आक्रमण के हथियार बदल गए हैं-8
,'इतिहास किसी राष्ट्र-समाज की जड़ को खाद-पानी और ऊर्जा देने का काम करता है।,
देकार्त,
""किसी समाज का सुख व् विकास उसके नागरिको के भविष्य के सुनहले सपनों,सक्रिय वर्तमान और शानदार इतिहास की गौरव गाथाओं,पर निर्भर करता है।,,
पण्डित दीन दयाल उपाध्याय,
आपने रोलैंड एमरिक की 1996 में आई फिल्म 'इंडिपेंडेंस डे,देखी होगी??
विल-स्मिथ की फिल्में वैसे ही बहुत लोग नही छोड़ते।बिल पलमन,जेफ गोल्डब्लम,मैरी मैकनाल्ड की जबरदस्त हिट फिल्म थी।उस साल 950 मिलियन डॉलर कमाए थे।कई सरकारों की सालाना बजट से 3 गुना ज्यादा।उस समय तक इतनी भव्य फिल्म रिलीज नही हुई थी।अमेरिका के स्वातंत्र्य दिवस पर रिलीज हुई थी।
आपको पता है मुझे उस फिल्म में सबसे ज्यादा क्या पसंद आया?
वह एक एलियन शिप था।जो बहुत बड़ा था।जब वह दिखा तो उसने हरियाणा राज्य के बराबर जगह घेर रखी थी ऊपर छत की तरह।हम तो सनसनाहट से भर उठते।
ऊपर जब वह दिखाई पड़ा तो जनता डर गई। लोग मारे जाने लगे। सेनाएं उधर की तरफ हथियार लेकर जब बढ़ी तो उससे निकली 'नीली रेज, ने मार दिया।एक से एक,विमान,हेलीकॉप्टर मिसाइल मिनट भर में नष्ट कर देते दुनिया की सारी सरकारे परेशान हो गयी।सब एक जुट हो गए।परमाणु हथियार तक बेअसर।
सब बड़े-बड़े लोगो की मीटिंग हुई।मीटिंग में यह बात उभरकर के सामने आई कि वह बहुत एडवांस टेक्नोलॉजी के लोग है।किसी मजबूत ग्रह के एलियंस है हमले करके धरती पर रहने आये हैं।दुनिया भर में जितनी भी मौजूद टेक्नोलॉजी है उससे कई गुना ज्यादा एडवांस है वह।मीटिंग में गहन चिंतन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि अगर हम उस स्पेस शिप की सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी को समझ लें तो हम उससे जीत सकते हैं।
बहरहाल वैज्ञानिकों ने यह बात पकड़ ली कि उस शिप में कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल है। हम अगर किसी तरह उसमे एक 'वायरस, डाल दे तो पूरी शिप नष्ट हो सकती है। हममें से जिसने वह फिल्म देखी होगी। याद करे कि जब विल-स्मिथ और विल-पलमन क्लाइमेक्स सीन में वायरस डाल कर निकलते हैं।आप की सांस न रुक जाए तो कहना!
वह पूरी की उतनी बड़ी स्पेश-शिप जो बहुत एडवांस टेक्नोलॉजी से सुरक्षित थी वह गजब चेन-रिएक्शन से तबाह हो जाती है।फ्रीज!
दोनों हीरो आग के मंजर के आगे हेलमेट सम्भाले हेलीकाप्टर से बाहर उतरते हैं।
मुझे इस फिल्म की यह बात बहुत सोचने को मजबूर कर देती है कि कैसा भी सॉफ्टवेयर क्यों न हो एक वायरस उसे बर्बाद ही कर देता है। वह पूरी शिप जो पूरी दुनियां को हराने की क्षमता से लैस थी, एक झटके से नष्ट हो जाती है।पता है उसे तबाह कौन करता है?
हीरो या सेना नही।एक वायरस!
हां! ना दिखने वाला बहुत छोटा सा वायरस इस जगत की तीस-गुना ज्यादा तगड़ी टेक्नोलॉजी और मारक-क्षमता वाले शिप को तबाह कर देता है।वे जिससे जीत नही पाते उसमे 'वायरस,डालते है।
इतिहास को बदलना वही वायरस है जो उन्नत सभ्यता,संस्कृति,रचनाये,विज्ञानं,रिद्धि-सिद्धि चिंतन,त्याग-बलिदान,शौर्य से भरे अतीत के अलावा मौजूद दुनिया से तीन सौ गुना ज्यादा,आध्यात्मिक ऊर्जा से भरे सनातन भारतीय प्रवाह नष्ट करने के लिए डाला गया है।न दिखने वाला यह 'खतरनाक वायरस,धीरे-धीरे सब तबाह कर देता है।
केवल एक उदाहरण के लिए देखिये!सारी दुनिया जानती है देश के बंटवारे से कौन परेशान हुआ।किसका घाटा हुआ। हिन्दुओ के पितरो की हजारो साल पुरानी जमीन छीन ली,उसके बाद भी..।
23 प्रतिशत मुस्लिमो में से 12 प्रतिशत ही गये।30 प्रतिशत जमीन ले गए।2 करोड़ लोग उजड़ गये।30 लाख लोग मारे गए,जेवरात,धन-दौलत,घर-बार जवान लडकिया छीन ली।सालो सर पर आसमान नही...लेकिन आज के इतिहास की किताब से दृश्य गायब है।कारण जानते है न।सेखुलर।
अब एक और तुरन्त बाद का तथ्य नाम सहित देखें...इतिहास बोध और उनकी सजगता/आक्रामकता को देश बंटने पर उनकी तुरत-फुरत लिखी पुस्तके देखिये जरा।जो बेचारा भुक्त-भोगी रहा उस्की तरफ से कोई बोलने सुनने वाला ही नही रह गया।भुक्तभोगियों को इतिहास बोध नही होता न।
इस टॉपिक पर लिखी गई कुल 31 किताबो में 28 मुस्लिमो और वामपंथियो ने लिखी है।अधिकतर डाक्यूमेंटरी भी कम्युनिष्टों और मुसलमानों ने ही अपने दृष्टिकोण से बनाया है।देश बंटने पर यह किताबे पढियेगा।
जब भी मौका मिले...इतिहास के अलावा।
फ्रीडम ऐट मिडनाइट-नहरू,मिडनाइट चिल्ड्रेन-सलमान रश्दी,लिबर्टी आर डेथ-पेट्रीक फेच,क्रैकिंग इण्डिया-बाप्सी सिध्व..
इण्डिया विन्स फ्रीडम-मौलाना आजाद,अ बैंड इन गंगाज,मनोहर मलगांवकर,ट्रेन टू पाकिस्तान,खुशवंत,व्हाट द बडी रिमेम्बर,सौना सिंह बालदवीं,झूठा सच,..यशपाल,इंडियन समर,अलेक्स सुलेमानक्लियर लाइट आफ द डे,अनीता देसाई।'आजादी,, कोई मुस्लिम है नाम नही याद आ रहा 26 साल पहले पढ़ी थी,यह उपन्यास है एकाडमी प्राइज दी गई थी,टोबा टेक सिंह,मन्टो,अदर साइड आफ साइलेन्स,उर्वसी बूटा,पिंजर,अमृता प्रीतम,।
उन सभी किताबो में बड़े तरीके से बंटवारे के कारणों-और दोषियों को भटकाया गया है।
भविष्य में हजार साल बाद जब शोध होगा 'शान्तिदूत,सेकुलर होंगे और 'खरगोश, बड़ा शिकारी कहा जाएगा।
बाद एक एनलिस्टिकक पुस्तक एचवी शेषाद्री जी ने लिखी थी ''...और देश बंट गया,,पढियेगा।
""दर्द-कष्ट हिन्दुओ ने भुगता और किताबे किसने ज्यादा लिखी।,,यह होता है इतिहास बनाना।वायरस।एक जबरदस्त हथियार।समझिये और आप भी रोज इतिहास बनाइये,लिखिए।कल को यही रिकार्ड होगा।
हमने हिस्ट्री सेन्स नही विकसित किया।न हमारे यहां उसकी जरूरत ही थी।विद्या को कभी 'साजिशी,चीज न मानकर पवित्रता-श्रध्दा की चीज समझा गया।आज आप दिमाग में बैठा लें कि वह भी एक जहरीला हथियार है,दिमागी वायरस जो सब कुछ नष्ट कर देता है।हजारो साल का 'क्रियेशन-श्रम,इससे चुरा लिया जाता है।शानदार अतीत का स्वाभिमान नष्ट करके,बाप-दादो की संस्कृति-निशानिया मिटा कर...कुंठा और आत्महीनता बोध में जकड़ दिया जाता है।सबसे खतरनाक बात किसी राष्ट्र की जड़ के खाद-पानी समाप्त कर दिए जाते हैं।इतिहास बिगाड़ दो समाज छिन्न-भिन्न हो जाएगा।
बेसिकली इतिहास की एक परिभाषा दुनिया भर में मशहूर और मान्यता प्राप्त है''यह ऐसा ही है,,,यानी वैसे का वैसा रखने को इतिहास कहा गया था।
हमारे यहां इतिहास को 'पुराण, यानी कि 'पुराना,,पुरानी बातें संग्रहित करने की अवधारणा थी...उसका बेस धर्म-अध्यात्म के संरक्षण से था....यह धर्म पुनर्जन्म और नश्वरता-विज्ञान पर आधारित है।इन अवधारणाओं को अंग्रेजी और इस्लामी सेमेटिक विचारधारा ने एकदम से प्रयोग करके नष्ट कर दिया।हमारी अवधारणा इतिहास को लेकर काल,स्थान,प्रसिद्ध व्यक्ति,घटनाओं का संग्रह,संस्कृति,और क्रमबद्ध वर्णन न होकर
केवल आध्यात्मिक चेतना के प्रति समग्र-चिंतन के इर्द गिर्द सिमटा था।उसने इतिहास बोध(History Sense)को बिगाड़ दिया।असल में दसवीं शताब्दी के हमारे विचारक यह जान ही नही पाये कि 'इतिहास की किताबें,भी आक्रमण करने का सबसे सटीक औजार है।
इस औजार को इस्लाम ने अविष्कृत (बनाया,)किया है और यूरोपियनस ने पुष्पित-पल्लवित किया।
'हेरोडोटस इतिहास पद्धति,, ने दुनियाभर में इतिहास की अवधारणा को कालानुक्रमानुपाती में बदल डाला था।
इतिहास रचना एक शासकीय नीति होती है।एक हजार साल की गुलामी से भारत में उसका बड़ा दुष्परिणाम निकला।उन्होंने प्राचीन इतिहास से लेकर मध्य और वर्तमान इतिहास के सारे,तत्थ्यों,प्रमाणों,घटनाओं और प्रभावों को अपने स्वार्थ-लाभ-योजनाओ के लिहाज इसमें तोड़-मरोड़ कर डाला।उनकी रणनीतियां प्रस्तुति,और तरीका साजिशी था।
यहां से देखिए..।जिसे धर्म-निरपेक्ष भी माना गया है वह अलबरूनी एक मुस्लिम इतिहासकार था।गजनवी के साथ हिंदुस्तान आया था।उनकी आक्रामकता हिस्ट्री सेन्स पर लेकर उनकी आक्रामकता इससे समझिये।दशवी शताब्दी के समय लिखता है कि ""हिंदू से जब उसके इतिहास के बारे में पूछा जाता है तो हिंदू 'कहानियां, गढ़ने लगता है,झूठ बोलता, है और कल्पनाए सुनाने लगता है।,,अलबरूनी के अनुसार हिंदुओं में बहुत सारे दोष हैं,उनकी समझ कम है वे कट्टर है,संसार के बारे में कुछ नहीं जानते और उनके पास बड़ी अज्ञानता है।
सोचिये जरा!उसकी सोच दर्शाती है कि रामायण,वेदों,महाभारत,पुराणों(दुनियां के सबसे पुराने लिखित ग्रन्थ) और अन्य बातों को झुठलाकर,काल्पनिक करार देना है।बाद के इतिहासकारो ने भी लगातार यही किया।अल्बुकर्क,अलबरूनी,इब्नबतूता इन सभी ने एक ही बाते,एक ही तर्क पर जोर दिया हैं, हिंदू काल्पनिक और झूठा लिखता है,।इसे रटा-रटा कर आधार बना दिया गया।
आप क्लास सिक्स्थ से इसे रटना शुरू करते हैं बल्कि आपको लगातार हटवाया जाता रहा है।आप वहीं लिखते हैं,उन्हें पढ़ते हैं, और उन्हीं से परीक्षाएं पास करते हैंlयह लगातार पीजी कोर्सेज{( परास्नातक) तक चलता है।वे आपके खोपड़े के हर हिस्से में बैठा देना चाहते हैं।यही उनकी स्ट्रेटजी है।यह वर्तमान सेकुलेरिज्म का आधार बनाया गया है।
इससे सजग रहने की जरूरत थी।लेकिन हमारे अंदर से इस तरह का नेतृत्व उभरने ही नहीं दिया गया।जो इसको खण्डन कर सकता, समझा सकता।विश्व के सभी देशो का पाठ्यक्रम चेक कर लीजिए,तुलनात्मक अध्ययन कर डालिये अपने ही पूर्वजो के प्रति इतनी बेईमान,धूर्त और गैर-जिम्मेदार सरकारें नही दिखेंगी-मिलेंगी।
जबकी इतिहास के सारे तत्व और प्रमाण उनमे मौजूद है।घटना,व्यक्ति,स्थान,कालखंड-क्रम-उसके प्रमाण,और पुरातात्विक साक्षय भी।अन्ग्रेज और विदेशी कांग्रेसी शासको का इस पर जोर रहा कि कहीं भारतीय इतिहास-दर्शन और अवधारणाओ का आधार 'वैदिक,पौराणिक,या सनातनी न बन जाए।यह खड़ा होते ही उनके वैश्विक कब्जेदारी व् कारोबार क़ी नीव हिलने का डर था।
यदि उसको आधुनिक वैज्ञानिक पैरामीटर पर कसने/रखने का प्रयास किया गया गया होता तो शायद आज 'भारत वर्ष,विश्वगुरु ही नही सिरमौर भी होता।यही तो वामियो,ईसाइयो,और मुस्लिमो-कांग्रेसियो का वास्तविक डर था।अतः जम कर उसे नीचा दिखाने में लग गए।
इतिहास को विकृत करने के पीछे एक-सोची-समझी पूर्वाग्रही मंशा काम कर रही थी।उनके लेखन के पीछे मुख्य छिपे उद्देश्य देखिये!
1-ब्रेनवाश
2-राष्ट्र-आधार पर हमला-
आक्रांताओ की तरह ही 'आर्य, बाहर से आये।
3-स्थापित इतिहास झुठलाना-रामायण,महाभारत,वेद,पुराण,हजारो प्राप्त पुस्तके काल्पनिक है,अप्रमाणिक है पर जोर दिया।
4-जन को दिमागी रूप से विभाजन का बेस।
वेद-बेदान्त और अन्य ग्रन्थ ब्राम्हण-ग्रन्थ है,बौध्द,जैन,सिक्ख,आदि सम्प्रदाय रूप उन्ही की देंन है।सनातन समाज में बंटवारे-विभाजन की कोशिश करते रहते हैं।जातीय व्यवस्था इस्लाम द्वारा उपजाई और अंग्रेजो-कांग्रेसियो ने पोषित की।इतिहासकारो ने विषय ही गायब कर दिया।इसको कोई भी एक बार में समझ सकता है।
5-राष्ट्र का आत्म-विश्वास हिलाना।
निरन्तर हारो का ही वर्णन किया गया।जहां जीते उसका सारा विवरण गायब है।इतिहास के कुल 5300 युद्दों में इस्लामिक केवल 156 युद्द ही जीत सके।कही पढाया जाता है??
6-राष्ट्रीयता के फ्लो गायब करने की लगातार कोशिश करते रहे।हर चीज में अलगाव की कोशिष है।
7-नया वैश्विक इकनॉमिक ढांचा बनाना।स्थानीय राष्ट्र-राज्य खत्म होने के आर्थिक लाभ होते है।इसमें कुछ लोगो के कारोबारी उद्देश्य छुपे है।वह भी कारण।
(यह अलग से एक पोस्ट होगी।)
8-बौद्धिक रूप से सनातन समाज पर हावी होने की कोशिश।कुंठा और आत्महीनता उत्प्न्न करना।
9- धर्मांतरण-मतांतरण मूल,वर्ग-संघर्ष कराना।
ईसाई-मुस्लिम-वामियों द्वारा इतिहास बिगाड़ने के पीछे यही मुख्य उद्देश्य था।
10- सेकुलरिज्म एक आवरण:खुद को लॉजिकल प्रूव करना।
11-डराना।
खुद ढूंढिये उनकी मंशा दिखने लगेगी।इसाई, इस्लाम और कम्युनिष्ट तथा कांग्रेसियो की सोच समझने में आसानी होगी।उनके छिपे एजेंडे भी दिखेंगे।उनके इस हथियार की मारक-क्षमता भी पकड़ में आयेगी बस थोड़ा सा दिमाग लगाने की जरूरत है।
सबसे पहले कन्फ्यूजन फैलाया गया,फिर उसमें घुसपैठ कर के नए-नए फैक्ट पैदा किए गए, फिर मनगढ़ंत चीजो को उसमें इंपोर्ट किया गया।उसके लिए मुस्लिम-शासको-योजनाकारों के अलावा 1837 के बाद 1920 तक कई अंग्रेज इतिहासकार लगातार वैतनिक रूप से सक्रिय रहे।मैक्सवेबर,मूर,मैक्समिलियन,मैकाइवर (समाजशास्त्र) ,मैक्स-मूलर जैसे इतिहासकारो भारतीय इतिहास को रिफार्म कर दिया..मैकाले इसके माई-बाप थे...बेंटिंग फंडर।बाद में कांग्रेसी शासक जो कि उन्ही के प्रतिनिधि तौर पर भारत में स्थापित किये गए ...उसी के बल पर देश को ही 'रि-कलचर्ड,करने में लग गए।
उसी का परिणाम है देश में एक बहुत बड़ा भ्रमित वर्ग खड़ा हो गया है।
इस्लाम इस मामले में कहीं ज्यादा सजग-सक्रिय था।उससे 'सांस्कृतिक-आध्यात्मिक, मजबूत होने के कारण अन्य जमीनों की तरह भारत में उसे "पूर्ण इस्लामिक राज्य, बनाने में सफलता नही मिली।गुलामी के 8 सौ सालों में हर गली मौक़ा मिलते ही विद्रोह करता-जान दे देता-मारा जाता।400 साल तक हिन्दू इंच-इंच लड़कर घुसने ही नही दिया ई 600-1000 ई।इस्लामिक कब्जेदारी के बावजूद हिन्दुओ ने धर्मांतरण के बजाय 50 प्रतिशत तक जजिया देना पसन्द किया पर पूर्वजो की थाती न छोड़ी।यह सब देखकर उनके विचारको ने दूरगामी रणनीति बनाई।
सोच की एक बानगी देखिये "पाकिस्तान में 6ठी,7वी,8वी में पढ़ाया जाता है।
1968 में भारत को पाकिस्तान की सेनाओं ने रौंद डाला,..।
1971 में भारत की बुरी तरह हारने के कारण लिखो।...और भी बहुत कुछ..जिसे पढ़कर हंसी रोके न रुकेगी।5 हजार साल का पाकिस्तानी इतिहास!
इससे आप मिनहाज,फिरदौजी,फरिश्ता,बर्नी से लेकर नुरुल-हसन तक के लिखे इतिहास की मानसिकता का अंदाजा लगा सकते हैं।सबसे मजेदार चीज वे हमारे सेकुलर-इतिहास-लेखन का आधार हैं।
उनके लेखन को पढ़कर आप यकीन से कहेंगे कि उन्होने 11 वीं सदी में ही यह प्लान कर लिया कि भारतीय इतिहास में इस्लामिक इतिहास को इस ढंग से पिरोना है कि भविष्य में 'सनातन-राष्ट्र की अवधारणा,ही डगमगा जाए।असल उद्देश्य पूर्ण धर्मांतरण था जैसा कि अन्य 82 मुस्लिम देशों में हुआ।
''सभी मुस्लिम इतिहासकारो के साथ आप देखेंगे कि वह इतिहासकार नही बल्कि मुसलमान ज्यादा है।वह दृष्टिकोण का जेहादी है।,,
वह बड़ी खूबसूरती से बातें करते हैं,लॉजिकल-या प्रमाणिक होने-दिखने की कोशिश करते हैं,दूसरे को नीचा दिखाते है,बड़े तरीके से,आप में,आपकी चीजों को नष्ट करते हैं और आपको बताते हैं कि आप के पास तो कुछ था ही नही,यह हमारा है,थोड़ा आप भी ले सकते हैं।आप तो पिछड़े है,दकियानूस,जातियां है,विभाजन है,विभाजित रहें,सब अलग-हो,वे लड़ाई का इतिहास बनाते रहे और हम मान लेते रहे।
बड़ा खूबसूरत मामला है 1 हजार सालों के शासक वे थे।शोषक कोई दूसरा था??
बड़ी मजेदार बात, वह उपासना स्थान,बिल्डिंगे गिरा देते थे, पुस्तकालय जला देते?
आप इस्लाम के साथ छठी शताब्दी से ही यह देखेंगे कि उन्होंने सबसे ज्यादा बार पूर्वजों और उनकी बातो पर हमले किया। उन्होंने इतिहास की किताब भी जला डाली,उन्होंने पुरानी सारी किताबें जला डाली, किताबे,आश्रम,मठ,मंदिर उनके रास्ते का रुकावट थे न!
उनको यह बात पक्की तौर पर मालूम था कि सनातनियो का इतिहास है,वह अतीत की यादें मजबूत रखती हैं।दारुल-ए-इस्लाम की रुकावट है।
वाह कांगड़ा के भव्य मंदिर गिराते हैं,पुस्तकालय नष्ट करते हैं, वह थानेश्वर गिराते हैं पुस्तकालय नष्ट करते हैं, वह दिल्ली जीते हैं पुस्तकालय नष्ट करते हैं, अयोध्या जीते हैं पुस्तकालय नष्ट करते हैं, वह नालंदा में घुसते हैं पुस्तकालय नष्ट कर देते हैं,छः माह तक किताबे जलती रह गईं। वह उज्जयनी में घुसते हैं पुस्तकालय नष्ट कर देते हैं, वह बंगाल जाते हैं वहां जितनी किताबें हैं सब जला देते हैं।,हजारो उदाहरण हैं,देश के सभी हिस्सों में उन्होंने यही किया।सब जला कर राख कर देते है।हमारा इतिहास गिराने-मिटाने की मानसिकता समझ रहे न??
गिरा भी रहे और खुद की लिखी-बनाई भी जा रहीं।
कहो तो स्मृतियां थी।आस्थावश रटी हुई थी।कुछ कन्दराओं में छुपा कर रखी गई।दूर-दराज के साधू-सन्यासी-सन्त-योगी-जोगड़े लेकर घूमते रहे।कुछ बची रह गई।आज के वही धार्मिक साहित्य आप देख पा रहे हैं(इस पर कभी फिर लिखूंगा)हमारे उन बलिदानी पुरखो को शत-शत प्रणाम।
मैं कंटेंट में नही जाऊँगा।क्योकि विषय बहुत लंबा हो जाएगा।पर कुछ नामो पर चर्चा करूँगा।जिससे समझ में आएगा की वे शुरुआत से ही 'इतिहास, के मामले में कितने एग्रेसिव है।
12वीं सेंचुरी में दो इतिहासकार हुए हेमचंद्र और कल्हण उन्हें बड़ी चतुराई से प्राचीन इतिहास का आधार लिया है।राजतरंगिणी एक गाँव से मिल गई थी।जलाई न जा सकी थी।अब आगे के पांच सौ साल को देखिये!आपके देश की ऐतिहासिक सभ्यता का कबाड़ कौन निकाल रहा है है।तेरहवी में मिनहाज सिराज,14वीं में जियाउद्दीन बर्नी,15वी में अबुल फजल ममूरी,जोनरजा,निजामुद्दीन अहमद,दक्षिण में श्रीवरा को कही कही अपने अनुसार आधार ले लिया है।16वीं अब्बास शरवनी, अबुल फजल इब्न मुबारक, गुलबदन बेगम, निजामुद्दीन अहमद, अब्दुल कादिर बदायूनी,प्रज्ञ भट्ट इनके ऊपर सन्देह है।17वीं सती, इब्न फरिश्ता(पुराना वाला नही,इनायत खान, शेख इनायत अल्लाह कंबो, मोहम्मद सालेह खंबो, मुनाट नैंसी...इतने बड़े देश में,जो लिखाई पढ़ाई में मुस्लिमो से किसी मायने में कम नही था,पुरे देश के सभी भाषाओं में 45 सौ से अधिक रचनाएं हुई किन्तु इतिहास गायब है??
का समझे???
कुल 137 मुस्लिम इतिहास लेखकों को आधार बनाकर मध्यकाल लिखा गया।प्राचीन काल तो जैसा चाहे लिखवा दिए...तत्कालीन साहित्य को काल्पनिक बताकर।वर्तमान जिसे आधुनिक कहते है उस पर नियंत्रण है हुजूर का।क्या कर लेंगे जो पढाएं पढिये।
18वीशती में श्री कृष्णा भट्ट, मोहम्मद अजाम दिदामारी,शमशुद्दीन दौला शाहनवाज खान, गुलाम हुसैन सलीम,।इतिहास में जमकर लगे रहे।परन्तु कुछ योद्धा खड़े हुए19वी शती में हेमचन्द्र राय चौधरी, कृष्णा स्वामी आयंगर, केसु मंञ मयंक,बीएल प्राइस, डीआर भंडारकर,आरजी भंडारकर, रतन सिंह, दयाराम साहनी, बृजेंद्र नाथ डे, हरीनाथ डे,,सहजानन्द,रोमेश चंदेल, फ्रांसिस्को लुइस गोम्स,भगवानलाल इंद्रजी, श्रीनिवास आयंगर, गौरीशंकर हीराचंद ओझा,एलडी स्वामी कन्नू पिल्ले,उन्होंने मोर्चा लेने की कोशिश की पर देखते ही देखते सामी-वामी-कामियों ने कब्जा कर लिए। राजा शिवप्रसाद,विश्वनाथ काशीनाथ राजवाडे,राम गरीब चौबे,आरजू वेंकट-लक्ष्मण राव, गोविंद सखाराम सरदेसाई,जदुनाथ सरकार, कृष्ण शास्त्री बृजेंद्र नाथ सील जैसे योद्धाओ की पुस्तकें केवल
लाइब्रेरियों में सड़ने के लिए थी।उनसे आप पास नही हो सकते थे न ही अच्छी नौकरी मिल पाती।
फिर कोई क्यों उस शैली के लेखन की तरफ मुंह करेगा।
आप क्या सोच रहे हैं यह उनके 'क्षणिक उन्माद, में हो रहा था? नहीं। ऐसा बिल्कुल नहीं है। वह एक सुनियोजित रचना के अनुसार नष्ट-भ्रष्ट कर रहे थे।इसका आधार मजहबी धारणाएं हैं।बापदादों से जुड़ने के लिए कोई आधार ही न बचे।
एक तरफ तो आपकी किताबें वह जला रहे थे,नष्ट कर रहे थे।एक से एक विद्वानों की निशानी,एक से एक चिंतन,आध्यात्मिक अनुभूतियाँ,ज्ञान- विज्ञान,ज्योतिष,रसायन,मैटीरियल,टेक्नालाजी,फार्मूला, मिटा रहे थे और दुसरी तरफ खुद का लिख रहे थे रहे थे।मिनहाजुद्दीन से लेकर नुरुल हसन,इरफ़ान हबीब।गजनवी के शासकीय इतिहासकार फिरदौजी से लेकर बाबरीनामा,आईन-ए-अकबरी से होते हुए इतुजुके-जहांगीरी से अबुल फजल से डीडी कोशाम्बी,रोमिला थापर,विपिन चंद्रा तक दूसरे का इतिहास खत्म/ध्वस्त करते हुए हमारी बुनियाद हिलाते हुए...ही तो आगे जा रहे हैं।
यह सोची-समझी स्ट्रेटजी थी।
''आजादी के बाद के इतिहास रचना में देश के स्थानीय इतिहास पर जान-बूझ कर काम नही होने दिया गया।अवध,काशी,असम,नेपाल,गढ़वाल,कुमायूं और राजस्थान,सौराष्ट्र,मिथिला,महाकौशल,वनांचल आदि भूभागों का गैप जान बूझकर रखा गया है...।ऐसा लगता है कि कई हिस्से के अतीत को छिपाकर रखा गया है जिससे उनके द्वारा रचा गया झूठ सामने न आने लगे।....इसे बाद के कांग्रेसियो ने बुरी तरह मेनुपुलेट किया है।वामियों और मुस्लिम इतिहासकारों ने इसको एक निश्चित एजेंडे से तैयार किया था।
बेसिकली उन्हें लगता था भविष्य में भारत को कई हिस्से में बंटवा लेंगे।भारत राष्ट्र की अवधारणा ही खत्म हो जायेगी।अन्ग्रेजो ने भी इसी दृष्टि पहले ही उसमे गहरी छेड़छाड़ की थी।उन्होंने सोचा था कि जल्द ही राज्य अलग-अलग देशो की मॉन्ग के साथ बगावत करेंगे और भारत खत्म हो जाएगा।उनको 'सनातन राष्ट्र, की समझ नही थी नही तो 1947 में ही कर देते.........फिर राष्ट्रात्मा जग गई....सनातन काल प्रवाह ने उछाल मारी उनकी योजनाएं धराशाई हो रही हैं।यह 1977 में फिर तैयार हुआ....इस रोड मैप को पाकिस्तान में आईएसआई के हामिद गुल ने पुनः तैयार किया है।गजवा-ए-हिन्द एक कोड है..!
आपने अब्दुल फजल ममोरी, आजाद बिलग्रामी, मोहम्मद हबीब,इनायत खान, शेख मोहम्मद इकबाल, मीर अहमद नसरुल्लाह ठट्वी, समसुद्दीन-दाऊद-उल्ला-शाह नवाज खान आदि नाम सुने होंगे? अगर नहीं सुना तो यहां सुन लीजिये।यह वह मशहूर मुस्लिम इतिहासकार हैं।जिन्होंने हिंदुस्तानी इतिहास अपने झूठे लेखन से बदल डाला। उन्होंने अपनी धारणाएं,इतिहास दर्शन,इस्लामिक इतिहास चेतना,आज भारतीय समाज पर मढ दिया। आज हम उनको धारण किए हुए लगातार घूम रहे हैं।नए बच्चे उनको सीखते हैं।उनकी गढ़ी काल्पनिक सूचनाओं से अपने एग्जाम पास करते हैं और अपने समाज के अपने इतिहास को भूल जाते हैं।धारणा ही खराब कर दी गयी है, अवचेतन पर वह कुछ छाप दिया जा रहा।जिसे 11 हवी शती से ही शासक पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे मन-मष्तिष्क में भर रहे।मैं अपने पुरखों पर घमंड से भर जाता हूं कि चारो तरफ के जानलेवा दबाव के बावजूद वह हिन्दू बने रह गये।
आप आज वह कुछ सोच और कर रहे हैं जो भी कुछ उपरोक्त इतिहासकार चाहते थे।उन्होंने कल्पना की,लिख दिया और भविष्य के वामी,कांग्रेसी चतुरो ने उसे लपक लिया।
भारतीय राजे साहित्य रचनाओ के भंडार थे..पर जीवनियां और इतिहास लिखने नही बैठे।उन्हें इतिहास बोध,और उसकी साजिशो का जरा भी अहसास नही था।पर मुस्लिम सुल्तान तो छोड़िए गजनवी से लेकर तैमूर और आक्रांता बाबर भी "नामा, इतिहास को लेकर सजग है।सभी अपने शासकीय इतिहासकार रखते हैं।मिनहाजुद्दीन सिराज से लेकर इब्नबतूता तक,सब एक ही काम में जुटे हुए थे।बाद में अंग्रेजो और परवर्ती का काँग्रेसी वंशवादी शासक इसे लेकर और चौकन्ने थे।
उन्होंने लगातार अपने पोषित पालतू इस काम के लिए रख छोड़े थे।जिनका काम एक निश्चित एजेंडे के तहत इतिहास लेखन था।
जब भी समय हो तो आप पढिये।लेकिन मैन्युपुलेशन,आर्टिपुलेशन को ध्यान में रखिये तो दिखेगा। पूरे इंटेशन से कांग्रेसी शासकों ने कुत्सित मंशा के तहत शासकीय नीति बनाकर रोमिला थापर, विपिन चंद्रा,करण शर्मा, रामचंद्र गुहा, इरफान हबीब,बीजीएल स्वामी, वरुण डे, दीपेश चक्रवर्ती, विलियम डेलरिंपल, सुमित सरकार, द्विजेंद्र नारायण झा, सतीश चंद्र, एसटी जोशी,एस स्वामी,जॉर्ज मेकेनेरी, बरबरा मटकाफ, गोविंद चंद्रपाल,अब्दुल कादिर, जैसों को रखकर भारतीय इतिहास को गुमराह कवाया।उन सबने हमारे ही पैसे से भारतीय इतिहास के साथ केवल न केवल बालात्कार किया बल्कि घुटे अपराधियो की तरह तमाम बचे-खुचे प्रमाणों को गायब किया था।केवल मालिकांनो का हित जो साधना था।उनके अपने एजेंडे थे किसी भी तरह हर स्थापित ऐतिहासिक धारणाओं को विवादास्पद बनाओ।बर्बाद करो।न कर पाओ तो कन्फ्यूज कर दो।
कम्युनिष्ट पार्टी के कार्यकर्ता तो बाकायदे इतिहासकार के तौर पर स्थापित हो गए।वर्ग-संघर्ष और क्रान्ति के मद्देनजर उन्होंने हर वह कुछ किया जो कैडर करते।हमेशा से वामपंथियों का प्रिय विषय इतिहास रहा है और उद्देश्य किसी भी भांति पूंजी केंद्रित दो ही वर्गों का निर्माण करके घनघोर खूनी-वर्ग संघर्ष करवाना है....पूंजीपति वर्ग और सर्वहारा वर्ग।वह सफल नही हो सके तो शिक्षण,सिनेमा,मीडिया,लेखन और कला को केंद्र बनाकर दिमागों का संस्कार करने लगे।यह बात शायद ही कभी समझ सके कि उनका चिन्तन निहायत ही एकांगी है।सनातन समाज की व्यवस्था और चिंतन का का केंद्र 'पूंजी, न होकर अर्थ-धर्म-काम-मोक्ष चारो से ही निकला है।कर्म-सिद्धान्त और पुनर्जन्म पूरे देश को हरेक जाति और वर्ण के समस्त व्यक्तियों में यह अन्तर्रात्मा तक समाहित है।पिछले सत्तर सालों में रशियन सम्बन्धो के बल पर खडे हुए भारतीय कम्युनिष्ट शिक्षण, कला,साहित्य,लेखन,संचार माध्यमो(मीडिया)और पुरष्कारों द्वारा बहु-प्रचारित व्यक्तित्वो(मीडिया पर्सनैलिटीज)से हिंदुस्तानी समाज में एक 'कन्फयूज समाज,का निर्माण करने में सफल रहे हैं।वैसे यह कंफ्य्यूज समाज भी बीच-बीच में अपनी बुध्दि पर पड़ा वामी परदा हटाने में सफल हो जाता है।तब उनकी राजनीतिक इच्छाये बेमौत मरने लगती है।अमलेन्दु गुहा,मोहम्मद हबीब,सैयद नूरुल हसन,दामोदर धर्मानंद कौशांबी(डी.एन कौशाम्बी), मीरा कोशांबी, मृदुला मुखर्जी, हरबंस मुखिया, केएन पणिक्कर, उत्सा पटनायक, विजय प्रसाद, सुमित सरकार,शोभन सरकार, विपिन डे,सभी बाकायदे मार्क्सवादी पार्टी के कार्ड-धारक थे।उन्होंने इतिहास की किताबे लिखकर बाकायदे पांच पीढ़ियों में जहर घोला।पीढिया परीक्षाये-प्रतियोगिता निकालने के नाम पर उन्हें रटती और सच समझती गई।
बाद में प्रशासन के दौरान भी वही सोच दिखती है।(इसपर फिर कभी लिखेंगे)
ध्यान रखिए खतरनाक वायरस जड़ो में घुस गया है।उसे घातक अस्त्र की तरह आपकी जीवन पद्दति पर फेंक कर मारा गया है,तत्काल किसी अच्छी कम्पनी का एंटी-वायरस यूज करने की जरूरत है नही तो युग-युगीन 'शिप, तबाह हो जायेगी।
(आगे पढ़िए 'हथियार बदल गए हैं-9)
साभार https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10154902725551768&id=705621767
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