'अब केवल राम,
राम-रहीम नेहरुआना सेकुलरिज्म के ढोंग का सबसे बड़ा प्रतीक है।इन 70 सालों में बनाया गया किला आज ढह रहा है और हम चाहेंगे यह जड़ से समाप्त हो जाए।सेखुलरिज्म के रूप में बनाया गया यह अनकल्चर एक तरह से गंगा-जमुनी रूप इस तरह ढाला गया है कि अपराधी,ढोंगी,लुटेरे समाज को भ्रमित करके ऊंची जगह पहुंच जाएं।आप ध्यान से देखें तो यह एक पार्टी विशेष से जुड़े लोग है।वे लगातार परवर्ती सरकारों द्वारा संरक्षित किये गए थे।
सन्त पहचानना भी एक सिद्धि है।रामकृष्ण परमहंस,विवेकानन्द,महर्षि रमण,गोपीनाथ कविराज,मास्टर जी, मछेन्दर नाथ ,गोरख नाथ , सन्त ज्ञानेश्वर , संत तुकाराम, संत एकनाथ , संत जलाराम, रामकृष्ण परमहंस, संत रैदास, तुलसी दास, सूरदास , आदी शंकराचार्य ,बाबा कीनाराम , तेलंग स्वामी , देवरहा बाबा ,स्वामी करपात्री ,त्रिदंडी स्वामी,दतिया स्वामी आदि-आदि हजारो सन्त,लाखो योगी,अनगिनत महान और सिद्ध महात्मा इस देश में पैदा हुए , चमत्कारिक शक्तियों से सभी भरे हुए थे।सब ने देश को नयी दिशा दी।सबके लाखो ,करोडो अनुयायी थे ,गुरु की संस्कार युक्त ,देशभक्त व्यक्तिव वाले।सनातन समाज मे यह आस्था हजारो साल के त्याग से उत्पन्न हुई है।वह समाज के मूलाधार बन गए थे।उनको ध्यान से पढ़े वे सभी 10वी शताब्दी के बाद के हैं।उनमें से कोई भी सेकुलरिज्म की छौंक नही लगाता।हालांकि वंशवादी कॉन्ग्रेसी चापलूसों ने बहुत कोशिश की उनके उपदेशों को कन्फ्यूज करने की पर सफल नही हो सके।उनकी वजह से 700 साल तक लगातार प्रयास के बावजूद न मुस्लिम सफल हुए न ईसाई।लेकिन कांग्रेस का प्रयास मूलाधार पर ही था।उपरोक्त सभी संतो की तस्वीर देखे सब का पहनावा,बोली,आचार,जीवन शैली,व्यवहार सादगी भरा था ,तैलंग स्वामी तो काशी में नंग धडंग रहते थे ,करपात्री जी एक बार दोनों हाथ को जोड़ कर जो भिक्षा में मिलता उसी से गुजरा कर लेते थे।इनमे से सभी संत सादगी में जिए सादगी में मरे।किसी ने अपना कोई आर्थिक साम्राज्य नहीं बनाया न ही अपने रिश्तेदारों को उत्तराधिकार दिया।
अब आईये निर्मल बाबा , रामपाल ,धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ,चंद्रास्वामी , राधे माँ ,गुरमीत सिंह,साईं, और एक राजनीतिक जयगुरुदेव के हजारो करोड़ का आश्रम जिसे एक ड्राइवर ने कब्जा लिया,साधको के हिस्से कुछ नही आया।युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बाकायदे मुकदमा जितवाकर एक शंकराचार्य बनवाये गये।हजारों प्राचीन मठो,मन्दिरो और आश्रमो,के साथ अखाड़ों पर भी ढोंगी सनातन विरोधी बाबा के रूप में काबिज है।यह हिंदू मान बिंदुओं पर सोची-समझी साजिशी हमले थे।आजकल सैकड़ो की संख्या में मठाछारी, टीवीबाज बाबाओ के पास किसी के पास मच्छर मारने की भी सिद्धि नहीं है।न ही साधना या तपस्या का कोई रिकार्ड है।बस महिमाण्डन और ठगी-सेखुलर विद्या के सहारे मौज मारे चले गए।उनकी योग्यता इतनी ही है कि वे तमाम समाजवादी,कॉन्ग्रेसी,या कम्युनिष्ट के निकतत्स्थ हैं जो छद्म-धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदूत्व में कमी निकालते रहते है और परकीय मजहबो की बड़ाई करते रहते है।सबके सब अथाह सम्पति के मालिक बने।किसी ने समाज देश को सही दिशा नहीं दी। बेवकूफ लालची गरीब ,अमीर लोगो को गुमराह कर अपना उल्लू सिद्ध किया।इनको यहां तक कौन लाया जरा सोचिये।इन सत्तर सालों में बड़े तरीके से ठगों को सनातन समाज पर स्थापित करने का प्रयत्न किया गया।
जनता इन ढोंगियों के पास केवल धन ,बैभव,भौतिक उन्नति की लालसा में जाने लगी न कि अध्यात्म पाने।ये कालनेमि किसी सड़क छाप जादूगर की तरह भव्य वैभव से आम जनों को सम्मोहित कर उल्लू बनाते रहे,बस एक प्रकार का सामूहिक सामुदायिक भाव इससे ज्यादा कोई जुड़ाव नहीं।जैसी प्रजा होगी वैसे ही समाज की स्थापना होगी।जाकिर नाईक ,बरकाती , अंसार राजा ,इमाम बुखारी जिनके पाक है या नापाक उनके साथ कोई मुकदमे द्वारा बना शंकराचार्य,कोई त्यागी,कोई पकौड़ीलाल,त्यागी टाइप के अवतारी भी जगद्गुरु घोषित होने लगे।संगठित समाज न होने की वजह से इनसे बचने का कोई रास्ता बनाना सम्भव ही नही था।
यह राम,कृष्ण,गौतम,महावीर,नानक,गुरु गोविंद सिंह की संतान और परंपरा वाले लोग हैं, ,अगस्त्य ,भारद्वाज ,अत्रि , बिस्वामित्र ,बसिष्ठ की खोज करें।यह चैतन्यानंद,योगियों,तत्वविदों,परानुभूति-सम्पन्नों,ज्ञानियों,हंसो,परमहंसो,उच्च ईश्वरीय अनुभूतियों,तुरीयावस्था तक पहुंचे महात्माओं,योगियों,सन्तो की धरती है।यह पुण्यभूमि है।इसे समाप्त करने की साजिश् चल रही है।
धर्म को नष्ट करने के कितने षड्यंत्र चल रहे है।संतों को बदनाम करने का तरीका निकाला गया है।उनके प्रति आस्था को नष्ट करने के गहरे दूरगामी वैश्विक षड्यंत्र किये गए हैं।उसमे बड़े लोग शामिल है।जिन्हें भारत की सनातन व्यवस्था को किसी भी तरह खत्म करना है
आज भी बहुतेरे सिद्ध-महात्मा है जो निष्कामी है।आशीर्वाद नहीं बाटते,झोपडी और कंदराओ में है।अर्ध नंग और पुरे नंग है।दूर दराज की पहाड़ियों,गांवों,जंगलों में रहते है।असल तपस्वी प्रचार लिप्सा,लोक लिप्सा से दूर ईश्वर-प्रणिधान में लगे हैं।उनकी शक्ति से,उनकी साधना से यह पुण्य-भूमि भारत बचा है किसी अय्याश,रंगीले ढोंगी-बालात्कारी टीवीबाज के बड़-वचनों से नही।
देश के बंटवारे के बाद मौलिक सांस्कृतिक धारणाओं वाले सन्तो को इग्नोर करने की इस प्रवृत्ति के प्रतीक का ढह जाना जरूरी है।निश्चित ही यह सनातन के महान प्रतीको को,महान स्वरूप पर, महान प्रकृति पर,महान चित्र पर,चरित्र और स्वरूप पर लगातार वार करता रहा है।राम-रहीम,राम-रहमान,गंगा-जमुनी कहकर सनातन मूल समाज को कन्फ्यूज स्यूडो-सेखुलिरिज्म का यह जाल आज टूट रहा है।
असल मे सेखुलरिज्म एक 'अननेचुरल वाद, है जिसे एजुकेशन के मॉध्यम से,फिल्मों से,मीडिया से,सिनेमा से, साहित्य से भारतीय समाज पर थोपा गया है।ऐसे पाखंडियों का महिमामण्डन करके ही कॉन्ग्रेसी 70 साल तक शासन में रहे थे।वास्तव में कुछ पेशेवर तार्किक,सरकारी इतिहासकार,साहित्यकारों ने त्याग,तपस्या और साधना,संयम के बजाय स्युफिज्म-स्युडिज्म पर जोर देकर सन्यास के प्राचीन फ्लो को नष्ट करना शुरू कर दिया।उसके पीछे की दुर्भावना नेहरुआना हिंदू विरोधी सोच थी।सेकुलरिज्म के चलते वे भूल गए कि दूसरे मजहबों(जिनकी आस्था भारत भूमि में नही है न ही वे यहां पैदा हुए हैं)में सेक्स,त्याग,और तपस्या की अवधारणाएं भिन्न है।उनका दूसरा उद्देश्य धर्मान्तरण का माहौल बनाना भी था।जिसका आंतरिक उद्देश्य यह था कि सारे 'मजहब एक समान है,यह प्रचारित करना था।इस सोच का घटिया नतीजा राम-रहीम, साईं, आदि के रूप में सामने है।
बेसिकली भारत मे 'संतत्त्व,बहुत ही सज्जनता,शालीनता से प्राकृतिक भारत के ज्ञान का प्राकृतिक स्वरुप है।वह ज्ञान,तप,संयम,निष्काम जीवन का प्रतीक है।सेखुलरिष्ट बाबा-वाद ने प्राचीन स्वरूप का,भारतीय संस्कृति का,भारतीय समाज का,भारतीय व्यवस्थाओं का,भारतीय परंपराओं का,भारतीय जीवन शैलियों, का हिंदू प्रतीकों को जितना नुकसान किया है उतना किसी भी सामाजिक आक्रमण ने नही किया।(पढ़ें मूलाधार पर हमले-भाग-1-2)कोई रामपाल हो,कोई राम-रहीम हो,कोई बंदा कोसरिया हो,कोई साईं हो,कोई राधे माँ हो इस तरह के गंगा-जमुनी के नाम पर हिंदू-मुस्लिम एकता के नाम पर,तुस्टीकरण के लिए जो धमाल-मिक्स कल्चर लेकर आते हैं।वह एक-तरफा सनातन समाज को बर्बाद करता है।
आप ध्यान से दिखियेगा इनमे से बहुत से अपराधी कैसे बड़े बन जाते हैं।वे शुरुआत से ही ढोंगी होते है।वे किसी न किसी नेता(कांग्रेस के निकट होते हैं) को पकड़ते है या उसके द्वारा पोषित होते है।वे जैसे भी होते हो किंतु पैसा बटोरने-हथियाने का काम करते हैं।वे भव्यता की स्थिति बना ले जाते हैं।आप उनके रिश्तेदार,निकटस्थ,सम्बंधित लोगो पर नजर रखे सारा रहस्य खुल जायेगा।प्राचीन-प्राकृतिक सलीका तपस्या,योग,ध्यान,साधना,सेवा,त्याग,अहिंसा,नैष्कर्म्य जीवन-पद्धति तमाम पूजा-पद्धतियां छोड़ कर के अपना धंधा चमकाने में लग जाते हैं।वे कदापि सन्त नही है।आप थोड़ा गौर से देखेंगे कि इसकी परम्परा कहां से शुरू हुई।क्योंकि ब्रम्हचर्य के साथ जिसके प्रयोगों ने इस तरह के ठगों को मान्यता देना शुरू कर दिया था।यह एक तरह से अनैतिकता को सरकारी मान्यता जैसी थी।
अच्छा होगा कि राम-रहीम जैसो को फांसी जैसी सजा दी जाए जिससे इस तरह का सेखुलर-वाद नष्ट हो।नाटकी सेकुलरिज्म पूर्ण तौर पर भारत से नष्ट हो और प्राचीन भारतीय सनातन शैली उदित हो।जिसमे त्याग,तपस्या,संयम, ब्रम्हचर्य,योगादि ऊंची साधनाएम,ऊंचे आदर्श भारतीय समाज में पुनः प्रस्थापित हों।यह इस तरह की अप्राकृतिक धारणा बनाकर इन वर्षों के शासन ने समाज मे वह चीजें स्थापित करने की कोशिश की थी जो भारत-भूमि का लगातार नुकसान कर रही थी।कुल मिलाकर राम-रहीम,रामपाल,निर्मल जैसो की सजा हमारे सनातन समाज के लिए अच्छे सिम्टम्स है,जल्द ही इसी बहुत सारा कूड़ा और साफ हो जाएगा। शायद मोदी के आने के साथ ही परम-चेतना भी जाग गई है जो इस तरह के लोगो को ढूंढ कर सजा दे रही है।अब केवल 'राम, कोई रहीम नही।जागृत और पूर्ण परम् वैभव युक्त हिंदू राष्ट्र शांत वसुधैव कुटुंब सफल होगा।
साभार: पवन त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10155549545841768&id=705621767
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