#वेद_vs_विज्ञान भाग - 23
#वर्षामापन
(rain- proof )
#परिचय -
वर्षामापी (rain gauge या udometer या pluviometer) एक ऐसी युक्ति है जो वर्षा की मात्रा की माप करता है। जिससे ये पता लगाया जाता हैं कि अमुक स्थान पे वर्षा की मात्रा कितनी है या कितनी वर्षा हुई।मौसमविज्ञानी इसका बहुत उपयोग करते हैं।
#आधुनिक विज्ञान के मतानुसार - वर्षा की माप मिलीमीटर में की जाती है। इसका सिद्धान्त बहुत सरल है। इसके लिये एक चौड़े मुंह का बर्तन प्रयोग में लाया जाता है जिसका पेंदी से लेकर उपर तक का क्राससेक्शन समान हो। इसको ऐसी जगह पर रख दिया जाता है जहाँ वर्षा का जल बिना किसी व्यवधान के इसमें गिरता रहे। किसी निर्धारित समयावधि में इसमें एकत्र द्रव (पानी) की उँचाई ही उस अवधि में वर्षा की माप कहलाती है।
सन् १६६२ ई में ब्रिटेन के क्रिस्टोफर रेन (Christopher Wren) ने पहला टिपिंग बकेत वर्षामापी (tipping-bucket rain gauge) विकसित किया।
#वैदिक शास्त्रों में विस्तृत उल्लेख -
" कृषि पाराशर " में वर्षा को मापने का वर्णन मिलता है-
अथ जलाढक निर्णयः
शतयोजनविस्तीर्णं त्रिंशद्योजनमुच्छि्रतम् ।
अढकस्य भवेन्मानं मुनिभिः परिकीर्तितक् ॥
अर्थात - पूर्व में ऋषियों ने वर्षा को मापने का पैमाना तय किया है । अढकक याने सौ योजन विस्तीर्ण तथा ३०० योजनब ऊँचाई में वर्षा के पानी की मात्रा ।
योजनब अर्थात् - १ अंगुली की चौड़ाई
१ द्रोण = ४ अढक = ६.४ से. मी.
आजकल वर्षा मापन भी इतना ही आता है ।
कौटिलय के अर्थशास्त्र में द्रोण आधार पर वर्षा मापने का उल्लेख तथा देश में कहाँ कहाँ कितनी वर्षा होती है, इसका उल्लेख भी मिलता है ।
#विशेष -
ऐसा नहीं है वेदों में सिर्फ पूजा पाठ ही था ,वेद पढ़िए और जानिये भारत के स्वर्णिम अतीत और विज्ञान को |
साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=279119872554425&id=100013692425716
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