feel will protect them from all enemies and the "strategic depth" that will allow them to withdraw and re group in Switzerland and  Mauritius.

This is why,India's ruling tyrants have always preferred, like the Nazis and the Czars to persecute enemies of their choice. Hapless innocents who can be easily raped, murdered, jailed without evidence and bullied. This is why they have extended their British born hatred of Brahmins to Saffron.

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Monday, 24 July 2017

प्रशासनिक सेवा परीक्षा में भारत के इतिहासबोध की गला घोंटकर हत्या का कुचक्र

प्रशासनिक सेवा परीक्षा में भारत के इतिहासबोध की गला घोंटकर हत्या का कुचक्र
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कुछ समय पहले मैंने RAS (प्रशासनिक सेवा) की तैयारी के लिए एक कोचिंग में सम्पर्क किया था। कल परसों उनका कॉल कि हमारा नया बैच स्टार्ट हो रहा है तो आप उसमें दो दिन ट्रायल क्लास ले सकते हैं। एडमिशन तो मुझे अभी लेना नहीं था पर मैंने सोचा ट्रायल क्लास लेने में क्या हर्ज है। तो आज मैं ट्रायल क्लास में गया था। वहाँ पर जो जो पढ़ाया गया वह बिंदुवार आपको बता रहा हूँ, जिससे मेरा दिल दहल गया और अभी तक उससे उबर नहीं पाया हूँ।

● महाराणा प्रताप वीर थे पर देशभक्त नहीं थे। वे क्षेत्रभक्त थे, उनकी लड़ाई भारत के लिए नहीं थी केवल अपने क्षेत्र के लिए थी। जबकि अक़बर सारे भारत का बादशाह था जिसने उदारता की मिसाल पेश करते हुए सभी तबकों को प्रशासन में स्थान दिया और मानसिंह को सात हजार की सबसे बड़ी मनसबदारी दी।

● सभी राजपूत राजा स्वयं अकबर के अधीन हुए थे, अकबर की कोई जोर जबरदस्ती नहीं थी। राजपूत राजाओं ने अपनी बेटियों के विवाह सम्बन्ध स्वेच्छा से अकबर से किए थे। महाराणा प्रताप केवल अपने निहित क्षेत्रीय स्वार्थों के लिए अकबर से लड़े थे।

● सोच की व्यापकता, विचारों का खुलापन और भारत के हित को देखते हुए अकबर ही महान थे, महाराणा प्रताप केवल एक वीर थे।

● यही निहित स्वार्थ शिवाजी आदि मराठों के थे जिस कारण वे मुगलों से लड़े। शिवाजी केवल मुगलों के दुश्मन नहीं थे, बहुत बड़े लुटेरे भी थे। बिना भेदभाव के हिन्दू मुस्लिम सभी को उन्होंने लूटा था।

● 1857 का विद्रोह भी इन अर्थों में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन नहीं था। वह केवल राजाओं के निहित स्वार्थों के लिए युद्ध था। रानी लक्ष्मीबाई की लड़ाई भारत के लिए नहीं केवल झांसी के लिए थी, वे कहती थीं मुझे झांसी चाहिए। यदि झांसी मिल गयी होती तो वे कभी युद्ध नहीं करती। इसी तरह मुगलों ने केवल पेंशन पाने के लिए उस युद्ध में भाग लिया।

● लॉर्ड डलहौजी ने रेल-तार-डाक की भारत में नींव डाली। अपने स्वार्थों के लिए पर वे भारत के लिए बहुत अच्छी साबित हुईं। जैसे अब राष्ट्रवादी ट्रेनों से आवागमन करने लगे। जातिवाद पर भी इससे प्रहार हुआ क्योंकि ब्राह्मण शूद्र सबको अब एक ही डिब्बे में पास पास बैठना पड़ा, जिससे वे पहली बार 'टच' हुए। मन मसोसकर भी ब्राह्मणों को शूद्रों से टच करना पड़ा।

● सन 750 से 1757 तक मध्यकाल था जिसमें सामंतवादी शासन रहा। राजा द्वारा अनुदानित भूमि मुख्यतया ब्राह्मणों को दी जाती थी जो फिर जनता का शोषण करते थे।

● 712 में अरब के व्यापारियों को भारतीयों ने लूटा, वे अरबी व्यापारियों बगदाद के खलीफ़ा हल्लाज के पास शिकायत लेकर गए। हल्लाज ने सेनापति मुहम्मद बिन कासिम को सिंधुप्रांत के तत्कालीन ब्राह्मण राजा दाहिर से बात करने भेजा। कासिम ने उन लूटने वाले भारतीयों को दण्ड देने की/सौंपने की मांग की जिसे दाहिर ने ठुकरा दिया, इसपर कासिम और दाहिर में युद्ध हुआ और दाहिर परास्त हुआ। उनकी पत्नी रानबाई ने भारत का पहला जौहर किया। कासिम दाहिर की बेटियों को बंदी बनाकर खलीफा हल्लाज के पास ले गया जहाँ बेटियों ने अपना दुखड़ा रोया तो खलीफा ने कासिम को दोषी ठहराकर मृत्युदण्ड दे दिया।

● अरब के पीछे कोई भी विस्तारवादी, लूट, या धर्म सम्बन्धी कारण नहीं था, दाहिर के गलत व्यवहार के कारण युद्ध हुआ।

● दाहिर के मरने से देश को फायदा ही हुआ, क्योंकि अरब और भारत में ज्ञान का आदान प्रदान हुआ। अरब से भारतीयों ने समुद्री हवाओं और भूगोल का ज्ञान लिया जबकि अरबियों ने अंकगणित हमसे सीखा।

● कासिम जब भारत आया तो देखा यहाँ तो बहुत ही घमण्डी और बुद्धिविलासी लोग हैं जो अपने आपको ही सबसे बड़ा समझते हैं। कासिम ने भारतीयों को दुनिया का सबसे बड़ा कूपमण्डूक कहा जो कि आज भी सच है।

● यह इतिहास अरबी ग्रन्थ 'चचनामा' में मिलता है। भारतीयों ने तो अपने इतिहास को लिखा ही नहीं, कोई वंशानुक्रम तक संजोया ही नहीं। हमें जो इतिहास पता चलता है वह अरबी ग्रन्थों से। बाद में उनके प्रभाव में हमने इतिहास लिखने की सोची, कल्हण ने रजतरंगिणी लिखा। हम तो शकुंतला के सौंदर्य ग्रन्थ लिखने में ही मशगूल थे।

● पहली सती गुप्तकाल में हुई। उस काल में स्त्री को भी ब्राह्मणों द्वारा प्रोपर्टी ठहरा दिया गया जिसके अनुसार मरने के बाद चिता में जलाकर उसे भी साथ ले जाएं।

● मनु ने ऊल जलूल नियम बनाकर देश में जातिवाद फैलाया। देश को तरह तरह के नरकों आदि पाखण्ड में घसीटा। महर्षि मनु के ऊपर कुछ और भद्दी बातें।

● अरबियों ने ही बाद में हमें हिन्दू नाम दिया। सिंधु से हिन्दू बना। हमारा तो नाम तक विदेशियों के दिया है (ठहाके)। उससे पहले यह कोई धर्म नहीं था, इसका नाम नहीं था, इसे ब्राह्मण धर्म कहा जाता था।

● जातिवाद इतना ज्यादा था कि केवल क्षत्रिय को लड़ने का अधिकार दिया। समाज को पूरी तरह विघटित कर दिया। और मूर्ख भारतीय राजा आपस में ही लड़ते रहे। इसलिए बाहर के आक्रमणों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया। यहाँ तक कि विजयादशमी के अगले दिन युद्ध करना अनिवार्य कर रखा था केवल अपनी झूठी शान के लिए।

● जातिवाद ऐसा था कि क्षत्रिय रण में पानी के बिना प्यासा मरता हो और पास में शूद्र मटका लिए खड़ा हो तो पानी नहीं पीता था। मरना मंजूर था पर जातिवाद छोड़ना नहीं।
पहली ही क्लास में छात्रों में इस तरह कूट कूट कर हीनभावना, भारतीय होने का अपराधबोध, ब्राह्मणविरोध और हिन्दू विरोध भरा गया। आगे क्या क्या पढ़ाते(?) होंगे। मेरे दिमाग में बस यही आ रहा है कि कलियुग है! और कोई विचार नहीं बन पा रहे हैं, दिमाग में सन्नाटा पसरा है। इन सब बातों पर क्लास में जो जोर के ठहाके लगे वो मेरा दिल भेद रहे हैं। एक एक बात नासूर की तरह चुभ रही है। भारत किस दिशा में चल रहा है, किस दिशा में जा रहा है, बेहद संदिग्ध है। बस यह समझ आ रहा है, कि हम गलत रास्ते पर आ गए हैं, बहुत आगे आ गए हैं।

Courtesy: Mudit Mittal, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1380496842045459&id=100002554680089

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