Sunday, 20 August 2017

वेदों_में_मांस_भक्षण

#वेदों_में_मांस_भक्षण ----

वेदों में मांसखोरी या मांस भक्षण के लिए बोला गया है आज इसका खंडन करेंगें --
वेदों के विषय में सबसे अधिक प्रचलित अगर कोई शंका है तो वह हैं कि क्या वेदों में पशुबलि, माँसाहार आदि का विधान है? हाल ही में कुछ वमियो और राजनेताओं द्वारा दिया गया बयान की प्राचीन ऋषि मुनि गौमांस खाते थे भी इसी भ्रान्ति को बढ़ावा देने वाला है।

आइये कुछ ऐसे शब्द देखते है जिससे लोगो को भ्रमित किया जाता है कि वेदों में पशुबलि, माँसाहार आदि का विधान है --

#मेध_शब्द -
मेध शब्द का अर्थ केवल हिंसा नहीं है. मेध शब्द के तीन अर्थ है १. मेधा अथवा शुद्ध बुद्धि को बढ़ाना २. लोगो में एकता अथवा प्रेम को बढ़ाना ३. हिंसा।
इसलिए मेध से केवल हिंसा शब्द का अर्थ ग्रहण करना उचित नहीं है।अश्वमेध शब्द का अर्थ यज्ञ में अश्व कि बलि देना नहीं है अपितु शतपथ १३.१.६.३ और १३.२.२.३ के अनुसार राष्ट्र के गौरव, कल्याण और विकास के लिए किये जाने वाले सभी कार्य “अश्वमेध” है। गौ मेध का अर्थ यज्ञ में गौ कि बलि देना नहीं है अपितु अन्न को दूषित होने से बचाना, अपनी इन्द्रियों को वश में रखना, सूर्य की किरणों से उचित उपयोग लेना, धरती को पवित्र या साफ़ रखना -‘गोमेध‘ यज्ञ है। ‘ गो’ शब्द का एक और अर्थ है । पृथ्वी। पृथ्वी और उसके पर्यावरण को स्वच्छ रखना ‘गोमेध’ कहलाता है।
नरमेध का अर्थ है मनुष्य कि बलि देना नहीं है अपितु मनुष्य की मृत्यु के बाद उसके शरीर का वैदिक रीति से दाह संस्कार करना नरमेध यज्ञ है। मनुष्यों को उत्तम कार्यों के लिए प्रशिक्षित एवं संगठित करना नरमेध या पुरुषमेध या नृमेध यज्ञ कहलाता है।
अजमेध का अर्थ बकरी आदि कि यज्ञ में बलि देना नहीं है अपितु अज कहते है बीज,अनाज या धान आदि कृषि की पैदावार बढ़ाना है। अजमेध का सिमित अर्थ अग्निहोत्र में धान आदि कि आहुति देना है।
#आलम्भ_शब्द -
लभ्’ धातु से बनने वाला आलम्भ शब्द का अर्थ मारना नहीं अपितु अच्छी प्रकार से प्राप्त करना , स्पर्श करना या देना होता है। पारस्कर सूत्र 2 /2 /16 में कहा गया है कि आचार्य ब्रह्मचारी का आलम्भ अर्थात ह्रदय का स्पर्श करता है। यहाँ पर आलम्भ का अर्थ स्पर्श आया है।
पारस्कर सूत्र 1 /8 /8 में ही आया है कि वर वधु के दक्षिण कंधे के ऊपर हाथ ले जाकर उसके ह्रदय का स्पर्श करे। यहाँ पर भी आलम्भ का अर्थ स्पर्श आया है।
अगर यहाँ पर आलम्बन शब्द का अर्थ मरना ग्रहण करे तो यह कैसे युक्तिसंगत एवं तर्क संगत सिद्ध होगा? इससे सिद्ध होता हैं कि आलम्भ शब्द का अर्थ ग्रहण करना,प्राप्त करना अथवा स्पर्श करना है।

#संज्ञपन_शब्द -
संज्ञपन शब्द का अर्थ है ज्ञान देना दिलाना तथा मेल कराना है।
अथर्ववेद 6/10/14-15 में लिखा है कि तुम्हारे मन का ज्ञानपूर्वक अच्छी प्रकार (संज्ञपन) मेल हो, तुम्हारे हृदयों का ज्ञान पूर्वक अच्छी प्रकार (संज्ञपन) मेल हो।
इसी प्रकार शतपथ ब्राह्मण 1/4 में एक आख्यानिका है जिसका अर्थ है- मैं वाणी तुझ मन से अधिक अच्छी हूँ, तू जो कुछ मन में चिंतन करता है मैं उसे प्रकट करती हूँ, मैं उसे अच्छी प्रकार से दूसरों को  बतलाती हूँ (संज्ञपयामी)
संज्ञपन शब्द का मेल के स्थान पर हिंसापरक अर्थ करना अज्ञानता का परिचायक है।

#गोघ्न_शब्द-
गोघ्न शब्द में हन धातु का प्रयोग है जिसके दो अर्थ बनते है हिंसा और गति। गोघ्न में उसका गति अथवा ज्ञान, गमन, प्राप्ति विषयक अर्थ है। मुख्य भाव यहाँ प्राप्ति का है, अर्थात जिसे उत्तम गौ प्राप्त कराई जाये। हिंसा के प्रकरण में वेद का उपदेश गौ कि हत्या करने वाले से दूर रहने का है।ऋग्वेद 114 /10 में लिखा है जो गोघ्न – गौ कि हत्या करनेवाला है वह नीच पुरुष है, वह तुमसे दूर रहे।
वेदों के कई उदाहरणों से पता चलता है कि ‘हन्’ का प्रयोग किसी के निकट जाने या पास पहुंचने के लिए भी किया जाता है उदहारण में अथर्ववेद 6 /101 /1 में पति को पत्नी के पास जाने का उपदेश है। इस मंत्र का यह अर्थ कि पति पत्नी के पास जाये उचित प्रतीत होता हैं नाकि पति द्वारा पत्नी को मारना उचित सिद्ध होता हैं। इसलिए हनन का केवल हिंसा अर्थ गलत परिपेक्ष में प्रयोग करना भ्रम फैलाने के समान है।

#अतिथिनीर्गा_शब्द -
ऋग्वेद के मंत्र 10 /68 /3 में अतिथिनीर्गा: का अर्थ अतिथियों के लिए गौओ का वध किया गया हैं जिसका तात्पर्य यह प्रतीत होता है कि किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के आने पर गौ को मारकर उसके मांस से उसे तृप्त किया जाता था।यहाँ पर जो भ्रम हुआ है उसका मुख्य कारण अतिथिनी शब्द को समझने कि गलती के कारण हुआ है। यहाँ पर उचित अर्थ बनता है ऐसी गौएं जो अतिथियों के पास दानार्थ लाई जायें, उन्हें दान की जायें। Monier Williams ने भी अपनी संस्कृत इंग्लिश शब्दकोश में अतिथिग्व का अर्थ “To whom guests should go ” अर्थात जिसके पास अतिथि प्रेम वश जायें ऐसा किया है। श्री Bloomfield ने भी इसका अर्थ “Presenting cows to guests” अर्थात अतिथियों को गौएं भेंट करनेवाला ही किया है। अतिथि को गौ मांस परोसना कपोलकल्पित है।

#माष_शब्द -
माष शब्द का प्रयोग ‘माषौदनम्‘ के रूप में हुआ है। इसे बदल कर किसी मांसभक्षी ने मांसौदनम् अर्थ कर दिया है। यहाँ पर माष एक दाल के समान वर्णित है। इसलिए यहाँ मांस तो प्रश्न ही नहीं उठता। आयुर्वेद (सुश्रुत संहिता शरीर अध्याय २) गर्भवती स्त्रियों के लिए मांसाहार को सख्त मना करता है और उत्तम संतान पाने के लिए माष सेवन को हितकारी कहता है। इससे क्या स्पष्ट होता है। यही कि माष शब्द का अर्थ मांसाहार नहीं अपितु दाल आदि को खाने का आदेश है। फिर भी अगर कोई माष को मांस ही कहना चाहे, तब भी मांस को निरुक्त 4/1/3 के अनुसार मनन साधक, बुद्धि वर्धक और मन को अच्छी लगने वाली वास्तु जैसे फलका गूदा, खीर आदि कहा गया है। प्राचीन ग्रंथों में मांस अर्थात गूदा खाने के अनेक प्रमाण मिलते है जैसे चरक संहिता देखे में आम्रमांसं (आम का गूदा) , खजूरमांसं (खजूर का गूदा), तैत्तरीय संहिता २.३२.८ (दही, शहद और धान) को मांस कहा गया है।
इससे यही सिद्ध होता है कि वेदादि शास्त्रों में जहाँ पर माष शब्द आता है अथवा मांस के रूप में भी जिसका प्रयोग हुआ है उसका अर्थ दाल अथवा फलों का मध्य भाग अर्थात गूदा है।

#वाजिनम्_शब्द -
वाजिनम् का अश्व के साथ साथ अन्य अर्थ है शूर, बलवान, गतिशील और तेज। यजुर्वेद के 25/34 मंत्र का अर्थ करते हुए सायण लिखते है कि अग्नि से पकाए, मरे
हुए तेरे अवयवों से जो मांस- रस उठता है वह वह भूमि या तृण पर न गिरे, वह चाहते हुए देवों को प्राप्त हो।
अश्व कि हिंसा के विरुद्ध यजुर्वेद 13/47 मंत्र का शतपथकार ने पृष्ठ 668 पर अर्थ लिखा हैं कि अश्व कि हिंसा न करें।
#उदहारण --
यजुर्वेद 25/44 के यज्ञ में घोड़े कि बलि के समर्थन में अर्थ करते हुए मिलावटखोर लिखते है कि हे अश्व ! तू अन्य अश्वों कि तरह मरता नहीं क्यूंकि तुझे देवत्व प्राप्ति होगी और न हिंसित होता है कि व्यर्थ हिंसा का यहां अभाव है।प्रत्यक्ष रूप में अवयव नाश होते हुए ऐसा कैसे कहते हो? इसका उत्तर देते है कि सुंदर देवयान मार्गों से देवों को तू प्राप्त होता है, इसलिए यह हमारा कथन सत्य है। इस मंत्र का सही अर्थ है कि जैसे विद्या से अच्छे प्रकार प्रयुक्त अग्नि, जल, वायु इत्यादि से युक्त रथ में स्थित हो कि मार्गों से सुख से जाते है, वैसे ही आत्मज्ञान से अपने स्वरुप को नित्य जान के मरण और हिंसा के डर को छोड़कर दिव्य सुखों को प्राप्त हो।

#कुछ_खंडन_मांसाहार_का -

1- #इंद्र द्वारा बैल खाने के समर्थन में ऋग्वेद 10/28/3 और 10/86/14 मंत्र का उदहारण दिया जाता है। यहाँ पर वृषभ और उक्षन् शब्दों के अर्थ से अनभिज्ञ लोग उनका अर्थ बैल कर देते है। ऋग्वेद में लगभग 20 स्थलों पर अग्नि को, 65 स्थलों पर इंद्र को, 11 स्थलों पर सोम को, 3 स्थलों पर पर्जन्य को, 5 स्थलों पर बृहस्पति को, 5 स्थलों पर रूद्र को वृषभ कहा गया है । व्याख्याकारों के अनुसार वृषभ का अर्थ यज्ञ है। उक्षन् शब्द का अर्थ ऋग्वेद में अग्नि, सोम, आदित्य, मरुत आदि के लिए प्रयोग हुआ है। जब वृषभ और उक्षन् शब्दों के इतने सारे अर्थ वेदों में दिए गये है तब उनकाव्यर्थ ही बैल अर्थ कर उसे इंद्र को खिलाना युक्तिसंगत एवं तर्कपूर्ण नहीं है। इसी सन्दर्भ में ऋग्वेद में इंद्र के भोज्य पदार्थ निरामिष रुपी धान, करम्भ, पुरोडाश तथा पेय सोमरस है नाकि बैल को बताया गया हैं।
2- #यजुर्वेद 8/43 में गाय का नाम इडा, रन्ता, हव्या, काम्या, चन्द्रा, ज्योति, अदिति, सरस्वती, महि, विश्रुति और अध्न् कहा गया है। स्तुति कि पात्र होने से इडा, रमयित्री होने से रन्ता, इसके दूध कि यज्ञ में आहुति दी जाने से हव्या, चाहने योग्य होने से काम्या, ह्रदय को प्रसन्न करने से चन्द्रा, अखंडनीय होने से अदिति, दुग्ध वती होने से सरस्वती, महिमशालिनी होने से महि, विविध रूप में श्रुत होने से विश्रुति तथा न मारी जाने योग्य होने से अधन्या कहलाती है। अघन्या शब्द में गाय का वध न करने का सन्देश इतना स्पष्ट है कि विदेशी लेखक भी उसे भली प्रकार से स्वीकार करते हैं।
3- #ऋग्वेद 8/43/11 मंत्र के अनुसार वन्ध्या गौओं कि अग्नि में आहुति देने का विधान बताया गया है। यह सर्वथा अशुद्ध है। इस मंत्र का वास्तविक अर्थ निघण्टु 3 /3 के अनुसार यह है कि जैसे महान सूर्य आदि भी जिसके प्रलयकाल में (वशा) अन्न व भोज्य के समान हो जाते है। इसका शतपथ 5/1/3 के अनुसार अर्थ है पृथ्वी भी जिसके (वशा) अन्न के समान भोज्य है ऐसे परमेश्वर कि नमस्कार पूर्वक स्तुतियों से सेवा करते है। वेदों के विषय में इस भ्रान्ति के होने का मुख्य कारण वशा, उक्षा, ऋषभ आदि शब्दों के अर्थ न समझ पाना है।
यज्ञ प्रकरण में उक्षा और वशा दोनों शब्दों के औषधि परक अर्थ का ग्रहण करना चाहिए, जिन्हें अग्नि में डाला जाता है। सायणाचार्य एवं मोनियर विलियम्स के अनुसार उक्षा शब्द के सोम, सूर्य, ऋषभ नामक औषधि है।
वशा शब्द के अन्य अर्थ अथर्ववेद 1/10/1 के अनुसार ईश्वरीय नियम वा नियामक शक्ति है। शतपथ 1/8/3/15 के अनुसार वशा का अर्थ पृथ्वी भी है / अथर्ववेद 20/103/15 के अनुसार
वशा का अर्थ संतान को वश में रखने वाली उत्तम स्त्री भी है। इस सत्यार्थ को न समझ कर वेद मन्त्रों का अनर्थ करना निंदनीय है।

#विशेष - यज्ञ के विषय में अध्वर शब्द का प्रयोग वेद मन्त्रों में हुआ है जिसका अर्थ निरुक्त के अनुसार हिंसा रहित कर्म है।
हे ज्ञान स्वरुप परमेश्वर, तू हिंसा रहित यज्ञों (अध्वर) में ही व्याप्त होता है और ऐसे ही यज्ञों को सत्य निष्ठ विद्वान लोग सदा स्वीकार करते है। -ऋग्वेद1/1 /4
यज्ञ के लिए अध्वर शब्द का प्रयोग ऋग्वेद 1/1/8, ऋग्वेद 1/14/21,ऋग्वेद 1/128/4
ऋग्वेद 1/19/1,, ऋग्वेद 3/21/1, सामवेद 2/4/2, अथर्ववेद 4/24/3, अथर्ववेद 1/4/2
इत्यादि मन्त्रों में इसी प्रकार से हुआ है। अध्वर शब्द का प्रयोग चारों वेदों में अनेक मन्त्रों में होना हिंसा रहित यज्ञ का उपदेश है।
हे प्रभु! मुझे सब प्राणी मित्र की दृष्टि से देखे, मैं सब प्राणियों को मित्र की प्रेममय दृष्टि से देखूं , हम सब आपस में मित्र की दृष्टि से देखें।-यजुर्वेद 36 /18
यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म के नाम से पुकारते हुए उपदेश है कि पशुओं कि रक्षा करे। – यजुर्वेद 1 /1
पति पत्नी के लिए उपदेश है कि पशुओं की रक्षा करें। – यजुर्वेद 6/11
हे मनुष्य तुम दो पैर वाले अर्थात अन्य मनुष्यों एवं चार पैर वाले अर्थात पशुओं कि भी सदा रक्षा कर। – यजुर्वेद 14 /8
चारों वेदों में दिए अनेक मन्त्रों से यह सिद्ध होता है कि यज्ञों में हिंसा रहित कर्म करने का विधान है एवं मनुष्य का अन्य पशु पक्षियों कि रक्षा करने का स्पष्ट आदेश है।

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=298205073979238&id=100013692425716

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.

मानव_का_आदि_देश_भारत, पुरानी_दुनिया_का_केंद्र – भारत

#आरम्भम - #मानव_का_आदि_देश_भारत - ------------------------------------------------------------------              #पुरानी_दुनिया_का_केंद्र...