जय श्री राम गुरुजनों को सादर प्रणाम ©Copyright हिन्दू शेरनी मनीषा सिंह की कलम से भारतवर्ष में एक ऐसा योद्धा जन्म लिए थे जिनके बारे में सिर्फ एक पन्ना लिखा गया और वो पन्ना हैं बप्पा रावल ने अरबों को भारत से खदेड़ा था बस इतना ही पर यह नही लिखा गया बप्पा रावल की साम्राज्य कहा से कहा तक हुआ करती थी बप्पा रावल की सही इतिहास कोई नही लिख पाया नाथ प्रशस्ति में मिलता हैं गुहिलशासक बप्पा रावल के कीर्ति यश वर्णन और आंध्र के इतिहासकार पंडित नित्यानंदा शास्त्री जी के लिखे किताब एवं पुराणों में वर्णन मिलते हैं जिसे खोज कर हमें बप्पा रावल जैसे योद्धाओ का इतिहास मिला जिनके सामने बाहुबली, महावीर जैसे शब्द भी कम पड़ेंगे इन्होने अरबों ना केवल भारतवर्ष से खदेड़ा अपितु अरबो को अरबी खलीफा , सुल्तानो को उनके देश , साम्राज्य से भी खदेड़ दिया था ।
महाराज कालभोज का जन्म गुहिल वंश में विक्रमी सम्वत् 770 तदनुसार ई सन् 713 में नागदा की गुफा में पुष्पादेवी के गर्भ से हुआ था । महाराज कालभोज को सुशर्मा रावल नामके ब्राह्मण ने पाला था इसीलिए इनके नामके साथ रावल उपनाम लगता है , नागदा की पहाड़ियों में ही इनपर योगी हारीत ऋषि की कृपा हुई थी , उन्होंने इन्हें एक विजयी खड्ग दिया था और विजय का आशीर्वाद दिया था । गुहिलवंश के आदि पुरुष होने के कारण महाराज कालभोज को सम्मान से 'बप्पा रावल ' कहा जाने लगा । कहते हैं बप्पा रावल ने अपने मातुल (अर्थात मामा) मानमोरी को मारकर चित्तौड़ का राज्य प्राप्त किया था , किन्तु यह तथ्य गलत है , क्योंकि भोज परमार के पुत्र मानमोरी परमार का शासन का अंतिम समय 784 विक्रम संवत् ( 727 ई सन् ) है जबकि महाराज कालभोज 'बप्पा रावल ' का चित्तौड़ पर राज्य विक्रम संवत 791 ( 734 ई सन्) से प्रारंभ हुआ था , यदि बप्पा रावल मातुल (अर्थात मामा के हत्यारे) हन्ता होते तब मानमोरी की मृत्यु 727 ई में ही चित्तौड़ के राजा क्यों नहीं बन गये ? इसके लिये उन्हें 7 वर्ष बाद 734 ई तक प्रतीक्षा क्यों करनी पड़ी ?
बप्पा रावल इतने पराक्रमी थे कि जब विक्रमी संवत् 780 (723 ई सन् ) में अरबों ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया तो , 10 वर्ष के बप्पा रावल ने अपने मातुल मानमोरी की तरफ से युद्ध करते हुए अरबों को भारत से बाहर खदेड़ दिया था । बप्पा रावल विक्रमी 791 (ई सन् 734 -753) में चित्तौड़ के महाराणा बनें और चित्तौड़ पर गुहिल वंशकी स्थापना की ।
इस्लाम की स्थापना तथा अरबो का रक्तरंजीत साम्राज्य विस्तार सम्पूर्ण विश्व के लिए एक भयावह घटना है , मोहम्मद पैगम्बर के मृत्यु के बाद अरबो का अत्यंत प्रेरणादायी रूप से समरज्यिक उत्थान हुआ ।
100 वर्ष भीतर ही उन्होंने पश्चिम में स्पेन से पूर्व में चीन तक अपने साम्राज्य को विस्तारित किया।
वे जिस भी प्रदेश को जित ते वहा के लोगो के पास केवल दो ही विकल्प रखते, या तो वे उनका धर्म स्वीकार कर ले या मौत के घाट उतरे । उन्होंने कई महान संस्कृतियों ,सभ्यताएं,शिष्टाचारो को रौंध डाला ,मंदिर,चर्च,पाठशालाए,ग्रंथालय नष्ट कर डाले। कला और संस्कृतियों को जला डाला सम्पूर्ण विश्व में हाहाकार मचा डाला। ग्रीस,इजिप्त,स्पेन,अफ्रीका,इरान आदि महासत्ताओ को कुचलने के बाद अरबो के खुनी पंजे हिन्दुस्तान की भूमि तरफ बढे। अरबो ने सम्पूर्ण हिन्दुस्तान को जीतकर वहा की संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट करने हेतु महत्वाकांक्षी खलीफा ने ई सन् 738 में बगदाद के खलीफा वलीद ने जब सेनापति जुनैद के नेतृत्व में भारतपर आक्रमण करवाया तो बप्पा रावल के नेतृत्व में भारतके समस्त राजाओं ने जुनैद का सामना किया , जिसमें प्रतिहार राजपूत नागभट्ट प्रथम भी थे युद्ध में बप्पारावल ने अरबों को अरब तक रौंदते हुए विजय प्राप्त की थी और काबुल-ईरान तक (तत्कालीन ईरान की सीमा तुर्क तक थी ) अपने साम्राज्य का विस्तार किया । इस विजय के बप्पा रावल ने अपने इष्ट स्वयम्भू महादेव एकलिङ्गनाथ जी का भव्य मन्दिर का निर्माण किया था। बप्पा रावल ने एकलिङ्गनाथ जी को चित्तौड़ का स्वामी और स्वयं को उनका सेवक और दीवान घोषित किया । यह वंश परम्परा से नियम बना रहा , एकलिङ्गनाथ जी को मेवाड़के महाराणा मानने और स्वयं को उनका दीवान मानने में गौरव समझते थे। धन्य है मेवाड़ राजवंश , भगवान् शिव के प्रति इतनी भक्ति किसी राजवंश में नहीं दिखती।
मलेच्छ आक्रमणकारियों को नाकों चने चबवाने वाले वीर बप्पा रावल का सैन्य ठिकाने वहां होने के कारण रावलपिंडी को यह नाम मिला। आठवीं सदी में मेवाड़ की स्थापना करने वाले बप्पा भारतीय सीमाओं से बाहर ही विदेशी आक्रमणों का प्रतिकार करना चाहते थे। सम्राट बप्पा रावल ने खुरासान तक आक्रमण कर अरब सेनाओं को खदेड़ा था। कई इतिहासकार इस बात को निर्विवाद स्वीकार करते हैं कि रावलपिण्डी का नामकरण बप्पा रावल के नाम पर हुआ था। इससे पहले तक रावलपिंडी को गजनी प्रदेश कहा जाता था। तब कराची का नाम भी ब्रह्माणावाद था। इतिहासकार बताते हैं गजनी प्रदेश में बप्पा ने सैन्य ठिकाना स्थापित किया था। वहां से उनके सैनिक अरब सेना की गतिविधियों पर नजर रखते थे।
सन 742 ईस्वी में सामर्रा के हिशाम मलिक ने अपना सेनापति मसलमा को लाखो की फ़ौज लेकर सिंध पर आक्रमण करने के लिए भेजा था इस युद्ध को “Battle of the Pass” यह युद्ध २००,६२५ (200,625) जेहादी आक्रमणकारियों के साथ लड़ा गया था एकलिङ्गनाथ अवतार बप्पा रावल जी युद्ध में नेतृत्व स्वयं करते थे सेनापति भेजकर युद्ध नहीं किया कभी इनकी तलवारे गाजर मुली की तरह जेहादियों को काटते - काटते अरब की सीमारेखा तक खदेड़ कर लौटते थे । सामर्रा के हिशाम मलिक को जब सुचना मिली की भारतवर्ष के सम्राट बप्पा रावल सेनापति मसलमा को पराजित कर सामर्रा तक रौंद दिया हैं हिशाम मलिक आत्मसमर्पण कर दिया और सामर्रा पर बप्पा रावल ने भगवा ध्वजा लहराकर अपना साम्राज्य में सम्मिलित किया ।
सन 748 ई सन अब्बासी वंश मुहम्मद इब्न मरवान द्वितीय (आर्मेनिया के सुल्तान) एवं उमय्यद वंश के हज्जाज को परास्त किया था जो खुरासान के सुल्तान थे यह दोनों अश्शूरों से भी अधिक क्रूर थे इन्होने स्पेन पर आक्रमण कर 2लाख यूरोप की नारियों को यौन गुलाम बना कर रखा था महाराज कालभोज इन अश्शूरों का काल बनकर मरवान द्वितीय को नर्कलोक पहुँचा दिए थे एवं खुरासान के सुल्तान को खुरासान से तक खदेड़ दिया ।
बप्पा रावल के विषय में एक मिथ्या प्रचार किया गया हैं क्यों की बप्पा रावल की शौर्य को छुपा के रखने का अनंत प्रयास किया गया परन्तु सत्य कभी चुप नही सकता जैसे प्यासे को पानी की तड़प हो तो रेगिस्तान में भी पानी का कुआँ ढूंड लेता हैं ठीक उसी तरह हम जैसे भारतीय इतिहासकार प्रेमी सच्चे इतिहास को ढूंड निकालते हैं एक मिथ्या प्रचार यह हैं बप्पा रावल की तकरीबन 100 पत्नियाँ थीं, जिनमें से 35 मुस्लिम शासकों की बेटियाँ थीं, जिन्हें इन शासकों ने बप्पा रावल के भय से उन्हें ब्याह दीं यह सम्पूर्ण रूप से अप्रमाणिक कथन हैं महाराज कालभोज निरंतर युद्ध लड़े अरबो से साम्राज्य विस्तार किया 19 साल की राजपाठ में साम्राज्य उज़्बेकिस्तान अरब की सीमारेखा तक विजय पाया था , 753 ई. में बप्पा रावल जी ने 39 वर्ष की आयु में सन्यास ले लिए थे फिर 100 नारियों से सम्बन्ध कैसे बना सकते हैं । जिन्होंने निरंतर युद्ध लड़े, जिन्होंने अरब तक साम्राज्य विस्तार किया उनके पास क्या इतना समय था की इतने सारे नारियों से व्याह करेंगे एवं दूसरा प्रमाणिक तथ्य हैं ग्रन्थ स्कन्द पुराण , भविष्यपुराण, विष्णु पुराण में लिखा हैं “सम्राट विक्रमादित्य परमार के बाद महाराज कालभोज वर्णाश्रम के रक्षक बने थे उनके ब्राह्मण गुरु योगी हारीत ऋषि द्वारा उन्हें आशीर्वाद भी प्राप्त हुए थे” जो वर्णाश्रम के रक्षक थे वही अपना कूल नाश एवं वर्ण शंकर फैलाने के लिए मलेच्छ कूल की लड़कियों से व्याह कर के वैदिक संस्कृति को दूषित करेंगे यह इतिहासकारों का छल था जो एक तरफ बप्पा रावल को पराक्रमी सिद्ध किया दूसरी तरफ उनको वैदिक संस्कृति के शत्रु भी बना दिया ऐसा इतिहास लिख कर ।
जय एकलिङ्गनाथ , जय मेवाड़ , जय महाराणा
साभार: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1813215502333624&id=100009355754237
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