असल हथियारो के गिरोह।
february 28, 2017 by पवन त्रिपाठी, posted in 'साहेब,
आप के खून मे चार कंपोज़ीशन होते है।आरबीसी,डब्ल्यूबीसी,प्लाज्मा,प्लेटलेट्स,उसमे एक भी घटा या बढ़ा तो आप बीमार है।2014 के दिसंबर मे 28 दिसंबर की रात एएलएल से पीड़ित मेरे भाई की की टीएलसी घट गयी।यह ब्लड कैंसर के मरीजों के साथ अक्सर होता रहता है।उसे तत्काल निपोजिन इंजेक्शन देना होता है।जिससे इलाज़ जारी रह सके।हम परेशान।पूरी रात लखनऊ शहर में ‘निपोजिन,खोजते रहे।नही मिली।यह दवाई कुछ ही कम्पनियां बना पाती हैं।वही बेचती भी है।बाद में दुसरे नाम से वह दवा कई गुने की रेट से मिली 4 सौ 25 रूपये की दवा पूरे 5 हजार की!इस तरह की कई दवाईयां है जो हजारो की हैं और नित्य मरीजो को लेनी होती हैं।जैसा की सभी के साथ होता है खुद पर समस्याएं आयीं तब इस विषय पर गहन खोजबीन में जुटा।उस रात सिस्टम के माध्यम से लूट,खसोट,अमानवीयता और कमीनेपन के अदभुत तथ्य सामने आये।कई बार दवा शार्ट करके मनमाफिक मूल्य वसूला जाता है।सारी जीवन रक्षक दवाईयां 3 सौ से 7 सौ गुने दर पर बाजार में मुश्किल से ही मिलती है।और भी हजारो तरीके।
बहुत सारे दोस्तों से बात करके देश के लगभग सभी शहरों में यही हाल पता चला।इसपर शोध करना वाकई मेहनत,रिस्क और दृष्टि होने का काम था।इसमें क़ानून और सरकार नाम की चीज़ बहुत निचले स्तर पर जा चुकी है।बिकुल ड्रकुला वाले हद तक वे पैसा निकालने के लिए आपका खून पीते है।दवा-कंपनिया बाजार में माल (दवा) कौन सा दे रही है यह जानने वाला कोई नही।दवा असली है की नकली है इसका कोई खबर लेने वाला भी नही।कौन -2 कंपनी किस तरह की दवा सप्लाई कर रही ये जानने वाला भी कोई नही है।किसी भी जिले के सीएमओ और ड्रग इस्पेक्टर मे आपस में तालमेल नही दिखा।डाक्टर,एम्आर,प्राइवेट हास्पिटल,दवा कम्पनियां,पैथालाजिकल सेंटर, आपस में मिलकर दुःख पीड़ित असहाय मरीज को लूटने में लगे हैं सरकार भी उसमे बराबर की भागीदार है।एक उदाहरण कैडिला नाम की एक दवा की कंपनी है जो खून का श्राव रोकने की दवा बनाती है।दवा का नाम है कैस्पर-सी! यह दवा बीते दो माह से बाजार में सप्लाई बंद है!हो सकता है कंपनी को नुकसान हो रहा है।लेकिन दवा की सप्लाई या उत्पादन बंद करने से पहले कंपनी को सरकार को इसकी सूचना देनी चाहिए थी।बहरहाल कंपनी ने यह कम नही किया. अब सवाल है खुदरा दवा विक्रेताओं का उनको दवा मिल नही रही है ज़रूरत मंदों को दें क्या? वो यहाँ वहाँ का रास्ता बता रहे हैं।लगभग दो महीने से जब विक्रेताओं को दवा नही मिल रही तो वो शिकायत किससे करें।कैस्पर – सी 2 महीने से बाजार से गायब है. और सरकार मरीज लाचार!ड्रग कंट्रोलर की भी कोई जिम्मेदारी होती है क्या?मैं रोज ही इस तरह की समस्याये देख रहा। जब खुद जूझ रहा हूँ,तब इस तरह के पीड़ितों पर ध्यान जाता है।क्या रोग-दुःख से पीड़ित कमजोरों,असहाय के श्राप का डर खत्म हो गया?
यह बात केवल दवा-दुकानों तक ही सीमित नही है।वह लूट व्यवस्था का रूप ले चुका है।जब आप पेट्रोल पंप पर तेल भरवा रहे होते हैं।आपको पता होता है की आप माप से कम तेल पा रहे है।फिर भी आप कुछ नही कर सकते।इसके लिए पूरा-पूरा एक विभाग है,जिसके जिम्मे आपके टैक्स के पैसे से तंख्वाह लेकर कम-तोल रोकने के रक्खा गया है।वह अपना काम नही करता बल्कि अपना हिस्सा लेकर चुपचाप आपको कम तेल खरीदने देता है,सीधे शब्दो मे कहिए वह आपके पैसे से दुतरफा लूटने के लिए है।यह केवल सौ मिलीलीटर का मामला नही है।यह लाखो लोगो से हजारो करोड रुपए मे बदल जाता है।यह केवल पेट्रोल तक सीमित नही है।वह समोसा,मिठाई खा रहे होते है,दूध खरीद रहे होते है आपको पक्की तौर पर मालूम होता है,नकली है,मिलावटी है आप क्या कर लेते है आपने इसके लिए टैक्स दिया ही है एक फूड-इंस्पेक्टर रखने के लिए,वह अपना काम किसलिए करता है।तनख़्वाह के अलावा एक बड़ी रकम उसे इकट्ठा करना होता है।आप उस मिलावट की कीमत दुतरफा चुका रहे है।सड़क के जाम किसकी वजह से लगे होते है कभी ध्यान दीजिएगा।ओवरलोडेड वाहन कौन चेक करता है,घटिया-पुराने पब्लिक-वैहिकल्स को कौन सवारिया ढुलवाता है,कौन 7 सीटर परमिशन के बावजूद उन वाहनो मे भूसे की तरह 14-15 सवारिया ठुसवाता है।यह केवल एक विभाग का मामला नही है।पूरे सिस्टम का मामला है।प्रशासन,बिजली-पानी और घर के अंदर की बातो को तो छोड़ ही दीजिये जैसे ही बाहर निकलते है।यह प्रदूषित हवा रोकने के लिए भी एक विभाग मौजूद है।वह क्या करता है खुद सर्च करिए।कहीं भी सावधानी से नजर दौड़एंगे आपको मोटी-मोटी रकमे दौड़टी-तैरती नजर आएंगी।तेल,दाना-पानी,बिजली,टैक्स,सुरक्षा,शिक्षा,दीक्षा,जमीन,सड्क,आसमान,पुलिसिंग,न्याय,हवा,पानी जहां तक नजर दौड़ाएंगे सब तरफ से सरकारी मशीनरी मौजूद है,उसका नियंत्रण है पर वह उसे नियंत्रण का बेजा लाभ उठा रही है।बड़े बाबू से बच पाना मुश्किल है।बड़े बाबू की निष्ठाएं व्यक्तिगत महत्वाकाँक्षा और घनघोर आर्थिक स्वार्थ में निहित है।
ऊपर तक पहुँचते-पहुँचते यह छोटी-छोटी राशिया कई हजार करोड़ की मुद्रा पर पहुँच जाता है।यह इतना बड़ा आंकड़ा है कि साधारण व्यक्ति उसकी कल्पना भी नही कर सकता है।उस भ्रष्टाचार/कदाचार से एक बड़ी अवैध मशीनरी भी डेवलप हो रही होती है।उसने इन सत्तर सालो मे अपनी गहरी जड़े जमा ली है।इन सालो मे पली-बढ़ी अवैध मशीनरी खुद मे ही एक ताकत बन चुकी है।ऊपर जाकर यह लाबिस्ट के रूप मे विकसित हो गया है।पोलिटकल साइंस का एक गज़ब सा सिद्धांत है पैसा अंत मे राजनीतिक नियंत्रण हासिल कर ही लेता है।प्रजातांत्रिक भारत की बेसिक समस्या का यह है कि मशीनरी का सेल्फ नियंत्रण है।चूकी मशीनरी की आदते,आचरण,कार्यव्यवहार स्वयंभू बनाई जा चुकी है इसलिए कोई भी पवित्र-ईमानदार-सोच वाली सरकार इसको कंट्रोल न कर सकेगी।जैसे ही उन्हे प्रतिकूलता दिखेगी वे या तो निष्क्रिय हो जाएँगे,और कुछ दिनो बाद उस सरकार के नुमाइन्दो मे ही चारित्रिक बदलाव करने की कोशिश करेंगे,उन्हे भ्रष्ट या फिर सुविधाभोगी मे बदल देंगे या फिर असन्तोष का जनमत तैयार करने मे लग जाएंगे।
असल मे लंबे समय की लोकतान्त्रिक वेश की राजशाही ने एक हथियार के तौर पर इस लाल फ़ीताशाही का विकास किया जिससे की कभी भी ‘बहुमत खोने की कंडीशण्ड,मे इस मशीनरी का इस्तेमाल कर सके।यानी राजवंश के अलावा कोई भी सरकार आएगी तो विपक्ष का आटोमेटिक रोल इस वर्ग के हाथ मे होगा।मतलब साफ है उनकी सत्ता कभी नही जाती।दिल्ली-मुंबई और सभी प्रदशों की राजधानियों में तरह-तरह की ताकतवर लाबियां सक्रिय है।इनमे पत्रकार,राजनीतिक,उद्योगपतियों,कानूनचियों,के साथ साथ अपराधियों का मिलाजुला सिंडिकेट गत 70 सालो में विकसित हो गया है।साहित्यकारी,मीडिया,लेखक,सिनेमा,कलाकारिता और एजूकेशन तो जनमत निर्माण के साधन मात्र हैं।जिनकी खाएंगे उनकी गाएंगे।गिरोह के अनुसार ही नीतियाँ बनती-बिगडती हैं।अमूमन वे कामर्शियल आवश्यकताओ पर मोनोपोली बनाने मे कामयाब रहे है।अधिकतर कारोबारों पर 2014 के जून तक उनके एकाधिकार थे।वे व्युरोक्रेसी और राजनीतिक पकड़ के दम पर वाणिज्यिक-पालिसियों अपने हितो के लिहाज से बनवा लेते थे।कुछ कामन छोडकर व्यक्ति सत्ता के अनुसार जुड़ते,बनते,घटते,बढ़ते रहते हैं।उन कामन नामो पर गौर कीजिये।सारी बात समझ मे आ जाएगी।उनका एक स्वाभाविक नेटवर्क भी देश भर में स्थापित हो गया है।सरकार किसी की भी बने सत्ता इन लाबीस्टो के पास ही रहती है।पैसा कमाने वालों को पता है बड़ी रकम कैसे कंट्रोल की जाती है।वह पार्टियों एवं संगठनों पर सहज ही पकड़ बना लेते हैं।जैसे ही नई सत्ता बनती है समीकरण के अनुसार नये लोग भर्ती हो जाते हैं या पकड लिए जाते है।कई नौकरशाहों वकीलों,जजों,पत्रकारों,राजनीतिकों, आदि की चार पीढियों की आय के अनुसार सम्पत्ति पता कर लीजिये सब कुछ पता लग जाएगा।स्रोत और लाबी की ताकत पता लग जायेगी।कोई लाख भरमाये पर सच्चाई यही है।
मैं ने कई विद्यमित्रों के साथ इन लाबिस्टो का अध्ययन किया है।यह एक जोखिम भरा लेकिन एडवंचरस काम रहा।सालाना नियंत्रण इतनी बड़ी रकम पर है कि आँखे चुधिया जाएँ।इन आंकड़ो का वार्षिक बजट या अनुदान से कोई मात्रात्मक सम्बन्ध नही है।किन्तु यह ध्यान देंने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य हैं।वामी,सामी,कामियों के अलावा भी देश की एक स्वार्थी शत्रु कौम है जान लीजिए।1-पेट्रोल लाबी,2-सेना-सप्लाय लाबी,3-दवा लाबी,4-खाद्य लाबी,5-रेल लाबी,6-उद्योग नीति निर्धारण लाबी,7-विदेश व्यापार नीती लाबी,8-कृषि लाबी,9-इधर के 15 वर्षो में एक नई लाबी भी पनपी है शिक्षा लाबी,10-टेली उद्योग यानी आईटी लाबी,खनिज लाबी,12-टैक्स कारोबार-भारत में टैक्स चोरी करवाना सबसे बड़े कारोबार के रूप में स्थापित है।बैकिंग लाबी को हमने जान बूझ कर छोड़ दिया है।क्योंकी वह अंतहीन है।उसकी मारक क्षमता कहां तक है इसका अंदाजा सरकार ही लगा सकती है।अन्य छोटे-मोटे गिरोह बाजो को हमने देखने की भी जरूरत नही समझी है वह तो हर साल बनते बिगड़ते रहते हैं।प्रत्येक लाबी के कुछ अघोषित नियम है।उन नियमों पर काम करने की जरूरत है। यदि नियम समझ में आ गये तो जल्द ही आप भी लाभ में होंगे।राज्यों मे तो एक सशक्त ट्रांसफर-पोस्टिंग लाबी भी मौजूद होती है।आप चाहे तो स्टेट लेबिल भी इन लाबियो की सूची बना सकते है।यह कुछ फिक्स से लोग होते है,व्युरोक्रेट,बाबुओ के सहारे इनको काम कराने मे महारत होता है।
कभी आपने सोचा है की देश के कार्पोरेट-कारोबारी-आर्थिक-अपराधी भगोड़े होते वे लन्दन जाकर ही क्यो रुकते है?उन्हे वहाँ से हम ला नही पाते।लिस्ट बनाए 1947 से आज तक की 5 सौ से अधिक की सूची है।खैर छोड़िए यह आप खुद करिएगा।कुछ साल पहले माल्या ने गांधी-नेहरू से जुड़े कुछ अत्यंत गोपनीय पत्र और दस्तावेज ब्रिटेन में नीलामी में खरीदे थे।आज तक वह बाहर नही आया…किसी ने वे पत्र अभी तक नही पढ़े।मामला इतना छोटा भी नहीं है।इसके बाद एक मोटा लोन दिया गया।टीपू की तलवार खरीद तो “अगाही,यानी इमेज-बिल्डिंग गेम थी।राष्ट्रवादी उनसे पार नही पा सकते।70 साल का अनुभव है।इतने सालो से ऐसे सैकड़ो अमीर तैयार किए गए थे।इस सबके माहिर हैं,।उन धूर्तों से नये-नये सत्ताधरी कुछ सीख ही नही पा रहे।संभव है कुछ लोग सीख भी गए हो।कम्युनिष्ट हमेशा मालदारो का ही खाते/गाते है।फिर माहौल बनाने में लग जाते हैं।आख़िर वह माल-मौज बंद होने का कुछ असर पड़ेगा की नही?वे एक इंच काम न करने देंगे।विकास की कीमत उनके मालिको को चुकानी पड़ती
है न! मालिकों को,जिनके टुकड़े पर इतने दिन से पल रहे थे।मालिको का दर्द देखा भी नही जाता।फिर वे लिखेंगे,बोलेंगे,प्रचार करेंगे और जान लड़ा देंगे।तुम्हे बेदखल करने के लिए…आख़िर मौज-मौस्ती और माले-मुफ़्त का मामला है भाई।इसके सत्ता में रहने से बड़ा ख़तरा रहता है।लोग पढ़-लिख लेते हैं,संचार का उपयोग करते हैं सोशल मीडिया का उपयोग करने लगते हैं और “इनकी मोनोपोली, टूटने लगती है।एनजीओ,पुरश्कार,विदेशयात्रा,पालिसी बनवा कर धंधे पर कब्जा,दलाली…और काम करवाने का कमीशन।कहाँ हो रहा विकास जब हिस्सवे नही मिल रहा!
गहराई से पढिए,मूलतया इस दुनियाँ को कम्यूनिज़्म विचारधारा इंग्लैंड के चतुर-सुजान शासको-विचारको ने पैदा करके दिया है पूरी सोची समझी मंशा के साथ उसे अपने सारे कालोनियों में स्थापित किया है।यह 82 डोमिनियन देशो के आजादी के पीछे का बेस-गेम था।मूल खिलाड़ी तो एंजेल्स मियां थे यह एक बड़े सचिव के बेटे थे,मार्क्स का नाम तो एक मुखौटे के तौर पर स्थापित किया गया था।बिलकुल नेहरू के लेखन की भांति।खुद ही समझिए।
गलतफहमी न रखे।वंश और लाबियो का कुछ न बिगडेगा।उसकी “जड़े, हमारी आप की कल्पनाओं से कई हजार गुना ज्यादा गहरी हैं।पांच सौ से अधिक “कारपोरल घरानों,, का सारा पैसा इसी में से निकला हैं।यानी अभी भी देश का 76 प्रतिशत पैसा कट्रोल करते थे।नोटबंदी के बाद वह घटकर 66 प्रतिशत पर आया है।माल्या, ललित मोदी,चड्ढा,बोफोर्स,दलाली,हिंदुजा,पाठक,धरन,बेदी,क्वाट्रोच्ची(हजारो नाम है) कभी इण्डिया में थे ही नही।
कनग्रेसियन मनोवृत्ति उनको वकालत,पत्रकारिता,छोटे बिजनेस,अफ़सरी आदि का पेशा छोड़वा के पहले कमीशन,दलाली और रिश्वत आदि लूट का पैसा सम्भालने के लिए तमाम-देशो-विदेशो मे में रखवा/बसा दिए गए थे।सन 55 से ही दुनिया के अधिकाँश देशो में वंश का पैसा सम्भालने वाले वफादार बसाए गये हैं।उन्ही में चड्ढ़ा इत्यादि फैमिली भी थी।यह लोग बस्ती जैसे छोटे जिले से जाकर यूरोप में बसाए गये थे।बहुत सारे देशों में देशी-विदेशी ‘डागी,(टामी,)”फैमिलिया,, दुनिया भर में बंश का कारोबार सम्भालती हैं।वे “आर्थिक हितों के समूह,, रूप में काम करती हैं।पुनर्स्थापना के लिए सब कुछ करेंगी।सब कुछ का स्पष्ट मतलब है ‘सब कुछ,.जिसमे राष्ट्र-वादियो का पूरी तरह “जीनोसाइट,(समूल नाश) भी आता है।पैसा यानी असली ताकत…!!अउर का???
आपको एक बात पता है वंशवादी पार्टी की सदस्यता कब से नहीं हुई है???तो पता करिये बाप।
इन 70 सालों में जब अन्य संगठन “कार्यकर्ता निर्माण, और राष्ट्रवादी तैयार करने के लिए जान खपा रहे थे तब ‘वंश,पूरी स्थायित्व की रणनीति के साथ शिक्षा,सिनेमा,मीडिया,साहित्य,एनजीओ,बड़े कारपोरल और ओपिनियन मेकर वर्ग तैयार कर रहा था।यही उनके कार्यकर्ता है।आर्थिक -हितो की नाभि-नाल आपस मे जुड़े हुये है।उन्होंने लिमिटेड रखा।काहें को ज्यादा लोगों से सत्ता में हिस्सा बंटाना!!!ज्यादा लोग यानी कंट्रोल कम और जिम्मेदारी ज्यादा।फिर का पता कौन पगला जाए!इन वर्षों में उन्होंने राष्ट्र और समाज का “बेसिक वैचारिक अधिष्ठान,ही कन्फ्यूज कर दिया है।बहुत ताकत है उसके पास।सारी दुनिया में यह ताकत फैली है।देश का “स्वारथी शक्तिशाली समाजऔर उनकी ताकत का सारा स्रोत ‘वंश,के बने रहने में ही है।उनका सारा हित मूर्ख-वंश के सत्ता में बने रहने में ही है।लोकतंत्र की मूर्खताओ का लाभ उठाना इस वर्ग को अच्छी तरह आता है।कई देशों का आर्थिक लाभ इसी में है कि वंश सत्ता में रहे।
जब मोदी या अन्य कोई देशभक्त उनके धनागम के स्रोतो पर अटैक करता है तो वे मिल कर मुकाबला करते हैं मीडियेटिक वार करके.समाज में गलत-फहमिया पैदा करके,आपसी संघर्ष कराके वंश को फिर से स्थापित करते है।उन्हें येन-केन प्रकारेण ‘वंश,सत्ता में चाहिए।इसका “मतलब,खून के कतरे-कतरे से समझिये।
वे आतंकवाद से लेकर 35-50 हजार करोड़ जलवा सकते है#जाट आन्दोलन।हिन्दू रक्षक सिखों को दुश्मन बना सकते है।तमिल आन्दोलन खडा करके सबको मरवा भी सकते हैं।वे कोई अकेले नहीं है।हजारों लाख करोड़ की धनराशियाँ विभिन्न देशो में रखी हुई है।इसका सबूत है।पिछले सरकार ने तीन बिलियन डॉलर यानी कि रुपये 200966850000.00 अमेरिका में एक बैक खाते में डाले थे जिसका कोई दावेदार नहीं था|उन कंपनियों को भी भुगतान कर दिया गया था जिन्होंने न तो कभी कोई पूर्ति (Supply) किया और न ही उत्तर दिया | ये सारे पैसे रक्षा मंत्री मनोहर परिक्कर के अगुवाई में अमेरिका में पकड़ा गया है|रक्षा मंत्रालय ने अब इन पैसों को उपयोग करके बहुत सारा विदेशी मुद्रा बचा लिया है| प्रश्न यह है कि क्या इन पैसों को जानबूझकर फर्जी खाते (Forgotten Account) में डाल दिया गया क्या ? जिससे इन पैसों को किसी विशेष समय पर हस्तांतरण (Transfer) करके कोई हड़प लेना चाहता था?
नोटबंदी से उनके रीढ़ पर वार हुआ है अब वे एक मापन पर आ गये है।परंतु इतनी बड़ी सरकारी मशीनरी का क्या कर लेंगे?फिलहाल तो कई मिडिया घरानों,कारपोरलो,पत्रकारों,नेताओं का सब कुछ दांव पर है।इन्होने हरेक चीज,प्रत्येक धंधे को अपने अनुसार पालिसी/नीतिया बनवा कर खरबों का मुनाफा कमाया है वह भी घर बैठे।अब छटपटा रहे,घिघिया रहे क्योकि सारी मोदी सारी नीतिया जनता और राष्ट्रहित को ध्यान में रख कर बना रहे और उस पर सावधानी से नियंत्रण भी रखे हैं।उनका खून गुजराती है जो पैसे का फ्लो पहचानत़ा है दिल,दिमाग संस्कार से स्वयमसेवक हैं जिसे भारतमाता को परमवैभव पर ले जाना है।अब द्ल्लाली करके हथियार नही खरीदवा पाते।अब कंपनियों के नाम पर कौड़ियों के मोल जमीने भी नही कब्जा पाते।न ही फ्री-फंड के कोयले खनिज के सौदे का हिस्सा मिल पाता है। ऊपर से फर्जी एनजीओ का धंधा भी बंद कर दिया है।सरकारी पैसे से गैर सरकारी तरह का मौज भी वह बीएनडी कर चुका है।ठेके,कोटे,ट्रांसफर सब गया।मोदी से पाला पड़ा है और उससे कोई लिंक भी नही मिल रहा।एक दिन लाबिस्ट भी लाइन पर हो ही जायेंगे।जड़ साफ़ हो रहा है कमीनेपन का पेड़ सूखेगा ही।यह एक बिजनेस था जो सालों में स्टैब्लिश हुआ था अब समापन पर है।
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