Wednesday, 28 June 2017

Osho on Christianity

मैंने पोप को चुनौती दी है, मैं वैटिकन में आकर उनके ही लोगों के बीच उनसे विवाद करने के लिए तैयार हूं। आप जीसस के विषय में एक भी बात सिद्ध नहीं कर सकते, और आपका सारा धर्म अंधविश्वास पर खड़ा है। जीसस लोगों को स्पर्श करते हैं और वे रोग मुक्त हो जाते हैं। वे मुर्दों को जीवित कर देते हैं। स्पर्श से ही कोई लोगों को रोग मुक्त किया, पानी पर चले, क्या यह सबसे बड़े समाचार का विषय नहीं होगा। न, लेकिन उस समय के यहूदी साहित्य में उनके नाम का भी उल्लेख नहीं मिलता है। ईसाइयों की बाइबिल के अलावा किसी भी शास्त्र में उनके नाम का उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसा आदमी जो पानी को शराब में बदल देता है, उसके नाम का उल्लेख न हो यद्यपि पानी को शराब बनाना कोई चमत्कार नहीं है, यह एक जुर्म है।

कृष्णमूर्ति या महेश योगी या योगानंद या विवेकानंद, इनमें से एक ने भी इन दुखती हुई रगों पर हाथ नहीं रखा। इसलिए उनकी निंदा नहीं हुई ।और ईसाइयत कुल जमा इतनी ही है।
हमने धर्म की ऊंचाइयों को जाना है। हम यह स्वीकार नहीं करते कि जीसस को धार्मिक होने के लिए पानी पर चलना होगा। अन्यथा गौतम बुद्ध का क्या होगा? वे तो कभी पानी पर नहीं चले। कृष्ण का क्या होगा? वे कभी पानी पर नहीं चले। इन लोगों ने मृत लोगों को कभी पुनर्जीवित नहीं किया।

यदि जीसस धर्म की कसौटी हैं तो सभी धर्म निरर्थक हैं। लेकिन जीसस कसौटी नहीं हैं। और उनका दावा है कि केवल वह परमात्मा के इकलौते पुत्र हैं। जहां तक मेरा संबंध है, मैंने हमेशा पश्चिमी लोगों को यह कहा कि जीसस सनकी हैं। स्वाभाविक है कि उन्हें बुरा लगे। परमात्मा केवल एक ही पुत्र पैदा क्यों करेगा? अनंत काल से वह प्रयास करता रहा है और वह केवल एक ही पुत्र पैदा कर सका। और यहां भारत में भिखारी हर वर्ष और बड़े-बड़े परमात्मा पैदा किए चले जा रहा हैं।
और जिस ढंग से ईश्वर ने अपने पुत्र को रचा, वह नैतिक नहीं है। यह बिलकुल अनैतिक है। तुम जरा किसी दूसरे व्यक्ति की पत्नी को गर्भवती करने का प्रयास करो तो तुम्हें तुरंत पता चल जाएगा कि यह नैतिकता है या अनैतिकता। ईसाइयों की त्रिमूर्ति में स्त्री के लिए कोई स्थान नहीं है। वहां परमात्मा है पिता के रूप में, फिर परमात्मा है पुत्र के रूप में, और होली घोस्ट के रूप में। यह होली घोस्ट कौन है? स्त्री या पुरुष? ऐसा लगता है कि वह दोनों ढंग से कार्य करता है। संभवतः उभयलिंगी।

चीजों को वैसा ही देखना, जैसी कि वे हैं, एक अलग ही बात है। मेरा किसी से भी बात को मनवाने में कोई रस नहीं है। मैं सिर्फ लोगों तक सत्य को पहुंचा देना चाहता हूं और सत्य पीड़ादायक है। झूठ बहुत ही मीठा होता है उसे और भी मीठा बनाया जा सकता है, क्योंकि झूठ गड़ने वाले तुम खुद हो।

वे तीन ज्ञानी कौन थे, जो पूरब से जेरूसलम के लिए जीसस का जन्‍म  उत्सव मनाने गए थे। उनके नामों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है। क्योंकि आज भी कोई ज्ञानवान पुरुष ईसाइयत को धर्म नहीं स्वीकार करेगा। मैंने एक प्रसिद्ध जापानी फकीर रिंझाई के विषय में सुना है। ईसाइयों का एक बड़ा पादरी रिंझाई को ईसाई बनाने के लिए बाइबिल लेकर उसके पास गया। उसने "सरमन आन द माउंट' अध्याय खोला। पूरी बाइबिल में यही एक मात्र सुंदर अध्याय है। अन्यथा पूरी दुनिया में बाइबिल सर्वाधिक अश्लील पुस्तक है। अश्लीलता पूरे ५०० पृष्ठ। और इसे पवित्र बाइबिल कहा जाता है। फिर अपवित्र क्या है उसने "सरमन आन द माउंट' अध्याय खोला और दो ही पंक्तियां पढ़ीं थीं कि रिंझाई ने कहा, रुको! भविष्य में कभी यह व्यक्ति बुद्ध बनेगा, लेकिन अभी नहीं।

क्योंकि पहली दो पंक्तियां थीं: धन्य हैं वे जो गरीब हैं, क्योंकि वे ही प्रभु के राज्य के अधिकारी होंगे। और दूसरी पंक्ति थी कि सुई के छेद से होकर एक ऊंट गुजर सकता है, लेकिन एक धनी व्यक्ति स्वर्ग के द्वार में प्रवेश नहीं कर सकता है। इसी कथन पर रिंझाई ने का कि रुक जाओ।

यदि गरीबी धन्यता है तो फिर हमें गरीबी को और फैलाना चाहिए। फिर दुनिया में जितने अधिक गरीब होंगे, दुनिया उतनी ही अधिक धन्य होगी। फिर अधिक लोग स्वर्ग में होंगे। यदि धनवान होना इतना बड़ा पाप है कि सुई के छेद से होकर ऊंट निकल सकता है, लेकिन धनवान व्यक्ति स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकता है तब तो सभी धनवानों को अपनी संपत्ति गरीबों में बांट देनी चाहिए, और गरीब और भिखारी बन जाना चाहिए।

यह धर्म नहीं है। यह शुद्ध राजनीति है। यह सिर्फ गरीबों के लिए एक सांत्वना है कि तुम चिंता न करो, यह कुछ वर्षों की ही बात है, और तुम प्रभु की सन्निधि में होगे। और यह दूसरी ओर क्रांति को रोकने का प्रयास है कि धनवानों पर क्रोध न करो, वे शाश्वत नरक में यातना भोगने ही वाले हैं।

यह शब्द याद रखो शाश्वत नरक। विश्व का कोई भी धर्म शाश्वत नरक में विश्वास नहीं करता है। तुम एक जीवन में कितने पाप कर सकते हो, ईसाइयत केवल एक ही जन्म में विश्वास करती है। आखिर तुम एक ही जीवनकाल में कितने पाप कर सकते हो? जिस क्षण तुम्हारा जन्म हुआ था, उस क्षण से लेकर अंतिम श्वास तक यदि तुम एक के बाद एक पाप ही करते ही चले जाओ, न खाओ, कुछ भी न करो, केवल पाप ही करते चले जाओ, तो भी शाश्वत दंड उचित निर्णय नहीं होगा।

☆ फिर अमरित की बूंद पडी, प्रवचन~१, ओशो ☆

Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=759262887580352&id=100004899430216

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