Tuesday, 4 April 2017

मैकोले पुत्रियों को बनने से रोकें

जय श्री राम गुरु जनों की चरण वंदन करते हुए आज एक और लेख प्रस्तुत करुँगी
मैं मनीषा सिंह आज अपनी लिखी हुई किताब मैकोले पुत्री एवं भारत पुत्री की कुछ सार बिंदु यहाँ प्रस्तुत करना चाहूंगी -: इस विषय पर लिखने से पूर्व एक वाक्या हुआ जिस वजह से मैं मजबूर होगयी यह किताब लिखने पर एक दिन शाम को मैं क्लास पढ़ाकर वापस लौट रही थी मैंने देखा मेरे घर के सामने एक तीन मंजिला घर के बहार चार युवक युवती उन चारों की उम्र लगभग १५ से १७ के अंदर होंगे धुम्रपान कर रहे थे और दो युवक विदेशी ड्रिंक (थम्स-उप / कोक) के बोतल में कुछ मिश्रण कर पान कर रहे थे साफ़ तौर से पता लग गया की मदिरा सेवन कर रहे हैं वही मदिरा वोह दो युवती भी ली बस मैं यह दृश्य देख कर घर के अंदर आकर बैठी थी तभी बहार शोर मचने लग गया घर से निकल कर देखि उन दो युवतियों में से एक ने बहुत उलटी कर रखी थी और उतने देर में उस तीन मंजिला घर के मालिक ने उन दो युवतीओं को पानी से जगह साफ़ करने के लिए कह रहे थे इतने देर में वोह दो युवक बाइक पर बैठ कर भाग निकला वहाँ से और उस घर के मालिक से वोह दो युवतियां बदतमीज़ी कर रही थी उतने देर में काफी लोग इक्कट्ठा हो गये थे जब युवतियों से उनके घर का नंबर माँगा गया स्थानीय निवासियों द्वारा वोह अपने इज्जत की भीख मांगने लगी अंतत मुझे बुलाकर पूछा गया की इनलोगों ने ऐसा किया हैं तो क्या करना उचित होगा मैंने कहा आजकल हर माँ बाप का सिर्फ एक सपना होता हैं बेटा बेटी अंग्रेजी बोले अंग्रेज़ स्कूल में पढ़े और अंग्रेजियत को अपनाये तो गलती इसमें आजकल के युवक युवतियों से ज्यादा बच्चो के माँ बाप का हैं जो भारतीय संस्कृति से अलग कर के अपने बच्चों को अंग्रेज़ बनाने के होड़ में लगे हुए हैं इनमे जितना दोष इन बच्चो का हैं उससे अधिक माता पिता का हैं ।।
भारत की उत्थान एवं पतन दोनों सदेव नारी के हाथो में रहा हैं। 
”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्त फलाः क्रिया”॥ अर्थात् जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं जहां ऐसा नहीं होता वहाँ समस्त यज्ञार्थ क्रियाएं व्यर्थ होती है। यह विचार भारतीय संस्कृति का आधार स्तंभ है। भारत में स्त्रियों को सदैव उच्च स्थान दिया गया है। कोई भी मंगलकार्य स्त्री की अनुपस्थिति में अपूर्ण माना गया हैं। पुरूष यज्ञ करें पत्नी का साथ होना अनिवार्य होता हैं। उदाहरणस्वरूप श्रीराम का अश्वमेध यज्ञ। स्त्री समाज का दर्पण होती है। यदि किसी समाज की स्थिति को देखना है, तो वहां की नारी की अवस्था को देखना होगा। राष्ट्र की प्रतिष्ठा, गरिमा, उसकी समृध्दि पर नहीं अपितु उस राष्ट्र के सुसंस्कृत व चरित्रवान नागरिकों से हैं और राष्ट्र को, समाज को, ये संस्कार देती है कि स्त्री जो एक माँ हैं, निर्मात्री है। मां अपने व्यवहार से बिना बोले ही बच्चे को बहुत कुछ सिखा देती है। स्त्री मार्गदर्शक हैं वह जैसा चित्र अपने परिवार के सामने रखती हैं परिवार व बच्चे उसी प्रकार बन जाते हैं स्त्री एक प्रेरक शक्ति हैं वह समाज और परिवार के लिए चैतन्य-स्वरूप हैं परंतु वही राष्ट्रीय चैतन्य आज खुद सुषुप्तावस्था में है। हर महान व्यक्तित्व के पीछे एक स्त्री हैं आज हम सब मिल कर देश व समाज कहां जा रहा है इसकी बाते करते हैं आज के बच्चे कल देश का भविष्य बनेंगे। परंतु यह विचार करना अति आवश्यक हैं कि आज के इस परिवेश में ये नौनिहाल किस नए भविष्य को रचने की कोशिश करने में लगा हुआ हैं हम सब एक-दूसरे पर दोषारोपण करते हैं क्या सच में ऐसा है? इसी पर आज के परिवेश में जो चिंतन करने की आवश्यकता है और इस सबके लिए स्त्री जो एक मां है का दायित्व अधिक बढ़ जाता है इसलिए स्त्री संस्कारित होगी, तो बच्चों में वह संस्कार स्वतः ही आ जाएंगेक्योंकि अगर वह अपने घर में एक स्वस्थ माहौल देखेंगे तो उसे अपने आचरण में उतारेंगे।       
सर्वप्रथम मैं मैकोले पुत्री कहने का अर्थ समझाना चाहूंगी , भारत में आज अधिकतर परिवारों का सपना होता हैं उनके बच्चे कॉन्वेंट स्कूल में पढ़े और जाकर विदेशो में बस जाए बच्चा कान्वेंट में दाखिला लेना पसंद करता है न कि किसी भारतीय शिक्षण संस्थान में माँ बाप का सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहता हैं भारत पुत्री को मैकोले पुत्री बनाने में आज के माता पिताओं के नजर में भारत मतलब एक गुलाम देश और दुसरो के टुकड़ो पर पलनेवाला भारत का स्वयं का कोई अस्तित्व नही हैं और कॉन्वेंट स्कूल ही नही icse , cbsce ऐसे ऐसे बोर्ड हैं जहाँ भारत के लिए भारतीयों के अंदर हिन् भावना को जन्म दिया हैं जिस कारण कोई भी युवक युवती खुद को भारतीय कहलवाना तक पसंद नही करते हैं ।
अब आते हैं मैकोले पुत्री के विषय में मैकोले पुत्रियों को स्वछन्दता और स्वतंत्रता के अंतर पता नहीं हैं बस इन्हें विरोध करना आता है इन्हें विदेशो के कुत्ता कुसंस्कृति से लगाव हैं 12 से 13 वर्ष की लड़कियाँ माँ बन जा रही हैं ऐसा इन्हें भी बनना हैं और आज ऐसे कई घटना हैं जहाँ 12 से 13 वर्षीय लड़किया माँ बन गयी हैं । पाश्चात्य असभ्यता इस तरह हावी हो चूका हैं हमारे समाज के मैकोले पुत्रियों में कम उम्र में माँ बनने में बिना शादी किये किसी के साथ भी सम्भोग करने में इन्हें कोई आपत्ति नज़र नहीं अति हैं फिल्म निर्माता सतीश कौशिक ने इस बात को सही ठेराने के लिए फिल्म भी बना दिया था जिसका नाम हैं तेरे संग , मैकोले पुत्रियों के आदर्श हैं सन्नी लिओने , दीपिका पादुकोण , प्रियांका चोपड़ा पर इन मैकोले पुत्री को शायद यह ज्ञात नहीं की जो हज़ार मर्दों के साथ सोये उसे वैश्या कहते है और जो लाखों करोड़ो मर्दो के साथ सोये उसे हीरोइन कहते हैं और ऐसे चरित्रों को आदर्श बनाना कितना उचित है आप स्वयं विचार कीजिये आज कई लड़कियाँ घर से भागकर मुम्बई हेरोइन बनने चली जाती हैं फिर उन्हें ले जाकर कोठे पर बैठा दिया जाता हैं । इन सबमे घर के परिवेश का सबसे बड़ा योगदान होता हैं घर में आजकल रामायण महाभारत की कथा नहीं सुनाई जाती हैं एकता कपूर के अश्लील सीरियल एक ही घर में माँ बेटी दादी सब मिलकर देखते हैं इसे देखकर पुत्री कहती हैं माँ मुझे भी हीरोइन बनना हैं माँ कहती हैं हाँ ज़रूर बनना खूब उत्साह देती हैं । मैकोले पुत्रियाँ स्वतंत्रता आंदोलन में उतरी हैं इन्हें आज़ादी चाहिए कैसी आज़ादी संस्कृति की बन्धन नहीं चाहिए स्वतंत्रता के नाम पर शराब , ड्रग्स , धूम्रपान करने की आज़ादी । एक से अधिक पति रखने की आज़ादी कॉलेज वाला पति , घर वाला पति , ट्यूशन वाला पति , घूमने ले जाने के लिए अलग पति , इत्यादि इत्यादि ऐसे कर के पच्चीस पचास पतियाँ रखने की आज़ादी चाहिए ।
मैकोले पुत्रियों के लिए भारत मतलब पिछड़ा हुआ देश मैकोले पुत्रियों के नज़र में भारतीय परंपरा भारतीय उत्सव सब एक अन्धविश्वास हैं अपने देश के बने हुए चीज़ों का इस्तेमाल करना इनके लिए शर्म महसूस करवाने वाली होती हैं जिन्हें स्वदेशी एक गाली लगती हैं भारतीय सभ्यता इनके लिए पिछड़ापन होता हैं और अंग्रेजी नग्नता इनके शब्दों में स्वतंत्रता होती हैं ।
मैकोले पुत्री के लिए भारतवर्ष में नारियों के लिए बनायें गए नियम बेड़िया हैं जिन्हें अंग्रेज़ो ने आकर खोले हैं । आज के इन मैकोले पुत्रियाँ ना तन से ताकतवर हैं ना मन से जीरो फिगर बनाने के होड़ में लगे यहलोग बर्गर पिज़्ज़ा खाना कहा कर डाइट करते हैं परन्तु आज यह मैकोले पुत्री भूल चुकी हैं आज जितना उनका वजन हैं उससे ज्यादा रानी लक्ष्मीबाई की तलवारों की वजन हुआ करती थी ।  
भारतपुत्री वह होती हैं जो सदैव भारत की मिट्टी को पूजती हैं उनके लिए भारत की मिट्टी से बढ़कर और कोई चन्दन नहीं हैं भारतपुत्री के लिए भारत की सुसंस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ संस्कृति हैं जहाँ माँ पिताजी को भगवान का स्थान दिया जाता हैं जहाँ हर रिश्ते अमूल्य होता हैं भारत सदैव से संस्कृति एवं धर्मपरायण देश रहा भारत भूमि विश्व की एक मात्र ऐसा देश हैं जहाँ नारियों को सदैव वन्दनीय रही हैं ।
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व जब दुनिया की अन्य देशों की नारियां नग्न हो जानवरो की तरह घूमती थी और उन्हें डाईन कहकर प्रताड़ित कर मार दिया जाता था ,

तब भारतवर्ष की महान नारियाँ राजाओ के साथ सिहासन पर बैठकर शासन के महत्वपूर्ण फैसले लिया करती थी , तब भारतवर्ष की महान नारी लीलावती और गार्गी के रूप मे गणित और विज्ञान मे अपना परचम फहरा रही थी ।
इन्ही भारत पुत्रियों में नाम आता हैं जीजा माता ,रानी लक्ष्मीबाई , रानी पद्मिनी , रानी संयुक्त , बाईसा किरण देवी , सुजा कंवर , अहिल्याबाई होलकर , रानी कुरम देवी । और वर्त्तमान में वही भारत पुत्री हैं जिन्हें भारतीय शिक्षण से प्यार हैं स्वदेशी पहनावा से प्रेम हैं जिनके लिए आदर्श धर्म राष्ट्र को पूजनेवाली नारियां हैं जैसे हैं जीजा माता ,रानी लक्ष्मीबाई , इत्यादि जिनके जीवन का लक्ष्य केवल राष्ट्र सेवा हो धर्म सेवा हो भारत पुत्री वोह हैं जो माता सीता का दर्शन करते हैं जो केवल जब तक जिंदा रही अपने शील की रक्षा हेतु । भारत पुत्री माता सीता जैसी पतिव्रता नारी का प्रतीक हैं। वो अपने स्वामी के इलावा किसी को सपने में भी नहीं देखना चाहती थीं। पराया कोई भी ज़बरदसती समीप आने पर तिनके की ओट का सहारा लेतीं हैं । भारत पुत्री के लिए भारतीय उत्सव कोई बेड़िया नहीं लगती परम निष्ठा के साथ भारतीय परंपरा को निभाती थी भारत की मिटटी से बना हर चीज़ अमूल्य होता हैं भारत पुत्रियों के लिए आज जहाँ भारत के युवतियाँ भारतीयता को गाली समझ कर अपनी संस्कृति से मुह फ़ेड ले रहे हैं वही जर्मन , रूस , कोरिया में भारतीय संस्कृति की धूम मची हुई हैं सब विदेशी धर्म छोड़ हिन्दू धर्म में वापस लौट रहे हैं ।  
मैकोले पुत्रिओं यह समरण करना होगा भारत में नारी को जो दर्ज़ा दिया जाता हैं वोह किसी अन्य देशो में नहीं दिया गया हैं| विचारक ‘जोड’ ने एक पुस्तक में लिखा है- ”जब मैं जन्मा था तब पश्चिम में होम्स थे, अब हाउसेस रह गए हैं क्योंकि पश्चिमी घरों से स्त्री खो गई है।” कही यह दुर्गति भारत की भी ना हो जाय क्योंकि भारत में यदि भारतीय संस्कृति यहाँ का धर्म और विचार अगर बचा है तो नारी की बदौलत ही बचा है ! अतः नारी को इस पर विचार करना चाहिए ! कही देर ना हो जाय अतः इस स्थिति से उबरने का एकमात्र उपाय यही है कि नारी अब अन्धानुकरण का त्याग कर ,भोगवादी व बाजारवादी संस्कृति से अपने को मुक्त करे। अपनी लाखों , करोड़ों पिछड़ी अनपढ़ बेसहारा बहनों के दुखादर्दों को बांटकर उन्हें शैक्षिक , सामाजिक, व आर्थिक स्वाबलंबन का मार्ग दिखाकर सभी को अपने साथ प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होना सिखाये । तभी सही अर्थों में नारी इक्कीसवीं सदी की समाज की नियंता हो सकेगी । अब स्त्री को खुद को सोचना है कि वह कैसे स्थापति होना चाहती है पूज्या बनकर या भोग्या बनकर !
जब भी कोई स्वदेशी व्यक्ति भारतीय संस्कृति की बात करता है उसे बहुत गालियाँ पढ़ती है | भारत की परिवार व्यवस्था , समाज व्यवस्था , खानदान व्यवस्था आदि भारतीय संस्कृति में आते हैं | प्राचीन भारत में एक गाँव में हर घर की बेटी पूरे गाँव की बेटी होती थी तथा सारा गाँव उसका ख्याल रखता था तथा उसकी शादी में गाँव के हर घर से लोग काम करते थे तथा कुछ देते थे | यही नहीं घर की महिला के ऊपर कोई भी मुसीबत आने से पहले पुरुष पहले सामने खड़े हो जाते थे तथा मुसीबत का सामना खुद करते थे , यही नहीं घर में अन्न कम होने पर आज भी कई किसान पहले महिलाओं और बच्चो को खिलाते हैं भले ही खुद भूखा रहना पढ़े , यह भारत की संस्कृति है | जब भी कहीं कोई आपदा या विपदा आती है तो पहले महिलाओं और बच्चो को बचाया जाता है , यह भारतीय संस्कृति और सभ्यता है |
वर्तमान में नारी चांद पर पहुंच गयी है कल्पना चावला का नाम तो कोई नहीं भूला होगा। इसके साथ-साथ नारी देश के उच्च पदों पर आसीन है हमें तो केवल स्वतंत्रता के अंदर के भाव को समझना होगा, बेटी को उच्चछृंखल बनाना तो आसाान है पर साथ में यह भी ध्यान होगा कि कही यह आजादी हमारी शर्मींदगी का कारण ना बन जाए। हमें अपनी मर्यादाओं की सीमा तय करनी होगी और समझना होगा कि इनका उल्लंघन करने पर कौन से दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। हमें आधुनिक तो बनना चाहिए पर अपनी स्वदेशी पद्धति को अपनाकर। प्राच्य एवं पाश्चात्य के बीच सेतु न बनकर यह चिंतन कर रहे है कि हम स्वतंत्रता के नाम पर स्वछंदता से परिपूर्ण न हो जाए। क्योंकि स्वछंदता मानव का सत्यानाम करती है। भारत ने स्वछंदता एवं स्वतंत्रता में भेद किया है।

साभार:

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1773627269625781&id=100009355754237

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