Saturday 4 March 2017

सांप्रदायिक आतंकवाद को भडकाने वाली सस्ती पत्रकारिता

जवाबदेही का प्रश्न  : कुछ मीडिया चैनलों की सांप्रदायिक आतंकवाद को भडकाने वाली सस्ती पत्रकारिता
=======================================
Ref : प्राइम टाइम : क्या मीडिया में ऐसा राष्ट्रवाद दिखना चाहिए?
========================================
कुछ दो कौड़ी के पत्रकार अपने कार्यक्रम मे तीन-चार चिंदी चोर किस्म के पत्रकार बैठा कर जो उसकी अपनी स्वयं की धूर्त दलीलो को सराहते हुये केवल उसका ही पक्ष  बढ़ाते हैं, दूसरो पर एक पक्षीय होने का दोष लगा देता है, इस कला में इसकी मास्टरी है

R K को R S की विदेशी स्काच का देशी जूठन ही कहा जा सकता है, जिसमें बिहार मे प्रतिबंध लगा हुआ है, फ़िर भी इस बेअदब की पुरानी लत है कि उतरती नही है, अपने मालिक प्रणय रॉय का भ्रष्टाचार एवं भाई का सच्चरित्र व्यापार, उसकी पत्रकारिता के दायरे से हमेशा बाहर ही रहे, कश्मीरी पंडितो का सांप्रदायिक निष्कासन उसकी निरपेक्ष आंखे कभी देखा ही नहीं पायी

इस तरह के सस्ते बजारू पत्रकार, पत्रकारिता जगत को कलंकित करते है, और परस्पर हिंदू-मुस्लिम सद्भाव को चोट पहुंचाते है, इस तरह के पत्रकार वे लोग हैं जो की इस्लाम को आधुनिक बनने ही नही देते है, उलट इस्लाम के घटको मे हाल ही मे बढ चुकी सांप्रदायिकता को और भी भडका देते हैं. मजहबी सांप्रदायिकता को अपना आधार और ढाल बनाकर हत्याओ को अंजाम देते हैं, पत्थर बाजी करवाते हैं जो कि दिन के उजाले की तरह से साफ़ है

रवीश कुमार कल्पना करता है कि भारत एक आराजक भू भाग है जिसकी न कोई संप्रभुता है, और न सार्वभैमिकता और न ही इतिहास इसलिये जो कोई भी भारत को तोडने के लिये सांप्रदायिकता या आतंकवाद जैसे तरीको का सहारा लेता है, दूसरे भारतीयों की हत्या करता है, वह हत्यारा अपने मानव अधिकारो को अपने तरीके से व्यक्त करता है, जिसका सम्मान होना चाहिये।

इस जैसे बीमार बाजारू इंसान के लिये हत्या करने वाले अपराधी और मारे गये निरपराध भारतीय मे अंतर का अस्तित्व नहीं है, एक का अधिकार है हत्या करना और दुसरे की विवशता है मारा जाना ताकि हत्यारे के हक की पूर्ति हो सके।

कश्मीर मे हत्या करने वाले आतंकवादी अपना मजहब इस्लाम को मानते है, इससे उनके तीन फ़ायदे है -

१) विश्व भर मे फ़ैले हुये इस्लामिक आतंकवाद के नेटवर्क से हथियार आसानी से मिल जाता है

२) इस्लाम के नाम पर हत्या करने और इस्लाम के नाम पर ही नफ़रत फ़ैलाने से, क्च्ची सोच के आम मुसलमान को बहकाना आसान हो जाता है, यह बहका हुआअ आम मुसलमानो का तबका ही कश्मीर मे पत्थरबाजी करता है

३) अरब और इस तरह मे मुल्क जो कि धर्म निरपेक्षता पर यकीन नही रखते है, वहां से धन इकट्ठा करना आसान हो जाता है।

कश्मीर मे इस्लामिक आतंकवादी सांप्रदायिक आधार पर, पाकिस्तान के इशारे पर हिंसा करते हैं, इस बाजारी रवीश के ही NDTV चैनल मे नगमा अपने कार्यक्रमो मे पाकिस्तान की संलिप्तता पर कार्यक्रम करती है, जिसे यह सस्ता पत्रकार देख नही पाता है.

क्या भारत में सांप्रदायिकता को अलग अलग भू भागो इस्लामिक कट्टरता के अनुसार परिभाषित किया जाएगा, क्या संविधान में इसी तरह की भावना निहित है, इस तरह के पत्रकार कभी समझ नहीं पाते हैं, यदि पूछो तो इनका चेहरा सफ़ेद पड़ जाता है

जिन जिन इलाको में इस्लामिक साम्प्रदायिकता ने अधिकार कर लिया है उन्हें छोड़ कर अन्य स्थलों में निरपेक्षता की वकालत करते हुए  उन लोगो को, जो भारत की संप्रुभता एव सार्वभौमिकता को साप्रदायिक आधार पर तोडना चाहते है, को लगातार अपने तरीके से बढावा देना रविश कुमार जैसो का प्रमुख काम रहता है यदि इसकी नीयत बदनीयत न होती तो यह अपने एक पक्षीय कार्यक्रमो मे दूसरे पक्ष यथा विस्थापित कश्मीरी पंडितो के प्रतिनिधि या अन्य सामाजिक कार्यकर्ता या फ़िर सुरक्षा बलो के प्रतिनिध को भी शामिल कर लेता, जो इस बाजारू ने अक्सर नहीं किया.

रवीश कुमार यह भूल जाता है कि सेना तथा अन्य सुरक्षाबल जो कश्मीर मे तैनात हैंं, वे कश्मीर के सभी नागरिको की सुरक्षा के लिये बराबरी से प्रतिबद्ध हैं, सन २०१४ मे आयी भयंकर बाढ मे सेना के लोगो ने लोगो की जान हिंदू, मुसलमान या आतंकवाद का इतिहास देखकर नही बचाई थी, बल्कि मानवीय आधार पर संविधान की भावना के अनुसार और राष्ट्र की जनता के प्रति उत्तरदायित्व के अनुरूप बचाई थी, किंतु जो धुर्तता में आकंठ लिप्त हो, जो मुस्लिम सांप्रदायिकता का मीडिया मे चेहरा बनकर कार्य करता हो, उसे पत्रकारिता के मूल्यो और विश्वसनीयता से कोई वास्ता कैसे हो सकता है।

साफ़ है कि कि इस पत्रकार के मंसूबे देश को सांप्रदायिक आधार पर बाट्ने वाले है, पत्रकारिता मे कोई प्रभावी संस्था तो है नही जो इस किस्म के पत्रकार को दंडित कर सके या फ़िर उसे टी वी जगत से निकलवा सके, इसलिये इस किस्म के लोग निरंकुश हो जाते हैं और इनकी सप्लाई इस धंधे मे जारी रहती है.

इस तरह की पत्रकारिता को नियंत्रित करना जरुरी हो गया है, सीमा उल्लंघन करने पर इस किस्म के पत्रकारों के लिये उचित दंड की व्यवस्था भी होनी ही चाहिये

===========================================
प्राइम टाइम : क्या मीडिया में ऐसा राष्ट्रवाद दिखना चाहिए?
कभी आपने सोचा है कि न्यूज़ चैनलों पर हर हफ्ते किसी न किसी बहाने ऐसे मुद्दे क्यों लौट आते हैं ?

Copied from
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10212263513446766&id=1346060061

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.

विश्वगुरु_भारत_से_विकासशील_भारत_का_सफर

-- #विश्वगुरु_भारत_से_विकासशील_भारत_का_सफर -- -------------------------------------------------------------------- इतिहास में भारतीय इस्पा...