Monday 24 July 2017

प्रशासनिक सेवा परीक्षा में भारत के इतिहासबोध की गला घोंटकर हत्या का कुचक्र

प्रशासनिक सेवा परीक्षा में भारत के इतिहासबोध की गला घोंटकर हत्या का कुचक्र
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कुछ समय पहले मैंने RAS (प्रशासनिक सेवा) की तैयारी के लिए एक कोचिंग में सम्पर्क किया था। कल परसों उनका कॉल कि हमारा नया बैच स्टार्ट हो रहा है तो आप उसमें दो दिन ट्रायल क्लास ले सकते हैं। एडमिशन तो मुझे अभी लेना नहीं था पर मैंने सोचा ट्रायल क्लास लेने में क्या हर्ज है। तो आज मैं ट्रायल क्लास में गया था। वहाँ पर जो जो पढ़ाया गया वह बिंदुवार आपको बता रहा हूँ, जिससे मेरा दिल दहल गया और अभी तक उससे उबर नहीं पाया हूँ।

● महाराणा प्रताप वीर थे पर देशभक्त नहीं थे। वे क्षेत्रभक्त थे, उनकी लड़ाई भारत के लिए नहीं थी केवल अपने क्षेत्र के लिए थी। जबकि अक़बर सारे भारत का बादशाह था जिसने उदारता की मिसाल पेश करते हुए सभी तबकों को प्रशासन में स्थान दिया और मानसिंह को सात हजार की सबसे बड़ी मनसबदारी दी।

● सभी राजपूत राजा स्वयं अकबर के अधीन हुए थे, अकबर की कोई जोर जबरदस्ती नहीं थी। राजपूत राजाओं ने अपनी बेटियों के विवाह सम्बन्ध स्वेच्छा से अकबर से किए थे। महाराणा प्रताप केवल अपने निहित क्षेत्रीय स्वार्थों के लिए अकबर से लड़े थे।

● सोच की व्यापकता, विचारों का खुलापन और भारत के हित को देखते हुए अकबर ही महान थे, महाराणा प्रताप केवल एक वीर थे।

● यही निहित स्वार्थ शिवाजी आदि मराठों के थे जिस कारण वे मुगलों से लड़े। शिवाजी केवल मुगलों के दुश्मन नहीं थे, बहुत बड़े लुटेरे भी थे। बिना भेदभाव के हिन्दू मुस्लिम सभी को उन्होंने लूटा था।

● 1857 का विद्रोह भी इन अर्थों में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन नहीं था। वह केवल राजाओं के निहित स्वार्थों के लिए युद्ध था। रानी लक्ष्मीबाई की लड़ाई भारत के लिए नहीं केवल झांसी के लिए थी, वे कहती थीं मुझे झांसी चाहिए। यदि झांसी मिल गयी होती तो वे कभी युद्ध नहीं करती। इसी तरह मुगलों ने केवल पेंशन पाने के लिए उस युद्ध में भाग लिया।

● लॉर्ड डलहौजी ने रेल-तार-डाक की भारत में नींव डाली। अपने स्वार्थों के लिए पर वे भारत के लिए बहुत अच्छी साबित हुईं। जैसे अब राष्ट्रवादी ट्रेनों से आवागमन करने लगे। जातिवाद पर भी इससे प्रहार हुआ क्योंकि ब्राह्मण शूद्र सबको अब एक ही डिब्बे में पास पास बैठना पड़ा, जिससे वे पहली बार 'टच' हुए। मन मसोसकर भी ब्राह्मणों को शूद्रों से टच करना पड़ा।

● सन 750 से 1757 तक मध्यकाल था जिसमें सामंतवादी शासन रहा। राजा द्वारा अनुदानित भूमि मुख्यतया ब्राह्मणों को दी जाती थी जो फिर जनता का शोषण करते थे।

● 712 में अरब के व्यापारियों को भारतीयों ने लूटा, वे अरबी व्यापारियों बगदाद के खलीफ़ा हल्लाज के पास शिकायत लेकर गए। हल्लाज ने सेनापति मुहम्मद बिन कासिम को सिंधुप्रांत के तत्कालीन ब्राह्मण राजा दाहिर से बात करने भेजा। कासिम ने उन लूटने वाले भारतीयों को दण्ड देने की/सौंपने की मांग की जिसे दाहिर ने ठुकरा दिया, इसपर कासिम और दाहिर में युद्ध हुआ और दाहिर परास्त हुआ। उनकी पत्नी रानबाई ने भारत का पहला जौहर किया। कासिम दाहिर की बेटियों को बंदी बनाकर खलीफा हल्लाज के पास ले गया जहाँ बेटियों ने अपना दुखड़ा रोया तो खलीफा ने कासिम को दोषी ठहराकर मृत्युदण्ड दे दिया।

● अरब के पीछे कोई भी विस्तारवादी, लूट, या धर्म सम्बन्धी कारण नहीं था, दाहिर के गलत व्यवहार के कारण युद्ध हुआ।

● दाहिर के मरने से देश को फायदा ही हुआ, क्योंकि अरब और भारत में ज्ञान का आदान प्रदान हुआ। अरब से भारतीयों ने समुद्री हवाओं और भूगोल का ज्ञान लिया जबकि अरबियों ने अंकगणित हमसे सीखा।

● कासिम जब भारत आया तो देखा यहाँ तो बहुत ही घमण्डी और बुद्धिविलासी लोग हैं जो अपने आपको ही सबसे बड़ा समझते हैं। कासिम ने भारतीयों को दुनिया का सबसे बड़ा कूपमण्डूक कहा जो कि आज भी सच है।

● यह इतिहास अरबी ग्रन्थ 'चचनामा' में मिलता है। भारतीयों ने तो अपने इतिहास को लिखा ही नहीं, कोई वंशानुक्रम तक संजोया ही नहीं। हमें जो इतिहास पता चलता है वह अरबी ग्रन्थों से। बाद में उनके प्रभाव में हमने इतिहास लिखने की सोची, कल्हण ने रजतरंगिणी लिखा। हम तो शकुंतला के सौंदर्य ग्रन्थ लिखने में ही मशगूल थे।

● पहली सती गुप्तकाल में हुई। उस काल में स्त्री को भी ब्राह्मणों द्वारा प्रोपर्टी ठहरा दिया गया जिसके अनुसार मरने के बाद चिता में जलाकर उसे भी साथ ले जाएं।

● मनु ने ऊल जलूल नियम बनाकर देश में जातिवाद फैलाया। देश को तरह तरह के नरकों आदि पाखण्ड में घसीटा। महर्षि मनु के ऊपर कुछ और भद्दी बातें।

● अरबियों ने ही बाद में हमें हिन्दू नाम दिया। सिंधु से हिन्दू बना। हमारा तो नाम तक विदेशियों के दिया है (ठहाके)। उससे पहले यह कोई धर्म नहीं था, इसका नाम नहीं था, इसे ब्राह्मण धर्म कहा जाता था।

● जातिवाद इतना ज्यादा था कि केवल क्षत्रिय को लड़ने का अधिकार दिया। समाज को पूरी तरह विघटित कर दिया। और मूर्ख भारतीय राजा आपस में ही लड़ते रहे। इसलिए बाहर के आक्रमणों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया। यहाँ तक कि विजयादशमी के अगले दिन युद्ध करना अनिवार्य कर रखा था केवल अपनी झूठी शान के लिए।

● जातिवाद ऐसा था कि क्षत्रिय रण में पानी के बिना प्यासा मरता हो और पास में शूद्र मटका लिए खड़ा हो तो पानी नहीं पीता था। मरना मंजूर था पर जातिवाद छोड़ना नहीं।
पहली ही क्लास में छात्रों में इस तरह कूट कूट कर हीनभावना, भारतीय होने का अपराधबोध, ब्राह्मणविरोध और हिन्दू विरोध भरा गया। आगे क्या क्या पढ़ाते(?) होंगे। मेरे दिमाग में बस यही आ रहा है कि कलियुग है! और कोई विचार नहीं बन पा रहे हैं, दिमाग में सन्नाटा पसरा है। इन सब बातों पर क्लास में जो जोर के ठहाके लगे वो मेरा दिल भेद रहे हैं। एक एक बात नासूर की तरह चुभ रही है। भारत किस दिशा में चल रहा है, किस दिशा में जा रहा है, बेहद संदिग्ध है। बस यह समझ आ रहा है, कि हम गलत रास्ते पर आ गए हैं, बहुत आगे आ गए हैं।

Courtesy: Mudit Mittal, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1380496842045459&id=100002554680089

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