Thursday 27 July 2017

जो इतिहास को भुला देता है , अक्सर इतिहास भी उन्हें भुला देता है

यह सत्य है और सत्य का साक्षात्कार चाहे  कितना भी अप्रीतिकर क्यों ना हो अंततः होता कल्याणकारी ही है । जानिए की आपके पूर्वजो ने क्या क्या देखा है ,सहा है ,जिया है । संभव है अपने इतिहास से आप प्रतिशोधात्मक उत्तेजना ना भी ग्रहण करना चाहें  लेकिन यदि आपने सबक भी नही लिया तो निश्चित ही पुनरावृत्ति की सम्भावना को ध्रुव जानिए ।

   " जो इतिहास को भुला देता है , अक्सर इतिहास भी उन्हें भुला देता है  ।"

पढिये आदरणीय Avinash जी भाई साहब के समाज का इतिहास उन्ही के शब्दों में .....

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" गणेशराम आचार्य तुम झूठे हो और यदी तुम अपनेदावे को सही साबित करना चाहते हो तो सबूत पेश करो की तुम्हारे अपने परिवार- कुटुंब के साथ शांतिप्रिय सूफी मुस्लिम समुदाय ने अत्याचार किये स्त्रियो पर बुरी नजर डाली , हत्याकांड रचे
और यदी सबूत नही हैं तो साक्ष्य के अभाव मे उनको बाइज्जत बरी किया जाता है और तुम पर झूठे आरोप लगाने और कोर्ट ऑफ कंटेम्प्ट का मुकदमा चलाने का आदेश माननीय उच्चतर न्यायालय देता है "

हमारे दद्दा (ताऊ जी) टीचर थे और पिताजी किसानी करके वृत्ति कमाई
उनके मुंह से हम अकसर सुनते थे की बेटाहम लोग द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा के वंशज हैं  हम लोगो को पौरोहित्य करके वृत्ति कमाने का निषेध है पूर्वजो द्वारा
ज्यादा पूछने पर बताते थे की करीब ढाई सौ वर्ष पूर्व हमारे पू्र्वज दिल्ली के उसपार से मतलब कुरूक्षेत्र के आसपास से यहां आये थे
कारण रहा मुस्लिम जागीरदारो और सरदारो का अत्याचार प्रसंग ऐसा था की वहां के एक ब्राह्मण बहुल गांव मे करीब साढे़ चार सौ परिवार रहते थे ब्राह्मणो के उनकी मे से एक परिवार था गणेशराम आचार्य पुत्र बुद्धी राम आचार्य का
उनके परिवार भरापूरा था पिता के इकलौते पुत्र थे
वो इलाका गजनी के आक्रमणो के समय से ही मुसलमानो के आक्रमण का शिकार रहा
सुनते ग्राम की ही  कुछ युवतियों पर मुस्लिम सरदारो के परिवार जनो की दृष्टी पड़ी और वे उनको उठा कर लेगये थे
भयवश विरोध भी नही हुआ परंतु यह सिलसिला हर माह दोमाह मे दोहराया जाने लगा
जब यही घटना दो तीन बार हुई तो गणेशराम जी ने विरोध करना शुरू किया वे उस समय युवा थे शायद तेइस चौबीस से सत्ताईस वर्ष के बीच
ग्राम के बुजुर्गो से बात की होगी शायद उस समय भी राजनाथी कड़ी निंदा संप्रदाय के लोग पाये जाते थे सो कोई हल नही निकला सो उनने अपने साथ के कुछ दोस्तो के साथ मिल कर सशस्त्र विरोध करने का निर्णय लिया
शायद कुछ हल्की झड़पे हुईं होंगी शुरूआती |
लेकिन कुछ दिनो बाद चैत के महिने में शायद नौरातो के समय पूजा उत्सव करती महिलाओ को उठाने आये पठानो के बड़े दल से उनलोगो की भिड़ंत हुई
तब तक गणेशराम जी के साथ कई युवक जुड़कर संख्याबल मे ज्यादा होचुके थे ने प्रतिकार किया
लगभग सारे मुसलमान मारे गये उनका मुखिया भी कुछ ही बच कर भागगये
लेकिन बाद मे पता पड़ा की वह मारा गया मुखिया उस समय के मुसलमान जागीरदार का रिश्ते मे दामाद या भतीजा लगता था 
और जल्दी बड़ा हमला अब ग्राम पर होगा
राजनाथी बुजुर्ग तत्काल गणेशरामजी के विरोध मे आगये और आरोप दिये की इस आदमी की वजह से पूरा गांव बरबाद हो जायेगा
बहुत वाद विवाद के बाद हल नही निकला तो गणेशराम जी ने ही गांव को त्यागने का निश्चय किया
उनका निर्णय सुनकर उनके संगी साथी जो ब्राह्मण थे या कुछ अहीर वेे भी साथ जाने को तैय्यार होगये
देखा देखी करीब तीन सौ सवा तीनसौ कुटुंब स्वनिर्वासन को प्रस्तुत हुये
बाकी बचे परिवारो के मुखियाओं ने अपने पशुधन विशेषकर किमती भैंसो और आसपास फैले पुरोहिताई के व्यवसाय को लालच मे आकर ना जाने का निर्णय लिया
चैत्र शुक्ल अष्टमी की रात को सवा तीन सौ कुटुंबो ने अपने पूर्वजो के ग्राम ,धरती ,खेती बाड़ी ,पशुधन रीती रिवाज सगे संबधीयो को त्याग कर दक्षिण को प्रस्थान किया
चलते चलते कुछ दिनो उपरांत मुसलिम सिपाहियो ने हमले किये और शायद दिल्ली से बस थोड़ा आगे की बात है ये खूब लड़े कुछ खेत भी रहे उसमे पर बच निकले
वहीं पर खबर मिली की बाकी बचे पूरे गांव के परिवारो को मारकर सब धन ,पशु औरते लूट ली गई और सारा गांवको जला दिया गया
ये सुनकर गणेश रामजी ने वहां पर सब लोगो को अपनी आन देकर सौगंध धरवाई की आज से उन लोगो मे से कोई कभी पुरोहिताई नही करेगा ना भैंस पालेगा
वे आगे चलते रहे  राजनीतीक उठापटक का काल था वह शायद शेरशाह सूरी और हुमांयु के समय का पूरा उत्तर भारत लुटेरे मुसलमानो के हाथ की लौंडिया बना हुआ था
कितने हमले हुये कितने लोग मरे कोई स्पष्ट गिनकी नही
खुद गणेशरामजी की धर्मपत्नि और संतति समाप्त हुई रास्ते के कष्टो और बीमारियों मे
आखिरकार गणेशराम जी की अगुआई मे ये लोग मालवे सेलगते वर्तमान बुंदेलखंड मे स्थित ग्राम अकाझिरी और फिर बाद मे रन्नौद मे आकर रूके
यह जगह पथरीली थी पर मुसलमानो के उच्छंखृलता से दूर थी तब
ये सारे कुटुंब वही बस गये
गणेशरामजी ने फिर विवाह नही किया
पर अपने कृतत्व के कारण  वे कुल के आद्यपुरूष  स्वीकारे गये
उनके देहधाम छोड़ने पर वहां पर स्थित कर कुल के मुख्य पुरूषो ने उनको स्ममिलित रूप से मुखाग्नि दी और उनके पिंड तिल जल काो अपना कर्तव्य स्वीकार कर लिया
कालांतर मे कई परिवार वहां से निकल कर ग्वालियर , गुना टीकमगड़ और मालवे मे चले गये
पहले राजपूत और बादमे मराठा रियासतो यथा सिंधिया होल्कर दोनो मे  नौकरी की,  सेना में भर्ती हुये
पर हर परिवार ने तीन नियम अटल रखे की पौरोहित्य से वृत्ति नही , भैंस का पालन नही और तर्पण मे देव ऋषि तर्पण के बाद परिवार का पहला तर्पण गणेशरामजी का
दद्दा और पिताजी दोनो के मुंह से पूरी कहानी दसियो बार सुनी हमने वो दोनो जब ये सुनाते तो लगता की वो सुना नही रहे हो बल्की देख कर विवरण देरहे हों
बाद मे हम जब समझदारी की उम्र मे आये तो रन्नौद मो होने वाली वार्षिकी पूजा मे पता लगा की गणेशराम जी की तलवार टीकमगढ़ चले गये परिवार के पास है और वो परिवैर बहुत बुरी स्थिती मे है मुखिया मरगये हैं कुलदीपक शराबी जुआरी निकल गये
लालची दिमाग मे कीड़ा कुलबुलाया और पारिवारीक संपर्को के माध्यम से उन कुल दीपक से  मुलाकात की कुछ पैसे और रॉयल स्टैग की चार बोतलो के बदले मे अपने कुल के नायक की तलवार वापस ले आये
जब पिताजी को वो तलवार दी तो वो घंटे भरतक उसको पकड़े बैठे रहे भाव विभोर होकर
नीचे पिक मे दी तलवारो मे सबसे नीचे की सीधी पुर्तगाली बाने की तलवार जिसे फिरंग कहाजाता है वो गणेशरामजी की है
हालांकी यह फिरंग नही है फिरंग इससे लंबी होतीहै
खैर ये सब तोपिछली बाते होगईं
लेकिन अभी जब सुप्रीम कोर्ट ने काश्मीरी ब्राह्मणो के हुये हत्याकांडो पर याचिका लेने से इंनकार करते हुये कहा की यह बात बहुत पुरानीहै और इसके कोई सबूत नही है तब लगा की जब महज तीस साल पहले के हत्याकांडो के कोई सबूत नही मान रही कोर्ट तो ढाईतीनसौ साल पहले के अत्याचारो को क्या मान्यता देगा जो मात्र किवदंतियो मे शेष है
हम ये पोस्ट लिख रहे हैं और कानो मे सुप्रीम जिल्लेइलाही के मुनादीवाले की नगाड़े की ध्वनि और मुनादी गूंज रही है

"खल्क खुदा का , मुल्क बादशाह का ,हुकुम सुप्रीम काजियत अदालत का
हर खासोआम को इत्तला के साथ खबरदार कियाजाता है की गणेशराम वल्द बुद्धिराम आचार्य को मा बदौलत झूठा करार देते हैं क्योंकी वो अपने और अपने परिवार कुटुंब के ऊपर हुये अत्याचार ,हत्याकांडो के कैसी भी सबूत शहादते पेश नही करपाया
इसलिये सुप्रीम कज़ियत इसे इसके मानस वंशजो द्वारा दिये जाने वाले पिंड तिल जल से महरूम करती है
बाद मनाहि के अगर किसी ने ऐसा किया तो वो मा बदौलत गुनैहागार होगा और उसपर खुदाई कहर नाज़िल होगा .............."

Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10208485041837984&id=1665455763

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