Friday 12 May 2017

वामियों की स्वतन्त्रता का अर्थ

वामियों की स्वतन्त्रता का अर्थ।

  वैसे तो कम्युनिष्ट शासन में समस्त मानवीय स्वतंत्रता का हरण कर लिया जाता है लेकिन मीडिया और अभिव्यक्ति उनमे सबसे पहला होता है।तत्कालीन सोवियत संघ अपने कब्जे वाली जमीन मे केवल कम्यूनिष्ट समाचार ही छपने देता था।अन्य वामी कब्जे वाले स्टेट केवल वामपंथी समाचारो को ही अपने इलाको मे अलाऊ करते थे।वहां लौह दीवार के अंदर कोई अन्य विचार प्रवेश नही कर सकता।चाइना मे आज भी केवल एक विचारों वाली सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ है।उनके खिलाफ किसी भी असहमति का मतलब मौत या जेल है।1990 के दशक के दौरान, क्रो-एशियाई और कम्युनिष्ट कब्जे वाले देशो में मीडिया लगभग गुलाम ही थी।समाचार और जानकारी का प्रवाह उसके बाद ही खुला था जब वे सोवियत संघ से स्वतंत्र हो गए।तब पहली बार आगंतुकों ने व्यस्त न्यूज-स्टैंड्स से, पत्रों और पत्रिकाओं से प्रभावित होना शुरू किया किया।स्वतंत्रता का असल स्वाद चखने के बाद उन्होंने कम्युनिज्म की तरफ पलट कर भी नही देखा।पश्चिमी दुनिया में कई तरह की प्रतिद्वंद्वीता थी, और नव-स्वतंत्र देश रेडियो और टेलीविजन,प्रिंट के समाचारों के माध्यम से समझाने वाली लाइन से तैयार हुये थे।जब उन्होंने नई दुनियां की प्रतिद्वंदिता से भरी,विविध विचारो की पत्रकारिता को देखा तो वे ढंग रह गए।सहसा उन्हें विश्वास ही नही हुआ की दुनियां ऐसी है।

पत्रों और समाचारों और सूचनाओं के कार्यक्रमों की मात्रा और विविधता ने प्रथम दृष्टया प्रभावित करना शुरू किया और लोगो ने यह समझ लिया की क्म्युनिष्ट विचारो के मामले मे जनता को पूरा दास बना कर रखता है।इससे पूर्व कम्युनिस्ट देश खुली मीडिया को गले लगाना अपने लिए खतरा समझते रहे हैं।आज भी जहाँ कम्यूनिज़्म क्ब्जेदार हैं ,वहा जनता को सूचना और खुले समाचारो की स्वतन्त्रता नही है।पार्टी द्वारा किए जन-संहार भी उनके अखबारो की खबर नही होती।पार्टी पदाधिकारियों के बड़े से बड़ा अपराध भी दबा देते है।दिनो-रात वे साम्यवाद के गीत गाते रहते है।सारी खबरे केवल वाम सोच को बढ़ावा देने वाली होती है।वे अपनी जनता मे विचारों का एक मजबूत बाजार तैयार करने मे लगे रहते है।उन्हे लगता है की मार्क्स-वाद से स्वतंत्र विमर्श उनके अस्तित्व को नष्ट कर देगा।इतनी आत्मबल हीन दूसरी कोई राजनीतिक विचारधारा इस धरती पर माजूद नही है।न आज तक के इतिहास में जन्मी।यहाँ तक की राजशाही मे भी इतना कमजोर मनोबल नही होता।मज़हबी देशो में भी इससे कही अधिक अभिव्यक्ति की स्वततंत्रा हासिल होती है।

  कब्जे वाले देशों में कम्युनिष्ट पार्टी ने तमाम अदृश्य हाथो से प्रेस और प्रसारण नियंत्रित किया हुआ है।उन देशों में मीडिया के स्वामित्व और संपादकीय संरचनाएं और कानूनों से मजबूर कर दिये जाते है।इतनी ज्यादा सेंसरशिप है कि स्वततंत्र विचार वालो का दम घुट जाता है।सरकारी नियंत्रण की रणनीति बना कर हर विरोधी विचार को दबा दिया जाता है।प्रमुख अख़बार,पत्र-पत्रिकाए,सूचना-संपर्क,मनोरंजन के तरीके,विचार-पत्रक,न्यूज- संसाधन,प्रकाशन,सीरियल,नाटक,सिनेमा,शिक्षा,उपन्यास,
कहानिया,नाटक यह सब एक ही राजनीतिक दल,से प्रभावित/नियंत्रित होते है।विपक्षी नीतियों/व्यक्तियों को दबाने या उस पर हमला/मर्डर करते हुए उनके बड़े-बड़े, दैनिक पत्रो मे इसे जस्टीफ़ाई किया जाता है।विचारों को बेशर्मी से बढ़ावा दिया।धीरे-धीरे कम्यूनिज़्म आने से पूर्व से ही स्थापित प्रिंट-मीडिया के लिए बहुत ही बुरी स्थिति हो गई।कुछ भी छापने के बाद प्रसारण के लिए वे बदतर अवस्था का सामना करते थे।धीरे-धीरे उनके प्रकाशक बर्बाद होकर खत्म हो गए।पुराने पुस्तके जो लोकतन्त्र की थोड़ी भी बात करती थी वे गायब कर दी गई।कम्युनिष्ट कानूनो ने स्वतंत्र प्रसारकों को अपंग कर दिया।उसके बाद केवल एक नेटवर्क (एचआरटीवी) को ही मंजूरी दी गई।एचआरटीवी के रूप में नया तंत्र उसकी परिभाषा “वामी पार्टी का तंत्र, उसके द्वारा, और उसके विचारो लिए,, चलाया गया।कर्मचारियों को ऊपर से नीचे तक एक मात्र नीति का पालन किया जाता है, जिसमें कोई कहानी नहीं, कोई बिंदु नहीं, कोई सार्वजनिक आंकड़ा नहीं।यह पार्टी की छवि को मजबूत करने के लिए होता है।पार्टी के गुणों को घोषित करता है, पार्टी का एजेंडा जनता मे सेट करता है।संचार के सभी सन्स्थाए उनके  नियंत्रण मे होती है।कमांडिंग प्रिंट और प्रसारण मीडिया सरकार की जेब मे होती है।

  जबकि डेमोक्रेटिक देशो मे वे हर संस्था मे योजना बनाकर घुस गए है।गजब ढंग से सूचना और स्वत्ंत्रता की बात करते है,अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर लंबे-लंबे लेख लिखते है,मानवाधिकार की बात करते है।भारत मे उन्हे नक्सल-वाद का प्रचार करने का हर मौका चाहिए।वे हमारे देश मे दिन भर मीन मेख निकालने मे लगे रहते है,लेकिन कम्युनिष्ट चाइना का हर चीज उन्हे बहुत भाता है।मैं जब कम्युनिष्टों की 'असहमति की स्वतंत्रता का अधिकार,लाइन सुनता,या पढ़ता हूं तब मुझे मजबूर होकर दवा खाना पड़ता है जिससे मेरी हंसी बन्द हो सके।

Courtesy: Pawan Tripathi
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