#वेद_vs_विज्ञान भाग -15
#गति का नियम
( Law of motions )
#परिचय -
आधुनिक विज्ञान न्यूटन को इसका अविष्कारक मानता है ।न्यूटन के गति नियम तीन भौतिक नियम हैं जो चिरसम्मत यांत्रिकी के आधार हैं। ये नियम किसी वस्तु पर लगने वाले बल और उससे उत्पन्न उस वस्तु की गति के बीच सम्बन्ध बताते हैं। इन्हें तीन सदियों में अनेक प्रकार से व्यक्त किया गया है।
#न्यूटन के गति का सिद्धांत -
न्यूटन के गति के तीनों नियम, पारम्परिक रूप से, संक्षेप में निम्नलिखित हैं -
#प्रथम नियम: प्रत्येक पिंड तब तक अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है।
#द्वितीय नियम: किसी भी पिंड की संवेग परिवर्तन की दर लगाये गये बल के समानुपाती होती है और उसकी (संवेग परिवर्तन की) दिशा वही होती है जो बल की होती है।
तृतीय नियम: प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।
सबसे पहले न्यूटन ने इन्हे अपने ग्रन्थ फिलासफी नेचुरालिस प्रिंसिपिआ मैथेमेटिका (सन १६८७) मे संकलित किया था। न्यूटन ने अनेक स्थानों पर भौतिक वस्तुओं की गति से सम्बन्धित समस्याओं की व्याख्या में इनका प्रयोग किया था। अपने ग्रन्थ के #तृतीय भाग में न्यूटन ने दर्शाया कि गति के ये तीनों नियम और उनके सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम सम्मिलित रूप से केप्लर के आकाशीय पिण्डों की गति से सम्बन्धित नियम की व्याख्या करने में समर्थ हैं।
#वेदों में इसका प्रचुर ज्ञान -
आचार्य कणाद ने हजारो सालो पहले ही गति के नियमों को स्थापित कर दिया था।ऐसे में स्पष्ट है कि गति के सिद्धांत के जनक न्यूटन नहीं बल्कि कणाद थे।
वैशेषिक सूत्र में दसवें चैप्टर में 373 श्लोक हैं, जिसमें से निम्नलिखित श्लोक गति के नियम को समझाते हैं। उदाहरण के तौर पर गति के पहले नियम को वैशेषिक सूत्र के पहले चैप्टर के पहले भाग में 20वें श्लोक में
#प्रथम नियम -
संयोगविभगावेगानं कर्म समानम,
न द्रव्यानां कर्म, द्रव्यश्रय्यगुणावां संयोगविभागेस्वकारणमनपेक्ष इति गुणलक्षणम।
#दूसरा गति के नियम में -
नोदनविससभावांनोर्ध्वं न त्थ्र्यिगगमनं, प्रयत्नविशेषातनोदनविशेष : नोदन विशेषात उदासन विशेष
इस आधार पर किया दावा
तीसरा नियम कार्यविरोधि कर्म दिया है। इन सभी श्लोकों का अर्थ हूबहू वही है जो न्यूटन का सिद्धांत कहता है। उदाहरण के तौर पर आचार्य कणाद और न्यूटन के सिद्धांत की समानता इस प्रकार समझी जा सकती है।
#न्यूटन का गति का तीसरा सिद्धांत : प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।
#कणाद का गति का तीसरा सिद्धांत : कार्य विरोधि कर्म यानी कार्य (एक्शन), विरोधी (अपोजिट), एक्शन (यहां इसका आशय रिएक्शन है)
वैशेषिक दर्शन में इन्होने गति के लिए कर्म शब्द प्रयुक्त किया है । इसके पांच प्रकार हैं यथा :
1 उत्क्षेपण (upward motion)
2 अवक्षेपण )downward motion)
3 आकुञ्चन (Motion due to the release of tensile stress)
4 प्रसारण (Shearing motion)
5 गमन )General Type of motion)
विभिन्न कर्म या motion को उसके कारण के आधार पर जानने का विश्लेषण वैशेषिक में किया है।
(१) नोदन के कारण-लगातार दबाव
(२) प्रयत्न के कारण- जैसे हाथ हिलाना
(३) गुरुत्व के कारण-कोई वस्तु नीचे गिरती है
(४) द्रवत्व के कारण-सूक्ष्म कणों के प्रवाह से
#महर्षि लिखते हैं
‘वेगो पञ्चसु द्रव्येषु निमित्त-विशेषापेक्षात् कर्मणो जायते नियतदिक् क्रिया प्रबंध हेतु: स्पर्शवद् द्रव्यसंयोग विशेष विरोधी क्वचित् कारण गुण पूर्ण क्रमेणोत्पद्यते।‘
अर्थात् वेग या मोशन पांचों द्रव्यों (ठोस, तरल, गैसीय) पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है।
#विशेष -
प्रशस्तिपाद भाष्य को तीन भागों में विभाजित करें तो न्यूटन के गति सम्बंधी नियमों से इसकी समानता ध्यान आती है।
1. कर्मणो जायते निमित्त विशेषात वेग:|
२. वेग निमित्तापेक्षात् कर्मणो जायते नियत्दिक् क्रिया प्रबंध हेतु
३ वेग: संयोगविशेषाविरोधी
वैशेषिक सूत्र में गति के साथ साथ ब्रह्माण्ड , समय तथा अणु /परमाणु का ज्ञान भी है जिसे विदेशी भी चुपके चुपके पढ़ते हैँ ।
http://www.ece.lsu.edu/kak/roopa51.pdf
Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=273314849801594&id=100013692425716
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