Saturday 22 July 2017

Debunking the "Blue" Belt of India

Debunking the "Blue" Belt of India:

Valmiki repeatedly mentions in the Ramayana that birth in the higher varna and in good families is the result of excellent Karmas in previous lives. At the same time, we have the Blue Belts proclaiming poor Valmiki to be one of their own!

"There are those dalits who consider Ambedkar/Mayawati  a "Bodhisattva "

--->A Bodhisattva can by no means come from a lower or even mixed caste: ‘After all Bodhisattvas were not born in despised lineage, among pariahs, in families of pipe or cart makers, or mixed castes.’ Instead, in perfect harmony with the Great Sermon, it was said that: ‘
The Bodhisattvas appear only in two kinds of lineage, warriors (kshatriya).
and if there is no suitable warrior then the lineage  of the brahmanas
-LALITAVISTARA

--In his study of caste and the Buddha (“Buddhism, an atheistic and anti-caste religion? Modern ideology and historical reality of the ancient Indian Bauddha Dharma”, Journal of Religious Culture, no.50 (2001)),
-- Edmund Weber

Did the Buddha denounce Vedic Sampradaya as often mouthed by the Ambedkarites ??

A) At the end of his life, the Buddha unwittingly got involved in a political intrigue when Varsakara, a minister of the Magadha kingdom, asked him for the secret of the strength of the republican states. Among the seven unfailing factors of strength of a society, he included “sticking to ancient laws and traditions” and “maintaining sacred sites and honouring ancient rituals”.
[Digha Nikaya 2:73]

So, contrary to his modern image as a “revolutionary” who rebelled against the caste system and vedic society , the Buddha’s view of the good society was close to vedic sociey 

Far from denouncing “empty ritual”, he praised it as a factor of social harmony and strength. He wanted people to maintain the ancestral worship of the Vedic gods, go to the Vedic sites of pilgrimage and celebrate the Vedic festivals. " (Shonan Talpade)

Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10156431781268082&id=683703081

नागचंद्रेश्वर मंदिर – साल में मात्र एक दिन खुलता है मंदिर

नागचंद्रेश्वर मंदिर – साल में मात्र एक दिन खुलता है मंदिर

हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का,जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्तिथ है। इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में मौजूद रहते हैं।

नागचंद्रेश्वर मंदिर में  11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है ,

इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। माना जाता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और माँ पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।

पौराणिक मान्यता –

सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सा‍‍‍न्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया ।

#अघोर

साभार: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1427980220628904&id=1344377732322487

नास्तिकों के कुछ कुतर्क व उनके जवाब

एक कुतर्की नास्तिक लड़की ने हमसे प्रश्न किये ,  उसके जवाब उद्धृत कर रहा हूँ ---

1,नशा करना भोलेनाथ ने सिखाया।।

समाधान --
स्वयं नशा करने के लिये महादेव का नाम पाखण्डियोंका काम है , किसी शास्त्रमें नहीं लिखा महादेव नशा करते हैं , तुम्हे महादेवने किया वह करना है ? महादेवने हलाहल विष पान किया था तुम भी पियो हलाहल विष , पीने की सामर्थ्य है तुम में जो महादेवके नाम का दुर्पयोग करते हो ? महादेव ने हलाहलविष पिया जो त्रिलोकी को भस्म कर देता ऐसे विषको नष्ट करने लिये महादेव विष पान किया और महा ज्वलनशील विषको शांत करने के लिये महादेवका विजया (भांग) स्नान होता है न कि महादेव विजया पीते हैं , तुम लोग साबुन-शैम्पू से स्नान करते हो या उसे खाते हो ? महादेव पर चढ़ी हुईं वस्तुओंको खाने पीने की तुम लोगों को ज्यादा ही रूचि है तो महादेव पर धतूरा चढ़ता वो भी कभी खाकर देखना , फिर महादेवपर नशा करने का आरोप लगाना ।

2,बेईमानी,छल,कपट को श्री कृष्ण ने सिखाया। ---

समाधान ---
किसके साथ किया छल-कपट ? जिन श्रीकृष्णने मथुरा राज्य भी ठुकरा दिया कंसके पिता उग्रसेनको राजा बनाया स्वयं नहीं बने , जिन श्रीकृष्णने नित्य आठ भार स्वर्ण देने वाली स्यमन्त्यकी मणि भी ठुकरा दी अक्रूरको दे दी उन श्रीकृष्ण पर छल-कपट का आरोप लगाना मूर्खता ही है , छल-कपट किया तो अन्याय के विरुद्ध किया अपने स्वार्थके लिये नहीं । शठ के साथ शठ जैसा व्यवहार ही उचित है ।

3,तलाक देकर नारी को बेघर करना श्री राम ने सिखाया। ---

समाधान --
न तो विवाहविच्छेद (तलाक) भारतीय संस्कृति में है और न ही भगवान् श्रीरामने माता  सीताको बेघर किया था , राजमहलोंके भोगों में पलने वाले क्या समझेंगे प्रजा का दुःख दर्द ? जो प्रजा के बीच रखकर उनके दुःख दर्द को समझेगा वही उनके दुःख दर्द को दूर कर सकता है , इसीलिए स्वयं भगवान् श्रीरामने 14 वर्ष वन में रहकर प्रजाके दुःख दर्द को समझा उसे स्वयं जीकर देखा तब महान् सम्राट बनकर प्रजाका दुःख दर्द दूर किया । गर्भवती माता सीता अपने पुत्रो को राज महलोंके भोगों में अपने पुत्रोंका पालन पोषण संस्कार नहीं करना चाहती थीं । इसीलिएने भगवान् श्रीरामसे वन में गङ्गा किनारे फल मूल खाकर तपस्या करने वाले वाल्मीकि ऋषि के सानिध्य में  रह कर अपने पुत्रोंको संस्कारित करने की इच्छा व्यक्तकी थी --
"गङ्गातीरोपविष्टा नामृषीणां मुग्रतेजसाम् ।
फलमूलाशिनां देव पादमूलेषु वर्तितुम् ।।
एष मे परम: कामो यन्मूलफलभोजिनम् ।। "     
भगवान् श्रीरामने माता सीताके वाल्मीकिके आश्रममें रहने की पूरी व्यवस्था भी की थी और माँ सीताके माता पिताको पहले से ही वाल्मीकिके आश्रममें बुला लिया था यही नहीं उन्होंने यह भी कहा उनके दो पुत्र होंगे उन्हे संस्कारित करके मेरे पास वापस आ जाना -- "वाल्मीकेराश्रवे चैवं कुमारौ द्वौ भविष्यति । " ,
"अग्रे गत्वा च त्वत्पिता त्वद्योगं च गृहादिकम् ।। "        यदि भगवान् श्रीराम त्याग ही करते तो माता सीताकी अनुपस्थिति में अश्वमेध यज्ञोंमें काञ्चनी सीताकी मूर्ति न रखकर दूसरा विवाह करते । इसीलिए यह आरोप अधूरा ज्ञान और पूर्वाग्रह से लगाया गया दुरभिसन्धि मात्र है ।

4,झूठ बोलना नारदमुनि ने सिखाया। ---

समाधान --
नारद मुनि झूठ बोलते थे , यह तुमने कहाँ देखा ? क्या तुम्हे मिले थे ? अथवा सीरियलों और फिल्मों वाले नारदजी को देखकर ये आरोप लगाया ?      देवर्षि भगवान् नारदजी तो किसी कामना और लोभसे भी झूठ नहीं बोलते ऐसा हमारे शास्त्रों और इतिहास में प्रसिद्ध है इसीलिए सभी प्राणी उनकी पूजा करते हैं --"कामाद्वा यदि वा लोभाद् वाचं नो नान्यथा वदेत् । उपास्यं सर्वजन्तूनां नारदं तं नमाम्यहम् ।।"       

5,स्त्री को बुरी नजर से देखना श्री कृष्ण ने सिखाया। ---

समाधान --
जो श्रीकृष्ण द्रौपदीजी की लालकी रक्षा करने वाले हैं , जिन्होंने द्रौपदीजी पर पड़ने वाली गन्दी दृष्टिको महाभारत युद्धमें यमलोक भेज दिया उन भगवान् श्रीकृष्ण पर ऐसे घोर आरोप तो कोई विक्षिप्त या कोई षड्यन्त्रकारी ही लगा सकता है । यदि चीर हरण लीला के कारण आरोप लगा रहे हो तो जरा बुद्धिके कपाट खोलो और विचार करो उस समय श्रीकृष्ण मात्र 6 वर्ष 3 मास के थे । 6  वर्षका बालक के अंदर कैसे  स्त्रियों को निर्वस्त्र देखने भावना हो सकती है ?  अब स्पष्ट करता हूँ -- चीर हरण लीला उस समय हुई थी जब भगवान् श्रीकृष्ण 6 वर्ष 3 मास के थे और हेमन्त ऋतु के प्रथम मास मार्गशीर्ष (दिसम्बर) में गोप कन्याएँ जमुना स्नान करके माँ कात्यायनी का पूजन करती थीं --
"हेमन्ते प्रथमे मासे नन्दव्रजकुमारिका: ।
चेरुर्हविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्चनव्रतम् ।।"    
ये स्त्रियां नहीं व्रजकुमारिकाएं अर्थात् 5 से 8 वर्ष की कन्याएँ थीं ।  यही नहीं सुबह पौ फटते(ब्रह्म मुहूर्त में 4 बजे)  ही जमुना स्नान करती थीं -
"उषस्युथाय गोत्रै: ..... कालिन्द्यां स्नातुमन्वहम् ।।"      अब कल्पना कीजिए प्रातः पौ फटते ही सुबह ब्रह्ममूर्त में कितना अन्धकार रहता है , जिसमें गोपियाँ स्नान करती थीं , जिसमें कोई निर्वस्त्र तो क्या सवस्त्र भी नहीं दिखता । यही नहीं वो मार्गशीर्ष मास अर्थात् दिसम्बर की सर्दियोंमें जब सूर्योदयके बादभी घना कोहरा होता है , ऐसे में ब्रह्ममुहूर्त में भला कोई मनुष्य को निर्वस्त्र कैसे देख सकता है ? जब सवस्त्र नहीं दिखाई देता है । और आश्चर्यतो ये है आरोप लगाने वाले ने ये भी विचार नहीं किया ,कि उस समय बिजली भी नहीं थी , यही नहीं भगवान् श्रीकृष्ण तो स्वयं ही वृक्ष पर छिपकर बैठ गए थे न कि गोपियों को निर्वत्र निहार रहे हों । यह आरोप पाप दृष्टिसे ही किसी दुर्मति ने लगाया होगा अन्यथा थोड़ी भी बुद्धि होने वाला मनुष्य ऐसे आरोप नहीं लगाएगा ।

6,जानवरो की हत्या करना श्री राम ने सिखाया। - -

समाधान --
कुत्ते तक को न्याय दिलाने वाले भगवान् श्रीराम पर यदि माया मृग को लेकर पशु वध का आरोप लगाना दुरभिसन्धि मात्र ही है , भला स्वर्ण और रत्नों के पशु कब से होने लगे जो पशु वध का आरोप लगा रहे हो ?  "प्रलोभनार्थं वैदेह्या नाना धातुविचित्रितम् ।"   यही नहीं श्रीरामके आश्रम में तो तरह तरह के मृग और पशु पक्षी विचरण करते थे , उनकी हत्या क्यों नहीं की "मृगाश्चारन्ति सहिताश्चमरा: सृमरास्तथा ।"   माँ सीता तो उसे अपने उद्यान और अन्तःपुर में खिलाने के लिये चाहती थीं मारने के लिये नहीं -"अन्तःपुरे विभूषार्थो मृग एव भविष्यति ।"       भगवान् श्रीराम जानते थे वह मृग मारीच नामक राक्षस की माया है और वो दुष्ट मारीच  अनेकों मनुष्यों -ऋषियों को मारकर खा गया था , उसका वध करना भगवान् का धर्म था  , इसीलिए पशु वध का आरोप असङ्गत ही है ।"यदि वायं तथा यन्मां भवेद् वदसि लक्ष्मण । मायैषा राक्षसस्येति कर्तव्योऽस्य वधो मया ।।"

7, बिना सोचे समझे किसी भी बात में कट्टर होना अल्लाह ने सिखाया --

समाधान --
मोहम्मद हज़रत ने क्या किया , क्या सिखाया ? ये हमारे धर्म का विषय नहीं और न मैं उचित समझता हूँ किसी के धर्म पर अपना वक्तव्य रखना , बस यही कहूँगा आज जो मोहम्मद हज़रत के नाम पर प्रचारित और प्रसारित किया जा रहा है , वह मुहम्मद हजरतका ही मत है , यह संदिग्ध है क्योकि हजरत मुहम्मद की मृत्यु 632 के 20 वर्ष बाद कुरआन और 220 वर्ष बाद हदीसें लिखी गयी थीं  पढ़िये ( the Retionalist Assoiation of New Sauth Weles, 58 RegentStreet, Chippendale ,N.S.W.2008 Australia) पुस्तक में । इसीलिए नहीं कहा जा सकता मोहम्मद हज़रत ने क्या सिखाया था ।

8, जुऑ खेलना पांडवो ने सिखाया  -- 

समाधान --
जुआ न तो पांडवोंने अपनी इच्छा से खेला था और न ही पांडवोंसे जुआ खेलना प्रारंभ किया था , जुआ तो शकुनिने प्रारंभ किया था और आज्ञाकारी पाण्डवोंको धृतराष्ट्रकी आज्ञा का न चाहते हुए भी पालन करना पड़ा । तुम लोग क्या समझोगे पितृ भक्ति जो अपने माता पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं । 
9,नारी का सटा लगाना भी पांडवो ने सिखाया । ---

समाधान --
पाण्डवोंने जुआ खेला तो उसका दण्ड भी 13 वर्ष बनमें रहकर भोगना पड़ा था फिर ये कैसे कह सकते हैं कि जुआ खेलना सिखाया ?   रहा प्रश्न पत्नी को दाव लगाने का तो न तो जुआ ही वैध है न ही पत्नी को दाव पर लगाना , लेकिन जो व्यक्ति जुआ में अपना सब कुछ हार गया हो उसे ये कहाँ सूझता है कि क्या दाव पर लगाना चाहिये या क्या नहीं लगाना चाहिये ?   फिर भी न तो पाण्डव भगवान् थे न उनके जुआ को कभी उचित ही माना गया है फिर तुमने प्रेरणा कैसे ले ली ? पांडवोंने तो एक सती पर हुए अन्यायके लिये महाभारत युद्ध लड़ा था और अन्यायी 100 कौरवोंको दण्ड दिया था पर  तुम तो सब मिलकर भी एक बलात्कार की पीड़ित लड़की को न्याय न दिला सके , उसके अपराधी को नावालिग घोषित करके मुक्त करा दिया , क्या यही न्याय है ? क्या यही नारीका सम्मान है ?

अगर भगवान नही होता तो दुनिया में एक भी अपराध नही होते! --

भगवान् ने तो मनुष्य को प्रेम और भातृत्व ही सिखाया , अपने पिताके वचनके लिये 14 वर्ष वनवास भोगा , अपने भाई को अपना राज्य देकर स्वयं तपस्या करना स्वीकार किया बदले में तुम लोगों (प्रजाजनों)ने क्या दिया ? जब तक भगवान् धरती पर रहे उनके नेत्रों में अश्रु , उनके जीवनमे कष्ट ही दिए, माँ सीता को वनवास कराकर कौन सा  अपराध रोका था ?
जनहित में जारी

Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1936855586590138&id=100007971457742

Thursday 20 July 2017

गौरक्षा हमारा धार्मिक अधिकार है

गौरक्षा हमारा धार्मिक अधिकार है।

डॉ विवेक आर्य

हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने गौरक्षकों को लेकर टिप्पणी की है। मेरे विचार से मोदी जी को गौरक्षकों की आलोचना करने से पहले हमारे इतिहास और वर्तमान की परिस्थितियों को भली प्रकार से समझ लेना चाहिए था। सदियों से हिन्दू समाज गौरक्षा को लेकर अत्यंत  संवेदनशील रहता आया है। इसका मुख्य कारण वह गौ को माता के समान सम्मान देता है। जब जब शासक गौरक्षा को लेकर नाकाम सिद्ध हुआ है। तब तब हिन्दुओं ने चाहे प्राण चले जाये मगर गौरक्षा के लिए अनेक वीर गाथाएं लिखी है। दुर्भाग्य यह है कि इन वीर गाथाओं को किसी पाठ्क्रम में नहीं पढ़ाया जाता। जिससे आने वाली पीढ़ी इनसे प्रेरणा ले सके।

इस लेख माला के माध्यम से भी हम इतिहास की अनेक घटनाओं  से आपको परिचित करवाएंगे। जिसका सीधा सम्बन्ध गौरक्षा से है। इस लेख से सम्बंधित  घटना का सम्बन्ध श्री गुरु गोविन्द सिंह जी और बन्दा बहादुर के मिलन से है।

बात उन दिनों की है  जब गुरु गोविन्द सिंह एक ऐसे सामर्थ्यवान् व्यक्ति की खोज करने लगे जिसको वे भावी नेतृत्व सौंप सकें।  सितम्बर 1708 ईसवी के दिन सूर्यग्रहण पर लगे मेले पर गुरु जी साथी सिक्खों समेत माधोदास वैरागी के डेरे पर गए। मेला गोदावरी नदी के किनारे लगा हुआ था। परन्तु माधोदास डेरे में उपस्थित नहीं था। जब सांझ को वैरागी माधोदास गोदावरी नदी में स्नान करने बाद अपने डेरे पर लौटा तो उसके चेलों ने बताया कि प्रमुख अतिथि के सिक्खों ने डेरे के एक हिरण तथा एक बकरी और उसके दो लेलों को झटका कर अपने लिए भोजन तैयार कर लिया है।

यहां यह उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती जीवन में जम्मू में रहने वाले लक्ष्मणदास को अपने हाथों शिकार में घायल हुई एक गर्भवती हिरनी की दयनीय अवस्था ने राजपूत से एक वैरागी बना दिया था। तब से वह वैराग्य को धारण करके अनेक स्थानों से होता हुआ अन्ततः नान्देड़ में आ बसा था।

अब अपने आश्रम के चार प्राणियों के झटकाए जाने की बात सुनकर वह रोष से भर उठा और उसी भाव से श्रीगुरु जी के पास आया तो वैरागी का मनो-भाव जानकर वे अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ बोले :

"माधोदास ! हम तुम्हें मिलने आए हैं, तुम कहां गए हुए थे।"

वैरागी ने रोष भरे शब्दों में उत्तर दिया : ग़रीब नवाज़ ! मैं आपको नहीं जानता, आप कहां से आए हैं। यदि आप मुझे जानते थे तो मेरी प्रतीक्षा कर लेनी थी। ये प्राणी क्योंकर मारने थे, यह डेरा वैष्णव साधुओं का है !!

श्रीगुरु जी ने प्रत्युत्तर में कहा : माधोदास ! हमारे से तुम्हारी पहचान एक बार ऋषिकेश-हरिद्वार में हुई थी, उस समय तुम एक साधु-मण्डली में थे जिसका मुखिया औघड़नाथ योगी नासिक वाला था।

इस पर वैरागी बोला : महाराज ! आप गुरु गोविन्द राय जी हो जिनके पिता ने दिल्ली में जाकर अपना शीश बलिदान किया था !!

वैरागी का रोष कम होने लगा था। तब श्रीगुरु जी ने हां में उत्तर देते हुए आगे कहा : माधोदास ! तुमने पूछा है कि यह डेरा वैष्णव साधुओं का है जहां ये प्राणी क्योंकर मारने थे, यह शंका मेरी निवृत्त करें। माधोदास ! मुझे पता था, इसीलिए ये प्राणी मारे हैं, वरना इन्हें मारने की क्या ज़रूरत थी !! मैं तुम्हें जगाने के लिए आया हूं, वरना यहां चल कर आने की क्या ज़रूरत थी !!

अन्त में गुरु गोविन्द सिंह ने अपने आने का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा : देखो माधोदास ! इन तीन-चार जानवरों के मारने से तो तेरा आश्रम भ्रष्ट हो गया, तम्हें इस विशाल आश्रम हिन्दुस्तान का पता कैसे नहीं जहां मुस्लिम-सत्ता द्वारा सैंकड़ों-हज़ारों मज़लूम निर्दोष हिन्दू नित्य मारे जा रहे हैं। (सुबह का सूरज उगने से पहले मलेच्छ तुर्क हज़ारों गौओं के प्राण अपनी कटार से हर लेते हैं।) मैं केवल तेरा ध्यान दिलाने के लिए यहां तुम्हारे आश्रम में आया हूं।

वैरागी की अपने आश्रम के प्राणियों के प्रति व्यक्त की गई व्यक्तिगत-पीड़ा श्रीगुरु जी के इस एक वाक्य के प्रभाव से पलक झपकते ही राष्ट्रगत-पीड़ा में परिणत हो गई। वैरागी द्रवित होकर बोला : मैं आज से दिल-ओ-जान से आपका बन्दा हूं, मुझे आगे के लिए कारसेवा बताएं (गुरू कीआं साखीआं, साखी ११०, पृष्ठ १९७-१९८)।

इस प्रकार वैरागी पहले वाला माधोदास नहीं रहा। वह अपना मान-ताण त्यागकर श्रीगुरु जी का सही बन्दा बन गया। तब से वह "बन्दा वैरागी" कहलाने लगा।

भाई केसर सिंह छिब्बर अपनी रचना बंसावलीनामा दसां पातशाहीआं का में बताते हैं :

"उसके बाद श्रीगुरु जी ने अपने पास से सब आदमी दूर कर दिए। दोनों ने परस्पर मिल-बैठ कर गुप्त वार्ता-लाप किया। अन्ततः वैरागी गुरु जी के चरण आ लगा। पाहुल=दीक्षा लेकर गुरु का दृढ़-निश्चयी सिंह बन गया। उसने गुरु साहिब से कहा

: मैं आपका बन्दा हूं। आप हैं पूर्ण सत्गुरु और मेरे रक्षक।

इस प्रकार श्रीगुरु जी भावी नेतृत्व का भार उसे सौंप कर वहां से चले आए। वह आश्रम के बाहरी द्वार तक श्रीगुरु जी को विदा करने आया और फिर मुड़ गया। मुड़ते हुए उसने श्रीगुरु जी से पूछा : कितनी मुद्दत तक बात पर्दे में रखनी है !

तब गुरु जी ने कहा : नौ मास दस दिन तक। इसके बाद जितना ठीक समझो।"

इसके कुछ दिनों बाद वैरागी माधोदास = बन्दा वैरागी ने श्रीगरु जी की आज्ञा के अनुरूप अपना आश्रम हरि दास दक्खनी को सौंप कर स्वयं उनके निवास स्थान पर आ पहुंचा। दूसरे दिन भाई दया सिंह ने माधोदास से कहा : सन्त जी ! तैयारी करें, अापको खाण्डे की पाहुल देनी है। इसके बाद श्रीगुरु जी ने उसे अपने पावन हाथों से विधिपूर्वक खाण्डे की पाहुल देकर वैरागी से सिंह सजा दिया (गुरू कीआं साखीआं, साखी १११, पृष्ठ १९९)।

भट्ट स्वरूप सिंह कोशिश आगे बताते हैं :

"सम्वत् १७६५ विक्रमी की कार्त्तिक शुक्ला तृतीया के दिन वैरागी माधोदास=बन्दा सिंह को पन्थ का जत्थेदार बनाकर श्रीगुरु जी ने उसे नायक भगवन्त सिंह बंगेश्वरी के टांडे में मद्रदेश (पंजाब का प्राचीन नाम) जाने का आदेश दिया। उसके हमराह भाई भगवन्त सिंह, कोइर सिंह, बाज़ सिंह, विनोद सिंह और काहन सिंह - ये पांच प्रमुख सिक्ख भेजे गए। श्रीगुरु जी ने बन्दा सिंह को एक कृपाण, एक मुहर, पांच तीर और एक निशान साहिब देकर पंजाब की ओर विदा किया (गुरू कीआं साखीआं, १८४७ विक्रमी, साखी १११, पृष्ठ २००)।

श्रीगुरु गोविन्द सिंह से प्रेरणा पाकर शूरवीर बन्दा वैरागी ने लगभग नौ मास के भीतर गुप्त रूप से एक बलिष्ठ सैनिक संगठन खड़ा कर लिया और उसके बाद मुग़लों को पराजित करना प्रारम्भ कर दिया। फिर उस शूरवीर ने श्रीगुरु जी के पिता, माता और पुत्रों के दोषी मुस्लिमों को समुचित दण्ड देते हुए सरहिन्द की ईंट से ईंट बजा दी।

इस प्रकार से श्री गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा हिन्दू प्रजा और गौ रक्षा के आवाहन पर बन्दा बैरागी ने मुग़ल सल्तनत की ईंट से ईंट बजा दी थी।

गौरक्षकों की आलोचना करने के स्थान पर प्रधानमंत्री जी को अपने प्रशासन तंत्र को दुरुस्त करना चाहिए। आखिर क्यों ट्रक के ट्रक गौओं के भरे हुए हरियाणा से बंगलदेश पहुंच जाते हैं? कौन कौन पैसा खाता है? कौन कौन गौमांस की तस्करी के लिए जिम्मेदार है। अपना प्रशासन तंत्र ठीक कीजिये।

जब शासक गौरक्षा में नाकाम हो जाये तो प्रजा जमीन पर उतर आती है।

साभार: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10213292385921355&id=1148666046

Wednesday 19 July 2017

The Dharmic flags of Bharatvarsha

Speaking of Flags, some flags are going to be spoken about in a series of posts.

Flag 1- Sister Nivedita's India flag(c.1904).Thuderbolt in the centre represents Indra's Vajra.'Vande mataram' horizontal.

Too Hindu for congress secularists to accept as national flag of India.Just as 'Jana gana mana' was preferred over Vande Mataram. It was Gandhi who advised them to make flags "acceptable to all religions".

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Flag- 2

The Indian National Congress, India's largest political party before independence, adopted a white, green and saffron flag as its unofficial flag in 1921. "The saffron originally stood for Hinduism, green for Islam, and white stood for other minority religions(we could say christians)". 

However,Muslim organisations scorned Gandhi's interpretations saying they wouldnt adopt any 'Hindu' symbol. That is why the congress reinterpreted the meaning of the flag. Now saffron has come to mean 'sacrifice'  etc..,.

It is also believed that white also formed a buffer of peace between the two communities, as in the flag of Ireland. In 1931, the Congress party adopted another flag with the colours saffron, white and green, and featuring the Charkha ( spinning wheel) in the centre, as their official flag. This flag purportedly had no religious symbolism associated with it. 

Before accepting this original flag, one more flag was discussed by Gandhi with Pingali(proposed by Pingali Ji), which had a spinning wheel in the centre with Green and Red clours(the colour of the flag of Samajvadi Party) in  background.
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Flag- 3

We discussed some Indian flags and our Tricolour, in my previous posts. We got to know what exactly those three colours mean. And it was intentional by Congress to change its actual meaning and euphemise it all.

Lets discuss some more flags(not necessarily talking about the nation India but the ideology of Bharat):

'Jan sangh flag was all saffron,no green. However, its offspring, BJP, deliberately introduced Green'. We all know why was that needed, obviously to look Secular. 

Haven't they been trying??

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Flag- 4:

Some more flags representing Bharat and Sanatan.

Flag of Vijayanagara Empire. Saffron-Yellow, Surya, Chandra, Chhuri and Varaha.
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Flag- 5

Som more flags from the times when Sanatan wasn't hated and people used to wear it on their sleeves.

Flag of Kakatiya Empire: Saffron-Yellow(Kashaya) and Swayambhushiva temple of Warangal.

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Flag - 6

Flag of the Great Maharana Pratap. Surya represented their suryavansh lineage

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Flag 7-

Flag of Maharaja Hemu or Hemachandr Vikaramaditya(c.1556) when he foguht mughals in Tughlakabad and defeated them. All Saffron.

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Flag 8- 

Another Sanatani Flag of another great Empire.

Flag of the Great Maratha Empire. Saffron Hindu flag also used in temples since early medieval days.


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Flag 9-

Another one, with the Sanatan Force.

Standards of Maharana Bhim singh, Mewar. It has Surya, Chandra,Talwar, Saffron and Lord Bajrangbali Ji.


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Flag 10-

Standards of Sikh Maharaja Ranjit Singh during battle of multan vs Afghans(19thc). Mata Saraswati Ji, Varahi and Lord Hanuman Ji.

So, sikhs werent that staunch till 19th century...? Hmm😉


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Flag 11-

Another one, with Saffron identity.

Standards of Sikh General Hari Singh Nalwa during siege of Peshawar. Saffron with Goddess varahi in the centre.


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Flag 12-

Another one from the same,

Standards of Maharaja Ranjit singh at Khyber. Saffron-Red. Goddess Chandi at the centre. Flanked by Lakshman and Hanuman.

Will Khalistanis accept it today😜?

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Flag 13-

Another one, with Saffron identity

Flag of princely state of Cooch Behar. Saffron. Surya representing royal grace(varchas).

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Epilogue/flag 14-

Another one...

Varaha, Churi, Surya and Chandra were symbols on the flags of Chalukyas. Ladkhan temple(c.700 AD)(image). Chalukyas represented a standard of royal hood in karnantaka and Vijayanagaras tried to adhere to those standards in almost all respects.

Varaha in Chalukya, Hoysala and Vijayanagara symbols represented an avatara of Lord Vishnu.


Courtesy: Kala Krishna, link to last post on Facebook: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10207798712765478&id=1824219165

विश्वगुरु_भारत_से_विकासशील_भारत_का_सफर

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