Wednesday, 27 September 2017

Mahishasura Mardhini Namah

Jay Bhawani

Mahisha, depicts the "Tamasa" guna. As large, black, stubborn, unlearning, slow and filled with baser instincts and appetites. In mythology and iconography, allusions often become literal.

I came across an enormous (Eighteen feet tall)Mahishasuramardhini statue at Mandapam (Tamilnadu-Andhra border), enroute from Thiruthani to Shreekalahasthi in the 1980s. The statue was unearthed when workmen preparing the ground for a second railway track struck the granite. It has since been covered by a very popular kische temple for which the Kumbha Abhishekham was performed by Chandrashekharendra Saraswathi of Kanchi.

The Temple has since been subverted to superstitious practices of the Non-Brahmin Dravid-Dalit majoritarian variety as have so many temples that no longer uplift lest this should interfere with the inexorable destruction of excellence and superior things by the Indian Republic..

The Statue faces South as suggested by the Kanchi Shankaracharya. Its exquisite face looks upwards in an expression of sublime bliss and the upper torso is that of an exquisitely shapely woman in restful ease. Below the navel, the body is frozen in intense movement. The trident pierces the Asura, writhing, face down.

When I first visited it, (there was no temple there then)  and circumambulated the magnificent sculpture, a local Brahmin translated, for me, the verses that the Sthapathi (Sculptor) had carved behind the statue's base in ancient Granthi-Thamizh. The gist of these verses is that Narayana has killed any number of Asuras (those who do not follow Brahmin-Aryan Law: The Suras) with his Chakra (Discus), yet Subrahmanya has killed none, but only transformed them into harmless creatures of beauty. (Such as the Peacock and the Rooster). This is because his Vel (spear) was given to him by Parameshwari who is the very embodiment of compassion. If this is so, then why is she, herself, killing Mahishasura? This is because Mahishasura represent man's jealousy, lust, and sadism. The slightest appeasement of any of these is like throwing ghee upon the Yajna Fire. Man can never be freed of these impulses of his animal body but by Mother's grace. Her love causes the pain of disillusionment that liberates.

This is Mahishasuramardhini at Haveri (Near Venugram i.e. Belgaon)

Courtesy: S Suchindranath Aiyer, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10156666879663082&id=683703081

Monday, 25 September 2017

सेखुलरिज्म एक आत्मघाती संस्कार

सेखुलरिज्म एक आत्मघाती संस्कार।

  ''सेक्युलरवाद के कारण दुनिया के कई देश और उनकी संस्कृति मिट गयी, कई देश और मिटेंगे ,अयान हिरसी अली ने यह कहकर दुनिया भर में नई बहस को छेड़ दिया है।इस दुनिया में अधिकतर लोगों को सच्चाई पसंद नहीं आयी और इसी कारण सच कहने वालो के दुश्मन अधिक होते है, और ऐसे ही लोगों में सोमालिया मूल की अयान हिरसी अली भी हैं।सोमालिया में सच बोलने की हिम्मत की तो कट्टरपंथी इनकी जान के पीछे पड़ गए। ये तो किस्मत अच्छी रही की ये बच गयी और यूरोप तथा अमरीका में शरण मिली।अयान हिरसी अली हमेशा से ही सच बोलती आयी है जो देश और वहां का समाज सेकुलरिज्म में अँधा हो जाता है, उस देश और उस समाज का नाश हो जाता है और इतिहास में ऐसे कई उदाहरण है।अयान हिरसी अली जैसे लोग सच को समझते है, पर अधिकतर लोग सेक्युलर बने रहना कहते है वो सच से डरते है।सीरिया कभी ईसाई बहुल देश हुआ करता था, ईरान का असली नाम तो पर्शिया था जहाँ पारसी लोग रहा करते थे, पाकिस्तान में 100% हिन्दू थे, अफगानिस्तान में भी हिन्दू फिर बौद्ध थे पर ये तमाम देश अब इस्लामिक बन चुके है, इनके नाम तक बदल दिए गए है इराक का असली नाम तो मेसोपोटामिया था।अयान हिरसी अली ने बताया की, ये तमाम इलाके और यहाँ के लोग इतने सेक्युलर थे, की सेक्युलरवाद के कारण उनका समाज और देश हमेशा के लिए मिट गए।अयान हिरसी अली ये भी कहती है की, जो देश आज सेक्युलरवाद निभा रहे है, भविष्य में वो भी सीरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान ही बनेंगे।दुनियाँ की हजारो प्राचीन संस्कृतियां और पूजा पद्दतियों को संगठित मजहबो द्वारा नष्ट किया जा रहा है।हजारो कबीलों की विविधता इस्लाम या ईसाइयत के संगठित आक्रमणों ने लील लिया।जिस गति और प्लानिंग से यह फैल रहा है जल्द ही या तो इस्लाम या क्रिश्चियन में दुनिया बची रहेगी।

  यूरोपियनों की एक ख़ासियात होती है वे देश की सुरक्ष को लेकर पूरे इमानदार होते है।जीवन शैली में कभी ही अल-तकिया नही करते।हिन्दुस्तानी नेताओं की तरह वे विचारों को लाकर न खुद को धोखा देते हैं न अपने देश को। जब फ्रांस के राष्ट्रपति के पद पर एक दक्षिणपंथ का विरोध करने वाला नियुक्त हुआ था तो कईयों ने तो इसको फ़्रांस के धर्मनिरपेक्षता की जीत बताया था।सेकुलरिज्म के नाम पर उसने वोट भी माँगा था।पर उसकी आड़ मे इस्लामिक आतंकियों ने फ़्रांस को बार बार लहू लुहान कर दिया मैकरोन को विचार बदलना पडा।

  फ्रांस जो कभी दुनिया में पर्यटन के लिए सबसे अच्छा देश माना जाता था वह अचानक ही  क्रूर इस्लामिक आतंकियों के निशाने पर आ गया था।खूबसूरत देश की तस्वीर ऐसी बिगड़ी की टूरिस्टों ने वहां जाने से ही लोग परहेज करना शुरू कर दिए।धर्मनिरपेक्षता के ढांचे ने फ्रांस को ही ध्वस्त करना शुरू कर दिया।सालो पहले वाम-पंथी माहौल में वहां लिबरंडूओं का प्रकोप बढ़ गया था,जिससे मुस्लिमो शरणार्थियो की कई खेप धीरे-धीरे वहां आने दी गई थी।जल्दी ही 'हम पांच हमारे तीस,की रणनीति ने वहां अमल किया और केवल चालीस साल में ही जनसख्या भी ४० गुना बढ़ गई।अब वे वहां 11.5 प्रतिशत हो गये।जैसे ही ७ प्रतिशत लांघे. फिर लव जेहाद,शरई शासन की मांग,सड़क पर नमाज का प्रदर्शन ...और जगह-जगह विस्स्फोट।जैसा की हर जगह होता हैं।कमोबेश नीदरलैंड भी इसी तरह की समस्या से ग्रस्त है।उसने यूएनओ को लिखित दे दिया है मुस्लिम शरणार्थियो की बस्तियां आतंकी स्थलों में तब्दील हो चुकी हैं जिन्हें सम्भालना उसके बूते का नही।सयुक्त राष्ट्र संघ उसे सैनिक मदद दे जिससे वह समस्याओं से निजात पा सके।

   16वी सदी में स्पेन वार के बाद मुसलमानों को यूरोप से निकाल दिया गया और लगभग पूरी तरह से यूरोप में प्रतिबंधित कर दिया गया था।यह काफी सालो तक चला।उन्नीसवीं सदी में जब वामपंथ, सेकुलरिज्म का नाटक शुरू हुआ तो इस्लाम का प्रवेश फिर शुरू हुआ।मुसलमान फिर से यूरोप में जाने लगे।यह 1950 का आंकड़ा है 1950 से 2014 के आंकड़े के बीच का अंतर देखिए।1950 में मुसलमान 2.3 परसेंट थे इंग्लैंड में।आज वह 22.56 प्रतिशत हो चुके हैं।इंग्लैंड के एम्स्टर्डम में एक परसेंट थे आज वह 14 परसेंट हैं।एंटवर्क में वह दो पर्सेंट थे आज वह 16.9 परसेंट है। बेल्जियम में एक परसेंट से बढ़कर के 16.9 परसेंट हो चुके हैं। बार्सिलोना में जहां कभी मुस्लिमो पर रोक थी वह 0.103 से बढ़कर के साथ 6.5 परसेंट हो चुके हैं।बर्लिन में जहां 0.708 परसेंट थे वह 9.1 परसेंट हो चुके हैं।बरमिंघम में जहां 1.3 परसेंट थे आज वह 14.3 परसेंट हो चुके हैं।ब्रेडफोर्ड में जहां वह 1.7 परसेंट थे आज वह 15% पार कर चुके हैं।ब्रसेल्स में जहां वह 2.1 परसेंट थे आज वह 70% पार कर चुके हैं। ब्रसेल्स में 1 प्रतिशत से अब वह 30% की संख्या में रह रहे हैं।कोलोन(जर्मनी) में 1 प्रतिशत से बढ़कर 12% हो चुके हैं।कोपेनहेगन में वह  0 1% से बढ़कर के 10% हो चुके हैं।डबलिन में 0.57 से बढ़कर 11 प्रतिशत हो चुके हैं। फ्रेंकपूर्त में 0.03 परसेंट से बढ़कर के 11.87 हो चुके हैं। लिसेस्टर में वह 1.3 से बढ़कर के 18.6 प्रतिशत। लंदन में 0.84 सबसे बढ़कर वह 12.45 हो चुके हैं।माल्मो में 1.6 परसेंट से बढ़कर के 20% हो चुके हैं। मेनचेस्टर में 1.25 से बढ़कर 15.87 हो चुके हैं.मरसेआईल में से 1% से बढ़कर 25% हो चुके हैं। मिलान में 1.3 से बढ़कर 6% हो चुके हैं। पेरिस में वह 1.3 से बढ़कर 10 से 15% हैं एरिया में हो गए हैं।रोटरडम में वह 0.1 से बढ़कर 13.3 प्रस्तुत हो गए हैं।रॉबिएक्स में से 20% पार हो गए हैं।हेग में वह 0.976 थे 14.2 प्रतिशत हो चुके हैं,वियना में जहां 0.125 थे आज 8 पसे 12.57 हो चुके हैं।जहां भी उन्होंने १० प्रतिशत पार किया हैं वहां उत्पात शुरू चुका है।सभी युरोपियन राष्ट्रों का मानना है सेकुलरिज्म की खोल के कारण हुआ है।स्थानीय समाज को वामपंथी लिबर्लिज्म ने 'लांग-टाइम स्ट्रेटिजिक अटैक,को इग्नोर करने की आदत दाल दी है।फिलहाल वे अब सजग है।
   फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुल मैक्रोन ने अपने २०० देशो में फैले राजदूतों की एक सभा में उन्हें सीधे-सीधे निर्देशित किया की वे इस्लामिक आतंक से सतर्क रहें।यह अब दुनिया भर को चपेट में लेती जा रही है।हमें अब फ्रांस को बचाने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे।अब हमें इन क्रूर आतंकियों से भिड़ना होगा।प्रसिद्ध संचार एजेंसी time. com के अनुसार फ्रांस के राष्ट्रपति का ये संदेश ना सिर्फ फ़्रांस की सेना , पुलिस और उनके अधिकारयों के लिए था अपितु उन्होंने सीधे सीधे अपनी जनता को भी यह संदेश खुलेआम दिया। समाज में बढ़ रहे इस आतंक रुपी कैंसर के बारे में .फ़्रांस के राष्ट्रपति ने अपनी विदेश नीति में भी बदलाव का एलान किया। जिसमे पहले उन्होंने अपनी धर्मनिरपेक्षता के चलते काफी शिथिल नियम रखे थे। इतना ही नहीं उन्होंने इस आतंक के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ से फ़ौरन ही एक नया दल बनाने की मांग की है। फ्रांस पिछले कुछ समय से आतंक के वार झेलने में सबसे अग्रणी रहा है।उसने अभी-अभी नीस जैसा आतंकी हमला भी झेला है जिसमे ट्रक को मौत का सामान बना दिया गया था।मासूमो , बच्चों बुजुर्गों सबको कुचल दिया गया था। फ़्रांस के राष्ट्रपति के इस बदले स्वरूप का यूरोपियन समाज स्वागत कर रहा है।

  भारत में तो समस्याए बहुत ही ज्यादा है उस्ससे अलग हटकर अब ज़रा एक फैक्ट और देखिये।
भारत पर कर्ज- केन्द्र सरकार- 47 लाख करोड़ रुपए,
राज्य सरकारों पर- 65 लाख करोड़ रुपए।
भारत में चर्च की परिसंपत्तियों की क़ीमत लगभग 52 लाख करोड़ रुपए है, क्या राष्ट्रीय हित में इसका राष्ट्रीयकरण नहीं किया जाना चाहिए...?
जॉर्ज बुश जब भारत आते हैं तो चर्च को 20 करोड़ डॉलर का दान देते हैं। अब सवाल यह है कि यह पैसा भारत सरकार को क्यों नहीं दिया गया...? क्या चर्च भारत की सरकार चलाता है...? आखिर आदिवासियों और दलितों के कल्याण के लिए चर्च पर ही भरोसा क्यों..?
ज़ाहिर है, ये सारी जमीनें और पैसे भारत में लोगों को ज्यादा से ज्यादा धर्मांतरित करने में इस्तेमाल किए जाते हैं। अब समय आ गया है कि इनका राष्ट्रीयकरण कर देना चाहिए।इसी तरह मुस्लिम वक्फ़ बोर्ड के पास पूरे भारत में 4 लाख 90 हजार रजिस्टर्ड वक्फ़ संपत्तियां हैं।इन संपतियां का भी राष्ट्रीयकरण क्यों नही की जानी चाहिए?ये सभी संपत्तियां लगभग छह लाख एकड़ में फैली हुई हैं। इतनी संपत्तियों के बाद भी इन्हें माइनॉरिटी (अल्पसंख्यक) का दर्जा क्यों दिया गया है...?क्या 35 करोड़ की आबादी के बावजूद किसी धर्म विशेष के अनुयायियों को अल्पसंख्यक माना जा सकता है...?जिस तरह भारत सरकार सनातन धर्म के मंदिरों का अधिग्रहण करती है उसी तरह चर्च और मुस्लिम वक्फ़ बोर्ड की परिसंपत्तियों का अधिग्रहण क्यों नहीं किया जाता...?
  अगर तिरूपति बालाजी, काशी विश्वनाथ, द्वारिका, सोमनाथ, वैष्णो देवी, उज्जैन के महाकालेश्वर और राज राजेश्वर जैसे मंदिरों को सरकार अपने अधीन कर सकती है तो हाजी अली दरगाह, ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती, शेख बख़्तियार काकी और हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाहों को क्यों छोड़ा गया है...?
हर त्याग की अपेक्षा सिर्फ़ सनातन धर्म के अनुयायियों से ही क्यों की जाती है..? जब दरगाहों से आया पैसा, सिर्फ़ और सिर्फ़ मुस्लिम उम्मा पर ही ख़र्च किया जाता है तो सनातन धर्म के मंदिरों से आया पैसा सरकार दूसरे मज़हबों के लोगों पर क्यों ख़र्च करती है...? इस पैसे को सिर्फ़ इंडो-वैदिक धर्मों (सनातन, बौद्ध, जैन और सिक्ख) के अनुयायियों पर ही क्यों न ख़र्च किया जाए...?

साभार: पवन त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10155623161486768&id=705621767

Sunday, 24 September 2017

मानवता और दयाभाव एक अभिशाप । संदर्भ: रोहिंग्या शरणार्थी

मेरे इस लेख का शीर्षक हैं मानवता और दयाभाव एक अभिशाप !! -:
रोहिंग्या शरणार्थी ५६ इस्लामिक राष्ट्र में शरण ना लेकर भारत में ही शरण लेना क्यों चाह रहे हैं ?????? और ये ५६ इस्लामिक राष्ट्र अपने राष्ट्र में इन रोहिंग्या मुसलमानों को शरण क्यों नही दे रहे हैं ??? ये एक षड़यंत्र हैं सारे मुस्लिम देशों की भारत को पूर्णरूप से मुस्लिम बाहुल्य देश बना कर इस्लामिक राष्ट्र घोषित करने की ।
अराकान नामक बौद्ध राष्ट्र के राजा महा ताईंग सदा का शासनकाल ७८८-८१० ईस्वी (788-810 A.D) इन्होने अपने शासनकाल के अंतिम क्षणों में एक बड़ी गलती कर दिया जिसके बाद म्यांमार का दो टुकड़ो में हिस्सा होगया मुस्लमान शरणार्थियों के साथ मानवता एवं दयाभाव दिखाने का फल ये हुआ अराकान बौद्ध से इस्लामिक राष्ट्र में परिवर्तित होगया आइये जानते है कैसे ????
अराकान की इतिहास-: अराकान द्वीप के पास रामरी नामक एक छोटा सा द्वीप उपस्थित था जहा अरब के समुद्री लूटेरो का जहाज डूब गया था । उस जहाज में उपस्थित अधिकतर समुद्री लूटेरों की मृत्यु होजाती हैं, एवं कुछ लूटेरे जो बच गए वो अराकान द्वीप में जाकर शरण लेते हैं। बौद्ध राजा के सैनिको ने उन समुंद्री लूटेरों को बंदी बनाकर राज दरबार में उपस्थित करता हैं समुंद्री लूटेरे राजा को अपनी दुखभरी कहानी सुनाते हैं परन्तु झूठी अपने आप को समुंद्री लूटेरा ना बताकर उन समुंद्री लूटेरों ने अपना परिचय व्यापारी का दिया एवं कहा की उनका जहाज़ रामरी द्वीप में डूब जाने के कारन उनके कई साथी की मृत्यु होगयी है एवं उनके पास अब खाना खरीद के खाने तक का धन नहीं हैं ये सुनते ही राजा को दया आगया और उन लूटेरो को अराकान में रहने की अनुमति दे दिया एवं उन लूटेरों को अराकान द्वीप की स्थायी वासिन्दा घोषित कर देता हैं, और फिर आगे चल कर ये मुट्ठीभर मुसलमान शरणार्थी वहां के नागरिक बनते ही स्थानीय बौद्ध महिलाओं के साथ विवाह कर के वहा की मुस्लिम जनसँख्या आबादी को जन्म देने लगता हैं । जिसका फलस्वरूप पंद्रहवीं शताब्दी तक अराकान पूर्णरूप से मुस्लिम राष्ट्र में बदलने लग गया धीरे धीरे बौद्धों पर बलात्कार,आगजानी, लूटपाट धर्मपरिवर्तन जैसे अत्त्याचार होने आरंभ होगया था । मुस्लमान जनसँख्या की मांग पर अराकान द्वीप के राजा अपना बौद्ध नाम को त्याग कर मुस्लमान नाम को अपनाने पर मजबूर होगया १४३० ईस्वी में अराकान द्वीप के लिंगायत वंश का आखरी राजा मिंसुरम को जबरन इस्लाम में परिवर्तित होने पर मजबूर कर देता हैं मौलवी एवं अराकान द्वीप के मुसलमानों की आबादी राजा मिंसुरम अपना नाम बदलकर सुलेमान शाह रख लेता हैं और लेप्रो नदी के तट पर वृहत्तम मस्जिद का निर्माण किया जिसका नाम रखा गया सान्दिका मस्जिद (Santikan Mosque) ।
अंततः भारत सरकार से निवेदन हैं इतिहास से कुछ सिख ले और भारत को धर्मशाला घोषित ना करे भारत सरकार वर्त्तमान परिस्थिति में सर्वोच्च न्यायलय में ये अपील किया हैं की रोहिंग्या मुस्लमान अब अपने अपने घर लौट जाये भारत को छोड़कर और रोहिंग्या मुस्लमान अब भारत छोड़ना नहीं चाहते हैं शायद अराकान का इतिहास भारत में दोहराना चाहता हैं पहली सवाल भारत सरकार ने इन्हें आने की अनुमति दिया ही क्यों ??? उसके बाद भारत सरकार बांग्लादेश में भी शरण लिए गए रोहिंग्या मुसलमानों को राहत सामग्री भिजवा रहे हैं भारतीय वायु सेना की सहयाता से ????? ये सब भारत सरकार इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उप्पर से संयुक्त राष्ट्र (UN) का दबाव हैं तो क्या भारत को भारत सरकार चला रहा हैं या संयुक्त राष्ट्र ???????

Courtesy: Manisha Singh Baisa, https://m.facebook.com/photo.php?fbid=1914652668856573&id=100009355754237&set=a.1394056137582898.1073741827.100009355754237

मानव_का_आदि_देश_भारत, पुरानी_दुनिया_का_केंद्र – भारत

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