Wednesday 5 July 2017

वैचारिक_नंगापन: फेमनिस्म नही एक मानसिक दिवालियापन है

#फेमिनिस्म  -

#वैचारिक_नंगापन फेमनिस्म नही एक मानसिक दिवालियापन है ।

#आज कल कुछ महान लोगो का पदार्पण इस सोसल जगत में हुआ है जो खुद को फेमनिस्ट बोलते है जो किसी भी धार्मिक व्यक्ति को पिछड़ा समझते है धर्म को गाली दे रहे है पुरुषों की तरह गाली दे के पुरुषों के समकक्ष है ये सिद्ध करना चाहते है । अल्कोहलिक होने को विकास और उत्थान समझते हैं आइये आपको इनके कुछ पहलू से आपको वाकिफ कराते है।

#जहाँ देखिये नारीवाद का राग अलापते आपको बहुत सी महिलाएं , बहुत से संस्थाए मिल जाएँगी । लेकिन इनका वास्तविक चेहरा क्या है ये कम लोगों को ही ज्ञात होगा । होगा भी कैसे प्रगतिवाद का अँधा चस्मा जो लगा है । फिर भी ये खुद को फेमिनिस्ट कहने वाली महिलाएं वैसे तो बिल में ही रहती हैं लेकिन समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए किसी मुद्दे पर अपना वैचारिक नंगापन लिए अचानक से सामने भी आ जाती हैं तब जाके पता चलता की अमुक अमुक लोग हैं जो की  अमुक नारी विकास के लिए तथा उनके उठान के लिए कार्य कर रहीं हैं । जहाँ तक नारीवाद को समझ पाया वह यह की नारीवाद राजनैतिक आंदोलन का एक सामाजिक रूप है जो स्त्रियों के अनुभवों से जनित है। हलाकि मूल रूप से यह सामाजिक संबंधो से अनुप्रेरित है लेकिन कई स्त्रीवादी विद्वान का मुख्य जोर लैंगिक असमानता, और औरतों के अधिकार इत्यादि पर ज्यादा बल देते हैं। नारीवादी सिद्धांतो का उद्देश्य लैंगिक असमानता की प्रकृति एवं कारणों को समझना तथा इसके फलस्वरूप पैदा होने वाले लैंगिक भेदभाव की राजनीति और शक्ति संतुलन के सिद्धांतो पर इसके असर की व्याख्या करना है। स्त्री विमर्श संबंधी राजनैतिक प्रचारों का जोर प्रजनन संबंधी अधिकार घरेलू हिंसा , मातृत्व अवकाश, समान वेतन संबंधी अधिकार , स्त्रीवादी विमर्श संबंधी आदर्श का मूल कथ्य यही रहता है कि कानूनी अधिकारों का आधार लिंग" न बने '''''''''''''''''''''''''''''''''''' '

#बात तो सही है और मैं इनका पक्षधर हूँ लेकिन जब मूल रवैया इन सिंधान्तो पर ही हो तभी । आज हमारे यहाँ जब भी नारीवाद के बात होती है नारी के अधिकार की बात होती है तो इनके नाम पर इन्हें वह आजादी चाहिए जो हमारे संस्कृति का मानक ही बदल दे। मै नारी अधिकार के पक्ष में हूँ , उन्हें वह सब कुछ मिलना चाहिए जो की पुरुषो को मिलता है लेकिन वह भारतीय संस्कृति के अनुरूप हों तो ज्यादा कारगर होगा सब के लिए , उस आजादी , उस अधिकार की बात हम क्यूँ करें जो हमारे खुद के वजूद को ही दाव पर लगा दें । नारीवाद (फेमिनिस्ट) का भूत पश्चिम से चलकर भारत आया , अब यहाँ भी इसका प्रचार प्रसार जोरों से हो रहा है, हो भी क्यूँ नहीं भारत विकासशील देश जो है ।

#इस नारीवाद ने पश्चिम में क्या किया इसके कुछ उदहारण और कुछ आंकड़े दे रहा हूँ ..............ये आंकड़े अमेरिका और इंग्लैंड के है जहाँ नारी को सबसे ज्यादा विकासशील मन जाता है .....

१--हर 6 में से एक अमेरिकन स्त्री अपनी जिन्दगी में बलात्कार की शिकार होती है.
२-- 17.7 मिलियन अमेरिकन औरते पूर्ण या आंशिक बलात्कार की शिकार है .
३- 15 % बलात्कार की शिकार 12 साल से कम उम्र की लड़किया है .
४--लगभग 3 % अमेरिकन पुरुषों ने हर 33 में 1 ने अपनी जिन्दगी में कभी न कभी पूर्ण या आंशिक बलात्कार किया है ...एक चाइल्ड प्रोटेक्शन संस्था की 1995 की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में 126000 बच्चे बलात्कार के शिकार है जिनमे से 75 % लड़किया है और लगभग 30 % शिकार बच्चे 4 से 7 की उम्र के बीच के है
ये आंकड़े कम नहीं है अगर हम इन की अन्य विपत्तियों से तुलना करते है तो स्तिथि की भयानकता स्पष्ट हो जाती है जरा देखे.......

#हत्या -दिसम्बर 2005 की रिपोर्ट के आधार पर अकेले अमेरिका में 1181 एकल औरतो की हत्या हुई जिसका औसत लगभग तीन औरते प्रति दिन का पड़ता है यहाँ गौर करने वाली बात ये है की ये हत्याए पति या रिश्ते दार के द्बारा नहीं की गयी बल्कि ये हत्याए महिलाओं के अन्तरंग साथियो (भारतीय प्रगतिवादी महिलाओं के अनुसार अन्तरंग सम्बन्ध बनाना महिलायों की आत्म निर्भरता और स्वंत्रता से जुड़ा सवाल है और इसके लिए उन्हें स्वेच्छा होनी चाहिए) के द्बारा की गयी अब अंत रंग साथियो ने क्यूँ किया???????

#घरेलू हिंसा-----National Center for Injury Prevention and Control, के अनुसार अमेरिका में 4.8 मिलियन औरते प्रति वर्ष घेरलू हिंसा और अनेच्छिक सम्भोग का शिकार होती है, और इनमे से कम से कम 20 % को अस्पताल जाना पड़ता है ...
कारण - जो भी हो लेकिन है तो भयावह ही , इसका मतलब साफ है की उनका पुरुष विरोधी रवैया उनको एस हालत में पहुंचाता है, ये हमारे न हो इसके लिए हमे उनके क़दमों के निशा पर खुद को चलने से रोकना होगा वरना स्थिति क्या होगी आपक देख ही सकते हैं .....

#सम्भोगिक हिंसा -----National Crime Victimization Survey, के अनुसार 232,960 औरते अकेले अमेरिका में 2006 के अन्दर बलात्कार या सम्भोगिक हिसा का शिकार हुई , अगर दैनिक स्तर देखा जाए तो 600 औरते प्रति दिन आता है,इसमें छेड़छाड़ और गाली देने जैसे कृत्य को सम्मिलित नहीं किया गया है वे आकडे इसमें सम्मिलित नहीं है जो प्रताडित औरतो की निजी सोच ( क्यूँ की कुछ औरते सोचती है की मामला इतना गंभीर नहीं है या अपराधी का कुछ नहीं हो सकता)और पुलिस नकारापन और सबूतों अनुपलब्धता के के कारण दर्ज नहीं हो सके पश्चमी प्रगतिवादी आन्दोलन से क्या हासिल हुआ केवल #बिच का नाम जिस पर पश्चिमी औरते गर्व करती है ,,
’m tough, I’m ambitious, and I know exactly what I want. If that makes me a bitch, okay. - Madonna Ciccone

#मीडिया से ताल्लुक रखने वाली संध्या जैन कहती है ”आज जो कानून बन रहे हैं वो विदेशी कानूनों की अंधी नकल भर हैं। उनमें विवेक का नितांत अभाव है। उन्होंने कहा कि अगर हमारे बेटे-बेटियां लिव इन रिलेशनशिप के तहत रहेंगे तो क्या हम खुश रहेंगे। क्या उनके इस फैसले से हमारी आत्मा को दुख नहीं होगा। अगर दुख होगा तो हमें ऐसे कानून का विरोध करना चाहिए और नहीं तो फिर तो कोई बात ही नहीं।"
#गांधी विद्या संस्थान की निदेशक कुसुमलता केडिया जी के अनुसार । ”भारतीय स्त्री किसी ने बिगाड़ी तो वो थे दो तामसिक प्रवाह- इस्लाम और ईसाइयत का भारत में आगमन। केवल भारत में ही नहीं ये दोनों शक्तियां जहां भी रोकने वहां की संस्कृति की इन्होंने जमकर तोड़-फोड़ की। ईसाई विचारधारा के अनुसार स्त्री ईंख के समान है का चाहें तो चबाएं या रस निकाल उसे दबाकर रखे। दूसरी तरफ मान्यता के अनुसार स्त्री को पूर्णत ढंक देने की वकालत करता है लेकिन वह यह नहीं सोचता कि इससे स्त्री का सांस लेना दूभर जाएगा।ईसाई धर्म ने स्त्रियों पर जमकर अत्याचार किया।

#जो स्त्री अधिक बोलती थी उसे मर्द रस्सी में बांधकर नदी में बार-बार डूबोते थे। यही उसकी सजा थी। लेकिन हमारे देश में इन दोनों के आगमन से पूर्व स्त्रियों की हमेशा सम्मानजनक स्थिति रही। विघटन तो इनके संसर्ग से हुआ। भारत के संदर्भ में नारी मुक्ति यही है कि भारतीय स्त्री फिर उसी पुरातन स्त्री का स्मरण कर अपने उस रूप को प्राप्त करे। न कि पश्चिम की स्त्रियों का नकल करे।”
समाज सेविका निर्मला शर्मा के अनुसार " भारत के गांवों में रहने वाली स्त्री तो मुक्त होने की इच्छा व्यक्त नहीं करती। एक मजदूरन भी ऐसी सोच नहीं रखती। मुक्ति वो स्त्रियां चाहती हैं जो कम कपड़ों में टेलीविजन के विज्ञापनों में नजर आती हैं ताकि वो कपड़ों का बोझ और हल्का कर सकें। नारी मुक्ति के बारे में वो औरतें सोचती हैं जिनकी जुबान पर हमेशा रहता है ‘ये दिल मांगे मोर’।

#नोट -
#तथ्य_और_आकडे_साभार.....9University of North Carolina, 7National Institute of Justice (pages 6-7), 8Family Violence Prevention Fund,10National Coalition of Anti-Violence Programs (NCAVP), 11http://www.bhartiyapaksha.com/?p=1634
1-Bureau of Justice Statistics,

2-Deptartment of Justice,
3-Centers for Disease Control and Prevention (CDC),
4-National Coalition Against Domestic Violence (NCADV),
5-Bureau of Justice Statistics (table 2, page 15),
6-US Census Bureau (page 12),

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=280466935753052&id=100013692425716

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