Monday, 7 August 2017

हुमायूँ_को_भेजी_राखी_का_सत्य

#हुमायूँ_को_भेजी_राखी_का_सत्य

आज रक्षाबंधन है और सेक्यूलर झूम झूमकर एक कहानी सुनाते मिल जायेंगे

और उस कहानी की बीन पर कुछ बेवकूफ किस्म के कूल ड्यूड - ड्यूडनियाँ  , #सिन्हा  टाइप के कुछ #स्त्रैण  और  #भू टाइप के ठरकी नाक सुड़कते और टसुए बहाते मिल जायेंगे -
एक कहानी के साथ और वो कहानी  कुछ यूं सुनाते हैं -

" इतिहास में एक अध्याय कर्मावती व हुमायूं के बीच प्रगाढ़ रिश्ते और राखी की लाज से जुड़ा है। कर्मावती ने हुमायूं को पत्र भेज कर सहायता मांगी थी। बादशाह हुमायूं ने राखी की लाज निभाते हुए अपनी राजपूत बहन कर्मावती की मदद की थी। अतः रक्षाबंधन हमारे लिए विजय कामना का भी पर्व है।

हमें कर्मावती और हुमायूं की वह ऐतिहासिक घटना सदैव याद रखनी चाहिए कि पवित्र रिश्ते मजहब के फ़र्क़ के बावजूद भी बनाए जा सकते हैं।पवित्र रिश्तों का सम्मान करना हम सभी का नैतिक कर्तव्य भी है। "

क्या तनिक भी शर्म आती है इन इतिहासकारों और तथाकथित सेक्यूलरों व मानवतावादियों को इतना बड़ा झूठ बोलते हुए ?

नहीं ना ??

क्योंकि तुम्हारा आत्मसम्मान तो कभी का मर चुका है ।

क्योंकि झूठ ही इनका जीवन बन चुका है और ये लोग घोर अंधकार के प्रतीक हैं ।

इन जैसे लोगों के सामने सत्य का दिया जलाना ही हम सबकी जिम्मेदारी है ।

तो सत्य क्या है ?

सत्य यह है ---
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सन 1535

चित्तौड़ , भारत की जिजीविषा का प्रतीक

खानवा के राष्ट्रीय संग्राम में हिंदुओं की दुर्भाग्यपूर्ण पराजय और राणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ दुर्भाग्यपूर्ण आंतरिक सत्ता संघर्ष में फंस गया जिसके चलते अगले राणा रतनसिंह की हत्या उनकी महत्वाकांक्षी विमाता रानी कर्मावती /कर्णावती के भाई सूर्यमल्ल के हाथों 1530 में हुई ।

कर्मावती ने अपने निहायत अयोग्य पुत्र विक्रमादित्य को सिंहासन पर बिठा दिया परंतु अधिकांश सरदार नाराज हो गये जिसका फ़ायदा उठाकर मांडू के सुल्तान बहादुरशाह खिलजी ने राणा सांगा व राणा रतनसिंह के हाथों मिली पराजयों का बदला लेने के लिये चित्तौड़ पर हमला कर दिया ।

सरदारों की बेरुखी से  घबराई  रानी कर्मावती ने चित्तौड़ की परंपरा पर कालिख पोतते हुए मेवाड़ और हिंदुओं के घोषित शत्रु विदेशी आक्रांता हुमायूं को #राखी भेजकर मदद मांगी ।

भारत में पैठ बनाने और भारत की स्वतंत्रता के प्रतीक राजपूताने की राजनीति का हिस्सा बनने को आतुर हुमायूं बंगाल मुहिम छोड़कर चित्तोड़ की ओर दौड़ा परंतु ग्वालियर तक पहुंचा था कि उसे बहादुरशाह का भी पत्र मिल जिसमें उसने कुरान के हवाले से याद दिलाया गया कि वह #काफिरों के विरुद्ध  #जेहाद कर रहे #गाजी पर हमला कर कुरान और इसलाम के विरुद्ध ना जाये वरना कयामत के रोज अल्लाह मिंयाँ और मुहम्मद को क्या मुंह दिखायेगा ।

परिणाम : हुमायूं के भीतर का #सच्चा मुसलमान जाग गया और वह राजनीति व  इंसानी रिश्तों  पर भारी पड़ा ।
कर्मावती को अन्य रानियों की धिक्कार के साथ जौहर करना पड़ा ।

सबक : 1-- एक #सच्चा #मुसलमान पहले एक एक मुसलमान है और उसके बाद वो कुछ नहीं है ।

2-- एक #सच्चे #मुसलमान के लिये एक हिंदू #काफ़िर है और उसके बाद कुछ भी नहीं ।

3-- एक मुस्लिम का दुश्मन मुसलमान हो तो वह उंसके लिये #दीनी #भाईजान पहले है दुश्मन बाद में भले ही वह उसकी #हिंदू #बहन के साथ बलात्कार करने की कोशिश कर रहा हो क्योंकि निगाह तो उसकी भी वहीं लगी होती है ।

स्त्रोत : " मध्यकालीन भारत का इतिहास " - #डॉ #आशीर्वादीलाल  #श्रीवास्तव
समीर भाई की कलम से।।
Courtesy: Jetendra Pal https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=122166428417984&id=100018738811367

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