Sunday 20 August 2017

कश्मीर के म्लेच्छ आक्रमण

कश्मीर के म्लेच्छ आक्रमण-

(१) १४४० ई.पू. में-राजतरङ्गिणी, तरंग १-
प्रपौत्रः शकुनेस्तस्य भूपतेः प्रपितृव्यजः। अथावहदशोकाख्यः सत्यसंघो वसुन्धराम्॥१०१॥
यः शान्तवृजिनो राजा प्रपन्नो जिनशासनम्। शुष्कलेत्रवितस्तात्रौ तस्तार स्तूपमण्डलैः॥१०२॥
धर्मारण्य विहारान्तः वितस्तात्र पुरेऽभवत्। यत्कृतं चैत्यमुत्सेधावधिप्राप्त्यक्षमेक्षणम्॥१०३॥
स षण्नवत्या गेहानां लक्षैर्लक्ष्मीसमुज्ज्वलैः। गरीयसीं पुरीं श्रीमांश्चक्रे श्रीनगरीं नृपः॥१०४॥----
म्लेच्छैः संछादिते देशे स तदुच्छित्तये नृपः। तपः सन्तोषिताल्लेभे भूतेशात्सुकृती सुतम्॥१०७॥
सोऽथ भूभृज्जलौकोऽभूद्भूलोक सुरनायकः। यो यशः सुधया शुद्धं व्यधाद्ब्रह्माण्डमण्डलम्॥१०८॥---
तत्काल प्रबल प्रेद्ध बौद्ध वादि समूहजित्। अवधूतोऽभवत् सिद्धस्तस्य ज्ञानोपदेशकृत्॥११२॥----
स रुद्ध वसुधान् म्लेच्छान्निर्वास्या खर्व विक्रमः। जिगाय जैत्रयात्राभिर्महीमर्णवमेखलाम्॥११५॥
ते यत्रोज्झटितास्तेन म्लेच्छाश्छादितमण्डलाः। स्थानमुज्झटडिम्बं तज्जनैरद्यापि गद्यते॥११६॥
गोनन्द वंश का ४८वां राजा अशोक या धर्माशोक (१४४८-१४०० ई.पू.) था। वह बौद्ध हो गया और कई विहार बनवाये। वहां के बौद्धों ने मध्य एशिया के म्लेच्छों को बुला कर उनसे आक्रमण करवाया। म्लेच्छ शासन होने पर गोनन्द वन में भाग गया। शिव की पूजा से उसे जलौक नामक पुत्र हुआ जिसने राज्य को पुनः जीता (१४००-१३४४ ई.पू.) और वर्णाश्रम धर्म की पुनः स्थापना की। म्लेच्छों का जहां समूल नाश किया था उसका नाम उज्झट-डिम्ब पड़ा। उसने ९६ लाख घरों का श्रीनगर नगर बसाया।
(२) जलौक के पुत्र दामोदर के ५० वर्ष राज्य के बाद हुष्क, जुष्क, कनिष्क ने ६० वर्ष राज्य किया (१२९४-१२३४ ई.पू.)। उनसे पुनः अभिमन्यु (१२३४-११८२ ई.पू.) ने राज्य ले लिया।
(३) (पण्डित गवास लाल -कश्मीर का संक्षिप्त इतिहास से)-कल्हण के समय ११४८ ई. के बाद १२९५ ई. तक कश्मीर में हिन्दू शासन रहा। १२९५ से १३२४-२५ ई तक राजा सिंहदेव का शासन था। उस समय स्वात से शमीर, तिब्बत से रेन्छन शाह तथा दर्दिस्तान से लन्कर चक आये जिनको राजा ने आश्रय दिया। उनको सरकारी नौकरी तथा जागीर दी। इनलोगों ने १३२२ ई. में चंगेज खान के वंशज जुल्फी कादिर खान को आक्रमण के लिये निमन्त्रित किया। उसने ७०,००० घुड़सवारों के साथ आक्रमण किया और इन गद्दारों की मदद से लाकॊं लोगों की हत्या की तथा ५०,००० ब्राह्मणों को गुलाम बना कर ले गये। इनमें कई देवसर की बर्फ में मारे गये। राजा सिंहदेव किश्तवार भाग गये तथा उनके सेनापति रामचन्द गगनजिर भागे। शत्रुओं के जाने के बाद रामचन्द ने वापस राज्य पर कब्जा करने की कोशिश की पर तिब्बत से आये जागीरदार रेन्छन ने रामचन्द की हत्या कर उसकी पुत्री से विवाह किया और राजा बन गया। उसने इस्लाम स्वीकार कर सदरुद्दीन नाम से राजा बना। २५ वर्ष राज्य के बाद सिंहदेव के भाई उदयन देव ने १३२७ ई. में पुनः राज्य पर कब्जा किया। १३४३ ई. में उसके मरने पर उसके मन्त्री शाह मिर्जा ने कब्जा किया और शमसुद्दीन के नाम से राजा बना। १३४७ में उसके मरने पर उसके लड़के जमशेद को हरा कर उसका छोटा भाई अल्लाउद्दीन अली शेर राजा बना। उसके लड़के शाह उद्दीन (१३६०-१३७८) ने फिरोजशाह तुगलक की अधीनता स्वीकार की। उसके बाद १५५४ ई. तक उसके वंशज राज करते रहे। उसके बाद सिंहदेव के समय दरद से आये लंकर चक के वंशजों ने १५८८ ई तक शासन किया। उसके बाद १७५३ ई. तक मुगलों के सूबेदारों ने शासन किया। मुहम्मद शाह दुर्रानी के आक्रमण के बाद कश्मीर १८१९ ई. तक अफगान सूबेदारों के अधीन रहा।
(४) हिन्दू राज्य-१८१९ ई. में यह सिख राजाओं के सूबेदारों के अधीन रहा। इनमें १८४१-४६ तक मुस्लिम सूबेदार थे। अंग्रेजों द्वारा सिखों की पराजय के बाद महाराजा गुलाब सिंह ने १६-३-१८४६ ई. में कश्मीर अंग्रेजों से खरीद लिया। उनके पुत्र रणवीर सिंह के नाम पर रणवीर पेनल कोड है। उनके पुत्र प्रताप सिंह तथा उनके पुत्र हरिसिंह १९४७ तक राजा रहे। वे स्वाधीनता के बाद भारत में मिलना चाहते थे। पर भारत के प्रधानमन्त्री नेहरू ने कहा कि कश्मीर (जम्मू, लद्दाख नहीं) मुस्लिम बहुल है अतः राजा हरि सिंह का विचार कश्मीर के लोगों की इच्छा नहीं है। केवल शेख अब्दुल्ला ही कश्मीर के प्रतिनिधि हो सकते हैं (उनसे नेहरू का रक्त सम्बन्ध कहा जाता है)। उसके बाद शेख अब्दुल्ला का परिवार और उनके दामाद गुलाम मुहम्मद मुख्यमन्त्री बने। बीच में उनके समर्थक मुफ्ती मुहम्मद सईद भी मुख्य मन्त्री बने। उनकी पुत्री अभी मुख्य मन्त्री हैं। नेहरू ने बिना जनमत संग्राह् के कश्मीर का विलय अस्वीकार किया जो बाद में पाकिस्तान की मांग हुयी। भारतीय संविधान मेंएक अलग धारा ३७० जोड़ी गयी जिसके अनुसार वहां के राज प्रमुख या संविधान सभा की सहमति से ही राष्ट्रपति कोई निर्णय ले सकते है। राज प्रमुख पद समाप्त होने पर यह धारा स्वतः समाप्त होनी थी, पर कांग्रेस की इच्छा के कारण यह अभी तक भारत में पूरी तरह नहीं मिल पाया है। १९ जनवरी १९९० को यहां प्रायः २०,००० हिन्दुओं की हत्या कर बाकी ७ लाख को कश्मीर से भगा दिया गया जो अभी तक अपने ही देश में प्रवासी बने हुये हैं।

Courtesy: Arun Upadhyay, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10205201082586511&id=1829149612

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