Thursday, 31 August 2017

जनेऊ

#जनेऊ --

जनेऊ का नाम सुनते ही सबसे पहले जो चीज़ मन मे आती है वो है धागा दूसरी चीज है ब्राम्हण ।। जनेऊ का संबंध क्या सिर्फ ब्राम्हण से है , ये जनेऊ पहनाए क्यों है , क्या इसका कोई लाभ है, जनेऊ क्या ,क्यों ,कैसे आज आपका परिचय इससे ही करवाते है ----

#जनेऊ_को_उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र के नाम से भी जाना जाता है ।।

हिन्दू धर्म के 24 संस्कारों में से एक ‘उपनयन संस्कार’ के अंतर्गत ही जनेऊ पहनी जाती है जिसे ‘यज्ञोपवीतधारण करने वाले व्यक्ति को सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। उपनयन का शाब्दिक अर्थ है "सन्निकट ले जाना" और उपनयन संस्कार का अर्थ है --
"ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना"

#हिन्दू_धर्म_में प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। हर हिन्दू जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे।ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म। मतलब सीधा है जनेऊ संस्कार के बाद ही शिक्षा का अधिकार मिलता था और जो शिक्षा नही ग्रहण करता था उसे शूद्र की श्रेणी में रखा जाता था(वर्ण व्यवस्था)।।

#लड़की_जिसे_आजीवन_ब्रह्मचर्य का पालन करना हो, वह जनेऊ धारण कर सकती है। ब्रह्मचारी तीन और विवाहित छह धागों की जनेऊ पहनता है। यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के बतलाए गए हैं।

#जनेऊ_का_आध्यात्मिक_महत्व --

#जनेऊ_में_तीन-सूत्र –  त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक – देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक – सत्व, रज और तम के प्रतीक होते है। साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक है तो तीन आश्रमों के प्रतीक भी। जनेऊ के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। अत: कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। इनमे एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। इनका मतलब है – हम मुख से अच्छा बोले और खाएं, आंखों से अच्छा देंखे और कानों से अच्छा सुने। जनेऊ में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष का प्रतीक है। ये पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों के भी प्रतीक है।

#जनेऊ_की_लंबाई : जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होती है क्यूंकि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। 32 विद्याएं चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर होती है। 64 कलाओं में वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि आती हैं।

#जनेऊ_के_लाभ --

#प्रत्यक्ष_लाभ जो आज के लोग समझते है -

""जनेऊ बाएं कंधे से दाये कमर पर पहनना चाहिये""।।

#जनेऊ_में_नियम_है_कि -
मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका मूल भाव यह है कि जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। यह बेहद जरूरी होता है।

मतलब साफ है कि जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति ये ध्यान रखता है कि मलमूत्र करने के बाद खुद को साफ करना है इससे उसको इंफेक्शन का खतरा कम से कम हो जाता है

#वो_लाभ_जो_अप्रत्यक्ष_है जिसे कम लोग जानते है -

शरीर में कुल 365 एनर्जी पॉइंट होते हैं। अलग-अलग बीमारी में अलग-अलग पॉइंट असर करते हैं। कुछ पॉइंट कॉमन भी होते हैं। एक्युप्रेशर में हर पॉइंट को दो-तीन मिनट दबाना होता है। और जनेऊ से हम यही काम करते है उस point को हम एक्युप्रेश करते है ।।
कैसे आइये समझते है

#कान_के_नीचे_वाले_हिस्से (इयर लोब) की रोजाना पांच मिनट मसाज करने से याददाश्त बेहतर होती है। यह टिप पढ़नेवाले बच्चों के लिए बहुत उपयोगी है।अगर भूख कम करनी है तो खाने से आधा घंटा पहले कान के बाहर छोटेवाले हिस्से (ट्राइगस) को दो मिनट उंगली से दबाएं। भूख कम लगेगी। यहीं पर प्यास का भी पॉइंट होता है। निर्जला व्रत में लोग इसे दबाएं तो प्यास कम लगेगी।

एक्युप्रेशर की शब्दवली में इसे  point जीवी 20 या डीयू 20 -
इसका लाभ आप देखे  -
#जीबी 20 -
कहां : कान के पीछे के झुकाव में।
उपयोग: डिप्रेशन, सिरदर्द, चक्कर और सेंस ऑर्गन यानी नाक, कान और आंख से जुड़ी बीमारियों में राहत। दिमागी असंतुलन, लकवा, और यूटरस की बीमारियों में असरदार।(दिए गए पिक में समझे)

इसके अलावा इसके कुछ अन्य लाभ जो क्लीनिकली प्रोव है -

1. #बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से ऐसे स्वप्न नहीं आते।
2. #जनेऊ_के हृदय के पास से गुजरने से यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है, क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होने लगता है।
3. #जनेऊ_पहनने वाला व्यक्ति सफाई नियमों में बंधा होता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जीवाणुओं के रोगों से बचाती है।
4. #जनेऊ_को_दायें कान पर धारण करने से कान की वह नस दबती है, जिससे मस्तिष्क की कोई सोई हुई तंद्रा कार्य करती है।
5. #दाएं_कान_की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।
6. #कान_में_जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।
7. #कान_पर_जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है।

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=302320400234372&id=100013692425716

Wednesday, 30 August 2017

आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत अबाधित ज्योतिरमार्ग

वास्तविक ज्योतिर्लिंगम् जो चन्द्रदेव ने स्थापित किया था , वास्तव में वह एक अण्डे के आकार का स्पर्शलिंगम् था जिससे निकलने वाला प्रकाश नग्न नेत्रों से दिखाई पड़ने वाले सूर्य के दृश्य प्रकाश की तुलना में १०० गुना अधिक तीव्रता का था।

उस समय नक्षत्र रश्मियों की पृथ्वी पर अनुकूलता न होने के कारण चन्द्र ने भूगर्भ मंदिर का निर्माण कराया। इस भूगर्भ मंदिर के उपर ब्रह्म शिला रखी गई। पश्चात् इसके उपर पाषाणलिंगम् रखकर सोमनाथ मन्दिर का निर्माण कराया गया।

सोमनाथ मंदिर में स्थित बाण-स्तंभ का रहस्य क्या है?

आप 1500 वर्ष पुराने सोमनाथ मंदिर के प्रांगण में खड़े बाणस्तम्भ की विलक्षणता के विषय मे जानते हैं? ‘इतिहास’ बडा चमत्कारी विषय है इसको खोजते खोजते हमारा सामना ऐसे स्थिति से होता है की हम आश्चर्य में पड जाते हैं! पहले हम स्वयं से पूछते हैं यह कैसे संभव है?

डेढ़ हजार वर्ष पहले इतना उन्नत और अत्याधुनिक ज्ञान हम भारतीयों के पास था इस पर किसी को जल्दी विश्वास ही नहीं होता! गुजरात के सोमनाथ मंदिर में आकर कुछ ऐसी ही स्थिति होती है. वैसे भी सोमनाथ मंदिर का इतिहास बड़ा ही विलक्षण और गौरवशाली रहा है!

12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग है सोमनाथ! एक वैभवशाली सुंदर शिवलिंग! इतना समृध्द की उत्तर-पश्चिम से आने वाले प्रत्येक आक्रांता की पहली नजर सोमनाथ पर जाती थी अनेकों बार सोमनाथ मंदिर पर हमले हुए उसे लूटा गया! सोना, चांदी, हिरा, माणिक, मोती आदि गाड़ियाँ भर-भर कर आक्रांता ले गए.

इतनी संपत्ति लुटने के बाद भी हर बार सोमनाथ का शिवालय उसी वैभव के साथ खड़ा रहता था! लेकिन केवल इस वैभव के कारण ही सोमनाथ का महत्व नहीं है।

सोमनाथ का मंदिर भारत के पश्चिम समुद्र तट पर है विशाल अरब सागर रोज भगवान सोमनाथ के चरण पखारता है और गत हजारों वर्षों के ज्ञात इतिहास में इस अरब सागर ने कभी भी अपनी मर्यादा नहीं लांघी है!

न जाने कितने आंधी, तूफ़ान आये, चक्रवात आये लेकिन किसी भी आंधी, तूफ़ान, चक्रवात से मंदिर की कोई हानि नहीं हुई है! मित्रो इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंबा) है! यह ‘बाणस्तंभ’ नाम से जाना जाता है!

यह स्तंभ कब से वहां पर हैं बता पाना कठिन है लगभग छठी शताब्दी से इस बाणस्तंभ का इतिहास में नाम आता है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की बाणस्तंभ का निर्माण छठवे शतक में हुआ है उस के सैकड़ों वर्ष पहले इसका निर्माण हुआ होगा!

यह एक दिशादर्शक स्तंभ है जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण है इस बाणस्तंभ पर लिखा है -

‘आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत अबाधित ज्योतिरमार्ग’ इसका अर्थ यह हुआ-‘इस बिंदु से दक्षिण धृव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं है।’ अर्थात ‘इस समूची दूरी में जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं है!

जब मैंने पहली बार इस स्तंभ के बारे में पढ़ा और यह शिलालेख पढ़ा तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए! यह ज्ञान इतने वर्षों पहले हम भारतीयों को था? कैसे संभव है? और यदि यह सच हैं तो कितने समृध्दशाली ज्ञान की वैश्विक धरोहर हम संजोये हैं!

संस्कृत में लिखे हुए इस पंक्ति के अर्थ में अनेक गूढ़ अर्थ समाहित हैं इस पंक्ति का सरल अर्थ यह है, कि ‘सोमनाथ मंदिर के इस बिंदु से लेकर दक्षिण ध्रुव तक (अर्थात अंटार्टिका तक) एक सीधी रेखा खिंची जाए, तो बीच में एक भी भूखंड नहीं आता है!

क्या यह सच है? आज के इस तंत्र विज्ञान के युग में यह ढूँढना संभव तो है, लेकिन उतना आसान नहीं! गूगल मैप में ढूंढने के बाद भूखंड नहीं दिखता है लेकिन वह बड़ा भूखंड. छोटे, छोटे भूखंडों को देखने के लिए मैप को ‘एनलार्ज’ या ‘ज़ूम’ करते हुए आगे जाना पड़ता है!

वैसे तो यह बड़ा ही ‘बोरिंग’ सा काम हैं लेकिन धीरज रख कर धीरे-धीरे देखते गए तो रास्ते में एक भी भूखंड (अर्थात 10 किलोमीटर X 10 किलोमीटर से बड़ा भूखंड) नहीं आता है! अर्थात हम पूर्ण रूप से मान कर चलें कि उस संस्कृत श्लोक में सत्यता है!

किन्तु फिर भी मूल प्रश्न वैसा ही रहता है अगर मान कर भी चलते हैं कि सन 600 ई० में इस बाण स्तंभ का निर्माण हुआ था, तो भी उस जमाने में पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव है यह ज्ञान हमारे पुरखों के पास कहां से आया?

अच्छा दक्षिण ध्रुव ज्ञात था, यह मान भी लिया तो भी सोमनाथ मंदिर से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी भूखंड नहीं आता है यह ‘मैपिंग’ किसने किया? कैसे किया? सब कुछ अद्भुत!!

इसका अर्थ यह हैं की ‘बाण स्तंभ’ के निर्माण काल में भारतीयों को पृथ्वी गोल है इसका ज्ञान था! इतना ही नहीं पृथ्वी का दक्षिण ध्रुव है (अर्थात उत्तर धृव भी है) यह भी ज्ञान था! यह कैसे संभव हुआ? इसके लिए पृथ्वी का ‘एरिअल व्यू’ लेने का कोई साधन उपलब्ध था? अथवा पृथ्वी का विकसित नक्शा बना था?

नक़्शे बनाने का एक शास्त्र होता है अंग्रेजी में इसे ‘कार्टोग्राफी’ (यह मूलतः फ्रेंच शब्द हैं) कहते है! यह प्राचीन शास्त्र है ईसा से पहले छह से आठ हजार वर्ष पूर्व की गुफाओं में आकाश के ग्रह तारों के नक़्शे मिले थे! परन्तु पृथ्वी का पहला नक्शा किसने बनाया इस पर एकमत नहीं है!

हमारे भारतीय ज्ञान का कोई सबूत न मिलने के कारण यह सम्मान ‘एनेक्झिमेंडर’ इस ग्रीक वैज्ञानिक को दिया जाता है! इनका कालखंड ईसा पूर्व 611 से 546 वर्ष था किन्तु इन्होने बनाया हुआ नक्शा अत्यंत प्राथमिक अवस्था में था!

उस कालखंड में जहां जहां मनुष्यों की बसाहट का ज्ञान था बस वही हिस्सा नक़्शे में दिखाया गया है! इसलिए उस नक़्शे में उत्तर और दक्षिण ध्रुव दिखने का कोई कारण ही नहीं था!

आज की दुनिया के वास्तविक रूप के करीब जाने वाला नक्शा ‘हेनरिक्स मार्टेलस’ ने साधारणतः सन 1490 के आसपास तैयार किया था! ऐसा माना जाता हैं की कोलंबस और वास्कोडिगामा ने इसी नक़्शे के आधार पर अपना समुद्री सफर तय किया था।

‘पृथ्वी गोल है’ इस प्रकार का विचार यूरोप के कुछ वैज्ञानिकों ने व्यक्त किया था! ‘एनेक्सिमेंडर’ इनसा पूर्व 600 वर्ष पृथ्वी को सिलेंडर के रूप में माना था! ‘एरिस्टोटल’ (ईसा पूर्व 384– ईसा पूर्व 322) ने भी पृथ्वी को गोल माना था!

लेकिन भारत में यह ज्ञान बहुत प्राचीन समय से था जिसके प्रमाण भी मिलते है! इसी ज्ञान के आधार पर आगे चलकर आर्यभट्ट ने सन 500 के आस पास इस गोल पृथ्वी का व्यास 4967 योजन हैं! (अर्थात नए मापदंडों के अनुसार 39668 किलोमीटर हैं) यह भी दृढतापूर्वक बताया!

आज की अत्याधुनिक तकनीकी की सहायता से पृथ्वी का व्यास 40068 किलोमीटर माना गया है! इसका अर्थ यह हुआ की आर्यभट्ट के आकलन में मात्र 0.26% का अंतर आ रहा है, जो नाममात्र है!

लगभग डेढ़ हजार वर्ष पहले आर्यभट्ट के पास यह ज्ञान कहां से आया? सन 2008 में जर्मनी के विख्यात इतिहासविद जोसेफ श्वार्ट्सबर्ग ने यह साबित कर दिया था कि ईसा पूर्व दो-ढाई हजार वर्ष भारत में नक्शाशास्त्र अत्यंत विकसित था!

नगर रचना के नक्शे उस समय उपलब्ध तो थे ही परन्तु नौकायन के लिए आवश्यक नक़्शे भी उपलब्ध थे! भारत में नौकायन शास्त्र प्राचीन काल से विकसित था।

संपूर्ण दक्षिण एशिया में जिस प्रकार से हिन्दू संस्कृति के चिन्ह पग पग पर दिखते हैं उससे यह ज्ञात होता है की भारत के जहाज पूर्व दिशा में जावा,सुमात्रा, यवनद्वीप को पार कर के जापान तक प्रवास कर के आते थे!

सन 1955 में गुजरात के ‘लोथल’ में ढाई हजार वर्ष पूर्व के अवशेष मिले हैं! इसमें भारत के प्रगत नौकायन के अनेक प्रमाण मिलते हैं। सोमनाथ मंदिर के निर्माण काल में दक्षिण धृव तक दिशादर्शन उस समय के भारतीयों को था यह निश्चित है!

लेकिन सबसे महत्वपूर्व प्रश्न सामने आता है की दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में समुद्र में कोई अवरोध नहीं है! ऐसा बाद में खोज निकाला या दक्षिण ध्रुव से भारत के पश्चिम तट पर बिना अवरोध के सीधी रेखा जहां मिलती हैं वहां पहला ज्योतिर्लिंग स्थापित किया?

उस बाण स्तंभ पर लिखी गयी उन पंक्तियों में (‘आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत अबाधित ज्योतिरमार्ग’) जिसका उल्लेख किया गया है वह ‘ज्योतिरमार्ग’ क्या है? यह आज भी प्रश्न ही है!

क्योंकि सुदूर दक्षिण में जाने वाले मार्ग का उत्तर काल के थपेड़ों में कहीं लुप्त हो गया है !!

(सम्पादित)

Courtesy: Madhusudan Upadhyay,
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1151854028281662&id=100003712281282

मूलाधार पर हमले-2

मूलाधार पर हमले-2
खुद की जड़ो में मट्ठा डालते मूर्ख।

इस लेख से मैं यहां यह नहीं कह रहा कि कोई आरोपी,अपराधी सही है या किसी बलात्कारी के पक्ष में समर्थन दे रहा।मैं यह भी मान रहा हूँ कि इससे सनातन समाज मे ठगी,धूर्तता,गलतियों की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।परन्तु यह मैं जानता हूँ जब राज व्यवस्था प्रथम सुरक्षा प्रणाली परकियो(शत्रुओं)से आमने-सामने के युद्ध मे हार कर नष्ट हो चुकी थी उस एक हजार साल के गुलामी काल मे इन योगियों,महात्माओं,साधुओं, सन्तो,सन्यासियों,त्यागियों, ज्ञानियो, अघोरियों,शाक्तों,तांत्रिकों,कापालिकों,कीर्तनियियो,घुमक्कडों,इकतारो,जोगियों,जोगड़ो ने देश भर में घूम-घूम कर सनातन धर्म की रक्षा की,शक्तियाँ प्रदान की।उनके त्याग,बलिदान प्रेरणा की वजह से दुश्मनो के शासन कॉल में हम बचे रह सके(पढ़े मूलाधार की शक्ति,मूलाधार पर हमले)।इन दिनों मैं एक डर महसूस कर रहा हूं जो प्रथम सुरक्षा प्रणाली नष्ट होने पर महसूस होता है। पिछले कई हजारों सालों के अध्ययन के बाद दुश्मन समाज हिंदू समाज में प्रतिष्ठाओ पर हमले कर रहा है,व्यवस्थाओं और सुरक्षा प्रणाली पर आक्रमण कर रहा है।

  मुझे लगता है यह बड़े शातिर और साजिशी तरीके से हो रहा है।मूल मान-बिंदुओं को बदनाम कर दो और पूरी प्रणाली पर ही प्रश्नचिह्न बनाओ।एक आंतरिक अविश्वास खड़ा करो।आत्मविश्वास हिलते ही शिकार आसान हो जाएगा।पिछले 15 सालों से जिस तरह से हिंदू संतों,सन्यासियों,त्याग प्रणालियों भगवा वस्त्रधारियों,साधुओं,योगियों, ज्ञानियों के चरित्रहनन हो रहे हैं,मान-बिंदुओं को नीचा दिखाने का प्रयत्न हो रहा है।इस समय की मीडिया के लिए हिंदू साधु सबसे बड़ा स्कूप है।वे कभी मुल्ले या पादरी पर खबर नही केंद्रीत करते।सूची तैयार करिये आप देखेंगे उनके हजारो मामले दबा दिए गए।ऐसा नही है बाजार की दृष्टि से वह टीआरपी नही बढ़ाती,खूब बढ़ाती है।चौगुना कमाई होती है।पर कोई शक्ति है जो इन विषयों को दबा देती है।उसे भारत मे केवल सनातनी परम्परा के साधुओं के चरित्र हनन में दिलचस्पी है।उसे भगवा वस्त्रधारियों से नफरत है।वह भारत मे पिछले सत्तर साल से एक निश्चित योजना से काम कर रहा है।मीडिया,लेखन,सिनेमा और साहित्य द्वारा छविभंजन किया जा रहा है वह कतई उचित नहीं है।मुझे डर है इसके पीछे सोची-समझी अंतरराष्ट्रीय साजिश काम कर रही है। वह एक तरह से गन्दी साजिश है कि किस तरह से भारतीय सनातन समाज को नष्ट किया जाए।हालांकि आज हममें से बहुतायत यह बात आज समझने को तैयार नहीं होंगे लेकिन यह भविष्य में सामने आएगा। आप शायद यह बात नहीं समझ पा रहे कि युगों से सम्मान केंद्र रहे संतत्व, को हल्का किया जा रहा है, प्रतिष्ठानों को भंग किया जा रहा है और उसके बाद उसको सहज हलका करके एक आवरण को ही नष्ट करने का प्रयत्न किया जा रहा है।देश में एक ऐसा माहौल बनाने का प्रयत्न हो रहा है साधु,सन्त,सन्यासी,मठ व्यवस्था,योगी यह सब बेकार है जबकि दूसरी तरफ चर्च और मस्जिदों का नेटवर्क और प्रतिस्ठा और मजबूत की जा रही है।जिंदगी भर धर्मान्तरण करवाने वाली मदर को महिमामण्डित किया जाता है,तरह तरह के विदेशी पुरष्कारो से मिशनरियों,कम्युनिष्टों को ऊंची छवि बनाई जाती है,बड़े-बड़े लेख मंच दिये जाते हैं।किंतु लाखों सेवा कार्य,हजारो स्कूलों,हाष्पिटल,ट्रेनिंग सेंटर चलाने,सिंचाई केंद्र चलाने वाले सन्तो,आश्रमो,मठो की चर्चा तक नही होती।नोबल पुरस्कार कौन कहे।कुछ न कुछ गोलमाल है।

  पिछले 70 साल से कि किस तरह से वह सामाजिक संतत्व का आवरण समाप्त किया जा रहा और पूरा देश या तो इसाई या इस्लामी अवधारणा में जकड़ जाए इसका प्रयत्न हो रहा है इसको मैं सहज दृष्टि से नहीं देख रहा हूँ।इसको मैं उस दृष्टि से देख रहा हूं कि हमारा समाज नष्ट ना हो जाए।       

किसी के भी व्यक्तित्व,आचरण,समाज पर पकड़,त्याग,तपस्या,ज्ञान,वक्तृत्व-क्षमता, विद्या-गुण,कलात्मकता,नाम, उत्कृट सेवा-चरित्र,कठोर मेहनत,प्रेम,करुणा और सहृदयता भरी जीवन शैली को अगर नष्ट करना है तो उसका चरित्र हनन कर दो।
बड़ा आसान है।आप कहीं से भी एक लड़की को पकड़िए,उसको  दो-चार लाख या कुछ ज्यादा रुपए दीजिए और उस पर आरोप लगा दीजिए कि मेरे साथ बलात्कार किया है।कोर्ट केस करवा दीजिए।ऐसे कई लोग मिल ही जायेंगे जो साधु के साथी रहे होंगे वे किसी न किसी कारण से नाराज होंगे।खुलकर साथ देंगे।आगे का काम मीडिया सम्भाल ही लेगी।चटखारे दार विषय है न।टीआरपी,रीडरशिप दोनों बढ़ती है।वर्जनाओं वाले विषयो में लोगो का बहुत इंटरेस्ट होता है।

  अपने आप उस बेचारे साधु का व्यक्तित्व नष्ट हो जाएगा।फिर हिंदू समाज पर आरोप लगाना आसान हो जाएगा।वह सन्त केवल व्यक्ति नही है।युग-युगीन सनातन परंपरा और शैली का प्रतीक है।तो फिर सम्पूर्ण पर ही प्रश्न खड़ा होगा न?

आशाराम जी ने कुछ समय पहले ही युवराज और राजमाता पर एक प्रवचन में कुछ कहा था।फिर वह कांग्रेस के इतिहास पर ही बोलने लगे।साधुओ का बड़ा होता कद बहुतो को अखर रहा था।फिर कई वनवासी इलाको में धर्मांतरण घटने लगा,साथ ही घर वापसी भी होने लगी। बाकायदे योजना बनाकर केस फोर्स किया गया।वह भी उस समय कांग्रेस शासित राज्य के जोधपुर नगर में।वैसे राजवंश का इतिहास है।उसे हिँड्यू सन्त बहुत अखरते थे।स्पेशली वह जो राष्ट्र की सनातन परांपरा पर बोलते।जो हिंदुत्वत्व की बात करते। चूंकि उसमे कही भी सेकुलरिया ढोंग नही आता था।हिंदूत्व की बात उभर कर आती थी।इसलिए उसे खत्म करने की हर सम्भव कोशिश होती।मीडिया,इजुकेधन,लेखन,सिनेमा अपने कम्युनिष्ट लाबी,एनजीओ सबका साथ लिया जाता।सन्तों को बदनाम, बर्बाद करने के लिए।

उन्होंने ऐसे चार बड़े संतो को फंसाया है उनमे एक वह भी थे।जिन्होंने भी वंश के लिए आवाज उठाई बड़ी साजिश करके  उनको खत्म किया गया।उनमें शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती,आसाराम बापू,श्रद्धानन्द,परमानन्द और करपात्री जी भी ऐसे ही फँसाये गये।तीन अन्य बड़े संतो को बड़ी चतुराई से फंसाया है।बाकायदे कांग्रेसियों ने परमानंद जी को मरवा दिया था।उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में ही कांग्रेस की दयानंद सरस्वती के आर्य समाज के इतने बड़े शत्रु थे जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते।उन्होंने विवेकानंद के आश्रमों रामकृष्ण मिशन के कुछेक ट्रस्टियों को फंसा कर नष्ट करने का हर तरह का प्रयास किया।बाद में बहला-फुसला कर एक मुकदमा करवा दिया कि वे कोर्ट जाकर कहने लगे रामकृष्णएट्स हैं और अल्पसंख्यक है।भला हो बाद में सद्बुद्धि आ गई।वह तब जब सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगा दी।

  केवल यही नहीं ऐसे जितने बड़े संत थे जो सनातन धर्म पर चलने वाले थे उन को मारने की, समाप्त करने की, बदनाम करने की, अपराधी बनाने की, उनके विचारों को ध्वस्त करने की ऐसी कोई कोशिश नहीं थी जो कांग्रेसियों ने ना की हो।और तो और छोड़िए उन्होंने गोवंश के रक्षकों के लिए 24000 संतों के धरना प्रदर्शन दिल्ली में था उनमें गोली चलवा दी।बहुत से मारे गए और रातों-रात लाशे गायब करा दी गई।करपात्री जी महाराज को मारने की पूरी कोशिश की। जो भी सनातन धर्म की बात करता था कांग्रेसियों ने उसे खत्म करने की तरह-तरह की साजिश की।
  मैं बहुत साफ-साफ कहता हूं आसाराम बापू और ऐसे कई संत हैं जिनके खिलाफ गहरी साजिश की गई बहूत दिनों बाद पता चलेगा कि वह निरपराध थे।....और हां मै न आशाराम का भक्त हूँ न चेला,न ही दूर-दूर तक मेरा वैचारिक सम्बन्ध ही निकलेगा।

  मूर्ख हिन्दू बिना-समझे खुद ही अपने को बौद्धिक समझते हुए शुचिता का इतना शोर मचाने लगेंगे कि शत्रु का काम और आसान हो जाएगा।उसका त्याग,ज्ञान,परिश्रम,लम्बे समय की सेवा भूलते देर न लगेगी।फिर गिद्ध की तरह नजर लगाए धर्मान्तरण को तैयार दुश्मनो को घुसपैठ करने का नया रास्ता उसको मिल ही जाएगा।मजे वे ले रहे होंगे जो रोज हलाला भोगते हैं, जो ननों को जैसे चाहते है वह करते हैं। उनके यहां खुलेआम यह सब मान्य है।उनके यहां संयम,ब्रहमचर्य,आश्रम प्रणाली का कोई चिन्ह मौजूद नहीं है,शराब,मांस,और जीवहत्या सहज मान्य है।गैर-मजहबी दूसरे मनुष्यो तक मे आत्मा नही मानी जाती।बल्कि गैर मजहबियो को मारना/नष्ट करना धार्मिक कार्य है।न मानवीय नियमो को मानने की बाध्यता है। वह सनातन शुचिता,आदर्श का जबरदस्त लाभ उठाते हैं।त्याग,तपस्या,संयम, सिद्धियों के बल पर,अपने लंबे काल के अध्ययन,परिश्रम के बल पर समाज पर पकड़ बनाने वाले योगी, संत,त्यागियो का सब कुछ 1 मिनट में नष्ट किया जा सकता है। उनकी हंसी वह उड़ाते हैं जो खुलेआम जगह-जगह ऐसे कुकृत्यों में,लोलुपता में, चरित्रहीनता के साथ, वैभव विलासिता के साथ,नंगई में लिप्त रहते हैं।वह संतों का मजाक उड़ाते हैं।सार्वजनिक किस करवाकर,जगह-जगह नंगई का प्रदर्शन करते,वे कामभूत को हजारो- हजार साल साल पुरानी परंपराओं का मजाक उड़ाते हैं।जब हम बड़े आश्रमों की पकड़ को कमजोर करते हैं तो एक तरह से भारतीय हिंदू समाज में ईसाइयों और इस्लामियों के धर्मांतरण की मौजूदगी और उनके आक्रमण को मजबूत करते है।उनके लगातार घुसपैठ को मजबूती देते हैं।वे हमारे गरीबों के बीच,दलितों-वंचितों के बीच में घुसपैठ करके हमारा ही दुश्मन बनाने लगते है।इस आक्रमण को हम नहीं पढ़-समझ नही पाते हैं।उनको हम एक अवसर देते हैं।एक जमीन और माहौल अवेलेबल करा देते हैं।यह देखो यह कमजोर कड़ी है इधर से घुसो। बेसिकली अपने सन्तो,प्रतिष्ठितो को कमजोर करके,अपना सुरक्षात्मक आवरण कमजोर कर रहे होते है जो कि उनका मूल टारगेट होता हैं।वे तो हजार साल से हिंदू समाज को भारतीय समाज को नष्ट करने के लिए ताक में हैं, प्रयत्नशील है और लगातार   उनके आक्रमण भारतीय समाज पर चल रहे हैं। गरीब,शोषित,पीड़ित अभाव से ग्रसित,अशिक्षित,गांव में रहने वाले लोग मिशनरियों एवम मस्जिदों और मुल्लों,पादरियों के टारगेट है।आप समझ नहीं पाते कि हमारे समाज के बाबा,संत-समाज आश्रम,गीत वाले,भजन-कीर्तन मंडली,अपनी संरचनाओं के बल पर पिछले हजार साल से सनातन समाज को बचाये हुए है।छोटे-छोटे समाजों में,इन दलितों गरीबों तमाम लोगों को सनातन समाज में बने रहने का कारण बने हुए हैं।आज वे सन्त ही उनके टारगेट पर हैं।उनके यहां,उनकी संस्कृति हलाला,खुला सेक्स आम बात है।भाई-बहनो तक के रिश्ते आम बात है।नजदीकी रिश्तों के सेक्स की सहज अनुमति है किंतु सनातन समाज मे इन विषयों को लेकर बड़ी कठोर वर्जनाएं है।उन्हें हमारे क़ानून कि बारीकियों की समझ है।उनके पास मीडिया है।जिसका स्वाभाविक आर्थिक हित और प्रशिक्षण उनके साथ मिला हुआ है।वे खुलकर हमारे आवरण पर हमले कर रहे।

(री-पोस्ट)
Courtesy: Pawan Tripathi, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10155555189536768&id=705621767

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