Sunday, 26 February 2017

आक्रमण के हथियार बदल गए हैं-भाग-५

आक्रमण के हथियार बदल गए हैं--5
सांस्कृतिक आक्रमण:छिनती जमीन।

कभी सोचा है पेड़-पौधे अपने बाल-बच्चे कैसे पैदा करते हैं?उनका मिलन कैसे होता है ?
कीट तो जानते हैं न?
   अरे वही भिनभिनाते भौरे,गौबड़उरे,तितलिया,भाति-भाति की मक्खीया,मधुमखिया,चींटी...रेगने वाले कीड़े आदि-आदि।कीटो का काम है पौधो और पेड़ो के फूलो से पराग उठाकर दूसरे पौधो की फूलो पर पहुंचा देना।इसे पर-परागण कहते हैं।इसी तरह उनका निषेचन होता है।मतलब की "मिलन,,सेक्स प्रासेस और फिर बीज तैयार हो जाता है।उस बीज से अंकुरित होकर नया पौधा बनता है।फसलों का बीजीकरण इससे ही होता है।हमारा अन्न-दाना-भोजन उसी भी ऐसे ही तैयार होता है।कई पक्षी-जन्तु-पशु भी इसमे सहयोग करते है।लेकिन मुख्य भूमिका कीट-पतंगो की ही होती है।यही जैविक चक्र है।यही प्रक्रिया अरबों साल से चल रही है।हमे पता भी नही चलता की लाखो की संख्या और प्रकार वाले कीट-पतंगो के कारण हमारे जीवन चल रहा है।वे नष्ट हो गई फसल खत्म,पेड़-पौधे समाप्त।यह तो पता ही होगा की पेड़-पौधे ही वर्षा बुलाते हैं।
नद्यो वर्षन्ति पर्जन्या: ....वर्षा का आकर्षण तबाह,पर्यावरण-चक्र खत्म हो जाएगा...जगह मरुस्थल मे बदल जाएगी...और हमे भागना पड़ेगा-दूसरे जगह जहां पेड़-पौधे मौजूद हो।
    एक विशिष्ट प्रकार के कीट-पतंगे "टिड्डी दलो,, के बारें सुना है न?....वे बड़ी मात्रा  मे एक साथ आती है....खरबो की संख्या मे...जिधर जाती है...सारे पेड़ो-फसलों-पौधो की पत्तियों को खा जाती थी..  ठूंठ मे बदल देती है।स्थानीय कीटो को भी मार देती,है।जो छुपे होते है बिना खाये-पीए मर जाते हैं।कहते है हजारो साल पहले उनका आक्रमण दुनियां की सभी प्रजातियों के इतिहास में सबसे बड़ा हमला माना जाता था।
कई हजार साल पहले दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान "सहारा,...उन्होने ही तैयार  किया था।वैज्ञानिक लोग भारतीय रेगिस्तान "थार,, के बारे मे भी यही कहते हैं।सरस्वती नदी को लुप्त करने मे उन छोटे-छोटे कीटो का योगदान माना जाता है।बाद मे उस प्रजाति के टिड्डे खुद भी काल-कवलित हो गए।
   कुछ साल पहले दुनियाँ के सभी देश इन "टिड्डी दलो,,की बड़ी संख्या और हमलो से बहुत परेशान थी।फिर सभी सरकारो ने मिलकर अभियान चलाया हवाई-जहाजो से कीटनाशको का छिड़काव करके उन्हे लगभग समाप्त कर दिया...अब वे बड़ा खतरा नही है।
यही उपाय ही है।

    इधर सरकार बहुत परेशान हैं।कृषि विभाग की एक वैज्ञानिक समिति की रिपोर्ट है की इधर इटैलियन मधुमखियों को शहद के लिए लोग बड़ी मात्रा मे पाल रहे हैं।यह मक्खीया ज्यादा शहद बनाती हैं।पर इनकी एक विशेषता है यह जिन इलाको मे जाती हैं बाकी के कीटो को मार देती है।समिति का कहना है उनकी प्रजनन क्षमता बाकी के कीटो और देशी मधुम्क्खियों से कई गुना ज्यादा है।यदि दस साल भी लगातार पल गई तो स्थानीय कीटो को पूरी तरह साफ कर देंगी।प्राकृतिक नियम है जब एक ही प्रजाति बचती है तो जलदी ही वह भी खत्म हो जाती है।कीट-पतंगे खत्म तो प्रकृति चक्र भी खत्म।.पशु-पक्षी-मनुष्य सभी को भागना पड़ेगा..एक बड़ा सा रेगिस्तान तैयार।,...करो लालच...खाओ शहद!

   सबसे मजेदार बात सुनिए..इन्हे कुछ कीट वैज्ञानिको ने बताया है....बाहरी आक्रमणकारी कीट स्थानीय कीटो के रंग में कभी भी और बिलकुल ही नही रंगता बल्कि स्थानीय और देशी कीट जो की पर्यावरण चला रहे होते हैं.....जो रीयल -ड्राइवर के नाम से जाने जाते हैं..... ''वे लपक कर नए कीटो का स्वागत करती हैं।वह उन्हे भी अपने जैसा ही समझने का भूल कर बैठती हैं नए कीट पर्यावरण समझने के लिए शुरुआत मे उन्हे झांसे मे रखती हैं...फिर कुछ देर बाद अपने आर्गनाइज्ड ढांचे के साथ अटैक करके नष्ट कर देती हैं।स्थानीय कीट जान भी नही पाती की यह क्यो और कैसे हुआ॥,,

   बचपन में हम प्रो.हक(नाम बदल दिया है) के यहां जाते थे।सातो बेटे,दोनों बेटियां ए क्लास सर्विसेज में हैं।अति आधुनिक फैमिली थी/है।उनका सबसे छोटा बेटा मेरा दोस्त है।वे सब के सब अपनी-मम्मियों को अम्मी-जान और अपने पापा को अब्बा ही कहते हैं।पता करिये बड़े-बड़े मुस्लिम फ़िल्मी हीरोइन-हीरो क्या कहते हैं!
जानेंगे तो आँख फटी रह जायेगी।लेकिन इस बंटे भारतवर्ष में आप बप्पा-माई कहकर "पिछड़ा, फील करने लगते हैं।

  वामी/सामी तुरन्त बोलेंगे।क्या फरक पड़ता है"उच्चारण/सम्बोधन में क्या रखा है,यह तुम्हारी संस्कृति तो बड़ी सहिष्णु रही है,लिबर्टी...लचीलापन...उदार है...अनेकत्व में एकत्व वाली॥..और ..इनही मुगालतो मे रखकर तुम्हे खा जाते हैं।..धीरे-धीरे सारा बदलाव किसके लिए है सनातनियो के लिए??
उनके शिकार हम है जो माँ-माई से होकर अम्मा और मम्मी, पिताजी को बप्पा,बाऊ जी से होते हुए पापा/डैडी सम्बोधन पर आ जाते हैं.।...यदि इस मानव-जगत का का सबसे नजदीकी-भावनातमक-संवेदनात्मक शब्द ''माँ,को बदला जा सकता है किसी को भनक लगे बगैर तो सब कुछ संभव है।भाषा,नाम,खान-पान,वेश-भूषा,पहनावा,जीवन चर्या,रहन-सहन,उच्चारण,लहजे,रोना-सोना,हंसना,सोच!
..अवचेतन के उस हिस्से को बदला जा रहा है...जो इस राष्ट्रात्मा से उपजे है।.....उसकी पारिस्थितकी से उपजे है।संगठित कीटो के हमले और हथियार...देखिये।

  अब भैया 'ब्रा,में बदल रहा है, दीदी 'सिस,
पापा 'पा,..मम्मी 'ममा,से होते हुए 'मी,की तरफ बढ़ रही है।.....खुद लिस्टिंग करो लकी,पिंकी,चुकी.....स्वीटी...डागी,..बाक्सर..जूली....टामी.... कुत्ते-बिल्लियो पालतू जानवरो से आदमी मे बदल गए ...और माडर्न होने की पहचान हो गए।
रन्तु  ध्यान देने लायक तथ्य है इसाई ने अपने नजदीकी "सम्बोधन, नही  बदले,मुस्लिम ने नही बदला "तुम्ही सम्बोधन, बदल कर माडर्न बन रहे हो??
आप के बाप-दादो का सम्बोधन खुद "अटपटा,लगने लगा!
आपने गौर किया होगा की इन सालो में आप किसी को भी नाम के साथ भाई संबोधन करने लगे हैं।पवन भाई, सुनील भाई, महेश भाई,अपने से 20 साल बड़े आनन्द राजाध्यक्ष जी को 'आनन्द भाई,!!
यह 'भाई,, शब्द अपने जीवन में कहां से घुस आया। बजाय सम्मानजनक संबोधन या श्रीमान जी या सर कहने की जगह।पचास साल पहले यह किसी भी किताब में नही दिखता।
बेसिकली यही एक प्रकार का आंतरिक आक्रमण है।उसमे एक अजीब सी 'बू,आती है घुसपैठ की।
उसने गुंडागर्दी,गंगबाजी,गिरोहबाजी वाले आचरण को,भाईगिरी को सामान्य-तौर से एक्सेप्ट करवाना शुरू कर दिया।इसने व्यवहार में भी आप के अंदर बदलाव ला दिया है। यह बदलाव सामाजिक भी है सांस्कृतिक बदलाव भी है। आपको दूसरे को "भाई, कहते-कहते उस अपराधी-प्रव्रत्ति का उदय  होने लगता है।एक ऐसा शब्द लगता है जिसे भाई-भाई कहते हुए 'मर्डर, करना है,गला घोटना है,धोखा देना है,भले ही अन्य संस्कारो की वजह से वह भाव दबा देने में आप सफल हो जाते हैं...पर शब्द की मर्यादा तो खत्म ही हो गई।उसको बराबऱीवाद नही कहा जा सकता है,यह केवल युग-युगीन आपसी सामंजस्य बिगाड़ देने का हथियार है।अपमानवाद है,अपराध वाद।
मैं अपने मित्रों से कहता हूं,भैया कहो,सर कहो,जी कहो,मित्र कहो,पवन कहो,..तू कहो .....पर 'पवन भाई,मत कहो।ऐसा लगता है मैं किसी गुंडे का शागिर्द हूँ।
यह पवित्र शब्द मजहबी भेंट चढ़ गया।

ये कैसे हुआ??
यह तो एक उदाहरण के लिए था।एक बानगी मात्र है।आप भी लिस्टिंग करिये हजारो चीजे मिलेंगी.।.हर फील्ड और व्यवहार में जो बड़ी चतुराई और शार्प निशाने से जड़-मूल सहित तबाह कर दी गईं और आप जान भी नही पाएं।
मैं '"शब्द,, के सही गलत पर नही जा रहा??
''शब्दो से केवल भावनाये व्  पवित्रता ही नही 'संस्कृति और सोच बदल,जाती है,वह भी बिना बताये।,,
बाहरी कीट-दुश्मन कीट छोटे-देशी कीट को खा रहा है रेगिस्तान बन जाने का खतरा....सुमेरिया,असीरिया...बेबीलोनिया........का समझे हथियार और कीट पहचानिए..।अब आक्रमण के हथियार तीर-धनुष,तलवार,तोप,बन्दूक,मिसाइल और बारूद नही कुछ और होते हैं उन्हें बड़े गौर से पहचानना होगा।नही तो बिना लड़े हार जाएंगे और आपके बाप दादो की थाती नष्ट कर दी जायेगी।

महज 12 सौ सालो मे आपसे 14 देशो की जमीन छिनते-छिनते अफगानिस्तान छिना,पाकिस्तान बना,बांग्लादेश बदला.।..काश्मीर,बंगाल,केरला पूर्वी भारत के कुछ हिस्से भी अलगाववाद की स्थिति में हैं।.....कांटते-बांटते....आप सम्पूर्ण धरती पर एक एक देश हिंदुस्तान मे ही बचे हैं।बहुत साफ़-साफ़ समझिये ""हिन्दू घटा देश बंटा,आप कटे,।
किसने छीना?कौन छीन रहा है?
  भाग कर जाने के लिए आपके पास दुनिया की कोई धरती नही बची है। कोई माने या न माने कम से कम मैं तो यही मानता हूं मजहब के नाम पर देश बंटने के बाद 'यह बची भूमि 'हिंदूराष्ट्र,, ही है।हिन्दू जीवन पद्द्ति का राष्ट्र,।प्राकृतिक लोकतंत्रवादियो का राष्ट्र,।समग्र स्वतंत्रतावादियो का राष्ट्र।हजारो पूजा पद्दतियों को मानने की स्वतंत्रता देने वाली हिंदुत्व का राष्ट्र।....और विश्वास मानिये ऐसा राष्ट्र सम्पूर्ण ब्रम्हांड में दूसरा नही है।

    ....फिर तत्कालीन संविधान,अंग्रेजी पार्लियामेंट,कानून और भारत भूमि से मजहबी आधार पर अलग होने वाली कौम और सभी बाँटने वाले नेताओं ने यह मानकर ही बंटवारा स्वीकारा था।कम से कम इस बची हुई हिन्दुभूमि के लोग अपनी हजारो साल पुरानी संस्कृति के साथ् चैन से जी सकेंगे।

    सेकुलरिज्म केवल डिजाइन होती है।फैब्रिकेशन मात्र।वर्तमान शासन व्यवस्था के अलावा कुछ नही होता वह।शायद ही कोई एकाध उदाहरण हो कोई मुस्लिम या ईसाई बाहुल्य देश का संविधान किसी अन्य संप्रदाय को अलग से कानून मानने या बाहरी को राष्ट्राध्यक्ष बनने की अनुमति देता है।
संवैधानिक तौर पर तो पाकिस्तान और सभी इसाईं देश भी खुद को सेकुलर कहते है।लेकिन सुना है कि किसी अन्य कौम का मजहब का व्यक्ति उनका पन्त प्रधान बन सका??
    लिबर्टीपना...लचीलापन...उदारपना.....अनेकता में एकता...विभिन्नता ,.जातीयता सब ऊपर से थोपी हुई चीजे है।..उनका शासन पर कब्जा होना,कार्पोरल जगत मे पैठ,कोर्ष,साहित्य,कला,मीडिया,फिल्म,और नौकरशाही द्वारा. इंपोज कर दी गई है,प्रशासकीय हथकंडे ..केवल कमजोर बनाने के लिए है।वह एक रणनीतिक हिस्शा है।दिमाग के उस अवचेतन पर कब्जा जो आपको गुलाम मे बदल देता है।इसी साजिशन वे आपसे टुकड़ो में बात करते हैं।जाति में बात करते हैं।
आक्रमण के समय वे 'हिन्दू,ही देखते हैं।
का समझे??

  "गंगा-जमुनी, नाम की कोई चीज नही होती।....वह टिड्डी-दलो की बाढ़ है जो सब कुछ उड़ा ले जाती है...जो सरस्वती सुखा देती है और फिर गंगा की ताक मे है।
वे खुद क्यों नही सोचते क्या फरक पड़ता है? इस रास्ट्र,जन,भूमि,संस्कृति,पारिस्थितिकी तंत्र के हिसाब बदलाव लाये न क्या फरक पड़ता है?
गंगा-जमुना-सरस्वती को तबाह करने वाले हथियार पहचानिए।

(कल पढिये-हथियार बदल गए हैं-6)

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