भारत के इस्राइल के साथ संबंध आज के नहीं, पाकिस्तान के साथ लड़ाइयाँ हुई थी तब से हैं । हाँ, काँग्रेस की सरकार थी । लेकिन कॉंग्रेस के प्रधानमंत्री नहीं गए इस्राइल । जनता दलदल के भी नहीं गए । और हाँ, गठबंधन की मजबूरियाँ निभाते अटलजी भी अटके रहे ।
क्यों नहीं गए ये सभी ? क्योंकि मुसलमानों को अच्छा नहीं लगता । काँग्रेस ने हिंदुओं को इतना बिखरा कर रख दिया था कि हिंदुओं की संख्या कई गुना ज्यादा होकर भी काँग्रेस एकमुश्त मुसलमान वोट की मोहताज रही और इस मोहताजी की कीमत देश ने चुकाई ।
फ्रेंच दार्शनिक Voltaire का एक प्रसिद्ध quote है - आप को अगर जानना है कि आप पर किसकी सत्ता है तो पता कीजिये आप किसकी आलोचना नहीं कर सकते । “To learn who rules over you, simply find out who you are not allowed to criticize"
आज मोदी जी इस्राइल गए हैं । आप को क्या लगता है, मुसलमानों को अच्छा लगता होगा? जरा उनके सीक्रेट ग्रुप्स में जो तफरीह करते हैं उन दोस्तों से पूछिए, पता चल जाएगा ।
हिंदुओं के लिए मोदी जी कुछ नहीं कर रहे यह बहुत दिनों से सुन रहा हूँ । चलिये, मैं भी शुरू से ही यही कहते आ रहा हूँ, कि वे विकास का ही अजेंडा ले कर आए हैं, हिन्दुत्व का नहीं । आज भी इस बात से हट नहीं रहा हूँ । फिर भी, एक सवाल है ।
मोदी जी हिंदुओं के लिए कुछ करे इसके लिए हिन्दू ही हिंदुओं के लिए क्या कर रहे हैं ? भाजपा के पार्षद से लेकर सांसद पर दबाव बनाए रखना आवश्यक है, इसके लिए सतत संपर्क बनाए रखना आवश्यक है । संपर्क के लिए किसी के पास समय नहीं तो एक पूर्णकालिक वेतनभोगी यंत्रणा आवश्यक है ।
जकात से ऐसी यंत्रणा बनती है जो किसी भी राजनेतासे संपर्क और दबाव का काम करती है । ईसाई भी चर्च में नियमित अंशदान देते हैं । संपर्क यंत्रणाएँ उनकी भी होती हैं । और तो और, उनके ही कान्वेंट में जो हमारे बच्चे पढ़कर बड़े आदमी बनाते हैं उनसे भी नियमित संपर्क बना रहता है, काम उनसे भी लिया जाता है । हमारे कोई ऐसी संस्था नहीं । जिन्हें हम ऐसी संस्था मानते आए हैं वे ऐसे हैं नहीं । और हम सभी से मुफ्त की सहायता की अपेक्षा करते हैं ।
कबूतर देखे हैं ? बिना मेहनत का खाना ढूंढनेवाला जीव है । एक सच्ची घटना सुनाता हूँ । मेरे एक मित्र ने सुनाई थी आज से लगभग चालीस साल पहले । उनके पड़ोसी बालिका का हाथ अचानक काम करना बंद हुआ । किसी ओझा को दिखाया तो उसने कहा कबूतर का ताजा खून लगा दो । हमारे मित्र ने ज़िम्मेदारी उठाई । टेरेस पर पारदर्शी नायलॉन का जाला बिछाया, उसपर चने बिखेर दिये । "आ: आ: “ कर के कबूतरों को पुकारते रहे । कुछ ही समय में कई सारे कबूतर आए, चने खाने लगे। इनहोने जाल खींचा, उसमें कई फंसे थे। चार पाँच रख लिया, बाकी छोड़कर उड़ा दिये । लगभग एक सप्ताह भर रोज ये कार्यक्रम चला । रोज कबूतर आते थे । और मेरे एक प्रश्न के उत्तर में उन्होने कहा कि एक दो अन्यों से अलग दिखनेवाले चितकबरे कबूतरों के कारण मुझे लगता है कि वही कबूतर बार बार आते थे ।
मुफ्त की चाहोगे, मुफ्त में मारे जाओगे ।
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#आनंद_राज्याध्यक्षजी
Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=485204761820542&id=100009930676208
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