हम शांति से गली में निकल रहे थे, तभी कुछ गंडक - कूकरे भोकने लगे। काटने दोड़ने लगे।
स्वाभाविक प्रतिक्रिया में हमने भाटा उठा लिया और गंडक की कनपटी पे दे मारा और गली में 'प्योई प्योई प्योई' हो गई।
फिर क्या था आसपास की सभी गलियों के गंडक इकट्ठे हो गए और 'भों भों' करना शुरू कर दिया कि हम असहिष्णु हो गये हैं !!
हमने कहा तुम भोकोगे- काटोगे तो हम भाटा मारेंगे !! इसमें असहिष्णुता की क्या बात है.??? वो कहने लगे भोकना - काटना उनकी आज़ादी है.!!
"आज़ादी" शब्द सुनते ही गली के कई बुद्धिजीवी उनके पक्ष में उतर आये और बहस करने लगे.!! इसके बाद नारेबाजी शुरू हो गई.,
"कितने कुत्ते मारोगे हर घर से कुत्ता निकलेगा".??
बुद्धिजीवियों ने अख़बार में तपते तर्कों के साथ बड़े-बड़े लेख लिखना शुरू कर दिया.!!
उनका कहना था कि कुत्ते भोंक रहे थे लेकिन काट रहे थे ये कहाँ सिद्ध हुआ है.??
और अगर काट भी रहे थे तो भी ये गलत तो हो सकता है लेकिन 'देहद्रोह' की श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि ये "कुत्ते " बहुत ही प्रगतिशील रहे हैं., किसी पर भी भोंक जाना इनका 'सरोकार' रहा है.!!
हमने कहा हम काटने नहीं देंगे बस.!!! तो कहने लगे ये "एक्सट्रीम देहप्रेम शरीर प्रेम" है.! तुम कट्टरपंथी हो, डिबेट से भाग रहे हो.!!
हमने कहा
"तुम्हारा उदारवाद गंडक को काट खाने की इज़ाज़त नहीं दे सकता.!!"
इस पर उनका तर्क़ था कि
"भले ही यह गलत हो लेकिन फिर भी थोड़ा काट खाने से तुम्हारी मौत तो नहीं हो जाती, लेकिन तुमने मासूम कुत्तो की टाट फोड़ दी.!! "फेयर ट्रायल" का मौका भी नहीं दिया.!!"
इतने में ही कुछ राजनेता भी आ गए और वो उन कुत्तो को अपने गली का बेटा बताने लगे.!!
हालात से हैरान और परेशान होकर हमने कहा कि "लेकिन ऐसे ही कुत्तो के काट खाने से रेबीज हो जाता है, और तुरंत न सही बाद में बीमार और कमज़ोर होकर मौत हो जाती है.!!"
इस पर वो कहने लगे कि
"तुम्हारे पास तर्क़ नहीं हैं इसलिए तुम भविष्य की कल्पनाओं के आधार पर अपने 'फासीवादी' फैसले को ठीक ठहरा रहे हो..!!"
हमने कहा
"ये साइंटिफिक तथ्य है कि बेइलाज आवारा कुत्तो के काटने से रेबीज होता है., मुझे इससे पहले अतीत में भी ये झेलना पड़ा है.!!"
साइंटिफिक शब्द उन्हें समझ नहीं आया.!!
तथ्य के जवाब में वो कहने लगे कि
"मैं इतिहास को कुत्ते समाज के प्रति अपनी घृणा का बहाना बना रहा हूँ., जबकि मुझे वर्तमान में जीना चाहिए..!!"
इतने हंगामें के बाद उन्होंने मेरे ही सर माहौल बिगाड़ने का आरोप भी मढ़ दिया.!!
अब हमारे ख़िलाफ़ हमारे ही मकान में घुसकर कुत्ते भोंकने लगे कि "लेके रहेंगे आज़ादी".!!
मैं बहस और विवाद में पड़कर ज्यादा परेशान हो गया था., उससे ज़्यादा जितना कि भोके और काटे जाने पर हुआ था.!!
आख़िरकार मुझे तुलसी बाबा याद आये:
"सठ सन विनय कुटिल सन प्रीती...।"
और फिर मैंने बांस वाला लठ उठाया और कचरा खाने से लेकर ढाबो तक , गली से लेकर मोहल्लो तक उनके हर सॉफिस्टिकेटेड और सीक्रेट ठिकाने पर दे मारा.!!
एक बार तेजी से गली में 'प्योई प्योई ' हुई और फिर सब शांत.!!
उसके बाद से न कोई बहस न कोई विवाद., न कोई आज़ादी न कोई बर्बादी., न कोई क्रांति न कोई सरोकार.!!
अब सब कुछ ठीक है.!! यही दुनिया की रीत है.!!
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