एक कुतर्की नास्तिक लड़की ने हमसे प्रश्न किये , उसके जवाब उद्धृत कर रहा हूँ ---
1,नशा करना भोलेनाथ ने सिखाया।।
समाधान --
स्वयं नशा करने के लिये महादेव का नाम पाखण्डियोंका काम है , किसी शास्त्रमें नहीं लिखा महादेव नशा करते हैं , तुम्हे महादेवने किया वह करना है ? महादेवने हलाहल विष पान किया था तुम भी पियो हलाहल विष , पीने की सामर्थ्य है तुम में जो महादेवके नाम का दुर्पयोग करते हो ? महादेव ने हलाहलविष पिया जो त्रिलोकी को भस्म कर देता ऐसे विषको नष्ट करने लिये महादेव विष पान किया और महा ज्वलनशील विषको शांत करने के लिये महादेवका विजया (भांग) स्नान होता है न कि महादेव विजया पीते हैं , तुम लोग साबुन-शैम्पू से स्नान करते हो या उसे खाते हो ? महादेव पर चढ़ी हुईं वस्तुओंको खाने पीने की तुम लोगों को ज्यादा ही रूचि है तो महादेव पर धतूरा चढ़ता वो भी कभी खाकर देखना , फिर महादेवपर नशा करने का आरोप लगाना ।
2,बेईमानी,छल,कपट को श्री कृष्ण ने सिखाया। ---
समाधान ---
किसके साथ किया छल-कपट ? जिन श्रीकृष्णने मथुरा राज्य भी ठुकरा दिया कंसके पिता उग्रसेनको राजा बनाया स्वयं नहीं बने , जिन श्रीकृष्णने नित्य आठ भार स्वर्ण देने वाली स्यमन्त्यकी मणि भी ठुकरा दी अक्रूरको दे दी उन श्रीकृष्ण पर छल-कपट का आरोप लगाना मूर्खता ही है , छल-कपट किया तो अन्याय के विरुद्ध किया अपने स्वार्थके लिये नहीं । शठ के साथ शठ जैसा व्यवहार ही उचित है ।
3,तलाक देकर नारी को बेघर करना श्री राम ने सिखाया। ---
समाधान --
न तो विवाहविच्छेद (तलाक) भारतीय संस्कृति में है और न ही भगवान् श्रीरामने माता सीताको बेघर किया था , राजमहलोंके भोगों में पलने वाले क्या समझेंगे प्रजा का दुःख दर्द ? जो प्रजा के बीच रखकर उनके दुःख दर्द को समझेगा वही उनके दुःख दर्द को दूर कर सकता है , इसीलिए स्वयं भगवान् श्रीरामने 14 वर्ष वन में रहकर प्रजाके दुःख दर्द को समझा उसे स्वयं जीकर देखा तब महान् सम्राट बनकर प्रजाका दुःख दर्द दूर किया । गर्भवती माता सीता अपने पुत्रो को राज महलोंके भोगों में अपने पुत्रोंका पालन पोषण संस्कार नहीं करना चाहती थीं । इसीलिएने भगवान् श्रीरामसे वन में गङ्गा किनारे फल मूल खाकर तपस्या करने वाले वाल्मीकि ऋषि के सानिध्य में रह कर अपने पुत्रोंको संस्कारित करने की इच्छा व्यक्तकी थी --
"गङ्गातीरोपविष्टा नामृषीणां मुग्रतेजसाम् ।
फलमूलाशिनां देव पादमूलेषु वर्तितुम् ।।
एष मे परम: कामो यन्मूलफलभोजिनम् ।। "
भगवान् श्रीरामने माता सीताके वाल्मीकिके आश्रममें रहने की पूरी व्यवस्था भी की थी और माँ सीताके माता पिताको पहले से ही वाल्मीकिके आश्रममें बुला लिया था यही नहीं उन्होंने यह भी कहा उनके दो पुत्र होंगे उन्हे संस्कारित करके मेरे पास वापस आ जाना -- "वाल्मीकेराश्रवे चैवं कुमारौ द्वौ भविष्यति । " ,
"अग्रे गत्वा च त्वत्पिता त्वद्योगं च गृहादिकम् ।। " यदि भगवान् श्रीराम त्याग ही करते तो माता सीताकी अनुपस्थिति में अश्वमेध यज्ञोंमें काञ्चनी सीताकी मूर्ति न रखकर दूसरा विवाह करते । इसीलिए यह आरोप अधूरा ज्ञान और पूर्वाग्रह से लगाया गया दुरभिसन्धि मात्र है ।
4,झूठ बोलना नारदमुनि ने सिखाया। ---
समाधान --
नारद मुनि झूठ बोलते थे , यह तुमने कहाँ देखा ? क्या तुम्हे मिले थे ? अथवा सीरियलों और फिल्मों वाले नारदजी को देखकर ये आरोप लगाया ? देवर्षि भगवान् नारदजी तो किसी कामना और लोभसे भी झूठ नहीं बोलते ऐसा हमारे शास्त्रों और इतिहास में प्रसिद्ध है इसीलिए सभी प्राणी उनकी पूजा करते हैं --"कामाद्वा यदि वा लोभाद् वाचं नो नान्यथा वदेत् । उपास्यं सर्वजन्तूनां नारदं तं नमाम्यहम् ।।"
5,स्त्री को बुरी नजर से देखना श्री कृष्ण ने सिखाया। ---
समाधान --
जो श्रीकृष्ण द्रौपदीजी की लालकी रक्षा करने वाले हैं , जिन्होंने द्रौपदीजी पर पड़ने वाली गन्दी दृष्टिको महाभारत युद्धमें यमलोक भेज दिया उन भगवान् श्रीकृष्ण पर ऐसे घोर आरोप तो कोई विक्षिप्त या कोई षड्यन्त्रकारी ही लगा सकता है । यदि चीर हरण लीला के कारण आरोप लगा रहे हो तो जरा बुद्धिके कपाट खोलो और विचार करो उस समय श्रीकृष्ण मात्र 6 वर्ष 3 मास के थे । 6 वर्षका बालक के अंदर कैसे स्त्रियों को निर्वस्त्र देखने भावना हो सकती है ? अब स्पष्ट करता हूँ -- चीर हरण लीला उस समय हुई थी जब भगवान् श्रीकृष्ण 6 वर्ष 3 मास के थे और हेमन्त ऋतु के प्रथम मास मार्गशीर्ष (दिसम्बर) में गोप कन्याएँ जमुना स्नान करके माँ कात्यायनी का पूजन करती थीं --
"हेमन्ते प्रथमे मासे नन्दव्रजकुमारिका: ।
चेरुर्हविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्चनव्रतम् ।।"
ये स्त्रियां नहीं व्रजकुमारिकाएं अर्थात् 5 से 8 वर्ष की कन्याएँ थीं । यही नहीं सुबह पौ फटते(ब्रह्म मुहूर्त में 4 बजे) ही जमुना स्नान करती थीं -
"उषस्युथाय गोत्रै: ..... कालिन्द्यां स्नातुमन्वहम् ।।" अब कल्पना कीजिए प्रातः पौ फटते ही सुबह ब्रह्ममूर्त में कितना अन्धकार रहता है , जिसमें गोपियाँ स्नान करती थीं , जिसमें कोई निर्वस्त्र तो क्या सवस्त्र भी नहीं दिखता । यही नहीं वो मार्गशीर्ष मास अर्थात् दिसम्बर की सर्दियोंमें जब सूर्योदयके बादभी घना कोहरा होता है , ऐसे में ब्रह्ममुहूर्त में भला कोई मनुष्य को निर्वस्त्र कैसे देख सकता है ? जब सवस्त्र नहीं दिखाई देता है । और आश्चर्यतो ये है आरोप लगाने वाले ने ये भी विचार नहीं किया ,कि उस समय बिजली भी नहीं थी , यही नहीं भगवान् श्रीकृष्ण तो स्वयं ही वृक्ष पर छिपकर बैठ गए थे न कि गोपियों को निर्वत्र निहार रहे हों । यह आरोप पाप दृष्टिसे ही किसी दुर्मति ने लगाया होगा अन्यथा थोड़ी भी बुद्धि होने वाला मनुष्य ऐसे आरोप नहीं लगाएगा ।
6,जानवरो की हत्या करना श्री राम ने सिखाया। - -
समाधान --
कुत्ते तक को न्याय दिलाने वाले भगवान् श्रीराम पर यदि माया मृग को लेकर पशु वध का आरोप लगाना दुरभिसन्धि मात्र ही है , भला स्वर्ण और रत्नों के पशु कब से होने लगे जो पशु वध का आरोप लगा रहे हो ? "प्रलोभनार्थं वैदेह्या नाना धातुविचित्रितम् ।" यही नहीं श्रीरामके आश्रम में तो तरह तरह के मृग और पशु पक्षी विचरण करते थे , उनकी हत्या क्यों नहीं की "मृगाश्चारन्ति सहिताश्चमरा: सृमरास्तथा ।" माँ सीता तो उसे अपने उद्यान और अन्तःपुर में खिलाने के लिये चाहती थीं मारने के लिये नहीं -"अन्तःपुरे विभूषार्थो मृग एव भविष्यति ।" भगवान् श्रीराम जानते थे वह मृग मारीच नामक राक्षस की माया है और वो दुष्ट मारीच अनेकों मनुष्यों -ऋषियों को मारकर खा गया था , उसका वध करना भगवान् का धर्म था , इसीलिए पशु वध का आरोप असङ्गत ही है ।"यदि वायं तथा यन्मां भवेद् वदसि लक्ष्मण । मायैषा राक्षसस्येति कर्तव्योऽस्य वधो मया ।।"
7, बिना सोचे समझे किसी भी बात में कट्टर होना अल्लाह ने सिखाया --
समाधान --
मोहम्मद हज़रत ने क्या किया , क्या सिखाया ? ये हमारे धर्म का विषय नहीं और न मैं उचित समझता हूँ किसी के धर्म पर अपना वक्तव्य रखना , बस यही कहूँगा आज जो मोहम्मद हज़रत के नाम पर प्रचारित और प्रसारित किया जा रहा है , वह मुहम्मद हजरतका ही मत है , यह संदिग्ध है क्योकि हजरत मुहम्मद की मृत्यु 632 के 20 वर्ष बाद कुरआन और 220 वर्ष बाद हदीसें लिखी गयी थीं पढ़िये ( the Retionalist Assoiation of New Sauth Weles, 58 RegentStreet, Chippendale ,N.S.W.2008 Australia) पुस्तक में । इसीलिए नहीं कहा जा सकता मोहम्मद हज़रत ने क्या सिखाया था ।
8, जुऑ खेलना पांडवो ने सिखाया --
समाधान --
जुआ न तो पांडवोंने अपनी इच्छा से खेला था और न ही पांडवोंसे जुआ खेलना प्रारंभ किया था , जुआ तो शकुनिने प्रारंभ किया था और आज्ञाकारी पाण्डवोंको धृतराष्ट्रकी आज्ञा का न चाहते हुए भी पालन करना पड़ा । तुम लोग क्या समझोगे पितृ भक्ति जो अपने माता पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं ।
9,नारी का सटा लगाना भी पांडवो ने सिखाया । ---
समाधान --
पाण्डवोंने जुआ खेला तो उसका दण्ड भी 13 वर्ष बनमें रहकर भोगना पड़ा था फिर ये कैसे कह सकते हैं कि जुआ खेलना सिखाया ? रहा प्रश्न पत्नी को दाव लगाने का तो न तो जुआ ही वैध है न ही पत्नी को दाव पर लगाना , लेकिन जो व्यक्ति जुआ में अपना सब कुछ हार गया हो उसे ये कहाँ सूझता है कि क्या दाव पर लगाना चाहिये या क्या नहीं लगाना चाहिये ? फिर भी न तो पाण्डव भगवान् थे न उनके जुआ को कभी उचित ही माना गया है फिर तुमने प्रेरणा कैसे ले ली ? पांडवोंने तो एक सती पर हुए अन्यायके लिये महाभारत युद्ध लड़ा था और अन्यायी 100 कौरवोंको दण्ड दिया था पर तुम तो सब मिलकर भी एक बलात्कार की पीड़ित लड़की को न्याय न दिला सके , उसके अपराधी को नावालिग घोषित करके मुक्त करा दिया , क्या यही न्याय है ? क्या यही नारीका सम्मान है ?
अगर भगवान नही होता तो दुनिया में एक भी अपराध नही होते! --
भगवान् ने तो मनुष्य को प्रेम और भातृत्व ही सिखाया , अपने पिताके वचनके लिये 14 वर्ष वनवास भोगा , अपने भाई को अपना राज्य देकर स्वयं तपस्या करना स्वीकार किया बदले में तुम लोगों (प्रजाजनों)ने क्या दिया ? जब तक भगवान् धरती पर रहे उनके नेत्रों में अश्रु , उनके जीवनमे कष्ट ही दिए, माँ सीता को वनवास कराकर कौन सा अपराध रोका था ?
जनहित में जारी
Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1936855586590138&id=100007971457742
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