Monday 4 September 2017

इंडियन सेकुलरिस्म के पीछे का सच

“कुछ बातें अवचेतन में इस ढंग से भरी जाती हैं कि जब सच भी पता लग जाए तो भी मन नही मानता।हर शासन पाठ्यक्रमो द्वारा कुछ मिस्टीरियस झूठ बच्चो और पीढ़ियों के दिमाग मे इस तरह भर देता है कि लोग उसको ही सच समझने/व्यवहारने लगते हैं।यह लोकतंत्र की मजबूरियाँ थी मजहब छुपाना पड़ा क्योंकि मजहब फैला देना उद्देश्य था।एक हिडेन एजेंडा,।
अज्ञात
भारत ही नही सम्पूर्ण विश्व मे पिता से वंश चलता है,कहीं-कही कुछ कबीलों में स्त्रियों से भी वंश चलते है,पर यहाँ मैं उन कबीलों की बात नही कर रहा।यहाँ मैं देश के उस सबसे बड़े घराने की बात कर रहा हूँ जो इस एक चालाकी की वजह से सनातन धर्म के विघटन,समापन का कारण बनने की कगार पर था।यह बात जन-जन को पता है उसके बावजूद देश लगतार मूर्ख बनता रहा।एक सिंडिकेट और पैंतरों के दम पर नेहरू-गांधी परिवार आगे चलकर इंदिरा का परिवार माँ से चला।मुस्लिम से निकाह के बावजूद आगे अपने बच्चो का अरेबिक-इस्लामिक सलीके का नाम न रखना जनता को बेवकूफ बनाने की एक रणनीति थी।फिरोज गांधी मुसलमान थे और इंदिरा गांधी ने निकाह के समय मुस्लिम धर्म स्वीकार किया था ,हैदराबाद से प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित उर्दू अखबार ‘दैनिक मुंसिफ ने भी कुछ दिनों पूर्व इस तरह का दावा किया ।राजीव,संजय,राहुल,प्रियंका जैसे नाम केवल हिन्दू मतों को प्रभावित करने के लिए रखे गए थे।हालांकि बाद में कट्टर ‘कैथोलिक ईसाइयों,ने पूरे प्लान से इस वंश पर अधिकार कर लिया।अब यह वंश मजहबी रूप से क्रिप्टो-इस्लामिक है।मूर्ख सेकुलरिज्म की अवधारणा तो देखिए यह कट्टर क्रिप्टो परिवार हिन्दुओ में ही लाखो पैरोकार विकसित करने में सफल रहा।स्वार्थ भरी आर्थिक रचनाओं में फंसे वे मूर्ख अपनी पीढ़ियों के प्रति जिम्मेदारियों को भी न समझ सके।असल मे जयचंद एक सोच हैं।जिसे आठ सौ सालों से छिनती जमीन,वंश,जीन और पुरखो की थाती की परवाह भी नही होती।आप स्व.फीरोज की जो भी भी अधिकृत जीवनी पढ़ते हैं उसमे निम्नलिखित वाक्य हैं,ध्यान से देखे….

“फिरोज जहाँगीर घंडी के नाम से उनका जन्म एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम फरिदून जहाँगीर घंडी और माता का नाम रतिमई था, जो बॉम्बे के खेतवाडी मोहल्ला में नौरोजी नाटकवाला भवन में रहते थे।उनके पिता जहाँगीर किल्लीक निक्सन में मरीन इंजिनियर थे और इसके बाद उनका प्रमोशन वारंट इंजिनियर के रूप में किया गया था। फिरोज अपने माता-पिता के सबसे छोटे बेटे थे, उनके दो भाई दोरब और फरिदून जहाँगीर और दो बहने तहमीना केर्शष्प और अलू दस्तूर है।(कहीं उपलबध नही) इसके बाद उनका परिवार दक्षिण गुजरात के भरूच से बॉम्बे स्थानांतरित हो गया,(फैब्रिकेटेड) जहाँ उनके पूर्वजो का भी घर था। कहा जाता है की बॉम्बे के कोतपरिवड में आज भी उनके दादा का घर है।(इस मकान से कोई सम्बन्ध नही निकला) 1920 के शुरू में अपने पिता की मृत्यु के बाद फिरोज और उनकी माता अपनी #अविवाहित आंटी के साथ रहने के लिए #इलाहाबाद चले गये।उनकी आंटी शहर के लेडी डफरिन हॉस्पिटल में एक सर्जन थी।(गलत सूचना-एक नर्स थी लेकिन फीरोज उसके यहां नही रहे ) फिरोज ने विद्या मंदिर हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और फिर एविंग क्रिस्चियन कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढाई पूरी की थी।,

लगभग सभी कांग्रेसी प्रोपेगिन्डिस्टस ने इसी लहजे का उपयोग किया है।इसके एक-एक वाक्य का विश्लेषण करें यह खुद में सन्देह की पुष्टि कर देगा।इन सत्तर सालो में काँग्रेसिययो ने लाखो योजनाओ-परियोजनाओं को गांधी-नेहरू(नेहरू,इंदिरा,संजय,राजीव और नहरेऊ के बाप-दादो वह भी दो ही पीढ़ी)नाम पर रखे पर आपने कभी किसीं बड़ी योजना या सड़क या शौचालय तक का नाम फीरोज के नाम पर देखा है?नही है।उन्होंने वह नाम बड़ी खूबसूरती से मिटा दिया. अगर होगी भी तो अल्पज्ञात होगी,सूना है रायबरेली में कोई कालेज है उसका फीरोज के नाम पर रखा हुआ है।केवल फैब्रिकेशन के लिए।उससे कोई फायदा नही था न।कॉन्ग्रेसी तो अपने बाप को बाप न बोलें अगर लाभ न दिखता हो।फीरोज गांधी कट्टर सुन्नी(हनफी)मुस्लिम थे।जिन्हें कांग्रेसियो ने प्रोपेगेंडा करके पारसी कह के जबरदस्त ढंग से भारतीय मनो-मष्तिष्क पर थोपा गया।फीरोज गांधी का एक भी पारसी रिश्तेदार हो तो पता करके बताइये(मै तत्काल यह आर्टिकल डिलीट कर दूंगा)।सारे पारसी यह बात जानते हैं।लेकिन सरकारी दमन के चलते उन्होंने अपना मुंह नही खोला।जो सच्चाई पता चली उनका नाम ‘फीरोज खान था जिनके पिता नबाब अली खान थे,जूनागढ़ के सैकड़ो मुस्लिम रिश्तेदार बता सकता हूँ।वह उन दिनों इलाहाबाद में पन्सारी का काम करते थे।उनका सगा इम्तियाज और उनका परिवार आज भी है।पूरे गुजरात में इनके तमाम रिश्तेदार फैले है।उनकी मृत्यु के बाद जिस तरह पारसी समाज ने ने बखेड़ा खड़ा किया वह पुष्टि के लिए काफी है।

“When he was cremated after his death in September 1960, it evoked sharp reaction among Parsis throughout the country Even when Feroze’s ashes were allowed to rest at the Parsi Anjuman cemetery, the 50-odd Parsi families residing in Allahabad cemetery, continued to remain indifferent. The Allahabad Parsi Zoroastrian Anjuman blocked efforts for the construction of a mazaar.”

1-इलाहाबाद वाला मामला बड़ा रहस्यमय है.,अचानक एक बालक एक मुस्लिम आंटी(कोई रिकार्ड उपलब्ध नही रहने जाता है?बाद में वे एक ‘अंजुम,नाम पैदा कर देते हैं।जो इलाहाबाद में रहता है।उन्होंने उसके बारे में बताना शुरू किया कि वह फीरोज के बड़े भाई का बेटा है।पर पारसी सोसायटी उसे पारसी नही बताती।ज्यादा खोजबीन करने पर वह दो-तीन पीढ़ी पहले का मुस्लिम निकलता है।जिसका कोई सम्बन्ध फीरोज से नही है।शायद सत्ता काल मे इसे प्रचारित होने से बचने के लिए साजिशी रूप से एक हथकंडे का उपयोग किया गया।
पता यह रहा:
ALLAHABAD
Capt. Homi P. Dandiwalla,
President Trustee,
Allahabad Parsi Zoroastrian Anjuman
Behind Palace Theatre,
Streachy Road,
Allahabad – 211 001.
यह पूरा पता ही इस तरह फैब्रिकेटेड किया गया है की यह पारसी लगे।अभी कुछ साल पहले यह सब नही था,आस-पास रहने वाले पुराने लोगो का कहना है कि यह सत्तर साल पहले किसी मुस्लिम का था,जमीन के कागजात भी कुछ ऐसा ही जता रहा रहा.।इस पते पर रहने वाले लोग “गांधी नाम लिखने लगे और फीरोज के रिश्तेदार बताटे हुए अपने नाम के साथ “गांधी,लगाने लगे वह अपने में ही शक पैदा करता है।यह एक दम साफ साफ़ पेशबंदी जैसा लगता है।बार-बार जोरास्थ्रियन-धर्म पर जो देना हमे दृश्यम फिल्म की याद दिलाता है।
२-जो पुष्ट सूचनाये हैं उनके अनुसार यह जूना-गढ़(गुजरात)का एक कट्टर मुस्लिम व्यापारी थे।नबाब खां की शादी एक पारसी औरत से हुई थी।फीरोज खान उसी महिला से उत्पन्न थे।इलाहाबाद व्यापार के सिलसिले में जाते थे।वही एक मुस्लिम के बतौर बस गए…. वहीं से लव-जेहाद का टारगेट लिया गया।नेहरू डायनेस्टी के लेखक के एन.राव के अनुसार, इंदिरा और फिरोज ने लंदन में एक मस्जिद में जाकर निकाह कर लिया था और इंदिरा को मुसलमान धर्म स्वीकार करना पड़ा था।
३-पारसीयों में कब्र नही होती न उनके मृतक संस्कार मुस्लिम रीति रिवाजो से मिलते है।फीरोज खान दफनाए गए थे.।इलाहाबाद के ममफोर्डगंज मोहल्ले स्थित कब्रिस्तान में दफन किया गया था।उस पर बड़ा विवाद हुआ था।(देखे समस्त अखबार सितम्बर १९६०)उस पर मार भी बनाया गया।उन्होंने बाद में इस कब्रिस्तान को ही पारसी कब्रिस्तान नाम दे दिया।जबकि १९५० के पहले के रिकार्डो में वह मुस्लिम कब्रिस्तान के नाम से दर्ज है।पारसियों में दफनाने की परम्परा नही है,उस कब्रिस्तान में भुत से मुर्दे दफनाने की चिन्ह मौजूद है।
४-उस इलाके के पुराने मुस्लिमो से बात करे,वह भी इस बात की पुष्टि करते हैं।उन्होंने दो पारसी नि:संतानों के नामो के सहारे प्रोपेगंडा बस खड़ा किया था।
५-एक बड़ी टीम ने उनके अतीत को गायब करके यह फैलाया कि वे सब पारसी थे।जबकि उनके बारे में पारसी सोसायटी के पास कोई रिकार्ड नही है।जबकि पारसी सोसायटी दुनियां भर में फैले मात्र एक लाख से अधिक पारसियों की वंशवार सूची रखे है।न ही उपरोक्त नाम के पारसी या उनके रिश्तेदार कहीं भी उपलब्ध हैं।
६-अपने ख़ानदान को लेकर उन्होंने किराए के क़ुछ विदेशी लेखको से विभिन्न किताबें लिखवाई जो मूल विषय पर चुप हैं या सधे तरीके से उलझा देते हैं। एक स्वीडिश लेखक बर्टील फाल्क ने ‘फीरोज गाँधी:द फ़ारगाटेन गांधी,नाम से एक जीवनी लिखी उसमे बड़ी खूबसूरती से इन विषयों को घुमा दिया गया है।भारतीय पत्रकार और जीवनीकार तो इस मामले में और अवविश्वस्नीय है।उन्होंने तरह-तरह की कहानियां रची हैं पर इसको घुमा नही पाये।तमाम छेड़छाड़ के बावजूद वे पारसी साबित नही कर पाते।तमाम कोशिशों के बावजूद फीरोज खान का एक भी पारसी पट्टीदार-रिश्तेदार दुनियाँ में उपलब्ध नही है।जिसे वे बताते हैं वह तीन पीढ़ी पहले का मुस्लिम परिवार है।
७-एक बड़ी टीम ने उनके अतीत को गायब करके यह फैलाया कि वे सब पारसी थे।जबकि उनके बारे में पारसी सोसायटी के पास कोई रिकार्ड नही है।जबकि पारसी सोसायटी दुनियां भर में फैले मात्र एक लाख से अधिक पारसियों की वंशवार सूची रखे है।न ही उपरोक्त नाम के पारसी या उनके रिश्तेदार कहीं भी उपलब्ध हैं।
८-इन सालो में बाकायदे सरकारी एजेंसियों,पाठ्यक्रमो,एनजीओ,अन्य साहित्यों,मीडिया आदि संस्थानो द्वारा इस बात को स्टैब्लिश करने का प्रयत्न किया गया कि वे पारसी थे।केवल यही तक नही उनके अतीत नाम, काम और रिश्तेदारों तक के नाम उसी तरह छिपा/गायब कर दिए गए जैसे आजकल रॉबर्ट बढेरा की फैमिली गायब हो रही है।इस बीच जिन पत्रकारों ने फीरोज खान फरदुमथई के बारे में कुछ लिखा या चर्चा की वह या तो ओब्लाइज होकर चुप हो गया या फिर नेपथ्य में चला गया।
९- मेनका गाँधी ने १९८४ में इंदिरा गाँधी को कोर्ट में खिंचा था,संपत्ति विवाद में, और कहा था की वो हिन्दू नहीं पारसी है. .://…../1984/05/02.।यह एक आधार लेकर लम्बा चला।उस केस में श्रीमती गांधी के वकील ने केवल यह कहा कि ‘विवाह हिन्दू रीति,, से हुआ था।पर उसमे कही यह साबित नही हुआ की वे पारसी हैं।उस विषय को प्रचारित करने के अलावा वह अन्य दस्तावेजी साक्षय के तौर पर कही नही दीखता।
१०-पर्सियाना पब्लिकेशन्स प्वत् ल्ट्ड. क. क. (नवसारी) चेंबर्स, ग्राउंड फ्लोर, (ऑप सेण्ट केतेड्रल स्कूल साइड एंट्रेन्स) 39ब, अमृत केशव नायक रोड, फ़ोर्ट, मुम्बई 400001. इंडिया फोन: 2207 8104, 2207 7543, 2207 2624 फॅक्स: 2207 5572 .@.।आप इस पते पर पर्सियनो के बारे में जानकारी ले सकते हैं।यही कि कोई व्यक्ति पारसी बन नही सकता।यहाँ से फीरोज गाँधी के बारे में कोई जानकारे नही दी जाती।
११-युनुस की लिखी किताब “Persons, Passions & Politics” से पता चलता है कि बचपन में संजय गाँधी का मुस्लिम रीती-रिवाज के अनुसार खतना भी किया गया था।के.एन. राव अपनी पुस्तक “The Nehru Dynasty” में लिखते हैं कि राजीव गांधी शादी करने के लिए एक कैथोलिक बन गये थे और नाम रखा गया रॉबर्टो।डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी पुस्तक “Assassination Of Rajiv Gandhi-Unasked Questions and Unanswered Queries” में लिखा है कि सोनिया गाँधी का असली नाम अन्तोनिया मायनो था, इनके पिता फासिस्ट थे और उन्होंने रूस में पांच साल के कारावास की सज़ा काटी थी।

अब तो समझ गये न इन सालों में हिन्दुओ के दर्द पर दया क्यो नही आती थी?
क्यो हिन्दुओ का ही दमन होता था?
दंगे में क्यो हिन्दू ही मरता था?
काश्मीर की जड़ में क्या था?
भारत हित से ज्यादा पाकिस्तान हित की चिंता क्यो थी?
क्यो 1971 की जीत के बाद भी हार गए?
मैं यह मान नहीं सकता की ४ करोड़ बंगलादेशी घुसपैठिये बिना कांग्रेसी सरकारी-सह और साजिश के इस हिन्दू-देश में घुसे होंगे??
हिन्दुओ में तरह-तरह से विभाजन की कोशिश क्यों लगातार की जाती थी?
सरकारे ही देश को पिछड़ा,अपढ़, बनाये रखने की क्यो कोशिशे करती थीं?
राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा क्यो विदेशी बैंकों में जाता था?
स्विस बैंक, यूरोप और इस्लामी देश ही क्यो महत्त्वपूर्ण बने हुए थे?
स्वास्थ्य,शिक्षा,सड़क,पानी,बिजली,न्याय क्यो दूर रखने की कोशिश होती थी?
हिन्दू-सिखों को भी क्यो लड़ाने की कोशिश हुई?
सेखुलरिज्म क्यो प्रो-इस्लामिक,प्रो ईसाई बनाया/जताया जाता था?
क्यो ‘एक विशिष्ट ओपिनियन-मेकर वर्ग,को संरक्षण देकर देश मे नपुसंक निष्क्रियता को बढ़ावा दिया जाता था?
……आया समंझ में संस्कृति से, संस्कृत से,आयुर्वेद से,योग से,वेद-विज्ञान से,सनातन एजुकेशन से,स्वदेशी अर्थ व्यवस्था से,भारतीय मेधा से काँग्रेसियो को क्यो इतनी नफरत थी?
वे देश-विरोधी भावना को विकसित करके इसे बुद्धिजीविता का जामा पहनाने में लगे थे।इस अप्राकृति सोच को स्थापित करने के पीछे का राज क्या था?खुद सोचिये यह समझ जाएंगे।
मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है कि कोई विधर्मी या मुस्लिम-इसाई हिंदू बन जाए। यह तो हिंदुओं के लिए गौरव की बात है।आपत्ति इसमें यह है कि वह उसकी जीवन शैली ना अपना कर केवल धोखा देने के लिए,भ्रमित करने के लिए, सेलिब्रेशन के लिए उन नामों का उपयोग करें।डेमोक्रेसी में(लोकतंत्र में)बहुसंख्यकों को धोखा देना सबसे खतरनाक संकेत है।इस क्रिप्टो इस्लामी काल में कान्ग्रेइसियो द्वारा हिन्दू-हितो में किया गया एक भी उदाहरण गिना दीजिये!सनातन धर्म को बचाने के लिए कान्ग्रेसियो का एक भी कार्य दिखा दीजिये।सिवाय सेखुलारिज्म के नाम पर नीचा दिखाने के उन्होंने कुछ भी नही किया।
मजे की बात उस प्रवृत्ति से बचने का कोई तरीका अनाथ,निरीह सनातनियो के पास नहीं।किसी रिएक्शन से पहले ही उन्होंने,सवर्ण,दलित, ओबीसी,एससीएसटी में बाँट डाला।चूँकि खुद को ब्राम्हण रूप में पेश कर रहे थे इसलिए तुरन्त अपनी वामी-सेखलरी लाबी के माध्यम से ब्राम्हणों को टारगेट करना शुरू कर दिया।उसे तमाम विषयो के विलेन के तौर पर पेश किया जाने लगा।बजाय उनके जो हजार साल से गुलाम बनाये हुए थे।वे तो सेकुलर उपाधि से नवाजे जाने लगे।

उन्होंने अपना हिंदू-शैली में नाम रखा। नेहरू-गांधी राहुल,राजीव इंदिरा,प्रियंका जैसे नाम रखें और उस नाम को हिंदू दर्शाया।इस पर कोई आपत्ति नही।परन्तु इसकी आड़ में प्रो-इस्लामी,प्रो इसैत्त्व को बढावा दिया यह खतरनाक था।सेकुलरिज्म इसी का बाय-प्रोडक्ट है।उप उत्पाद ।यह सेक्युलरिज्म दिमाग के कन्फ्यूजन के लिए नही था।बल्कि यह भूमिका तैयार कर रहा था।इस जमीन पर,अपने ही जन के बीच संस्कृति और इतिहास अपना आत्मविश्वास खो दे।यह प्रो-इस्लामिक, प्रो ईसाइयत से भरा था।क्योंकि वह जनों से,सूरत से,जीवन शैली से, विचारों से,चरित्र से और व्यवहार से हिंदू थे ही नहीं, सनातन थे ही नहीं है ना ही उनकी सनातन धर्म में आस्था थी।वह केवल नाम का उपयोग करके,प्रकट करके एक बड़े समाज को धोखा दे रहे थे।

लोकतंत्र के नेतृत्त्व में बने रहने के लिए वे कन्फ्यूज किये हुए थे।जल्दी-जल्दी सरकारी चीजों में, व्यवस्था की चीजों में,जीवन शैली में शिक्षा में, पाठ्यक्रमों में, सिनेमा के माध्यम से, मीडिया के माध्यम से साहित्यकारों के माध्यम से, और एक बड़े सिंडिकेट कारपोरेट के माध्यम से भारत पर शिकंजा कस रहे थे।एक-एक प्वाइंट ध्यान से देखिये।वे विदेश नीति में,अर्थ व्यवस्था में,शिक्षा नीति में,पंचायतों में,स्वास्थ्य कृषि,प्रसारण नीतियों में,समाज नीतियों में उन बातों को घुसा रहे थे,लगातार नीचा दिखाते थे जिससे कि सनातन समाप्त हो जाए।देश की बड़ी संख्या में लोग शासकीय प्रश्रय के नाते एक विजातीय जीवनशैली तो अपनाने लगे और उन्होंने धीरे धीरे अनिवार्य कर दिया।पुरखों की जीवन शैली वाले पिछड़े,दकिया-नूस,पाखंडी,न जाने किन-किस गालियों से विभूषित किये जाने लगे।ईसाई ने अपनी परम्पराये,बोली,शैली,पहनावे,खानपान,तरीके नही छोड़े,मुसलमान ने नही छोड़ी बस हिंदू,सनातनी ही अपनी भूमि पर अपनी बोली,पहनावे,खान-पान,जीवन-शैली,रीति-नीति,पूजा-पद्धतियी को लेकर काम्प्लेक्स पाल बैठा।बिना शासकीय प्रश्रय के यह कत्तई सम्भव नही था।वे छा गए।चेतना पर, व्यक्तित्व पर और भारतीय समाज पर।एक अननेचुरल,अव्यवहारिक हाथ और नष्ट करने लगे हजारों साल की जीवन शैली को,सनातन व्यवस्था को। जो काम मुसलमान के रूप में नहीं कर पाए जो काम शासक के रूप में अंग्रेज नहीं कर पाए वह काम होने 70 सालों में कर दिखाया एक नाम के बल पर। एक विशेषण के बल पर।आज देश में तीन से चार करोड़ मति-भ्रमित, कन्फ्यूज्ड सेकुलर लाबी खड़ी है जो यह नहीं जानती कि उन्होंने क्या नष्ट किया।उनको लगा कि यह केवल स्वकेंद्र शासन प्रणाली मिल जाना ही स्वतंत्रता है, उनको लगा की गुलामी का अंत का मतलब है शासन प्राप्त कर लेना, व्यवस्था,राज्यकीय राजनीतिक परिवर्तन कर लेना मात्र ही स्वतंत्रता है।उनको नहीं मालूम कि यह उनके पुरखों की, उनके अतीत की,उनके इतिहास की जीवन शैली,अर्थव्यवस्था राज्यव्यवस्था,सोचने की प्रणाली, प्राकृतिक जीवन शैली,हिंदू जीवन शैली नष्ट करने का प्रयत्न है।पूर्ण रूप से नष्ट कर डॉलने वाला आक्रमण है जो सुनिश्चित योजना के साथ आप की युग-युगीन व्यवस्था को जड़ों से नष्ट कर रहा था।सोची समझी रणनीति के साथ आपको धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा था।यह केवल वंदे मातरम खत्म करना करना नहीं है, ना ही मंदिरों का नष्ट होना या 3500 मंदिरों को दोबारा वापस हिंदू शैली में वापस लाने का प्रयत्न न करना भी नही है।

यह है मिशनरियों और मुसलमानों का धर्मांतरण कराने का माहौल तैयार कराना, कोई मदर टेरेसा नाम से स्थापित होगा तो कभी संतो को बदनाम किया जाएगा। धीरे-धीरे छोटा होता भारत और ईरान,पाकिस्तान,अफगानिस्तान, बांग्लादेश और कश्मीर या केरला, बंगाल जहां से हिंदू खत्म हो रहे थे और किसी को चिंता नही थी।यह है पाकिस्तान में 49 प्रतिशत से घटकर 1.75 बचे हिन्दू और भारत में 7 से बढ़कर 22 प्रतिशत होते मुसलमान या 2 लाख 1947 से बढ़कर 2 करोड़ 45 लाख होते ईसाई।यह बात है उस हिंदुस्तान की जो सिमटता जा रहा है।जो हजार साल में कोई नहीं कर सका वह एक नाम के धोखे के साथ हो गया।उन्होंने शासन के माध्यम से सोच पर, समझ पर,राष्ट्रीय व्यक्तित्व पर काबू पा लिया।यह सब कुछ हुआ सेकुलरिज्म के चलते,थोपे गये अप्राकृतिक सोच के चलते जो बाय-प्रोडक्ट था गांधी-नेहरु उपनाम का।
वे इसकी आड़ में लगातार भारत को इस्लामी राज्य में जकड़ने की कोशिश में लगे थे।बस आप इतना समंझ लीजिये अंग्रेज गये तो इस्लामी शासन ही आया।यानी 8 सौ साल के स्वततंत्रता संघर्ष के बाद भी हिँड्यू 1947 में स्वतंत्र नही हुआ बल्कि एक छलावे में जकड़ दिया गया।इस्लामिक शासन हिंदू नाम के सहारे दुबारा सत्ता में आ गया।दुबारा अटल शासन के बाद इसाई शासन अपनी रणनीति से काबिज हो गया।वे लम्बे समय से ताक में थे।राजनीतिक मूर्खत्व काल मे उनकी दाल गल गई।
वे शिक्षा,मीडिया,सिनेमा,साहित्य,लेखकों,एनजीओ के मॉध्यम से एक समय बद्ध भूमिका बना रहे थे।एक माहौल बना रहे थे।जिससे निष्क्रियता का लाभ उठाकर इस देश को पूर्ण इस्लाम,या ईसाई देश मे बदल दें।
वह तो ईश्वरीय योजना थी जिसने संघ और मोदी को भेज दिया वरना हजारो-हजार साल की सनातन परम्परा खत्म ही थी।…तो भैया इस इस्लामिक (सुन्नी)हनफी फैमिली क्रिप्टो-इस्लामी, से सजग रहो।इस परिवार का कोई सनातनी-गोत्र नही है, न ही इसके कोई पट्टीदार कहीं भी उपलब्ध हैं।

संदर्भ-
1-रॉबर्ट हार्डी एंड्रयूज-ए लैंप फार इंडिया:द स्टोरी ऑफ मैडम पंडित,
2-एमओ मथाई-रेमिनसेस ऑफ नेहरू एज,
3-एम के सिंह- इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस का 13 वाँ संस्करण
4-नेहरू, बायोग्राफी
5-डिस्कवरी ऑफ इंडिया,
6-ख्वाजा हसन निजामी-
7-विकीपीडिया,
8-पारसी सोसाइटी,मुम्बई,
9-एमसी भट्ट-द ग्रेट डिवाइन:मुस्लिम सेपरेशन ऑफ़ पार्टीशन
10-हिंदुस्तान टाइम्स,
11-जेएन राव-द नेहरू डायनेस्टी
12-मोहम्मद यूनुस-परसन, पैशन एंड पालिटिक्स,
13-कैथरीन फ्रैंक-लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी,
14-नटवर सिंह-प्रोफ़ाइल एंड लेटर्स,
15-डा. सुब्रमण्यम स्वामी-असाशिनेसन ऑफ़ राजीव गांधी-अनसाकड क्वेश्चन

साभार: पवन त्रिपाठी, https://pawantripathiblog.wordpress.com/2017/09/04/%e0%a4%87%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a5%87%e0%a4%96%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%9c%e0%a5%8d%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa/

Sunday 3 September 2017

चुनाव_आपका_है

#चुनाव_आपका_है

जयबीम नाम से जो बाबा भक्ति के नाम पर आसुरी संप्रदाय उदित हुआ है ये भावी रक्तपात और गृहयुद्ध की पूर्व भूमिका है।

हम अंबेडकर के लिए अपमानजनक टिप्पणी से बचते हैं क्योंकि इससे हमारे ही एक वर्ग के हृदय को ठेस लगती है, ऐसा हमें लगता है।
किंतु बाबा भक्तों के आसुरी कृत्य और मनोदशा को देखते हुए लगता नहीं कि ये एकतरफा प्यार आगे बढ़ सकेगा।

पिछले दिनों कुछ घृणित सूचनाएं प्राप्त हुईं। वनवासी बंधुओं के मन में ब्राह्मण के लिए इतना विष है कि ये लोग आपसी बातचीत में एक दूसरे से पूछते हैं कि "तुमने अबतक किसी ब्राह्मण कन्या का कौमार्य भंग किया कि नहीं???"
अगर किया है तो वो लड़का भाग्यशाली है।
शिवलिंग पर पेशाब करने और हनुमान प्रतिमा पर जूता रखने की घटनाएं विदित ही हैं।
दुर्गा को वैश्या और महिषासुर को भगवान मानने का आरंभ हो गया है। अब वनवासी समाज में पैठ बना रहे वामी खलकामी इनके दिमाग में भर रहे हैं कि ," तुम कोई हिन्दू नहीं हो। तुम मूलनिवासी हो। तुमको बहुत सताया गया है और अब समय आ गया है कि मुसलमान को साथ लेकर तुम इन विदेशी आर्यों को इस देश से उखाड़ फेंको।"

छत्तीसगढ़ के बैगा आदिवासियों और गोंड आदिवासियों से लगाकर गुजरात के भील आदिवासियों तक पूरी बेल्ट इस नीले ज़हर के नशे में आत्मघात के लिए तैयार है।
अभी कुछ दिनों पहले रतलाम से उदयपुर के बीच बांसवाड़ा डूंगरपुर में भील लोगों के बीच ये शिगूफा छोड़ा गया कि,"तुम राम कृष्ण शिव आदि के नाम से अभिवादन क्यों करते हो??? उन्होंने क्या किया तुम्हारे लिए??? वो हिंदुओं और ब्राह्मणों के देवता हैं। तुम्हारे लिए जो भी किया है वो बाबा साहेब ने किया है। इसलिए राम राम छोड़कर जय भीम कहो।"

अब इन लोगों को कौन समझाए कि ये साक्षात् भगवान महादेव और पार्वती के गणों के वंशज हैं।
किरात अवतार कौन सा ब्राह्मण था ????
इनका रक्त भी आर्य संस्कृति से ही है। महाभारत के युद्ध में ये लड़ चुके हैं।
लोक संस्कृति में भैरव उपासना का तांत्रिक विधान इनकी धरोहर है जो वामी  खलकामी बौद्धिक वैश्याओं के अनुसरण में इनसे छिन जाएगा और फिर आध्यात्मिक पथ के अभाव में ये प्रकृति के सामुहिक नरसंहार की भेंट चढ़ जाएंगे। कम्यूनिस्ट लोग #NWO की इलूमिनाटी विंग के बौद्धिक आतंकवादी हैं। इनका उद्देश्य मात्र सांस्कृतिक विनाश है। रशिया और चीन में लेनिन, स्टालिन और माओ के शासनकाल में ६ करोड़ नागरिकों की हत्या की गई थी और उनमें से अधिकांश किसान और मजदूर ही थे।

प्रकृति का नियम लागू है। व्यापक स्तर पर सफाई की गोपनीय प्रक्रिया चल रही है। इसमें जिनका विनाश होना तय है उनके लक्षण में सबसे प्रमुख है #सामुहिक_बुद्धिनाश।
आज सरकार और संगठन इन लोगों के लिए कितना कुछ कर रहा है किन्तु ये लोग राष्ट्रवादी चिंतन को और हिंदू धर्म को नष्ट करने में ही ऊर्जा का अपव्यय कर रहे हैं।
हिंदुत्व सनातन धर्म है और ब्राह्मण किसी के टुकड़े पर नहीं पलता है। प्रचंड बौद्धिक शक्ति होते हुए भी हमने भिक्षापात्र हाथ में लेकर समाज के लिए उत्सर्ग किया था और आज भी कर सकते हैं किन्तु जो हमारे नाश के सपने देख रहे थे उनका आज इतिहास में भी निशान नहीं बचा है।

चुनाव आपका है, युद्ध हुआ तो भारी शिकारी पड़ेगा जानवर नहीं।

#जय_महाकाल

#अज्ञेय

Courtesy:

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