संस्कृति का मानव सभ्यता से गहरा संबंध है। सभ्यता की आत्मा वहां की संस्कृति है। संस्कृति के खत्म होते ही सभ्यता का भी विनाश हो जाता है। इसका ज्वलंत उदाहरण हमने यूनान, रोम और मिस्र आदि सभ्यताओं के विलुप्त होने में देख सकते हैं। लोग भले ही उन पुरानी सभ्यताओं में रहने वाले लोगों के ही वंशज हों, किन्तु आज वे सांस्कृतिक रूप से बिलकुल अलग हैं। इस प्रकार संस्कृति मानव सभ्यता की आत्मा है। वर्तमान समय के सभी वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियां इन पुरातन सभ्यताओं की ही देन है। विज्ञान, गणित व खगोल के लगभग सभी प्रारंभिक ज्ञान भारतीय, चीनी, यूनानी, एवं सभ्यताओं से लिए गए हैं।
वर्तमान समय में कई समृद्ध सभ्यताओं का वजूद खत्म हो गया है, और उनको समाप्त करने के पीछे संसार के दो सबसे बड़े इब्राहीमी पंथों – इस्लाम और ईसाई – के चरमपंथियों का सक्रिय योगदान है। इन पंथों की ऐसी प्रवृति के पीछे उनकी विस्तारवादी महत्वाकांक्षा है। इस्लाम और ईसाई के अलावा दुनिया के किसी भी पंथ में पूरी दुनिया का धर्मपरिवर्तन कराने का उद्देश्य नहीं है। मुरुभूमि में जन्में इन दो पंथों ने धर्म के नाम पर जीतने लोगों को मारा है, उतने लोग किसी भी विश्व-युद्ध, आकाल या महामारी में नहीं मारे गए। लोगों को मारने के साथ साथ इन्होने वहाँ की संस्कृति का भी समूल नाश कर अपने पंथ को स्थापित किया। जिस प्रकार इस्लाम में गैर-मुस्लिमों को ‘काफिर’ जैसे अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया जाता है, उसी प्रकार ईसाईयों द्वारा सनातन धर्मियों को ‘पैगान’ कह कर नीचा दिखाया जाता है। वास्तव में इन दो पंथो जैसा धर्मांध, असहिष्णु तथा विस्तारवादी विश्व में कोई अन्य पंथ नहीं है।
ईसाई मिशनरियों ने सबसे पहले यूरोप और उत्तरी अफ्रीका के समृद्ध सांस्कृतिक विविधता का विनाश किया जिनमें यूनानी, मिस्री, कैल्टिक, गोथिक, वाइकिंग और रोमा सहित सैकड़ों सभ्यताएं हैं। इन सभी लोगों को क्रूरतम तरीके से खतम किया गया। विद्वानो, दार्शनिकों, और कलाकारों को वीभत्स तरीके से मारा गया। मंदिरों और पुजा-स्थानों को अपमानित करते हुये निर्ममता से तोड़ा गया। यह विडम्बना ही है, कि जिन चमत्कारों के आधार पर यूरोप की लाखों महिलाओं को ईसाईयों ने जिंदा जला दिया, आज उन्ही चमत्कारों के आधार पर ईसाई पादरी को संत घोषित किया जाता है।
यूरोप की औपनिवेशवादी (colonist) ताकतों ने जब विश्व के तमाम हिस्सों में कब्जा करना शुरू किया तो उनके साथ चर्च की बर्बरता और सभ्यताओं का विनाश करने और इस कृत्यों को सही साबित करने का बहाना भी साथ था। दक्षिणी अमेरिका के माया सभ्यता और अटजेक सभ्यताओं का समूल विनाश करने का काम तो ईसाई मिशनरियों ने खुद स्वयं किया और वहाँ के मंदिरों से सोना, चाँदी व बहुमूल्य मूर्तिओं लूटा व मंदिरों को तोड़ दिया। इसी प्रकार मेक्सिको और उत्तरी अमेरिका के मूल इंडियन निवासियों की जनसंख्या और सभ्यता को भी विनष्ट किया गया। सभ्यता का ही बहाना बना कर यूरोपीय ईसाइयों ने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों (aborigines) को तो पूरी तरह से ग़ुलाम बना लिया गया और उनकी एक पूरी पीढ़ी को खतम कर दिया गया।
इसी प्रकार इस्लाम ने मोरक्को से ले कर भारत तक सभी देशों पर आक्रमण कर वहाँ के निवासियों को मुस्लिम बनाया, संपत्तियों को लूटा तथा इन देशों में पहले से फल फूल रही सभ्यता का विनाश लगभग नियमित अंतरालों पर किया। अरब आक्रमणकारी मुस्लिम ने बड़ी बेरहमी से ‘काफिरों’ का कत्लेआम किया। ईरान के पारसियों का खात्मा तो मात्र 15 सालों में कर दिया गया। तक्षशिला स्थित विश्व की प्रथम विश्वविद्यालय को तबाह कर दिया गया। मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा जलाए जाने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय महीनों तक जलता रहा।
बल-प्रयोग, कत्लेआम, लूट-पात और आतंक आदि तरीक़े जब नाकाफ़ी पड़ गए तो इस्लामिक षड्यंत्रकारियों ने काफिरों के खिलाफ अन्य गैर-युद्ध तरीक़े अपनाए। जिनमे से ‘धीम्मी’ और ‘अल-तकिया’ प्रमुख हैं। धीम्मी उन काफिरों को कहा जाता है, जो अपनी जान-माल और धर्म की सुरक्षा के लिए इस्लामिक राज्य को एक विशेष प्रकार का टैक्स देते हैं जिसे ‘जज़िया’ कहा जाता है। धीरे-धीरे धीम्मी लोग इस्लामिक ज़्यादतियों को जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बना लेते हैं। भारत के अधिकांश भाग में हिंदुओं को सदियों तक धीम्मी की तरह रहना पड़ा है। ‘अल-तकिया’ काफिरों के खिलाफ इस्लामिक जिहाद की दूसरी कारगर रणनीति है। यह तरीका छठें इममिया इमाम जफ़र-अल-सादिक़ (765 CE) के समय विकसित हुई। ‘अल-तकिया’ एक तरीक़े से मुस्लिमों के लिए काफिरों के खिलाफ जिहाद के लिए मक्कारी, धोखेबाज़ी और झूठ बोलने का इस्लामिक प्रमाणपत्र है। यह पूरे विश्व को मुस्लिम बनाने का इस्लामिक लक्ष्य का एक कारगर षड्यंत्र है। इसी तकिया नीति के अनुरूप झूठ बोल कर इस्लाम को शान्तिप्रिय धर्म बताया जाता है, काफिरों की लड़कियों को ‘लव जिहाद’ में फसाने के लिए झूठ का सहारा लिया जाता है तथा इस्लाम की सच्चाई को छुपा कर सूफी का अस्थायी चोला भी पहना जाता है।
ईसाई और मुस्लिम पंथों की विश्व विजयी महत्वाकांक्षा ने इनके आपसी संघर्ष को भी जन्म दिया है। विश्व के सैकड़ों संस्कृतियों का विनाश करने वाले ये प्रमुख पंथ आपस में भी एक दूसरे के खून के प्यासे हैं। अफ्रीका के कई देश मुस्लिम-ईसाई संघर्ष की आग में जल कर बर्बाद हो गए उनमें से नाइजीरिया, सुडान आदि प्रमुख है। इन पंथों के विस्तारवादी खूनी टकराव को सैमुअल हंटिंगटन ने अपनी पुस्तक ‘सभ्यताओं का टकराव’ में विस्तार से लिखा है। वास्तव में यह टकराव इन दो पंथों के बीच का ही है, जिसमें छोटी-छोटी किन्तु समृद्ध सभ्यताओं का नरसंहार हो रहा है।
भारत पर इस्लामी आक्रमण
सांस्कृतिक नरसंहार का सबसे बड़ा शिकार भारतवर्ष रहा है। सन 711 CE में सिंध में बिन-कासिम के आक्रमण, लूटपाट, कत्लेआम और हिन्दू मंदिरों को गिराने से मुस्लिमों का आक्रमण प्रारम्भ हुआ। फिर तो अनेकों इस्लामिक आक्रमण हुये, सबका उद्देश्य काफिर हिंदुओं को लूटना, मंदिरों को तोड़ना, स्त्रियों और बच्चों को दास बना कर ले जाना व बचे लोगों को मुस्लिम बनाना ही था।
मुस्लिमों द्वारा मारे गए हिंदुओं की संख्या के बारे में स्वामी विवेकानंद का एक व्याख्यान जो उन्होने अप्रैल 1899 में दिया था, का संदर्भ लेना उचित होगा। स्वामी जी ने कहा था, “सबसे पुराने मुस्लिम इतिहासकार फ़ेरिश्ता के अनुसार जब पहली बार मुसलमान भारत आए तब यहाँ 60 करोड़ हिन्दू थे, अब हम मात्र 20 करोड़ ही है।“ अर्थात, करोडों हिंदुओं को मुस्लिम शासकों और आक्रमणकारियों ने मार डाला। सन 1907 में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु के बाद अविभाजित भारत के दंगों, मुस्लिम लीग के डाइरैक्ट एक्शन डे, नोआखाली, और भारत के विभाजन के दौरान लगभग 8-10 लाख हिंदुओं और सिखों का कत्लेआम कर दिया गया। किन्तु स्वतंत्र भारत के इतिहास की पुस्तकों में से इन तथ्यों को जान बुझ कर निकाल दिया गया है। आज की पीढ़ी के बच्चों को इन तथ्यों का जरा भी ज्ञान नहीं है।
आधुनिक इतिहास में ही 1947 के पश्चात मुस्लिमों ने पूर्वी बंगाल और पश्चिमी पंजाब के सभी हिंदुओं का समूल उन्मूलन कर दिया, प्राचीन हिन्दू मंदिरों और धरोहरों का विध्वंश कर दिया गया। आज भी बचे खुचे पाकिस्तानी और बंगलादेशी हिन्दू दहशत में जीते हैं। हर साल 300-400 हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर जबरन धर्म परिवर्तन करा कर मुस्लिमों से शादी करा दी जाती है। पॅलेस्टीन की गाज़ा पट्टी की छोटी-छोटी छड़पों पर भारत में विरोध मार्च निकालने वाले तथाकथित सेकुलरों ने पाकिस्तान में हिंदुओं के सामूहिक नरसंहार, बलात्कार और सांस्कृतिक विनाश पर आज तक एक शब्द भी नहीं बोला है। वैसे ही जैसे सिरिया के यजिडी और अस्सरियन लोगों का इस्लामिक स्टेट द्वारा नरसंहार किए जाने पर भारत में कोई भी मार्च या सामूहिक निंदा नहीं की गयी।
जिस मुग़ल शासक को सन 1947 से अकबर महान कह कर स्वतंत्र भारत के स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है, वह कहीं से भी अपने पूर्व के इस्लामिक धर्मान्ध शासकों से कम न था। उसने भी हिंदुओं पर अनेकों अत्याचार किए। जिसे जान बूझ कर छुपा दिया गया। पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू को हराने के बाद अकबर ने उसका कटा हुआ सिर काबुल भिजवा दिया और बाकी शरीर को दिल्ली के पुराना किले के बाहर लटकाया गया| इसके उपरांत हेमू के सिपाहियों के कटे हुए सरों से एक ‘विजय स्तंभ’ बनवाया गया। चित्तौड़गढ़ पर विजय पाने के बाद अकबर ने 30,000 निहत्थे हिंदुओं को मौत के घाट उतरवा दिया। मुस्लिम इतिहासकार अब्द-अल-कादिर के अनुसार 1 रजब 990 हिजरी (सन 1582) को अकबर की सेनाओं ने कंगड़ा के पास स्थित नगरकोट में 200 गायों की बलि दी, अनेकों हिन्दुओं का कत्लेआम किया व वहाँ के सबसे बड़े मंदिर को तोड़ डाला।
“इस्लाम के सबसे बड़े नाज़िम को पता चला है की थत्ता, मुल्तान और विशेष रूप से बनारस में ब्राह्मण काफिरों द्वारा झूठी किताबों को उनके द्वारा स्थापित झूठे स्कूलों में पढ़ाया जाता है। शहँशाह औरंगजेब इस्लाम कायम करने को कटिबद्ध हैं और इसी क्रम में सभी रियासतों को यह हुक्म दिया जाता है कि काफिरों के स्कूलों और मंदिरों को गिरा दिया जाये, और काफिरों की तालिम और उनके मजहब को आम-ओ-खास से फौरी तौर पर हटा दिया जाए।“
चूंकि भारत में कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं थी और छोटे राज्यों के पास अनेकों सेनाएँ थी, इस वजह से भारत को ईरान की तरह एक झटके में जीत कर इस्लामिक राष्ट्र बना देना संभव न हो सका। हिन्दू धर्म भारत के लोगों की जीवनशैली बन चुकी थी, जिसे बदलना आसान न था। तमाम अत्याचारों, जज़िया करों, यातनाओं के बावजूद भारत के हिंदुओं का धर्म-परिवर्तन उस प्रकार नहीं हो रहा था जैसा की अन्य देशों में हुआ।
अतः भारत के तत्कालीन मुस्लिम शासकों ने अल-तकिया रणनीति के तहत सूफियों का सहारा लिया। लगभग सभी प्रमुख हिन्दू तीर्थस्थानों के आस पास इन सूफी फकीरों के मज़ार बनाए गए। पुष्कर, त्रयंबेश्वर
साभार: https://m.facebook.com/1462945363727299/photos/a.1463037183718117.1073741828.1462945363727299/1470948999593602/?type=3
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.