Friday 18 August 2017

मलेच्छ नाशक राजपूत वीर महाराज राव रणमल

©Copyright क्षत्राणी मनीषा सिंह की कलम से- #मलेच्छ_आक्रमणकारी_और_राठौड़_वंश_का_शौर्य
भारत माता की एक कोख में से एक से बढ़कर एक महान सपूत पैदा हुए हैं जिन्होंने भारतमाता की रक्षा के लिए अपने सर्वस्व सुखों का त्याग कर अपनी मातृभूमि की पूरे मनोयोग के साथ सुरक्षा की । ऐसे ही महान सपूतों की श्रेणी में नाम आता है राव रणमल का
राव रणमल महाराजा जिनका शासनकाल १३९९-१४३७ ईस्वी तक था रणबांका राठौड़ों का साम्राज्य मारवाड़ से लेकर गुजरात के इडर क्षेत्र तक फैला हुआ था और मुस्लिम सल्तनत उस वक़्त रणबंका राठौड़ों के घोड़ो की टापुओं की आवाज़ से अपना सैन्य शिविरों में सब छोड़ कर सिर्फ प्राण बचा कर भागते थे ।
मुस्लिम शासको का आक्रमण का केंद्र बन चूका था इडर क्षेत्र में सन १४०४ ईस्वी में मुजफ्फर शाह प्रथम का सुपुत्र मुहम्मद शाह प्रथम ने मुगालियाँ फ़ौज के बलबूते पर राव रणमल पर आक्रमण किया परन्तु मुहम्मद शाह प्रथम की शाही फ़ौज की संख्या 1,28,067 की थी परन्तु राव रणमल के लिए “समझौता कर के गुलामी करने से बेहतर समझते थे युद्ध कर के वीरगति को प्राप्त होना” राव रणमल की सैन्य संख्या १६,००० पैदल सैनिक एवं १५०० घुड़सवार थे अपने से तीन गुणा ज्यादा विशाल शाही फ़ौज के साथ युद्ध कर मुहम्मद शाह प्रथम की शीश महाकाल के चरणों में अर्पित कर दिया गया एवं शाही मलेच्छों की फ़ौज में केवल घोड़े और हाथी बचे थे मलेच्छ सैनिको के लाशों के मेले लगा दिए थे वीर राव रणमल ने श्रीधर व्यासने राव रणमल के युद्ध का वर्णन ‘रणमल छंद’ मे किया है | इस युद्ध में मुजफ्फर शाह के पुत्र मुहम्मद शाह का संहार होता हैं राव रणमल के हाथों जिस कारण मुजफ्फर शाह अपने पुत्र का मृत्यु का बदला लेने सन १४११ गुजरात के खेड़ा राज्य को रौंदते हुए आगे बढ़ रहा था । मुजफ्फर शाह एक लूटेरा था वो भारत को कब्जा कर साम्राज्य विस्तार के लिए नही आया था अपितु अहमद शाह अब्दाली की तरह एक कुख्यात लूटेरा था जिसकी नजर भारत की धन संपदाओं पर थी मुजफ्फर शाह के साथ लाखों की सेना तो थी परन्तु युद्ध में सेना का संख्या बल से ज्यादा महत्वपूर्ण होता हैं योजना बल और बाहुबल ये दोनों राव रणमल के पास था राव रणमल ने अपने से कई गुना ताकतवर सुल्तान मुजफ्फर शाह को बुरी तरह हराकर उसका घमण्ड तोडा । इडर में राठौड़ो ने सैकड़ो साल तक अपने बगल में स्थित कही ज्यादा ताकतवर मुस्लिम सुल्तानों से लड़ते होने के बावजूद अपना अस्तित्व बनाए रखा और मुफ्फरशाह द्वारा तोड़े गए मंदिरों वापिस मन्दिर बनाते रहे।

जय एकलिंगजी
जय क्षात्र धर्म
🚩🚩

साभार:
क्षत्राणी मनीषा सिंह, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1889598194695354&id=100009355754237

Wednesday 16 August 2017

Subaltern Hindutva, a political warning for Hinduism

In the line of thought to revered Sitaram Goyal ji's work, NDA 2 of Modi, Shah will go down in History of Hindu Political movement as the the period when Hindu movement was taken over successfully internally by Joshua Project of Missionaries through a front called #Subaltern_Hindutva". Strangely this "Subaltern Hindutva" is working in tandem with economic Right wing of Capitalist Liberalism.
Pitching of anti Gaurakshak rhetoric which offcourse is the bogey of strawman fallacy, as Gaurakshaks are not organisationally as strong as the larger organisational behemoth named RSS and it's political wing BJP.
BJP has closed down Gauraksha Cells of the party after Modi signalled the change of direction on the issue of political assertion of Cultural Hindui Nationalist Movement.
Cow and centrality of Cow metaphor as the site of Hindu resistance to Abrahmic assault on Hindus is very potent symbol, just as Ramjanmabhoomi. Beef and Pork food festival framed as a secular choice of food and also additionally projecting it as the customary diet of ethnic community of 'non Hindu Dalits', was a testing of Christian missionary intervention to pin down this potent Hindu resistance.
Modi has knowingly facilitated this takeover of Hindu movement by Joshua Project elements, which could be inferred from his consistent political position with regard to Missionary frontal Dalit Bahujan atrocity literature producing camp turning any sign of Hindu assertion as an act of aggression against "Non Hindu Dalits". Cunningly Missionaries pose this narrative as minority witch-hunting by Political Hindutva and Hindu - Muslim contest , which has the violent byproduct of victimisation of wanting to breakaway group of non Hindu in origin ethnic "dalits".
Mirchpur, Gujrat Dalit right propaganda, fabricated Vemula crescendo, all are well coordinated events forming a single narrative of strengthening Modi to purge Hindutva Movement for ascending "Subaltern Hindutva" as the core ideology of Hindutva henceforth.
Why do you think a politician coming from miniscule Ghanchi Teli OBC remained silent about its caste origin till he has to come to power but aggressively eliminating other loyal Hindu unreserved castes like Patidars from power sharing in his home state as well as in National political scene where BJP's electoral takeover of other states is following the same model implementing Missionary planned social engineering of giving primacy to Christian atrocity narrative influenced power brokers as a political recipe of "Subaltern Hindutva" under Shah.
Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10213601733174766&id=1146345539

देवदासी_प्रथा का सत्य

#देवदासी_प्रथा -

कुछ प्रथाओं को लेकर जनमानस के मन मे ऐसा मतिभ्रम उत्पन्न कर दिया गया है कि,  विधर्मियो के सवाल पे वो जानकारी न होने पे चुप्पी साध जाते है,और हिंदुत्व को लेकर उनके मन मे एक कुंठा व्यापत हो जाती है ऐसी ही एक प्रथा है , -----देवदासी प्रथा -----

#माना जाता है कि ये प्रथा छठी सदी में शुरू हुई थी। इस प्रथा के तहत कुंवारी लड़कियों को धर्म के नाम पर ईश्वर के साथ ब्याह कराकर मंदिरों को दान कर दिया जाता था। माता-पिता अपनी बेटी का विवाह देवता या मंदिर के साथ कर देते थे। परिवारों द्वारा कोई मुराद पूरी होने के बाद ऐसा किया जाता था। देवता से ब्याही इन महिलाओं को ही देवदासी कहा जाता है। उन्हें जीवनभर इसी तरह रहना पड़ता था। मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी देवदासी प्रथा का उल्लेख मिलता है। देवदासी यानी 'सर्वेंट ऑफ़ गॉड'। देवदासियां मंदिरों की देख-रेख, पूजा-पाठ की तैयारी, मंदिरों में नृत्य आदि के लिए थीं। कालिदास के 'मेघदूतम्' में मंदिरों में नृत्य करने वाली आजीवन कुंवारी कन्याओं की चर्चा की है। संभवत: इन्हें देवदासियां ही माना जाता है।

#देवदासी_प्रथा_का_सच -
ऐसा माना जाता रहा है कि ये प्रथा व्यभिचार का कारण बन गयी, और मंदिर के पुजारी इन देवदासियों का शोषण करते थे, और सिर्फ वही नही अन्य लोग जो विशेष अतिथि होते थे या मंदिर से जुड़े होते थे वो भी इन् देवदासियों का शारीरिक शोषण करते थे ।
लेकिन ऐसा नही है ,कैसे और क्यों आइये आपको अवगत कराते हैं --
#देवदासियों_का मुख्य कार्य था मंदिर की साफ सफाई ,उसका रख रखाव दीप प्रज्वलन,पवित्र ढंग से रहते हुए मंदिर के सभी कर्म करना । इनका वर्गीकरण होता था और प्राचीन हिन्दू वैदिक शास्त्रों के अनुसार इन्हें 7 वर्ग में विभाजित किया गया है --

1- #दत्ता - जो मंदिर में भक्ति हेतु स्वतः अर्पित हो जाती थी ।इन्हें देवी का दर्जा दिया जाता था ,और इन्हें मंदिर के सभी मुख्य कर्म करने की अनुमति होती थी।।

2- #विक्रिता - जो खुद को सेवा के लिए मंदिर प्रशासन को बेच देता था ,इन्हें सेवा के लिए लिया जाता था अतः इनका काम साफ सफाई आदि का होता था । ये पूजनीय नही होते थे ये बस मंदिर के श्रमिक होते थे ।।

3- #भृत्या - जो खुद के परिवार के भरण पोषण के लिए मंदिर में दासी का कार्य करते थे । इनका कार्य नृत्य आदि करके अपना पालन पोषण करना होता था ।।

4- #भक्ता - जो सेवा भाव मे पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए भी मंदिर में देवदासी का कार्य करती थी । ये मंदिर के समस्त कर्मो को करने के लिए होती थी ।।

5- #हृता - जिनका दूसरे राज्यो से हरण करके मंदिर को दान कर दिया जाता था । इनको मंदिर प्रशासन अपनी सुविधा अनुसार कर्म कराता था इनकी गणना थी तो देवदासियों में परंतु  वास्तव में ये गुलाम थे ।।
6- #अलंकारा - राजा और प्रभावशाली लोग जिन कन्याओ को इसके योग्य समझते थे उसे मंदिर प्रशासन को देवदासी बना कर दे देते थे । ये उन राजाओं और प्रभावशाली व्यक्तिओ का मंदिर को दिया गया उपहार होती थी।।

7-#नागरी - ये मुख्यतः विधवाओ , वैश्याओ और दोषी होते थे जो मंदिर की शरण मे आ जाते थे । जिन्हें बस मंदिर से भोजन और आश्रय की जरूरत थी बदले में ये मंदिर प्रशासन का दिया कोई भी कार्य कर देते थे ।।

मुख्यतः दत्ता ,भक्ता और अलंकारा ही मंदिर की देवदासियां होती थी जबकि नागरी, हृता,बिक्रीता और भृत्या अपने स्वार्थ के लिए मंदिर से जुड़ती थी और जहाँ मुख्य देवदासियो को श्रद्धा और भक्ति से देखा जाता था वही इन चारों को हेय दृष्टि से ।
मुख्य देवदासियां (दत्ता, भक्ता,अलंकारा) को खाने आदि की कमी नही होती थी तो इन्हें कोई गलत कर्म नही करना पड़ता था जबकि गौड़ देवदासियो को अपने जीवन यापन के लिए अन्य कर्म भी करने पड़ते  थे जिसमें गलत कर्म(वेश्यावृत्ति) भी थे ।।
गौड़ देवदासियो के इन्ही व्यवहार को प्रचारित किया गया और ये कहा गया कि सभी देवदासियो का शोषण होता है जिसका मंदिर प्रशासन ये पुजारी फायदा उठाते है जबकी ये गौड़ दासियों द्वारा स्वार्थ के लिए मजबूरी  किया जाता था ।।
कही कही उल्लेख मिलता है कि राजा इन देवदासियो का इस्तेमाल दूसरे राज्य के राजाओं की हत्या में भी इतेमाल करते थे । ये कर्म हृता द्वारा किया जाता था(कौटिल्य अर्थशास्त्र)

मुगलकाल में ज्यादातर लोग अपनी कन्याओ को मंदिर में दान करने लगे और जब राजाओं ने महसूस किया कि इतनी संख्या में देवदासियों का पालन-पोषण करना उनके वश में नहीं है, तो देवदासियां सार्वजनिक संपत्ति बन गयी (मुख्य तीनो को छोड़कर) जिन्हें अपने पालन पोषण के लिए वैश्यावृत्ति तक करनी पड़ी। और यही प्रचारित और प्रसारित किया गया

#विशेष - अक्सर आपने कथित दलित मसीहाओ को ये कहते हुए सुना होगा कि, देवदासी प्रथा में दलितों का शोषण होता आया है ।उनकी जानकारी के लिए बता दु की देवदासी प्रथा के अंतर्गत ऊंची जाति की महिलाएं ही मंदिर में खुद को समर्पित करके देवता की सेवा करती थीं।
इसमे दलितों के शोषण की बात भ्रामक है ।
फिलहाल ये प्रथाएं बंद हो चुकी है मैं इन प्रथाओं का विरोध करता हूँ , इन प्रथाओं की आड़ में किसी के धर्म का मजाक उड़ाना(जबकि इसकी सत्यता तक आपको नही पता) कहाँ तक उचित है।

#Sources - Parker, M. Kunal. July, 1998. “A Corporation of Superior Prostitutes’ Anglo- Indian Legal Conceptions of Temple Dancing Girls, 1800- 1914.”. Modern Asian Studies. Vol. 32. No. 3. p. 559.
2. Saskia C. Kersenboom- Story. 1987. . Nityasumangali. Delhi: Motilal Banarsidas. p. XV.
3. Tarachand, K.C. 1991. Devadasi Custom: Rural Social Structure and Flesh Markets. New Delhi: Reliance Publishing House. p. 1.
4. Ibid.,
5. Singh, A.K. 1990. Devadasis System in Ancient India. Delhi: H.K. Publishers and Distributors. p. 13.
6. Orr, Leslie. C. 2000. Donors, Devotees and Daughters of God: Temple Women in Medieval Tamilnadu. Oxford: Oxford University Press. p. 5.
7. Farquhar, J.N. 1914 (Rpt. 1967). Modern Religious Movements in India. New Delhi: Munshiram Manoharlal. pp. 408- 409.
8. Thurston, Edgar and K, Rangachari. 1987 (Rpt. 1909). Castes and Tribes of Southern India. Vol. II- C to J. New Delhi: Asian Educational Services. pp. 125- 126.

Courtesy: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=297219534077792&id=100013692425716

Monday 14 August 2017

लुटेरे_मुसलमान_पिंडारी

#लुटेरे_मुसलमान_पिंडारी

(प्रथम चतुर्वेदीजी का शोधपरक आलेख)

सलमान खान की एक मूवी आयी थी, नाम था #वीर ! मूवी ने नायक का नाम हिन्दू रख लिया, जिससे कोई विवाद ही ना हो, इतिहास से हम कोसो दूर थे, जो यह समझ ही नही सके, जिन पिंडारी को सलमान खान हीरो बनाकर प्रस्तुत कर रहा है, वह जिहादी मुसलमान ही थे ।

यह किस तरह का मायावी जाल इन मुसलमानो ने बॉलीवुड में फैला रखा है, इस लेख के माध्यम से इसे समझने की आप कोशिश कीजिये , की जिन पिंडारियों का महिमामंडन यह मल्लेछ सलमान खान कर रहा था, उनका इतिहास क्या था !!

यह पिंडारी अन्य मुसलमानो से अलग ना थे ! यह अफगान मुसलमान थे ! इनका विश्वप्रसिद्ध इतिहास एक यह है, की जब मराठों ने पानीपत की लड़ाई में 15000 पिंडारियों को अपनी सेना में भर्ती किया, तो जीती लड़ाई मराठे इन पिंडारियों की वजह से हार गए । अगर पानीपत की वह लड़ाई मराठे जीत जाते, तो भारत का इतिहास आज कुछ और ही होता । अचानक " अल्ला हु अकबर " का नारा देते हुए पिंडारियों ने निहत्थे मराठो पर धावा बोल दिया था । उस समय महाराष्ट्र में एक भी ऐसा घर नही था, जहां से किसी के भाई -पिता  या पति की लाश ना उठी हूँ । मराठी लोग आज भी अशुभ होने पर यही कहते है " लगता है पानीपत होगा "

तो यह तो पिंडारियों का एक इतिहास रहा ... लेकिन पिंडारियों ने सबसे ज़्यादा आतंक जहां मचाया, वह था राजस्थान ....

राजस्थान के राजपूत 800 सालो से लड़ते लड़ते ऐसे ही हाशिये पर आ पहुंचे थे, उसके बाद एक भयंकर बला उनके सिर पिंडारियों के रूप में आकर गिरी ! यही राजपूतो की अंग्रेजो से संधि का कारण बनी, क्यो की बिना अंग्रेजो के इन पिंडारियों का अंत संभव नही था, यह लोग कभी आमने सामने की लड़ाई नही लड़ते थे ।

15 हजार से 20 हजार का घुड़सवार पिंडारी दल किसी नगर पर आक्रमण करता, महिलाओ का बलात्कार, पुरषो की हत्या, बच्चो को उड़ा ले जाना, लोगो को मुसलमान बना देना, उनका धन लूट लेना, यही पिंडारियों का पेशा बन चुका था ।

31 मार्च 1817 से 11 दिन तक लगातार पिंडारियों ने 339 गांवो को लूटकर साफ कर दिया, 1820 आदमियों की इन्होंने हत्या की, 505 लोग इतने भयंकर रूप से घायल हुए, की बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया, 2300 से ऊपर मृत्यु का आंकड़ा पहुंच गया । 6000 लोगो को बंधक बनाकर भयंकर यातना दी गयी । यह सभी पीड़ित हिन्दू थे, ओर बंधक बनाकर यातना देने की बात से स्पष्ठ हो जाता है कि यह लोग उनसे इस्लाम कबूल करवाना ही चाहते थे । इन पिंडारियों के दबाव में ही मेवाड़ की राजकुमारी कृष्णा को विष का प्याला पीना पड़ा था ।

उस समय की स्थिति यह थी कि सारा भारत अंग्रेजो के चंगुल में आ फंसा था । जहां मुसलमान अपने आतंक के नंगे नाच से हिन्दुओ को खून के आंसू रुला देते थे, वहीं अंग्रेजो को शुरू शुरू में केवल अपने व्यापार से मतलब था । यही कारण था कि अंग्रेज बहुत जल्दी भारत मे फैलते गए, इससे मुसलमानो का उपचार भी हो जाता, ओर दिन रात लूट मार का खतरा भी अब टलने लगा था । मराठा दरबार मे ही जब अंग्रेजी रेजीमेंड रहने लगे थे, तो अन्य राज्यो का तो कहना ही क्या था ...

पिंडारियों का सहयोगी था, आज की  राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का खानदान भी । जिसने कोटा पर पिंडारियों के साथ हमला करके यहाँ की बहुत धन और सम्पदा को लुटा था ।

आजादी के बाद दुबारा नेहरू के रूप में भारत मे इस्लामी राज आने के बाद पिंडारियों के कुकृत्य को भुला दिया गया । ओर इन्ही दुस्ट पशुओं को हीरो बनाकर सलमान खान ने भारत मे जिहाद के नए आयाम पेश किए ।

#साभार प्रथम चतुर्वेदी जी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=504392196568465&id=100009930676208

विश्वगुरु_भारत_से_विकासशील_भारत_का_सफर

-- #विश्वगुरु_भारत_से_विकासशील_भारत_का_सफर -- -------------------------------------------------------------------- इतिहास में भारतीय इस्पा...