Saturday, 23 September 2017

धनपशु_समाज और द्वार_पर_खड़ी_मौत

#धनपशु_समाज और #द्वार_पर_खड़ी_मौत

#सामान्य_मध्यमवर्गीय_हिन्दू को जो बात समझ में आती है वह है तात्कालिक लाभ-हानि. एक औसत हिन्दू का नब्बे प्रतिशत उद्यम अपने बच्चों के आसपास केंद्रित होता है...बच्चे को अंग्रेज़ी पोएम सिखानी है, बच्चे को अच्छी नर्सरी में भेजना है, बच्चे को अच्छे स्कूल में एडमिशन कराना है, बच्चे को आईआईटी की तैयारी करानी है, बच्चे की शादी करानी है, बच्चों के बच्चे को संभालना है क्योंकि बहु को नौकरी करनी है...etc

       मूल में देखिए तो यह बच्चों की भी शुद्ध चिंता नहीं है, इसके मूल में भौतिक आर्थिक समीकरण ही अधिक हैं. बच्चा कमाए, ज्यादा पैसे वाली नौकरी करे, नौकरी करने वाली बहु लाये.......
दोनों मिलकर और ज्यादा कमाएँ.........।

     इसके पीछे भविष्य की प्लानिंग नहीं है. यह चिंता नहीं है कि हमारे बच्चे कैसा जीवन जियेंगे, किस तरह के समाज में रहना चाहेंगे. अपनी संततियों को कैसे संस्कार देंगे, कैसे देश समाज से जुड़ेंगे कि उनकी संचित आर्थिक समृद्धि सुरक्षित रह सके.   !
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      इसलिए ऐसे हिंदुओं से जब आसन्न सामाजिक संकट की चर्चा करें तो उसे स्पष्ट शार्ट टर्म इफ़ेक्ट तक सीमित रखें. आपकी जान पर खतरा है, और आपकी सोसाइटी का सिक्योरिटी गार्ड आपकी रक्षा नहीं कर पायेगा. आपके बच्चों को आपकी आँख के आगे काट डाला जाएगा और तब आईआईटी की अग्रवाल क्लासेज का स्कोर उसकी जान नहीं बचाएगा ।

अगर आपकी आंखों के आगे आपकी बेटी का बलात्कार होगा तो यह विचार आपको कोई सुख नहीं देगा कि आप सेक्युलरिज्म की जड़ें मजबूत कर रहे हैं क्योंकि बलात्कारी मुसलमान है. आपकी नौकरी, आपका रोजगार सुरक्षित नहीं है...।

     ...सामने वाला इसे आपके दिमाग में भरे ज़हर की उपज बताता है यह कहकर कि,,,,,...ऐसा कुछ नहीं होने वाला...???

लेकिन यह कराची, लाहौर, रावलपिंडी जैसे हिन्दू बहुल शहरों में हुआ है, आज़ाद भारत में काश्मीर में हुआ है, या आज बंगाल में हो रहा है, इससे वह इम्प्रेस्ड नहीं है...??
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     ऐसा हो ही जायेगा तो क्या कर लेंगे? कन्वर्ट हो जाएंगे...हर धर्म तो एक समान ही है, क्या फर्क पड़ता है...
हिंदुओं का एक वर्ग कन्वर्शन या धर्मपरिवर्तन    को आखिरी इलाज माने बैठा है. ........उसे यह नहीं पता कि दुनिया में मुस्लिम मुसलमानों की संख्या बढ़ाने में उतने इंटरेस्टेड नहीं हैं...।

वह बढ़ाने के लिए उन्हें अल्लाह के दिये अपने औज़ार का इस्तेमाल करना है, और अपनी या काफिरों की स्त्रियों की योनियाँ और गर्भाशय किस दिन काम आएंगे. .....???

       वे आपको कन्वर्ट करने में इंटरेस्टेड नहीं हैं. उन्हें आपकी जमीन, आपका फ्लैट, आपका रोजगार चाहिए...संभवतः आपकी बेटी भी, अगर बोनस में मिल रही हो....... !
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काश्मीर से हिंदुओं को जब भगाया गया तो उन्हें दीन की दावत नहीं दी गई. उन्हें अल्लाह के संदेश के बारे में नहीं बताया गया. मोहल्ले के लड़कों ने उनके दरवाजे पर निशान लगा रखे थे कि,,,,, उन्हें भगाने के बाद उसपर किसका कब्ज़ा होगा.....

उन्होंने नारे लगाए, हिंदुओं, कश्मीर छोड़ दो...और अपनी औरतों को पीछे छोड़ जाओ... कराची या लाहौर में हिंदुओं को दीन कि दावत नहीं दी गई. उन्हें काटा गया, लूटा गया...अगर कन्वर्ट ही कर लिया जाता तो कब्ज़ा किसके मकान पर करते।   ? बलात्कार किसका करते   ?

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        आप आज लड़ने को तैयार नहीं हैं. आपको लगता है, बिना लड़े दीन हीन बनकर या धर्म बदल कर सी तरह काम चल जाएगा...तो भूल जायें...आप कल को लड़ेंगे...!

        क्योंकि इस्लाम की सबसे संक्षिप्त और स्पष्ट व्याख्या है - इस्लाम एक फौज है. और अगर आप फौज में भर्ती हुए हैं तो लड़े बिना क्या उपाय है...सोच लीजिये...किसके लिए लड़ेंगे   ?

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Post of    #Rajeev_Mishra

साभार: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=519973485010336&id=100009930676208

Friday, 22 September 2017

यह प्रकरण बहन-बेटियों को जरूर पढायें

यह प्रकरण बहन-बेटियों को जरूर पढायें

september 20, 2017 by पवन त्रिपाठी, posted in सनातन धर्म-हिन्दुत्वसामाजिक-सरोकार

आप लिबरंडू होने की कितनी बड़ी कीमत चुकाते हैं इसे पढ़ कर समझ जायेंगे।वे शुरुआत झूठ और फरेब से करते हैं, फिर गुमराह करते हैं उसके बाद धोखा खुलता है।कोई अल-तकैया करने वाला अगर अभिनय पर उतारू ही रहे अपना नाम हिन्दू बताये तो आप क्या कर लेंगे? इसी लिए कुल,वंश,गोत्र प्रणाली है,कुण्डली बैठाई जाती है।दोनों पक्ष के दो-चार नाते-रिश्तेदार,पट्टीदार बैठकर बाते करते हैं।तब जाकर स्थितिया स्पष्ट होती है।लेकिन लव-जेहाद सच जानने का मौक़ा ही नही देता आपकी बहन-बेटी को।इसलिए शुरू ही न होने दीजिये सारा काम छोड़ अपनी इज्जत बचाइये।

वे किसी भी तरह पटाते हैं,निकाह करते हैं मुसलमान पैदा करने के लिए।फिर उन्हें बच्चे पैदा करने के मशीन बना कर कुछ दिनों बाद संट कर दिया जाता है।देखने में आया है इसमें पूरी कम्युनिटी इन्वाल्व रहती है।एक बार निकाह के बाद लडकी उस दल-दल में फंसती चली जाती है जहां से निकल कर वापस आ पाना सम्भव नही होता।यह उनका धार्मिक कार्य है।उनको हुक्म हैं उनकी किताब का।यह कोई प्रेम-व्रेम नही विसुद्ध धार्मिक जेहाद होता है। उससे पेट नहीं भरता तो यौन उत्पीड़न पर जुट जाते हैं।अलीगढ की तनू ठाकुर एक उदाहरण है।उसे मजबूर किया वो घिनौना काम करने के लिए जिसे उस पीड़िता के लिए ज़िन्दगी भर भूल पाना मुश्किल है। उसकी इज़्ज़त की धजिया उड़ा दी।उस निर्दयी इंसान ने जिसे तनु ने अपनी इज़्ज़त माना था।अंत में तनु को इमरान नामक नर्क से निकलने के लिए सहारा लेना पड़ा उन लोगो का जिनकी बात को तनु ने कभी अनसुना किया था. इस बार लव जिहाद का मामला आया है अलीगढ़ से जहाँ सिमरन खान बनी तनु ठाकुर ने घर वापसी की है।आप सजग रहे कोई फरेबी आप के परिवार पर भी निगाह गडाए हो सकता है वह भी आस-पास पूरी कम्युनिटी के साथ।अपनी बहन-बेटियों से इस पर खुल कर बात करिये ।

दरअसल, अलीगढ़ के थाना क्वार्सी इलाके के ADA कॉलोनी निवासी तनु ठाकुर की मुलाकात करीब 12 साल पहले रूमी नाम के एक युवक से हुई थी। रूमी सिलाई कढ़ाई का काम सिखाता था। तनु रूमी के पास सिलाई-कढ़ाई का काम सीखने जाती थी। इसी बीच रूमी ने तनु से नजदीकियां बढ़ानी शुरू की। तब तक रूमी ने अपनी असलियत तनु से छुपा कर रखी जब तक वो पूरी तरह से रूमी के सिकंजे में नहीं आयी।वे ऐसा ही करते हैं। इसके बाद रुमी ने तनु से शादी करने की चाह जताई। तनु ने शादी के लिए हां कर दी। तब भी रूमी ने उसे अपनी असलियत नहीं बताई थी।शादी के बाद रूमी ने बताया कि उसका नाम इमरान है और वह एक मुस्लिम है।

फिर इमरान ने तनु से मुस्लिम रिवाजो से निकाह के लिए भावुक कर दबाव बनाया और जिस जाल में तनु फस गयी और निकाह करने के लिए तैयार हो गयी। इमरान ने तनु ठाकुर का धर्मांतरण कर उसका नाम सिमरन खान करवा दिया। तनु बहुत खुश थी लेकिन उसे नहीं पता था कि उसके साथ क्या होने वाला है।निकाह होने के बाद इमरान ने उसका शोषण शुरू कर दिया। आये दिन इमरान तनु उर्फ सिमरन के साथ मारपीट करता था।
सिमरन ने कई बार उसके चंगुल से निकलने का प्रयास किया लेकिन निकल ना सकी। इमरान ने उसपर रुपए कमाने के लिए दबाव बनाया और अलग-अलग मर्दों से संबंध स्थापित कराए। उस वक्त शायद तनु को याद आ रहा होगा कि उसे बड़े बुजुर्गो की बात मान ली होती तो ये नहीं होता। एक दिन किसी तरह जाकर तनु ने हिंदू जागरण मंच के युवाओं से संपर्क किया। संगठन द्वारा उसकी शिकायत SSP से की गई और थाना क्वार्सी में मुकदमा पंजीकृत कराया गया। पुलिस ने अपनी कार्रवाई करते हुए इमरान को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया।सोमवार को सिमरन ने अपनी गलती सुधारने का फैसला किया और एक बार फिर से सिमरन खान तनु ठाकुर बन गई।देश भर में ऐसे हजारो उदारहण सामने आ रहे है।जहां पूरे टार्गेट के साथ हिन्दू लडकियों को फंसा कर उन्हें मुसलमान बनाया जाता है।सबसे खुशी की बात यह है इसमें लिबरंडू परिवारों की लडकिया ही फंसती है।लिबरंडू बेचारा अपनी मूर्खता-भरी सोच की कीमत अपनी बहन या बेटी की जिन्दगी से चुकाता है।सजग रहो सतर्क रहो।आक्रान्ता आस-पास घूम रहा है।भावना और भवुकता भी उसके हथियार हैं।

साभार: पवन त्रिपाठी, https://pawantripathiblog.wordpress.com/2017/09/20/%e0%a4%af%e0%a4%b9-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%a3-%e0%a4%ac%e0%a4%b9%e0%a4%a8-%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%9c/

Tuesday, 19 September 2017

जालोर_के_पराक्रमी_चौहान_वंशीय उदय सिंह

#जालोर_के_पराक्रमी_चौहान_वंश
Copyright मनीषा सिंह बाईसा (क्षात्र कन्या) जगह मेवाड़ / मेड़ता, राजपुताना राजस्थान की कलम से ।
युवा जुड़ें अपने गौरवपूर्ण अतीत के साथ
मैं अपने भ्राताश्री (वो चाहे अनुज हो या बड़े हो) , बहनों से विनम्र अनुरोध करुँगी कि वे ‘इतिहास बोध’ के लिए अपने अतीत के साथ दृढ़ता से जुडऩे का संकल्प लें। क्योंकि अपने अतीत के गौरव को आप जितना ही आज में पकडक़र खड़े होंगे, आपका आगत (भविष्य) भी उतना ही गौरवमय और उज्ज्वल बनेगा। अतीत को आज के साथ दृढ़ता से पकडऩा इसलिए भी आवश्यक है कि हमने अतीत में जो जो भूलें की हैं, उन्हें पुन: न दोहरायें, उनसे शिक्षा लें, और स्वर्णिम भविष्य की ओर आगे बढ़ें।
चर्चिल ने कहा था-‘‘तुम पीछे मुडक़र जितना अपना भूतकाल देख सकते हो, उतना ही आगे-आगे आने वाले भविष्य को देख सकते हो।’’

उदय सिंह जालोर का शासक बना १२०५-१२५७ ईस्वी तक शासन किया । उदय सिंह सबसे पराक्रमी शासक सिद्ध हुआ जिसने अपने पराक्रम के बल पर जवालीपुर ( वर्त्तमान जालोर) समेत नदुला (वर्त्तमान नाडोल), माण्डवपुर (वर्त्तमान मंडोर), वाग्भट मेरु (जुना मेरु), सुरचंदा, रामसैन्या , सृमाला (वर्त्तमान भीनमाल), सत्यपुर(सांचोर) तक विस्तार किया एवं तुर्क आक्रान्ता इल्तुतमिश का भी सफलता पूर्वक प्रतिरोध किया । 

इल्तुतमिश ने दो-दो बार जालोर पर आक्रमण किया पहली बार उदयसिंह की रणनिति के कारण उसे पराजित होकर वापस लौट जाना पड़ा और दूसरी बार भी उदय सिंह द्वारा गुजरात के बाघेला शासक के साथ सयुक्त मोर्चा बना लेने के कारण इल्तुतमिश बिना यद्ध किये लौटना पड़ा था ।

उदयसिंह कुछ समय में दिल्ली सल्तनत के लिए खतरा बन गए थे, दिल्ली दरबार को उदयसिंह ने कर देने से इंकार कर दिया, जिसके कारण 1211-1216 ईस्वी चार साल युद्ध चला बिना समझौता किये चौहान राजा उदय सिंह ने दिल्ली सल्तनत के द्वारा मिल रही युद्धरूपी चुनौतियों का सामना किया । 
इस संघर्ष का वर्णन मध्यकालीन मुस्लिम इतिहास में किया गया है, जैसे हसन निजामी के 13 वीं सदी के ताज-उल-मासीर  (में उल्लेखित हैं  उदयसिंह जलाचे के रूप में "उदय सिंह की विजय गाथा का उल्लेख करता है) , और 16 वीं सदी के क्रम-ई-फ़िरिस्त ( फिरशाता कहता है कि दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश को आगे जाकर उदयसिंह ने कर भुगतान देना बंद कर दिया इसलिए जालोर पर इल्तुतमिश ने अपनी सेना भेजकर महाराजा उदय सिंह चौहान को बंदी बनाकर दिल्ली दरबार में उपस्थित करने का आदेश जारी किया इस सेना में रकन-उद-दीन हमजा, इज्ज-उद-दीन बख्तियार, नासीर-उद-दीन मर्दन शाह, नासीर-उद-दीन अली और बद्र-उद दीन सॉकरतीगिन जैसे प्रमुख सेनानायक शामिल थे जिनके साथ था लाखों से अधिक संख्या की सेना थी, इस युद्ध में उदय सिंह चौहान ने अपनी सेना के साथ युद्ध मोर्चा संभाला एवं तुर्क के विशाल सेना को परास्त कर रणभूमि में जीवित बचे तुर्क सेनापति नासीर-उद-दीन मर्दन शाह, बद्र-उद दीन समेत ६५,००० तुर्क सैनिको को बंदी बना कर जालोर नगरी में जुलुस निकाला एवं दिल्ली दरबार में सन्देश भेजा गया की अगला आक्रमण तुर्कों से दिल्ली को मुक्त करवाने के लिए किया जायेगा सुल्तान भयभीत होगया राजपूतों से मिली हार के बाद सुल्तान ने संधि करना उचित समझा एवं हर्जाने के स्वरुप में 100 ऊंटों और 20 घोड़ों उदयसिंह को भेंट किया ।

ईस्वी.सन. 1221 में, इल्तुतमिश ने फिर से आज के राजस्थान और गुजरात के राजपूत शासकों के खिलाफ युद्ध घोषणा कर दिया । उदयसिंह ने राजपूत शासकों को एक छत्र में लाये एवं संयुक्त मोर्चा बनाकर गुजरात एवं राजस्थान की सीमा पर घेरा डाल दिया, जिससे दिल्ली के सुल्तान बिना युद्ध किये पीछे हट गया । 
गुजरात क्रानिकल हमीरा-मदा-मर्दन के अनुसार, इल्तुतमिश ने  उदयसिंह के खिलाफ एक और अभियान चलाया था 12 वीं शताब्दी के मुस्लिम इतिहासकार मिन्हाज-ए-सिराज के अनुसार , इल्तुतमिश ने 1227 ईस्वी में मण्डोर किला पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में करना चाहा परन्तु उदयसिंह के हाथो परास्त होकर तुर्क लौटना पड़ा एवं इस बार भी ४५,८०० तुर्की सैनिको को उदयसिंह ने बंदी बनाया । सुंधा पर्वत शिलालेख के अनुसार, माण्डवपुर (वर्त्तमान मंडोर) पर आक्रमण करना इल्तुतमिश की सबसे बड़ी भूल थी जिसमे इल्तुतमिश को भारी क्षति उठानी पड़ी आज भी मंदोर का किला उदयसिंह की विजय गाथा गाती है ।

उदय सिंह की शौर्यपूर्ण विजय गाथा कई हिन्दू ग्रन्थ एवं प्रसस्ती में उल्लेखित हैं उदयसिंह चौहान ने दो दो बार इल्तुतमिश को पराजित किया एवं दिल्ली को तुर्कों के आधीन से आजाद रखा एवं भविष्य में आगे चलकर तुर्क आक्रमणकारियों द्वारा किये गए युद्ध अभियान को सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया ।  सुंधा पर्वत शिलालेख ने उदय सिंह को तुरुस्क्मोचन (तुर्क नमक संकट को हर लिया था सम्राट उदय सिंह चौहान ने) की उपाधि प्रदान किये हैं । 
17 वीं शताब्दी के इतिहासकार मुहन्नोत नैनसी ने कहा कि "सुल्तान जलाल-उद-दीन ने 1241 ईसवी में जालोर पर हमला किया, लेकिन उदय सिंह चौहान से हार कर पीछे हटने के लिए मजबूर हो गया।  सुल्तान जलाल-उद-दीन द्वारा किये गए इस हमले का नेतृत्व मलिक अंबर नामक एक जनरल ने किया था ९६,००० सैन्यबल के साथ जालोर पर आक्रमण किया उदयसिंह चौहान ने अपने सेनापति राजपुत्र बप्पा के साथ रणभूमि में सुल्तान जलाल-उद-दीन की सेना को मार भगाया एवं तुर्क सेनापति मलिक अंबर युद्ध मारा गया उदयसिंह के हाथो अस्सुर मलेच्छों का संहार हुआ एवं जालोर की धरती मानो ऐसा प्रतीत होरहा था मलेच्छों के रक्त से रक्तअभिषेक हुआ हो।
पुरातन-प्रवासी-संग्राह खाते में उल्लेख है कि 1253 ईस्वी में, दोबारा जलाल-उद-दीन खुद सेना लेकर जालौर पर आक्रमण किया पराजित होकर शांति संधि के लिए बातचीत करने के लिए दूत को भेजा जलाल-उद-दीन ने उदयसिंह को 3,600,000 मुद्रा हर्जाने के स्वरुप में भेंट किया।
उदय सिंह तुर्कों पर विजय पाने के बाद जावलीपुरा में दो शिव मंदिरों की स्थापना की ।

अत: इतिहास का वास्तविक और तथ्यात्मक अध्ययन हर किसी के लिए आवश्यक है। इसे पूर्णत: गंभीर विषय समझना चाहिए और अपने जीवनमरण और अस्तित्व से जोडक़र इसे देखना चाहिए। मुझसे कई लोग कहते हैं कि इतिहास तो केवल समय नष्ट करने और सिरदर्द उत्पन्न करने वाला विषय है। इसलिए इस पर अधिक ध्यान लगाना मूर्खता है।

पर यह उनकी अपनी सोच हो सकती है, आप इस सोच को अपने ऊपर प्रभावी ना होने दें। क्योंकि उनकी ऐसी सोच उनकी हीन ग्रंथि का अज्ञानता का, आत्मप्रवंचना का, अपने ही विषय में नीरसता का और तुच्छ मानसिकता का हमें सहज दर्शन करा देती है। क्योंकि ऐसी सोच के कारण ही हमसे ईरान, अफगानिस्तान, बर्मा, मालद्वीप, इण्डोनेशिया, जावा, सुमात्रा, इत्यादि कटते चले गये। हमने कभी ये नही सोचा कि हमसे भूल कहां हुई और ना ही ये सोचा कि इतने बड़े विशाल भू-भाग पर अंतत: हमारा शासन किन नीतियों के और मर्यादाओं के कारण चिरस्थायी रह पाया था? यदि दोनों बातों पर चिंतन होता, तो आज इतिहास को ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय माना जाता ।
जय एकलिंगजी ।।

Courtesy:
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वेदमूर्ति पण्डित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर की 150वीं जयंती। एक भूले बिसरे महापुरुष...

वेदमूर्ति पण्डित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर की 150वीं जयंती। एक भूले बिसरे महापुरुष...
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वेदविद्या का अनुशीलन करने के पक्षपाती लोगों में पण्डितजी का नाम ही पर्याप्त परिचय है। वैदिक साहित्य और संस्कृत को जनसामान्य की पहुंच में लाने का ऐसा महनीय कार्य उन्होंने किया था जैसा करने की इच्छा कभी दयानन्द स्वामी ने की थी। स्वामी दयानन्द ने हिन्दी को वेदभाष्य की भाषा बनाकर वेदविस्मृत लोगों में वेदों के प्रति एक गम्भीर आकर्षण पैदा कर दिया था परन्तु दो ही वेदों का भाष्य वे कर सके। इस कार्य को उन्हीं की सी तितीक्षा वाले उनके पट्ट शिष्य श्रीपाद सातवलेकर ने आगे बढ़ाया और चारों वेदों का 'सुबोध हिन्दी भाष्य' तैयार कर हिन्दू समाज में इसे सुगम्य बना दिया। आर्यसमाज की आधारभूत सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका जैसी पुस्तकों का मराठी में भाष्य करने वाले पण्डित सातवलेकर तब भी धारा में बंधे नहीं रहे, स्वामी दयानन्द की सी परिशोधन की दृष्टि लेकर उनके सिद्धांतों में भी परिशोधन से पीछे नहीं हटे और अकेले ही "स्वाध्याय मण्डल" की स्थापना करके वेदभाष्य के पुरुषार्थ में लग गए।

लोकमान्य तिलक जैसे मनीषी के प्रभाव से कांग्रेस से जुड़े और स्वदेशी पर व्याख्यान देकर स्वाधीनता के यज्ञ में जुट गए। "वैदिक धर्म" और "पुरुषार्थ" जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन करते रहे। हैदराबाद प्रवास के दौरान राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत उनकी ज्ञानोपासना वहाँ के निज़ाम को अच्छी नहीं लगी, और उन्हें हैदराबाद छोड़कर महाराष्ट्र के औंध में आना पड़ा। राष्ट्रशत्रुओं के विनाशकारी वैदिक मंत्रों का संग्रह "वैदिक राष्ट्रगीत" के नाम से मराठी और हिंदी में छपवाकर विदेशी शासन की जड़ों पर प्रहार कर दिया और इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर नष्ट कर डालने के आदेश जारी हो गए। वेदों के आधार पर लिखित उनका लेख 'तेजस्विता' भी राजद्रोहात्मक समझा गया, जिसके कारण उन्हें तीन वर्ष की जेल काटनी पड़ी।

संस्कृत सीखने की एक पूरी पद्धति ही 'सातवलेकर पद्धति' कही जाती है, क्योंकि सातवलेकर ही थे "संस्कृत स्वयं शिक्षक" के कर्णधार जिससे घर बैठे संस्कृत सीखने का कॉन्सेप्ट सामने आया। "संस्कृत स्वयं शिक्षक" यह पुस्तक ही संस्कृत शिक्षण की संस्था है, जिसकी उपादेयता आने वाले कई दशकों तक कम नहीं होने वाली। पण्डित जी एक कुशल चित्रकार और मूर्तिकार भी थे। पर अत्यंत गरीबी में भी हज़ार रुपए पारितोषिक निश्चित करने वाले राय बहादुर का चित्र इसलिए नहीं बनाया क्योंकि अंग्रेज शासन के गुलाम की पाप की कमाई का एक अंश भी उन्हें मंजूर नहीं था।

1936 में पंडितजी सतारा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और औंध रियासत के संघचालक बने। 16 वर्ष तक उन्होंने संघ का कार्य किया। गाँधीजी की हत्या के बाद महाराष्ट्रीयन ब्राह्मणों की घर सम्पत्तियां गोडसे की जाति देखकर 'अहिंसा के पुजारी' के भक्तों ने जला डालीं। सातवलेकर जी का संस्थान भी जलाकर नष्ट कर दिया गया। वे किसी तरह जान बचाकर सूरत के पारडी आए और यहाँ "स्वाध्याय मण्डल" का कार्य पुनः आरम्भ किया।

जिस साल 1968 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया उसी साल यह वेदविद्या का उज्ज्वल नक्षत्र 101 वर्ष की दीर्घायु के साथ अस्त हो गया। 101 वर्ष की अवनितल वैदिक साहित्य साधना में उन्होंने वेद पर सुबोध हिंदी भाष्य तो किया ही साथ ही शुद्ध मूल वेद सहिंताओं का भी सम्पादन किया, महाभारत जैसे विशाल ग्रन्थ का भाष्य किया, गीता पर उनकी पुरुषार्थबोधिनी टीका आज भी गीताभाष्यों की अग्रिम पंक्ति में सुशोभित है। इसके साथ साथ उन्होंने 400 से भी अधिक ग्रन्थों की रचना की जो स्वाध्याय मण्डल पारडी, राजहंस व चौखम्भा जैसे प्रकाशनों से छपते हैं। ऐसे मनीषी की आज 150वीं जयंती है, उन्हें भुला देना आज वैदिक संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए जीवन खपाने वाले महापुरुषों की पूरी पंक्ति के प्रति अक्षम्य अपराध माना जाएगा। उन्होंने अपने जीवन सनातन धर्म और राष्ट्र को समर्पित किए हैं, तब आज वेद से कुछ सीखने समझने की हम लोग सोच पाते हैं, ऐसे महापुरुष को कोटि कोटि नमन है….

उनके कुछ ग्रन्थ हैं :-
- चारों वेदों का सुबोध भाष्य
- वेद की सभी सहिंताओं का शुद्ध सम्पादन
- वैदिक व्याख्यानमाला
- गो-ज्ञान कोश (वेदों में गाय एवं बैल के अवध्य होने के प्रमाण, तत्सम्बन्धी मन्त्रों का सही सान्दर्भिक अर्थ एवं गाय सम्बन्धी मन्त्रों का विवेचन सहित संकलन)
- वैदिक यज्ञ संस्था
- वेद-परिचय
- महाभारत (सटीक) - 18 भागों में
- श्रीमद्भगवद्गीता पुरुषार्थबोधिनी हिन्दी टीका
- महाभारत की समालोचना (महाभारत के कतिपय विषयों का स्पष्टीकरण एवं विवेचन)
- संस्कृत पाठमाला
- संस्कृत स्वयंशिक्षक (दो भागों में)

Courtesy: Mudit Mittal, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1431852336909909&id=100002554680089

The Seven Day week is a Hindu concept

It is funny how the whole world believes that the 7 day week is a western concept !

7 day week is not a concept borrowed from Romans as it is generally believed.

The 7 day week is not really based on western calendar. Firstly, lets look at how classic predictions (Jyothisha Shastra) of the Vedas for answers to these questions:

Why do we have only 7 days in a week? Why can't we have 8 or 9? �
What is an hour? �
Why do we have only 24 hours in a day? Why can't we have 30 or 40 units and call it an hour?

Ancient Indians were so well versed that they often used 4 to 5 different units of time. If you ask your Indian grand mother, she might have told you that during her days, people measured time in a weird unit called ghati/ghadiya (1 ghati = 24 minutes).

1 day is the time lapsed between two sunrises. Sandhi in sanskrit means knot or junction and hence the junction points are named as pratah sandhya(Early morning) and sayam sandhya (Evening) which divide the standard day into two halves i.e from sunrise to sunset and sunset to the next sunrise.

Since there are 12 zodiac constellations, each constellation is assigned a part of the half a day unit and hence 12 parts in half a day each, together 12+12 = 24 units. This is the concept of hora or HOUR. (Yes, hora is the standard hour. English unit of time and Sanskrit unit of time named similarly. Strange coincidence, don't you think so?)

Just as there are constellations associated with each hora, each graha is assigned rulership of individial hora. The order of the planetary rulership of horas is as follows.

1) Surya (Sun/SUN-DAY) followed by
2) Shukra (Venus/FRI-DAY) followed by
3) Budha (Mercury/WEDNES-DAY) followed by
4) Soma (Moon/MON-DAY) followed by
5) Shani (Saturn/SATUR-DAY) followed by
6) Guru (Jupiter/THURS-DAY) followed by
7) Mangala (Mars/TUES-DAY).

In Indian Prediction science (jyothish shastra), the rising sign at the time of sunrise is noted down and is considered very important to make any astronomical/astrological calculations regarding a chart, esp. to find out the janma lagna (Birth time), it is is very essential. So, the rising sign is very important. Likewise, the planetary rulership of the hora during the time of sunrise is noted down. The planet that rules the hora at the time of sun rise is assigned the rulership of the whole day.

And hence,

The day Ravi-vara (or Sun-day) is named after Ravi/Sun who is assigned lordship of the day because he rules the hora at the time of sunrise of that day. Now, following Sun, the next hour after sunrise is ruled by Shukra followed by the rest. In the above mentioned order of rulership of horas, calculate the next ruling planet that comes after 24 horas, i.e
1st hour by Ravi,
2nd hour by Shukra,
3rd hour by Budha,
4th hour by Soma,
5th hour by Shani,
6th hour by Guru,
7th hour by Mangala,
8th hour by Ravi,
9th hour by Shukra,
10th hour by Budha,
11th hour by Soma,
12th hour by Shani,
13th hour by Guru,
14thth hour by Mangala,
15th hour by Ravi,
16th hour by Shukra,
17th hour by Budh,
18th hour by Soma,
19th hour by Shani,
20th hour by Guru,
21st hour by Mangala,
22nd hour by Ravi,
23rd hour by Shukra,
24th hour by Budha
****End of a day******

25th hour by Soma(moon/Monday)

As you see it turns out that Soma is the ruler of the next day's sun rise. And hence, the next day Soma-vara (or Mon-day) is named after Chandra/Moon who is assigned lordship of the day because he rules the hora at the time of that day's sunrise.

In the same order, Mangala-vara (Tuesday) for Mangala/Mars being the hora ruler at sunrise,
Budha-vara (Wednesday) for Budha/Mercury being the hora ruler at sunrise, Guru-vara (Thursday) for Deva Guru Brihaspathi/Jupiter being the hora ruler at sunrise, Shukra-vara (Friday) for Shukra/Venus being the hora ruler at sunrise, Shani-var (Satur-day) for Shani/Saturn being the hora ruler at sunrise,

Now after Saturday, the cycle reverts to
1) with Surya being the ruler of the hora at the time of next day's sunrise. This is the reason why there are only 7 days in a week based on these calculations of hora and their planetary rulership as mentioned in the vedic texts.

One may be a Christian, Muslim, Sikh or Jew, knowingly or unknowingly they follow the methods of the ancient Indian Rishis.

This is the reason why Hindu dharma is called Ancient Indian Civilisation Principles-ie called as Sanatana dharma (i.e eternal and expansive in its very nature).

It is funny how the whole world believes that the 7 day week is a western concept!

Courtesy: Ramesh Babu K V, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=263687530818776&id=100015325926175

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