Thursday, 16 March 2017

प्राचीन भारतीय समाज में नारी सम्मान,सुरक्षा तथा स्वतंत्रता

वामपंथियों की आक्षेप है की महिलाओं पे हो रहे अत्याचार का मूल कारण हिन्दू धर्म के धर्म ग्रन्थ आदि काल से ही इनका तिरस्कृत होना,सम्मानहीन होना और पुरुषों द्वारा बलात् दबा के रखना है। आज इस आक्षेप का खण्डन कर वास्तविकता से अवगत करवाउंगी -:
कश्मीर नरेश भगवान विश्वकर्मा वंशीय ब्राह्मण राजा संग्रामराज की धर्मपत्नी श्रीलेखा एक विदुषी नारी थी  साहस, वीरता, स्वाभिमान, औज, उत्साह, की अनोखी मिसाल हैं वीरांगना श्रीलेखा , संग्रामराज ने पच्चीस वर्ष तक कश्मीर पर शासन किया 1003-1028 अवधि तक कश्मीर के राजा थे। महाराज संग्रामराज शासन का वृत्तान्त एवं महारानी श्रीलेखा की वीरता का उल्लेख कल्हण की राजतरङ्गिनी में मिलता है। 
महारानी श्रीलेखा ने महमूद गजनी को परास्त कर कश्मीर से खदेड़ा था
सन १०२१ ईस्वी (1021 A.D) में महमूद ने निर्णय लिया (सन १०१४ ईस्वी में संग्रामराज एवं महमूद गजनी के मध्य युद्ध हुआ था जिसमे महमूद को पराजय का सामना करना पड़ा) संग्रामराज से मिली हार का बदला लेने के लिए कश्मीर पर फिर आक्रमण किया झेलम नदी को पार करते हुए तोही नदी के तोश्मादियन घाटी से होते हुए कश्मीर पर आक्रमण कर दिया एवं कश्मीर नरेश का प्रमुख किला लोहारकोट किले को अपने कब्जे में कर लिया था महारानी श्रीलेखा ने महाराज संग्रामराज के साथ मिलकर युद्धनिति तैयार किया एवं कश्मीर राज्य के प्रमुख प्रवेशद्वार पर रानी श्रीलेखा के नेतृत्व में सेनापति तुंगा ने 30,000 सैन्यबल के साथ घात लगाकर बैठी थी (Ambush war (घात लगाकर युद्ध करना को कहता हैं) की जनक महारानी श्रीलेखा को माना जाता हैं) एवं लोहारकोट किले पर संग्रामराज ने अपने सैन्यदल के साथ महमूद ग़जनी पर आक्रमण कर दिया महमूद ग़जनी को लोहारकोट किले से सफलतापूर्वक खदेड़ दिया गया एवं रणनीति के अनुसार मलेच्छ दल को जीवित कश्मीर से नही जाने देना चाहते थे इसलिए प्रवेश द्वार पर महारानी श्रीलेखा अपनी सैन्यदल के साथ घात लगा कर थी जैसे ही महमूद ग़जनी के जिहादी लूटेरों की फ़ौज कश्मीर से पलायन करने के लिए कश्मीर के प्रवेशद्वार पर पहुचें रानी श्रीलेखा ने जिहादियो पर हमला कर दिया एवं महमूद ग़जनी इस युद्ध में अपना पैर खो कर विकलांग होकर ग़जनी की तरफ भागा एवं उनकी लूटेरों की सेना पलक झपकते ही असुर मर्दिनी की स्वरुप श्रीलेखा के हाथों बलि चढ़ गया । महाराज संग्रामराज की इतिहास महारानी श्रीलेखा के यशगाथा के बिना अधूरी रहेगी, सन १०२८ ईस्वी (1028 A.D) महाराज संग्रामराज की मृत्यु के पश्चात प्रजागण ने रानी श्रीलेखा को कश्मीर की राजगद्दी पर बैठाना चाहा परन्तु उन्होंने अपने पुत्र कलश को कश्मीर का राजा घोषित कर दिया ।
महारानी श्रीलेखा की वीरता एवं अभूतपूर्व बुद्धिमत्ता एवं शौर्य के आगे हम हिन्दू समाज सदेव इनके ऋणी रहेंगे।    
संदर्भ-: Kalhana Rajatarangini Taranga III, Faces of Glory: Kashmir’s Lords (Page-: 1-14,15) out of print Last Edition-:1989
कश्मीर में आदिकाल से क्षत्रिय का आधिपत्य था फिर विश्वकर्मा वंशीय ब्राह्मणों की आधिपत्य स्थापित हुआ कश्मीर का इतिहास एक रहस्यमयी इतिहास हुआ करता था कश्मीर किसके आधीन था कश्मीर की क्या अस्तित्व थी इस बारे में अब तक किसी प्राचीन एवं नविन इतिहासकारों ने कोई उल्लेख नही किया हैं अंतत जिस कारण हमारे सामने कश्मीर एक रहस्य की तरह हुआ करता था परन्तु राजतरङ्गिनी, कल्हण द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ से हमें बहुत कुछ जानने को मिला प्रमुख कारण जिस वजह से कश्मीर के इतिहास को रहस्य के अन्धकार में रखा गया कश्मीर का सत्ता राजा एवं राजा की पत्नी महारानी के पास भी हुआ करती थी राजा अयोग्य होता था तो रानी को कश्मीर का सत्ता सौंपा जाता था , इतिहास में केवल एक विदुषी नारी का नाम लिखा गया हैं वोह हैं रानी लक्ष्मीबाई परन्तु कश्मीर की नारियाँ जो कश्मीर की सत्ता संभाली थी उन्होंने आक्रमणकारियों से युद्ध कर के उन्हें भारतवर्ष के बहार खदेड़ा एवं साम्राज्य विस्तार भी किया ऐसे विदुषी वीरांगनाओं की अभेलना ना होती इतिहास में तो आज भारतीय नारियाँ अपनी भारतीय संस्कृति को भुला नही बैठती और ना ही वामपंथी के ज़हर फैलते आजाद भारत में सबसे शर्मनाक काण्ड हुआ हम हिन्दुओ का धर्मग्रन्थ को जलाया गया हिन्दू के खाल ओढ़े हिन्दुद्रोहियो द्वारा और फिर भी कुछ लोग कहते हैं भारत हिन्दू राष्ट्र हैं यह एक भ्रम हैं भारत हिन्दू राष्ट्र था 19 सताब्दी (1800-1859 A.D) तक जबतक भारत का संविधान मनुस्मृति था और हमारे धर्म में एवं मनुस्मृति में नारि देवी कहा गया हैं मनुस्मृति में कहा गया हैं भारतीय समाज में नारी समाज में पूजित थी, आज भी पत्नी के विना हिंदुओं का कोई धार्मिक संस्कार पूर्ण नहीं होता। वैदिक युग में स्त्रियाँ कुलदेवी मानी जाती थी। स्त्रियाँ केवल घर तक ही सिमित नहीं थी अपितु रण-क्षेत्र और अध्ययन-अध्यापन में भी उनका बराबर योगदान था। वामपंथी एवं तथाकथित नारी रक्षक मनुस्मृति के विरोध में इसलिए थे क्योंकि नारी को भोग नही पाते थे अपनी मान रक्षा के लिए नारी सती हो जाती थी और येही मूलकारण था जिससे हिन्दू नारियों को कोई भी मलेच्छ , एवं हिन्दुद्रोही अपवित्र नही कर पाते थे । 
इस प्रकार यह कहा जा सकता है की प्राचीन भारतीय समाज में नारी सम्मानित,सुरक्षित तथा स्वतन्त्र थी।
नारियों की वर्तमान दशा के लिए पुरातन भारतीय संस्कृति व परम्परा को जिम्मेवार मानने वालों को सोचना चाहिए।
नारी जितनी सम्मानित,सुरक्षित और स्वतंत्र भारतीय सनातन परम्परा में है उतनी पाश्चात्य में ना कभी थी ना कभी होगी।
भारत में नारी भोग्या नहीं अपितु पूज्या है।

जय राधा-माधव
🙏🙏

साभार:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=429217604091370&id=100010094027252

!! श्री मंगलचंडिकास्तोत्रम् !!

!! श्री मंगलचंडिकास्तोत्रम् !!

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके I
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः II

पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः I
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् II

मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः I
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् II

देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम् I
सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम् II

श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् I
वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् II

बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम् I
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् II

ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पललोचनाम् I
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् II

संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे II
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने I
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः II
शंकर उवाच रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके I
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके II

हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके I
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके II

मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले I
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये II

पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते I
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम् II

मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले I
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि II

सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे II

स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः II

देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः I
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम् II

II इति श्री ब्रह्मवैवर्ते मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम् II

27 REASONS WHY HINDUISM IS THE BEST RELIGION

27 REASONS WHY HINDUISM IS THE BEST RELIGION
- by Francois Gautier
1) Believe in God ! - Aastik - Accepted
2) Don't believe in God ! - You're accepted as Nastik
3) You want to worship idols - please go ahead. You are a murti pujak.
4) You dont want to worship idols - no problem. You can focus on Nirguna Brahman.
5) You want to criticise something in our religion. Come forward. We are logical. Nyaya, Tarka etc. are core Hindu schools.
6) You want to accept beliefs as it is. Most welcome. Please go ahead with it.
7) You want to start your journey by reading Bhagvad Gita - Sure !
8) You want to start your journey by reading Upanishads - Go ahead
9) You want to start your journey by reading Purana - Be my guest.
10) You just don't like reading Puranas or other books. No problem my dear. Go by Bhakti tradition . ( bhakti- devotion)
11) You don't like idea of Bhakti ! No problem. Do your Karma. Be a karmayogi.
12) You want to enjoy life. Very good. No problem at all. This is Charvaka Philosophy.
13) You want to abstain from all the enjoyment of life & find God - jai ho ! Be a Sadhu, an ascetic !
14) You don't like the concept of God. You believe in Nature only - Welcome. (Trees are our friends and Prakriti or nature is worthy of worship).
15) You believe in one God or Supreme Energy. Superb! Follow Advaita philosophy
16) You want a Guru. Go ahead. Receive gyaan.
17) You don't want a Guru.. Help yourself ! Meditate, Study !
18) You believe in Female energy ! Shakti is worshipped.
19) You believe that every human being is equal. Yeah! You're awesome, come on let's celebrate Hinduism! "Vasudhaiva kutumbakam" (the world is a family)
20) You don't have time to celebrate the festival.
Don't worry. One more festival is coming! There are multiple festivals every single day of the year.
21) You are a working person. Don't have time for religion. Its okay. You will still be a Hindu.
22) You like to go to temples. Devotion is loved.
23) You don't like to go to temples - no problem. You are still a Hindu!
24) You know that Hinduism is a way of life, with considerable freedom.
25) You believe that everything has God in it. So you worship your mother, father, guru, tree, River, Prani-matra, Earth, Universe!
26) And If you don't believe that everything has GOD in it - No problems. Respect your viewpoint.
27) "Sarve jana sukhino bhavantu " (May you all live happily)
You represent this! You're free to choose!
This is exactly the essence of Hinduism, all inclusive. That is why it has withstood the test of time in spite of repeated onslaught both from within and outside, and assimilated every good aspects from everything . That is why it is eternal !!!
There is a saying in Rigveda , the first book ever known to mankind which depicts the Hinduism philosophy in a Nutshell -" Ano bhadrah Krathavo Yanthu Vishwathah"- Let the knowledge come to us from every direction".

Dynasties that have ruled India in the last thousand years

#FACTMuseum has painstakingly created a graph of the dynasties that have ruled India in the last thousand years from 1000 AD to the present day. The horizontal axis is the time period and the vertical axis is for the various regions of Bharath. The size of each block corresponds to the relative importance of the ruler.

Notice how there are dozens of indigenous dynasties and some pretty significant ones, but how much of them did your history books teach you? ALMOST NOTHING!

Just as we have highlighted and made the #Mughal and the #British font sizes larger and the color darker so that your attention only goes to them, the text books also did the same and ensured that most Indians don't know of the dozens of other dynasties, and only hear about the #Mughals and the #British

Why the disproportionate coverage? What was the agenda?

These are important questions each of us should be asking ourselves, to do the course corrections of the Indian history being taught!

Source: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=411559495859702&substory_index=0&id=384602641888721

Vyasaraja Tirtharu, the light of Hampi

Vyasaraja Tirtharu was the preceptor of six emperors of Vijayanagara Dynasty. A disciple of Sripadarajaru he was sent to the court of Vijayanagar. At Vijayanagara everyone regarded Vyasaraja Tirtharu as the guardian saint of the Dynasty. The land of Hampi beamed with the glow of knowledge from this saint. 

One incident illustrates how much importance Vyasaraja Tirtharu gave to learning. One day, the Vijayanagar Emperor, Krishnadeva Raya sent a palanquin to the seer. Vyasaraja Tirtharu was seated on the decorated palanquin and brought into the city with much fanfare. Drummers and heralds announced the arrival of the seer and music was being played. Amid the cacophony of sound and noise, Emperor Krishnadeva Raya was astonished to see the seer oblivious to the sound and music, was reading intently from a book. He did not even notice the Emperor peeping in.

Vyasaraja Tirtharu held durbar and this was religious and philosophical in nature which even the Emperors attended. Portuguese travellers Domingo Paes and Nuniz wrote about the durbar in their chronicles.

Krishnadeva Raya had the eight gems in his court such as Tenali Ramakrishna, Allasani Pedanna, Nandi Thimmanna,Madayyagari Mallana, Dhurjati, Ayyalaraju Ramambhadrudu, Pingali Surana, Ramarajabhushanudu. Vyasaraja Tirtharu had Purandara Dasa, Kanaka Dasa, Belur Vaikunta Dasa of the Dasa Koota and Vadiraja Thitharu, Srinivasa Thirtharu, Rama Thirtharu, Srinivasa Thirtharu of the Vyasa Koota, it was a wonderful mix of literary and philosophy in the durbar. The Royal court and durbar was known for its riches, pomp and grandeur, Vyasa Raja’s court was known for its knowledge, its holiness, nearness to Hari, music and philosophy. These two parallel courts enhanced the power and prestige of the Vijayanagar dynasty. If one came to be widely regarded as the richest and most ornamental durbar halls of all times, the Dasa-Vyasa Koota was known for its simplicity, holiness, honesty, sincerity and straightforwardness and its nearness to Sri Hari. If Purandara Dasa was the chief ornament of the Dasa Sahitya, the incomparable Vadiraja Tirtharu was the glittering star among Vyasa Koota.

Vyasaraja Tirtharu continued to be the Raja Guru of Vijayanagar even after the death of Krishnadeva Raya in 1529. He continued to advise Achutadeva Raya and in this period Vyasa Raja decided to entered brundavana at Nava Brundavana near Hampi. He selected a spot to enter Brundavana earlier and Achutadeva Raya took personal interest in getting the Brundavana ready.

Just before he entered Brundavana, Vyasaraja Tirtharu had warned Achutadeva Raya about the impending end of the Vijayanagar Empire. He had clearly predicted that the days of the Hindu Empire were numbered and he wanted the Emperor to take remedial measures. The advice went in vain, weather the Emperor was powerless to effect any change or he did not pay adequate heed is not clear.

Among the thousands of people who witnessed Vyasaraja Tirtharu entering Brundavana was Purandara Dasaru, Emperor Achutadeva Raya himself and all his noblemen. He had chosen his spot for his final resting place and this was in the midst of several other Madhwa saints on the banks of the River Tungabhadra near Anegundi, the ancient site of Kishkinda where Hanuma met Sri Rama and Lakshmana for the first time.

Today Phalguna Bahula Chaturthi is the day Guru Vyasaraja Tirtharu entered the Brundavana.

Arthikalpita kalpoyam prathyarthi gajakesari | Vyasathirtha gururbhoryarth asmad ishtartha siddhaye ||

Fort those who come to him as supplicants, he is the Desire-tree granting all desires, he is like the lion who destroys elephants for his dialectical opponents. May the great teacher, Vyasa Tirtha be our guide and protector, to grant all of our desires!

Source: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1490132577672564&id=100000275079859

Wednesday, 15 March 2017

भारत में सती प्रथा

भारत में सती प्रथा

भारत में कभी सति प्रथा थी ही नही, रामायण / महाभारत जैसे ग्रन्थ कौशल्या, कैकेई, सुमित्रा, मंदोदरी, तारा, सत्यवती, अम्बिका, अम्बालिका, कुंती, उत्तरा, आदि जैसी बिध्वाओं की गाथाओं से भरे हुए हैं। किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में सति-प्रथा का कोई उल्लेख नहीं है. यह प्रथा भारत में इस्लामी आतंक के बाद शुरू हुई थी। ये बात अलग है कि- बाद में कुछ लालचियों ने अपने भाइयों कि सम्पत्ति को हथियाने के लिए अपनी भाभियों की ह्त्या इसको प्रथा बनाकर की थी।

इस्लामी अत्याचारियों द्वारा पुरुषों को मारने के बाद उनकी स्त्रीयों से दुराचार किया जाता था, इसीलिये स्वाभिमानी हिन्दू स्त्रीयों ने अपने पति के हत्यारों के हाथो इज्जत गंवाने के बजाय अपनी जान देना बेहतर समझा था। भारत में जो लोग इस्लाम का झंडा बुलंद किये घूमते हैं, वो ज्यादातर उन वेवश महिलाओं के ही वंशज हैं जिनके पति की ह्त्या कर महिला को जबरन हरम में डाल दिया गया था। इनको तो खुद अपने पूर्वजों पर हुए अत्याचार का प्रतिकार करना चाहिए।

सेकुलर बुद्धिजीवी "सतीप्रथा" को हिन्दू समाज की कुरीति बताते हैं जबकि यह प्राचीन प्रथा है ही नहीं. रामायण में केवल मेघनाथ की पत्नी सुलोचना का और महाभारत में पांडू की दुसरी पत्नी माद्री के आत्मदाह का प्रसंग है। इन दोनो को भी किसी ने किसी प्रथा के तहत बाध्य नहीं किया था बल्कि पति के वियोंग में आत्मदाह किया था।

चित्तौड़गढ़ के राजा राणा रतन सेन की रानी "महारानी पद्मावती" का जौहर विश्व में भारतीय नारी के स्वाभिमान की सबसे प्रसिद्ध घटना है। ऐय्याश और जालिम राजा "अलाउद्दीन खिलजी" ने रानी पद्मावती को पाने के लिए, चित्तौड़ पर चढ़ाई कर दी थी , राजपूतों ने उसका बहादुरी से सामना किया। हार हो जाने पर रानी पद्मावती एवं सभी स्त्रीयों ने , अत्याचारियों के हाथो इज्ज़त गंवाने के बजाय सामूहिक आत्मदाह कर लिया था. जौहर /सती को सर्वाधिक सम्मान इसी घटना के कारण दिया जाता है।

चित्तौड़गढ़, जो जौहर (सति) के लिए सर्वाधिक विख्यात है उसकी महारानी कर्णावती ने भी अपने पति राणा सांगा की म्रत्यु के समय (1528) में जौहर नहीं किया था, बल्कि राज्य को सम्हाला था। महारानी कर्णावती ने सात साल बाद 1535 में बहादुर शाह के हाथो चित्तौड़ की हार होने पर, उससे अपनी इज्ज़त बचाने की खातिर आत्मदाह किया था। औरंगजेब से जाटों की लड़ाई के समय तो जाट स्त्रियों ने युद्ध में जाने से पहले, अपने खुद अपने पति से कहा था कि उनकी गर्दन काटकर जाएँ।

गोंडवाना की रानी दुर्गावती ने भी अपने पति की म्रत्यु के बाद 15 बर्षों तक शासन किया था। दुर्गावती को अपने हरम में डालने की खातिर जालिम मुग़ल शासक "अकबर" ने गोंडवाना पर चढ़ाई कर दी थी। रानी दुर्गावती ने उसका बहादुरी से सामना किया और एक बार मुग़ल सेना को भागने पर मजबूर कर दिया था। दुसरी लड़ाई में जब दुर्गावती की हार हुई तो उसने भी अकबर के हाथ पकडे जाने के बजाय खुद अपने सीने में खंजर मारकर आत्महत्या कर ली थी।

"सती" का मतलब होता है, अपने पति को पूर्ण समर्पित पतिव्रता स्त्री। सती अनुसूइया, सती सीता, सती सावित्री, इत्यादि दुनिया की सबसे "सुविख्यात सती" हैं और इनमें से किसी ने भी आत्मदाह नही किया था। जिनके घर की औरते रोज ही इधर-उधर मुह मारती फिरती हों, उन्हें कभी समझ नहीं आ सकता कि - अपने पति के हत्यारों से अपनी इज्ज़त बचाने के लिए, कोई स्वाभिमानी महिला आत्मदाह क्यों कर लेती थी।

हमें गर्व है भारत की उन महान सती स्त्रियों पर, जो हर तरह से असहाय हो जाने के बाद, अपने पति के हत्यारों से, अपनी इज्ज़त बचाने की खातिर अपनी जान दे दिया करती थीं। जो स्त्रियाँ अपनी जान देने का साहस नहीं कर सकी उनको मुघलों के हरम में रहना पडा। मुग़ल राजाओं से बिधिवत निकाह करने वाली औरतों के बच्चो को शहजादा और हरम की स्त्रियों से पैदा हुए बच्चो को हरामी कहा जाता था और उन सभी को इस्लाम को ही मानना पड़ता था।

जिस "सती" के नाम पर स्त्री के आत्मबलिदान को "सती" होना कहा जाता है उन्होंने भी पति की म्रत्यु पर नहीं बल्कि अपने मायके में अपने पति के अपमान पर आत्मदाह किया था। शिव पत्नी "सती" द्वारा अपने पति का अपमान बर्दास्त नहीं करना और इसके लिए अपने पिता के यग्य को विध्वंस करने के लिए आत्मदाह करना , पति के प्रति "सती" के समर्पण की पराकाष्ठ माना गया था। इसीलिये पतिव्रता स्त्री को सती कहा जाता है, जीवित स्त्रियाँ भी सती कहलाई जाती रही है।

Source: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=438938636448049&substory_index=0&id=436564770018769

Tuesday, 14 March 2017

Mind Blowing Facts about Sanskrit

Mind Blowing Facts about Sanskrit
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• Sanskrit has the highest number of vocabularies than any other language in the world.

• 102 arab 78 crore 50 lakh words have been used till now in Sanskrit. If it will be used in computers & technology, then more these number of words will be used in next 100 years.

• Sanskrit has the power to say a sentence in a minimum number of words than any other language.

• America has a University dedicated to Sanskrit and the NASA too has a department in it to research on Sanskrit manuscripts.

• Sanskrit is the best computer friendly language.(Ref: Forbes Magazine July 1987).

• Sanskrit is a highly regularized language. In fact, NASA declared it to be the “only unambiguous spoken language on the planet” – and very suitable for computer comprehension.

• Sanskrit is an official language of the Indian state of Uttarakhand.

• There is a report by a NASA scientist that America is creating 6th and 7th generation super computers based on Sanskrit language. Project deadline is 2025 for 6th generation and 2034 for 7th generation computer. After this there will be a revolution all over the world to learn Sanskrit.

• The language is rich in most advanced science, contained in their books called Vedas, Upanishads, Shruti, Smriti, Puranas, Mahabharata, Ramayana etc. (Ref: Russian State University, NASA etc. NASA possesses 60,000 palm leaf manuscripts, which they are studying.)

• Learning of Sanskrit improves brain functioning. Students start getting better marks in other subjects like Mathematics, Science etc., which some people find difficult. It enhances the memory power. James Junior School, London, has made Sanskrit compulsory. Students of this school are among the toppers year after year. This has been followed by some schools in Ireland also.

• Research has shown that the phonetics of this language has roots in various energy points of the body and reading, speaking or reciting Sanskrit stimulates these points and raises the energy levels, whereby resistance against illnesses, relaxation to mind and reduction of stress are achieved.

• Sanskrit is the only language, which uses all the nerves of the tongue. By its pronunciation, energy points in the body are activated that causes the blood circulation to improve. This, coupled with the enhanced brain functioning and higher energy levels, ensures better health. Blood Pressure, diabetes, cholesterol etc. are controlled. (Ref: American Hindu University after constant study)

• There are reports that Russians, Germans and Americans are actively doing research on Hindu’s sacred books and are producing them back to the world in their name. Seventeen countries around the world have a University or two to study Sanskrit to gain technological advantages.

• Surprisingly, it is not just a language. Sanskrit is the primordial conduit between Human Thought and the Soul; Physics and Metaphysics; Subtle and Gross; Culture and Art; Nature and its Author; Created and the Creator.

• Sanskrit is the scholarly language of 3 major World religions – Hinduism, Buddhism (along with Pali) and Jainism (second to Prakrit).

• Today, there are a handful of Indian villages (in Rajasthan, Madhya Pradesh, Orissa, Karnataka and Uttar Pradesh) where Sanskrit is still spoken as the main language. For example in the village of Mathur in Karnataka, more than 90% of the population knows Sanskrit. Mathur/Mattur is a village 10 kms from Shimoga speaks Sanskrit on daily basis (day-to-day communication).

• Even a Sanskrit daily newspaper exists! Sudharma, published out of Mysore, has been running since 1970 and is now available online as an e-paper (sudharma.epapertoday.com)!

• The best type of calendar being used is hindu calendar(as the new year starts with the geological change of the solar system)
ref: german state university

• The UK is presently researching on a defence system based on Hindu’s shri chakra.

• संस्कृत is the only language in the world that exists since millions of years. Millions of languages that emerged from Sanskrit are dead and millions will come but Sanskrit will remain eternal. It is truly language of Bhagwan. Wealth of information on Sanskrit language. 👌👌👌 👆👆👆 Shows how India lags behind the Americans in this matter. We Indians are reading sacred texts, performing pujas for various religious festivals throughout the year. So we will not be lying if we say Sanskrit as also one of the languages in the next Census excercise without forgetting, thus help save our own language from disappearing & doing our bit for the language.

Source: https://m.facebook.com/groups/522333381189126?view=permalink&id=1234958186593305

मानव_का_आदि_देश_भारत, पुरानी_दुनिया_का_केंद्र – भारत

#आरम्भम - #मानव_का_आदि_देश_भारत - ------------------------------------------------------------------              #पुरानी_दुनिया_का_केंद्र...