हथियार बदल गए हैं-भाग 16
उस दिन चुटकुले चल रहे थे।हंसने-हंसाने के माहौल को अचानक एक मासूम बच्चे के चुटकुले ने सन्नाटे में बदल दिया।बच्चे ने क्या सुनाया आप भी सुनिए।
""बन्दर मंदिर के "पत्थर,, पर सूसू कर रहा था बंदरिया ने पूछा क्या कर रहे हो,बन्दर ने कहा "जल, चढ़ा रहा हूँ।
बंदरिया बोली तो लो मैं "प्रसाद, चढ़ा देती हूँ और उसने "पत्थर,पर पाटी कर दी।वह बड़ी मासूमियत से हँसते हुये शिवलिंग को पत्थर कह रही थी।हम सनाका खा गए।तन-बदन में आग लग गई।"बेटा ये किसने सुनाया है?,
शायद मम्मी-पापा का ध्यान भी न जाता,अगर यह कम्यूनल वहाँ न खड़ा होता।
मम्मी-पापा दोनों एक साथ चिल्लाये।मिशनरी स्कूल के किसी "ब्रदर,नामक "जन्तु,ने सुनाया था।बाद मे क्या हुआ,उस पर मत जाइए।हमारे नन्हे मुन्नों को क्या पढाया,सुनाया,बताया,सिखाया जाता है आपने कभी पता किया है?छोटे-छोटे हथियार।नजर रखो नही तो खुद भुगतोगे।
यह विषवमन संस्कार ही "सेकुलरिस्टों की मदर,हैं।वे इसी में से उपजे हैं।इस नव वर्ग को अपने "स्व,की किसी चीज के लिए अपमान नही महसूस होता।जडो से काटने का यह प्रयास पूरी योजना-रचना से किया गया है। यह शिक्षा-पद्दति केवल "भगवान्, ही नही अपनी ठगी-पूर्ण सामी सोच के अलावा माँ,बाप,देश,संस्कृति,जीवन शैली,आचार-विचार,आस्थायें,अपने पूर्वज,पितर,महापुरुष आदि सबकुछ हल्का कर देती है,पूरी तरह कैजुअल,स्वाभिमान नष्ट करने की स्लो प्रक्रिया है!एक धीमा जहर जो "मानसिक विकलांग,समाज तैयार करता है।वह खुद के पूर्वजो की चीजों को गालिया देकर खुद को "सेकुलर,समझ संतुष्टि महसूस करता है।
हिन्दुओ की घटी जनसंख्या को लेकर आपने गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू का बयान देखा होगा।हिन्दुओ की जनसंख्या लगातार घट रही है।1947 मे 91.9 प्रतिशत से यह घटते हुये 79.80 प्रतिशत पर आ गई है।बौद्ध,जैन और सिख-पंथ,मत मे भी यह गिरावट लगातार जारी है 2011 की मतगणना ने सब को आश्चर्य डर मे डाल दिया है।1947 कि संख्या मुस्लिम 8.1 प्रतिशत से बढ़ कर अब 14.23 हो चुके हैं,ईसाई 0.81 प्रतिशत से बढ़कर 2.30 प्रतिशत हो चुके है।1947 की तुलना मे वह लगातार घटता ही जा रहा है।पूर्वोत्तर के सभी प्रदशो,और जनजातियो का बड़ा हिस्सा धर्मांतरित होकर अलगाव की बाते करने लगा है।मिजोरम,नागालैंड मे तो 93 प्रतिशत पार कर गया है।उल्लेखनीय यह है की 1947 के पूर्व वहाँ प्वाइंट मे भी नही थे।अब समस्या यह है कि हमारे पास अपनी रीति-नीति-इतिहास और हजारो पूजा-पद्धतियो की स्वतन्त्रता के साथ रहने के लिए एक मात्र भूमि,हमारे-पूर्वजो की पुण्यभूमि,तीर्थ-भूमि भारत ही बची हुई है।बाकी के समस्त रिलीजन 110 देश 56 प्रतिशत भूमि और मजहब के 83 देशो के पास 32 प्रतिशत जमीन है।हालांकि जनसँख्या में कोई खास अंतर नही।धरती के उपलब्ध संसाधनों के उपयोग का अनुपात भी उन्ही के पास ज्यादा है।यानी आपके पास भागने के लिए कोई जमीन नही है।अब हम कहा जाएँगे।यह स्थिति और नाजुक हो जाती है जब कमोबेश सारी राजनीतिक पार्टीयाँ इसे मुद्दा बनाने से डरती है।
ईसाई मिशनरियों द्वारा एक बहुत बड़े षड्यंत्रके तहत मतान्तरण का प्रयास किया जा रहा है। पिछले कुछ समय से देश के महानगरों में ईसाई मिशनरियोंकी हरकतें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।पिछले साल 2014 मे ईसाई मिशनरियों ने मुंबई में स्थान-स्थान पर पोस्टर और होर्डिंग लगाए हैं। साथ ही महानगर में चलने वाली बसों, रेलवे स्टेशनों, कारों और पार्कों को इसका निशाना बनाया है। मिशनरियों द्वारा उन पोस्टरों में हिन्दुओं को बरगलाया गया है। इन पोस्टरों पर इसाई मिशनरियों ने फिल्म अभिनेता जॉनीलीवर,फिल्म अभिनेत्री नगमा आदिको दिखाया है।साथ ही उन पोस्टरों में एक पुस्तक का भी जिक्र किया गया है। उस पुस्तक में कथानक के माध्यम से बताने का प्रयास किया जा रहा कि कैसे सलीब की शरणमें जाकर उसका भला हो गया है।ऐसे अनेक लोगों के दिग्भ्रमित करने वाले कथानक प्रस्तुत कर ईसाई मिशनरियां मत परिवर्तन के काम में लगी है। पुस्तक में इस प्रकार की 14 कथाएं हैं। इस पुस्तक में प्रकाशक का नाम नहीं दिया गया है केवल पब्लिशर प्रकाशन की अनुमति है, ऐसा उसमें अंकित है।कुछ दिन पहले भगवान बुद्ध को दसावतार माने।अब साई बाबा को साई-राम।अल्लोपनिषद् लिख देते है।ऐसा भी देखने मेन आया है अब ईसा की मूर्ती को चतुर्भुज रूप में दिखा कर विष्णु अवतार कहा जाता है।अब ईशा भगवान 11वे अवतार..? और बाद में अल्ला।12 वे अवतार ?हम डरपोक लोग।अब यह बात केवल पूजा-पद्दतियों की नही रह गयी है।
दोनों ही सेमेटिक(सामी) सभ्यताए है। इस्लाम “जेहाद,, हथियारों और सीधी जंग, से करता है उसे सम्पूर्ण जगत को “दारुले ए इस्लाम, बनाना है।इसाई “क्रूसेड, करता है उसे “सेवा और शिक्षा,, के नाटक से दुनियां को “ईशु की भेड़े,बनाता है।कहीं फिदाइन है जो आत्मघाती बन कर “काफिरो, को जहन्नम भेजते हैं।इनके यहाँ फादर,ब्रदर,सिस्टर,नन्स हैं जो “जीवन दान कर दुनियां,…जो दुसरे “बुतपरस्तो और पापियों,को हेल की आग में भेजने की कोशिश करते हैं।न कर पाए तो ब्रिटिश,अमेरिकी सेनाये “बाद,में बमों और गनो से काम पूरा ही कर देती हैं।इतिहास पलटिये।चर्चेज का “मकड जाल,इतनी “धूर्तता,, से अपना काम “स्थानीय बौद्धिक वर्ग,, में करता है की स्थानीय संस्कृति कब नष्ट हो गयी पता ही नही चलता।लाखो नहीं करोडो हैं।तरीको-कार्यप्रणाली पर नही जाऊंगा।उनके ऊपर अब खुद यूरोप मे इतना लिखा जा चुका है की एक अलमारी कम पड जाएगी। कुछ नाम से हिन्दू भी है लेकिन ईसाई हो गए इन्ही को क्रप्टो-क्रिश्चयन कहा जाता है जैसे दिल्ली मे एक आशीष खेतान।पूँजीवाद और साम्राज्यवाद के लिये माहौल तैयार करना ईसाइयत का प्राथमिक उद्देश्य है।इसके लिए सेवा और शिक्षा की आड़ लेना होता है।इसाई मिशनरी सेवा के पीछे धर्मान्तरण छुपा हुआ है।इस बातों से सब लोग सहमत ही होंगे।इतना दिन काम करते करते ये एक अच्छे फ्रेमवर्क बना चुके है। हम हिन्दुओ को भी एक सिस्टम विकसित करना होगा।आज सारे psu सेवा की नाम से CSR activities के नाम से बहत बड़ी रकम दान करता हे।अमूमन हममे से कई उनके कार्यो से अभिभूत रहते है,उनको लगता है।“ईसाई लोग अपने धर्म और मिशन के प्रति कितना समर्पित हैं।भारत में जंगल पिछङे गांव में मीलो पैदल चलकर अपने मिशन में लगे है।सेवा सहित कुई आसाध्य रोगियों की सेवा करते हैं।तो आप जान लीजिये।कैथलिक,प्रोटेस्तेट आदि मिला कर जितने “पादरी,नन,,आदि दुनिया भर के चर्चेज में पोस्टेड हैं उनके व्यक्तिगत खर्चो का बजट भारत सरकार के “बजट, के लगभग बराबर है।राजसी ठाठ होते हैं।तरह-तरह के मजे भी।
इस हथियार का आविष्कार उन्होंने लगभग 2000 साल पहले ही रोमन साम्राज्य की छाया में कर लिया था।तब से दुनिया भर में इस को मजबूत कर रहे हैं।मध्यकाल में ही यूरोप ने इस हथियार को अच्छी तरह पहचान लिया और वहां संघर्ष हुआ।कैथोलिक-प्रोटेस्टेंट संघर्ष के बारे में सारी दुनिया जानती है।कुछ ज्यादा नहीं कहना है। इस संघर्ष से सारी दुनिया में मिशनरीज के बारे में और स्पष्ट हो गया।लेकिन जल्दी ही इसने संस्थागत रूप में राज्यव्यवस्था से निकल कर के एक नया आर्थिक स्वरुप ग्रहण कर लिया।वह यूरोप के आर्थिक हथियार के रूप में सारी दुनिया में व्याप्त जो गया है।एक तरफ तो रोमन राष्ट्रीयता दिमागी तौर पर प्रदान करता है दूसरी तरफ से सांस्कृतिक आर्थिक कब्जा हो रहा होता है।आज दुनिया के 56 परसेंट भूभाग पर उनका कब्जा है।उनकी प्रचार की रणनीति ऐसे समझ सकते हैं कि 1813 के बाद उन्होंने भारत में सबसे पहले प्रचार,छापेखाने,पुस्तक-पुस्तिकाओं के प्रकाशन और 1818 में सबसे पहला समाचार पत्र दर्पण और भाषाओं में विभिन्न भाषाओं का अनुवाद उन्होंने प्रारंभ किया।उन्होंने कुवः अज्ञात से भारतीय नेताओं ने ई 1823 में सरकार से अनुरोध करवाया कि सरकारी व्यवस्था में केवल अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार पर खर्च किया जाए।पुरानी प्रणाली और संस्कृत-भारतीयता बेस्ड चीजे खत्म कर दी जाए। कुछ ब्राह्मणों ने 1817 में हिंदू कॉलेज की स्थापना की थी।उसका उद्देध्य अंग्रेजी नीति से मिलता था। उन्होंने धीरे धीरे भारत की समाज व्यवस्था में घुसपैठ ही नहीं कर ली भारत की समान में जबरदस्त पकड़ बना ली।सरकार के दम पर उन्होंने समाज की शिक्षा नीति,समाज की अर्थव्यवस्था,समाज की व्यवहारिक रणनीतियों पर पकड़ बना ली उसका परिणाम हम आज भुगत रहे।
निसंदेह ईसाई मिशनरियों के सेवा कार्य के पीछे धर्म परिवर्तन-मतांतरण ही मूल उद्देश्य रहता है…और वो इस कार्य में सफल भी रहती हैं।जिसे हम धर्म परिवर्तन का नाम देते है उसे वे ईसाइयत का प्रचार-प्रसार कहते हैं।इन दोनों शब्दों में बहुत थोडा सा अंतर है लेकिन इनकी भावनात्मक व्याख्या और चिंतन किया जाये तो 0 और 100 का अंतर है।वे इसमें सफल हैं क्यों कि वो देश के कोने कोने और दुरूह-दुर्गम स्थानो-जगहों तक फैले हुये है। 2 साल पूर्व एक मशहूर फ़्रांसीसी पत्रकार ने लिखा है उसमे बताया है कि 2012-13 में विदेश के ईसाई मिशनरियों के लिए 11000 करोड़ रूपया आया था भारत में धर्म परिवर्तन हेतु ।बाहर के पैसो की बात तो छोड़ ही दीजिए अपने देश से इतना पैसा मिलता है इसकी कल्पना हम लोग नहीं कर पाएंगे।बताया जाता है।कालगेट,पामोलिव,हिंदुस्तान लीवर अपने प्राफिट का 30% इसाई मिशनरियों के लिये खर्च करते रहे हैं।करीब 80 बहुराष्ट्रिय कम्पनियो में “”वेटिकन्,, का शेयर है।माफिया,अंडरवर्ल्ड और बहुराष्ट्रीय कम्पनियो के गठजोड़ को गहराई से समझने के लिए हॉलीवुड की मूवी देखिये “”गाड फादर पार्ट-3,।जिन्होंने देखी होगी वो जानते होंगे।वे खुलकर करते और दिखाते हैं।सिनेमा और मिडिया उनके हथियार हैं “सेवा और शिक्षा, की तरह।SAIL,CIL jaise PSU हर साल करोड़ो रुपया दान देते हैं।उनलोगो की एक पैठ बन चुकी हे इसी सैक्टर में टैक्स में छुट मिलती है।उनको देकर कांटेक्ट अपनी फर्जी नाम से बनी कंपनियो को मिल जाता है।जिससे 50 प्रतिशत पैसा वापस आ जाता है और उनका भी कम चल जाता है सब सेटिंग है ।
जैसे मनुष्य का शरीर होता है आत्मा होती है वेसे ही राष्ट्र की भी आत्मा होती है। सामाजिक आर्थिक समस्त परिवर्तन उसी के अनुसार होते है।उस आध्यात्मिक तत्व की अनुभूति महर्षि अरविन्द को हुई। उन्होंने साधना की। भारत माता की।राष्ट्र में एक जागरण उठ खड़ा हुआ लेकिन इसके पीछे उनकी साधना थी।हिमालय में ऋषि-मुनियो की ऐसी ही साधना से देश अखंड रहा और खड़ा हुआ।भारत की आत्मा सनातनी है सम्पूर्ण-समग्र आजादी की हिन्दू जीवन-पद्धति,यह धर्मांतरण वह चाहे इसाई करता हो,या मुस्लिम जैसे ही वह दूसरी जमीन-व्यक्ति-या किताब मे श्रद्धालु होता है,मतांतरित हो जाता है।उसकी आस्था इस भूमि,पुरखो,तीर्थों,जीवन-शैली मे भी खत्म हो जाती है।एक तरह का दुश्मन मे बदल जाता है।वैम्पायर सीरीज वाली हालीवुड फिल्मे तो देखी होंगी न! बिलकुल उसी तरह।किन्तु धीरे-धीरे।हिन्दू-घटा देश बंन्टा।भारत तो छोड़ ही दीजिये पूरी दुनिया की प्राचीन-संस्कृतिया और सभ्यताये मिशनरिया निगल गई।अफ्रीकन कबीले,एशियन पहाड़,गरीब,भोले,भाले,सीदे-सादे,असहाय,अशिक्षितो के हाथ मे पहले बाइबिल-क्रास पकड़ाते है,फिर भड़काते है, और हथियार।प्राकृतिक जीवन जीते लोग जान ही नही पाते कि बाप-दादे-पुरखे किस हीवेन मे है।कुछ ही दिनो मे वे मूल राष्ट्र से अलग देश मांगना शुरू कर देते है।यह है सेवा और शिक्षा का परिणाम।दुनिया का सबसे भयावह हाइड्रोजन-बम पहचान लो जो चुन-चुन कर प्राचीन जीवन के तरीके मिटा कर वेटिकन के प्रति जबाबदेह बना रहा है।लेकिन उनकी सूचनाये,पत्रक,डाकूमेंट्री,फिल्मे आदि रननीतियों पर आधारित है।
भारत के लिए तो वे और खतरनाक है।ईसाई मिशनरियो का उद्देश्य केवल मतान्तरण ही नहीं है वो “ब्रेकिंग इंडिया फ़ोर्स,, है और देश के अंदर सामाजिक संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे है।दलित-विमर्श,क्रिप्टो क्रिश्चन,महिसासुर पुजा प्रकरण,जेएनयू में हिन्दू विरोधी अकादमिक डिबेट,यह सब ईसाईयो की ब्रेकिंग इंडिया साजिश है।कुछ मामलो में कम्युनिष्टो और मुस्लिमो से इनका पैक्ट है और केरल मॉडल है पूरी फंडिंग के पीछे ईसाई सेवा प्रकल्प ही है।पूर्वोत्तर में अलगाव वाद,जम्बू में आतंकवाद,पंजाब में खालिस्तान भी आईएएसआई के पैसे से शुरू हुआ था,साउथ और रेड कोरोडोर में नक्सलवाद,हम जब समस्या आ गयी तब जगे,उनका पूरा एक प्लान है,इसाईयत केवल कोई संप्रदाय या पूजापद्दति नही है।वह एक “साम्राज्यवादी अर्थव्यवस्था,है।एक नितांत सोची-समझी “संगठनात्मक रणनीति है ,जो कुछेक लोगो के “आर्थिक,एवं सत्तात्मक,पकड़ के लिए बनाई गयी है।सेवाकार्य और अन्य सामाजिक एक्टिविटी केवल पकड़ बढाने की योजना है।साउथ अफ्रीका का एक विचारक कहता है “यूरोपियन देशो के पास चार तरह की सेनाये हैं थल सेना,जल सेना,वायु सेना और चर्च,वह सबसे पहले चर्च को भेजते हैं जो उनके लिए शिक्षा एवं सेवा के नाम पर जीत का माहौल तैयार करती है।धीरे-धीरे वह समस्त प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा कर लेते है।आज हमारे हाथ मे क्रास और बाइबिल है उनके हाथ मे हमारा हीरा,खनिज,श्रम और हमारी भूमि,।उनका इतिहास पढ़िये तो समझ सकेंगे जिस भी जमीन-कबीले,या अफ्रीकन देश पर यूरोपीयन देशो को अधिकार करना होता वे पहले मिशनरियों को भेज देते थे,दस बीस साल मे ही उनका कब्जा हो जाता।जब कभी समय मिलेगा तो लियोनाल्डो द कैप्रियों की हालीवुड फिल्म 'ब्लड-डाइमंड,जरूर देखिएगा।सनातनी तो सोचने लायक ही न बचेंगे, 'सब उसी परम चेतना के अन्श हैं,।ध्यान से देखिये किस तरह ज्ञानम्-स्नानम हो रहा है सेवा के नाम पर।
….आप आप के बाप-दादों की चेतना खतरे में है।सैम्युअल टी हंटगटन एक पश्चिमी (अमेरिकी)विचारक रहे हैं।उनका “संस्कृतियों का संघर्ष,सिद्धांत है।ढेर सारे आंकड़े और घटनाओं,विषयों,विचारों के विलय का अध्ययन-विश्लेशण करके उन्होंने साबित किया है।उनका कहना है।“पूरे विश्व में पिछले 500 साल से यह एक संघर्ष चल रहा है।यह संघर्ष सास्कृतिक,धार्मिक आर्थिक,सामाजिक,राजनैतिक,भूगोलिक सभी प्रकार का है।एक दिन हिन्दू इसी में से एक में समा जाएगा।फिर अंत में इस्लाम और इसाइयत संस्कृति बचेगी।फिर उसमे संघर्ष होगा,।यह दुनिया भर में मान्य सिद्धांत है।चाइना को भी उन्होंने संस्कृतिक रूप से मजबूत माना है किन्तु वे भी इसाइयत में समां जायेंगे ऐसा कहा है।दुनियां भर के रहन-सहन,अर्थव्यवस्था,शैक्षिक माहौल,भाषा,जीवन शैली,मनोरंजन,साहित्य और बाजार एक तर्ज-तरह की साजिशी व्यवस्था की तरफ बढ़ रही है जिसकी रचना “इसाईं विचारको,, ने की थी।अंग्रेज़ो ने भारत मे 1835 से 1890 तक एक सुनियोजोत ढांचा इसके लिए तैयार किया था।परवर्ती काङ्ग्रेस शासको -पुष्ट बनाया है। हम एक “यूटोपियन थाट,युग में जी रहे हैं।रहना,खाना,सोना,चलना,बोलना,सोचना सब उनके अनुसार होता जा रहा है।हम “विकास,के जामे में पहनते ही जायेंगे।वैसे ‘गुमान में रहने,के अपने ही फायदे हैं।हम जानते हैं जन्नत की हकीकत लेकिन!ग़ालिब ख्याल अच्छा है”।पाले रहिये।सूट-बूट टाई में आत्मा रह ही कहाँ जाती है।वहां तो “पर्सनलिटी, पैदा हो जाती है। गड़ी रहेगी “डे ऑफ़ जजमेंट,तक।फिर धोती-अंगरखा के प्रति “हिकारत,का भाव खुद ही आ जाता है।आप लाख आँख मूदिये,लाख भागिए,लाख बचने के तर्क खोजिये,सेकुलर बनिए।भारतीय संस्कृति मनुष्यत्व की आत्मा है।उस आत्मा को भी मारने की कोशिश हो रही है।ईसाई विषय भी ऐसे ही फ़ैल रहा है।गरीब और अनपढ़ लाचार और मजबूरी में धर्मपरिवर्तन कर रहे हैं और बुद्धिमान लालच में आकर।
धर्मांतरण के मामले में मैं गांधीजी और डॉक्टर अंबेडकर का प्रशंसक हूं उन्होंने शुरुआती दौर में ही यह समझ लिया था की मिशनरियां भारत के लिए घातक है।गांधी जी तो आजादी के तत्काल बाद इन पर प्रतिबंध लगाने के समर्थक थे।उन्होंनेअपने 'हरिजन, अंकों में 25 सो सीरीज निकाली है कि ईसाई मिशनरियां किस तरह से देश और स्वदेशी नीति के लिए भविष्य में खतरनाक सिध्द होंगी। डॉक्टर अंबेडकर ने भी अपने अनुयायियों को इस 'मत, को मानने से सीधे-सीधे मना किया और उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा इस देश की भूमि से निकला हुआ बौद्ध धर्म स्वीकार करना ही श्रेयस्कर रहेगा।आजादी के बाद नेहरू जी ने और तमाम कांग्रेसी नेताओं ने उनके इस मत को नहीं माना। उन्होंने सेकुलरिज्म के नाम पर इसाई मिशनरियों को भारत में काम करने की अनुमति और सहयोग दोनों दिया।जाने किस मंशा के तहत कांग्रेसी सरकारों ने तो खुलकर के मिशनरियों को सीधे सीधे-सीधे मदद की। 2004 के बाद तो एक तरह से देश में मिशनरियों का ही शासन आ गया।बाकी बात आप खुद समझ लीजिए।उसने इस देश की जड़ों पर जमकर प्रहार किया।परिणाम सामने हैं हम आज तेजी से घट रहे हैं और अलगाववादी समस्याएं तेजी से बढ़ रही है।
केवल धर्म या सम्प्रदाय की बात होती तो दुनिया भर में जितनी संख्या पादरियों,ननो,ब्रदरों, व् सेवको की है उससे 30 गुना साधू,साध्वियाँ,संत,योगी,यति,सन्यासी,जोगड़े,महंत,कथावाचक,प्रवचक केवल बनारस,मथुरा,अयोध्या में ही हैं।अगर सब का आंकड़ा निकाल दे तो दुनियां स्तब्ध रह जाये,मैक्सिमम अविवाहित।उनका “त्याग और समर्पण आध्यात्मिक उन्नति को होता है।…कोई तुलना है क्या???? तपस्या भी जोड़ दीजिये तो यही वास्तविक धर्म रक्षक भी है।किन्तु यह विकेन्द्रित है।दरअसल बात लक्ष्य और सोच की होती है।पादरियों से इन संतो का समर्पण एक करोड़ गुना ज्यादा होता है परमात्मा के प्रति।उन्हें कोई संगठन नही बनाना।वे दुनिया पर कब्जा नही चाहते। हमारे यहाँ धर्म,अध्यात्म नितांत व्यक्तिगत अवधारणा है न की “साम्राज्यवादी राजनीतिक सम्प्रदाय जिसमे आर्थिक योजनायें भी निहित हो।हमारे साधु किसी रणनीती का हिस्सा न होकर व्यक्तिगत रूप से आध्यात्म को समर्पित चेतना हैं।हिमालय में ऋषि-मुनियो की ऐसी ही साधना से देश अखंड रहा और खड़ा हुआ।अब उनही संतो के आगे आने की जरुरत है।आंदोलन उसी साधना से खड़ा हो सकता है।ISCON,रा.स्व .संघ और वनवासी कल्याण आश्रम अकेले ही हर मिशनरी का मुकाबला क्यों करे ?यह हम सब का सामूहिक कर्तव्य है।इतना सारा,आश्रम,गुरु,वक्ता,मठ,मंदिर,दान-दक्षिणा सब कहा चला जाता है?सरकार द्वारा अधिकारित मंदिरो का पैसा ही हिन्दू-समाज के दलित-पुनरुद्धार कार्य मे ही क्यो नही लगा दिया जाता?आखिर वह धर्म का पैसा है धर्म के काम आना चाहिए कुछ न हो तो केवल साउथ के मंदिरो का ही पैसा लगा दे।शिरणी-साई मंदिर का पैसा जब्ड्त करके दलित-हरिजन पुनुरुत्थान के काम मे लगाओ जिससे धर्मांतरण मतान्तरण रुक सके।सभी लोग संज्ञान लेने की कृपा करे।हमें इससे सीखना चाहिए।एक व्यवहारिक बात यह भी है भारत-विशेषज्ञ पत्रकार का कहना है “सेवा कार्य को प्रोफेशनली चलाने की जरूरत है। इससे हमारे लोगो को अपने लिए स्थाई और लाभदायक कार्य मिल सकता है। बस एक अच्छे से रूपरेखा देने की आवश्यकता है।लाखो लोगो को रोजगार मिलेगा,,।हम हिंदुत्व के प्रचार प्रसार की क्या बात करें हम इसे बचाये रख पाएं वही बड़ी उपलब्धि होगी।यहाँ मेरा मतलब है अपने बाप,दादो,पुरखों का नाम और उनकी जीवन-पद्धति बस।प्रचार का तात्पर्य केवल प्रमोशन ही नहीं है…और प्रचार को बैशाखी कहना ठीक नहीं है”।प्रचार प्रसार “को सकारात्मक रूप में लेना चाहिए।इसका तात्पर्य धर्म की अच्छाइयों और खूबियों को भी बताना है।
…और कर्म हीरा कहलाता है,हमे कर्मो का फल भोगना ही होता है।यह केवल सनातन व्यवस्था का मान्य सिद्धांत है।हथियार पहचानिए, यही आपका आपका मुख्य कर्म-और धर्म है।किसी मार्ग का अनुसरण कर लेने मात्र से कोई हीवेन या जन्नत नही जाता।कोई गडरिया नही कोई भेड़ नही,कोई पापी नही।राष्ट्रात्मा पुकार रही है।
(आगे पढ़िये भाग-17)
साभार https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10154930728031768&id=705621767
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