#वेद_vs_विज्ञान भाग - 21
#नौइंजीनियरी
Naval engineering
#परिचय -
नौइंजीनियरी (Naval engineering) प्रौद्योगिकी की वह शाखा है जिसमें समुद्री जहाजों एवं अन्य मशीनों के डिजाइन एवं निर्माण में विशिष्टि (स्पेसलाइजेशन) प्रदान की जाती है। इसके अलावा किसी जलयान पर नियुक्त उन व्यक्तियों (क्रिउ मेम्बर्स) को भी नौइंजीनियर (नेवल इंजीनियर) कहा जाता है जो उस जहाज को चलाने एवं रखरखाव के लिये जिम्मेदार होते हैं। इसके अलावा नौइंजीनियरों को जहाज का सीवेज, प्रकाश व्यवस्था, वातानुकूलन एवं जलप्रदाय व्यवस्था भी देखनी पड़ती है।
#आधुनिक विज्ञान - 1801 ई. में साइमिंग्टन ने शारलॉट डंडैस (Charlotte Dundas) नामक नौका बनाकर उसे फोर्थ (Forth) और क्लाइड (Clyde) नहर में चलाया, जिसका पैडलचक्र वॉट के बनाए द्विक्रियात्मक इंजन से चलता था। यही सर्वप्रथम प्रयोग है, जो सफल समझा जाता है।
1807 ई. में न्यूयार्क के राबर्ट फुल्टन (Robert Fulton) ने क्लेरमाँ (Clermont) नामक नौका बनाई, जिसकी लंबाई 133 फुट, चौड़ाई 18 फुट और गहराई 9 फुट थी। इस पर बोल्टन और वॉट (Boulton and Watt) का बनाया एक द्विक्रियात्मक इंजन लगाया था, जिसके सिलिंडर का व्यास दो फुट और स्ट्रोक चार फुट था। पैडलचक्र के चलने पर नौका की गति पाँच मील प्रति घंटा हो जाती थी। यह प्रयोग भी सफल रहा।
#वैदिक साहित्य में इसका उल्लेख -
बाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में ऐसी बड़ी नावों का उल्लेख आता है जिसमें सैकड़ों योद्धा सवार रहते थे।
नावां शतानां पञ्चानां
कैवर्तानां शतं शतम।
सन्नद्धानां तथा यूनान्तिष्ठक्त्वत्यभ्यचोदयत्॥
अर्थात्-सैकड़ों सन्नद्ध जवानों से भरी पांच सौ नावों को सैकड़ों धीवर प्रेरित करते हैं।
इसी प्रकार महाभारत में यंत्र-चालित नाव का वर्णन मिलता है।
सर्ववातसहां नावं यंत्रयुक्तां पताकिनीम्।
अर्थात्-यंत्र पताका युक्त नाव, जो सभी प्रकार की हवाओं को सहने वाली है।
कौटिलीय अर्थशास्त्र में राज्य की ओर से नावों के पूरे प्रबंध के संदर्भ में जानकारी मिलती है। ५वीं सदी में हुए वारहमिहिर कृत ‘बृहत् संहिता‘ तथा ११वीं सदी के राजा भोज कृत ‘युक्ति कल्पतरु‘ में जहाज निर्माण पर प्रकाश डाला गया है।
नौका विशेषज्ञ भोज चेतावनी देते हैं कि नौका में लोहे का प्रयोग न किया जाए, क्योंकि संभव है समुद्री चट्टानों में कहीं चुम्बकीय शक्ति हो। तब वह उसे अपनी ओर खींचेगी, जिससे जहाज को खतरा हो सकता है।
नौकाओं के प्रकार- ‘युक्ति कल्पतरु‘ ग्रंथ में नौका शास्त्र का विस्तार से वर्णन है। नौकाओं के प्रकार, उनका आकार, नाम आदि का विश्लेषण किया गया है।
(१) सामान्य-वे नौकाएं, जो साधारण नदियों में चल सकें।
(२) विशेष-जिनके द्वारा समुद्र यात्रा की जा सके।
उत्कृष्ट निर्माण-कल्याण (हिन्दू संस्कृति अंक-१९५०) में नौका की सजावट का सुंदर वर्णन आता है। चार श्रृंग (मस्तूल) वाली नौका सफेद, तीन श्रृग वाली लाल, दो श्रृंग वाली पीली तथा एक श्रृंग वाली को नीला रंगना चाहिए।
नौका मुख-नौका की आगे की आकृति यानी नौका का मुख सिंह, महिष, सर्प, हाथी, व्याघ्र, पक्षी, मेढ़क आदि विविध आकृतियों के आधार पर बनाने का वर्णन है।
#विशेष -
हमने बहोत बार ये पढ़ा होगा कि भारत की खोज वास्कोडिगामा ने की लेकिन ऐसा नही है लंदन म्युजियम में वास्कोडिगामा की एक डायरी आज भी रखी है उस डायरी मे वास्कोडिगामा ने वह भारत कैसे आया, इसका वर्णन किया है। वह लिखता है, जब उसका जहाज अफ्रीका में जंजीबार के निकट आया तो मेरे से तीन गुना बड़ा जहाज मैंने देखा। तब एक अफ्र्ीकन दुभाषिया लेकर वह उस जहाज के मालिक से मिलने गया। जहाज का मालिक चंदन नाम का एक गुजराती व्यापारी था, जो भारतवर्ष से चीड़ व सागवान की लकड़ी तथा मसाले लेकर वहां गया था और उसके बदले में हीरे लेकर वह कोचीन के बंदरगाह आकार व्यापार करता था। वास्कोडिगामा जब उससे मिलने पहुंचा तब वह चंदन नाम का व्यापारी सामान्य वेष में एक स्थान पर बैठा था। उस व्यापारी ने वास्कोडिगामा से पूछा, कहां जा रहे हो? वास्कोडिगामा ने कहा- हिन्दुस्थान घूमने जा रहा हूं। तो व्यापारी ने कहा मैं कल जा रहा हूं, मेरे पीछे-पीछे आ जाओ।‘ इस प्रकार उस व्यापारी के जहाज का अनुगमन करते हुए वास्कोडिगामा भारत पहुंचा। स्वतंत्र देश में यह यथार्थ नयी पीढ़ी को बताया जाना चाहिए था परन्तु दुर्भाग्य से यह नहीं हुआ। (उदयन इंदुरकर-दृष्टकला साधक- पृ. ३२)
साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=277636739369405&id=100013692425716
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