#ब्राम्हण -- #शेष_भाग
संयम, संतोष, ज्ञान और करुणा की जीवन-साधना के द्वारा कोई भी मानव-मानवी व्यापक अर्थों वाला गुणवाचक ब्राह्मण बन सकता है।।
#चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता की थी एक अखण्ड भारत की स्थापना करने में। भारत का सम्राट बनने के बाद, चन्द्रगुप्त ,चाणक्य के चरणों में गिर गया और उसने उसे अपना राजगुरु बनकर महलों की सुविधाएँ भोगते हुए, अपने पास बने रहने को कहा। चाणक्य का उत्तर था: ‘मैं तो ब्राह्मण हूँ, मेरा कर्म है शिष्यों को शिक्षा देना और भिक्षा से जीवनयापन करना , ये होता है ब्राम्हण ।।
‘मन की निर्मलता, आत्मसंयम, तप यानी कठिन परिस्थितियों को स्वीकारते हुए जीना, आचरण और विचार की शुद्धता, धैर्य या सहनशीलता, सरलता, निष्कपटता या ईमानदारी, ज्ञान-विज्ञान और जीवन-धर्म में श्रद्धा ये सब ‘ब्राह्मण’ होने की शर्तें या पहचान हैं’ (गीता, 18/42)।।
पिछली 2 पोस्ट में आप सभी को ब्राम्हण एकादश परिचय में गोत्र, प्रवर, वेद, उपवेद, शाखा, सूत्र और छन्द के विषय मे हरसंभव विस्तार से जानकारी देने की पूरी कोशिश की शेष की जानकारी निम्न दे रहा हूँ ।।
#शिखा --
अपनी कुल परम्परा के अनुरूप शिखा को दक्षिणावर्त अथवा वामावार्त्त रूप से बांधने की परम्परा शिखा कहलाती है ।शिखा में जो ग्रंथि देता वह बाईं तरफ घुमा कर और कोई दाहिनी तरफ। प्राय: यही नियम था कि सामवेदियों की बाईं शिखा और यजुर्वेदियों की दाहिनी शिखा कही कही इसमे भी भेद मिलता है ।।
परम्परागत रूप से हर ब्राम्हण को शिखा धारण करनी चाहिए ( इसका अपना वैज्ञानिक लाभ है) लेकिन आज कल इसे धारण करने वाले को सिर्फ कर्मकांडी ही माना जाता है ना तो अमूमन किसी को इसका लाभ पता है ना कोई रखना चाहता है ।।
#पाद -
अपने-अपने गोत्रानुसार लोग अपना पाद प्रक्षालन करते हैं । ये भी अपनी एक पहचान बनाने के लिए ही, बनाया गया एक नियम है । अपने -अपने गोत्र के अनुसार ब्राह्मण लोग पहले अपना बायाँ पैर धोते, तो किसी गोत्र के लोग पहले अपना दायाँ पैर धोते, इसे ही पाद कहते हैं ।सामवेदियों का बायाँ पाद और इसी प्रकार यजुर्वेदियों की दाहिना पाद माना जाता है ।।
#देवता -
प्रत्येक वेद या शाखा का पठन, पाठन करने वाले किसी विशेष देव की आराधना करते है वही उनका कुल देवता (गणेश , विष्णु, शिव , दुर्गा ,सूर्य इत्यादि पञ्च देवों में से कोई एक) उनके आराध्य देव है । इसी प्रकार कुल के भी संरक्षक देवता या कुलदेवी होती हें । इनका ज्ञान कुल के वयोवृद्ध अग्रजों (माता-पिता आदि ) के द्वारा अगली पीड़ी को दिया जाता है । एक कुलीन ब्राह्मण को अपने तीनों प्रकार के देवताओं का बोध तो अवश्य ही होना चाहिए -
(1) इष्ट देवता अथवा इष्ट देवी ।
(2) कुल देवता अथवा कुल देवी ।
(2) ग्राम देवता अथवा ग्राम देवी ।
#द्वार -
यज्ञ मण्डप में अध्वर्यु (यज्ञकर्त्ता ) जिस दिशा अथवा द्वार से प्रवेश करता है अथवा जिस दिशा में बैठता है, वही उस गोत्र वालों की द्वार होता है।
यज्ञ मंडप तैयार करने की कुल 39 विधाएं है और हर गोत्र के ब्राम्हण के प्रवेश के लिए अलग द्वार होता है
#विशेष - पिछली 2 पोस्ट और आज की पोस्ट मिलाकर ब्राम्हण का पूर्ण एकादश परिचय बनाती है जो हर ब्राम्हण को जानकारी रखनी चाहिए ही चाहिए ।।
हर सनातनी के जेनेटिक मेटेरियल बहोत खास है क्योंकि पीढ़ी दर पीढ़ी उनका जेनेटिक सेपरेशन किया गया है , भारत के किसी भी व्यक्ति को आप विश्व के किसी भी परिस्थितिक तंत्र में रख दीजिए वो सर्वाइव कर लेगा अन्य के साथ ऐसा नही है ।।आप आंकड़े निकाल के देख सकते है आपको सनातनियों में वंशानुगत बीमारियों का नाम भी नही मिलेगा ।।
#नोट -
गोत्र के अनुसार आप अपने बच्चों का कैरियर निर्धारित कीजिये यकीन मानिए बच्चा नई ऊंचाई को छूएगा कैसे करे गोत्र के अनुसार कैरियर के निर्धारण ये आगे बताऊंगा ।।
साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=341947272938351&id=100013692425716
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