Friday 3 March 2017

ऋग्वेद के 'गांव' और 'मौञ्जा' तथा भारत राष्ट्र का निर्माण

ऋग्वेद के 'गांव' और 'मौञ्जा' तथा भारत राष्ट्र का निर्माण
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भारत गांवों से मिलकर बनता है, प्रश्न है ये गांव कैसे, कब और किसने बनाये होंगे, JNU के कम पढे लिखे प्राध्यापक कैसे जान पायेंगे गांवो की संस्कृति के बारे मे. भारत के गांव बने है, जब कृषि प्रारंभ हो गयी थी, गायों को पाला जाने लगा था, और वैदिक संस्कृति का विकास होने लगा था,

गंगा और सोन नदी के मध्यवर्ती क्षेत्र में मिलने वाले पुरातात्विक साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि आजमगढ, प्रतापगढ, बनारस, इलाहाबद से लेकर समीपवर्ती मध्यप्रदेश के सीधी क्षेत्र मे ८४०० ईसा पूर्व तक बस्तियां बसने लगी थी और लोग कृषि करने लगे थे, सीधी जो कि घना आदिवासी क्षेत्र है, मे ही देवी पूजा का विश्व में सबसे प्राचीन पुरातात्विक साक्ष्य मिला है उसे भी ७००० ईसा पूर्व से लेकर ८००० ईसा पूर्व के मध्य का पाया गया है.

इसी मातृ देवी की अर्चना ऋग्वेद के वाक सूक्त (१०.१२५) मे की गयी है और तब से ( ७००० ईसा पुर्व - ८००० ईसा पूर्व) आज तक मा के रूप मे देवी पूजा भारत मे चलती रही है, ऋग्वेद मे यही देवी स्वयं को राष्ट्र की शक्ति एवं राष्ट्र भाषा के रूप मे व्यक्त  करती है.

अ॒हं राष्ट्री॑ सं॒गम॑नी॒ वसू॑नां चिकि॒तुषी॑ प्रथ॒मा य॒ज्ञिया॑नाम् ।
तां मा॑ दे॒वा व्य॑दधुः पुरु॒त्रा भूरि॑स्थात्रां॒ भूर्या॑वे॒शय॑न्तीम् ॥ (ऋग्वेद, १०.१२५.३)

भोजपुरी और बिहारी बोलियो मे जो महाप्राण या महाघोष वर्ण है (ट, ठ, ड, ण इत्यादि) , वे ही वेदो मे हैं, जबकि ये वर्ण यूराल पर्वत या तुर्की या सीरिया की भाषाओ मे नही मिलते है , साफ़ है वैदिक संस्कृति के निर्माता, मूलतः भारत के किसान हैं.

जो लोग भारत के दूर दराज के गांवों से आकर दिल्ली में रहते है, वे जानते है गांवों के समूह (cluster) को 'मौञ्जा' कहा जाता है, और यह लोक परंपरा ऋग्वेद के समय से भारत मे चली आ रही है. और इसी ऋग्वेदकालीन शुद्ध भारतीय संस्कृति के बारे मे, जे एन यू के जाहिल ( वितंडा वादी) प्राध्यापक कुछ नही जानते.

पहले गाय और गांव को देखते है, नीचे दिये हुये मंत्र मे ग्रामीण भारत की एक झांकी दी हुई है,

ऋषि वार्ष्टिहव्य का भाव यह है कि जिस तरह गायें ( चारागाह इत्यादि से ) चल कर गांव को प्राप्त करती है (आती है), युद्ध को जाने वाला योद्धा अश्व या घोडे को प्राप्त करता है, बछडे को मन से पिलाने वाली गाय का दूध और पत्नी को उसका प्रिय पति, उसी प्रकार सविता इस विश्व को धारण करते हैं या प्राप्त होते है.

गाव॑ इव॒ ग्रामं॒ यूयु॑धिरि॒वाश्वा॑न्वा॒श्रेव॑ व॒त्सं सु॒मना॒ दुहा॑ना ,
पति॑रिव जा॒याम॒भि नो॒ न्ये॑तु ध॒र्ता दि॒वः स॑वि॒ता वि॒श्ववा॑रः (ऋग्वेद १.१४९.४)

gāva iva grāmaṁ yūyudhir ivāśvān vāśreva vatsaṁ sumanā duhānā,
patir iva jāyām abhi no ny etu dhartā divaḥ savitā viśvavāraḥ

अब 'मौञ्जा' को देखते हैं,

राजकपूर की फ़िल्मो मे परदेशी या फ़िर परदेश से लौटने वाला किसान अक्सर 'मौञ्जा' कहते हुये,अपना पता बताता हुआ पाया जाता है, राजकपूर भले ही न जानते हों कि शब्द का स्त्रोत ऋग्वेद है, लेकिन वे गांव और किसान का संबंध अवश्य ही जानते थे.

ऋग्वेद के समय मे जब फ़ैली हुई 'मूञ्ज' घास गाव की पह्चान बनाती थी तब 'मौञ्जा' शब्द का निर्माण हुआ , जिसे ऋषि 'अगस्त्य मैत्रावरुणि' ने ऋग्वेद के एक के दुसरे मंत्र मे प्रयुक्त किया है.गांव और मौजा भारतीय सभ्यता, संस्कृति की मूल ईकाई है, और जैसा कि हम देखते हैं, ऋग्वेद की संस्कृत के मूल शब्दों से गांव और मौजा इत्यादि निकलते हैं तथा इनसे कोई इतर कोई अन्य शब्द भारत की अपनी आम भाषा या बोलियों मे नही है, तो इससे सिद्ध होता है कि वेदिक संस्कृति के निर्माता इन्ही 'गांव' और 'मौञ्जा' मे बसने वाले हमारे पूर्वज ही थे.

श॒रास॒: कुश॑रासो द॒र्भास॑: सै॒र्या उ॒त, मौ॒ञ्जा अ॒दृष्टा॑ वैरि॒णाः सर्वे॑ सा॒कं न्य॑लिप्सत (ऋग्वेद १.१९१.०३)
śarāsaḥ kuśarāso darbhāsaḥ sairyā uta, mauñjā adṛṣṭā vairiṇāḥ sarve sākaṁ ny alipsata

सीरिया, तुर्की या यूराल पर्वत से आये हुये तथाकथित विदेशी आर्य नही थे, वे यहा के, इसी राष्ट्र की मिट्टी में जन्म लिये हुये भारत की संस्कृति के निर्माता हैं, नही तो ऋग्वेद के गाव और 'मौञ्जा' से मिलकर, आज का भारत न बनता. अफ़्रीका, चीन या फ़िर किसी अलग भाषा एवं संस्कृति के अनुरूप 'गांव' इत्यादि बनते, जैसा है नहीं.

ऋग्वेद के ही एक और मंत्र मे ऋषि 'अगस्त्य मैत्रावरुणि' ने अगली पीढी के विद्वानों को सीख दी गयी है -

"विद्वान वे हैं, जो बहते हुई नदियो के जल और उसके तट, दोनो को सूक्ष्मता से देखते है", अर्थात एकपक्षीय दृष्टि नही रखते हैं.

स वि॒द्वाँ उ॒भयं॑ चष्टे अ॒न्तर्बृह॒स्पति॒स्तर॒ आप॑श्च॒ गृध्र॑: (ऋग्वेद, १.१९०.०२)
sa vidvām̐ ubhayaṁ caṣṭe antar bṛhaspatis tara āpaś ca gṛdhra

स्पष्ट है, राष्ट्र की भावना भी इसी मिट्टी की सुगंध से निकली और चारों तरफ़ से फ़ैली, वैदिक युग मे ही भारत राष्ट्र बन चुका था, वामपंथ न कि राष्ट्रवाद विदेशी विचारधारा है वामपंथ धोखा देकर शोषण करता है, तिब्बत मे चीन जो करता है, वो दुनिया देखती रहती है, लेकिन मुह बंद रखती है

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संघ की रूढिवादिता एवं एवं इसमे शामिल दूसरी पीढी के लोगो की राजनैतिक क्लाबाजी की प्रवृत्ति की वजह से उसके लोगो में राष्ट्र के प्रति समर्पण एवं दायित्वबोध का अभाव है, आज संघ समर्थक लोग हर महत्वपूर्ण संस्थानों मे जमे बैठे है, लेकिन कांग्रेस द्वारा पैदा की गयी समस्याओ को सुलझाने के बजाय वे मौज करने मे लगे हैं, राष्ट्रवाद एवं देशभक्ति का युद्ध आम जनता लड रही है, जिन पर इस लडाई का दायित्व है वे ३५०० करोड उपभोग कर चुके हैं एवं ३ पृष्ठ का लेख तक न लिख सके

साभार https://m.facebook.com/groups/241741922903017?view=permalink&id=249017815508761

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