Saturday, 11 February 2017

उज्जैन की भौगोलिक स्थिति भी विशिष्ट है।

उज्जैन की भौगोलिक स्थिति भी विशिष्ट है।

खगोलशास्त्रियों की मान्यता है कि यह नगरी पृथ्वी और आकाश की सापेक्षता में ठीक मध्य में स्थित है। कालगणना के शास्त्र के लिए इसकी यह स्थिति सदा उपयोगी रही है। इसलिए इसे पूर्व से ‘ग्रीनविच’ के रूप में भी जाना जाता है। प्राचीन भारत की ‘ग्रीनविच’ यह नगरी देश के मानचित्र में 23.9 अंश उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर समुद्र सतह से लगभग 1658 फ़ीट ऊँचाई पर बसी है। अपनी इस भौगोलिक स्थिति के कारण इसे कालगणना का केन्द्र-बिंदु कहा जाता है और यही कारण है कि प्राचीनकाल से यह नगरी ज्योतिष का प्रमुख केन्द्र रही है। जिसके प्रमाण में राजा जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशाला आज भी इस नगरी को कालगणना के क्षेत्र में अग्रणी सिद्ध करती है।

कालगणना प्रवर्त्तियो की केंद्र उज्जयिनी का कैनवास विशाल रहा है। वर्तमान उज्जैन 23°11′ अंश पर स्थित है। इस कारण सही पंचांग निर्माण की दृष्टि से पद्मश्री डॅा. विष्णुश्रीधर वाकणकर ने महाकाल वन में स्थित डोंगला में सूर्य के उत्तर दिशा का अन्तिम समपाद बिन्दु खोज लिया था। ग्राम डोंगला में आचार्य वराहमिहिर न्यास उज्जैन के मार्गदर्शन में डॅ. रमण सोलंकी एवं श्री घनश्याम रतनानी के खगोलीय अध्ययन पर आधारित भारत की छठीं वेधशाला निर्मित हो चुकी है। जिसमें शंकु यन्त्र, भास्कर यंत्र, भित्ति यंत्र स्थापित हैं। म.प्र. शासन के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा यहाँ भारत का सतह पर लगने वाला सबसे बड़ा टेलीस्कोप लगाया गया है ताकि पूर्णरूपेण भारतीय आधार पर काल गणना की जा सके। ग्राम डोंगला उज्जैन से उत्तर दिशा में 32 किमी पर आगर मार्ग पर अवस्थित है।

कालगणना की पद्धति में भारत और यूनान देशों में समानताएँ पायी जाती रही हैं। कालगणना का केंद्र होने के साथ-साथ ईश्वर आराधना का तीर्थस्थल होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया। स्कंदपुराण के अनुसार – ‘कालचक्र प्रवर्तकों महाकाल: प्रतायन:’। इस प्रकार महाकालेश्वर को कालगणना का प्रवर्तक भी माना गया है। भारत के मध्य में स्थित होने के कारण उज्जैन को नाभिप्रदेश अथवा मणिपुर चक्र भी माना गया है।

आज्ञाचक्रं स्मृता काशी या बाला श्रुतिमूर्धनि।
स्वधिष्ठानं स्मृता कांची मणिपुरम् अवंतिका।।

भौगोलिक गणना के अनुसार प्राचीन आचार्यों ने उज्जैन को शून्य रेखांश पर माना जाता है। कर्क रेखा भी यहीं से गुजरती है। देशांतर रेखा और कर्क रेखा यहीं एक -दूसरे को काटती है। जहाँ यह काटती है संभवत: वहीं महाकालेश्वर मंदिर स्थित है। इन्हीं सब कारणों से उज्जैन कालगणना पंचागनिर्माण और साधना सिद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। यहीं के मध्यमोदय पर सम्पूर्ण भारत के पंचांग का निर्माण होता है। ज्योतिष के सूर्य सिद्धान्त ग्रन्थ में भूमध्य रेखा के बारे में वर्णन आया है -

राक्षसालयदेवौक: शैलयोर्मध्यसूत्रगा।
रोहितकमवन्ती च यथा सन्निहित सर:।

रोहतक,अवन्ति और कुरुक्षेत्र ऐसे स्थल हैं जो इस रेखा में आते हैं। देशान्तर मध्यरेखा श्रीलंका से सुमेरु तक जाते हुए उज्जयिनी सहित अनेक नगरों को स्पर्श करती जाती है। प्राचीन सूर्य सिद्धान्त, ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, आर्यभट्ट, भास्कराचार्य आधुनिक  चित्र दृश्य पक्ष के जनक श्री केतकर और रैवतपक्ष के बालगंगाधर तिलक ने भी क्रमश: अपने चित्रा एवं दैवत पक्षों में उज्जयिनी के मध्यमोदय को ही स्वीकारा था। गणित और ज्योतिष के विद्वान वराहमिहिर का जन्म उज्जैन जिले के कायथा ग्राम में लगभग शक संवत ४२७ में हुआ था। प्राचीन भारत के वे एकमात्र ऐसे विद्वान थे। जिन्होंने ज्योतिष की समस्त विधाओं पर लेखन कर ग्रन्थों की रचना की थी। उनके ग्रन्थ में पंचसिद्धान्तिका,बृहत्संहिता,बृहज्जनक विवाह पटल, यात्रा एवं लघुजातक आदि प्रसिद्ध हैं। कालगणना और ज्योतिष की परम्पराएँ एक -दूसरे से सम्बद्ध रही हैं। इस नगरी के केंद्र बिंदु से कालगणना का अध्ययन जिस पूर्णता के साथ किया जाना संभव है वह अन्यत्र कहीं से सम्भव नहीं है क्योंकि लिंगपुराण के अनुसार सृष्टि का प्रारम्भ यहीं से ही हुआ है।

प्राचीन भारतीय गणित के विद्वान आचार्य भास्कराचार्य ने लिखा हैं -

यल्लकोज्जयिनी पुरोपरी कुरुक्षेत्रादि देशानस्पृशत्।
सूत्रं सुमेरुगतं बुधेर्निरगता सामध्यरेखा भव:।

प्राचीन भारत की समय गणना का केन्द्र बिन्दु होने के कारण ही काल के आराध्य महाकाल हैं ,जो भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। प्राचीन भारतीय मान्यता के अनुसार जब उत्तर ध्रुव की स्थिति पर 21 मार्च से प्राय: छह मास का दिन होने लगता है। प्रथम तीन माह के पूरे होते ही सूर्य दक्षिण क्षितिज से बहुत दूर हो जाता है। यह वह समय होता है जब सूर्य उज्जैन के ठीक ऊपर होता है। उज्जैन का अक्षांश व सूर्य की परम क्रांति दोनों ही 24 अक्षांश पर मानी गयी है। सूर्य के ठीक सामने होने की यह स्थिति संसार के किसी और नगर की नहीं है।

वराहपुराण में उज्जैन को शरीर का नाभि देश और महाकालेश्वर को अधिष्ठाता कहा गया है। महाकाल की यह कालजयी नगरी विश्व की नाभिस्थली है। जिस प्रकार माँ की कोख में नाभि से जुड़ा बच्चा जीवन के तत्वों का पोषण करता है,उसी प्रकार काल , ज्योतिष , धर्म और अध्यात्म के मूल्यों का पोषण भी इसी नाभिस्थली होता रहा है। मंगल ग्रह की उत्पत्ति का स्थान भी उज्जयिनी को ही माना जाता है। यहाँ पर ऐतिहासिक नवग्रह मन्दिर और वेधशाला की स्थापना से कालगणना का मध्य बिन्दु होने के प्रमाण मिलते हैं।

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Unmatched metallurgy of Ancient Hindus.

Unmatched metallurgy of Ancient Hindus.

To tell this story one must start at Salaudin and King Richard the Great facing-off during the holy crusades. It is said that Richard the Great cut through a tree trunk with one swipe of his sword to show his might and the capability of his sword. In response, Salaudin is purported to have just tossed a silk scarf into the air and let it slide off his blade’s edge, cleanly cutting it into two. Richard recognized that it was indeed a great sword that could cleave free falling soft material without the use of any force. Salaudin’s sword was known to be a Damascine sword.

There is now a general agreement that the Damascus steel which made its way into the western world through the crusades was produced in Ancient India rather than in Damascus.

Wootz steel is a steel characterized by a pattern of bands or sheets of micro carbides within a tempered martensite or pearlite matrix. It is stated to have developed in India around 300 BC.The word “Wootz” may have been a mistranscription of wook, an anglicised version of urukku , the word for melting in Tamil and Malayalam or urukke, the word for steel in Kannada, Telugu.

According to traditional history wootz steel originated in India in the 3rd century BCE.There is archaeological evidence of the manufacturing process in South India from that time. Wootz steel was widely exported and traded throughout ancient Europe and the Arab world, and became particularly famous in the Middle East, where it was known as Damascus steel.

In ancient times, thirty pounds of steel was a precious gift, deemed by King Porus worthy of presentation to Alexander the Great. Another sign that Ancient India was celebrated for its steel is seen in a Persian phrase — to give an “Indian answer,” meaning “a cut with an Indian sword.”

Specimens of daggers and other weapons were sent by the Rajas of India to the International Exhibition of 1851 and 1862. Though the arms of the swords were beautifully decorated and jeweled, they were most highly prized for the quality of their steel. The swords of the Sikhs were said to bear bending and crumpling, and yet be fine and sharp.

Wootz is characterized by a pattern caused by bands of clustered Fe3C particles made of microsegregation of low levels of carbide-forming elements.There is a possibility of an abundance of ultrahard metallic carbides in the steel matrix precipitating out in bands. Wootz swords, especially Damascus blades, were renowned for their sharpness and toughness.
Steel manufactured in Kutch particularly enjoyed a widespread reputation, similar to those manufactured at Glasgow and Sheffield. The techniques for its making died out around 1700. According to Sir Richard Burton the British prohibited the trade in 1866.

According to Professor Oldham, ‘Wootz’ is also worked in the Damudah Valley, at Birbhum, Dyucha, Narayanpur, Damrah, and Goanpiir. In 1852 some thirty furnaces at Dyucha reduced the ore to kachhd or pig-iron, small blooms from Catalan forges; as many more converted it to steel), prepared in furnaces of different kind. The work was done by different castes ; the Muslims laboured at the rude metal, and the Hindu preferred the refining work. I have read that anciently a large quantity of Wootz found its way westward via Peshawar. The whole of the Sahyadr range (Western Ghats), and especially the great-Might-of-Shiva mountains, had for many ages supplied Persia with the best steel. Since 1866, British forbade the industry, as it threatened the highlands with deforesting. Only the brickwork of their many raised furnaces remained.

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Cow, just an animal?

Millions of Hindus revere and worship cows. Hinduism is a religion that raises the status of Mother to the level of Goddess. Therefore, the cow is considered a sacred animal, as it provides us life sustaining milk. The cow is seen as a maternal figure, a care taker of her people. The cow is a symbol of the divine bounty of earth.

Lord Krishna, one of the most well known of the Hindu deities is often depicted playing his flute amongst cows and dancing Gopis (milkmaids). He grew up as a cow herder. Krishna also goes by the names Govinda and Gopala, which literally mean “friend and protector of cows.” It is considered highly auspicious for a true devotee to feed a cow, even before eating breakfast oneself.

Throughout the Vedic scriptures there are verses which emphasize that the cow must be protected and cared for. It is considered a sin to kill a cow and eat its meat. Even today in India, there are many states in which the slaughter of cows is illegal. That is why you can find cows roaming freely all over India, even along the busy streets of Delhi and Mumbai.

Ayurveda is a big proponent of the sattvicqualities of milk and dairy products. That is why most Hindus are vegetarian, but not vegan. Fresh, organic milk, yogurt, buttermilk, paneer (homemade cheese) and ghee, are all considered highly nutritious, and an important part of the diet. Not only do these dairy products provide important protein and calcium for our tissues, but are sources of Ojas, which gives our body strength and immunity.

Besides their milk, cows also provide many practical purposes, and are considered a real blessing to the rural community. On the farm, bulls are used to plough the fields and as a means of transportation of goods. Even Lord Shiva’s trusted vehicle is Nandi– the sacred bull.

Cow dung is saved and used for fuel, as it is high in methane, and can generate heat and electricity. Many village homes are plastered with a mud/cow dung mixture, which insulates the walls and floors from extreme hot and cold temperatures. Cow dung is also rich in minerals, and makes an excellent fertilizer. There is a big organic farming movement in India to return to ancient methods of utilizing cow dung to re-mineralize the depleted soil.

In such a spiritual land as India, one can find religious ceremonies taking place at any time and any place. Spiritual “yagnas” are fire ceremonies that performed to thank the Gods and receive their blessings. Cows even play a central role in these fire yagnas or Agnihotras. Scientific research has found that the ritual of burning cow dung and ghee as fuel for these sacred fires, actually purifies the air, and has anti-pollutant and anti-radiation qualities in the environment.

Ayurveda understands that some physical and emotional health crisis can not be healed by diet and herbs alone. They need the deeper and subtler healing of these types of Vedic ritual ceremonies to clear astrological past karma. The holy cow again offers its bounty by providing the ingredients in the Panchamrit, or blessed drink, that is distributed after the ceremony. Panchamrittranslates as “sacred ambrosia” or “nectar of the gods” and is made up of 5 items – milk, yogurt, ghee, honey and sugar. By drinking this sweetprasadam, one is infused with the divine energy created during the puja, and is healed.

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विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस का झूठ

विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस का झूठ
मुल्लों और इतिहासकारों का अल-तकिया

सनातन संस्कृति द्रोही इतिहासकार मुल्लों से पैसे लेकर यही लिकहते हैं कि >>>>>

सन 1669 ईस्वी में औरंगजेब अपनी सेना एवं हिन्दू राजा मित्रों के साथ वाराणसी के रास्ते बंगाल जा रहा था.
रास्ते में बनारस आने पर हिन्दू राजाओं की पत्नियों ने गंगा में डुबकी लगा कर काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने की इच्छा व्यक्त की, जिसे औरंगजेब सहर्ष मान गया, और, उसने अपनी सेना का पड़ाव बनारस से पांच किलोमीटर दूर ही रोक दिया...
(सूअर के बच्चे औरंगजेब को यहाँ बड़ा दयालु दिखने की कोशिस की गई है-इसे ही अल-तकिया कहते हैं)

फिर उस स्थान से हिन्दू राजाओं की रानियां पालकी एवं अपने अंगरक्षकों के साथ गंगाघाट जाकर गंगा में स्नान कर विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने चली गई...

पूजा के उपरांत सभी रानियां तो लौटी लेकिन कच्छ की रानी नहीं लौटी, जिससे औरंगजेब के सेना में खलबली गयी और, उसने अपने सेनानायक को रानी को खोज कर लाने का हुक्म दिया…

औरंगजेब का सेनानायक अपने सैनिकों के साथ रानी को खोजने मंदिर पहुंचा… जहाँ, काफी खोजबीन के उपरांत “”भगवान गणेश की प्रतिमा के पीछे”” से नीचे की ओर जाती सीढ़ी से मंदिर के तहखाने में उन्हें रानी रोती हुई मिली….

जिसकी अस्मिता (बलात्कार) और गहने मंदिर के पुजारी द्वारा लुट चुके थे…

इसके बाद औरंगजेब के लश्कर के साथ मौजूद हिन्दू राजाओ ने मंदिर के पुजारी एवं प्रबंधन के खिलाफ कठोरतम करवाई की मांग की...

जिससे विवश होकर औरंगजेब ने सभी पुजारियों को दण्डित करने एवं उस “”विश्वनाथ मंदिर”” को ध्वस्त करने के आदेश देकर मंदिर को तोड़वा दिया उसी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बना दी...(बकैती की पराकाष्ठा)

हिन्दू विरोधी इन इतिहासकारों कि कहानी का झूठ >>>>>

झूठ न.1-

सूअर का बच्चा औरंगजेब कभी भी बनारस और बंगाल नहीं गया था...उसकी जीवनी में भी यह नहीं लिखा है.
किसी भी इतिहास कि किताब में यह नहीं लिखा है. उसकी इन यात्राओ का जिक्र नही...

झूठ न.2-

इस लुटेरे हत्यारे ऐयाश औरंगजेब ने हजारो मंदिरों को तोड़ा था...इसलिए इन इतिहासकारों की लिखे हुए इतिहास कूड़ा में फेकने के लायक है...और ये वामपंथी इतिहासकार इस्लाम से पैसे लेकर ''हिन्दुओ के विरोध ''में आज भी बोलते है लिखते है...किन्तु ये इतिहासकार मुसलमानों को अत्याचारी नहीं कहते है...क्योंकि इनकी माँ बहन मुग़लों की रखैल थीं.

मुग़ल इस देश के युद्ध अपराधी है...यह भी कहने और लिखने की हिम्मत इन इतिहासकारों में नहीं है...

झूठ न.3-

युद्ध पर जाते मुस्लिम शासक के साथ हिन्दू राजा अपनी पत्नियों को साथ नहीं ले जा सकते है,
क्योकि मुस्लिम शासक लूट पाट में औरतो को बंदी बनाते थे.

झूठ न.4-

जब कच्छ की रानी तथा अन्य रानिया अपने अंगरक्षकों के साथ मंदिर गयी थी...तब किसी पुजारी या महंत द्वारा उसका अपहरण कैसे संभव हुआ.
पुजारी द्वारा ऐसा करते हुए किसी ने क्यों नहीं देखा.…

झूठ न.5-

अगर, किसी तरह ये न हो सकने वाला जादू हो भी गया था तो साथ के हिन्दू राजाओं ने पुजारी को दंड देने एवं मंदिर को तोड़ने का आदेश देने के लिए औरंगजेब को क्यों कहा.
हिन्दू राजाओं के पास इतनी ताकत थी कि वो खुद ही उन पुजारियों और मंदिर प्रबंधन को दंड दे देते...

झूठ न.6 -

क्या मंदिरों को तोड़कर वहां पर मस्जिद बनाने की प्रार्थना भी साथ गए हिन्दू राजाओं ने ही की थी.

झूठ न.7 -

मंदिर तोड़ने के बाद और पहले के इतिहास में उस तथाकथित कच्छ की रानी का जिक्र क्यों नहीं है…
इन सब सवालों के जबाब किसी भी लोल वामपंथी (हिन्दू विरोधी) इतिहासकार के पास नहीं है क्योंकि यह एक पूरी तरह से मनगढंत कहानी है….

जो लोल वामपंथी (हिन्दू विरोधी) इतिहासकारों ने इतिहास की किताबो में अपने निजी स्वार्थ और लालच के लिए लिखी......

हकीकत बात ये है कि औरंगजेब मदरसे में पढ़ा हुआ एक कट्टर मुसलमान और जेहादी था,

लुटेरा हत्यारा अरबी मजहब का औरंगजेब ने हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए, हिन्दू धर्म को समाप्त करने के लिए ना सिर्फ काशी विश्वनाथ बल्कि, कृष्णजन्म भूमि मथुरा के मंदिर अन्य सभी लगभग 10000 प्रसिद्द मंदिरों को ध्वस्त कर वहां मस्जिदों का निर्माण करवा दिया था…..

जिसे ये मनहूस वामपंथी सेक्युलर इतिहासकार किसी भी तरह से न्यायोचित ठहराने में लगे हुए हैं….

और अपने पुराने विश्वनाथ मंदिर की स्थिति ये है की वहां औरंगजेब द्वारा बनवाया गया ज्ञानवापी मस्जिद आज भी हम हिन्दुओं का मुंह चिढ़ा रहा है… और, मुल्ले उसमे नियमित नमाज अदा करते हैं...

जबकि आज भी ज्ञानवापी मस्जिद के दीवारों पर हिन्दू देवी -देवताओं के मूर्ति अंकित हैं,

ज्ञानवापी मस्जिद के दीवार में ही श्रृंगार गौरी की पूजा हिन्दू लोग वर्ष में 1 बार करने जाते है, और मस्जिद के ठीक सामने भगवान विश्वनाथ की नंदी विराजमान है….!

आपको बता दूं कि काशी विश्वनाथ मंदिर का मुकदमा मुस्लमान हार चुके है , फिर भी ज्ञानवापी मंडप पुराना विश्वनाथ मंदिर का निर्माण आज तक नहीं हो सका तो राम मंदिर का चुनाव जीतने के बाद हम क्या उखाड़ लेंगे...

चारों तरफ से हर कोई चाहे कोई भी राजनीतिक दल हो, हिंदूवादी संगठन हो, बड़े बड़े मठाधीश हिन्दू धर्म का डॉलर में व्यापार करने वाले सब मिल के हमें चुटिया बना रहे हैं...

अपने आत्मसम्मान की रक्षा स्वयं करनी पड़ती है कोई और ये नहीं करेगा...

इसलिये बीजेपी मोदी आरएसएस विहिप का मोह छोड़ो स्वयं हथियार उठा लो...

इस बार जब सावन में कावंड़िये कांवर उठाये तो इस लक्ष्य के साथ उठायें की ज्ञानवापी मस्ज़िद को जमीन में मिला देने के बाद ही हम महादेव को जल चढ़ायेंगे...

हर हर महादेव...

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पेप्सी और कोका कोला, किस योग्य हैं?

पेप्सी और कोका कोला जहर है |

एक पेय पदार्थ है जिसको हम कोल्ड ड्रिंक के नाम से जानते हैं, इस क्षेत्र में अमेरिका की दो कंपनियों का एकाधिकार है, एक का नाम है पेप्सी और दूसरी है कोका कोला। 1990 -91 में दोनों कंपनियों का संयुक्त रूप से जो विदेशी पूंजी निवेश था भारत में, उसे सुनकर आश्चर्य करेंगे आप, दोनों ने मिलकर लगभग 10 करोड़ की पूंजी लगाई थी भारत में, कुल जमा 10 करोड़ रुपया (डौलर नहीं)। आप हैरान हो जायेंगे ये जानकर कि 70 पैसे का जो ये लागत है इनका वो एक्साइज ड्यूटी देने के बाद की है, यानि एक्स-फैक्ट्री कीमत है ये | अगर एक बोतल 10 रुपया में बिक रहा है तो लगभग 1500% का लाभ ये कंपनी एक बोतल पर कमा रही है 1500% का आम भाषा मे अर्थ है 1 रूपये की चीज़ को 15 रुपये मे बेचना !

भारत के कई वैज्ञानिकों ने पेप्सी और कोका कोला पर रिसर्च करके बताया कि इसमें मिलाते क्या हैं | पेप्सी और कोका कोला वालों से पूछिये तो वो बताते नहीं हैं, कहते हैं कि ये फॉर्मूला टॉप सेक्रेट है, ये बताया नहीं जा सकता | लेकिन आज के युग में कोई भी सेक्रेट को सेक्रेट बना के नहीं रखा जा सकता | तो उन्होंने अध्ययन कर के बताया कि इसमें मिलाते क्या हैं, तो वैज्ञानिको का कहना है इसमे कुल 21 तरह के जहरीले कैमिकल मिलाये जाते हैं |
कुछ नाम बताता हूँ | इसमें पहला जहर जो मिला होता है – सोडियम मोनो ग्लूटामेट, और वैज्ञानिक कहते हैं कि ये कैंसर करने वाला रसायन है, फिर दूसरा जहर है – पोटैसियम सोरबेट – ये भी कैंसर करने वाला है, तीसरा जहर है – ब्रोमिनेटेड वेजिटेबल ऑइल (BVO) – ये भी कैंसर करता है | चौथा जहर है – मिथाइल बेन्जीन – ये किडनी को ख़राब करता है, पाँचवा जहर है – सोडियम बेन्जोईट – ये मूत्र नली का, लीवर का कैंसर करता है, फिर इसमें सबसे ख़राब जहर है – एंडोसल्फान – ये कीड़े मारने के लिए खेतों में डाला जाता है और ऊपर से होता है ऐसे करते करते इस में कुल 21 तरह के जहर मिलये जाते हैं |

ये 21 तरह के जहर तो एक तरफ है और हमारे देश के पढ़े लिखे लोगो के दिमाग का हाल देखिये -बचपन से उन्हे किताबों मे पढ़ाया जाता है | की मनुष्य को प्राण वायु आक्सीजन अंदर लेनी चाहिए और कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकलनी चाहिए ये जानने के बावजूद भी गट गट कर उसे पे रहे हैं और पीते ही एक दम नाक मे जलन होती और वो सीधा दिमाग तक जाती है और फिर दूसरा घूट भरते है गट गट गट |
और हमारा दिमाग इतना गुलाम हो गया है ! आज हम किसी बिना coke pepsi के जहर के किसी भी शादी विवाह पार्टी के बारे मे सोचते भी नही !कार्बन डाईऑक्साइड – जो कि बहुत जहरीली गैस है और जिसको कभी भी शरीर के अन्दर नहीं ले जाना चाहिए और इसीलिए इन कोल्ड ड्रिंक्स को “कार्बोनेटेड वाटर” कहा जाता है | और इन्ही जहरों से भरे पेय का प्रचार भारत के क्रिकेटर और अभिनेता/अभिनेत्री करते हैं पैसे के लालच में, उन्हें देश और देशवाशियों से प्यार होता तो ऐसा कभी नहीं करते |

पहले अमीर खान ये जहर बिकवाता था अब उसका भांजा बिकवाता है ! अमिताभ बच्चन,शरूखान ,रितिक रोशन लगभग सबने इस कंपनी का जहर भारत मे बिकवाया है !क्यूंकि इनके लिए देश से बड़ा पैसा है !
पूरी क्रिकेट टीम इस दोनों कंपनियो ने खरीद रखी है ! और हमारी क्रिकेट टीम की कप्तान धोनी जब नय नय आये थे! तब मीडिया मे ऐसे खबरे आती थी ! जो 2 लीटर दूध पीते हैं धोनी ! ये दूध पीकर धोनी बनने वाला धोनी आज पूरे भारत को पेप्सी का जहर बेच रहा है ! और एक बात ध्यान दे जब भी क्रिकेट मैच की दौरान water break होती है तब इनमे से कोई खिलाड़ी pepsi coke क्यूँ नहीं पीता ??? ?? क्यूँ कि ये सब जानते है ये जहर है ! इन्हे बस ये देश वासियो को पिलाना है !

ज्यादातर लोगों से पूछिये कि “आप ये सब क्यों पीते हैं ?” तो कहते हैं कि “ये बहुत अच्छी क्वालिटी का है” | अब पूछिये कि “अच्छी क्वालिटी का क्यों है” तो कहते हैं कि “अमेरिका का है” | और ये उत्तर पढ़े-लिखे लोगों के होते हैं| पेप्सी-कोक के बारे में आपको एक और जानकारी देता हूँ – स्वामी रामदेव जी इसे टॉयलेट क्लीनर कहते हैं, आपने सुना होगा (ठंडा मतलब टाइलेट कालीनर )तो वो कोई इसको मजाक में नहीं कहते या उपहास में नहीं कहते हैं,देश के पढ़े लिखे मूर्ख लोग समझते है कि ये बात किसी ने ऐसे ही बना दी है !

इसके पीछे तथ्य है, ध्यान से पढ़े !तथ्य ये कि टॉयलेट क्लीनर harpic और पेप्सी-कोक की Ph value एक ही है | मैं आपको सरल भाषा में समझाने का प्रयास करता हूँ | Ph एक इकाई होती है जो acid की मात्रा बताने का काम करती है !और उसे मापने के लिए Ph मीटर होता है | शुद्ध पानी का Ph सामान्यतः 7 होता है ! और (7 Ph) को सारी दुनिया में सामान्य माना जाता है, और जब पानी में आप हाईड्रोक्लोरिक एसिड या सल्फ्यूरिक एसिड या फिर नाइट्रिक एसिड या कोई भी एसिड मिलायेंगे तो Ph का वैल्यू 6 हो जायेगा, और ज्यादा एसिड मिलायेंगे तो ये मात्रा 5 हो जाएगी, और ज्यादा मिलायेंगे तो ये मात्रा 4 हो जाएगी, ऐसे ही करते-करते जितना acid आप मिलाते जाएंगे ये मात्रा कम होती जाती है | जब पेप्सी-कोक के एसिड का जाँच किया गया तो पता चला कि वो 2.4 है और जो टॉयलेट क्लीनर होता है उसका Ph और पेप्सी-कोक का Ph एक ही है, 2.4 का मतलब इतना ख़राब जहर कि आप टॉयलेट में डालेंगे तो ये झकाझक सफ़ेद हो जायेगा | इस्तेमाल कर के देखिएगा |

और हम लोगो का हाल ये है ! घर मे मेहमान को आती ये जहर उसके आगे करते है ! दोस्तो हमारी महान भारतीय संस्कृति मे कहा गया है ! अतिथि देवो भव ! मेहमान भगवान का रूप है ! और आप उसे टॉइलेट साफ पीला रहे हैं !
* पेप्सी कोला बनाने में चीनी के स्थान पर Aspertem का प्रयोग किया जाता है जिससे मूत्रनली का कैंसर होता हैं। लगातार पेप्सी- कोला का सेवन करने से हड्डियों में Osteoporosis, Osteopenia नामक बीमारियाँ होती हैं जिसमे हड्डियाँ बहुत कमजोर हो जाती हैं।

इन सबके बावजूद हमारी सरकार इनपर कोई प्रतिबंध नहीं लगा रही है और इनकी बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। साथ ही हमारे क्रिकेटर और अभिनेता, अभिनेत्री इनके विज्ञापन कर कर के बिक्री में इजाफा करवा रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति को इस जागरूकता के लिए एक नेता बन जाना चाहिए। केवल यह हमारे देश को गंभीर आर्थिक संकट से बचाने का सबसे अच्छा तरीका है। आपको अपनी जीवन शैली देने की जरूरत नहीं है।

टायलेट साफ़ करने वाला हार्पिक और कोक पेप्सी में कैसे बराबर का जहर है…… राजीव भाई कहते है …अगर स्कूल कालेज के विद्यार्थी न माने तो उनके सामने उनकी सामने स्कूल कालेज कि टायलेट साफ़ करवाकर दिखला दो ….एक मिनट में मान जाएँगे ….!

एक प्रतियोगिता मुंबई विश्वविद्यालय मे आयोजित की गयी जिसमे यह शर्त रखी गयी की जो सबसे ज्यादा पेप्सी या कोका कोला पिएगा वो जीत जाएगा तो एक लड़के ने 8 बोतल पी और उसकी किडनी एक महीने के अंदर खराब हो गयी और एक लड़के ने सबसे ज्यादा 12 बोतल पी और वो तुरंत मर गया उस लड़के की मौत का कारण था की ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड उसके रक्त में मिल गयी थी जो की बहुत ही खतरनाक है जबकि रक्त में ऑक्सिजन ही रहना चाहिए। तब से मुंबई विश्वविद्यालय में पेप्सी और कोका कोला जैसे पेयों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
भारतीय बनने के लिए भारतीय खरीदें – हम विदेशी उत्पादों के खिलाफ है।

“छोटी छोटी बूँदों से एक महान महासागर बनता है” आप कोल्ड्रिंक्स पीना बंद कर देंगे तो आपको देखकर आपके पास बैठे व्यक्ति भी पीना बंद कर देंगे|

जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!

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1000 year old hindu temple in Indonesia found

1000 year old hindu temple in Indonesia found.

Archaeologists in Indonesia have uncovered a 1,000-year-old temple that could shed light on the country’s Hindu past.

1000 years old Ancient Hindu Temple Uncovered in Yogyakarta, Indonesia under Islamic University.

Archaeologists in Indonesia have uncovered a 1,000-year-old temple that could shed light on the country’s Hindu past. The intricately carved …statues and reliefs are some of the best preserved in Indonesia, but the dig is being conducted under tight security to protect the site from well-organised relic thieves. The temple was found on the grounds of Yogyakarta’s Islamic University as workers probed the ground to lay foundations for a new library, and they realised the earth beneath their feet was not stable. Digging soon revealed an extraordinary find: three metres underground were still-standing temple walls. Heavy rains then exposed the top of a statue of the god Ganesha in pristine condition. A few weeks into the excavation, archaeologists are declaring the temple and its rare and beautiful statues an important discovery that could provide insights into Indonesia’s pre-Islamic culture. “This temple is a quite significant and very valuable because we have never found a temple as whole and intact as this one,” said archaeologist Dr Budhy Sancoyo, who is one of the researchers painstakingly cleaning up the temple.

“This temple is important for understanding the culture of our ancestors.”

A volcanic eruption is thought most likely to have covered the temple around the 10th century, about 100 years after it was built.

The eruption preserved its statues and reliefs in better condition than almost everything else discovered in Indonesia from that period, including the Borobodur and Prambanan temple complexes.

But now that they are exposed, the temple’s contents need to be protected with 24-hour security.

Last November, thieves plundered the nearby Plaosan Temple.

The heads of two rare Buddhist statues were stolen, to be traded by organised syndicates dealing in artefacts.

Tri Wismabudhi from central Java’s culture and heritage agency says temple thieves are robbing Indonesians of a piece of their history.

“To us, archaeological sites like this are archaeological data, so if the data is missing or incomplete, that means the history of the nation is also missing,” he said.

“People don’t understand that. That’s why they steal, because they don’t realise how important this is for us as a nation.”

At the Kimpulan temple on the campus of Yogyakarta’s Islamic University, the statue of Ganesha is being kept slightly buried to make it harder to steal.

It could sell for up to $250,000 on the black market.

The university wants to open the site to the public once the dig is complete.

The library that was destined for the site will be redesigned to incorporate the Hindu temple.

Copied from https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=360893887628813&id=100011246130491

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