Monday, 1 May 2017

Battle of Udaipur 1679-1680, वीर दुर्गादास राठौड

राजपूतों की रणनीति मुग़ल तख़्त का अंत लिखा गया था राजस्थान की वीरभूमि पर शासन करने का ख्वाब औरंगजेब का ख्वाब रह गया ।  
जय श्री राम मनीषा सिंह की कलम से
Battle of Udaipur 1679-1680-:
वीर दुर्गादास राठौड़ ना होते तो मारवाड़ की उत्तराधिकारी बालक अजीत सिंह के प्राण हर लेता औरंगजेब को।
औरंगजेब ने बालक अजीत सिंह को कुछ खास मंत्रियो (जिनमे दुर्गादास भी थे) के साथ दिल्ली में प्रस्तुत होने का आदेश दिया । औरंगजेब से वीर दुर्गादास राठौड़ ने कहा कि वो अजीत सिंह को उसके पिता का राज्य और उपाधि दे दे। औरंगजेब ने पूरी तरह मन नहीं किया परन्तु उसने शर्त रखी कि अजीत सिंह का पालन उसके सामने ही अर्थात दिल्ली में ही मुस्लिम महल में हो। राठौर वंश के महाराजा का पालन एक मुस्लिम के यहाँ हो ये बात राठौर वंश को स्वीकार नहीं था। उससे कहा गया कि राजकुमार अजीत सिंह महारानी के साथ 'भूली भटियारी' नमक एक जगह (जो कि अभी आधुनिक दिल्ली में झंडेवाला के पास है) में रुक रहे हैं ।
दुर्गादास और समूह के अन्य राजपूतो ने तय कर लिया की राजकुमार अजीत सिंह को गुप्त तरीके से दिल्ली से बहार निकालेंगे। वीर दुर्गादास और उनके ३०० राजपूत योद्धा जिनमे ठाकुर मोकम सिंह बलुन्दा और मुकुंददास खिची भी थे, सभी ने मिलकर एक योजना बनायीं। योजना के अनुसार मोकम सिंह बलुन्दा की पत्नी बघेली रानी ने अपनी नवजात पुत्री को अजीत सिंह के स्थान पर रख दिया। राजपूतो के अविस्मरनीय बलिदानों में एक माँ का ये बलिदान महान है । जैसे ही दुर्गादास शहर की बाहरी सीमा पर पहुचे मुग़ल सैनिको को इस बात की भनक लग गयी और उन्होंने हमला बोल दिया । दुर्गादास जी और उनके समूह को अब मुग़ल सेना से लड़ना था जो संख्या में उनसे कही ज्यादा थे। परन्तु वे लड़े और अजीत सिंह को सीमा से बहार ले जाने में सफल हो गये। किसी भी मुग़ल हमले को असफल करने के लिए प्रत्येक निश्चित दुरी पर १५ २० राजपूत योद्धा रुकते गए और वीरगति को प्राप्त करते भी गये। इस युद्ध में मोकम सिंह बलुन्दा और उनके पुत्र हरिसिंह बुरी तरह घायल हो गए परन्तु किसी तरह वो दुर्गादास और मुगल सैनिको में दुरी बनाये रखने में सफल रहे। मोकम सिंह की पत्नी ने संध्या तक युद्ध जारी रखा। अंत में दुर्गादास केवल ७ राजपूतो के साथ रह गए परन्तु वे राजकुमार को बलुन्दा नगर की सुरक्षा में पहुचने में सफल हो चुके थे। राजकुमार अजीत सिंह लगभग १ वर्ष तक बगेली रानी की सुरक्षा में बलुन्दा में ही रहे । बाद में उनको मारवाड़ की सुदूर दक्षिणी सीमा से लगे, अरावली की पहाडियों में एक गाँव आबू सिरोही में भेज दिया गया जहा वे बड़े हुए ।
औरंगजेब ने अपने पुत्र शहजादा मुहम्मद अकबर को मारवाड़ पर कब्ज़ा करने के लिए भेजा एवं मारवाड़ के उत्तराधिकारी बालक अजीत सिंह राठौड़ को बंदी बनाकर मुग़ल दरबार में उपस्थित करने का आदेश दिया, राठौड़ कुल के संरक्षक वीर दुर्गादास राठौड़ (मारवाड़ नरेश जसवन्त सिंह राठौड़ वीरगति को प्राप्त हुआ था अजीत सिंह बालक था मारवाड़ की राजगद्दी पर औरंगजेब की नज़र थी इसलिए अजीत सिंह को बंदी बनाने हेतु अपने तीन बेटे को शाही फ़ौज के साथ भेजा मारवाड़ पर कब्ज़ा करने ) ने सिसोदिया वंश के राजा महाराणा राज सिंह प्रथम से सहायता मांगे महाराणा राज सिंह प्रथम ने बिना देर किये संयुक्त सेना अभियान चलाया । उदयपुर के महाराणा राज सिंह प्रथम ने मारवाड़ के सहयोग में मेवाड़ी रणबांकुरों के साथ उपस्थित हुए ।
महाराणा राज सिंह प्रथम अपनी सेना के साथ अरावली के पहाड़ियों में घात लगा कर रहे । औरंगजेब ने अपने छोटे शाहज़ादे मुआज्ज़म को आदेश दिया सारे अरावली पर्वत पर घेरा डालने का ।
चित्तौड़ किले के प्रमुख द्वार पर शहजादा मुहम्मद अकबर अपनी सेना के साथ घेरा डाल दिया उसके साथ 35,000 घुड़सवार थे और अरावली पर्वतो पर औरंगजेब के साथ 20,000 सेना घेरा डाले थे ।
मारवाड़ की सेना के दो टुकड़ी तैयार हुआ एक वीर दुर्गादास राठौड़ के नेतृत्व में दूसरा मेवाड़ी सेना महाराणा राज सिंह प्रथम के नेतृत्व में ।
वीर दुर्गादास राठौड़ की सेना चित्तौड़ किले के प्रमुख द्वार पर छापा मार युद्ध कर पहाड़ियों में छिप जाने की निति अपनायी इस छापे मार युद्ध के पश्चात मुहम्मद अकबर की सेना 35,000 से सीधा 2,000 से भी अल्प रेह गया था इस युद्ध के अंतिम क्षण में दुर्गादास राठौड़ के साथ शहजादा मुहम्मद अकबर का युद्ध होता हैं एवं शहजादा मुहम्मद अकबर अपना एक हाथ खो देता हैं और किसी भी तरह एक हाथ लिए जान बचाकर दिल्ली भाग जाता हैं ।
और दूसरी तरफ़ महाराणा राज सिंह प्रथम के नेतृत्व में राजपूत सेना जब-तब मुग़ल फ़ौज पर छापे मार रहे थे शाहज़ादे मुआज्ज़म की 26,000 फ़ौज पर बड़ा छापा मार कर राजपूतों ने उसे पराजित कर तोपे लश्कर राजपूतों के हाथ लग गया ।
ये खबर मिलते ही औरंगजेब होश उड़ गया इस खबर के बाद ही और एक खबर आ पहुँची जिसे सुन औरंगजेब आग-बबूला होगया और वो खबर थी महाराणा राज सिंह प्रथम के नेतृत्व में राजपूत सेना ने शाहज़ादे आज़म के साथ 32,000 लश्कर को काट डाले थे अरावली खायी और घाटियों में छिपे हुए राजपूत मुग़ल फ़ौज पर टूट पड़ते थे ( यहाँ एक बात कहना चाहूँगी इस युद्ध को Ambush war / Gureilla Warfare Technique कहते हैं और उस वक़्त राजपूत सेना मुट्ठीभर थे और मुग़ल फ़ौज चार गुना ज्यादा आमने सामने की लड़ाई से राजपूत योद्धा की बलिदानी बेकार जाती और मेवाड़ और मारवाड़ पर कब्ज़ा होजाता जिससे हिन्दुस्तान पूर्णरूप से गुलाम होजाता इसलिए ऐसे युद्ध कला का सहारा लिया गया जिसे महाराणा प्रताप एवं छत्रपति शिवाजी महाराज भी इस्तेमाल करते थे ) अब अरावली पर्वत मानो जाग गया था। औरंगजेब की रातों की नींद उड़ गयी ये सोचकर सामने दिखाई ना पडनेवाले काफिरों की सेना का मुकाबला कैसे किया जाए ।
ख्वाजा मुईनुद्दीन ने औरंगजेब को सलाह दिया मुग़ल फ़ौज पिछले चार महीनो में लाखों लश्कर खो चुके हैं और तोप , रसद , घोड़े , हाथी , धन इत्यादि सब कुछ हार चुके हैं अंतत अब मुग़ल साम्राज्य का विनाश टालने के लिए युद्ध रोक दिया जाए और लश्कर को वापस दिल्ली बुला लिया जाए औरंगजेब ने वैसा ही किया गया वोह भी जान चूका था अगर ऐसा ही चलता रहा तो मुग़ल सल्तनत तबहा हो जायेगा ।                      
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जय श्री कृष्ण
जय श्री राम
जय एकलिंग जी
जय क्षात्र धर्म

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