Wednesday 5 July 2017

वैचारिक_नंगापन: फेमनिस्म नही एक मानसिक दिवालियापन है

#फेमिनिस्म  -

#वैचारिक_नंगापन फेमनिस्म नही एक मानसिक दिवालियापन है ।

#आज कल कुछ महान लोगो का पदार्पण इस सोसल जगत में हुआ है जो खुद को फेमनिस्ट बोलते है जो किसी भी धार्मिक व्यक्ति को पिछड़ा समझते है धर्म को गाली दे रहे है पुरुषों की तरह गाली दे के पुरुषों के समकक्ष है ये सिद्ध करना चाहते है । अल्कोहलिक होने को विकास और उत्थान समझते हैं आइये आपको इनके कुछ पहलू से आपको वाकिफ कराते है।

#जहाँ देखिये नारीवाद का राग अलापते आपको बहुत सी महिलाएं , बहुत से संस्थाए मिल जाएँगी । लेकिन इनका वास्तविक चेहरा क्या है ये कम लोगों को ही ज्ञात होगा । होगा भी कैसे प्रगतिवाद का अँधा चस्मा जो लगा है । फिर भी ये खुद को फेमिनिस्ट कहने वाली महिलाएं वैसे तो बिल में ही रहती हैं लेकिन समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए किसी मुद्दे पर अपना वैचारिक नंगापन लिए अचानक से सामने भी आ जाती हैं तब जाके पता चलता की अमुक अमुक लोग हैं जो की  अमुक नारी विकास के लिए तथा उनके उठान के लिए कार्य कर रहीं हैं । जहाँ तक नारीवाद को समझ पाया वह यह की नारीवाद राजनैतिक आंदोलन का एक सामाजिक रूप है जो स्त्रियों के अनुभवों से जनित है। हलाकि मूल रूप से यह सामाजिक संबंधो से अनुप्रेरित है लेकिन कई स्त्रीवादी विद्वान का मुख्य जोर लैंगिक असमानता, और औरतों के अधिकार इत्यादि पर ज्यादा बल देते हैं। नारीवादी सिद्धांतो का उद्देश्य लैंगिक असमानता की प्रकृति एवं कारणों को समझना तथा इसके फलस्वरूप पैदा होने वाले लैंगिक भेदभाव की राजनीति और शक्ति संतुलन के सिद्धांतो पर इसके असर की व्याख्या करना है। स्त्री विमर्श संबंधी राजनैतिक प्रचारों का जोर प्रजनन संबंधी अधिकार घरेलू हिंसा , मातृत्व अवकाश, समान वेतन संबंधी अधिकार , स्त्रीवादी विमर्श संबंधी आदर्श का मूल कथ्य यही रहता है कि कानूनी अधिकारों का आधार लिंग" न बने '''''''''''''''''''''''''''''''''''' '

#बात तो सही है और मैं इनका पक्षधर हूँ लेकिन जब मूल रवैया इन सिंधान्तो पर ही हो तभी । आज हमारे यहाँ जब भी नारीवाद के बात होती है नारी के अधिकार की बात होती है तो इनके नाम पर इन्हें वह आजादी चाहिए जो हमारे संस्कृति का मानक ही बदल दे। मै नारी अधिकार के पक्ष में हूँ , उन्हें वह सब कुछ मिलना चाहिए जो की पुरुषो को मिलता है लेकिन वह भारतीय संस्कृति के अनुरूप हों तो ज्यादा कारगर होगा सब के लिए , उस आजादी , उस अधिकार की बात हम क्यूँ करें जो हमारे खुद के वजूद को ही दाव पर लगा दें । नारीवाद (फेमिनिस्ट) का भूत पश्चिम से चलकर भारत आया , अब यहाँ भी इसका प्रचार प्रसार जोरों से हो रहा है, हो भी क्यूँ नहीं भारत विकासशील देश जो है ।

#इस नारीवाद ने पश्चिम में क्या किया इसके कुछ उदहारण और कुछ आंकड़े दे रहा हूँ ..............ये आंकड़े अमेरिका और इंग्लैंड के है जहाँ नारी को सबसे ज्यादा विकासशील मन जाता है .....

१--हर 6 में से एक अमेरिकन स्त्री अपनी जिन्दगी में बलात्कार की शिकार होती है.
२-- 17.7 मिलियन अमेरिकन औरते पूर्ण या आंशिक बलात्कार की शिकार है .
३- 15 % बलात्कार की शिकार 12 साल से कम उम्र की लड़किया है .
४--लगभग 3 % अमेरिकन पुरुषों ने हर 33 में 1 ने अपनी जिन्दगी में कभी न कभी पूर्ण या आंशिक बलात्कार किया है ...एक चाइल्ड प्रोटेक्शन संस्था की 1995 की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में 126000 बच्चे बलात्कार के शिकार है जिनमे से 75 % लड़किया है और लगभग 30 % शिकार बच्चे 4 से 7 की उम्र के बीच के है
ये आंकड़े कम नहीं है अगर हम इन की अन्य विपत्तियों से तुलना करते है तो स्तिथि की भयानकता स्पष्ट हो जाती है जरा देखे.......

#हत्या -दिसम्बर 2005 की रिपोर्ट के आधार पर अकेले अमेरिका में 1181 एकल औरतो की हत्या हुई जिसका औसत लगभग तीन औरते प्रति दिन का पड़ता है यहाँ गौर करने वाली बात ये है की ये हत्याए पति या रिश्ते दार के द्बारा नहीं की गयी बल्कि ये हत्याए महिलाओं के अन्तरंग साथियो (भारतीय प्रगतिवादी महिलाओं के अनुसार अन्तरंग सम्बन्ध बनाना महिलायों की आत्म निर्भरता और स्वंत्रता से जुड़ा सवाल है और इसके लिए उन्हें स्वेच्छा होनी चाहिए) के द्बारा की गयी अब अंत रंग साथियो ने क्यूँ किया???????

#घरेलू हिंसा-----National Center for Injury Prevention and Control, के अनुसार अमेरिका में 4.8 मिलियन औरते प्रति वर्ष घेरलू हिंसा और अनेच्छिक सम्भोग का शिकार होती है, और इनमे से कम से कम 20 % को अस्पताल जाना पड़ता है ...
कारण - जो भी हो लेकिन है तो भयावह ही , इसका मतलब साफ है की उनका पुरुष विरोधी रवैया उनको एस हालत में पहुंचाता है, ये हमारे न हो इसके लिए हमे उनके क़दमों के निशा पर खुद को चलने से रोकना होगा वरना स्थिति क्या होगी आपक देख ही सकते हैं .....

#सम्भोगिक हिंसा -----National Crime Victimization Survey, के अनुसार 232,960 औरते अकेले अमेरिका में 2006 के अन्दर बलात्कार या सम्भोगिक हिसा का शिकार हुई , अगर दैनिक स्तर देखा जाए तो 600 औरते प्रति दिन आता है,इसमें छेड़छाड़ और गाली देने जैसे कृत्य को सम्मिलित नहीं किया गया है वे आकडे इसमें सम्मिलित नहीं है जो प्रताडित औरतो की निजी सोच ( क्यूँ की कुछ औरते सोचती है की मामला इतना गंभीर नहीं है या अपराधी का कुछ नहीं हो सकता)और पुलिस नकारापन और सबूतों अनुपलब्धता के के कारण दर्ज नहीं हो सके पश्चमी प्रगतिवादी आन्दोलन से क्या हासिल हुआ केवल #बिच का नाम जिस पर पश्चिमी औरते गर्व करती है ,,
’m tough, I’m ambitious, and I know exactly what I want. If that makes me a bitch, okay. - Madonna Ciccone

#मीडिया से ताल्लुक रखने वाली संध्या जैन कहती है ”आज जो कानून बन रहे हैं वो विदेशी कानूनों की अंधी नकल भर हैं। उनमें विवेक का नितांत अभाव है। उन्होंने कहा कि अगर हमारे बेटे-बेटियां लिव इन रिलेशनशिप के तहत रहेंगे तो क्या हम खुश रहेंगे। क्या उनके इस फैसले से हमारी आत्मा को दुख नहीं होगा। अगर दुख होगा तो हमें ऐसे कानून का विरोध करना चाहिए और नहीं तो फिर तो कोई बात ही नहीं।"
#गांधी विद्या संस्थान की निदेशक कुसुमलता केडिया जी के अनुसार । ”भारतीय स्त्री किसी ने बिगाड़ी तो वो थे दो तामसिक प्रवाह- इस्लाम और ईसाइयत का भारत में आगमन। केवल भारत में ही नहीं ये दोनों शक्तियां जहां भी रोकने वहां की संस्कृति की इन्होंने जमकर तोड़-फोड़ की। ईसाई विचारधारा के अनुसार स्त्री ईंख के समान है का चाहें तो चबाएं या रस निकाल उसे दबाकर रखे। दूसरी तरफ मान्यता के अनुसार स्त्री को पूर्णत ढंक देने की वकालत करता है लेकिन वह यह नहीं सोचता कि इससे स्त्री का सांस लेना दूभर जाएगा।ईसाई धर्म ने स्त्रियों पर जमकर अत्याचार किया।

#जो स्त्री अधिक बोलती थी उसे मर्द रस्सी में बांधकर नदी में बार-बार डूबोते थे। यही उसकी सजा थी। लेकिन हमारे देश में इन दोनों के आगमन से पूर्व स्त्रियों की हमेशा सम्मानजनक स्थिति रही। विघटन तो इनके संसर्ग से हुआ। भारत के संदर्भ में नारी मुक्ति यही है कि भारतीय स्त्री फिर उसी पुरातन स्त्री का स्मरण कर अपने उस रूप को प्राप्त करे। न कि पश्चिम की स्त्रियों का नकल करे।”
समाज सेविका निर्मला शर्मा के अनुसार " भारत के गांवों में रहने वाली स्त्री तो मुक्त होने की इच्छा व्यक्त नहीं करती। एक मजदूरन भी ऐसी सोच नहीं रखती। मुक्ति वो स्त्रियां चाहती हैं जो कम कपड़ों में टेलीविजन के विज्ञापनों में नजर आती हैं ताकि वो कपड़ों का बोझ और हल्का कर सकें। नारी मुक्ति के बारे में वो औरतें सोचती हैं जिनकी जुबान पर हमेशा रहता है ‘ये दिल मांगे मोर’।

#नोट -
#तथ्य_और_आकडे_साभार.....9University of North Carolina, 7National Institute of Justice (pages 6-7), 8Family Violence Prevention Fund,10National Coalition of Anti-Violence Programs (NCAVP), 11http://www.bhartiyapaksha.com/?p=1634
1-Bureau of Justice Statistics,

2-Deptartment of Justice,
3-Centers for Disease Control and Prevention (CDC),
4-National Coalition Against Domestic Violence (NCADV),
5-Bureau of Justice Statistics (table 2, page 15),
6-US Census Bureau (page 12),

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=280466935753052&id=100013692425716

वेद_vs_विज्ञान भाग - २६, पारा

#वेद_vs_विज्ञान भाग -26
                       #पारा
                 (  Mercury )

#परिचय - पारा या पारद (संकेत: Hg) आवर्त सारिणी के डी-ब्लॉक का अंतिम तत्व है। इसका परमाणु क्रमांक ८० है। इसके सात स्थिर समस्थानिक ज्ञात हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९६, १९८, १९९, २००, २०१, २०२ और २०४ हैं। इनके अतिरिक्त तीन अस्थिर समस्थानिक, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९५, १९७ तथा २०५ हैं, कृत्रिम साधनों से निर्मित किए गए हैं। रासायनिक जगत् में केवल यही धातु साधारण ताप और दाब पर द्रव रूप होती ।

#आधुनिक विज्ञान में प्रयोग - द्रव अवस्था, उच्च घनत्व और न्यून वाष्पदबाव के कारण पारे का उपयोग थर्मामीटर, बैरोमीटर, मैनोमीटर तथा अन्य मापक उपकरणों में होता है। पारे का उपयोग अनेक लपों तथा विसर्जन नलिकाओं में भी होता है। ऐसी आशा है कि परमाणु ऊर्जा द्वारा चालित यंत्रों में पारद का उपयोग बढ़ेगा, क्योंकि इसके वाष्प द्वारा ऊष्मा स्थानांतरण सुगमता से हो सकता है। पारे के स्पेक्ट्रम की हरी रेखा को तरंगदैर्ध्य मापन में मानक माना गया है।

पारे के अनेक यौगिक औषध रूप में उपयोगी हैं। मरक्यूरिक क्लोराइड, बेंजोएट, सायनाइड, सैलिसिलेट, आयोडाइड आदि कीटाणुनाशक गुणवाले यौगिक हैं। मरक्यूरोक्रोम चोट आदि में बहुधा लगाया जाता है। इसके कुछ यौगिक चर्मरोगों में लाभकारी सिद्ध हुए हैं।

#वैदिक_खोज_पारा और उसके प्रयोग -
पारा सर्वप्रथम वैदिक भारत मे प्रयोग ही नही किया गया अपितु इसकी जन्मस्थली भी भारत रहा ।भारत में इस तत्व का प्राचीन काल से वर्णन हुआ है। चरक संहिता में दो स्थानों पर इसे 'रस' और 'रसोत्तम' नाम से संबोधित किया गया है। वाग्भट ने औषध बनाने में पारे का वर्णन किया है। वृन्द ने सिद्धयोग में कीटमारक औषधियों में पारे का उपयोग बताया है। तांत्रिक काल (हजारो वर्ष पूर्व)में पारा का बहुत उल्लेख मिलता है। इस काल में पारे को बहुत महत्ता दी गई। पारद की ओषधियाँ शरीर की व्याधियाँ दूर करने के लिये संस्तुत की गई हैं। तांत्रिक काल के ग्रंथों में पारे के लिये 'रस' शब्द का उपयोग हुआ है। इस काल की पुस्तकों के अनुसार पारे से न केवल अन्य धातुओं के गुण सुधर सकते हैं वरन् उसमें मनुष्य के शरीर को अजर बनाने की शक्ति है। नागार्जुन द्वारा लिखित रसरत्नसमुच्चय नामक ग्रंथ में पारे की अन्य धातुओं से शुद्ध करने तथा उससे बनी अनेक ओषधियों का विस्तृत वर्णन मिलता है। तत्पश्चात् अन्य ग्रंथों में पारे की भस्मों तथा अन्य यौगिकों का प्रचुर वर्णन रहा है।

#विशेष - यूरोप में १७वीं सदी तक पारा क्या है, यह वे जानते नहीं थे। अत: फ्र्ांस सरकार के दस्तावेजों में इसे दूसरी तरह की चांदी ‘क्विक सिल्वर‘ कहा गया, क्योंकि यह चमकदार तथा इधर-उधर घूमने वाला होता है। वहां की सरकार ने यह कानून भी बनाया था कि भारत से आने वाली जिन औषधियों में पारे का उपयोग होता है उनका उपयोग विशेषज्ञ चिकित्सक ही करें।
भारतवर्ष में लोग हजारों वर्षों से पारे को जानते ही नहीं थे अपितु इसका उपयोग औषधि विज्ञान में बड़े पैमाने पर होता था। विदेशी लेखकों में सर्वप्रथम अलबरूनी ने, जो ११वीं सदी में भारत में लम्बे समय तक रहा, अपने ग्रंथ में पारे को बनाने और उपयोग की विधि को विस्तार से लिखकर दुनिया को परिचित कराया। पारे को शुद्ध कर उसे उपयोगी बनाने की विधि की आगे रसायनशास्त्र सम्बंधी विचार करते समय चर्चा करेंगे। परन्तु कहा जाता है कि हजारो वर्ष पहले जन्मे नागार्जुन  पारे से सोना बनाना जानते थे। आश्चर्य की बात यह है कि स्वर्ण में परिवर्तन हेतु पारे को ही चुना, अन्य कोई धातु नहीं चुनी। आज का विज्ञान कहता है कि धातुओं का निर्माण उनके परमाणु में स्थित प्रोटॉन की संख्या के आधार पर होता है और यह आश्चर्य की बात कि पारे में ८० प्रोटॉन-इलेक्ट्रान तथा सोने में ७९ प्रोटॉन-इलेक्ट्रान होते हैं।

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=280400795759666&id=100013692425716

अंबेडकरवादियों को जवाब_भाग - 4

#जवाब_भाग - 4

अब चाहे अंग्रेजी भाष्य के कारण ऐसा हुआ हो या अनजाने में लेकिन अम्बेडकर का वैदिक धर्म के प्रति नफरत का भाव अवश्य नज़र आता है कि उसने अपने ही दिए तथ्यों की जांच करने की जिम्मेदारी न समझी |
यहाँ आप स्वयं देखे अम्बेडकर ने किस तरह गलत अर्थ प्रस्तुत कर गलत निष्कर्ष निकाले –

#अशुद्ध अर्थ करके मनु को स्त्री विरोधी कहना |
न वै कन्या न युवतिर्नाल्पविध्यो न बालिश:|
होता स्यादग्निहोतरस्य नार्तो नासंस्कृतस्तथा||( ११.३६ )
डा. अम्बेडकर का अर्थ – ” स्त्री वेदविहित अग्निहोत्र नही करेगी|” (वही, नारी और प्रतिक्रान्ति, पृष्ठ ३३३)
शुद्ध अर्थ – ‘ कन्या ,युवती, अल्पशिक्षित, मुर्ख, रोगी, और संस्कार में हीन व्यक्ति , ये किसी अग्निहोत्र में होता नामक ऋत्विक बनने के अधिकारी नही है|
समीक्षा – डा अम्बेडकर ने इस श्लोक का इतना अनर्थ किया की उनके द्वारा किया अर्थ मूल श्लोक में कही भव ही नही है | यहा केवल होता बनाने का निषद्ध है न कि अग्निहोत्र करने का |
सदा प्रहृष्टया भाव्यं गृहकार्येषु दक्षया |
सुसंस्कृतोपस्करया व्यये चामुक्तह्स्त्या|| (५.१५०)
डा. अम्बेकर का अर्थ – ” उसे सर्वदा प्रसन्न ,गृह कार्य में चतुर , घर में बर्तनों को स्वच्छ रखने में सावधान तथा खर्च करने में मितव्ययी होना चाहिय |”(वही ,पृष्ठ २०५)
शुद्ध अर्थ -‘ पत्नी को सदा प्रसन्न रहना चाहिय ,गृहकार्यो में चतुर ,घर तथा घरेलू सामान को स्वच्छ सुंदर रखने वाली और मित्यव्यी होना चाहिय |
समीक्षा – ” सुसंस्कृत – उपस्करया ” का बर्तनों को स्वच्छ रखने वाली” अर्थ अशुद्ध है | ‘उपस्कर’ का अर्थ केवल बर्तन नही बल्कि सम्पूर्ण घर और घरेलू सामान जो पत्नीं के निरीक्षण में हुआ करता है |

#अशुद्ध अर्थो से विवाह -विधियों  को विकृत करना आच्छद्य चार्चयित्वा च श्रुतिशीलवते स्वयम्|
आहूय दान कन्यायाः ब्राह्मो धर्मः प्रकीर्तित:||(३.२७)
यज्ञे तु वितते सम्यगृत्विजे कर्म कुर्वते|
अलकृत्य सुतादान दैव धर्म प्रचक्षते||(३.२८)
एकम गोमिथुंनं द्वे वा वराददाय धर्मत:|
कन्याप्रदानं विधिविदार्षो धर्म: स उच्यते||(३.२९)
डा अम्बेडकर का अर्थ – बाह्म  विवाह के अनुसार किसी वेदज्ञाता को वस्त्रालंकृत पुत्री उपहार में दी जाती थी| देव विवाह  था जब कोई पिता अपने घर यज्ञ करने वाले पुरोहित को दक्षिणास्वरूप अपनी पुत्री दान कर देता था | आर्ष विवाह के अनुसार वर, वधु के पिता को उसका मूल्य चूका कर प्राप्त करता था|”( वही, खंड ८, उन्नीसवी पहेली पृष्ठ २३१)
शुद्ध अर्थ – ‘वेदज्ञाता और सदाचारी विद्वान् कन्या द्वारा स्वयम पसंद करने के बाद उसको घर बुलाकर वस्त्र और अलंकृत कन्या को विवाहविधिपूर्वक देना ‘ बाह्य विवाह’ कहलाता है ||’
‘ आयोजित विस्तृत यज्ञ में ऋत्विज कर्म करने वाले विद्वान को अलंकृत पुत्री का विवाहविधिपूर्वक कन्यादान करना’ दैव विवाह ‘ कहाता है ||”
‘ एक या दो जोड़ा गाय धर्मानुसार वर पक्ष से लेकर विवाहविधिपूर्वक कन्यादान करना ‘आर्ष विवाह ‘ है |’ आगे ३.५३ में गाय का जोड़ा लेना वर्जित है मनु के अनुसार
समीक्षा – विवाह वैदिक व्यवस्था में एक संस्कार है | मनु ने ५.१५२ में विवाह में यज्ञीयविधि का विधान किया है | संस्कार की पूर्णविधि करके कन्या को पत्नी रूप में ससम्मान प्रदान किया जाता है | इन श्लोको में इन्ही विवाह पद्धतियों का निर्देश है | अम्बेडकर ने इन सब विधियों को निकाल कर कन्या को उपहार , दक्षिणा , मूल्य में देने का अशुद्ध अर्थ करके सम्मानित नारी से एक वस्तु मात्र बना दिया | श्लोको में यह अर्थ किसी भी दृष्टिकोण से नही बनता है | वर वधु का मूल्य एक जोड़ा गाय बता कर अम्बेडकर ने दुर्भावना बताई है जबकि मूल अर्थ में गाय का जोड़ा प्रेम पूर्वक देने का उलेख है क्यूंकि वैदिक संस्कृति में गाय का जोड़ा श्रद्धा पूर्वक देने का प्रतीक है |

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=280406629092416&id=100013692425716

Tuesday 4 July 2017

अंबेडकरवादियों को जवाब_भाग - 3

#जवाब_भाग - 3

कल की दो पोस्ट के बाद कुछ मित्रो द्वारा इनबॉक्स कर के  इस सीरीज को आगे बढ़ाने को बोला गया तो आइए इन अम्बेडकरवादियों की पोल खोलने की तीसरी पोस्ट पे आप सभी का स्वागत है ।

#अशुद्ध अर्थ द्वारा शुद्र के वर्ण परिवर्तन सिद्धांत को झूटलाना |

शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषुः मृदुवागानहंकृत: |
ब्राह्मणाद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्रुते|| (९.३३५)
डा. अम्बेडकर का अर्थ – ” प्रत्येक शुद्र जो शुचि पूर्ण है, जो अपनों से उत्कृष्ट का सेवक है, मृदु भाषी है, अंहकार रहित हैसदा ब्राह्मणों के आश्रित रहता है (अगले जन्म में )  उच्चतर जाति प्राप्त करता है |”(वही ,खंड ९, अराजकता कैसे जायज है ,पृष्ठ ११७)
शुद्ध अर्थ – ‘ जो शुद्र तन ,मन से शुद्ध पवित्र है ,अपने से उत्क्रष्ट की संगती में रहता है, मधुरभाषी है , अहंकार रहित है , और जो ब्राह्मणाआदि तीनो वर्णों की सेवा कार्य में लगा रहता है ,वह उच्च वर्ण को प्राप्त कर लेता है|
समीक्षा – इसमें मनु का अभिप्राय कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था का है ,जिसमे शुद्र उच्च वर्ण प्राप्त करने का उलेख है , लेकिन अम्बेडकर ने यहाँ दो अनर्थ किये – ” श्लोक में इसी जन्म में उच्च वर्ण प्राप्ति का उलेख है अगले जन्म का उलेख नही है| दूसरा श्लोक में ब्राह्मण के साथ अन्य तीन वर्ण भी लिखे है लेकिन उन्होंने केवल ब्राह्मण लेकर इसे भी ब्राह्मणवाद में घसीटने का गलत प्रयास किया है |इतना उत्तम सिधांत उन्हें सुहाया नही ये महान आश्चर्य है |

#अशुद्ध अर्थ करके जातिव्यवस्था का भ्रम पैदा करना

(क) ब्राह्मण: क्षत्रीयो वैश्य: त्रयो वर्णों द्विजातय:|
चतुर्थ एक जातिस्तु शुद्र: नास्ति तु पंचम:||
डा. अम्बेडकर का अर्थ- ” इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि मनु चातुर्यवर्ण का विस्तार नही चाहता था और इन समुदाय को मिला कर पंचम वर्ण व्यवस्था के पक्ष में नही था| जो चारो वर्णों से बाहर थे|” (वही खंड ९, ‘ हिन्दू और जातिप्रथा में उसका अटूट विश्वास,’ पृष्ठ१५७-१५८)
शुद्ध अर्थ – विद्या रूपी दूसरा जन्म होने से ब्राह्मण ,वैश्य ,क्षत्रिय ये तीनो द्विज है, विद्यारुपी दूसरा जन्म ना होने के कारण एक मात्र जन्म वाला चौथा वर्ण शुद्र है| पांचवा कोई वर्ण नही है|
समीक्षा – कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था ,शुद्र को आर्य सिद्ध करने वाला यह सिद्धांत भी अम्बेडकर को पसंद नही आया | दुराग्रह और कुतर्क द्वारा उन्होंने इसके अर्थ के अनर्थ का पूरा प्रयास किया |

#विशेष- इस पोस्ट को आप कॉपी पेस्ट जहाँ चाहे कीजिये ये आपकी पोस्ट है ।

Courtesy: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=279985632467849&id=100013692425716

अंबेडकरवादियों को जवाब भाग - 2

#जवाब_भाग - 2

अम्बेडकरवादियों द्वारा सिर्फ झूठ बोला गया और जो अम्बेडकर ने किया ये उसका दूसरा कर्म है सिर्फ घृणा पैदा करने के अलावा भी बहोत से कार्य है जिससे दलित शुद्र उद्धार हो सकता है।

#अम्बेडकर का अशुद्ध अर्थ कर मनु को ब्राह्मणवादी कह कर बदनाम करना –
(क) सेनापत्यम् च राज्यं च दंडेंनतृत्वमेव च|
सर्वलोकाघिपत्यम च वेदशास्त्रविदर्हति||(१२.१००)
डा. अम्बेडकर का अर्थ – राज्य में सेना पति का पद, शासन के अध्यक्ष का पद, प्रत्येक के ऊपर शासन करने का अधिकार ब्राह्मण के योग्य है|’ (वही पृष्ठ १४८)
शुद्ध अर्थ- ‘ सेनापति का कार्य , राज्यप्रशासन का कार्य, दंड और न्याय करने का कार्य ,चक्रवती सम्राट होने, इन कार्यो को करने की योग्यता वेदों का विद्वान् रखता है अर्थात वाही इसके योग्य है |’
समीक्षा – पाठक यहाँ देखे कि मनु ने कही भी ब्राह्मण पद का प्रयोग नही किया है| वेद शास्त्र के विद्वान क्षत्रिय ओर वेश्य भी होते है| मनु स्वयम राज्य ऋषि थे और वेद ज्ञानी भी (मनु.१.४ ) यहा ब्राह्मण शब्द जबरदस्ती प्रयोग कर मनु को ब्राह्मणवादी कह कर बदनाम करने का प्रयास किया है |
(ख) कार्षापण भवेद्दण्ड्यो यत्रान्य: प्राकृतो जन:|
तत्र राजा भवेद्दण्ड्य: सहस्त्रमिति धारणा || (८.३३६ )
डा. अम्बेडकर का अर्थ – ” जहा निम्न जाति का कोई व्यक्ति एक पण से दंडनीय है , उसी अपराध के लिए राजा एक सहस्त्र पण से दंडनीय है और वह यह जुर्माना ब्राह्मणों को दे या नदी में फैक दे ,यह शास्त्र का नियम है |(वही, हिन्दू समाज के आचार विचार पृष्ठ२५० )
शुद्ध अर्थ – जिस अपराध में साधारण मनुष्य को एक कार्षापण का दंड है उसी अपराध में राजा के लिए हज़ार गुना अधिक दंड है | यह दंड का मान्य सिद्धांत है |
समीक्षा :- इस श्लोक में अम्बेडकर द्वारा किये अर्थ में ब्राह्मण को दे या नदी में फेक दे यह लाइन मूल श्लोक में कही भी नही है ऐसा कल्पित अर्थ मनु को ब्राह्मणवादी और अंधविश्वासी सिद्ध करने के लिए किया है |
(ग) शस्त्रं द्विजातिभिर्ग्राह्यं धर्मो यत्रोपरुध्यते |
द्विजातिनां च वर्णानां विप्लवे कालकारिते|| (८.३४८)
डा. अम्बेडकर का अर्थ – जब ब्राह्मणों के धर्माचरण में बलात विघ्न होता हो, तब तब द्विज शस्त्र अस्त्र ग्रहण कर सकते है , तब भी जब द्विज वर्ग पर भयंकर विपति आ जाए |” (वही, हिन्दू समाज के आचार विचार, पृष्ठ २५० )
शुद्ध अर्थ:- ‘ जब द्विजातियो (ब्राह्मण,क्षत्रिय ,वैश्य ) धर्म पालन में बाँधा उत्पन्न की जा रही हो और किसी समय या परिस्थति के कारण उनमे विद्रोह उत्पन्न हो गया हो, तो उस समय द्विजो को शस्त्र धारण कर लेना चाहिए|’
समीक्षा – यहाँ भी पूर्वाग्रह से ब्राह्मण शब्द जोड़ दिया है जो श्लोक में कही भी नही है |

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=279636299169449&id=100013692425716

अंबेडकरवादियों को जवाब_भाग -1

#जवाब_भाग -  1

मित्रो के विशेष आग्रह पे अम्बेडकरवादियों के कुछ सवालों के खण्डन यहाँ दिए जा रहे है जो हमेसा ब्राम्हणो को गाली देते रहते है आप इस पोस्ट को कॉपी कीजिये और जहाँ भी आपको जवाब देना हो दे दीजिए ये पोस्ट मेरी नही आपकी है ।

डा. अम्बेडकर ने अपने ब्राह्मण वाद से घृणा के चलते मनुस्मृति को निशाना बनाया और इतना ही नही अपनी कटुता के कारण मनुस्मृति के श्लोको का गलत अर्थ भी किया …अब चाहे अंग्रेजी भाष्य के कारण ऐसा हुआ हो या अनजाने में लेकिन अम्बेडकर जी का वैदिक धर्म के प्रति नफरत का भाव अवश्य नज़र आता है कि उन्होंने अपने ही दिए तथ्यों की जांच करने की जिम्मेदारी न समझी |
यहाँ आप स्वयम देखे अम्बेडकर ने किस तरह गलत अर्थ प्रस्तुत कर गलत निष्कर्ष निकाले –
#अशुद्ध अर्थ करके मनु के काल में भ्रान्ति पैदा करना और मनु को बोद्ध विरोधी सिद्ध करना –
(क) पाखण्डिनो विकर्मस्थान वैडालव्रतिकान् शठान् |
हैतुकान् वकवृत्तीश्र्च वाङ्मात्रेणापि नार्चयेत् ||(४.३०)
डा . अम्बेडकर का अर्थ – ” वह (गृहस्थ) वचन से भी विधर्मी, तार्किक (जो वेद के विरुद्ध तर्क करे ) को सम्मान न दे|”
” मनुस्मृति में बोधो और बुद्ध धम्म के विरुद्ध में स्पष्ट व्यवस्था दी गयी है |”
(अम्बेडकर वा. ,ब्राह्मणवाद की विजय पृष्ठ. १५३)
शुद्ध अर्थ – पाखंडियो, विरुद्ध कर्म करने वालो अर्थात अपराधियों ,बिल्ली के सामान छली कपटी जानो ,धूर्ति ,कुतर्कियो,बगुलाभक्तो को अपने घर आने पर वाणी से भी सत्कार न करे |
समीक्षा- इस श्लोक में आचारहीन लोगो की गणना है उनका वाणी से भी अतिथि सत्कार न करने का निर्देश है |
यहा विकर्मी अर्थात विरुद्ध कर्म करने वालो का बलात विधर्मी अर्थ कल्पित करके फिर उसका अर्थ बोद्ध कर लिया |विकर्मी का विधर्मी अर्थ किसी भी प्रकार नही बनता है | ऐसा करके डा . अम्बेडकर मनु को बुद्ध विरोधी कल्पना खडी करना चाहते है जो की बिलकुल ही गलत है |
(ख) या वेदबाह्या: स्मृतय: याश्च काश्च कुदृष्टय: |
सर्वास्ता निष्फला: प्रेत्य तमोनिष्ठा हि ता: स्मृता:|| (१२.९५)
डा. अम्बेडकर का अर्थ – जो वेद पर आधारित नही है, मृत्यु के बाद कोई फल नही देती, क्यूंकि उनके बारे में यह घोषित है कि वे अन्धकार पर आधारित है| ” मनु के शब्द में विधर्मी बोद्ध धर्मावलम्बी है| ” (वही ,पृष्ठ१५८)
शुद्ध अर्थ – ‘ वेदोक्त’ सिद्धांत के विरुद्ध जो ग्रन्थ है ,और जो कुसिधान्त है, वे सब श्रेष्ट फल से रहित है| वे परलोक और इस लोक में अज्ञानान्ध्कार एवं दुःख में फसाने वाले है |
समीक्षा- इस श्लोक में किसी भी शब्द से यह भासित नही होता है कि ये बुद्ध के विरोध में है| मनु के समय अनार्य ,वेद विरोधी असुर आदि लोग थे ,जिनकी विचारधारा वेदों से विपरीत थी| उनको छोड़ इसे बुद्ध से जोड़ना लेखक की मुर्खता ओर पूर्वाग्रह दर्शाता है |
(ग) कितवान् कुशीलवान् क्रूरान् पाखण्डस्थांश्च मानवान|
विकर्मस्थान् शौण्डिकाँश्च क्षिप्रं निर्वासयेत् पुरात् || (९.२२५)
डा. अम्बेडकर का अर्थ – ” जो मनुष्य विधर्म का पालन करते है …….राजा को चाहिय कि वह उन्हें अपने साम्राज्य से निष्कासित कर दे | “(वही ,खंड ७, ब्राह्मणवाद की विजय, पृष्ठ. १५२ )
शुद्ध अर्थ – ‘ जुआरियो, अश्लील नाच गाने करने वालो, अत्याचारियों, पाखंडियो, विरुद्ध या बुरे कर्म करने वालो ,शराब बेचने वालो को राजा तुरंत राज्य से निकाल दे |
समीक्षा – संस्कृत पढने वाला छोटा बच्चा भी जानता है कि कर्म, सुकर्म ,विकर्म ,दुष्कर्म इन शब्दों में कर्म ‘क्रिया ‘ या आचरण का अर्थ देते है | यहा विकर्म का अर्थ ऊपर बताया गया है | लेकिन बलात विधर्मी और बुद्ध विरोधी अर्थ करना केवल मुर्खता प्राय है |

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=279627512503661&id=100013692425716

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