Thursday, 16 March 2017

प्राचीन भारतीय समाज में नारी सम्मान,सुरक्षा तथा स्वतंत्रता

वामपंथियों की आक्षेप है की महिलाओं पे हो रहे अत्याचार का मूल कारण हिन्दू धर्म के धर्म ग्रन्थ आदि काल से ही इनका तिरस्कृत होना,सम्मानहीन होना और पुरुषों द्वारा बलात् दबा के रखना है। आज इस आक्षेप का खण्डन कर वास्तविकता से अवगत करवाउंगी -:
कश्मीर नरेश भगवान विश्वकर्मा वंशीय ब्राह्मण राजा संग्रामराज की धर्मपत्नी श्रीलेखा एक विदुषी नारी थी  साहस, वीरता, स्वाभिमान, औज, उत्साह, की अनोखी मिसाल हैं वीरांगना श्रीलेखा , संग्रामराज ने पच्चीस वर्ष तक कश्मीर पर शासन किया 1003-1028 अवधि तक कश्मीर के राजा थे। महाराज संग्रामराज शासन का वृत्तान्त एवं महारानी श्रीलेखा की वीरता का उल्लेख कल्हण की राजतरङ्गिनी में मिलता है। 
महारानी श्रीलेखा ने महमूद गजनी को परास्त कर कश्मीर से खदेड़ा था
सन १०२१ ईस्वी (1021 A.D) में महमूद ने निर्णय लिया (सन १०१४ ईस्वी में संग्रामराज एवं महमूद गजनी के मध्य युद्ध हुआ था जिसमे महमूद को पराजय का सामना करना पड़ा) संग्रामराज से मिली हार का बदला लेने के लिए कश्मीर पर फिर आक्रमण किया झेलम नदी को पार करते हुए तोही नदी के तोश्मादियन घाटी से होते हुए कश्मीर पर आक्रमण कर दिया एवं कश्मीर नरेश का प्रमुख किला लोहारकोट किले को अपने कब्जे में कर लिया था महारानी श्रीलेखा ने महाराज संग्रामराज के साथ मिलकर युद्धनिति तैयार किया एवं कश्मीर राज्य के प्रमुख प्रवेशद्वार पर रानी श्रीलेखा के नेतृत्व में सेनापति तुंगा ने 30,000 सैन्यबल के साथ घात लगाकर बैठी थी (Ambush war (घात लगाकर युद्ध करना को कहता हैं) की जनक महारानी श्रीलेखा को माना जाता हैं) एवं लोहारकोट किले पर संग्रामराज ने अपने सैन्यदल के साथ महमूद ग़जनी पर आक्रमण कर दिया महमूद ग़जनी को लोहारकोट किले से सफलतापूर्वक खदेड़ दिया गया एवं रणनीति के अनुसार मलेच्छ दल को जीवित कश्मीर से नही जाने देना चाहते थे इसलिए प्रवेश द्वार पर महारानी श्रीलेखा अपनी सैन्यदल के साथ घात लगा कर थी जैसे ही महमूद ग़जनी के जिहादी लूटेरों की फ़ौज कश्मीर से पलायन करने के लिए कश्मीर के प्रवेशद्वार पर पहुचें रानी श्रीलेखा ने जिहादियो पर हमला कर दिया एवं महमूद ग़जनी इस युद्ध में अपना पैर खो कर विकलांग होकर ग़जनी की तरफ भागा एवं उनकी लूटेरों की सेना पलक झपकते ही असुर मर्दिनी की स्वरुप श्रीलेखा के हाथों बलि चढ़ गया । महाराज संग्रामराज की इतिहास महारानी श्रीलेखा के यशगाथा के बिना अधूरी रहेगी, सन १०२८ ईस्वी (1028 A.D) महाराज संग्रामराज की मृत्यु के पश्चात प्रजागण ने रानी श्रीलेखा को कश्मीर की राजगद्दी पर बैठाना चाहा परन्तु उन्होंने अपने पुत्र कलश को कश्मीर का राजा घोषित कर दिया ।
महारानी श्रीलेखा की वीरता एवं अभूतपूर्व बुद्धिमत्ता एवं शौर्य के आगे हम हिन्दू समाज सदेव इनके ऋणी रहेंगे।    
संदर्भ-: Kalhana Rajatarangini Taranga III, Faces of Glory: Kashmir’s Lords (Page-: 1-14,15) out of print Last Edition-:1989
कश्मीर में आदिकाल से क्षत्रिय का आधिपत्य था फिर विश्वकर्मा वंशीय ब्राह्मणों की आधिपत्य स्थापित हुआ कश्मीर का इतिहास एक रहस्यमयी इतिहास हुआ करता था कश्मीर किसके आधीन था कश्मीर की क्या अस्तित्व थी इस बारे में अब तक किसी प्राचीन एवं नविन इतिहासकारों ने कोई उल्लेख नही किया हैं अंतत जिस कारण हमारे सामने कश्मीर एक रहस्य की तरह हुआ करता था परन्तु राजतरङ्गिनी, कल्हण द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ से हमें बहुत कुछ जानने को मिला प्रमुख कारण जिस वजह से कश्मीर के इतिहास को रहस्य के अन्धकार में रखा गया कश्मीर का सत्ता राजा एवं राजा की पत्नी महारानी के पास भी हुआ करती थी राजा अयोग्य होता था तो रानी को कश्मीर का सत्ता सौंपा जाता था , इतिहास में केवल एक विदुषी नारी का नाम लिखा गया हैं वोह हैं रानी लक्ष्मीबाई परन्तु कश्मीर की नारियाँ जो कश्मीर की सत्ता संभाली थी उन्होंने आक्रमणकारियों से युद्ध कर के उन्हें भारतवर्ष के बहार खदेड़ा एवं साम्राज्य विस्तार भी किया ऐसे विदुषी वीरांगनाओं की अभेलना ना होती इतिहास में तो आज भारतीय नारियाँ अपनी भारतीय संस्कृति को भुला नही बैठती और ना ही वामपंथी के ज़हर फैलते आजाद भारत में सबसे शर्मनाक काण्ड हुआ हम हिन्दुओ का धर्मग्रन्थ को जलाया गया हिन्दू के खाल ओढ़े हिन्दुद्रोहियो द्वारा और फिर भी कुछ लोग कहते हैं भारत हिन्दू राष्ट्र हैं यह एक भ्रम हैं भारत हिन्दू राष्ट्र था 19 सताब्दी (1800-1859 A.D) तक जबतक भारत का संविधान मनुस्मृति था और हमारे धर्म में एवं मनुस्मृति में नारि देवी कहा गया हैं मनुस्मृति में कहा गया हैं भारतीय समाज में नारी समाज में पूजित थी, आज भी पत्नी के विना हिंदुओं का कोई धार्मिक संस्कार पूर्ण नहीं होता। वैदिक युग में स्त्रियाँ कुलदेवी मानी जाती थी। स्त्रियाँ केवल घर तक ही सिमित नहीं थी अपितु रण-क्षेत्र और अध्ययन-अध्यापन में भी उनका बराबर योगदान था। वामपंथी एवं तथाकथित नारी रक्षक मनुस्मृति के विरोध में इसलिए थे क्योंकि नारी को भोग नही पाते थे अपनी मान रक्षा के लिए नारी सती हो जाती थी और येही मूलकारण था जिससे हिन्दू नारियों को कोई भी मलेच्छ , एवं हिन्दुद्रोही अपवित्र नही कर पाते थे । 
इस प्रकार यह कहा जा सकता है की प्राचीन भारतीय समाज में नारी सम्मानित,सुरक्षित तथा स्वतन्त्र थी।
नारियों की वर्तमान दशा के लिए पुरातन भारतीय संस्कृति व परम्परा को जिम्मेवार मानने वालों को सोचना चाहिए।
नारी जितनी सम्मानित,सुरक्षित और स्वतंत्र भारतीय सनातन परम्परा में है उतनी पाश्चात्य में ना कभी थी ना कभी होगी।
भारत में नारी भोग्या नहीं अपितु पूज्या है।

जय राधा-माधव
🙏🙏

साभार:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=429217604091370&id=100010094027252

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.

मानव_का_आदि_देश_भारत, पुरानी_दुनिया_का_केंद्र – भारत

#आरम्भम - #मानव_का_आदि_देश_भारत - ------------------------------------------------------------------              #पुरानी_दुनिया_का_केंद्र...