*" गुण-कर्म ब्राह्मणत्व "* 🌸🌼🌹🌸🌼🌹🌸🌹
इतरा शूद्रकुलोद्भुता में उत्पन्न हुई थी पर उसे महर्षि शाल्विन की धर्मपत्नी बनने का सौभाग्य मिल गया, उसके एक पुत्र भी था। एक बार राजा ने बड़ा यज्ञ आयोजित किया। उसमें सभी ब्राह्मणों और ब्रह्मकुमारों का सत्कार हुआ। सभी को दक्षिणा मिली, किंतु इतरा के पुत्र को शूद्र कहकर उस सम्मान से वंचित कर दिया गया। शाल्विन बहुत दुःखी हुए। इतरा को भी चोट लगी, बच्चा भी उदास था। इस असमंजस ने एक नया प्रकाश दिया। तीनों ने मिलकर निश्चय किया कि वे जन्म से बढ़कर कर्म की महत्ता सिद्ध करेंगे। शिक्षण का नया दौर आरंभ हुआ।इतरा पुत्र ऐतरेय को धर्मशास्त्रों की शिक्षा में प्रवीण पारंगत कराया गया। देखते देखते वह अपनी प्रतिभा का अद्भुत परिचय देने लगा।
एक बार वेद ऋचाओं के अर्थ की प्रतिस्पर्द्धा हुई। दूर देश के विद्वान् और राजा एकत्रित हुए । प्रतियोगिता में सभी पांडुलिपियां जाँची गई। सर्वश्रेष्ठ ऐतरेय घोषित किए गए। इतरा शूद्र थी। उनके पुत्र ने, पिता के नाम पर नहीं, माता की कुल परंपरा प्रकट करने के लिए, अपना नाम ऐतरेय घोषित किया। ऐतरेय ब्राह्मण वेद ऋचाओं को प्रकट करने वाला अद्भुत ग्रंथ है, उसका सृजेता जन्म से शूद्र होते हुए भी , गुण-कर्म-स्वभाव से ब्राह्मण बना।
🌹🌸🌺🌹🌸🌺🌸🌹 सन्दर्भ ग्रन्थ :- ऐतरेय आरण्यक २.१.८ व ३.७,ऐतरेय ब्राह्मण ३,स्कन्द पुराण १.१,२,४२,छान्दोग्य उपनिषद् ३.१६.७,आश्वालयन श्रौतसूत्र १.३,आश्वालयन गृहसूत्र ३.४.४
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