Tuesday 3 October 2017

सायबर_लॉ -- भाग - 2

#सायबर_लॉ -- भाग - 2

पिछली पोस्ट में मैंने आपको थोड़ी जानकारी साइबर लॉ का विषय मे दी अब उसके विषय मे विस्तार से बताने का एक प्रयास करूंगा ।।

आज हम प्रथम श्रेणी के साइबर क्राइम के विषय मे चर्चा करते है उसके विषय मे जानकरी और बचाव आपको बताता हूँ --
प्रथम श्रेणी मतलब जहां कंप्यूटर या सर्वर लक्षय है ।।

1 - #डिनायल_आफ_सर्विस (Denial of Service) (DoS)

अलग अलग वेब साइटें, अलग तरह की सेवायें देते हैं। यदि उस वेबसाइट पर बहुत सारी ई-मेल भेज दी जांय या हिट होने लगें, तब उसका कानूनन प्रयोग करने वाले, उसकी सेवायें नही ले पाते हैं। वह बंद हो जाती है। इसे डिनायल आफ सर्विस कहते हैं।

डिनायल ऑफ सर्विस एक effective hacking technique है जो हैकिंग ग्रुप्स द्वारा बड़े स्तर पर use की जाती है। आमतौर पर हैकर इस तकनीक का इस्तेमाल किसी सर्वर पर अत्याधिक मात्रा में traffic भेजने के लिए करते हैं। जिसकी वजह से सर्वर इतने load को handle नहीं कर पाता और लोग उस वेबसाईट को खोल नहीं पाते। यानि सर्वर डाउन हो जाता है।
डिनायल ऑफ सर्विस किसी वेबसाईट को slow कर सकता है या फिर कुछ समय के लिए बन्द भी कर सकता है। Denial of service or distribute denial of service तकनीक को 1998 में खोजा गया था।

DDoS Attacks का इस्तेमाल क्यों किया जाता है ??

i. सर्वर की बैंडविड्थ, डिस्क स्पेस और प्रोसेसर टाईम खत्म करने के लिए।
ii. Confirguration information को खराब करने के लिए।
iii. Users को साईट से दूर रखने के लिए।

2- #वायरस ( Virus) -
कम्यूटर में  वायरस दूषित पेन ड्राइव, या फलॉपी या सीडी लगाने से आ सकते हैं यह किसी ई-मेल से भी मिल सकते हैं। यह आपके कम्पयूटर के डाटा को समाप्त कर सकता है। इसके लिए किसी भी ईमेल के साथ लगे संलग्नक को मत खोलिये, यदि वह किसी आपके जानने वाले व्यक्ति ने न भेजा हो।
सबसे पहला वायरस क्रीपर था जो अरपानेट (ARPANET), पर खोजा गया, जो १९७० के दशक की शुरुआत में इंटरनेट से पहले आया था।[1]यह TENEX (TENEX) ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा फैला और यह कंप्यूटर को नियंत्रित और संक्रमित करने के लिए किसी भी जुड़े मॉडम का उपयोग कर सकता था। यह संदेश प्रदर्शित कर सकता है कि "मैं क्रीपर हूँ; अगर पकड़ सकते हो तो मुझे पकडो".
कई सीआईडी प्रोग्राम ऐसे प्रोग्राम हैं जो उपयोगकर्ता द्वारा डाउनलोड किए गए हैं और हर बार पॉप अप किए जाते हैं। इसके परिणाम स्वरुप कंप्यूटर की गति बहुत कम हो जाती है लेकिन इसे ढूंढ़ना और समस्या को रोकना बहुत ही कठिन होता है।

3 - #वेबसाइट_हैकिंग_और_डाटा_की_चोरी -

कंप्यूटर डाटा भी कॉपीराइट की तरह सुरक्षित होता है। बहुत से कंप्यूटरों, वेबसाइटों में  डाटा गुप्त, या निज़ी, या फिर गोपनीय होता है। वेब साइट या कंप्यूटर को हैक कर इसे  कॉपी या नष्ट करना, इसी श्रेणी में आता है।

हैकरों में व्हाइट हैट (नैतिक हैकिंग), ग्रे हैट, ब्लैक हैट और स्क्रिप्ट किडी के प्रकार होते हैं.  सामान्यतः ब्लैक हैट हैकर्स, या अधिक सामान्य शब्दों में, ग़ैरक़ानूनी इरादों वाले हैकर्स, का उल्लेख करने के लिये आरक्षित रखते हैं।

#बचाव --

पोर्न साइटों, फ्री गाने-मूवी वाली साइटों को न खोलें
- अनजान ई-मेल के अटैचमेंट पर क्लिक न करें
- एंटी वायरस के इंटरनेट सिक्योरिटी भी खरीदना जरूरी है, इससे कंप्यूटर को बचा सकते हैं
- कई बार सामने कुछ और पॉपअप आता है और बैकग्राउंड में असल एप्लीकेशन चलती है। इस स्थिति में यदि चुपचाप वायरस ने फाइल इनक्रिप्ट करने की कोशिश की तो इंटरनेट सिक्योरिटी आपको सचेत कर देगी।
- आप किसी भी यूआरएल को टाइप कर के खोलें, न कि किसी अनजान द्वारा भेजे गए लिंक पर क्लिक करके! खासकर, वैसी वेबसाइट तो बिलकुल भी लिंक पर क्लिक करके न खोलें, जिसमें यूजरनेम या पासवर्ड डालना हो! इसके अतिरिक्त, यूआरएल में http की बजाय https का होना आपकी जानकारी को और भी सिक्योर बनाता है।
- उन वेबसाइट पर दोबारा विजिट ही न करें, जिन्हें खोलने भर से या उस पर कहीं भी क्लिक करने से ढेर सारे पॉप-अप विंडोज खुल जाते हों! अगर कोई वेबसाइट आपके बन्द करने के बावजूद ब्राउज़र में बन्द नहीं हो रही है, तो तत्काल अपने पीसी को पावर बटन दबाकर शट डाउन करें (डायरेक्ट शट डाउन उचित रहता है, न कि मैन्युअल, ताकि कोई मैलवेयर स्टोर होने से पहले आपका कंप्यूटर उसे रिजेक्ट कर दे।)
- एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर सबसे बढ़िया विकल्प है इसका इस्तेमाल कीजिये कुछ नाम मैं आपको सुझाव दे रहा हूँ
1- ESET SMART SECURITY 9
2- KASPERSKY INTERNET SECURITY
3- NORTON INTERNET SECURITY
4- BITDEFENDER TOTAL SECURITY
5-AVAST INTERNET SECURITY
(सदैव एक एंटी-वायरस को हटाकर ही दूसरा इंस्टाल करना चाहिए।
इस्टाल करते अथवा हटाते समय कभी कम्प्यूटर को ख़ुद नहीं बंद करना चाहिए।)

#क़ानूनी_मदद --

1-  #हैकिंग & DOS -
आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (ए), धारा 66
आईपीसी की धारा 379 और 406 के तहत कार्रवाई
सजा  -   अपराध साबित होने पर तीन साल तक की जेल और/या पांच लाख रुपये तक जुर्माना

2 - #डेटा_की_चोरी -
आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 43 (बी), धारा 66 (ई), 67 (सी)
- आईपीसी की धारा 379, 405, 420
- कॉपीराइट कानून
सजा -  अपराध की गंभीरता के हिसाब से तीन साल तक की जेल और/या दो लाख रुपये तक जुर्माना।

3 - #वायरस-स्पाईवेयर फैलाना -
आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (सी), धारा 66
आईपीसी की धारा 268
देश की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने के लिए फैलाए गए वायरसों पर साइबर आतंकवाद से जुड़ी धारा 66 (एफ) भी लागू (गैर-जमानती)।
सजा -  साइबर-वॉर और साइबर आतंकवाद से जुड़े मामलों में उम्र कैद। दूसरे मामलों में तीन साल तक की जेल और/या जुर्माना।

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=313723985760680&id=100013692425716

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