Wednesday 28 June 2017

वेद_vs_विज्ञान भाग -19, विद्युतलेपन

#वेद_vs_विज्ञान भाग -19
                          #विद्युतलेपन
                     (Electroplating)
#परिचय -
विद्युत धारा द्वारा, धातुओं पर लेपन करने की विधि को विद्युतलेपन (Electroplating) कहते हैं। बहुधा लोहे की वस्तुओं को संक्षरण से बचाने तथा चमक के लिए, उन पर ताँबे, निकल अथवा क्रोमियम का लेपन किया जाता है। आधार धातु पर लेपन करने के बाद, लेपन की जानेवाली धातु के बाहरी गुण दिखाई देते हैं। इससे वस्तु का बाहरी रूप रंग निखर जाता है तथा साथ ही वस्तु संक्षारण से भी बचती है। विद्युत्लेपन द्वारा लेपित की जानेवाली धातु, आधार धातु से अच्छी प्रकार संबद्ध हो जाती है और लेपन प्राय: स्थायी रूप में किया जा सकता है।

#आधुनिक विज्ञान का मत और इतिहास -
सर हंफ्री डेवी (सन्‌ 1778-1829) ने सर्वप्रथम पिघले लवणों के विद्युत्‌-अपघटन से क्षारीय धातुओं को प्राप्त किया। माइकल फैराडे (सन्‌ 1791-1867), जे.डब्ल्यू. हिटार्फ (सन्‌ 1824-1914), स्वति आरहेनियस, (सन्‌ 1859-1927) और सी.एम. हाल (सन्‌ 1863-1914) आदि वैज्ञानिकों के सहयोग ने विद्युत्‌-धातुकर्म को प्रगतिशील बनाया और वैज्ञानिक क्षेत्र में आगे बढ़ाया।
लेपन में एक और व्यावहारिक कठिनाई है। यदि किसी सक्रिय धातु को ऐसे धातु के यौगिक के विलयन में डाल दिया जाए जिसमें आयन प्रचुर मात्रा में हों, (जैसे लोहे को ताम्र सल्फ़ेट के बाथ में) तो पृथक्करण क्रिया होने लगती है। ऐसे लेपन टिकाऊ नहीं होते। ताँबे या पीतल पर चाँदी-सोने का लेपन करने में भी यही कठिनाई होती है इनमें प्रयोग होनेवाले रासायनिक विलयनों का संघटन बहुत संतुलित रखा जाता है।
लेपन वाथ में, सामान्यत:, एक और यौगिक, जिसे योजित कारक (Additive agent) कहते हैं, मिलाया जाता है। गोंद, जिलेटिन, ऐल्ब्यूमिन आदि सामान्य प्रयोग में आनेवाले योजित कारक हैं।

#वैदिक शास्त्र और इसका ज्ञान -
अगस्त्य संहिता में विद्युत्‌ का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पालिश चढ़ाने की विधि निकाली। अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।

कृत्रिमस्वर्णरजतलेप: सत्कृतिरुच्यते। -शुक्र नीति
यवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥
आच्छादयति तत्ताम्रं
स्वर्णेन रजतेन वा।
सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं
शातकुंभमिति स्मृतम्‌॥ ५ (अगस्त्य संहिता)

अर्थात्‌-कृत्रिम स्वर्ण अथवा रजत के लेप को सत्कृति कहा जाता है। लोहे के पात्र में सुशक्त जल अर्थात तेजाब का घोल इसका सानिध्य पाते ही यवक्षार (सोने या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से ढंक लेता है। स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र को शातकुंभ अथवा स्वर्ण कहा जाता है।

#विशेष -
मजहब और सियासत के मेल से इतिहास विकृत होता है। पश्चिम में सियासत के साथ मजहब का गठजोड़ 1700 साल पहले शुरू हुआ। इसका पश्चिम के इतिहास पर क्या असर हुआ? इसकी एक झलक दिखती है विज्ञान के इतिहास लेखन में। पश्चिमी इतिहास हमें बतलाता है कि विज्ञान है तो सार्वभौमिक, मगर यह जन्मा सिर्फ पश्चिम में : जहाँ वह ग्रीक लोगों के बीच शुरू हुआ और फिर कोपर्निकस और न्यूटन की क्रांतियों के साथ यूरोप में फैला. चर्च और सियासत के मेल से बना यह इतिहास पूर्वाग्रहों से भरा है।

साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=275027826296963&id=100013692425716

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