Monday 27 February 2017

आक्रमण के हथियार बदल गए हैं-भाग-१७

हथियार बदल गए हैं-17

  “रघुपति राघव राजाराम,पतित पावन सीताराम।
   ईश्वर-अल्ला.....सेकुलर झाम।कांग्रेसी प्लान,

आप यह रोज सुनते होंगे।कुरान,बाइबिल,गीता सभी पुस्तको में एक ही बात लिखी है।अगर वामियो/कांग्रसियों की इस बात को आप मानते है तो पक्का जान लीजिए आप मूर्ख है।इस एक झूठे वाक्य ने जितना नुक्सान सनातन धर्म का किया है उतना नुकसान बड़े-बड़े आक्रमणों ने भी नही किया।उनकी किताबे कुछ दूसरी बात कह रही हैं जो आप एक ही कह कर खुद को बेवकूफ बना रहे है।सेमेटिक,, एकेश्वर मालिक है(एक ताकतवर राजा )और सनातन का “एकेश्वर, जड़-चेतन मे व्याप्त पूर्ण ब्रम्ह।मानव-पशु-तरु-गिरि-सरिता जगत के एक-एक कण मे व्याप्ति परम सत्ता एक ही है।एक सदविप्र…एकोअहम…..तत्त्वमसि…अहं-ब्रम्हास्मि आदि-आदि कहकर हम सभी उसके संतुलित प्रेम से आछादित हैं।परन्तु सेमेटिक “एकेश्वर,,….सेकंड एक्झिस्टेंट मे परमात्मा तो छोड़ दीजिये वे “आत्मा, तक नही स्वीकारते।…इसाइयत ने 19वी में औरतो मे आत्मा माना॥इस्लाम, तो अभी भी दो औरत बराबर एक पुरुष की बात करता है।दूसरे समस्त जीवन को आललाह और गाड ने उनको (एक मजहब पर चलने के कारण) बख्शा है।जैसे ही आप कहेंगे …”सब मे वह है,(वह भी बकरी,और गाय,गेंहू जल मे भी, .)यह ईश-निंदा है।इसे …”कुफ़्र, घोषित किया जाता है।उनके अनुसार कोई भला अल्लाह को खा कैसे सकता है??उसकी बराबरी करता है?उस खुदा की बराबरी करता है जो सबका मालिक है।हराम-खोर सनातनी,बुतपरस्त यह कुफ्र है,इसकी सजा मौत है।केवल आपके मान लेने से क्या होता है।

  मुसलिमों का अल्लाह या इसाइयों का गाड,या यहूदियों का अहुरमजदा (इस्लाम या ईसाई,यहूदी के अतिरिक्त) दूसरे अन्य-मजहब पर चलने वाले आदमी से भी द्वेष करता है,साथ ही दूसरे जीव को भी आत्मा-रहित घोषित करता है।वह आपके परमात्मा की तरह सभी जीवो मे व्याप्त नही है।सबसे मजेदार बात जैसे ही जिसका बपतिस्मा या कटिंग हो जाता है वह भी सेमेटिक “”एकेश्वर, का वारिस तैयार हो जाता है।यानी यह दुनिया अब उसके लिए भी अनुदान मे मिली है।उसके पुराने बाप-दादे,पूर्वज,पितर सब बुतपरस्त काफिर हो गए। जिनकी सजा तो पहले से मुकर्रर है।समझ गए न! रघुपति राघव राजाराम के बाद,ईश्वर अल्ला तेरो-नाम एक कांग्रेसी क्षेपक था जो अलग से पुराने भजन मे बड़ी चालाकी से घुसा दिया गया था। एक अघाती शस्त्र के तौर पर ही खुद को समझाने के लिए सेकुलरियापन दिमाग का एक कीड़ा होता है।वह अपने शिकार की अनुभूतियाओ और समझने की क्षमता छीन लेता है।अब मैं इतना ही कहूंगा “सबको सन्मति दे भगवान!

   यहाँ आप प्वाईंट-वाइज़ पढे,देखकर आप खुद तय करें की हमले कौन और कैसे कर रहा है। इस कंपेयर चार्ट को पढ़कर आप समझ सकेंगे कि आप हार क्या रहे रहे हैं।जैसे-जैसे दिमाग लगाएँगे उनके छोटे-छोटे हथियार दिखेंगे।खतरनाक तरीके के तकनीकों से लैस।आप उनको नही जानते यह उनकी ताकत है,आप खुद के बारे मे नही जानते यह यही उनका हथियार है।असत्य और दुष्प्रचार उनका वैपन।जानकारी ही सुरक्षा है,वह भी क्न्फ़्युज हुये बगैर।हिंदुत्त्व एक जीवन पद्धति है,...बाकी के जीवन पद्धतियो और विचारों मे उसका अंतर समझिए!

*सदस्यता-कम्युनिष्टों की कार्ड होर्डिंग से होता है,इसाइयो में बप्तिस्मा द्वारा धर्मान्तरण से,मुसलमानों में खतने से बनाया जाता है।यह बनाना हमेशा "अप्राकृतिक,,होता है नितांत आर्टिफीसियल।
लेकिन समस्त मानव उस "सत्य-सनातन धर्म,, के अंतर्गत ही जन्मकर पूजा पद्दति बाद में स्वरूचि और बुद्दि- विवेक से व्यक्तिगत चुनते है न की सांगठनिक।पूर्ण स्वातंत्र्य देता है।

*भाषा-अवसर-वादी है,ईसाई लैटिन,रोमन,इंगलिश,को प्रधानता देता है,इस्लाम अरबी क्लिष्टता पर ज़ोर है,सनातन देववाणी,अथवा अंत:-प्रेरित-विकास और युगा की समझ पर चलता है।

*स्वतंत्रता-कम्यूनिस्टो ने कहा एक पार्टी का तंत्र हो बाकी समस्त मनुष्य और विचार उनके गुलाम।,इस्लाम ने कहा एक ही रास्ता है "दीन बनो नही तो काफिर हो उसकी सजा अल्लाह ने मुकर्रर की है ,....इसाई ने कहा 'हीवेन,जाने का एक ही रास्ता है "इसाई बनो, वरना "नरक,भुगतोगे।तीनों ही किसी अन्य को जीने का "हक,नही देते।पर सनातन हजारों साल से ""जो चाहे जिस पथ से जाए,साधक पहुचेगा ही,सिदांत से जी रहा है।."पूर्ण स्वातन्त्र्य,वह भी समस्त जीवों को,।

*दूसरा वजूद - मार्क्स ने कहा एक-पार्टीतंत्र में जीयो..इसाई ने कहा चर्चेज की छाया में जीयो,इस्लाम ने कहा "दीन की रोशनी,में ही जी सकते हो वरना जहन्नम" यानी तीनो ही अन्य अस्त्तित्व को नही स्वीकारती।डार्विन ने कहा : दूसरों को खाकर जियो,हक्सले ने कहा : जियो और जीने दो।
परन्तु हमारे वेदों ने कहा 'सबको सुखी बनाने के लिये जियो।सर्वे भवन्तु सुखिन:।

*परमात्मा-कम्युनिष्टों ने कहा गाड इज फ्राड,...इसाइयो ने उसे "मनुष्यों, का पाप नष्ट करने वाला बताया।अगर ईसाई हो गए तो ही उसकी गोद मिलेगी। वह जन्नत का स्वामी भी है जिसका युध्द नरक के शैतानों से चल रहा है।.....इस्लाम का अल्लाह 'एक, है केवल आदमियो का रचयिता और मालिक है,जो मुस्लिमों के प्रति बड़ा दयालू है उनके अलावा सबसे नफरत करता है।
सनातन उसे कण-कण में व्याप्त कहता है जो जण-चेतन में,सम्पूर्ण जीवन-जगत(केवल मनुष्य ही नही प्राणी-मात्र)काल प्रवाह में सत,चित,और आनंद के रूप में विराजमान है।अहं ब्रम्हास्मि,.........एक सदविप्रा,...तत्वमसि,
इस्लाम इसे कुफ्र कहता है....या "अल्लाह!!! ईश्वर की बराबरी...इस काफिर को मौत दो!!

*आत्मा--- मार्क्स "आत्मा,नही मानते..(.लैब में नही दिखती)
इसाई मनुष्यों में मानते हैं औरतों में हैं या नही कन्फ्यूजन है।इस्लाम "रूह,केवल "मुस्लिमों, में मानता है..जन्नत में उसे 72....!!
सनातन समस्त चेतन जगत में "आत्मतत्व,बताता है।
आत्मा का ही विस्तार परमात्मा बताता है।
आदमी,पशु,पक्षी,कीट,पतंगा,गिरि,सरिता समस्त जीवों में आत्मा की उपस्थिति मानता है।

मोक्ष-वामी भौतिक देह तक सीमित है,इसाई स्वर्ग(हीवेन) तक की कल्पना करता है,इस्लाम जन्नत जहां भौतिक सुख मिलेगा।
सनातन कर्म,या ज्ञान या भक्ति का मार्ग बताता है अहं(मैं) के पूर्ण समाप्ति के वयं में पूर्ण समर्पण (विलय) मोक्ष तक जीव रहता है।

*तंत्र-मन्त्र पद्दति---वाम केवल पार्टी के बन्दूक 'तंत्र, व् दास-कैपिटल के मन्त्र मानता है।वह भौतिक तंत्र पर बल देता है।
ईसाईयों में बाइबिल के पाठ से शैतान को भगाने की व्यवस्था है।बाकायदे चर्च उन चमत्कारों से अपने को प्रमाणित-प्रचारित भी करते रहते हैं।
इस्लाम में शैतान तो हैं ही जिन्न,जिन्नादो,रूह,आदि की भी चर्चा है।उनको भगाने के लिए आयते हैं।
तीनों ही अधकचरे स्वरूप में उपयोग करते हैं।
'सनातन हिंदुत्व, में तंत्र-मन्त्र स्वतंत्र पूजा पद्दति है।लगभग सभी सम्प्रदाय यहां तक बौध्द तक वैज्ञानिक रूप से ऊर्जा चेतना का विस्तार रूप में इसे प्रयोग करते है।

*आंतरिक आजादी----कम्युनिज्म किसी पूजा-अराधना को नकार देता है।
इसाई चर्च में केवल ईशु की प्रार्थना को लेकर अड़ा है।
इस्लाम "नमाज,को इबादत कहता है।बाकी कुफ्र है।
सजा मुकर्रर है।
सनातन पूर्ण स्वतंत्रता देता है....ध्यान,प्रार्थना,अर्चना,स्तुति,योग-पूजा-पाठ-हवन-पूजन,तर्पण,हठ,यजन...चाहो तो वह भी न करो,बल्कि गायन-वादन,नृत्य,भक्ति,अभक्ति चिन्तन-मनन जो-जैसे चाहो पूरी आजादी....किसी भी तरह"आत्म-साक्षात्कार, न की गुलामी।यह निहायत ही व्यक्तिगत है न की सामजिक-सांगठनिक।उस पर किसी संगठन के नियंत्रण को पाप कहा है।

*मूर्ती-पूजन---कम्युनिस्ट पार्टी-चीफ के साथ मार्क्स या माओ की स्थापित करते हैं।इस्लाम और इसाइयत भी 'व्यक्ति,पुस्तक,केंद्र,बिना किसी की छूट दिए पूजता है।
सनातन में हजारों पूजा-पद्दतियों में एक पद्दति मूर्ती-पूजन भी है।'भौतिक व्यक्ति,नही 'परम् लक्ष्य,पर केंद्रित होने के लिए मूर्तिया बनाई जाती हैं।इस्लामिक और ईसाई आक्रमण करके उन मूर्तियो को तोड़ देते हैं फिर भी 'परम्-लक्ष्य,स्थिर रहता है।
ये मार्गी जब चाहें राह छोड़ने या बदलने की भी स्वतंत्रता है।

*प्रक्रति----बाइबिल ने कहा : जिसका काम उसी का दाम।सब तुम्हारा है खा-पी खत्म कर।कुरान ने कहा : जहान खुदा का और जिहाद इन्सान करे.....इस्लाम कायम करे।किन्तु मेरे वेदों ने कहा : मेहनत इन्सान की, सम्पत्ति भगवान की यानी (तेन त्यक्तेन भुजींथा) ।

*कर्म और उसके फल---- कम्युनिज्म ""पार्टी की इच्छा ही कर्म,बताता है...इसाईं कहता है इशू की 'भेड़े,(इसाई) बन जाओ समस्त पाप-कर्म खत्म.।.....इस्लाम तो "दीन की राह,, में किये हर "जघन्य कुकर्म,, को भी जन्नत देने वाला कहता है....सनातन कहता है "अपने किसी भी कर्म का फल भुगतना ही होगा...शुभ कर्म का पूण्य-फल,...गलत कर्मो का पापफल भोगोगे.....किसी भी तरह छुटकारा नही मिल सकता...परमात्मा भी नही दे सकता।

*मानवता-- मार्क्स ने कहा "मजदूर(श्रमिक) हो,,!
बाइबिल ने कहा : ईसाई बनो ।
कुरान ने कहा : मुसलमान बनो (कुरान म.सि.2)।
किन्तु वेदों ने कहा : मनुष्य पैदा हुए हो मानव बन जाओ (मनुर्भव)।

*शरीर और मृत्यु----कम्युनिज्म कहता है("देह)भौतिकता तक है!..इसाई किसी "नूर तक,, बताता है......और फिर''हीवेन के मौज-मजे,...(अगर ईसाई है तब बाकी लोग पापी होंने के कारण नरक जाएंगे)।
.इस्लाम कयामत की रात तक एक "देह,, सिद्दांत मानता है.यानी कब्र में गड़े इन्तजार करते रहेंगे..देह एक बार मिल गया है इसलिए जितना भोग पाओ भोगो।.बाद में भी यह देह भोग भोगने जन्नत जाएगा(अगर हजरत पर यकीन लाये हो तो.)
सनातन कहता है ""कर्मफल,, भोगने फिर-फिर जन्मोगे...पुनर्जन्म!...कीट-पतंगे-पशु-पक्षी के रूप में भिन्न-भिन्न पुण्य या पाप कर्म जानने यहीं-इसी धरती पर आओगे इसलिए""योग:कर्म सुकौशलम!!!,,
अत: इस "सुंदर "प्रकृति-जगत,,को मत नष्ट करो।

*शिक्षा----- बाइबिल ने कहा : पढाई नौकरी के लिये
कुरान ने कहा : पढाई कुरान के लिये ।
मार्क्स ने कहा...""समान भौतिक,, बँटवारे के लिए
किन्तु वेदों ने कहा : पढाई केवल नैतिकता , ज्ञान और नम्रता के लिये।""व्यक्तित्व का विकास करते हुए..श्रेष्ट मनुष्यातत्व चेतना की उँचाई तक पहुचने के लिए..!!!!,,
प्रज्ञानं ब्रम्ह!!

*कब्जावादी नीति---कम्यूनिस्टो ने कहा "क्रान्ति,, करके कम्युनिज्म स्थापित करो,...इसाइयो ने क्रूसेड का आदेश दिया....इस्लाम ने "जेहाद,, करके सारे जहां को इस्लाम में बदलने सिद्दांत दिया..सनातन हजारों साल से बोलता है,सत्यमेव जयते।तमसो माँ ज्योतिर्गमय,असतो माँ सदगमय के चरित्र से जी रहा है।

*राज्य और शासन-व्यवस्था--- कम्युनिज्म,'' श्रमिक मात्र के शासन की बात कहता है,जिसपर कम्युनिष्ट पार्टी का कब्जा होगा।इसाइयत राज्य पर 'चर्च,की प्रधानता के साथ स्थापित करता है।अरस्तू ने कहा : राजनीति शासन के लिये।कुरान ने कहा : अल्लाह ने "इस्लाम, को ही शासन का अधिकार दिया है बाकी सब अवैध है।
सनातन राज्य को "लोककल्याण,की व्यवस्था मानता है...न त्वहम कामये राज्यम..।वेदों ने कहा:राजनीति की अपेक्षा लोकनीति,शासन की अपेक्षा अनुशासन,तानाशाही की जगह संयम और अधिकार के स्थान पर कर्तव्य पालन करें।

*संगठन-- मार्क्स "पूँजी,, के इर्द-गिर्द की एकतंत्रत्म्क पार्टी में रखने की व्यवस्था देते हैं।ईसाई-इस्लामिक एक किताब,एक पैगम्बर,एक मुख्यालय केन्द्रित, एक कट्टर "साम्राज्यवादी-विस्तारवादी साम्प्रदायिक संगठन,,की अवधारणा तले जीते हैं।किन्तु सनातन हजारों पन्थो तले "पूर्ण स्वतंत्रता-वादी आत्म-कल्याण के धर्माचरण,की जीवन पद्दति देता है,जैसे चाहो रहो,जिसमे किसी "आक्रामक सन्गठन, की जरूरत नही।

*"राष्ट्र,---मार्क्स कहते हैं"नो बार्डर लाइन इन द वर्ल्ड,,मजदूरों दुनिया कब्जा लो और कम्युनिष्ट पार्टी को दे दो।...इसाइयत चर्च के अंदर विभिन्न "शासन-लाइन,,के साथ पूरी दुनिया को "धर्मान्तरण, करके एक 'भौतिक-आर्थिक,व्यवस्था देता है।'दारुल-ए-इस्लाम, के तहत इस्लामी राज्य को ही मान्यता देता है।''मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा,...इक़बाल।
'सनातन हिन्दुत्व,जन,भूमि,संस्कृति,जीवन-शैली,के विकास के साथ वसुधैव कुटुम्बकम कहता है।
स:अस्तित्व सिद्दांत यानी दुसरे "राष्ट्र,भी सुरक्षित बढ़ें।उसके लिए "आक्रामक, न होकर योगात्मक होकर युगों से जी रहा है।

*तानाशाही...लादने की प्रवृत्ति--
"वाम, विरोधी को 'स्वयंभू-क्रान्ति, से मिटा देने को कहता है।बाइबिल किसी अन्य पूजा-पद्दति को थोडा भी स्पेस नही देता 'केवल हेल,(नरक)की राह दिखाता है।जहां भी खुद की तार्किकता,वैज्ञानिक लोकतांत्रिक दृश्टिकोण और परख की बात उठी तीनों ही विरोधियों को 'मौत, देने पर यकीन रखते हैं।
इस्लाम दूसरों को "काफिर,घोषित करता हुआ "जहन्नम की आग में डालने का यत्न करता है।वहीँ सनातन लोकतांत्रिक मत का समर्थक है।""नेति-नेति,, कहकर और अधिक जानने का स्वभाव देता है।दूसरों के मत को भी सम्मान देता है।हजारों पन्थ उसी भाव से उठे।जानो फिर मानो,,"विद्या ददाति विनयम....,,ज्ञानिस्तत्तत्वदर्शिन:...।।

*इतिहास---पूर्णतया रक्त-संघर्ष पर आधारित साम्यवाद 1917 सोवियत संघ, 1948 चीन में हत्याओं के दौर के साथ आता है।क्रिश्चियनिटी ने 15 वीं शती के आधुनिक हथियारों के बल पर तीन-चौथाई दुनिया पर पश्चिम के कुछ इसाई देशो का गुलाम बनवा कर आर्थिक कब्जा करवाया...जारी..अत्याचारों का इतिहास.।...इस्लाम का ने छठी शती से आज तक दुनियां भर में दुसरे सम्प्रदायो के 800 करोड़ लोग मारे हैं,..5 लाख से अधिक धर्म-स्थल तोड़े और करोडो बालकों,स्त्रियों को गुलाम बनाया..जारी।"युग-युगीन सनातन,. ने सम्प्रदाय के लिए खून की एक भी बूंद नही गिरने दी।बल्कि यही से निकले बुद्द के "अहिंसा-सिद्दांतो,ने दुनिया को नई रौशनी दी।... ज्ञान-विज्ञान-योग-अध्यात्म और चेतना का विस्तार सिखाया।

*इतिहास दर्शन-वामी उसे नकारात्मक दिखा कर वर्ग-संघर्ष कराना चाहते है,इसाई उसे बाइबिल के 5 हजार वर्षों में समेट देना चाहते है,इस्लामी रसूल से पहले के पूर्ण-अस्तित्व और अतीत को नष्ट करने में लगे हैं,सनातन उस सत्य को परम व्याख्या कहता है।पुराण व्याख्या उसी दर्शन पर आधारित है।

* मानक--वाम पक्ष में आर्थिक आधार लेता है, ईसाईयों में भौतिक उपलब्धियों और चर्च की प्रार्थना को आधार लिया है,इस्लाम,दारुल-ए- इस्लाम के कायम होने को ही मानक बताता है।तीनो ही धर्म की व्यक्तिगत उपलब्धियों को नकारते है।लेकिन सनातन धर्म अनुभूतियों(रियलाइजेशन)को पैरामीटर लेता है।अगर अंत:करण में सत्य का विकास हो रहा है तो आप धर्म गति को प्राप्त हो रहे हैं।

*जातीयता की स्थिति- मार्क्स दो ही जातियों की बात करते थे।किंतु अब चार वर्गों में बांटते हैं उच्च वर्ग,मध्यवर्ग,मध्य-निम्न वर्ग,और निम्नवर्ग,इस्लाम 73 फिरको में बटा हुआ है,शिया,सुन्नी,वहाबी,देवबंदी और राष्ट्रीयता के हिसाब से न जाने कितना जातीय विभाजन हैं। ईसाई प्रोस्टेट-कैथोलिक,जेसुइट्स,मैथोडिस्ट इत्यादि 115 वर्गों में बंटा हुआ है। सनातन धर्म देश,काल,परिस्थिति,गोत्र के हिसाब से अपने को विभिन्न टुकड़ों में बांट कर बचाता रहा है।

*अन्त:जातीय संघर्ष--वाम-तंत्र प्रत्येक जगह मतो में बंटा है।रूस वाला अलग कम्युनिज्म है चाइना-वाला माओ-वाद,..भारत में ही 93 धाराएं है....सब लड़ रहे हैं।इसाई तंत्र कैथोलिक,प्रोटेस्टेट,मेथोडस्ट,साल्वेशन हजारो 'नेटवर्क,हैं आपसी जंग में लाखो जाने जाती है।कैथोलिक की संख्या ज्यादा है इसलिए हावी हैं।इस्लाम पूरी दुनिया के हर देश में "भाईचारे ,के साथ दूसरे फिरके,जाति,विचारधारा के मुसलमान को बड़ी क्रूरता से मारता है।73 फिरके तो लड़ ही रहे हैं,शिया-सुन्नी,..वहाबी-अहमदिया-
देवबंदी एक-दुसरे को फूटी आँखों नही सुहाते।82 देशो में फैले आपस में खुनी-जंग लगातार जारी है।
सनातनी हजारों साल से हजारों सम्प्रदायों,पूजा-पद्दतियों,जातियों,वर्गो,विचारों में अनेक होते हुए भी "एक-बूंद,खून बहाए बगैर साथ-साथ रहकर लगातार विकास कर रहे हैं।हजार साल तक इस्लाम-इसाई की गुलामी के बावजूद वे अपने "मुकम्मल वजूद,(बिना रक्त-पिशाची आदत अपनाये)सुरक्षित है।
जबकि वामियों,सामियों,कामियों की लगातार कोशिश रही है की सनातन व्यवस्था में "जातीय-संघर्ष,हो।

*विज्ञान--ईसाइयों ने कहा उससे इशू की भेडो के अधिकाधिक सुख-उपभोग हेतु।मुस्लिम आतंकियों ने कहा : परमाणु हथियार मिल जायें तो काफिरों को मिटाने के लिये ।किन्तु मेरे वेदों ने कहा : सम्पूर्ण विज्ञान ही जीवकल्याण के लिये(यथेमा वाचंकल्याण)

*स्त्री- कम्यूनिस्टो ने कहा 'स्त्रिया, कम्यून में सामूहिक "चीज,
हैं...इसाई ने कहा सम्पर्क"सिन, है....इस्लाम ने बाँट लेने की 'वस्तु,..कहा सनातन उन्हें पूजनीय बताता है।वह 'श्री,हैं।
रक्षा,शिक्षा,इच्छा उनकी अराधना से ही मिलती है।

*जीवन---मार्क्स ने कहा "केवल पूँजी,(भौतिक-अर्थ).
.बाइबिल ने कहा ""परमात्मा,ने बख्शी है भोग डालो...धरती और जन्नत....यहाँ भी वहां भी..।इसाइयत और इस्लाम ने मजहब(धर्म)को सब-कुछ बना दिया...!
फ्रायड और आधुनिक पश्चिम-वादियों ने काम(सेक्स और भोग) आधारित जीवन पर बल दिया।
कान्त,हीगल,टफलर और अति-चिंतको ने आदर्शवाद या"मोक्ष,की संकल्पना पर बल दिया....।
हजारों साल पहले हमारी जीवन-पद्दति के निर्माताओ ने "अर्थ,धर्म,काम,मोक्ष आधारित पूर्ण-चिन्तन से व्यवस्था दे दी थी।

*संसाधन- मार्क्स का कहना है...द्वंन्दात्मक भौतिक-वाद यानी 'वस्तुओं के लिए जीवन में घनघोर संघर्ष करना है।....बाइबिल का कहना है प्रभु की कृपा समस्त ईसाइयों पर रहेगी,सब चींजे (जीव और सुविधाएं) उनको ''बख्शी,, गयीं है वे खूब उपभोग करें।
इस्लाम में समस्त संसाधन अल्लाह की 'नियामत, तो है किन्तु वह केवल मुस्लिमों पर बरसती है अन्य किसी बुतपरस्त के लिए वह 'हराम,है।सनातन हिंदुत्व,, समस्त ''संसाधन जीवमात्र के कल्याण,,ब्रम्हार्पणम-ब्रम्हार्वी:ब्रम्हाग्नौ ब्रम्हणाहुतम...कहता है।
सहनाववत्तु कह कर साथ-साथ उपयोग को कहता है।

*मानवीय प्रवृत्ति---- को मार्क्स भौतिक दायरे में देखते है।
इसाई 'यीशु के प्रेम तले, जाहिर करते हैं...जो प्रभु का एकमात्र बेटा है.....जिसमे परमात्मा और शैतान के जंग की वजह से बुराई आ जाती है.।कुरान की रौशनी में 'दीन (इस्लाम) के लिए किया जाने वाला हर कर्म जायज है।अल्लाह की नियामत केवल मुस्लिमों पर बरसेगी।उपरोक्त दोनों अगर किसी दूसरे जीव को दुःख भी देते हैं तो भी वैध है।सनातन तीन गुणों (सत,रज,तम)का समन्वयकारी संतुलन बताता है...आसुरी कर्म की परिभाषा दूसरों को दुःख देंने से की गयी है। जीव को दुःख देने से पाप...,सुख देंने से पूण्य उपजेगा जो उत्पादनकर्ता के पास ही आएगा।

  अब आप खुद अपनी बल,बुद्धि,विवेक से जगत-हित में निर्णय करें।आपके पूर्वजो,स्वयं की पूर्णता और राष्ट के लिए लिए क्या आवश्यक है।जितनी बार आप यह कह रहे है कि सारी धार्मिक किताबे एक ही बात कह रही हैं उतनी बार आप एक स्पेशल जेहनी हथियार का शिकार हो रहे हैं।मजेदार बात आप हथियार के आघात भी नही जान पा रहे हैं।

(आगे पढ़िये -हथियार बदल गए हैं-18)

साभार https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10154933694306768&id=705621767

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