#ब्राम्हण - #गतांक_से_आगे --
ब्राम्हण जन्म से श्रेष्ठ या कर्म से ये सवाल जब भी करो एक बहस शुरू हो जाती है , मैं हमेसा कर्म को प्रधान मानता हूँ जन्म को नही आप मे से कुछ लोग जन्म को वरीयता देते है लेकिन कल का मेरा सवाल की आपका एकादश परिचय क्या है बहोत से जन्म प्रधान को वरीयता देने वालो को अनुत्तरित कर गया , यदि आप जन्म को वरीयता देते है तो आपको खुद के जन्म कुल का पूरा भान होना चाहिए यदि नही है तो आप खुद को श्रेष्ठ जन्म के आधार पर बोलना बन्द कीजिये ।।
गोत्र , प्रवर और वेद इसके बारे मे आपको कल बताया था बाकी अन्य के बारे में आइये देखते है --
#उपवेद --
प्रत्येक वेद से सम्बद्ध ब्राम्हण को विशिष्ट उपवेद का भी ज्ञान होना चाहिये । वेदों की सहायता के लिए कलाकौशल का प्रचार कर संसार की सामाजिक उन्नति का मार्ग बतलाने वाले शास्त्र का नाम उपवेद है।उपवेद उन सब विद्याओं को कहा जाता है, जो वेद के ही अन्तर्गत हों। यह वेद के ही आश्रित तथा वेदों से ही निकले होते हैं। जैसे-
#धनुर्वेद - विश्वामित्र ने इसे यजुर्वेद से निकला था।
#गन्धर्ववेद - भरतमुनि ने इसे सामवेद से निकाला था।
#आयुर्वेद - धन्वंतरि ने इसे ऋग्वेद से इसे निकाला था।
#स्थापत्य - विश्वकर्मा ने अथर्ववेद से इसे निकला था।
हर गोत्र का अलग अलग उपवेद होता है
#शाखा --
वेदो के विस्तार के साथ ऋषियों ने प्रत्येक एक गोत्र के लिए एक वेद के अध्ययन की परंपरा डाली है , कालान्तर में जब एक व्यक्ति उसके गोत्र के लिए निर्धारित वेद पढने में असमर्थ हो जाता था तो ऋषियों ने वैदिक परम्परा को जीवित रखने के लिए शाखाओं का निर्माण किया। इस प्रकार से प्रत्येक गोत्र के लिए अपने वेद की उस शाखा का पूर्ण अध्ययन करना आवश्यक कर दिया। इस प्रकार से उन्होने जिसका अध्ययन किया, वह उस वेद की शाखा के नाम से पहचाना गया।
प्रत्येक वेद में कई शाखायें होती हैं। जैसे --
#ऋग्वेद की 21 शाखा (प्रयोग में 5 शाकल, वाष्कल,आश्वलायन, शांखायन और माण्डूकायन) ,
#यजुर्वेद की 101 शाखा( प्रयोग में 5काठक,
कपिष्ठल,मैत्रियाणी,तैतीरीय,वाजसनेय)
#सामवेद की 1000 शाखा( सभी गायन , मन्त्र यांत्रिक प्रचलित विधान)
#अथर्ववेद की 9 शाखा (पैपल, दान्त, प्रदान्त, स्नात, सौल, ब्रह्मदाबल, शौनक, देवदर्शत और चरणविद्या)
है।
इस प्रकार चारों वेदों की 1131 शाखा होती है। प्रत्येक वेद की अथवा अपने ही वेद की समस्त शाखाओं को अल्पायु मानव नहीं पढ़ सकता, इसलिए महर्षियों ने 1 शाखा अवश्य पढ़ने का पूर्व में नियम बनाया था और अपने गौत्र में उत्पन्न होने वालों को आज्ञा दी कि वे अपने वेद की अमूक शाखा को अवश्य पढ़ा करें, इसलिए जिस गौत्र वालों को जिस शाखा के पढ़ने का आदेश दिया, उस गौत्र की वही शाखा हो गई। जैसे पराशर गौत्र का शुक्ल यजुर्वेद है और यजुर्वेद की 101 शाखा है। वेद की इन सब शाखाओं को कोई भी व्यक्ति नहीं पढ़ सकता, इसलिए उसकी एक शाखा (माध्यन्दिनी) को प्रत्येक व्यक्ति 1-2 साल में पढ़ कर अपने ब्राम्हण होने का कर्तव्य पूर्ण कर सकता है ।।
#सूत्र --
व्यक्ति शाखा के अध्ययन में असमर्थ न हो , अतः उस गोत्र के परवर्ती ऋषियों ने उन शाखाओं को सूत्र रूप में विभाजित किया है, जिसके माध्यम से उस शाखा में प्रवाहमान ज्ञान व संस्कृति को कोई क्षति न हो और कुल के लोग संस्कारी हों !
वेदानुकूल स्मृतियों में ब्राह्मणों के कर्मो का वर्णन किया है, उन कर्मो की विधि बतलाने वाले ग्रन्थ ऋषियों ने सूत्र रूप में लिखे हैं और वे ग्रन्थ भिन्न-भिन्न गौत्रों के लिए निर्धारित वेदों के भिन्न-भिन्न सूत्र ग्रन्थ हैं।
ऋषियों की शिक्षाओं को सूत्र कहा जाता है। प्रत्येक वेद का अपना सूत्र है। सामाजिक, नैतिक तथा शास्त्रानुकूल नियमों वाले सूत्रों को धर्म सूत्र कहते हैं, आनुष्ठानिक वालों को श्रौत सूत्र तथा घरेलू विधिशास्त्रों की व्याख्या करने वालों को गॄह् सूत्र कहा जाता है। सूत्र सामान्यतः पद्य या मिश्रित गद्य-पद्य में लिखे हुए हैं।
#छन्द -
प्रत्येक ब्राह्मण का अपना परम्परासम्मत छन्द होता है जिसका ज्ञान हर ब्राम्हण को होना चाहिए ।
छंद वेदों के मंत्रों में प्रयुक्त कवित्त मापों को कहा जाता है। श्लोकों में मात्राओं की संख्या और उनके लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों के समूहों को छंद कहते हैं - वेदों में कम से कम 15 प्रकार के छंद प्रयुक्त हुए हैं, और हर गोत्र का एक परम्परागत छंद है ।
अत्यष्टि (ऋग्वेद 9.111.9)
अतिजगती(ऋग्वेद 5.87.1)
अतिशक्वरी
अनुष्टुप
अष्टि
उष्णिक्
एकपदा विराट (दशाक्षरा भी कहते हैं)
गायत्री(प्रसिद्ध गायत्री मंत्र)
जगती
त्रिषटुप
द्विपदा विराट
धृति
पंक्ति
प्रगाथ
प्रस्तार पंक्ति
बृहती
महाबृहती
विराट
शक्वरी
#विशेष -- वेद प्राचीन ज्ञान विज्ञान से युक्त ग्रन्थ है जिन्हें अपौरुषेय (किसी मानव/देवता ने नहीं लिखे) तथा अनादि माना जाता हैं, बल्कि अनादि सत्य का प्राकट्य है जिनकी वैधता शाश्वत है। वेदों को श्रुति माना जाता है (श्रवण हेतु, जो मौखिक परंपरा का द्योतक है) लिखे हुए में मिलावट की जा सकती है लेकिन जो कंठस्थ है उसमें कोई कैसे मिलावट कर सकता है इसलिए ब्राम्हणो ने वेदों को श्रुति के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया जो ज्ञान शदियों से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होता रहा , हर ब्राम्हण अपने बच्चों को ये जिम्मेदारी देता था कि वो अपने पूर्वजों की इस धरोहर का इस ज्ञान का वाहक बने और समाज और आने वाली पीढ़ी को ये ज्ञान दे लेकिन हम इस पश्चिमीकरण के दौड़ में इस कदर अंधे हुए की हम अपनी जिम्मेदारियों को विस्मृत कर बैठे , वेदों में वो सब कुछ है जो आज भी विज्ञान के लिए आश्चर्य का विषय है जरूरत है तो बस उन कंधों की जो इस जिम्मेदारी का भार उठा सके ।।
#शेष_क्रमशः
साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=341647756301636&id=100013692425716
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