#वेद_vs_विज्ञान भाग - 18
#प्रकाश का वेग
(Velocity of light)
#परिचय -
प्रकाश का वेग (Velocity of light) (इसे प्राय: c से निरूपित किया जाता है) एक भौतिक नियतांक है। निर्वात में इसका मान ठीक-ठीक 299,792,458 मीटर प्रति सेकेण्ड है जिसे प्राय: 3 लाख किमी/से. कह दिया जाता है। वस्तुत: सभी विद्युतचुम्बकीय तरंगों (जैसे रेडियो तरंगें, गामा किरणे, प्रकाश आदि) का वेग इतना ही होता है। चाहे प्रेक्षक का 'फ्रेम ऑफ रिफरेंस' कुछ भी हो या प्रकाश-उत्सर्जक स्रोत किसी भी वेग से किधर भी गति कर रहा हो, हर प्रेक्षक को प्रकाश का यही वेग मिलेगा। कोई भी वस्तु प्रकाश के वेग से अधिक वेग पर गति नहीं कर सकता।
प्रकाश के वेग का ठीक-ठाक मान निकालना एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि यह चुंबकीय एवं विद्युतीय घटनाओं का एक अभिन्न अंग है। जितने भी ऊर्जा के संचार के कार्य हैं, उनमें इसका उपयोग होता है।
#आधुनिक विज्ञान का मत और इतिहास -
आज के लगभग 300 वर्ष पहले यह गलत धारणा थी कि प्रकाश का वेग अनंत होता है, अर्थात् उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचने में कुछ भी समय नहीं लगता। सर्वप्रथम सितंबर, सन् 1676 में रोमर ने इस गलत धारणा को दूर कर यह बताया कि प्रकाश का वेग बहुत अधिक होने के बावजूद 'परिमित' होता है। बृहस्पति के उपग्रहों के ग्रहणों के अंतर काल में पृथ्वी से संबंधित दूरी के बदलने से होनेवाले परिवर्तन का अध्ययन कर, रोमर ने प्रकाश को पृथ्वी की कक्षा के व्यास को पार करने में लगनेवाले काल को निकाला। पृथ्वी की कक्षा के व्यास को मालूम कर, उसने प्रकाशवेग का मान मालूम किया, जो 2,14,300 किलोमीटर प्रति सेकंड के बराबर ज्ञात हुआ। उन दिनों की विज्ञान की प्रगति को देखते हुए यह अत्यंत प्रशंसापूर्ण कार्य था।
#वेदों में इसका सटीक ज्ञान -
ऋग्वेद के प्रथम मंडल में दो ऋचाएं है-
मनो न योऽध्वन: सद्य एत्येक: सत्रा सूरो वस्व ईशे अर्थात् मन की तरह शीघ्रगामी जो सूर्य स्वर्गीय पथ पर अकेले जाते हैं। ( 1-71-9)
("तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिकृदसि सूर्य विश्वमाभासिरोचनम्") अर्थात् हे सूर्य, तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो। ( 1.50.9)
योजनानां सहस्रे द्वे द्वेशते द्वे च योजने।
एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते।।
अर्थात् आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है।
इसमें 1 योजन- 9 मील 160 गज
अर्थात् 1 योजन- 9.11 मील
1 दिन रात में- 810000 अर्ध निषेष
अत: 1 सेकेंड में - 9.41 अर्ध निमेष
इस प्रकार 2202 x 9.11- 20060.22 मील प्रति अर्ध निमेष तथा 20060.22 x 9.41- 188766.67 मील प्रति सेकण्ड। आधुनिक विज्ञान को मान्य प्रकाश गति के यह अत्यधिक निकट है।
#विशेष--
प्रख्यात खगोलज्ञ जॉन प्लेफेयर का एक लेख "Remarks on the Astronomy of the brahmins" (1790 से प्रकाशित) दिया है। यह लेख सिद्ध करता है कि 6000 से अधिक वर्ष पूर्व में भारत में खगोल का ज्ञान था और यहां की गणनाएं दुनिया में प्रयुक्त होती थीं।
साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=274549769678102&id=100013692425716
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