Friday 14 July 2017

श्री शिव रुद्राष्टक स्त्रोत्र

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्र, स्तुति व स्त्रोत की रचना की गई है। इनके जप व गान करने से भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं।
"श्री शिव रुद्राष्टक स्त्रोत्र" भी इन्हीं में से एक है। यदि प्रतिदिन शिव रुद्राष्टक का पाठ किया जाए तो सभी प्रकार की समस्याओं का निदान स्वत: ही हो जाता है। साथ ही भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
महाशिवरात्रि, श्रावण अथवा चतुर्दशी तिथि को इसका जप किया जाए तो विशेष फल मिलता है।
श्री रामचरित्र मानस के उत्तर काण्ड में वर्णित इस रूद्राष्टक की कथा कुछ इस प्रकार है।

कागभुशुण्डि परम शिव भक्त थे। वो शिव को परमेश्वर एवं अन्य देवों से अतुल्य जानते थे। उनके गुरू श्री लोमेश शिव के साथ-साथ राम में भी असिम श्रद्धा रखते थे। इस वजह से कागभुशुण्डि का अपने गुरू के साथ मत-भेद था।
गुरू ने समझाया कि; स्वयं शिव भी राम नाम से आनन्दित रहते हैं तो तू राम की महिमा को क्यों अस्विकार करता है। ऐसे प्रसंग को शिवद्रोही मान कागभुशुण्डि अपने गुरू से रूष्ट हो गए।
इसके उपरांत कागभुशुण्डि एक बार एक महायज्ञ का आयोजन कर रहे थे। उन्होंने अपने यज्ञ की सुचना अपने गुरू को नहीं दी। फिर भी सरल हृदय गुरू अपने भक्त के यग्य में समलित होने को पहुँच गए।
शिव पुजन में बैठे कागभुशुण्डि ने गुरू को आया देखा। किन्तु कागभुशुंडी अपने आसन से न उठे, न उनका कोई स्तकार ही किया। सरल हृदय गुरू ने एक बार फिर इसका बुरा नहीं माना।
पर महादेव तो महादेव ही हैं। वो अनाचार क्यों सहन करने लगे ??

भविष्यवाणी हुई – अरे मुर्ख, अभिमानी ! तेरे सत्यज्ञानी गुरू ने सरता वस तुझपर क्रोध नहीं किया। लेकिन, मैं तुझे श्राप दुंगा। क्योंकि नीति का विरोध मुझे नहीं भाता। यदि तुझे दण्ड ना मिला तो वेद मार्ग भ्रष्ट हो जाएंगे।
जो गुरू से ईर्ष्या करते हैं वो नर्क के भागी होते हैं। तू गुरू के समुख भी अजगर की भांति ही बैठा रहा। अत: अधोगति को पाकर अजगर बनजा तथा किसी वृक्ष की कोटर में ही रहना।
इस प्रचंण श्राप से दुःखी हो तथा अपने शिष्य के लिए क्षमा दान पाने की अपेक्षा से, शिव को प्रसन्न करने हेतु; गुरू ने प्रार्थना की तथा रूद्राष्टक की वाचना की तथा आशुतोष भगवान को प्रसन्न किया।
कथासार में शिव अनाचारी को क्षमा नहीं करते; यद्यपि वो उनका परम भक्त ही क्यूँ ना हो।
परम शिव भक्त कागभुशुण्डि ने जब अपने गुरू की अवहेलना की तो; वे भगवान शिव के क्रोध-भाजन हुए। अपने शिष्य के लिए क्षमादान की अपेक्षा रखने वाले सहृदय गुरू ने रूद्राष्टक की रचना की तथा महादेव को प्रसन्न किया।
गुरु के तप व शिव भक्ति के प्रभाव से यह शिव स्तुति बड़ी ही शुभ व मंगलकारी शक्तियों से सराबोर मानी जाती है। साथ ही मन से सारी परेशानियों की वजह अहंकार को दूर कर विनम्र बनाती है।

शिव की इस स्तुति से भी भक्त का मन भक्ति के भाव और आनंद में इस तरह उतर जाता है कि; हर रोज व्यावहारिक जीवन में मिली नकारात्मक ऊर्जा, तनाव, द्वेष, ईर्ष्या और अहं को दूर कर देता है।

यह स्तुति सरल, सरस और भक्तिमय होने से शिव व शिव भक्तों को बहुत प्रिय भी है। धार्मिक नजरिए से शिव पूजन के बाद इस स्तुति के पाठ से शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
सम्पुर्ण कथा रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में वर्णित है।
“श्री गोस्वामी तुलसीदास कृतं शिव रूद्राष्टक स्तोत्रं”

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥१॥

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥२॥
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥३॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥५॥
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥६॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥७॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥८॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥९॥

॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

इस्लामिक आतंकवाद की फंडिंग - भाग -2

#इस्लामिक आतंकवाद की फंडिंग - भाग -2

कल की पोस्ट में आपको सरकारी तंत्र की नाक के नीचे से  आतंकवाद की फंडिंग का जो गंदा खेल खेला जा रहा है उसकी जानकारी दी थी आज आपको आतंकवाद की मुख्य फंडिंग कहा से होती है वो बताऊंगा ।

#मुस्लिम कोई हो (72 फिरका) भले ही आपको लगता है कि ये फिरका शांतिपसन्द है लेकिन वो क़ुरान के अनुसार ही चलता है या यूं कह ले कि मुस्लिम संबिधान से भी ऊपर शरिया लॉ को मानता है -

#क़ुरआने-पाक के पहले पारे (प्रथम अध्याय) अलिफ़-लाम-मीम की सूरह अल बकरह की आयत नंबर तिरालीस (आयत-43) में अल्लाह का इरशाद (आदेश) है 'और नमाज कायम रखो और जकात दो और रुकूअ करने वालों के साथ रुकूअ (दोनों हाथ घुटनों पर रखकर, सिर झुकाए हुए अल्लाह की बढ़ाई/महिमा का स्मरण करना) करो।'

#जकात_क्या है - अल्लाह के लिये माल का एक हिस्सा जो शरियत ने तय किया उसको इस्लाम के नाम पे निकालना  शरीयत में जकात कहलाता है।
जकात देने के 7 तरीके बताए गए है जिनमे से किसी मदरसे और स्कूल को देना मुख्य है।

#अब आइये जरा आकड़ो पे नजर डालते है -
#अबू सालेह शरीफ: ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट (1999) के अनुसार ''मुसलमानों के प्रति परिवार वार्षिक आय 22807 रुपये हैं
#मुस्लिम समाज का अधिकांश हिस्सा आमतौर पर या तो छोटे मौटे काम-धंधे करके, असंगठित क्षेत्रों में नौकरी करके अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ करता है या मजदूरी, रिक्शा-टैक्सी और ट्रक की ड्राइवरी, कुली, नाई, बढ़ई इत्यादि का काम करता है, कुछ हालत ठीक हुई तो वह इलेक्ट्रिशियन, प्लम्बर, फिटर या वेल्डर इत्यादि का काम कर लेते हैं।
#मुस्लिम समाज की अधिकांश आबादी स्वरोजगार पर भरोसा करती है। स्वरोजगार के संदर्भ में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट चौंकाने वाले आंकड़े देती है, ''स्वरोजगार में मुसलमानों की कार्य क्षमता का करीब 61 प्रतिशत हिस्सा लगा हुआ है, शहरी क्षेत्रों में 57 प्रतिशत मुसलमान स्वरोजगार में लगे हैं। महिलाओं की बात की जाए तो मुस्लिम महिलाओं के लिये यह आंकड़ा 73 प्रतिशत का है। मुस्लिम समुदाय में स्वरोजगार की निर्भरता सामान्य मुसलमानों (59 प्रतिशत) की तुलना में अन्य पिछड़ी जाति (64 प्रतिशत) के मुसलमानों में अधिक है।''एक कर्मचारी के रूप में मुसलमान आमतौर पर एक सामयिक मजदूर के रूप में काम करते हैं।
अब जनसंख्या आकड़ो पे आते है -
2001 के जनगणना के अनुसार मुस्लिम आबादी 172,200,000 (सत्रह करोड़ बाईस लाख )

#जकात का खेल - 17.22 cr की जनसंख्या लगभग हर सदस्य के हिसाब से 2000 जकात निकालता है अब जरा यही आंकड़ा देखे तो आपको विश्वास नही होगा ।
172,200,000×2000= 344,400,000,000
(चौतीस हजार चालीस करोड़ रुपए)

और इन पैसों का सीधा इस्तेमाल फंडिंग में किया जाता है
क्योंकि शरिया के अनुसार जकात का सही इस्तेमाल सिर्फ सिर्फ धर्म के लिए करना ठीक है।
ये आंकड़े 16 साल पुराने है अभी मौजूदा आंकड़े आ अनुसार ये रकम 58 हजार करोड़ के ऊपर है।
(आंकड़े ऊपर हो सकते हैं )

#समाधान - इसमे gov कुछ नही कर सकती है इसमें आपको ही करना होगा 61 % इनका मुख्य source कार्य छेत्र है आपको बस इतना करना है कि आप अपने सभी काम जैसे मजदूरी, रिक्शा-टैक्सी और ट्रक की ड्राइवरी, कुली, नाई, बढ़ई ,इलेक्ट्रिशियन, प्लम्बर, फिटर या वेल्डर इत्यादि का काम करने वाले कामगारों को हिन्दू रखे सिख रखे पारसी रखे जहाँ तक हो सके मुस्लिम कामगारों से बचे । इनकी कमर अपने आप टूट जाएगी, जहाँ तक हो सके हिन्दू व्यापारियों से ही समान ले और अपनी भागीदारी भी आतंकवाद की फंडिंग में होने से रोकिए

#विशेष -
जकात के खेल में हम आप भी सम्मिलित है और हम भी जिम्मेदार है पोस्ट लंबी हो रही है बाकी कल की पोस्ट में।
कल मेन सोर्स ऑफ टेरर फंडिंग

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=283630242103388&id=100013692425716

इस्लामिक आतंकवाद की फंडिंग - भाग -1

#इस्लामिक आतंकवाद की फंडिंग - भाग -1

#ये पोस्ट मैं काफी पहले लिखने वाला था लेकिन कुछ मित्रो के कहने से नही लिखा लेकिन कल की दुःखद घटना के बाद इसे लिख रहा हूँ किसी भी तरह के आतंकवाद के लिए जरूरी है पैसा वो पैसा आता कहा से है कैसे इनको फंडिंग की जाती है जिससे ये आतंकवाद फैलाते है तो आइए देखते है ।

#लोग कहते है कि सीमा पार से टेरर फंडिंग हो रही है जी नही वहाँ से सिर्फ  हथियार आते है लेकिन उन्हें खरीदने का पैसा भारत से ही जाता है झटका लगा जी हाँ हथियार को खरीदने का पैसा भारत से ही जाता है।
कहाँ से जाता है कितना जाता है  वो भी सुनिए ।
आप सोच रहे होंगे कि मैं मुस्लिमो के जकात वाले पैसे की बात कर रहा हूँ तो - जी नही ।
वैसे जकात क्या है इसका कैसे इस्तेमाल होता है वो भी बता दूंगा लेकिन अगली पोस्ट में यदि वो बताने लगा तो पोस्ट लंबी हो जाएगी जो मैं नही चाहता ।

#बात 1995 की है जब एक कमेटी का गठन हुआ नाम था -

#शाश्वत_कमेटी
जिसका गठन शाश्वत कुमार (justice सुप्रीम कोर्ट) द्वारा किया गया जिसका काम था Central Wakf Council, India केंद्रीय वफ्फ बोर्ड के पास मौजूद प्रॉपर्टी की जांच करना और उसका सरकारी मूल्य निकलना ।

#कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक -
वफ्फ बोर्ड के पास 120000 करोड़ की मालियत का लैंड बैंक है(wakf properties constitute a land bank worth Rs. 1.2 lakh crore )
जिससे सालाना 12000 करोड़ रुपए की आमदनी हो सकती है लेकिन सिर्फ 163 करोड़ रुपये की ही आधकारिक निकासी होती है।

#आज की स्थिति -  वफ्फ बोर्ड की आज की लैंड बैंक की कीमत 270000 करोड़ रुपए है आमदनी 23000 करोड़ है और सरकार को अभी भी yild 163 करोड़ ही दिखाई जाती है ।
अब सवाल ये उठता है कि बाकी के 22837 करोड़ रुपए जाते कहा है तो जवाब है हथियारों की खरीद में और उन हथियारों का इस्तेमाल अमरनाथजी की यात्रा पे जारहे श्रद्धालुओं पे हमारे सैनिकों पे और हमपे होता है।
(आंकड़े ऊपर हो सकते है क्योंकि मेरे आंकड़े 1साल पुराने है)

#समाधान- सरकार को कुछ नही करना बस ये जो yield दिखाते है उतना पैसा मतलब 163 करोड़ वफ्फ बोर्ड को देदेना चाहिए सालाना और इनकी जितनी भी लैंड बैंक है उसे पब्लिक लीज पे दे देना चाहिए इससे 2 फायदे होगे एक तो टेरर फंडिंग खत्म हो जाएगी दूसरी भारत सरकार को 2500 से 5000 करोड़ का सालाना बचत होगा जिसे वो चाहे तो सीधे तौर पे गरीबो की कोई नई योजना शुरू कर सकता है।

#विशेष -
जकात का टेरर फंडिंग से क्या संबंध है और  इन पैसों को आतंकवादी संगठनों तक कैसे भेजा जाता है उंसके लिए आगे की पोस्ट जरूर पढ़ें।

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=283247175475028&id=100013692425716

Thursday 13 July 2017

QUOTES ON HINDU-MUSLIM UNITY BY EMINENT INDIANS

QUOTES ON HINDU-MUSLIM UNITY BY EMINENT INDIANS..

Lala Lajpat Rai :
Hindu-Muslim unity is neither possible not practicable… I do honestly and sincerely believe in the necessity and desirability of Hindi-Muslim unity. I AM FULLY PREPARED TO TRUST MUSLIM LEADERS BUT WHAT ABOUT THE INJUNCTIONS OF KORAN AND HUDIS ..THE LEADERS CAN NOT OVERRIDE THEM..

Sarat Chandra Chatterji :
When Muslims first entered India, they looted the country, destroyed the temples, broke the idols, raped the women and heaped innumerable indignities on the people of this country.. Today it appears that such noxious behavior has entered the bone marrow of Muslims.. Unity can be achieved among equals…I AM OF THE VIEW THAT HINDU-MUSLIM UNITY ,WHICH COULD NOT BE ACHIEVED DURING THE LAST THOUSAND YEARS, WILL NOT MATERIALIZE DURING THE ENSUING THOUSAND YEARS.

Annie Besant (The founder of the Congress Party) :
The inner Muslim feeling of hatred against ‘unbelievers’ has spring up naked and unashamed…We have seen, revived, as guide in practical politics, the old Muslim religion of the sword…In thinking of an independent India, the menace of Mohammedan rule has to be considered.

Sri Aurobindo :
I am sorry they are making a fetish of this Hindu-Muslim unity. It is no use ignoring facts; some day the Hindus may have to fight the Muslims and they must prepare for it.. HINDU-MUSLIM UNITY SHOULD NOT MEAN THE SUBJECTION OF HINDUS..Every time the mildness of the Hindu has given way to barbarism of Islam..
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Sri Aurobindo :
You can live amicably with a religion whose principle is toleration. But how is it possible to live with a religion whose principle is ‘I will not tolerate’? You cannot build unity on such basis. Perhaps the only way of making the Mohammedans harmless is to make them lose their faith in their religion.

Ram Swarup :
Religious harmony is a desirable thing. But it takes two to play the game. Unfortunately such a sentiment holds no position in Islamic theology.

Francois Gautier :
This is a profession of faith of a Muslim: ‘I certify that there is no God other than Allah, of whom Mohammed is the only prophet’, which means in effect:. After and before Mohammed, there is nobody else…’Thus the whole religion of Islam is based on negation: nobody but us, no other religion but ours’. And if you disagree, you shall die...This puts a serious limitation to tolerance and from this strong belief sprang all the horrors of the Muslim invasion of India.

Francois Gautier :
Let it be said right away: the massacres perpetrated by Muslims in India are unparalleled in history, bigger than the holocaust of the Jews by the Nazis; or the massacre of the Armenians by the Turks; more extensive even than the slaughter of the South American native populations by the invading Spanish and Portuguese in early days of America.

Will Durant :
The Mohammedan conquest of India was probably the bloodiest story in history.

Alain Danielou :
From the time Muslims started arriving, around 632 AD, the history of India becomes a long, monotonous series of murders, massacres, and destruction..

Rizwan Salim :
Their minds filled with venom against the idol-worshippers of Hindustan, the Muslims destroyed a large number of ancient Hindu temples. This is a historical fact, mentioned by Muslim chronicles and others of the time.

Rizwan Salim :
Islamic invaders demolished countless Hindu temples, shattered uncountable sculpture and idols, plundered innumerable palaces and forts of Hindu kings, killed vast numbers of Hindu men and carried off Hindu women...But many Indians still do not seem to recognize that the alien Muslim marauders destroyed the historical evolution of the earth’s most mentally advanced civilization, the most richly imaginative culture, and the most vigorously creative society ie Hindus.

Irfan Husain :
The Muslim heroes who figure larger than life in our history books committed many dreadful crimes.. Mahmud of Ghazni, Qutb-ud-Din Aibak, Balban, Mohammed bin Qasim, and Sultan Mohammad Tughlak, all have blood-stained hands that the passage of years has not cleansed...Seen through Hindu eyes, the Muslim invasion of their homeland was an unmitigated disaster.

Dr. Younis Shaikh :
Eighty million were slaughtered and millions of women were raped…..it was standard practice for Islamic warlords like Ghori and Ghazni to unleash the mass rape and enslavement of hundreds of thousands of women after the slaughter of all males... An extremely large percentage of Muslims in South Asia today are the progeny of forcible conversions and systematic rape campaigns by marauding Muslim invaders.

Koenraad Elst :
The number of victims of the persecutions of Hindus by Muslims is easily of the same order of magnitude as that of the Nazi extermination policy, though no one has yet made the effort of tabulating the reported massacres and proposing a reasonable estimate of how many millions exactly must have died in the course of the Islamic campaign against Hinduism (such research is taboo). On top of these there is a similar number of abductions and deportations to harems and slave-markets, as well as centuries of political oppression and cultural destruction.

Dr K D Prithipal :
Muslims will only live as an oppressive majority and a turbulent minority.

Sardar Ballavbhai Patel
A nationalist Muslim is only a contradiction in terms

Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1504010352999510&id=100001716788164

Sunday 9 July 2017

वेद_vs_विज्ञान भाग - 30, भारतीय और पश्चिमी कालगणना का अंतर

#वेद_vs_विज्ञान भाग - 30
                     #भारतीय और पश्चिमी
                      कालगणना का अंतर

#पश्चिमी काल गणना -

#चिल्ड्रन्स ब्रिटानिका Vol 3-1964 में कैलेंडर के संदर्भ में उसके संक्षिप्त इतिहास का वर्णन किया गया है। कैलेंडर यानी समय विभाजन का तरीका-वर्ष, मास, दिन, का आधार, पृथ्वी की गति और चन्द्र की गति के आधार पर करना। लैटिन में Moon के लिए Luna शब्द है, अत: Lunar Month कहते हैं। लैटिन में Sun के लिए Sol शब्द है, अत: Solar Year वर्ष कहते हैं। आजकल इसका माप 365 दिन 5 घंटे 48 मिनिट व 46 सेकेण्ड है। चूंकि सौर वर्ष और चन्द्रमास का तालमेल नहीं है, अत: अनेक देशों में गड़बड़ रही।

#दूसरी बात, समय का विभाजन ऐतिहासिक घटना के आधार पर करना। ईसाई मानते हैं कि ईसा का जन्म इतिहास की निर्णायक घटना है, इस आधार पर इतिहास को वे दो हिस्सों में विभाजित करते हैं। एक बी.सी. तथा दूसरा ए.डी.। B.C. का अर्थ है Before Christ - यह ईसा के उत्पन्न होने से पूर्व की घटनाओं पर लागू होता है। जो घटनाएं ईसा के जन्म के बाद हुर्इं उन्हें A.D. कहा जाता है जिसका अर्थ है Anno Domini अर्थात् In the year of our Lord. यह अलग बात है कि यह पद्धति ईसा के जन्म के बाद कुछ सदी तक प्रयोग में नहीं आती थी।

#रोमन कैलेण्डर-आज के ई। सन् का मूल रोमन संवत् है जो ईसा के जन्म से 753 वर्ष पूर्व रोम नगर की स्थापना के साथ प्रारंभ हुआ। प्रारंभ में इसमें दस माह का वर्ष होता था, जो मार्च से दिसम्बर तक चलता था तथा 304 दिन होते थे। बाद में राजा नूमा पिम्पोलियस ने इसमें दो माह Jonu Arius और Februarius जोड़कर वर्ष 12 माह का बनाया तथा इसमें दिन हुए 355, पर आगे के वर्षों में ग्रहीय गति से इनका अंतर बढ़ता गया, तब इसे ठीक 46 बी.सी. करने के लिए जूलियस सीजर ने वर्ष को 365 1/4 दिन का करने हेतु नये कैलेंडर का आदेश दिया तथा उस समय के वर्ष को कहा कि इसमें 445 1/4 दिन होंगे ताकि पूर्व में आया अंतर ठीक हो सके। इसलिए उस वर्ष यानी 46 बी.सी. को इतिहास में संभ्रम का वर्ष (Year of confusion) कहते हैं।

#जूलियन कैलेंडर- जूलियस सीजर ने वर्ष को 365 1/4 दिन का करने के लिए एक व्यवस्था दी। क्रम से 31 व 30 दिन के माह निर्धारित किए तथा फरवरी 29 दिन की। Leap Year में फरवरी भी 30 दिन की कर दी। इसी के साथ इतिहास में अपना नाम अमर करने के लिए उसने वर्ष के सातवें महीने के पुराने नाम Quinitiles को बदलकर अपने नाम पर जुलाई किया, जो 31 दिन का था। बाद में सम्राट आगस्टस हुआ; उसने भी अपना नाम इतिहास में अमर करने हेतु आठवें महीने Sextilis का नाम बदलकर उस माह का नाम अगस्त किया। उस समय अगस्त 30 दिन का होता था पर-"सीजर से मैं छोटा नहीं", यह दिखाने के लिए फरवरी के माह जो उस समय 29 दिन का होता था जो एक दिन लेकर अगस्त भी 31 दिन का किया। तब से मास और दिन की संख्या वैसी ही चली आ रही है।

#ग्रेगोरियन कैलेंडर - 16वीं सदी में जूलियन कैलेन्डर में 10 दिन बढ़ गए और चर्च फेस्टीवल ईस्टर आदि गड़बड़ आने लगे, तब पोप ग्रेगोरी त्रयोदश ने 1582 के वर्ष में इसे ठीक करने के लिए यह हुक्म जारी किया कि 4 अक्तूबर को आगे 15 अक्तूबर माना जाए। वर्ष का आरम्भ 25 मार्च की बजाय 1 जनवरी से करने को कहा। रोमन कैथोलिकों ने पोप के आदेश को तुरन्त माना, पर प्रोटेस्टेंटों ने धीरे-धीरे माना। ब्रिाटेन जूलियन कैलेंडर मानता रहा और 1752 तक उसमें 11 दिन का अंतर आ गया। अत: उसे ठीक करने के लिए 2 सितम्बर के बाद अगला दिन 14 सितम्बर कहा गया। उस समय लोग नारा लगाते थे "Criseus back our 11 days"। इग्लैण्ड के बाद बुल्गारिया ने 1918 में और ग्रीक आर्थोडाक्स चर्च ने 1924 में ग्रेगोरियन कैलेण्डर माना।

#भारत में कालगणना का इतिहास -
भारतवर्ष में ग्रहीय गतियों का सूक्ष्म अध्ययन करने की परम्परा रही है तथा कालगणना पृथ्वी, चन्द्र, सूर्य की गति के आधार पर होती रही तथा चंद्र और सूर्य गति के अंतर को पाटने की भी व्यवस्था अधिक मास आदि द्वारा होती रही है। संक्षेप में काल की विभिन्न इकाइयां एवं उनके कारण निम्न प्रकार से बताये गये-

#दिन अथवा वार- सात दिन- पृथ्वी अपनी धुरी पर १६०० कि.मी. प्रति घंटा की गति से घूमती है, इस चक्र को पूरा करने में उसे २४ घंटे का समय लगता है। इसमें १२ घंटे पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने रहता है उसे अह: तथा जो पीछे रहता है उसे रात्र कहा गया। इस प्रकार १२ घंटे पृथ्वी का पूर्वार्द्ध तथा १२ घंटे उत्तरार्द्ध सूर्य के सामने रहता है। इस प्रकार १ अहोरात्र में २४ होरा होते हैं। ऐसा लगता है कि अंग्रेजी भाषा का ण्दृद्वद्ध शब्द ही होरा का अपभ्रंश रूप है। सावन दिन को भू दिन भी कहा गया।

#सौर दिन-पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 1 लाख कि.मी. प्रति घंटा की रफ्तार से कर रही है। पृथ्वी का 10 चलन सौर दिन कहलाता है।

#चान्द्र दिन या तिथि- चान्द्र दिन को तिथि कहते हैं। जैसे एकम्, चतुर्थी, एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या आदि। पृथ्वी की परिक्रमा करते समय चन्द्र का 12 अंश तक चलन एक तिथि कहलाता है।

#सप्ताह- सारे विश्व में सप्ताह के दिन व क्रम भारत वर्ष में खोजे गए क्रम के अनुसार ही हैं। भारत में पृथ्वी से उत्तरोत्तर दूरी के आधार पर ग्रहों का क्रम निर्धारित किया गया, यथा- शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुद्ध और चन्द्रमा। इनमें चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे पास है तो शनि सबसे दूर। इसमें एक-एक ग्रह दिन के 24 घंटों या होरा में एक-एक घंटे का अधिपति रहता है। अत: क्रम से सातों ग्रह एक-एक घंटे अधिपति, यह चक्र चलता रहता है और 24 घंटे पूरे होने पर अगले दिन के पहले घंटे का जो अधिपति ग्रह होगा, उसके नाम पर दिन का नाम रखा गया। सूर्य से सृष्टि हुई, अत: प्रथम दिन रविवार मानकर ऊपर क्रम से शेष वारों का नाम रखा गया।

#पक्ष-पृथ्वी की परिक्रमा में चन्द्रमा का 12 अंश चलना एक तिथि कहलाता है। अमावस्या को चन्द्रमा पृथ्वी तथा सूर्य के मध्य रहता है। इसे ० (अंश) कहते हैं। यहां से 12 अंश चलकर जब चन्द्रमा सूर्य से 180 अंश अंतर पर आता है, तो उसे पूर्णिमा कहते हैं। इस प्रकार एकम्‌ से पूर्णिमा वाला पक्ष शुक्ल पक्ष कहलाता है तथा एकम्‌ से अमावस्या वाला पक्ष कृष्ण पक्ष कहलाता है।

#मास- कालगणना के लिए आकाशस्थ २७ नक्षत्र माने गए (१) अश्विनी (२) भरणी (३) कृत्तिका (४) रोहिणी (५) मृगशिरा (६) आर्द्रा (७) पुनर्वसु (८) पुष्य (९) आश्लेषा (१०) मघा (११) पूर्व फाल्गुन (१२) उत्तर फाल्गुन (१३) हस्त (१४) चित्रा (१५) स्वाति (१६) विशाखा (१७) अनुराधा (१८) ज्येष्ठा (१९) मूल (२०) पूर्वाषाढ़ (२१) उत्तराषाढ़ (२२) श्रवणा (२३) धनिष्ठा (२४) शतभिषाक (२५) पूर्व भाद्रपद (२६) उत्तर भाद्रपद (२७) रेवती।

२७ #नक्षत्रों में प्रत्येक के चार पाद किए गए। इस प्रकार कुल 108 पाद हुए। इनमें से नौ पाद की आकृति के अनुसार 12 राशियों के नाम रखे गए, जो निम्नानुसार हैं-

(१) मेष (२) वृष (३) मिथुन (४) कर्क (५) सिंह (६) कन्या (७) तुला (८) वृश्चिक (९) धनु (१०) मकर (११) कुंभ (१२) मीन। पृथ्वी पर इन राशियों की रेखा निश्चित की गई, जिसे क्रांति कहते है। ये क्रांतियां विषुव वृत्त रेखा से 24 उत्तर में तथा 24 दक्षिण में मानी जाती हैं। इस प्रकार सूर्य अपने परिभ्रमण में जिस राशि चक्र में आता है, उस क्रांति के नाम पर सौर मास है। यह साधारणत: वृद्धि तथा क्षय से रहित है।

#चान्द्र मास- जो नक्षत्र मास भर सायंकाल से प्रात: काल तक दिखाई दे तथा जिसमें चन्द्रमा पूर्णता प्राप्त करे, उस नक्षत्र के नाम पर चान्द्र मासों के नाम पड़े हैं- (१) चित्रा (२) विशाखा (३) ज्येष्ठा (४) अषाढ़ा (५) श्रवण (६) भाद्रपद (७) अश्विनी (८) कृत्तिका (९) मृगशिरा (१०) पुष्य (११) मघा (१२) फाल्गुनी। अत: इसी आधार पर चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विनी, कृत्तिका, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन-ये चन्द्र मासों के नाम पड़े।

#उत्तरायण और दक्षिणायन-पृथ्वी अपनी कक्षा पर 23 अंश उत्तर पश्चिमी में झुकी हुई है। अत: भूमध्य रेखा से 23 अंश उत्तर व दक्षिण में सूर्य की किरणें लम्बवत्‌ पड़ती हैं। सूर्य किरणों का लम्बवत्‌ पड़ना संक्रान्ति कहलाता है। इसमें 23 अंश उत्तर को कर्क रेखा कहा जाता है तथा दक्षिण को मकर रेखा कहा जाता है। भूमध्य रेखा को 00 अथवा विषुवत वृत्त रेखा कहते हैं। इसमें कर्क संक्रान्ति को उत्तरायण एवं मकर संक्रान्ति को दक्षिणायन कहते हैं।

#वर्षमान- पृथ्वी सूर्य के आस-पास लगभग एक लाख कि.मी. प्रति घंटे की गति से 166000000 कि.मी. लम्बे पथ का 365 दिन में एक चक्र पूरा करती है। इस काल को ही वर्ष माना गया।

#विशेष-
भारतीय मनीषा की इस गणना को देखकर यूरोप के प्रसिद्ध ब्रह्माण्ड विज्ञानी कार्ल सेगन ने अपनी पुस्तक में कहा "विश्व में हिन्दू धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जो इस विश्वास पर समर्पित है कि इस ब्रह्माण्ड में उत्पत्ति और क्षय की एक सतत प्रक्रिया चल रही है और यही एक धर्म है, जिसने समय के सूक्ष्मतम से लेकर बृहत्तम माप, जो समान्य दिन-रात से लेकर 8 अरब 64 करोड़ वर्ष के ब्राहृ दिन रात तक की गणना की है, जो संयोग से आधुनिक खगोलीय मापों के निकट है। यह गणना पृथ्वी व सूर्य की उम्र से भी अधिक है तथा इनके पास और भी लम्बी गणना के माप है।" कार्ल सेगन ने इसे संयोग कहा है यह ठोस ग्रहीय गणना पर आधारित है।
#भारतीय सनातन कालगणना आधुनिक कालगणना से कही सटीक है और वैज्ञानिक तौर पे पुष्टि भी की जा चुकि है यही एकमात्र ऐसी कालगणना है जिसमे समय की इतनी सटीक जानकारी है कि बिना फेरबदल किये निरंतर सटीक कालगणना की जा सके अन्यथा सभी पश्चिमी मानकों में त्रुटि है जिसके लिए उन्हें #लीप_सेकंड जोड़ना पड़ता है।

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=282260028907076&id=100013692425716

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