Friday, 5 May 2017

शिवाजी द्वारा औरंगजेब के सिपहसालार आमेर के राजा मिर्जा जय सिंह को लिखा पत्र

#Official_सप्तर्षि_Saptarshi

शिवाजी द्वारा औरंगजेब के सिपहसालार आमेर के राजा मिर्जा जय सिंह को लिखा पत्र
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विकीपीडिया में एक पत्र प्राप्त हुआ है, जिसे शिवाजी ने आमेर के राजा जयसिंह को भेजा था जिसे राजा जयसिंह ने  3 मार्च 1665 को प्राप्त किया था

शिवाजी का पत्र बरसों तक पटना साहेब के गुरुद्वारे के ग्रंथागार में रखा रहा,.बाद में उसे “बाबू जगन्नाथ रत्नाकर “ने सन 1909 अप्रेल में काशी में काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित किया, फिर सन 1985 में अमरज्योति प्रकाशन गाजियाबाद ने पुनः प्रकाशित किया था

राजा जयसिंह आमेर का राजा एवं राजा मानसिंह का नाती था, जिसने अपनी बहिन अकबर से ब्याही थी .जयसिंह सन 1627 में गद्दी पर बैठा था .और औरंगजेब का मित्र था .औरंगजेब ने उसे 4000 घुड सवारों का सेनापति बना कर “मिर्जा राजा “की पदवी दी थी .

औरंगजेब पूरे भारत में अपना इस्लामी शासन फैलाना चाहता था.लेकिन शिवाजी के कारण वह सफल नही हो रहा था उसने पाहिले तो शिवाजी से से मित्रता करनी चाही .और दोस्ती के बदले शिवाजी से 23 किले मांगे .लेकिन शिवाजी ने उसका प्रस्ताव ठुकराते हुए 1664 में सूरत पर हमला कर दिया .और मुगलों की वह सारी संपत्ति लूट ली जो उनहोंने हिन्दुओं से लूटी थी

फिर औरंगजेब ने अपने मामा शाईश्ता खान को 40,000 की फ़ौज लेकर शिवाजी पर हमला करावा दिया, किंतु शिवाजी ने पूना के लाल महल में उसकी उंगलियाँ काट दीं.और वह भाग गया

फिर औरंगजेब ने जयसिंह को कहा की वह शिवाजी को परास्त कर दे .जयसिंह खुद को राम का वंशज मानता था .उसने युद्ध में जीत हासिल करने के लिए एक  चंडी यज्ञ भी कराया .शिवाजी को इसकी खबर मिल गयी थी जब उन्हें पता चला की औरंगजेब हिन्दुओं को हिन्दुओं से लड़ाना चाहता है .जिस से दोनों तरफ से हिन्दू ही मरेंगे .तब शिवाजी ने जयसिंह को समझाने के लिए जो पत्र भेजा था ,उसके कुछ अंश हम आपके सामने प्रस्तुत कर रहे है –

1 -जिगरबंद फर्जानाये रामचंद -ज़ि तो गर्दने राजापूतां बुलंद .

हे रामचंद्र के वंशज ,तुमसे तो क्ष त्रिओं की इज्जत उंची हो रही है .

2 -शुनीदम कि बर कस्दे मन आमदी -ब फ़तहे दयारे दकन आमदी .

सूना है तुम दखन कि तरफ हमले के लिए आ रहे हो

3 -न दानी मगर कि ईं सियाही शवद-कज ईं मुल्को दीं रा तबाही शवद ..

तुम क्या यह नही जानते कि इस से देश और धर्म बर्बाद हो जाएगा.

4 -बगर चारा साजम ब तेगोतबर -दो जानिब रसद हिंदुआं रा जरर.

अगर मैं अपनी तलवार का प्रयोग करूंगा तो दोनों तरफ से हिन्दू ही मरेंगे

5 -बि बायद कि बर दुश्मने दीं ज़नी-बुनी बेख इस्लाम रा बर कुनी .

उचित तो यह होता कि आप धर्म दे दुश्मन इस्लाम की जड़ उखाड़ देते

6 -बिदानी कि बर हिन्दुआने दीगर -न यामद चि अज दस्त आं कीनावर .

आपको पता नहीं कि इस कपटी ने हिन्सुओं पर क्या क्या अत्याचार किये है

7 -ज़ि पासे वफ़ा गर बिदानी सखुन -चि कर्दी ब शाहे जहां याद कुन

इस आदमी की वफादारी से क्या फ़ायदा .तुम्हें पता नही कि इसने बाप शाहजहाँ के साथ क्या किया

8 -मिरा ज़हद बायद फरावां नमूद -पये हिन्दियो हिंद दीने हिनूद

हमें मिल कर हिंद देश हिन्दू धर्म और हिन्दुओं के लिए लड़ाना चाहिए

9 -ब शमशीरो तदबीर आबे दहम -ब तुर्की बतुर्की जवाबे दहम .

हमें अपनी तलवार और तदबीर से दुश्मन को जैसे को तैसा जवाब देना चाहिए

10 -तराज़ेम राहे सुए काम ख्वेश -फरोज़ेम दर दोजहाँ नाम ख्वेश

अगर आप मेरी सलाह मामेंगे तो आपका लोक परलोक नाम होगा

Courtesy: https://m.facebook.com/groups/241741922903017?view=permalink&id=271493699927839

WHERE IS 6177BCE OLD CELEBRATION HELD IN BHARATAM

It is Pooram Time. I used to enjoy playing with the elephants, the Ola Padakkam (crackers) and the silvery rockets, glinting in the Sun, being thrown into the sky in 1959 as a five years old. At that time, I knew two of the elephants, personally. The largest number of elephants (108), though, are traditionally to gather at the Bharatha Temple at Koodalamanikyam which is a few hours drive from Thrichur, Guruvayoor is approximately half way between the two. My last visit was in 1994 when I was visiting from Bangalore as a Long Range Planning Advisor  to Dhanalakshmi Bank.

"Q. WHERE IS 6177BCE OLD CELEBRATION HELD IN BHARATAM?
A. AT ""POORAM"" FESTIVAL IN THRISSUR [TRICHUR] IN KERALA ...
AGAIN CELEBRATING ON 5TH MAY 2017 SINCE LAST 8194 YEARS!! Why the Hindus of Bharatam should visit kerala to see this festival is because it had unchanged way of Vedic life since 8194 years since Lord Parashurama established the KOLLAMB ERA!!!
Thrissur, the name derived from 'Tiru-Shiva-Perur' (the town with the name of Lord Shiva) is the cultural capital of Kerala. It is an important cultural centre, and is known as the "cultural capital" of Kerala. The name Thrissur is derived from "Thiru-Shiva-Perur", which literally translates to "The city of the Sacred Siva:.

In ancient days, Thrissur was known as Vrishabhadripuram as well as Kailasam (Mount Kailas, the abode of Lord Siva in South). From very early times Thrissur has been a centre of learning. With the decline of Buddhism and Jainism and the revival of Hinduism, Thrissur became an important centre of Sanskrit learning. It is believed that the great Hindu Saint, Adi Shankara, was born in answer to the prayer made by his mother at Vadakkunnathan temple. Sankara's disciples Hastamalaka, Thotaka, Padmapada and Sudhachara established four Madhoms (mutts) in the city, namely the Northern Madhom, the Middle Madhom, the In-Between Madhom and the Southern Madhom respectively.

Other festival of this city "Puli Kali" (Tiger Play) and "Kummatti" (Mask Dance) that form part of Onam celebrations, the national festival of Kerala (Aug-Sept). They consist of enthusiastic processions of men painted and made-up as tigers, all members of different clubs that organize the event. Thousands gather to watch the 'tigers' dancing to the beat of drums.

The center of the city is the Vadakkunnathan temple located on a small hillock. Thrissur Round (Swaraj Round) is one of the largest roundabouts in the world.

Thrissur the heritage

The legend: Lord Parasurama after reclaiming kerala divided 64 gramas (domains) and the sivapuram gramam was the origin of Thrissur. The puram turned to peroor and Thrissivaperoor . Thiru is honorary, may be to lord "Vadakunathan". Thrissur was having such a natural drainage system. The planning of the "gods own town" was immaculate.

Prof. Gaddis, the renowned town planner from London illustrates about "vadakunnathan" and the Swaraj round. The temple is over a small hillock. The temple premise is large and plain having a strong & gigantic compound wall. The ground surrounding the temple is the heart of the town and the works as lungs to the people. The boundaries of the rounded ground are like a belly belt. And from this belt, exactly like the blood vessels the roads start to different directions. Lavishly praising to the natural drainage system.
Vadakkumnathan Temple

One of the oldest temples in the state, the Vadakkumnathan Temple is a classical example of the Kerala style of architecture and has many decorative murals and works of art. This is the venue of the world famous Pooram festival, celebrated annually in April - May. The fireworks at the Pooram are a spectacular sight. Non-Hindus are not allowed inside the temple. (Open: 04.00 - 10.30 am & 05.00 - 08.30)
Its most prominent feature is the Vadakkumnathan Kshethram or temple, which has Shiva as its presiding deity. Many rulers and dynasties beginning with the Zamorins of Kozhikode, Tipu Sultan of Mysore and Europeans including the Dutch and the British have had a hand in moulding the destiny of this region. Raja Rama Varma, popularly known as Sakthan Thampuran was the architect of the present Thrissur town.

The Pooram Festival at the village temple in March / April features a ceremonial pageant of over 60 tuskers carrying the images of the deities of 23 neighbouring temples.

The Thrissur Pooram Co-ordination Committee was formed to facilitate the co-ordination of 8 different temples of pooram originating from 1) Kanimangalam 2) Chiyyaram 3) Laloor 4) Ayyanthole 5) Naithalakkavu 6) Choorakkottukara 7) Chembukavu 8) Kizhakkumpattukara and to conduct Thrissivaperur Pooram in a befitting manner.

(Rayvi Kumar)

Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10156120352523082&id=683703081

मुस्लमानों की मगरूरी, ईसाइयों का मुगालता, अंगरेजों का भ्रमजाल

मुस्लमानों की मगरूरी
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अंबेडकर के भ्रम
डॉ. भीमराव अंबेडकर 1946 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ में दो उदाहरण देते हैं। पहला उदाहरण-ख्वाजा हसन निज़ामी ने 1928 में हिन्दू-मुस्लिम संबंधों पर जारी एक घोषणापत्र में ऐलान किया कि मुसलमान हिन्दुओं से अलग हैं। वे हिन्दुओं से नहीं मिल सकते। मुसलमानों ने कई जंगों में खून बहाने के बाद हिन्दुस्तान पर फतह हासिल की थी और अंगरेजों को हिन्दुस्तान की हुकूमत मुसलमानों से मिली थी। मुसलमान एक अलहदा कौम हैं और वे अकेले ही हिन्दुस्तान के मालिक हैं। वे अपनी अलग पहचान कभी भी खत्म नहीं करेंगे। उन्होंने हिन्दुस्तान पर सैकड़ों साल राज किया है। इस लिए मुल्क पर उनका निॢववाद और नैसॢगक हक है। दुनिया में हिन्दू एक छोटा समुदाय हैं। वे गान्धी में आस्था रखते हैं और गाय को पूजते हैं। हिन्दू स्व-शासन में यकीन नहीं रखते। वे आपस में ही लड़ते झगड़ते रहे हैं। वे किस क्षमता के बूते हुकूमत कर सकते हैं? मुसलमानों ने हुकूमत की थी, और मुसलमान ही हुकूमत करेंगे?...(टाइम्स ऑफ इंडिया 14 मार्च, 1928)

दूसरा उदाहरण-सन् 1926 में एक विवाद खड़ा हुआ कि 1761 में हुए पानीपत के तीसरे युद्ध में वास्तविक जीत किसकी हुई थी? मुसलमानों का सच यह था कि युद्ध में उनकी भारी जीत हुई थी। एक तरफ अहमद शाह अब्दाली और उसके एक लाख सैनिक थे तथा दूसरी तरफ मराठों के 4 से 6 लाख सैनिक थे। इसके जवाब में हिन्दुओं ने कहा कि भले ही वक्ती तौर पर वे पराजित हुए थे, लेकिन अंतिम जीत उनकी ही हुई थी, क्योंकि उस जंग ने भविष्य के तमाम मुस्लिम हमलों को रोक दिया। मुसलमान हिन्दुओं के हाथों हार मानने को तैयार नहीं थे। उन्होंने दावा किया कि वे हिन्दुओं पर हमेशा भारी साबित होंगे। हिन्दुओं पर मुसलमानों की पैदाइशी श्रेष्ठता साबित करने के लिए नजीबाबाद के मौलाना अकबर शाह खान ने पूरी संजीदगी के साथ पेशकश की कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच जंग होनी चाहिए-परीक्षणकारी स्थितियों में पानीपत की चौथी जंग उसी जंग के मैदान में। मौलाना ने अपनी धमकी पर अमल करके यह कहते हुए पंडित मदन मोहन मालवीय को चुनौती दी: ‘मालवीय जी! यदि आप पानीपत की जंग के नतीजों को लेकर झूठे दावे जारी रखते हैं तो मैं इसके लिए एक आसान और शानदार तरीका बता सकता हूं। आप अपने सुविख्यात असर और रसूख का इस्तेमाल करते हुए ब्रिटिश सरकार को इस बात के लिए राजी करें कि वह पानीपत के चौथे युद्ध की इजाजत दे, जिसमें सरकार के दखल की कोई गुंजाइश न हो। मैं हिन्दुओं और मुसलमानों के जुझारूपन और हौसले के तुलनात्मक परीक्षण को तैयार हूं। भारत में सात करोड़ मुसलमान हैं। मैं तयशुदा तारीख पर 700 मुसलमान लेकर पानीपत के मैदान में पहुंच जाऊंगा। वे 700 मुसलमान भारत के सात करोड़ मुसलमानों की नुमाइंदगी कर रहे होंगे। और, चूंकि देश में हिन्दुओं की संख्या 22 करोड़ है, लिहाजा आप 2200 हिन्दुओं को मैदान में ला सकते हैं। वाजिब यह होगा कि युद्ध में लाठियों, मशीनगनों और बमों का इस्तेमाल न करके उनकी जगह तलवारों, भालों, तीर-कमानों और छुरों का इस्तेमाल किया जाए। अगर आप हिन्दू सेना के सर्वोच्च सेनापति का पद स्वीकार नहीं कर सकते तो यह पद सदाशिवराव या विश्वासराव के वंशजों में से किसी एक को सौंप सकते हैं, ताकि उन्हें 1761 के युद्ध में हारे अपने पुरखों की हार का बदला लेने का एक मौका मिल सके। लेकिन आप युद्ध देखने जरूर आएं, ताकि उस युद्ध के परिणामों को देखकर आप अपना नजरिया बदल सकें। मुझे भरोसा है कि उस युद्ध के नतीजों से मुल्क में मौजूदा वैमनस्य और झगड़ों का अन्त जरूर हो जाएगा। निष्कर्षत: मैं यह गुजारिश करूंगा कि मेरे उन 700 आदमियों में, जिन्हें मैं लाऊंगा, एक भी अफगानी पठान नहीं होगा, जिनसे आप बेइंतहा खौफ खाते हैं। इस लिए मैं केवल शरियत के सख्त पाबन्द अच्छे परिवारों के भारतीय मुसलमानों का लेकर ही आऊंगा।’...(टाइम्स ऑफ इंडिया, 20 जून 1926)

खुली पोल
अंबेडकर हिन्दू-विरोधी फोबिया से ग्रस्त और मुसलमानों की डींगों से बुरी तरह प्रभावित थे। उनके लिए इससे ज्यादा और क्या दयनीय होगा कि उनकी खुद की जाति महार, जो पहले अछूत मानी जाती थी, एक मशहूर लड़ाका जाति है। यहां तक कि भारतीय सेना में तो महार रेजिमेंट तक है। केवल 2200 महार, जो मराठों की श्रेणी में ही आते हैं, आराम से मुसलमानों का गुरूर तोड़ सकते थे। लेकिन अंबेडकर ने ऐसा नहीं किया। बहु प्रचारित 1929 के मुस्लिम दंगे ऐसा ही एक और उदाहरण हैं। दंगों से पहले मुसलमानों ने डींग हांकी थी कि 29 हिन्दुओं पर एक अकेला मुसलमान ही भारी है, और वह भी एक आम भारतीय मुसलमान। एक पठान तो 100 हिन्दुओं के छक्के छुड़ा सकता है। और फिर हुआ क्या? दंगे हुए तो वे पठान ही थे, जो जान बचाते भाग रहे थे और दुहाई दे रहे थे कि दंगे फौरन थमें।

पानीपत की तीसरी लड़ाई का सच
जहां तक पानीपत के युद्ध का संबंध है, हरेक को यह तथ्य याद रहे कि युद्ध के केवल चार दिन बाद ही अहमद शाह अब्दाली ने पेशवा बालाजी बाजीराव को एक पत्र भेजा था, जिसमें मेल-मिलाप की बात कही गई थी। एक विजेता ऐसा क्यों लिखेगा? जवाब बहुत आसान है। उसे यह अच्छी तरह मालूम था कि मराठे बदला जरूर लेंगे और वे अपनी हार का मुंह तोड़ जवाब देने में पूर्णत: सक्षम हैं। लड़ाई के कुछ महीनों बाद ही बालाजी बाजीराव का निधन हो गया और जब उनके 16 वर्षीय बेटे माधवराव को पेशवाई सौंपी गई तो उसी अहमद शाह अब्दाली ने उनके पास सम्मानपत्र भेजा। उस पत्र के साथ बहुत सी बेशकीमती सौगातें भी भेजी गईं। अंबेडकर यह इतिहास बहुत आसानी से भूल गए। संभव है कि उन्होंने केवल अंगरेजों द्वारा लिखित इतिहास ही पढ़ा होगा। लेकिन हमें यह याद रखना होगा कि पानीपत के युद्ध के बाद खुद अब्दाली ने मराठों की बहादुरी की प्रशंसा की थी और स्वीकार किया था कि यह युद्ध अभूतपूर्व था।

जरा देखिए तो मगरूरी!
सर सैयद अहमद, शायर हुसेन हाली और पत्रकार वहीवुद्दीन सलीम के लेखन में मगरूरी साफ-साफ देखी जा सकती है: हम हिन्दुस्तान आए और हमने इस मुल्क पर हुकूमत की। वहीउद्दीन सलीम अपनी एक कविता में कहते हैं: गरचे हममें मिलती-जुलती तेरी कौमियत न थी, तूने लेकिन अपनी आंखों पर लिया हमको बिठा, अपनी आंखों पर बिठाकर तूने इज्जत दी हमें। कवि अल्ताफ हुसेन अली का परिवार सैकड़ों साल भारत में रहा। लेकिन वह अभी भी उसी सुर को अलापे जा रहे हैं। सर सैयद अहमद पर भी यही बात लागू होती है। कुछेक मामलों में वे सही हो सकते हैं। लेकिन ज्यादातर मुसलमान धर्मांतरित हिन्दुओं की औलादें हैं। ऐसे अहमन्यताभरे विचार सभी मुसलमानों के क्यों और कैसे हो सकते हैं? सच तो यह है कि भारतीय मुसलमानों का उन विदेशी मुसलमानों से कुछ लेना-देना नहीं है, जो या तो खुद हमलावर थे, या जिन्होंने विदेशी मुसलमान शासकों के नुमाइंदे के तौर पर भारतीय क्षेत्रों पर हुकूमत की। उनमें केवल एक ही बात साझी है-‘इस्लाम’।

ईसाइयों का मुगालता
मजे की बात तो यह है कि भारतीय ईसाई भी इस मुगालते को पाले हुए हैं कि उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान डेढ़ सौ सालों तक भारत पर हुकूमत की, या कि उन्होंने गोवा पर चार शताब्दियों तक शासन किया।

गलती सुधार रहे
इस परिप्रेक्ष्य में तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ 1971 में बांग्लादेशियों के संघर्ष को देखे जाने की जरूरत है। पाकिस्तान में उर्दू और पंजाबियों के वर्चस्व के खिलाफ अपनी पहचान और मातृभाषा की रक्षा के लिए उठ खड़े हुए सिंधियों के संघर्ष को भी इसी संदर्भ में देखने की जरूरत है। सिंध के मुसलमानों ने अब हिन्दू राजा दाहिर को अपना पूर्वज मानना और मुहम्मद बिन कासिम को एक हमलावर के रूप में मानकर उससे घृणा करनी शुरू कर दी है।

अंगरेजों का भ्रमजाल
अंगरेजों ने हिन्दुओं को भरमाने के लिए यह दुष्प्रचार बड़े पैमाने पर किया कि अगर वे भारत छोडक़र गए तो मुसलमान अतीत की भांति उनपर हुकूमत करना फिर शुरू कर देंगे। उन्होंने मुसलमानों को यह कहकर बहकाया कि हिन्दू अतीत के मुसलमानी शासन का बदला तुमसे चुकाएंगे। इस तरह उन्होंने एक तस्वीर साफ बना दी-मुसलमान यानी बहादुर और हिन्दू यानी डरपोक तथा व्यापारी हिन्दू जिन्हें सिर्फ पैसे बनाने से मतलब होता है और जिनकी कोई इज्जत नहीं। अंगरेजों द्वारा लिखे गए इतिहासों, उनकी जीवनियों, कहानियों की किताबों और उपन्यासों में इसे जगह-जगह देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए ‘मदर इंडिया’ और ‘वरडिक्ट ऑफ इंडिया’ पढक़र देखिए।

Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=466159843725928&substory_index=0&id=436564770018769

Thursday, 4 May 2017

The pilgrimage to Kashi starts from Rameshwaram! 

The pilgrimage to Kashi starts from Rameshwaram! 

It is a custom to first go to Rameshwaram and make a Sankalpa (volition) and collect the sand from the sea near Agni Theertha. The pilgrim carries the sand from Rameshwaram to Kashi and immerses the sand in Ganga. After the dharshana of Kashi Vishwanatha, Maa Vishalakshi and Maa Annapurna, the pilgrim will offer his obedience to Maa Ganga and carry Ganga water in a copper container. He is supposed to make a trip again to Rameshwaram and use the Ganga water to anoint the Sri Ramanatha Swamy at Rameshwaram.

Is there any significance in this practice or is it just a blind tradition followed???

Let us find out and before that a small story about Ganga will help us understand about why we need to displace the sand and water geographically!!!

In the Navama Skanda (9th Canto) of Srimad Bhagvatham is the story of Ganga.  As per the legend, Sagara Chakraavarthi of Ikshvaku dynasty was ruling Ayodhya. He had two wives Keshini and Sumathi. Keshini had a son Asamanjasa while Sumathi was blessed with 60000 sons.

Once Sagara performed Aswamedha Yagna and as a part of the Yagna ritual the sacrificial Horse was to be released to wander in the nearby kingdoms. The Kings of those kingdoms had to either surrender and offer gifts or tie the wandering horse and fight against the King. The sacrificial horse after passing through many kingdoms finally arrives at the ashrama of Kapila Muni which is now Rameshwaram.

Kapila Muni is seated in the seat of silence and the 60000 sons of Sagara come looking for the horse. Assuming Kapila Muni who was sitting with his eyes close to have captured the horse, they shout at him disturbing his transcendental state. Enraged at being disturbed Kapila Muni opens his eyes resulting in 60000 sons of Sagara burning down to ashes.

Worried, Sagara sends his grandson Anshumantha (son of Asamanjasa) to find the whereabouts of his 60000 sons and also the sacrificial Horse. Anshumantha finally reaches the ashrama of Kapila Muni and get to know about the incidence. Kapila Muni advises him that only Vishnupaadabhavi Ganga can wash off the sins of his uncles. So Ganga has to flow over the heap of ash.

Sagara, his son Asamanjasa, then Anshumantha and his son Dileepa make many attempts to bring the celestial river Ganga down, but do not succeed. Finally King Bhagiratha, son of Dileepa takes up the task performs a severe penance and is successful. He routed it to Ganga Sagara (which is now called Bay of Bengal)

It is said that Ganga after it enters Sagara would touch the shore in Rameshwaram near Agni Theertham where the ashes of the ancestors of Bhagiratha were present. In Treta Yuga when Shri Rama and his vanara sena built the Sethu (bridge) to go to Sri Lanka, Ganga could not reach the sands of Rameshwaram. Hence it was made a custom for every pilgrim to carry the sand which has the ashes of 60000 sons of Sagara from Agni Theertham to Kashi and immerse in Ganga.

Now why should we bring Ganga water to anoint Sri Ramanatha Swamy at Rameshwaram???        

As told earlier the waters of Ganga does not reach Rameshwaram and in due course there were many rivers like Padma, Meghna, Godavari, Krishna, Irrawaddy and Kaveri draining out into Bay of Bengal. So no longer was it Ganga Sagar it became the confluence of many rivers apart from Ganga. Hence the anointment of Sri Ramanatha Swamy at Rameshwaram is done from the original Ganga water brought by the pilgrims without being amalgamated with other river waters.

Could be a strange custom but we did take the sand of Rameshwaram and immerse it at Kashi Ganga, now we have carried with us the small copper pots filled with Ganga water to anoint Sri Ramanatha Swamy at Rameshwaram.....When???

Waiting again for his graceful call..... !!!

Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1547555855263569&id=100000275079859

विश्व विजेता शालिवाहन परमार भाग-२

©Copyright इतिहासकार मनिषा सिंह की कलम से मेरे द्वारा लिखे गए किताब विश्व विजेता शालिवाहन परमार भाग-2 ।
एक अनुरोध हैं इस पोस्ट को पढने के बाद कृपया कुतर्क ना दे मैं प्रमाण सहित लिखी हूँ और कुतर्क देना हैं तो राष्ट्रीय इतिहास मंच पर मुझसे बहस कर लीजियेगा बहस के लिए सादर आमंत्रित हैं ।
भाग-1 का लिंक -: https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1829228347399006&set=a.1415367162118462.1073741828.100009355754237&type=3&theater  , and on this blog http://parichaydharmabharat.blogspot.in/2017/04/blog-post_56.html?m=1

जय श्री राम मित्रों मैंने पिछले भाग में सम्राट शालिवाहन परमार के इतिहासों के साथ जो छेड़खानी किया गया था मिटाने के लिए उसको उजागर की थी एवं साथ ही में ये भी तथ्य संग्रह कर के आप सबके सामने प्रस्तुत की थी की शालिवाहन परमार आखिर थे कौन उनका राज्य कहा से कहा तक था । आज मैं पुनरहा सम्राट शालिवाहन परमार की गाथा लिखूंगी आज के पोस्ट में ये तथ्य रखुँगी उनकी युद्ध कब कहा और किसके साथ हुआ था ।     

एक महान सभ्यता पर तब तक विजय प्राप्त नहीं किया जा सकता है जब तक कि वो स्वयं अंदर से नष्ट नहीं हो जाता" भारतीय सभ्यता को छोड़कर सभी सभ्यताओं का यही हस्र हुआ । इस ऐतिहासिक घटना ने उन विलुप्त सभ्यताओं के सामाजिक संरचना, स्तरीकरण और कार्यात्मक पहलुओं के उद्देश्य विश्लेषण के लिए कहा गया है । दुनियाभर के तमाम वृहत्तम सभ्यताओं का नाश होगया जैसे मिस्र, ग्रीक और रोमानियाई सभ्यताओं को गेर्मानिया (वर्त्तमान जर्मन) क्षेत्र में शासन करनेवाले “बर्बर हूण के कबीलों" (Germanian Barbarians) ने रातो रात रोमन सभ्यता का समूल नाश कर दिया था रोमन विजय के बाद इन अश्शूरों ने रोमानियों को परास्त कर कोलिज़ीयम का क्षेत्र निर्दोष ग्लेडियेटर्स (रोम के योद्धाओ को ग्लेडियेटर्स कहा गया हैं) के रक्त से भिगोया गया था 64 दिन तक उत्सव मनाया जहा रोज अश्शूरों के विरुद्ध लड़ने वाले रोम सैनिको के परिवारों के औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार किया जाता था और उस परिवार के मर्दों को चाहे बुजुर्ग हो अथवा जवान उन्हें नर्क यातना दिया जाता था जिससे धीरे धीरे मृत्यु हो रोम का क्षेत्र मानो पृथ्वीलोक का यमलोक बन गया था । वही दूसरी और भारतीय संस्कृति जहाँ धरती को माँ का दर्जा दिया जाता था जहाँ दूध की नदियाँ बहती थी उपनिषद मानवता को प्रोत्साहित करता था ।
इस देश की महान संस्कृति ब्रह्म-क्षात्र बल पे टीका था वामपंथ इतिहासकारों के जन्मदात्री पिता Early History of India V.A.Smith ने भी माना हैं: ”The most systematic record of Indian historical tradition is that preserved in the dynastic lists of the puranas. In Kshatriya varna two most valiant and courageous Kings Vikramaditya and Salivahana Kings of Parmara Dynasty protect India from invaders, protect Dharma and culture of the India.” अर्थात भारतीय समाज को आक्रमणकारियों से रक्षा करने हेतु, धर्म और भारतीय संस्कृति की रक्षा करने के लिए क्षत्रिय वर्ण में दो अवतार जन्म लिए सम्राट विक्रमादित्य एवं शालिवाहन परमार (परमार राजवंशीय शासक) जिनकी वीरता की कोई परिकाष्ठा नही थी ।

परमार सम्राट विक्रमादित्य के ५९ वर्ष (59 Year Later) बाद सम्राट शालिवाहन परमार का राज्याभिषेक ७८ (इ.) (78 A.D)  हुआ था एवं वे सम्राट विक्रमादित्य परमार के परपौत्र थे । अम्बावती (वर्त्तमान उज्जैन) के राजा सम्राट शालिवाहन परमार ने ७८ ईस्वी (78 A.D) में राजगद्दी पर आसीन हुए युग प्रतिष्ठापक शालिवाहन की राजधानी-धार सेलरा मोलेरा पहाडीयों थी एवं भारतवर्ष के सम्पूर्ण भूमंडल पर अपना आधिपत्य स्थापित किया हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक अपने परदादा सम्राट विक्रमादित्य जैसे शूरवीर द्वितीय विश्व विजयेता शालिवाहन परमार बने । सम्राट शालिवाहन परमार के आधीन 2000 दरबारी राजा थे मूर्धाभिषिक्त राजा उनके दरवार में रहते थे । शस्त्र विद्या के महाग्यता ऐसे १०.५ करोड़ (10.5Crore) सैनिक थे ।

युद्ध अभियान भाग-एक-:
सन (78 A.D) ७८ ईस्वी प्रथम युद्ध अभियान किये थे जहाँग हैन (Emperor Zhang) जहाँग राज्वंवंश के सम्राट थे ये मूलरूप से चीन के सम्राट थे जिनका आधिपत्य तार्तर भूभाग तार्तर ( तार्तर चीनी अश्शूरों का वृहत्तम भूभाग राज्य था जहा चीनी अश्शूरों का कब्ज़ा था इस भूभाग का टुकड़े होकर वर्त्तमान में कई देश बने रूस, उज़्बेकिस्तान, युक्रेन, क़ज़ाख़स्तान, यूरेशिया , तुर्क, तुर्कमेनिस्तान ,किर्ग़िज़स्तान, बुल्गारिया, रोमानिया, इत्यादि अन्य 18 देश मिलाकर तार्तर राज्य बना था) पर था ये नृशंस क्रूर थे इनकी आक्रमण कितने क्रूर होते थे इसके बारे में यूक्रेन की लिपि फ्रॉम प्री-हिस्ट्री यूक्रेन-रूस जिसके लेखक हैं दिमनिक मार्टिन में लिपिबद्ध हैं इस राजवंश के सम्राट ने यूक्रेन के शासक एलाख को परास्त कर उनके परिवार अथवा ये भी कह सकते हैं पूरी पीढ़ी को ख़त्म कर दिया राजा एलाख की गर्भवती पत्नी को मगरमच्छ से भड़े तलाब में फ़ेंक दिया उक्रेन के 4 लाख प्रजाओ की हत्या कर दिया कर ना चुका पाने की वजह से क्रूरतम दण्ड से दण्डित किया गया जिससे प्रजाओ की मृत्यु होगयी । इस राजवंश के राजा जहाँग हैन की मलेच्छ कदम चीन और भारतवर्ष की सीमारेखा आराकानयोमा पर रखने की दुसाहस किया था जिससे शालिवाहन परमार ने जहाँग हैन को परास्त कर दिया जहाँग हैन की मृत्यु होगयी रणभूमि एवं चीन के क्रूर राजवंश के हाथो से तार्तर के सम्पूर्ण भूभाग स्वतंत्र होगया । चीन से लेकर तार्तर ( तार्तर वृहत्तम भूभाग राज्य इस भूभाग का टुकड़े होकर वर्त्तमान में कई देश बने रूस, उज़्बेकिस्तान, युक्रेन, क़ज़ाख़स्तान, यूरेशिया , तुर्क, तुर्कमेनिस्तान ,किर्ग़िज़स्तान, बुल्गारिया, रोमानिया, इत्यादि अन्य 18 देश मिलाकर तार्तर राज्य बना था) तक सम्राट शालिवाहन परमार ने केसरिया ध्वज लहराया था । (Reference-: The History of Vikrama and Salivahana vol IV, Dr.S.D.Kulkarni)     
  
सम्राट शालिवाहन परमार के समय में विलुप्त हो चुकी रोम राज्य को अपनी खोयी हुयी पहचान दोबारा मिल गया शालिवाहन परमार रोम राज्य की प्रजाओ के हालत से दुखी थे रोम राज्य में ग्लेडियेटर्स उत्सव के नाम पर हूण निर्दोष मनुष्य को मारते थे नारियों की शील भंग करते थे रोम की धरती त्राहि त्राहि मच गयी थी आर्यवर्त के सम्राट शालिवाहन परमार ने 1 करोड़ 43 लाख सैन्यबल के साथ ८१ ईस्वी (81A.D) रोम पर आक्रमण किया बर्बर हूण कबीलों के साथ युद्ध हुआ। हूणों की सैन्य संख्या 2 करोड़ 78 लाख थी । सम्राट शालिवाहन परमार ने हूणों को परास्त कर खदेड़ा नही बल्कि मृत्यु दण्ड दे दिया अश्शुरों को जीवन दान देने का अर्थ क्या होता हैं ये दुर्दार्शीय सम्राट भलिभाँति जानते थे इसलिए जर्मन से लेकर रोम तक शासन करनेवाले हूणों का समूल विनाश कर दिया रोम से लेकर गेर्मानिया (वर्त्तमान जर्मन) तक बर्बर हूण के कबीलों को ध्वस्त कर भारतीय संस्कृति एवं विकशित राष्ट्र चिकित्सालय, विद्यालय , रस्ता, नगर निर्माण इत्यादि कई तरह के उन्नत कार्य किये रोम से लेकर गेर्मानिया (वर्त्तमान जर्मन) तक अत्याचार के काले बादल हट चुके थे एवं भारतीय राजपूत सम्राट के हाथो नवयुग का आरंभ हुआ । (Refer: Bharatiya Eras, The kings of Agni Vamsa, by Kota Venkatachalam Chapter 12 )

सम्राट शालिवाहन परमार की यश्गाथाओ की विशाल समुद्र में से कुछ बूँद पानी पानी के समान ये जानकारियां हैं इसलिए कई भागो में पोस्ट करुँगी । इस पोस्ट की तृतीय भाग जल्द प्रस्तुत करुँगी आपलोगों के समक्ष । 

जय क्षात्र धर्म  🚩 🚩
जय एकलिंग जी  🙏 🙏 🚩 🚩

Courtesy:
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