------------- #ब्राम्हण_राजवंश - #भाग - 01--------------
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#शुंग_राजवंश
#राजवंश_समयकाल - 185ई.पू.-75 ई.पू. (112 वर्ष )
#संस्थापक - #पुष्यमित्र_शुंग ( भारद्वाज और कश्यप द्वैयमुष्यायन गोत्र )
------------------#महाराज_पुष्यमित्र_शुंग -------------------
(185 – 149 ई॰पू॰)
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सिकंदर इतिहास में दर्ज एक ऐसा नाम है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह इतना ताकतवर और तीक्ष्ण था कि उसे हराना आसान नहीं था, यहां तक कि उसने भारत के कई राज्यो समेत पूरी दुनिया के एक बड़े हिस्से पर राज किया, लेकिन सम्पूर्ण भारत पर उसके राज्य करने का स्वप्न लिए वो चिरनिद्रा को प्राप्त हुआ ।
‘#बैटल_ऑफ_हाइडस्पेश‘ एक ऐसा ही युद्ध था, जो भारत की ज़मीन पर सिंकदर द्वारा लड़ा गया आखिरी युद्ध था, ये युद्ध पोरस और सिकंदर के बीच लड़ा गया ।
सिकन्दर जब युद्ध के लिए मैदान में उतरा तो पोरस की गजसेना के चक्रव्यूह में फंस गया, ऊपर से राजा पोरस के भाई अमर ने सिकंदर के घोड़े बुकिफाइलस को मार डाला और उसको जमीन पर गिरा दिया ,अपने गज पर सवार पोरस सिकंदर का सिर कलम कर सकते थे, किन्तु अपनी सनातन परंपरा के अनुसार उन्होंने निहत्थे सिकंदर पर हमला नहीं किया, इसी बीच उसके सैनिक उसे उठाकर भाग गए,कहा जाता है कि सिकंदर का ऐसा हाल उसके सैनिकों ने कभी नहीं देखा था, इस हादसे ने उसकी सेना का मनोबल तोड़ दिया और उन्हें हार का सामना करना पड़ा ।
जब सिकन्दर राजा पोरस से अपना मान मर्दन करवा कर वापस जा रहा था तो उसकी सेना के सैनिकों का बड़ा हिस्सा (यवन सैनिक) यही रुक गया और उन्होंने थोड़ी थोड़ी दूरी पर भारत के सीमावर्ती क्षेत्रो पर अपने छोटे छोटे कबीले बना लिए , भारत वर्ष अपने गौरवशाली ऐश्वर्याशाली समय मे आगे बढ़ रहा था और तभी कुछ ऐसा हुआ जो नही होना चाहिए था, चंद्रगुप्त के वंशज सम्राट अशोक ने बुद्ध धर्म अपना लिया और उसके बौद्ध धर्म अपना लेने के बाद उनके वंशजों ने भारत में बुद्ध धर्म लागू करवा दिया , सनातनियो के विरोध करने पर उनका हिंसक दमन किया गया । इधर आम जनमानस अहिंसा हालांकि इसे अहिँसा नही कायरता कहना उचित होगा के रास्ते पर चल पड़ा उधर जो यवन सैनिक रुके थे वो आते लूटपाट करते और चले जाते यदि कोई विरोध करता तो वो काल का ग्रास बन जाता , काल चक्र अपनी गति से चल रहा था और जनमानस अपने उद्धारकर्ता की प्रतीक्षा में की कब सनातन का सूर्य पुनः उदय होगा , और वो समय जल्द ही आने वाला था...........
मौर्य सम्राट शतधन्वन की मृत्यु के बाद उसका प्रज्ञादुर्बल बेटा बृहद्रथ राजगद्दी पर बैठा जो अय्याश , कमजोर दूरदृष्टि और भोग विलाश में लिप्त रहने वाला था और दूसरी तरफ भारत का भविष्य एक ब्रम्हण किसान के घर पैदा हों चुका था जो द्वैयमुष्यायन गोत्र का निर्वहन करने वाला था , ब्राह्मणों की एक द्वैत गोत्र प्रणाली है। इसके अनुसार द्वैयमुष्यायन अथवा दैत गोत्र, दो अलग-अलग गोत्रों के मिश्रण से बनी ब्राह्मण गोत्र होती है अर्थात पिता और माता की गोत्र (यहाँ भारद्वाज और कश्यप)। ऐसे ब्राह्मण अपनी पहचान के रूप में दोनों गोत्र रख सकते हैं।
बौद्ध धर्म के प्रभाव और यवनों के आक्रमण से असुरक्षित सनातन संस्कृति का दीपक सभी को प्रभावित कर देता था , एक रात यवनों के आक्रमण में उस बालक के माता पिता उसकी आंखों के सामने मार दिए जाते है ग्रामीणों के संख्या बल अधिक होने के बावजूद मुट्ठी भर यवन सबकुछ लूट के ले जाते है , वही वो बालक प्रण लेता है कि मैं भारत को एक सुरक्षित और पुनः समृद्धशाली बनाऊंगा ।
#एक_समयांतराल_के_बाद ............
मौर्य नरेश बृहद्रथ तक्षशिला घूमने जाता है और वहाँ अश्त्र शस्त्र की शिक्षा ले रहे एक युवक को देखता है, चीते कि फुर्ती हाथी जैसे विशाल ताकतवर शरीर का स्वामी जो शस्त्र अभ्यास के दौरान 10 योद्धाओं पर भारी पड़ रहा था , राजा वृहरथ उस युवक को बुलाकर उसका परिचय पूछते है - युवक अपना नाम बताता है - महाराज मेरा नाम पुष्यमित्र है और मैं भारद्वाज और कश्यप द्वैयमुष्यायन गोत्रीय ब्राम्हण हूँ ।
बृहद्रथ पुष्यमित्र को अपने निजी अंगरक्षक बनने का प्रस्ताव देते है जिसे वो युवक सहर्ष स्वीकार कर लेता है और यही से शुरू होती है सनातन धर्म ध्वज वाहक पुष्यमित्र शुंग की यात्रा ..........
यवनों के आक्रमण लूटपाट में कोई कमी नही आई थी बल्कि एक कमजोर अहिंसावादी राजा के सत्ता में आ जाने से उनके अनैतिक कर्मो में और तेजी आ गयी थी
शांति का पाठ अधिक पढ़ने के कारण मगध साम्राज्य कायर ही हो चुका था। पुष्यमित्र के अंदर की ज्वाला अभी भी जल रही थी। वो रक्त से स्नान करने और तलवार से बात करने में यकीन रखते थे। राजा से आज्ञा लेकर यवनों के शमन की जिम्मेदारी पुष्यमित्र ने उठायी और जल्दी ही अपने शौर्य और बहादुरी के बल पर उन यवनों का शमन किया और उनके पराक्रम को देखते हुए वो सेनापति बना दिए गए ।
ठीक उसी समय यूनान में यूथिडिमस के मरने के बाद डिमिट्रियस राजा बना , कमजोर भारतीय राजा होने की सूचना पर उसने पंजाब पर चढ़ाई की और सतलुज तक बढ़ा। वाधीक से निकाले जाने पर डिमिट्रियस पंजाब की ओर बढ़ा और उसने साकल में अपनी राजधानी स्थिर की। सिन्धु नदी के दक्षिण होते हुए उसने पाटल (सिन्धु में) को जीता और क्रमश: सौराष्ट्र देश को अपने अधिकार में किया उसका प्रतिनिधित्व कर रहा था उसका प्रतापी सेनापति मिनांडर । जिसने मथुरा और साकेत और राजपूताने तक अपना राज्य बढ़ाया था। साकेत (अयोध्या) और मध्यमिका (नगरी, मेवाड़ में चित्तौड़ से आठ मील उत्तर को) पर मिनांडर का धावा और घेरा जिस समय हुआ उस समय महाभाष्यकार पतंजलि विद्यमान थे। मथुरा में इनके सिक्के बहुत मिलते हैं।
#राजवंश_स्थापना -
इसी मिनांडर ने एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई पूर्णरूप से भारतवर्ष पर सत्ता प्राप्त करने की उसने सबसे पहले बौद्ध धर्म के धर्मगुरुओं से संपर्क साधा,और उनसे कहा कि अगर आप भारत विजय में मेरा साथ दें तो में भारत विजय के पश्चात् में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लूँगा। बौद्ध गुरुओं ने राष्ट्र द्रोह किया तथा भारत पर आक्रमण के लिए एक विदेशी शासक का साथ दिया। सीमा पर स्थित बौद्ध मठ राष्ट्रद्रोह के केंद्र बन गए। बोद्ध भिक्षुओ के वेश ने मिनांडर के सैनिक मठों में आकर रहने लगे। हजारों मठों में सैनिकों के साथ साथ हथियार भी छुपा दिए गए। सेनापति पुष्यमित्र की नजरों से बौद्ध मठों में विदेशी सैनिको का आगमन छुपा नही रह सका । पुष्यमित्र ने सम्राट से मठों कि तलाशी की आज्ञा मांगी। परंतु बौद्ध सम्राट वृहद्रथ ने बौद्ध मठो में अपनी अंध श्रद्धा में इसके लिए मना कर दिया, किंतु राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत पुष्यमित्र सम्राट की आज्ञा का उल्लंघन करके बौद्ध मठों की तलाशी लेने के लिए अपने सिपाही भेजते है। मठों में स्थित सभी विदेशी सैनिको को पकड़ लिय जाता है और उन विदेशी सैनिकों के साथ मे राष्ट्रद्रोही बौद्ध भिक्षुओं को भी मृत्युदंड दे दिया जाता है उनके हथियार कब्जे में कर लिए जाते है। वृहद्रथ को यह बात अच्छी नही लगी की उसके अनुमति न देने के बावजूद पुष्यमित्र ने ऐसा किया।
पुष्यमित्र को अपने सूत्रों से पता लगता है कि मिनांडर की सेना आक्रमण की तैयारी कर रही है और ये जानकर पुष्यमित्र मगध के सैनिको को युद्ध की तैयारी करने का आदेश देते है, जब पुष्यमित्र सैनिक परेड की जाँच कर रहे होते है तभी वहाँ सम्राट का आगमन होता है।
सम्राट बृहद्रथ के अहिंसात्मक प्रस्ताव को सामने रखने पर पुष्यमित्र उन्हें समझाते है कि यदि हम युद्ध की बजाय अहिँसा का रास्ता अपनाते है तो राज्य जाने के साथ साथ आमजनमानस का भी विनाश निश्चित है जैसा कि अन्य राजाओ के साथ हुए है।
उन्होंने कहा की इससे पहले दुश्मन के पाँव हमारी मातृभूमि पर पड़ें हम उसका शीश उड़ा देंगे। यह नीति तत्कालीन मौर्य साम्राज्य के धार्मिक विचारों के खिलाफ थी। उनको अपने सेनापति की बात अपनी बात का उलंघन करने जैसी लगी और वो अपनी तलवार से वार करने के लिए पुष्यमित्र पर झपटा और बोला बिना मेरी आज्ञा के बिना किसके आदेश पर तुम ऐसा कर रहे हो, पुष्यमित्र का हाथ उससमय उनके तलवार की मुठ पर ही था। तलवार निकालते ही बिजली की गति से सम्राट बृहद्रथ का सर धड़ से अलग कर दिया और बोले
।। "#ब्राह्मण_किसी_की_आज्ञा_नही_लेता” ।।
परेड में सम्मिलित हज़ारों की सेना यह सब देख रही थी। पुष्यमित्र ने लाल आँखों से सम्राट के रक्त से तिलक किया और सेना की तरफ देखा और बोला “ना बृहद्रथ महत्वपूर्ण था, ना पुष्यमित्र, महत्वपूर्ण है तो मगध, महत्वपूर्ण है तो मातृभूमि, क्या तुम रक्त बहाने को तैयार हो??”। उसकी शेर सी गरजती आवाज़ से सेना में एक नए उत्साह का संचार हुआ सेनानायक आगे बढ़ कर बोला “हाँ सम्राट पुष्यमित्र । हम तैयार हैं”। पुष्यमित्र ने कहा” आज मैं सेनापति ही हूँ इन खून की प्यासी तलवारों को यवनों के रक्त से इसकी प्यास मिटा दो । जो यवन मगध पर अपनी पताका फहराने का सपना पाले थे वो युद्ध में गाजर मूली की तरह काट दिए गए। एक सेना जो कल तक दबी रहती थी आज युद्ध में जय महाकाल के नारों से दुश्मन को थर्रा रही है। मगध तो दूर यवनों ने अपना राज्य भी खो दिया। पुष्यमित्र ने हर यवन को कह दिया की अब तुम्हे भारत भूमि से वफादारी करनी होगी नही तो काट दिए जाओगे। इसके बाद पुष्यमित्र का राज्यभिषेक हुआ। उसने सम्राट बनने के बाद घोषणा की अब कोई मगध में बुद्ध धर्म को नही मानेगा। हिन्दू ही राज धर्म होगा। और इस तरह एक ब्राह्मण शुंग राजवंश की स्थापना हुई ।।
#पुष्यमित्र_शुंग_के_ब्राम्हण_शासक_की_पुष्टि -
#साहित्यिक_स्रोत (Literary Sources) -
#पुराण (वायु और मत्स्य पुराण) – इससे पता चलता है कि शुगवंश का संस्थापक एक ब्राम्हण पुष्यमित्र शुंग था।
हरिवंश पुराण में कलियुग में भी अश्वमेघ करने वाले ब्राह्मण सेनानी को आोमिज्ज कहा गया है पुष्यमित्र को ही वह सेनानी माना गया है ।
#हर्षचरित – इसकी रचना बाणभट्ट ने की थी। इसमें अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या एक ब्राम्हण द्वारा होना उल्लेखित है।
#पतंजलि_का_महाभाष्य – पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे। इस ग्रंथ में यवनों के आक्रमण की चर्चा है।
पंतजलि महाभाष्य में लिखा है -
अस्णाद यवनः साकेत (अर्थात् यूनानियों ने साकेत को घेरा)
अस्णाद यवनों माध्यमिकां (अर्थात् यूनानियों ने माध्यमिका घेरी)।
पतंजलि ने पुष्यमित्र शुंग के अवश्मेघ यज्ञ का उल्लेख करते हुए लिखा है- इह पुष्य मित्तम् याजयाम:
#गार्गी_संहिता – इसमें भी यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है। गार्गी संहिता में लिखा है कि- दुष्ट विक्रान्त यवनों ने मथुरा, पंचाल देश (गंगा का दो आबा) और साकेत को जीत लिया है और वे कुसुमध्वज पाटलिपुत्र जा पहुँचेगे
#मालविकाग्निमित्र – यह कालिदास का नाटक है जिससे शुंगकालीन राजनीतिक गतिविधियों का ज्ञान प्राप्त होता है , खासकर अग्निमित्र का जो शुंग वंश के शासक थे। मालविकाग्निमित्रम् में कहा गया है कि, यज्ञभूमि से सेनापति पुष्यमित्र स्नेहालिंगन के पश्चात् विदिशा-स्थित कुमार अग्निमित्र को सूचित करता है कि मैंने राजसूय यज्ञ की दीक्षा लेकर सैकड़ों राजपुत्रों के साथ वसुमित्त की संरक्षता में एक वर्ष में और आने के नियम के अनुसार यज्ञ का अश्व बंधन से मुक्त कर दिया। सिन्धु नदी के दक्षिण तट पर विचरते हुए उस अश्व को यवनों ने पकड़ लिया। जिससे दोनों सेनाओं में घोर संग्राम हुआ। फिर वीर वसुमित्त ने शत्रुओं को परास्त कर मेरा उत्तम अश्व छुड़ा लिया। जैसे पौत्र अंशुमान के द्वारा वापस लाए हुए अश्व से राजा सगर ने, वैसे में भी अपने पौत्र द्वारा रक्षा किए हुए अश्व से यज्ञ किया। अतएव तुम्हें यज्ञ दर्शन के लिए वधू-जन-समेत शीघ्र आना चाहिए।
#दिव्यावदान – इसमें ब्राम्हण पुष्यमित्र शुंग को अशोक के 84,000 स्तूपों को तोड़ने वाला बताया गया है।दिव्यादान में कहा गया है कि पुष्यमित्र ने साकल (स्यालकोट) जाकर घोषणा की- जो व्यक्ति एक श्रमण का सिर काटकार लायेगा उसे मैं सौ दीनारें दूंगा-
। श्रमण शिरो दास्यति तस्याहं दीनार शत क्षस्यामि।
बौद्ध धर्म की परम्पराओं और साहित्य में पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धर्म का घोर विरोधी बताया गया है। तिब्बती इतिहास लामा तारानाथ तथा बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान में पुष्यमित्र शुंग को बौद्धों का प्रबल शत्रु कहा गया है। इनके अनुसार पुष्यमित्र ने अनेक स्तूपों को नष्ट कराया और भिक्षुओं की हत्या करा दी।
#पुरातात्विक_स्रोत(Archaeological Sources) -
#अयोध्या_अभिलेख – इस अभिलेख को पुष्यमित्र शुंग के उत्तराधिकारी धनदेव ने लिखवाया था। इसमें पुष्यमित्र शुंग द्वारा कराये गये दो अश्वमेध यज्ञ की चर्चा है।
अयोध्या के इस अभिलेख से ऐसा प्रतीत होता है कि पुष्यमित्र शुंग ने एक नहीं दो अश्वमेघ यज्ञ किए थे। इस अभिलेख में कहा गया है- कोसलाधियेन द्विरश्वमेघ याजिनः सनापते: पुष्यमित्रस्य इस प्रकार पुष्यमित्र द्वारा अश्वमेघ यज्ञ किया
#बेसनगर_का_अभिलेख – #हेलिओडोरस_स्तंभ (Heliodorus pillar) भारत के मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में आधुनिक बेसनगर के पास स्थित पत्थर से निर्मित प्राचीन स्तम्भ है। इसका निर्माण 110 ईसा पूर्व हेलिओडोरस (Heliodorus) ने कराया था जो भारतीय-यूनानी राजा अंतलिखित (Antialcidas) का शुंग राजा भागभद्र के दरबार में दूत था। ये स्तम्भ साँची के स्तूप से केवल 5 मील की दूरी पर स्थित है । यह अभिलेख गरुड़-स्तंभ के ऊपर खुदा हुआ है। इससे भागवत धर्म की लोकप्रियता सूचित होती है।
#भरहुत_का_लेख – इससे भी शुंगकाल के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
प्राचीन बिहार के उपलब्ध पुरातात्विक साहित्य, यात्रा वृतान्त , प्राचीन शिलालेख, सिक्के, पट्टे, दानपत्र, ताम्र पत्र, राजकाज सम्बन्धी खाते-बहियों, दस्तावेज, विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतान्त, स्मारक, इमारतें आदि एवम उपलब्ध ऐतिहासिक स्मारक व पुरातात्विक सामग्री व अन्य वस्तुएँ उपलब्ध हैं जो पुष्यमित्र के ब्राम्हण राजा होने की पुष्टि करती है ।
उपर्युक्त साक्ष्यों के अतिरिक्त साँची, बेसनगर, बोधगया आदि स्थानों से प्राप्त स्तूप एवं स्मारक शुंगकालीन कला एवं स्थापत्य की विशिष्टता का ज्ञान कराते हैं। शुंगकाल की कुछ मुद्रायें-कौशाम्बी, अहिच्छत्र, अयोध्या तथा मथुरा से प्राप्त हुई हैं जिनसे तत्कालीन ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती हैै। इस प्रकार अधिकार साक्ष्य और पुष्यमित्र के विचार एवं कृतित्व इस तर्क का समर्थन करते हैं कि पुष्यमित्र ब्राह्मण वर्ण में जन्मा था। उपरोक्त सभी ऐतिहासिक दृष्टि से तर्कसंगत है। डॉ. वि-सेण्ट स्मिथ ने इस प्रसंग में कहा है- पुष्यमित्र का स्मरणीय अश्वमेघ यज्ञ ब्राह्मण धर्म के उस पुनरुत्थान की ओर संकेत करता है जो पाँच शताब्दियों के बाद समुद्रगुप्त और उसके वंशजों के समय में हुआ। मैस्डोनेल और कीथ के अनुसार आश्वलायन श्रौत सूत्र के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शुंग ब्राम्हण अध्यापक थे।
#विशेष -
अत्यधिक हिंसा के बाद भारत की सनातन भूमि बौद्ध भिक्षुओं व बौद्ध मठों का गढ़ बन गई थी, जिसका संचालन अफगानिस्तान के बामियान और मगथ से होता था। मौर्य वंश का नौवां सम्राट वृहद्रथ मगध की गद्दी पर बैठा, तब उस समय तक आज का अफगानिस्तान, उत्तरी पाकिस्तान, कश्मीर, पंजाब और लगभग पूरा उत्तरी भारत बौद्ध बन चुका था। इसके अलावा भूटान, चीन, बर्मा, थाईलैंड आदि अनेक दूसरे राष्ट्र भी बौद्ध धर्म के झंडे तले आ चुके थे, लेकिन वृहद्रथ का शासन सिंधु के इस पार तक सिमटकर रह गया था। पुष्यमित्र शुंग के शासन-काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी, यवनों का आक्रमण और उसका शुंगों द्वारा प्रबल प्रतिरोध। मौर्य साम्राज्य के पतन-काल में ही भारत के उत्तर-पश्चिम में यवनों (यूनानियों) का प्रभाव बढ़ रहा था। वे धीरे-धीरे भारत के अन्य भागों में प्रभावी होने के लिए प्रयत्नशील थे। उस समय परवर्ती मौर्यों के कमजोर शासन में मगध का प्रशासन तंत्र शिथिल पड़ गया था तथा देश को आंतरिक एवं वाह्य संकटों का खतरा था। इसी समय पुष्यमित्र शुंग ने मगध साम्राज्य पर अपना अधिकार जमाकर न सिर्फ यवनों के आक्रमण से देश की रक्षा की बल्कि वैदिक धर्म के आदर्शों को, जो अशोक के शासन काल में उपेक्षित हो गये थे, पुनः प्रतिष्ठित किया। इसलिए पुष्यमित्र शुंग के काल को वैदिक पुनर्जागरण का काल भी कहा जाता है।
पुष्यमित्र की गणना भारत सुयोग्य शासकों और सेनानियों में की जाती है। वह उच्चकोटि का सेनानी तथा सेनापति तथा कुशल शासक था। उसने न केवल शुंग साम्राज्य की स्थापना की, प्रत्युत उसका विस्तार और सुगठन भी किया। उसके साम्राज्य में पंजाब, जलधर, स्यालकोट, विदिशा तथा नर्मदा तट के प्रान्त सम्मिलित थे। उसने न केवल अपने साम्राज्य की प्रत्युत अपने देश की यवन आक्रान्ताओं से रक्षा की। उसने भारत की उस समय सेवा की जबकि देश पर निरन्तर यवनों के आक्रमण हो रहे थे। यही नहीं यवनों ने उत्तर पश्चिम कुछ प्रदेशों पर अपन अधिपत्य भी स्थापित कर लिया था। यद्यपि उस पर धार्मिक पक्षपात का आरोप लगाया है किन्तु वस्तुत: वह धार्मिक धर्मसहिष्णु शासक था। इतिहासकारोंने लिखा है की , निश्चित रूप से पुष्यमित्र ब्राह्मण धर्म का प्रबल समर्थक था। किन्तु शुंगकालीन भरहुत से प्राप्त बौद्ध स्तूप और बंगला प्रभृति साहित्य में प्राप्त साक्ष्य पुष्यमित्र के साम्प्रदायिक विद्वेष की भावना की पुष्टि नहीं करते।
पुष्यमित्र शुंग कला का संरक्षक था। उसने सांची स्तूप में एक रलिंग लगवाई। सांची के स्तूप के सुन्दरीकरण का श्रेय पुष्यमित्र शुंग को ही है। लरहुत स्तूप भी उसकी कलाप्रियता का एक उत्कृष्ट नमूना है। विदिशा के गजदत्त शिल्पी द्वारा निर्मित सांची के तरण-द्वार आज भी उस बीते हुए युग की कलात्मक प्रतिभा का गुणगान कर रहे हैं। कला के अतिरिक्त पुष्यमित्र शुंग का शासन साहित्य की श्रीवृद्धि के लिए भी प्रसिद्ध हैं। साहित्य के क्षेत्र में महर्षि पतंजलि का नाम उल्लेखनीय है। महर्षि पतंजलि ने पाणिनि की अष्टाध्यामी पर महाभाष्य की रचना की। पतंजलि पुष्यमित्र शुंग द्वारा किए गए अवश्मेध यज्ञ के पुरोहित (आचार्य) थे। पतंजलि के अतिरिक्त इस युग में अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाओं का भी प्रणयन किया गया था, जो आज सुलभ नहीं हैं।
#सौर्स -
द ग्रीक्स बँक्ट्रिया एण्ड इण्डिया - डब्ल्यूडब्ल्यू. टार्न द्वारा लिखित
आर्यन रूल इन इंडिया (Aryan Rule in India) - ई. बी. हवल द्वारा लिखित
महाभाष्य और अष्टाध्यायी
हरिवंश पर्व पुराण, भविष्य पर्व 3/40
कालिदास रचित “ मालविकाग्निमित्र
https://hi.m.wikipedia.org/wiki/हेलिओडोरस_स्तंभ
साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=430173537449057&id=100013692425716
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